Rajsharma Sex Story : प्यासी शबनम लेखिका रानू (Romance Special)
समुद्र होने के नाते यहां हवाओं का बहाव ज्यादा तेज था। सांय-सांय का स्वर भयानक होने के पश्चात् ठण्डी-ठण्डी हवाएं देने के कारण ज्यादा भला लग रहा था। ऊंची-ऊंची लहरें मचल करइसे तेजी के संग किनारे की ओर लपकतीं सी बालू पर दूर तक चली आती थीं और जब पुनः जाना चाहतीं तो पलटने से पहले ही टूटकर तितर-बितर हो जाती थीं। हवाओं केइसे तेज बहाव पर अपनी लटें वन्दना को क्षण-भर के लिए भी संभालना कठिन हो गया तो उसने अपना सामान समुद्र किनारे लगाया। तैराकी टोपी पहनी, दोबारा खड़ी होकर तैराकी कपड़े पहनने लगी। जिस टाइमवह तैराकी वस्त्र पहन रही थी तो रोहित के अतिरिक्त उस पर किसी भी विदेशी ने कोई ध्यान नहीं दिया। किसी ने उस पर ध्यान देने की आवश्यकता ही नहीं महसूस की। ऐसी बातें यहां कोई महत्त्व नहीं रखतीं। वन्दना रोहित की ओर पीठ करके अपना टॉप बदलती हुई तैराकी चोली पहन रही थी जिसे सिर्फ रोहित ही देख रहा था, चोर दृष्टि से। उसकी आंखों में किसी तरह की वासना नहीं थी बल्कि वन्दना के सफेद संगमरमर जैसे तराशे सुन्दर बदन की तारीफ थी - प्रेम भरी प्रशंसा। तब भी जब वन्दना नेइसे बात का एहसास किया कि रोहित उसे देख रहा है तो वह अपनी चोली का बटन लगाती हुई रोहित की ओर पलट पड़ी।
उसने रोहित को प्रेम से डांटा, ‘वेरी बै--ड।’ उसने प्रेम से रोहित पर आंखें निकालते हुए भी नचाईं। रोहित हल्के से मुस्करा दिया,इसे तरह मानो ये क्या उसे तो वन्दना को शीशे में उतार कर आरपार भी देखने का पूरा अधिकार था। उसने लपककर वन्दना का हाथ पकड़ना चाहा ताकि उसे बांहों में समाकर छाती से लगा ले। परन्तु वह उसकेइसे शरारत भरे इरादे को भांप चुकी थी। वह तुरन्त पीछे हट गई। दोबारा उसे जबानबाहर् निकाल कर चिढ़ाती हुई वह चहकती तथा पलटकर चौकड़ियां भरती समुद्र की ओर भाग खड़ी हुई। उस दिन वन्दना के संग रोहित ने भी तैरने का खूब आनन्द उठाया। सागर की बड़ी-बड़ी लहरों के संग तैरने का आनन्द ही कुछ और है। दोनोंएक साथ, एक-दूसरे के समीप तैरते हुए समुद्र में बहुत दूर तक निकल जाते थे। परन्तु दोबारा जल्दी ही बड़ी-बड़ी लहरेंउन्को पुनः बहाकर किनारे पर ला पटकती थीं, कभी एक-दूसरे से ज्यादा दूर तो कभी एक-दूसरे के बिल्कुल समीप। वन्दना ने समुद्र केइसे खेल का आनन्द मम्मी तथा अपने अंग्रेज सौतेले पिता के संग पहले भी कई बार उठाया था। परन्तु जो आनन्द प्रेमी के संग मिलता है उसकी बात ही अलग होती है। प्रेमी के संग में खण्डहर भी राजमहल बन जाता है। नर्क स्वर्ग मालूम पड़ने
लगता है। जवान दिलों की भावनाओं की वही मांग है। शायद इसे ही प्रेम कहते हैं या दीवानापन। वैसे दो जवान दिल आपस के एकान्तपन में भटक कर कोई पाप कर बैठे तो वह पाप के संग दीवानापन भी कहलाता है, परन्तु दो दिल लाख परीक्षाएं आने के पश्चात भी संभल जाएं तो उसे प्रेम करते हैं - सच्ची प्यार। ऐसे हीएक बार नटखट लहरों ने चिंघाड़ कर उन दोनों को किनारे बालू पर बिल्कुल एक-दूसरे के समीप ला पटका तो रोहित शरारत से जान-बूझकर वन्दना के बदन पर गिर पड़ा। वन्दना तुरन्त उठकर घुटनों के बल खड़ी हो गई। रोहित भी वन्दना को दोनों बांहों में थामता हुआ स्वयं घुटनों के बल खड़ा हो गया। वन्दना की आंखों में उसने ज्यादा प्रेम से झांका। वन्दना के होंठों परएक हल्की तथा बड़ी मीठी मुस्कान थी। तैरते रहने के कारण उसकी सांसें फूल रही थीं। सांसों के उतार-चढ़ाव पर उसकी छाती भी उपरि नीचे हो रही थी। रोहित ने देखा तो उसका दिल प्रेम में मचल गया। उसने वन्दना को अपनी ओर खींचा, उसके मुखड़े को अपने मुखड़े की ओर, होंठों को होंठों की ओर। वन्दना ने भीइसे बार किसी तरह की आपत्ति नहीं की। वह स्वयं को रोहित की बांहों में समर्पित करने को तैयार हो चुकी थी। उसकी आंखों में खुमार छा रहा था। आंखों के रेशमी
डोरे कांप रहे थे। कपोलों पर उसकी भीगी लटें चिपकी हुई थीं जिन पर अटकी पानी की बूंदें धूप में मोतियों के समान टपक रही थीं। भला कौन काफिर होगा जो भगवान की बनाईइसे अनुपम सुन्दरता से प्रभावित नहीं होता? रोहित ने वन्दना को अपने समीप करते हुए उसके होंठों को अपने और समीप कर लिया - समीप - और समीप - बिल्कुल समीप, यहां तक कि वन्दना की गरम-गरम सांसों की भीनी-भीनी सुगंध रोहित के कपोलों पर छाने लगी, उसके नथुनों द्वारा दिल की गहराई में उतर कर उसे मदहोश करने लगी। रोहित से अब और ज्यादा अपने दिल पर काबू करना कठिन हो गया। उसे अब किसी की भी चिन्ता नहीं थी, न आस-पास या दूर-दूर तक बैठे-लेटे यात्रियों की। विदेश में यूं भी इन बातों पर कोई ध्यान नहीं देता है। यहां पर इन बातों पर ध्यान देना संकीर्ण या हीन भावना का प्रतीक माना जाता है।इसलिये रोहित ने निश्चिन्त होकर वन्दना को तुरन्त खींचकर अपनी छाती से लगा लेना चाहा ताकि उसे प्रेम कर ले, उसके कुंवारे होंठों की मदिरा अपने होंठों द्वारा दिल की गहराई में जज्ब करके सदा के लिए मदहोश हो जाए, शायद वह ऐसा करने में संपन्न हो जाता परन्तु तभी---तभीएक बड़ी लहर का समुद्री रेला आया और उन दोनों के दिल में उभरते तूफान को अपने तूफान में ले डूबा,
इसे झटके के संग कि दोनों ही एक-दूसरे से अलग होकर छिटक गए। और जब समुद्री रेला किनारे और आगे बढ़कर तितर-बितर होता हुआ पुनः लौटा तो दोनों एक-दूसरे से दूर बालू पर पड़े हुए थे। अमर वन्दना को सड़क के किनारे, पत्थर की दीवार के समीप खड़ा खोया हुआ देख रहा था। ज्यादा देर हो गई वन्दना को वहां खड़े-खड़े तो अमर ने सोचा, वन्दना उससे ज्यादा नाराज है या उसे उसके साहस पर ज्यादा दुःख है क्योंकि उसने ऐसी आशा कभी नहीं की होगी। ऐसी हरकत को शायद उसके प्रेमी रोहित ने भी कभी नहीं की होगी। अमर ने ज्यादा आहिस्ता से अपनी ओर गाड़ी का गेट खोला। गाड़ी से वह नीचे उतरा। आकर वह चुपचाप वन्दना के पीछे खड़ा हो गया। वन्दना अब तक विचारों में तल्लीन थी,इसे तरह कि उसे अमर के आने की आहट तक नहीं मिली। वन्दना की लटें हवा के बहाव पर उड़ रही थीं। आसमानी साड़ी का आंचल भी छाती से सरक कर हवा में लहरा रहा था परन्तु वन्दना को इसकी जरा भी परवाह नहीं थी, शायदइसे पर उसका ध्यान नहीं था। अमरएक क्षण वन्दना के पीछे उसी तरह चुपचाप खड़ा रहा। दोबारा उसने साहस बटोरकर अपने लगे में अटका थूक घोंटा। दोबारा ज्यादा दबे
स्वर में उसने कहा - ‘वन्दना जी।’ अमर ने वन्दना के समीप होते हुए भी मानो ज्यादा दूर से पुकारा था। वन्दना अपने विचारों से चौंकी। आंखों के सामने थिरकती अतीत की तस्वीरइसे प्रकारएक झटके के संग ओझल हो गई मानो सिनेमा के परदे पर चलती-फिरती फिल्म अचानक ही टूट गई हो। वन्दना अपनी वास्तविकता में पुनः आई परन्तु उसने पलट कर पीछे नहीं देखा।एक गहरी सांस लेने के पश्चात उसने अपनी उड़ती लटों पर हाथ फेरा और उसी तरह खड़ी रही। ‘आप मुझसे नाराज हैं क्या?’ अमर ने डरते-डरते पूछा। वन्दना ने कोई उत्तर नहीं दिया। अपना मुखड़ा उठाकर उसने आकाश की ओर देखा जहां सूर्य के प्रकाश के प्रतिबिम्ब पर बदलियों के काले टुकड़ों के किनारे, ताई हुई चांदी के समान चमक रहे थे। बिना कुछ कहे ही वह अपनी टांगेंएक के बादएक उठाकर पत्थर की नीची दीवार पार करने लगी तो उसकी आसमानी साड़ी करीब घुटनों तक उपरि उठ गई। अमर की आंखों में वन्दना की सन सफेद संगमरमर-सी तराशी हुई सुन्दर पिंडलियांइसे तरह चमकीं मानो नील गगन में बिजली कौंध गई हो। क्षण भर के लिए अमर बिजली कीइसे चकाचौंध में खो गया। वन्दना पत्थर
की दीवार पार करने के पश्चात वहां दीवार पर बैठ गई। उसके आगे ढाई-तीन फुट पश्चात गहरी खाई चली गई थी। अमर वन्दना के पीछे, बगल में आकर समीप ही खड़ा हो गया। उसने दोबारा कहा, ‘आपने मेरी बात का उत्तर नहीं दिया।’ वन्दना क्षण भर चुप रही। दोबारा उसने अमर की बात का उत्तर देने के बजाए स्वयं ही प्रश्न किया, ‘यहां---यहां आसपास समुद्र का किनारा नहीं है?’ ‘समुद्र का किनारा?’ अमर को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा, ‘आप तो यहां की रहने वाली हैं। क्या लंदन जाते ही भूल गईं कि---’ ‘आई एम सॉरी।’ वन्दना ने तुरन्त अपनी भूल का आभास किया। बोली, ‘दरअसल मैं इसे विदेश समझ बैठी थी।’ वह तुरन्त उठ खड़ी हुई। दीवार पार करके वहइसे ओर, सड़क पर आई। अमर को देखा। हल्के से मुस्कराई। दोबारा बोली, ‘आओ चलो, हम उस झील को चलते हैं जो पहाड़ों के बीच बसी हुई है।’ वह गाड़ी की ओर बढ़ गई। अमर उसके पीछे-पीछे हो लिया। ‘कार चलाना जानते हो?’ वन्दना ने गाड़ी के समीप आने के पश्चात रुककर पूछा।
‘कार से ज्यादा चौड़ी वाली जीप चलाई है क्योंकि मुझे अपने अंग्रेज मालिक के संग ज्यादातर शिकार पर भी जाना पड़ता था।’ ‘तो दोबारा अब तुम ही इसे ड्राइव करो।’ वन्दना ने गाड़ी की ओर इशारा करते हुए अमर से कहा और दोबारा गाड़ी की स्टेयरिंग के बजाए दूसरी ओर जाकर बैठ गई। अमर को गाड़ी ड्राईव करनी पड़ गई। परन्तु उसे पूरा विश्वास हो गया कि वन्दना ने उसकी उस हरकत का बुरा नहीं माना है जो उसने होंठों तले उसकी लटें दबाकर की थी। उसके दिल को तसल्ली ही नहीं मिली बल्कि अपार प्रसन्नता भी प्राप्त हो गई। उसे वन्दना से बातें करने का उत्साह भी मिला। परन्तु उसने इसका लाभ नहीं उठाया। वन्दना की संगति ही उसके लिएएक रोमांचित वातावरण था। वन्दना की खामोशी हीइसे वातावरण का संगीत था। गाड़ी अपनी गति पर चली जा रही थी। अचानकएक ज्यादा ही गहरा मोड़ आया। अमर ज्यादा वर्षों बादइसे रास्ते पर आया थाइसलिये उसे इतने गहरे मोड़ का ध्यान नहीं था। शायद वन्दना भीइसे गहरे मोड़ के लिए तैयार नहीं थी। इससे पहले कि गाड़ी गहरे मोड़ पर मुड़ने के बजाए सीधे सड़क के किनारे बनी पत्थर की दीवार से जा टकराए,
अमर ने तुरन्त गाड़ी की स्टेयरिंग को गहरे मोड़ पर जाती सड़क की ओर घुमा दिया। अमर की सतर्कता के कारण किसी तरह की दुर्घटना नहीं हुई। परन्तु वन्दना झटका खाकर उसके कंधों पर अवश्य गिर पड़ी। गाड़ी सीधे रास्ते पर होकर चलने लगी। वन्दना ने तब भी अमर के कन्धे पर से सिर नहीं हटाया बल्कि उसने अमर की पीठ से होकर उसका वह कंधा थाम लिया जहां वह सिर रखे हुए थी। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं। अमर के कंधे पर स्वयं को सदा के लिए सुरक्षित समझकर शायद वह प्रेम के सपने में खो जाना चाहती थी। अमर ने गर्दन थोड़ी घुमाकर तथा सिर थोड़ा नीचे झुकाकर वन्दना को देखा। वह मानो स्वयं को मन और मस्तिष्क सहित उसके हवाले कर चुकी थी। उसके कंधे से वन्दना का सिर उठाने का कोई विचार नहीं था, अमर को ऐसा लगा मानो उसे सब-कुछ मिल चुका है, सारे संसार का सुख, चैन ओर प्रसन्नताएं। अब से कुछ भी नहीं चाहिए था। वन्दना ने उसके बिना मांगे ही उसे सब-कुछ दे दिया है, संसार की सबसे बड़ी दौलत, वह कीमत जिसको प्राप्त करने के लिए वह अब तक अपना काम पूरा करने का प्रयत्न करता रहा था। परन्तु जो अब तक अधूरा था।
कुछेक दिन और बीत गए। वन्दना और अमर एक-दूसरे के बिल्कुल समीप आ गए। अब दोनों कहीं भी जाते, संग ही जाते। एक-दूसरे की मानो छाया बन गए थे। अब वन्दना अपने दादा के सोने के पश्चात गई रात तक कोठी में बैठी अमर से बातें करती रहती। प्रेम में जितनी भी बातें होतीं, कम थीं। ज्यादातर वन्दना ही बातें करती क्योंकि उसके सामने अमर को हीन भावना का शिकार होने के पश्चात चुप ही रह जाना पड़ता था। परन्तु कभी-कभी अमर से बातें करते-करते वन्दना खो भी जाती थी। अमर आंखों के सामने होता परन्तु रोहित अनिच्छुक तौर पर उसके सामने चला आता था। ये वन्दना की कमजोरी थी याएक स्वाभाविक मांग? वन्दना स्वयं नहीं समझ पाती थी। क्या ऐसाइसलिये तो नहीं था क्योंकि उसके अछूते दिल में पहली बार रोहित ने ही स्थान बनाया था। वन्दना रोहित का विचार आते ही अपना मन झटककर उसे दिल से निकाल देने का प्रयत्न करती। जो बीत गया उसे याद करने से क्या लाभ? मरने वाले भी कभी लौटकर आए हैं? परन्तु कभी-कभी हजार बार मन झटकने के पश्चात भी रोहित की याद उसके मस्तिष्क का पीछा नहीं छोड़ती थी। ऐसा शायदइसलिये था क्योंकि रोहित ने उसे धोखा नहीं दिया था। उसने तो
शेर सिंह के आदमियों द्वारा उसका अपहरण असफल बनाने तथा उसके खानदान का बदला लेने के लिए डाकुओं का पीछा करते हुए अपनी जान गंवाई थी। ऐसी स्थिति में वह एहसानफरामोश बनकर कैसे रोहित को भूल सकती थी। यदि रोहित ने उसे धोखा देकर छोड़ा होता या उसके जिंदगी से भाग निकला होता तो हां, तब बात अलग थी। रोहित को धोखेबाज समझकर भूलने में उसे ज्यादा टाइमनहीं लगता। इन वास्तविकताओं के पश्चात् वन्दना रोहित को भुलाकर अपने दिल में अमर को प्रेम का स्थान देने के पक्ष में थी। आखिर किस लड़की को अपना नया जिंदगी प्रारंभ करने का अधिकार नहीं पहुंचता है? यदि रोहित कहीं गया होता, उसके लौटने की संभावना जरा भी होती तो वह अपना सारा जिंदगी उसकी याद में इंतजार करके बिता देती परन्तु रोहित की मृत्यु ने उसके आगे अब किसी तरह का प्रश्न ही नहीं रखा था। ठाकुर नरेन्द्र सिंह से वन्दना तथा अमर के दिल की बातें छिपी नहीं रह सकीं। अपना खानदानी सम्मान भूलकरउन्को प्रसन्नता हुई कि वन्दना के लिएउन्को अमर से बढ़िया गुणी नवयुवक कौन मिल सकता था? अमर के चलते ही आज उनके वंश का सम्मान तथा वन्दना की लाज के संग उसकी जान भी सुरक्षित थी। यदि वन्दना को कुछ हो जाता तो
शायद उनकी दिल गति ही बन्द हो जाती। प्रायः वह सोचते कि वन्दना और अमर से बात करके वह उन लोगों का विवाह कर दें और दोबारा शेर सिंह से बदले की भावना का विचार छोड़कर वह उन दोनों को यहां से लंदन या भारत में ही कहीं दूर भेज दें। ऐसा न हो शेर सिंह अमर का भी वही हाल करे जो उसने रोहित का किया था। ऐसी स्थिति में दोबारा वन्दना के लिए इतनी बड़ी घात सहना असम्भव हो जाता। पहले रोहित और दोबारा पश्चात में अमर। रो-रोकर वह निश्चय ही पागल हो जाती। इतना सभी सोचने के पश्चात् ठाकुर नरेन्द्र सिंह कुछ सोचकर रुक जाते। अमर परउन्को आवश्यकता से ज्यादा ही विश्वास था। उनकी अन्तरात्मा कहती थी कि अमर उनके बेटे का बदला लेने में अवश्य संपन्न होगा। अमर तथा अपनी पोती वन्दना को वह दिल ही दिल में आशीर्वाद देते नहीं थकते थे। गांववासियों में भी वन्दना तथा अमर के प्रेम की बातें धीरे-धीरे फैल गईं परन्तुइसे जोड़ी से मानो सभी प्रसन्न थे। सभी के आशीर्वाद का दोनों केन्द्र बने हुए थे। गांव वाले सोचते - यदि ठाकुर नरेन्द्र सिंह ने अपनी पोती का हाथ अमर के हाथ में दे दिया तो वह अपने स्वर्गवासी परम सेवक तथा रक्षक मोहन सिंह का एहसान चुकाने में संपन्न हो जाएंगे। आखिर अमर के माता-पिता की जान ठाकुर नरेन्द्र
सिंह तथा उसकी पत्नी की जान बचाने में ही तो गई थी। उनकी शुभकामना करते हुए गांववासी यही चाहने लगे कि उन दोनों का विवाह दुर्गापुर में ही हो और दोनों कोठी में सदा रहें ताकि पुलिस के संग अमर के चलते गांव की रक्षा और मजबूत हो सके।एक दिन लंच पर ठाकुर नरेन्द्र सिंह बैठे तो खाने के साथ-साथ आज का समाचारपत्र भी पढ़ते जा रहे थे। दुर्गापुर गांव शहर से दूर थाइसलिये यहां समाचारपत्र देर में और कभी-कभी तो ज्यादा देर में आता था। अब उनका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक था। अमर की उपस्थिति, उसकी संगति ने उनकी चिन्ता कम करके मानो जिंदगी कीएक नई शक्ति दोबारा प्रदान कर दी थी। आज वह जैसे ही लंच के लिए बैठे थे कि समाचारपत्र वाला आवाज लगाकर उनकी कोठी के बरामदे में समाचारपत्र फेंक गया था। यद्यपि सुबह रेडियो द्वारा ठाकुर साहब पूरा समाचार सुन लेते थे दोबारा भी जब समाचारपत्र आता था तो वह हर बात भूलकर समाचारपत्र पढ़ना नहीं भूलते थे क्योंकि समाचारपत्र में स्थानीय समाचार बहुत मिल जाता था। ठाकुर नरेन्द्र सिंह के संग वन्दना ही नहीं अमर भी बैठा लंच कर रहा था। अब अमर उनके संग ही लंच किया करता था। लंच करते टाइमअचानक नरेन्द्र सिंह की दृष्टि
समाचारपत्र केएक कोने में गई। शहर मेंएक फाइव स्टार होटल ‘फिरदौस’ की रजत-जयंती थी।इसे शुभ अवसर पर होटल की ओर से विदेशी सभ्यता के अनुसार ‘डाइन एण्ड डांस’ का प्रोग्राम रखा गया था। होटल के अंदर प्रवेशएक अच्छे-खासे शुल्क के संग था। ठाकुर नरेन्द्र सिंह मुंह के कौर को धीर-धीरे चबाते तथा समाचारपत्र पढ़ते हुए कुछ सोचते रहे। दोबारा जब कौर ख़त्म हो गया तो उन्होंने वन्दना की ओर देखा। ‘बेटी-’ उन्होंने कहा, ‘आज ‘फिरदौस’ की रजत-जयंती है।’ ‘फिरदौस?’ वन्दना ने आश्चर्य से पूछा। बचपन में बहू लन्दन चली गई थी। दोबारा इतने वर्षों पश्चात वह भारत लौटी थीइसलिये ये नाम उसे याद भी रहता तो किस सिलसिले में? ‘अरे वही फाइव स्टार होटल-’ ठाकुर साहब ने उसे याद दिलाया। ‘ओह!’ वन्दना को याद आया। बचपन में जब कभी मम्मी उससे मिलने लंदन से आती थी तो प्रायः गांव के जिंदगी से दो ही दिन में उकता कर उसे ‘फिरदौस’ ले आया करती
थी। वह अपनी प्लेट में कांटे-चम्मच द्वारा निवाला बनाने लगी। ‘उसी होटल की आज रजत-जयंती है।’ ठाकुर साहब ने समाचारपत्र मेज पर वन्दना की ओर सरकाया। बोले, ‘इस रजत-जयंती पर ‘फिरदौस’ मेंएक विशेष प्रोग्राम है - विदेशी नृत्य का प्रोग्राम, जिसमें ब्यूटी कांटेस्ट के अतिरिक्त और भी ज्यादा सारी प्रतियोगिताएं सम्मिलित हैं। जब से तुम लंदन से आई हो, आज तक कहीं नहीं गईं। क्यों नहीं आज अमर के संग वहां जाकर तुम नृत्य द्वारा अपना मन ही थोड़ा बहला लो?’ विदेशी सभ्यता पर आधारित नृत्य का प्रोग्राम? वन्दना चम्मच द्वारा अपने मुंह में अन्न डालने ही वाली थी कि रुक गई। नृत्य के विषय में सुनकर उसे रोहित की याद पहुँचना स्वाभाविक था। आखिर रोहित से उसकी पहली भेंट नृत्य के ही प्रोग्राम में तो हुई थी। वह कुछ गम्भीर हो गई। चम्मच में उठाया अन्न उसने प्लेट में पुनः रख दिया। खाना छोड़कर वह उठ खड़ी हुई। खिड़की के पास जाकरबाहर् के वातावरण को देखने लगी जहां पक्षियों की चूं-चूं किसी रंगीन शाम में बजते मीठे साज से कम न थी। वन्दना की आंखों में नृत्य के वह सारे ही दृश्य घूम गए जो उसने रोहित की बांहों में बिताए थे।
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अमर ने वन्दना को देखा। वह जानता था कि वन्दना क्या सोच सकती है। परन्तु उसे दुःख नहीं हुआ। जिस निर्दयता के संग रोहित की हत्या करने के पश्चात उसकी सर-कटी लाश पाई गई थी उसको दृष्टिकोण में रखते हुए वन्दना का रोहित को भूलना करीब असम्भव-सा था क्योंकि रोहित वन्दना का पहला प्रेम था और रोहित ने वन्दना के प्रति ही अपनी जान गंवाई थी। इसके अतिरिक्त अमर अपने दिल से भी विवश था। उसका प्रेम निःस्वार्थ था। वन्दना के जीवन-भर काम आना, उसका दुःख अपना बनाकर वन्दना पर अपनी सारी प्रसन्नताएं निछावर कर देना अमर ने मानो अपने प्रेम का मकसद तथा जिंदगी का लक्ष्य बना लिया था। कुछ सुन्दरताएं पुरुषों कोइसे हद तक भी प्रभावित करती हैं। यही कारण है कि जब वन्दना को रोहित के विचारों में तल्लीन देखकर अमर के मन में यदि कोई टीस उठी भी तो उसने उसका गला घोंट दिया। मानव जिसे प्रेम करता है उसके लिए वह कभी भी नहीं चाहता कि वह उसके अतिरिक्त किसी और को प्रेम दे। मानव का ये स्वभाव है। परन्तुइसे वास्तविकता के पश्चात् अमर वन्दना की विवशता समझता था। वन्दना भी तो आखिरएक नारी ही थी। वह कैसे भूल सकती थी कि उसने अमर से भी पहले किसी को प्रेम किया है? इन सारी बातों की वास्तविकता
समझते हुए अमर सब-कुछ चुपचाप सहन कर लेता था क्योंकि उसका प्रेम निःस्वार्थ था, जो कभी कुछ कहता नहीं था, मांगता नहीं था, झनझनाकर अपने प्रेम का प्रदर्शन नहीं करता था। ठाकुर नरेन्द्र सिंह ने अमर को खाना छोड़कर वन्दना की ओर खोए देखा तोउन्को दुःख हुआ। उससे संवेदना भी हुई। जब वन्दना और अमर एक-दूसरे को प्रेम करने लगे हैं तो वन्दना को कम-से-कम रोहित को याद करके अमर के सामने ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए। उन्होंने वन्दना कोइसे विषय पर पश्चात में समझाने के लिए सोच लिया। अमर का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए उन्होंने पूछा, ‘तुम्हें---’ वहएक क्षण रुके। दोबारा बोले, ‘तुम्हें विदेशी नृत्य आता है?’ ‘जी।’ अमर ने सब-कुछ भूलकर अपना ध्यान ठाकुर साहब की ओर समेटा। उसने कहा, ‘जिस अंग्रेज शिकारी के यहां काम करता था वहां आए-दिन पार्टियां हुआ करती थीं। वहां जोड़ों को नृत्य करते देखकर अक्सर मेरे कदम भी रेडियोग्राम पर बजते रिकॉर्ड के ‘रिदम’ पर उछल पड़ते थे।इसलिये देखते-देखते मैं थोड़ा-बहुत नृत्य तो सीख ही गया हूं। हां फर्श पर उतरने का अवसर आज तक नहीं मिला और न ही मैंने कभी इसकी आशा ही की थी।’
‘फ्लोर पर संगीत के लिए इतना ही ज्यादा है।’ ठाकुर साहब ने कहा, ‘शेष तुम्हें वन्दना सिखा देगी। स्लो डांस तोइसे तरह चल जाएगा। फास्ट डांस वह शायद तुम्हारे ही संग नहीं करेगी क्योंकि फास्ट डांस कठिन होता है।’ नरेन्द्र सिंह ने अपने मुंह में दूसरा कौर डाला। लंच ले चुकने के पश्चात नरेन्द्र सिंह अपने शयन कक्ष में आराम के लिए गए तो कुछ टाइमके लिए उनके संग वन्दना को तन्हा छोड़कर अमर भी अपने कमरे में चला गया। ठाकुर नरेन्द्र सिंह ने पलंग पर बैठने के पश्चात वन्दना को अपने समीप बुलाया। उसे समीप बिठाकर उसके सिर पर प्रेम से हाथ रखा। दोबारा उसे समझाते हुए बोले, ‘बेटी, जो बीत गया उसे भूल जा। अतीत को छाती से लगाए रखने वाला कभी प्रसन्न नहीं रहता। अन्दर-ही-अन्दर वह घुट-घुटकर घुलता रहता है। दोबारा उसके जिंदगी की गाड़ी आसानी से आगे नहीं बढ़ती। जिस व्यक्तित्व का अबइसे संसार में कोई अस्तित्व ही नहीं रहा उसे याद रखने से क्या लाभ?’ ‘रोहित को भूलना तो मैं भी चाहती हूं, दादाजी’, वन्दना ने भर्राए स्वर में कहा, ‘और अब उसे भूलने का साधन भी प्राप्त कर दिया है परन्तु---परन्तु रोहित यदि अपने-आप ही याद आ जाए तो मैं क्या कर सकती हूं?’
‘इसीलिए तो राय दे रहा हूं कि आज तू अमर के संग ‘फिरदौस’ का प्रोग्राम अटैण्ड कर ले।’ नरेन्द्र सिंह ने कहा, ‘दो-चार ऐसे ही प्रोग्राम तुझे अमर के संग अटैण्ड करने को मिल गए तो अमर स्वयं ही तेरे दिल से रोहित कोइसे तरह भुला देगा कि तू उसे भूले से भी कभी याद नहीं करेगी। अमर की खामोशी से प्रकट होता है कि वह तुझे रोहित से कम प्रेम नहीं करता। बल्कि मैं तो कहूंगा कि वह तुझे रोहित से कहीं ज्यादा प्रेम करता है। मेरे जीते-जी यदि तेरे जिंदगी से ये अतीत की छाया मिट जाए तो निश्चय ही मैं इसी कारण सब-कुछ भूलकर अन्तिम सांसें चैन से तोड़ दूंगा।’ वन्दना उसी तरह सिर झुकाए खामोश रही। वह अपने दादाजी की बातों से सहमत थी। ‘जाओ बेटी, जाकर तैयार हो जाओ।’ नरेन्द्र सिंह ने कहा, ‘शहर जाकर अभी से अमर को आज के प्रोग्राम में भाग लेने योग्य वस्त्र दिला देना ताकि वह वहां नवयुवकों को अच्छे और बहुमूल्य वस्त्र पहने देखकर हीन भावना का शिकार न हो सके। और हां’, अचानक नरेन्द्र सिंह को मानो याद आया। उन्होंने कहा, ‘सम्भवतया प्रोग्राम में ज्यादा देर हो जाए,इसलिये रात में गांव मत लौटना। वहीं होटल में ही दो कमरे बुक कर लेना -एक अपने लिए तथा दूसरा अमर के लिए। यहां अपनी रक्षा के लिए मैं चौकी के पुलिस
अफसर द्वारा दो कांस्टेबल का प्रबंध करा लूंगा। मेरी चिन्ता तुम जरा भी मत करना।’ वन्दना अपने दादाजी की चिन्ता से मुक्त हो गई। उसे अपने दादाजी की बातें अमर के लिए भी ज्यादा पसन्द आईं। ‘फिरदौस’ के प्रोग्राम में अमर को हर क्षण उसी की संगति में रहना थाइसलिये अमर को अच्छे तथा बहुमूल्य कपड़े पहनाना परस्पर आवश्यक था। अमर के लिए इतना सब-कुछ करने के बहाने ही वन्दना को अज्ञात प्रसन्नता का आभास हुआ। मानव जिसे प्रेम करता है उसके लिए सभी कुछ करते हुए मानव को दोगुनी प्रसन्नता प्राप्त होती है। ये भी प्रेम काएक पवित्र रूप है। वन्दना रोहित की याद में जितनी गम्भीर थी उससे ज्यादा ये प्रसन्नता मिली कि उसे आज अमर के संग नृत्य करने का अवसर पहली बार प्राप्त हो रहा है। वह उठी और अपने कमरे में पहुंचकर जाने की तैयारी करने लगी। अभी से ही उसे शहर जाकर ज्यादा सारी वस्तुएं खरीदनी थीं। कुछ देर बाद, जब ठाकुर नरेन्द्र सिंह पलंग पर लेटकर आराम करने लगे तो शयनकक्ष के दरवाजा पर अमर पहुंचा। नरेन्द्र सिंह को आराम करते देखकर अमर ने लौट जाना चाहा परन्तु उनकी आंखें खुली हुई थीं। ऊंचे तकिए पर
उठा मुखड़ा दरवाजा की ओर ही था। अमर को लौटता देखकर उन्होंने उसे तुरन्त अन्दर बुलाया। बोले, ‘आओ-आओ, बेटे आओ। अन्दर आओ।’ अमर ने उनकी बात सुनी तो उनकी ओर बढ़ते हुए कहा, ‘आप आराम कीजिए मैं दोबारा आ जाऊंगा।’ अमर उनके पास आकर खड़ा हो गया। ‘आराम तो अब मुझे तब ही मिलेगा जब---।’ नरेन्द्र सिंह नेएक गहरी सांस ली। हर क्षण शेर सिंह से बदले की भावना में वहइसे तरह अन्दर-ही-अन्दर जलते रहते थे किइसे टाइमभी आराम की बात सुनकर वह कह देना चाहते थे कि आरामउन्को तब ही मिलेगा जब उनके बदले की आग बुझ जाएगी। परन्तु ये टाइमइन बातों का नहीं थाइसलिये वह कहते-कहते संभलकर रुक गए। उन्होंने बात बदलते हुए कहा, ‘आओ, यहां बैठो।’ लेटे-ही-लेटेएक किनारे खिसककर उन्होंने अमर को अपने समीप पलंग पर ही बैठने का इशारा किया। अमर पलंग पर उनके समीप ही पैंतियाने की ओर बैठ गया। ‘देखो बेटा’, उन्होंने कहा, ‘तुम्हें वन्दना अपने संग ‘फिरदौस’ के प्रोग्राम में ले जाएगी। लेकिन प्रोग्राम से
पहले, वह तुम्हें कुछ वस्तुएं दिलाने शहर के मार्केट भी ले जाएगी। वहां वह जो कुछ भी दिलाए उसे स्वीकारने से तुम इन्कार मत करना वर्ना उसका दिल टूट जाएगा। वह ऐसा अपनी प्रसन्नता के संग तुम्हारी प्रसन्नता के लिए ही करेगी। मैं जानता हूं कि अब तुम ही उसकी प्रसन्नता हो, सुख और शांति हो, उसका भविष्य हो। यदि उसकी किसी नादान भूल के कारण तुम्हें चोट पहुंचे तो उसे मन-ही-मन क्षमा कर देना।’ ‘जी।’ अमर नेएक वफादार बेटे के समान सिर झुकाकर कहा। उसने सोचा कि ठाकुर साहब द्वारा उसे पिता का प्रेम मिल रहा है। वन्दना द्वारा उसेएक प्रेमिका का प्रेम प्राप्त है। निश्चय ही आगे चलकर ये प्रेम उसकी जीवन-संगिनी के प्रेम में परिवर्तित हो जाएगा। अभी से ही खाना-पीना तथा रहना सभी उसकी सुविधा के लिए उसे कोठी की ओर से प्राप्त है। ऐसे ऊंचे वंश का चिराग बनने के लिए तो लोग सात जन्म लेते हैं दोबारा भी नहीं बन पाते हैं और वह शायद अपने पहले ही जन्म मेंइसे वंश का दीपक बन रहा है। कितना भाग्यवान है वह। मन-ही-मन उसने यही सोचा कि जब वन्दना आज शाम उसकी आवश्यकताओं की वस्तुएं दिला रही है तो क्यों न वह भी वन्दना के लिए कोई वस्तु खरीदकर उसे भेंट कर दे? यद्यपि वन्दना का स्तर देखते
हुए उसकी भेंट की हुई वस्तु तुच्छ होगी परन्तु वन्दना उसे प्रेम करती हैइसलिये उसकी दी हुई तुच्छ भेंट को भीएक बहुमूल्य वस्तु समझकर वह स्वीकारने से कभी इन्कार नहीं करेगी। उसने भी आज शाम अपनी ओर से वन्दना को कुछ-न-कुछ भेंट देने का निश्चय कर लिया। थोड़ी-बहुत पैसे राशि उसकी पिछली कमाई, उसके पास पहले ही जमा थी। ‘और हां बेटे’, नरेन्द्र सिंह ने जैसे अमर को याद दिलाया। उन्होंने कहा, ‘फिरदौस में नृत्य के टाइमभी तुम रिवॉल्वर अपने संग अवश्य रखना। मेरी बच्ची की सुरक्षा में जाने कब उसकी आवश्यकता पड़ जाए। किसी को जान से मारने के बजाए उसे निहत्था करके गिरफ्तार कराने में प्राथमिकता देना। डाकुओं की बात अलग होती है परन्तु वहां कौन किस भेष में आए कोई नहीं जानता।’ नरेन्द्र सिंह नेएक क्षण पश्चात दोबारा कहा, ‘वन्दना से मैंने कह दिया है कि रात में गांव लौटने की आवश्यकता नहीं है। वहीं तुम दोनों होटल में ठहर जाना और सुबह होने के पश्चात ही गांव पुनः आना। रात के टाइमइतनी दूर से सुनसान रास्ता तय करना उचित नहीं है। दिन की बात और होती है।’ ‘आपके यहां रात-भर अकेले रहने से आपको कोई खतरा तो नहीं उत्पन्न होगा?’ अमर ने उनके प्रति चिन्ता व्यक्त की।
‘बिल्कुल नहीं।’ नरेन्द्र सिंह ने पूरे विश्वास से कहा, ‘मैं अपनी सुरक्षा के लिए चौकी से दो कांस्टेबल मांग लूंगा। वैसे भी मुझे अब अपने व्यक्तिगत जिंदगी में डाकुओं का डर जरा भी नहीं रहा।’ ‘जी?’ अमर कुछ समझा नहीं। ‘हां-’ ठाकुर नरेन्द्र सिंह ने कहा, ‘क्योंकि मैं जानता हूं कि शेर सिंह को मेरे जिंदगी से ज्यादा मेरी बदनामी की आवश्यकता है। वह जानता है कि मैं बूढ़ा हो चुका हूं। उसने मेरी हत्या नहीं करवाई तब मैं प्राकृतिक मृत्यु के बहाने जल्दी ही चल बसूंगा। दरअसल-’ नरेन्द्र सिंह ने पलंग पर बैठकर सिरहाने की टेक लगाते हुए मानो भेद की बात कही। बोले, ‘मेरे विचार में शेर सिंह वन्दना का अपहरण करके मुझे सबके सामने अपमानित करने में ज्यादा विश्वास रखता है। वन्दना की हत्या करनी होती तो उसके पुरुष उसकी हत्या उस दिन दूर से भी कर सकते थे जिस दिन तुम्हारे कारणउन्को परास्त होना पड़ा था आखिरउन्को उस सिपाही की हत्या करने से कौन रोक सका जिसने वन्दना की लाज बचाने का प्रयत्न किया था?’ अमर नेएक गहरी सांस ली। ठाकुर नरेन्द्र सिंह की बातों में भार था, ठोसपन था। उसे संतोष मिला। धोखेधड़ी से
तो वन्दना की हत्या वास्तव में कोई भी कर सकता था परन्तु वन्दना का अपहरण करना कठिन था और उसके रहते तो बिल्कुल ही असंभव है। ऐसा दृढ़ विश्वास अमर को अपने उपरि था। वन्दना को उसके अपहरण से बचाना उसे ज्यादा आसान प्रतीत हुआ। शाम होने में ज्यादा देर नहीं थी। वन्दना ने अपनी गाड़ी शहर की सबसे बड़ी तथा अच्छे वस्त्रों की दुकान के सामने रोकी। बड़े-बड़े शीशे के शो-केस हीइसे बात का पता देते थे कि यहां सुंदर वस्त्रों तथा कपड़ों की कमी नहीं है। स्पष्ट प्रकट था किइसे दुकान की वस्तुएं भी बहुत महंगी होंगी। शहर की ये सुंदर दुकान यहां चार-पांच वर्ष पहले ही खुली थी जब वन्दना लंदन में थी। अमर भी तब बम्बई में ही काम कर रहा था। आज पहली बार ही उन दोनों काइसे दुकान के अन्दर जाना हो रहा था। वन्दना ने गाड़ी से उतरकर अपनी ओर के दरवाजा का शीशा उपरि किया तो दूसरी ओर से अमर भी अपनी ओर का आगे और दोबारा पीछे के गाड़ी का शीशा बन्द करने लगा। वन्दना ने गाड़ी लॉक की। गाड़ी लॉक करना आवश्यक था क्योंकि वन्दना अपने साथएक छोटा सूटकेस भी लाई थी जिसमें पूरा मेकअप का सामान
था। इसके संग आज शाम के प्रोग्राम में पहनने के लिए वह अपना विशेष फैशनेबल वस्त्र लाई थी जिसे आज शाम होटल में कमरा लेने के पश्चात वह कमरे में ही नहा-धोकरइसे वस्त्र को पहनने का इरादा रखती थी। रात में सोने के लिए भी वह अपने अलग कपड़े लाई थी। अमर भी अपने साथएक छोटे-से एयर बैग मेंएक जोड़ा अतिरिक्त वस्त्र लाया था। रात में सोने के लिए भी कुर्ता-पायजामा लेकर चला था। जब दोनों दुकान के शीशे का दरवाजा खोलकरएक के पीछेएक अन्दर प्रविष्ट हुए तो दुकान के अन्दर का वातावरण बदला हुआ था। दुकान वातानुकूल थी। वंदना अमर को ‘पैन्ट्स डिपार्टमेंट’ के काउण्टर पर ले गई। अमर के लिए वस्त्र खरीदने से पहले ही उसके दिल कोएक विचित्र ही प्रसन्नता का आभास होने लगा। प्रेम की प्रसन्नता प्राप्त करने काएक ये भी ढंग है जो वहइसे टाइमअपने प्रेमी के लिए सभी कुछ खरीदते हुए प्राप्त कर रही थी। ज्यादा चहक-चहक कर उसने अमर के योग्य अनेक तथा सुंदर रंगीन सूट निकलवाए, देखे तथा भली-भांति परखे भी। अमर उसके समीप ही चुपचाप खड़ा रहा। वन्दना की पसन्द उसके प्रति जाने क्या हो और जाने क्या नहीं? वन्दना ने वहीं खड़े-खड़े कुछेक कोट अमर के कंधे पर डालते हुए उसे पहनाकर
भी देखे। कौन-सा सूट अमर के व्यक्तित्व को ज्यादा उजागर करता है। अमर वन्दना की पसन्द को अपनी पसन्द समझकर ज्यादा प्रसन्न था। अचानक वन्दना की आंखों के सामनेएक लाल कोट पड़ गया - लाल कोट, जिसे अच्छे व्यक्तित्व का मालिक पहन ले तो राजकुमार लगने लगे। उसे देखते ही वन्दना अचानक गम्भीर हो गई। अज्ञात तौर पर वह खो भी गई जिसके लिए उसकी इच्छा नहीं थी। ऐसा बिना अधिकार ही हुआ। उसे रोहित के संग वह पहली भेंट याद आ गई जो लंदन के वर्डलैंड (होटल) में हुई थी। कोट पर हाथ रखे तथा अंगुलियां फेरते हुए उसकी आंखों के सामने वह दृश्य घूम गया जबएक रंगीन शाम वह रोहित के संग ‘वर्डलैंड’ में नहीं बल्कि ‘मेफेअर’ में नृत्य करते हुए बिता रही थी। वह दिन कोई भी हो सकता था परन्तु रविवार का दिन नहीं था क्योंकि लंदन में करीब सभी होटलों में रविवार के दिन किसी भी तरह का रंगीन प्रोग्राम नहीं होता है। ‘मेफेअर’ की उस रंगीन शाम रोहित ने नीला सूट पहन रखा था। ऐसे अवसरों पर वह अपने कोट के कॉलर में सफेद गुलाब लगाना नहीं भूलता था - सिर्फ सफेद गुलाब। किसी और रंग का गुलाब वन्दना ने रोहित के कोट के कॉलर पर कभी नहीं देखा थाइसलिये स्वच्छ प्रकट था
कि सफेद गुलाब ही रोहित की विशेष पसन्द है - सिर्फ सफेद गुलाब। ये पसन्द तब वन्दना की पसन्द भी बन गई थी। मानव जिससे प्रेम करता है उसकी पसन्द, उसकी अपनी पसन्द स्वयं ही बन जाती है। प्रेम भरे दिल का ये स्वभाव है। उस ‘मेफेअर’ की शाम भी रोहित ने अपने नीले कोट के कॉलर मेंएक सफेद गुलाब ही टांक रखा था जोइसे टाइमउस तारे के समान टिमटिमा रहा था मानो शाम डूबने से पहले ही नील गगन पर आ गया हो। ऑर्केस्ट्रा की धुन पर रोहित की छाती से लगी वन्दना ने थिरकते हुए उसके कोट के कॉलर में लगे फूल की सुगंध नथुनों द्वारा अपने दिल की गहराई में उतारी और फिरएक गहरी सांस लेकर उसने कहा था, ‘एक बात बताऊं, रोहित?’ रोहित ने उसी तरह पूछा था, वंदना के हाथ को छोड़कर, ठोड़ी से दो उंगलियों द्वारा उसका मुखड़ा उपरि उठाते हुए। उसका दूसरा हाथ वन्दना की कमर पर उसी तरह था। ‘उस दिन, मेरा मतलब---’ वन्दना ने रोहित की आंखों में झांका। कुछ लजाई। दोबारा बोली, ‘चौबीस दिसम्बर वाली रात के सूट में तुम मुझे ज्यादा अच्छे लग रहे थे। वह लाल कोट---’ वन्दना कहते-कहते रुक गई। उसने अपनी पलकें नीचे झुका लीं।
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‘क्यों?’ रोहित ने मजाक में पूछा, ‘क्याइसे सूट में बढ़िया नहीं लगता?’ ‘नहीं, ऐसी बात नहीं है परन्तु---’ वन्दना ने तुरन्त कहा परन्तु बात अधूरी छोड़कर चुप हो गई। रोहित की छाती पर उसने दोबारा सिर रख दिया। ‘अगर तुम्हें वह सूट इतना ही पसन्द है तो कहो मैं उसे हर उत्सव में पहन लिया करूंगा।’ रोहित ने वन्दना की बात रखनी चाही। ‘हुश!’ वन्दना ने कहा, ‘कोई देखेगा तो क्या कहेगा? सभी समझेंगे कि तुम्हारे पास सिर्फ वहीएक सूट है।’ ‘इसीलिए तो मैं सदा अलग-अलग ढंग और रंग के वस्त्र पहनता हूं। जब कभी किसी उत्सव में जाना पड़ता है तो सूट भी अलग-अलग ढंग और रंग के पहनना आवश्यक समझता हूं। हां, सफेद गुलाब मेरी पसन्द अवश्य है जिसे मैं किसी उत्सव में जाते टाइमअपने कॉलर में न लगाऊं तो मुझे अपने सूट की शोभा अधूरी मालूम पड़ती है।’ रोहित ने अपने कॉलर में टंके फूल की ओर इशारा किया।
‘आपको ये कोट पसन्द है?’ अचानक दुकानदार ने वन्दना को खोई हुई स्थिति में कोट पर अंगुलियां फेरते देखा तो उसने पूछा। वन्दना के अतिरिक्त उसे और भी ग्राहकों कोदेख्ना था। ‘जी?’ वन्दना चौंक गई। चौंककर अपने विचारों से पुनः आई तो उसने अपने समीप अमर को खड़े देखा। अमर गम्भीर था। शायद वन्दना के दिल की स्थिति का उसे उचित अनुमान था। वन्दना का लाल कोट पर उंगलियां फेरकर खो जाना कोई अर्थ रखता था। तब भी वह वन्दना के लिए मुस्करा दिया।एक कटु मुस्कान थी ये जिसे देखकर वन्दना मन-ही-मन तड़प उठी। ये उसने क्या कर दिया? अमर की संगति में वह रोहित के लिए खो गई? क्याइसे बात का अमर को अनुमान हो सकता है? वन्दना कुछ समझ न सकी परन्तु उसके दिल में चोर था, अमर की संगति में रहने के पश्चात् वह रोहित की याद में खो गई थी,इसलिये वह उदास होने के संग मन-ही-मन लज्जित भी हुई। ‘इन्हें पसन्द न हो, मुझे तो ये कोट ज्यादा पसन्द है।’ अमर ने वन्दना को इशारा करते हुए कोट पर उंगलियां
फेरीं। उसने अज्ञात बनकर वन्दना के दिल की बात रख ली थी।
वन्दना निश्चिंत नहीं हो सकी। वह अपनी हरकत पर अब भी मन ही मन लज्जित थी। ‘इस कोट के संग मैच करता कोई पैंट भी दिखाइए।’ वन्दना ने अब अमर पर उसकी पसन्द छोड़ी। रोहित कीपस्न्द के कपड़े पहनकर, या वह कपड़े जिसे पहनकर रोहित का व्यक्तित्व उसकी दृष्टि में खिल उठता था, उसे अमर पर थोपना अमर के संग अत्याचार करना था, अमर के निःस्वार्थ प्रेम से नाजायज लाभ उठाना था तथा उसके प्रेम के संग अन्याय करना था। दुकानदार नेएक से बढ़करएक चमकदार और सुन्दर बने बनाए पैंट्स दिखाए। पैंट के कपड़ों को पकड़कर वन्दना भी कोट के रंग से मिलान करती और अमर भी। कोई भी आंखों में नहीं फबता था। दोनों की पसन्द मानोएक ओर रह गई थी। अचानकएक पैंट पर वन्दना की उंगलियां स्वयं ही चिपक गईं - क्रीम रंग की पैंट। क्षण-भर के लिए वह दोबारा गंभीर हो गई। अमर ने वन्दना की ठहरी उंगलियां देखीं। दोबारा उसके मुखड़े पर ध्यान दिया। उससे वन्दना के दिल की बात छिपी नहीं रह सकी। उसने तुरन्त अनजान बनकर दुकानदार से कहा - ‘यह पैंट बिल्कुल ठीक लगेगा। मेरे लाल कोट पर तो ज्यादा ज्यादा भला लगेगा।’
वन्दना ने अमर को गम्भीरतापूर्वक देखा परन्तु कुछ भी नहीं कह सकी वह। दिल के अन्दर अतीत का वही चोर। अमर ने निश्चय ही उसके दिल की किताब पढ़ ली है।इसे किताब के अन्दर उसने अमर का नाम देख लिया है। ‘हां-।’ अमर ने कहा - ‘कपड़े तो मैंनेपस्न्द कर लिए। अब मैं पैंट और कोट का ट्रायल कहां लूं?’ उसने काउण्टरमैन से पूछा। ‘उधर वह ड्रेसिंग केबिन है।’ काउण्टरमैन नेएक ओर इशारा करते हुए कहा - ‘कपड़े पहन लीजिएगा तो घंटा बजा दीजिएगा। हमारा टेलर आ जाएगा। सूट की फिटिंग में जो कुछ भी कमी होगी वहएक घंटे के पश्चात जब आप ‘शॉपिंग’ करके लौटिएगा तो यहां पूरी हो चुकी होगी। तब आप सूट कलेक्ट कर लीजिएगा।’ अमर ड्रेसिंग-केबिन में जाकर कपड़े बदलने लगा। नया सूट पहनने के पश्चात उसने केबिन की घंटी का बटन दबा दिया। टेलर-मास्टर तुरन्त उसकी सेवा में उपस्थित हुआ। उसने कपड़ों को ऊंचा-नीचा करके फिटिंग का सही नाप लिया और दोबारा चला गया। अमर ने अपने पुराने कपड़े पहने। दोबारा जब केबिन से निकल कर दुकान में आया तो वन्दना ‘टाई’ के काउण्टर पर खड़ी थी। उसके सामने
काउण्टर पर टाइयों का ढेर लगा हुआ था परन्तुएक विशेष टाई हाथ में लिए वह खोई हुई थी - क्रीम रंग की सुन्दर टाई थी हय जिस पर पतली लाल रंग की लहरदार नहीं परन्तु सीधी धारियां बनी हुई थीं। अमर चुपचाप उसके पीछे आकर खड़ा हो गया।एक अनुमान लगाकर उसके मन में टीस अवश्य उठी परन्तु अपने प्रेम के लिए वहइसे टीस पर काबू पा गया। वन्दना यदि रोहित के विचारों में तल्लीन है तो उसके प्रति उसे चिन्तित नहीं होना चाहिए। रोहित तोइसे संसार में रहा नहीं। एक-न-एक दिन जब वन्दना उसकी बन जाएगी तो उसे रोहित को भूलना ही पड़ेगा। भारतीय नारी के लिए अपने पति के होते हुए किसी पराए पुरुष की याद में तड़पना महापाप है और वन्दनाएक भारतीय नारी थी। क्या हुआ उसनेएक अंग्रेज मम्मी की कोख से जन्म लिया था परन्तु उसके बदन मेंएक भारतीय पिता का ही रक्त था। हां, यदि वन्दना से विवाह होने के पश्चात रोहित की मृत्यु हुई होती तो बात अलग होती। तब भूले-भटके वन्दना को उसे याद करने का पूरा अधिकार होता परन्तु अब ऐसी कोई भी बात नहीं थीइसलिये अमर वन्दना की ओर से निश्चिंत हो गया। निश्चिंतता के एहसास ने उसके अन्दरएक हर्ष उत्पन्न कर दिया जिसे आगे बढ़कर प्रकट करते हुए उसने वन्दना के हाथ से टाई छीनकर अपने हाथ में ले ली।
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