Rajsharma Sex Story : प्यासी शबनम लेखिका रानू (Romance Special)
अमर ने भी नीचे पड़े गुलाब को देखा। दोबारा बोला - ‘समझा।’ उसके नादान दिल ने मानो वन्दना के दिल की बात समझ ली थी। उसने झुककर कालीन पर से पीला गुलाब टहनी द्वारा पकड़कर उठा लिया। फूल को देखने के पश्चात उसने वन्दना से कहा - ‘आप मेरे कोट में लगाने के लिए ये फूल ज्यादा प्रेम से लेकर आई थीं।’ अमन ने अपने हाथ में लिए पीले गुलाब को टहनी द्वारा अंगुलियों में नचाते हुए कहा - ‘परन्तु जब आपने कोट में ये सफेद गुलाब लगा देखा तो आपका मुस्कराता मुखड़ा अचानक ही गंभीर हो गया। क्यों?’ अमर हाथ के गुलाब को अपने नथुनों के समीप लाया। गुलाब ताजा था, सुगंधित। फूल की सुगंध को उसने नथुनों द्वारा दिल की गहराई में उतारा। दोबारा इसी गुलाब को देखकर बोला - ‘यह तो ताजा गुलाब है - आपके समान ज्यादा सुन्दर। परन्तु मेरे कोट के कॉलर में जो सफेद गुलाब लगा है ना? ये तो बिल्कुल नकली गुलाब है, सुगंध रहित। पतले रबर फोम का बना हुआ है। सोवेनीअर में मिली वस्तु को स्वीकार करने से इंकार भी नहीं किया जा सकता।’ वन्दना मुस्कराई। वह अमर के और समीप आई। अमर के कोट में लगे सफेद फूल को देखने के पश्चात उसने कहा, ‘जब असली तथा सुगंधित फूल उपलब्ध हों तो नकली
तथा सुगन्ध रहित फूल का उपयोग निरर्थक होता है।’ वन्दना नेएक हाथ द्वारा अमर के कोट से नकली गुलाब निकाल दिया।इसे फूल को उसने अरुचित होकर देखा, मानो दिल को कोई संतोष दे रही हो। रोहित कीपस्न्द को ठुकराकर अमर के लिए अपनी पसन्द को महत्त्व देते हुए मानो वह अपने प्रेम का सच्ची सबूत दे रही थी - स्वयं को तथा दिल के संतोष के लिए अमर को भी। दोबारा उसने वहीं खड़े-खड़े फूल सामने खुले दरवाजा द्वारा बालकनी के उस पारबाहर् फेंक दिया। दोबारा उसने अमर के हाथ से असली गुलाब लिया। अपने हाथ द्वारा उसनेइसे फूल को अमर के कोट के कॉलर में लगा दिया। जहां असली फूल द्वारा अमर के लाल कोट की शान बढ़ी वहां अमर के व्यक्तित्व की शान भी वन्दना की आंखों में बढ़ गई। वहएक कदम पीछे हटी। अमर को उसने उपरि से नीचे तक देखा। आज के सूट में अमर उसे इतना सुन्दर, इतना प्रभावशाली लगा कि वह रोहित का आकर्षण भी भूल गई। उसने अमर की आंखों में झांका। दोबारा मुस्कराते होंठों से बोली - ‘आओ चलो, हम लॉन में चलकर बैठते हैं। फंक्शन प्रारंभ होने में अभी बहुत देर है।’
जब वंदना तथा अमर होटल के निकाल दरवाजा सेबाहर् निकल कर लॉन के सामने खुले वातावरण में आए तो क्षितिज पर सूर्य की अन्तिम लालिमा का भी कहीं कोई चिह्न नहीं रह गया था। अन्धकार दूर-दूर तक छाया हुआ था। यदि अंधकार कहीं नहीं था तो होटल के आसपास नहीं था। होटल की रजत जयंती के कारण होटल की मकान रंगीन बल्बों तथा नीआन लाइट्स सेइसे तरह जगमगा रही थी कि अंधकार के बढ़ते पग होटल की चारदीवारी से बहुत दूर ही ठहर गए थे। सुन्दर क्यारियों तथा फुलवारियों से सुसज्जित हरे-भरे लॉन में सदाबहार वृक्षों पर भी छोटे-छोटे रंगीन बल्ब ऐसे सजे हुए थे। सदाबहार की नन्ही-नन्ही कतरन जैसी पत्तियों के मध्य ये रंगीन बल्ब ऐसे लग रहे थे मानो उनके अन्दर फूल खिलकर मुस्करा रहे हों। लॉन के बीच पानी केएक छोटे से टैंक में पानी का फव्वारा भी था - रंगीन और झागदार फव्वारा। हवाओं का बहाव और बढ़ गया थाइसलिये फव्वारे का पानी अपनी धारा बदलकर कभी-कभी उड़ते हुए उन यात्रियों तक भी चला जाता था जो फव्वारे से कुछ दूर लॉन चेयर्स पर बैठे व्हिस्की या बीयर पीते हुए आपस में बातें करके आज की सुन्दर शाम का पूरा आनन्द उठा रहे थे। अशोक के तने की छाया में धुंध का सहरा लेकर बैठे अनेक नवजवान जोड़े अपने-अपने
रोमांस में डूबे हुए थे। कुछेक विदेशी नवयुवक-नवयुवतियों के जोड़े होटल के ऐसे विदेशी वातावरण से प्रभावित होकर इसे विदेश समझ बैठे थे और खुले-आम एक-दूसरे का चुम्बन ले रहे थे। निकास दरवाजा के सामने खुले वातावरण में खड़े होकर वन्दना तथा अमर ने लॉन में चारों ओर दृष्टि दौड़ाई। शायद कहीं कोने-कतरे मेंएक मेज के संग दो खाली कुर्सियां मिल जाएं। और आखिरउन्को दो लॉन कुर्सियों के बजाए खाली कुर्सियों के साथएक मेज दिखाई पड़ ही गई - लॉन केएक किनारे, क्यारियों तथा फुलवारियों के मध्य। दोनों होटल की मकान के सामने तथा लॉन के बाहर-ही-बाहर उन खाली कुर्सियों की ओर बढ़ गए। परन्तु अचानक अमर केएक पांव तले कुछ आ गया। कोई नर्म-सी वस्तु थी यह। शायद किसी का रूमाल गिर पड़ा हो जिस पर उसका अचानक ही पांव पड़ गया था। जिसका रूमाल गिरा होगा शायद आगे-पीछे या इधर-उधर इसे उठाने के लिए आ रहा होगा, ये सोचकर अमर तुरन्त कुछ उचककर किनारे हट गया। उसने रुककर देखा, वह फूल था, सफेद फूल, फोम का बना नकली फूल, परन्तु देखने में असली। अमर ने मकान के कोने पर सबसे ऊंची मंजिल की ओर आंख उठाई। कोने पर कमरा उसी का था। उसने चैन की एक
सांस ली। ये फूल उसके कमरे से वन्दना के हाथों ने ही तो फेंका था। वन्दना भी नीचे पड़े फूल को बड़े ध्यान से देख रही थी।इसे फूल को उसने घृणा से फेंका था दोबारा भी जब उसने अमर के जूते द्वाराइसे फूल को रौंदी स्थिति में देखा तो जाने क्यों, बिना अधिकार ही उसके मन मेंएक दर्द-सा उठ गया। उसे ऐसा लगा मानो अमर ने अनजाने में उस फूल को नहीं बल्कि उसके दिल को अपने जूते द्वारा दबाकर सख्ती से रौंद दिया है। जिसे वह अपने तन-मन से प्रेम करता है वह उसकी संगति में चलते रास्ते अपने स्वर्गवासी प्रेमी के लिए खो जाती है तो उसे दुःख होता। पुरुष का स्वभाव ही ऐसा है। रोहित उसका प्रेमी होने के अतिरिक्त और था भी क्या? पति होता तब बात अलग होती। मंगेतर बनने के पश्चात भी यदि वह मरता तोएक हद तक अमर उसकी विवशता को समझने का अवश्य प्रयत्न करता परन्तु मरने से पहले रोहित का उससे कोई भी तो ऐसा सम्बन्ध नहीं था जिससे उसके उस प्रेम पर आंच आती जो वह अमर से कर रही थी। उसे अपनी स्थिति पर दया आई। परन्तु अमर को उदास न करने के लिए वह हल्के से मुस्करा दी, अपने लिए न सही अमर के लिए तो उसे मुस्कराना ही था। उसने कहा -
‘बस यूं ही खयालों में डूब गई थी।’ वह लॉन की फुलवारी की ओर बढ़ गई। ‘इतना ज्यादा खयालों में और वह भी मेरी संगति में रहते हुए खयालों में डूब जाना अच्छी बात नहीं है।’ अमर ने वन्दना के संग बढ़ते हुए कहा, ‘मेरे प्रेम में कोई कमी होती तो बात अलग थी।’ ‘तुम्हारे प्रेम में कोई कमी होती तो मैं तुम्हारी ओर इतना ज्यादा आकृष्ट कभी नहीं होती।’ वन्दना ने कहा और चलते-चलते अमर का हाथ पकड़ लिया ताकि यदि उसके खो जाने के कारण उसके दिल में कोई टीस उठी हो तो वह उसका दर्द भूल जाए। और वन्दना के स्पर्श से वास्तव में तुरन्त अमर के दिल के दर्द पर अचूक मरहम का काम किया। वह वास्तव में सभी कुछ भूलकर वन्दना के लिए मुस्कराने लगा। वन्दना ने सोचा - अमर कितना सीधा है, भोला-भाला। उसने मन-ही-मन तय कर लिया कि अब चाहे कुछ हो, वह अपने मन और मस्तिष्क पर सदा काबू रखेगी। यदि रोहित उसे कभी भूले-भटके याद भी आया तो वह उसका विचार अपने मन और मस्तिष्क से तुरन्त झटक कर दूर करते हुए अमर की बांहों में समा जाएगी। जाने क्यों रोहित की आत्मा उसे शांति से नहीं रहने देना चाहती थी? आखिर रोहित के जीवनकाल में उसने उसे प्रेम देने में कमी
ही क्या रख छोड़ी थी? अब जब भगवान को ही स्वीकार नहीं था कि रोहित अपनी छोटी तथा सीमित आयु होने के कारण उसका बने तो कोई क्या कर सकता था? भगवान ने उसे विधवा होने से पहले ही बचा लिया ये क्या कम कृपा थी उसकी? दोनों अपनी मेज के समीप पहुंचे। चारों ओर क्यारी ही क्यारी थीं। फुलवारियों के फूल मरकरी बल्ब के झाग तथा रंगीन बल्बों से मिले-जुले प्रकाश में नहाए मुस्करा रहे थे। छोटे-छोटे रंगीन फूल ज्यादा थे जो ज्यादा सुन्दर लग रहे थे। कुर्सी पर बैठने से पहले वन्दना खड़ी होकर इन फूलों को निहारने लगी। निहारते हुए वह कुछ सोच ही रही थी। अमर ने भी कुर्सी पर बैठने से किनारा किया। वन्दना के समीप खड़े होकर फूलों को देखने में वह भी दिलचस्पी लेने लगा।
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