Romance Sex Story : श्राप [Completed]
जब आप समाज के बनाए गए तथाकथित नियमों का उल्लंघन करते है , जब आप सैंकड़ो सालों से चली आ रही परम्परा को बदलने का प्रयास करते है तब ये स्वभाविक है कि आप के जेहन मे कई तरह के विमर्श , गलत - सही का विवेचना करना होता ही है ।
यही हाल प्रियम्बदा जी का है ।
उन्होनेएक ऐसा कार्य किया ,एक ऐसा जोखिम लिया जो उन्हे रह- रहकर गिल्टी महसूस करा रहा था औरइसे अपराधग्रस्त जज्बातों से निजात पाने के लिए अंततः सुहासिनी उर्फ मीना को सच बता देने का फैसला लिया ।
लेकिन ये अपराध ग्रस्त जज्बातों अब भी ख़त्म होने वाला नही है क्योंकिइसे खेल के दो प्लेयर्स मे सिर्फएक के समक्ष ही सच्चाई बयां की है । जब तक दोनो प्लेयर्स के समक्ष सच्चाई जाहिर नही होती तब तक ये फेयर प्ले कैसे हो सकता है ! यहएक प्लेयर के संग नाइंसाफी ही कही जाएगी ।
प्रियम्बदा जी ने ये अविश्वसनीय निर्णयइसलिये लिया क्योंकि वह सुहासिनी को पहचान गई थी । वह अब , मतलब कई वर्षों पश्चात सुहासिनी को अपने आंखो से ओझल नहीदेख्ना चाहती थी ।
उन्हे जय के प्रेम सम्बंधित मैच्योरिटी पर भी संदेह था । उन्हे डर था कि कहीं उनके इन्कार करने की वजह जय पर भारी न पड़ जाए ।
वैसे उन्हे सच्चाई बता देने से कुछ भी हो सकता था -
शायद सुहासिनी अपना कदम पीछे खिंच ले , शायद जय को भी ज्यादा शर्मिंदगी महसूस हो और वह भी पीछे हट जाए ।
या शायद दोनो मे कोई एकइसे रिश्ते को पनपनादेख्ना चाहता हो , या दोबारा दोनो हीइसे रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हों ।
या दोबारा दोनो ही अपनी अपनी राहें अलग अलग करना चाहते हों ।
मतलब कुछ भी हो सकता था । लेकिन प्रियम्बदा जी ने तब तक चुप्पी साधी रखी जब तक दोनो का विवाह न हो जाए ।
अगर सबकुछ जानने के पश्चात भी सुहासिनी और जय को विवाह करने से किसी तरह का परहेज नही होता तब हम अवश्य कह सकते थे कि यही इन दोनो की नियति थी । दोनो का प्रारब्ध था । पर हकीकत ये है कि इनके तकदीर का डिसिजन प्रियम्बदा जी ने लिया ।
यह जो नई इतिहास लिखी जा रही थी , वह प्रियम्बदा जी को बराबर परेशान कर रहा था । ये परेशानी , कुछ गलत कार्य का बोध ने ही उन्हे विवश किया कि वह सुहासिनी के सामने सच्चाई बयां करे ।
लेकिन जैसा मैने पहले कहा , ये अपराध ग्रस्त जज्बातों तब तक पुरी तरह ख़त्म नही होने वाला है जब तक सच्चाई दोनो पक्ष को न हो जाए । यदि सुहासिनी और जय को वास्तविकता का बोध होने के बावजूद भी कोई दिक्कत नही तो दोबारा प्रियम्बदा जी को ऐसी बातें सोचने की भला क्या जरूरत !
सुहासिनी ने सबकुछ जानकर भी जय को अपने पति के रूप मे स्वीकार कर लिया लेकिन क्या ये हकीकत जानकर जय भी सुहासिनी को स्वीकार कर पाएगा ? ये यक्ष प्रश्न है ।
बहुत ही खूबसूरत अपडेट avsji भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
अभी भीएक काम बाकी है! अभी अपडेट पोस्ट कर रहा हूँ, उसमें बात साफ़ हो जाएगी। बस आ गया अगला अपडेट।
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Update #50
संध्याकाल :
“जय,” प्रियम्बदा ने अपने बेटे को पुकारा, “. बेटे, कुछ देर मेरे पास बैठोगे? .एक ज़रूरी बात करनी है तुमसे!”
“जी माँ!”
कुछ देर तक जब मम्मी ने कुछ भी नहीं कहा, तो जय ही बोला,
“माँ?”
“ह हाँ?”
“आप कुछ कहना चाहती थीं?”
“हाँ बेटे.” उन्होंनेएक गहरी साँस भरते हुए कहा, “कहना चाहती तो थी, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरुआत करूँ!”
“माँ.” जय ने बड़े प्रेम और आदर से कहा, “आपको मुझसे बात करने के लिए. मुझसे कुछ भी कहने के लिए किसी भूमिका की ज़रुरत नहीं है! . आप मेरी मम्मी हैं। आपने हमेशा मेरे भले के बारे में सोचा है और किया है! . इधर तक कि भैया से भी कहीं ज्यादा प्रेम दिया है आपने मुझे! . किसी फॉर्मेलिटी का कोई प्लेस नहीं है हमारे बीच में माँ!”
माँ मुस्कुराईं, “. आई होप बच्चे कि जो मैं तुमको बताने जा रही हूँ, वो जानने के पश्चात भी तुम ऐसा ही सोचो.”
“माँ.?!”
“अभी सुन लो बेटे. तुम्हारे कहने के लिए पूरा मौका रहेगा।”
जय चुप हो गया, और अपनी मम्मी की बात शुरुआत होने का इंतज़ार करने लगा।
कुछ क्षणों पश्चात मम्मी बोलीं,
“हमारे वंश परएक श्राप था बेटा.”
“श्राप माँ?”
“हाँ बेटे, श्राप!” मम्मी ने कहा और दोबारा वो जय को सती के श्राप और उसके असर के बारे में देर तक बताती रहीं।
जय भौंचक्क रह कर सभी सुनता रहा।
“लेकिन माँ.” सभी सुनने के पश्चात जय बोला, “मीना और मुझे तो बेटी हुई है.”
कहते कहते जय को अचानक सेएक झटका लगा, “. कहीं. कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहतीं कि चित्रा मेरी बेटी नहीं?” जय ने ज़ोर दे कर कहा।
इस विचार मात्र से जय उद्विग्न हो गया, “. माँ, ऐसा नहीं हो सकता! . वो हमारी है माँ! हमारी बेटी! मीना और मेरी बेटी. मेरी बेटी. किसी और की नहीं!”
“हाँ बेटे. और. मैंनेएक समय के लिए भी मीना की वफ़ादारी पर शक़ नहीं किया। मीना सबसे अच्छी है. ज्यादा गुणी और तुझसे ज्यादा प्रेम करती है! वो तुझसे बेवफ़ाई नहीं कर सकती! चित्रा तुम दोनों की ही बेटी है।इसे वंश की ही लता.। हमारी वंशबेल.”
“फिर क्या बात है माँ?” जय ने संतोष भरी सांस लेते हुए कहा, “अच्छा हो गया न? श्राप का अंत भी हो गया.”
“हाँ बेटे. लेकिन कुछ राज़ की बातें हैं जो तुमको बतानी हैं!”
“राज़ की बातें?”
उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “मेरे लिएइसे श्राप के अंत का कारणजान्ना ज़रूरी था। . और तुम्हारे लिए भी!”
“और मुझे लगता है कि आपको उस कारण का पता चल गया है?” जय बोला।
“हाँ.” दोबारा थोड़ा मुस्कुराते हुए, “तू मुझसे कभी अपनी मम्मी के बारे में नहीं पूछता! . क्यों?”
“आप मेरी माँ हैं माँ. किसी और मम्मी की कोई ज़रुरत नहीं है मुझको।”
“लेकिन यदि तुझे ये पता चले कि तेरी मम्मी जीवित हैं, तो?”
“क्या?”
“हाँ बेटे. मुझेइसे बात का पता तेरे और मीना की रिलेशनशिप शुरुआत होने के टाइम ही पता चली।”
“तो फिर. तो फिर. आपने मुझे बताया क्यों नहीं माँ?”
“तुझे खो देने का डर था मुझे.”
“मुझे खो देने का? माँ. आप कैसी बात कर रही हैं? आप मुझे कभी नहीं खो सकतीं! आप तो मेरी लाइफ-लाइन हैं. और मैं आपका राजा बेटा हूँ. और तो और, आज मैं और मीना बात कर रहे थे कि क्यों न हम यहीं सेटल हो जाएँ! महाराजपुर में!”
“क्या बेटे? तू सच कह रहा है?”
“हाँ माँ! अब हम आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाएँगे! . आपकी सेवा करेंगे, आपकी छाया में बढ़ेंगे!”
“ओह बेटे. भगवान तुम दोनों को दीर्घायु दें!”
“हाँ माँ. बस, आपका आशीर्वाद ही चाहिए हमको!”
“वो तो मेरी हर संतान के लिए है. लेकिन बेटे. तुझे अपनी मम्मी से मिलने का मन नहीं हो रहा है? उसके बारे में जानने का मन नहीं हो रहा है?”
“माँ, यदि आप चाहती हैं, तो मुझे उनके बारे में बताएँगी ही! . लेकिन जैसा कि मैंने कहा, आपकी स्थान कोई नहीं ले सकता! मेरी मम्मी आप ही हैं!”
“हम्म. लेकिन दोबारा भी! अब अपनी मम्मी के बारे में सुन ले मुझसे बेटे. दोबारा आगे बात करेंगे!”
“जी माँ!”
“तेरी मम्मी - सुहासिनी - महाराजपुर केएक बड़े कलाकार, गौरीशंकर जी की बेटी थीं.”
माँ ने कहना शुरुआत किया, और जय को सिलसिलेवार तरीके से राजकुमार हर्ष और सुहासिनी के प्रेम-सम्बन्ध, सुहासिनी की गर्भावस्था, महाराज, महारानी और हर्ष की सड़क हादसे में मृत्यु और दोबारा उसके पश्चात सुहासिनी के जिंदगी के बारे में सभी बता दिया।
सारी बातें सुन कर जय का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
“तो क्या. तो क्या?”
“हाँ बेटे. सुहासिनी ही मिनाक्षी है। उसी ने तुझको जन्म दिया है.”
कह कर मम्मी चुप हो गईं।
“ओह गॉड!”एक ज्यादा ही लम्बे टाइमचुप रहने के पश्चात जय बोला, “मतलब. मैंने. अपनी मम्मी से ही.”
वो अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया।
“और आपको ये बात पता थी?”
माँ ने गुनहगार जज्बातों में ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“लेकिन दोबारा भी आपने कुछ किया नहीं?”
“बेटे.” मम्मी ने जय की बात को काटते हुए कहा, “थोड़ी बात और है. वो सुन ले, दोबारा तू जो फ़ैसला करेगा, मैं सभी मान लूँगी.”
माँ की बात पर जय चुप हो गया।
“जब तू मीना से मिला था, तब तेरे मन में, तेरे दिल में उसके लिए कैसी फ़ीलिंग्स आई थीं?”
जय कुछ कहता नहीं।
“माँ बेटे वाली, या प्रेमी वाली?”
जय अभी भी कुछ नहीं कहता।
“इतने दिनों में. इतने महीनों में कभी भी तेरे मन में उसके लिए मम्मी वाली फ़ीलिंग्स आई हैं?”
जय कुछ नहीं कहता।
“बोल?” मम्मी नेइसे बार थोड़ा ज़ोर दे कर पूछा।
“नहीं माँ.” जय ने धीरे-धीरे से कहा।
“तो दोबारा अपने प्रेम की सच्चाई पर संदेह न कर. उसको पाप-कर्म के जैसे मत सोच.”
“लेकिन माँ. बात वो नहीं है.” जय बोला, “. म. म. मीना. आई मीन. आई मीन.”
वो चुप हो गया। कोशिश करने पर भी उसके मुँह से मीना के लिए ‘माँ’ शब्द नहीं निकला।
“जय. बेटे. तू सच्चाई जानने के पश्चात भी मीना के लिए मम्मी नहीं बोल पा रहा है। बस इसी तथ्य में तुम दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई है। . वो तेरे लिए मीना है - तेरी पत्नी! . अब हम ये चाहते हैं कि वो तेरी धर्मपत्नी बन जाय!”
जय कुछ टाइमकुछ न बोला। विचारों और भावनाओं के भंवर उसके दिमाग में तेजी से बन बिगड़ रहे थे।
“. माँ. यदि मीना को पता चल गया, तो?”
माँ ने समझते हुए सर हिलाया, “बेटे,एक पर्सनल बात पूछूँ तुमसे?”
“माँ. मैंने आपसे पहले ही कहा है कि आपको किसी भी फॉर्मेलिटी की ज़रुरत नहीं!”
“ओके!एक बात बता. कल रात तूने और मीना ने. आई मीन. तुम दोनों में. यू नो?”
माँ की बात के इशारे पर जयएक बार शरमा गया।
लेकिन उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। रात की बात याद कर के उसके होंठों पर मुस्कान भी आ गई।
“और कल रात प्रेम की पहल किसने करी? तूने, या मीना ने?”
“मीना.”
“तुझे पता नहीं, लेकिन कल रात तेरे आने से पहले, मैंने सभी बातें मीना से कह दी थीं.”
“व्हाट?”
“हाँ. मैंने तुम दोनों को बारी बारी से सभी कुछ बता देने का सोच रखा था। . और अपने सम्बन्ध के बारे में जो भी फैसला था, वो तुम दोनों पर छोड़ दिया था। . मीना ने तो तुझे अपने पति के ही रूप में माना है. अबदेख्ना बस ये है कि तू उसको किस रूप में देखता है! . मम्मी के रूप में, या फिर. अपने प्यार. अपनी पत्नी के रूप में.”
“तो मीना को सभी पता था. दोबारा भी?”
“तुम दोनों को भगवान ने मिलवाया है. तुम्हारा. तुम दोनों का प्रेम सच्ची है! तुम दोनों का सम्बन्ध पवित्र.! और तुम दोनों के प्रेम की निशानी चित्रा भी उतनी ही सच्ची और पवित्र है! . अब ये सभी जानने के बाद, तू जो भी करना चाहता है, मुझे पूरी तरह से मान्य है!”
कोई पाँच मिनट तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा।
प्रियम्बदा जानती थी कि जय ज्यादा ही भावुक लड़का है। उसके लिए, उसके भविष्य के लिए यही ठीक था कि उसका फैसला वो स्वयं ले, और उसके परिणामों को स्वीकार करे।इसलिये वो भी चुप ही रही।
“माँ,” अंत में वो बोला, “भैया भाभी जानते हैं ये बात?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “सबसे पहले मैंने तेरी भाभी को बताई थी ये बात और उसी से सभी डिसकस किया। . दोबारा आदित्य को बताया। . उन दोनों ने ही मुझको बताया था कि तुम दोनों का प्रेम गाढ़ा है, सच्ची है. तुम ज्यादा खुश भी लग रहे थे मीना को ले कर.इसलिये हम में से किसी ने भी कोई बाधा नहीं पैदा करी!”
“मतलब आप सभी का आशीर्वाद मीना के बहू वाले रूप के लिए ही है?”
माँ ने कुछ कहा नहीं।
“माँ?” जय ने ज़ोर दिया।
“बेटे. सुहास. मीना को मैंने अपनी बेटी ही माना है हमेशा। उसी रूप में उसको पाला पोसा। .इसे वंश में बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं किया जाता।” मम्मी ने बड़ी कोमलता से कहा, “और हम उसको किस रूप में चाहते हैं, मानते हैं - वोइसे बात पर निर्भर करता है कि तुम उसको किस रूप में चाहते हो, मानते हो!”
जय कुछ क्षण चुप रहा।
“बेटे?”
“माँ. मुझे बड़ी हैरत हो रही है, कि सभी जानने के पश्चात भी मेरे मन में मीना का रूप बदला नहीं.”
यह सुनते ही मम्मी के सीने पर से जैसेएक ज्यादा भारी बोझ उतर गया। लेकिन उन्होंने स्वयं को ज़ब्त कर के रखा हुआ था।
“. और न ही मीना के मन में मेरा.”
बोल कर जय चुप हो गया।
माँ ने अभी भी कुछ नहीं कहा। अब बोलने को क्या रह गया था?
“लेकिन माँ,” कुछ क्षणों की चुप्पी के पश्चात जय ने दोबारा बात का सूत्र पकड़ा, “. आप मुझे श्राप वाली बात बताना चाहती थीं? उसका अंत कैसे हुआ?”
जय ने कुछइसे अंदाज़ में कहा जैसे मीना और उसके भूतकाल की बात पुरानी हो गई हो।
“अ? हाँ! श्राप का अंत!” मम्मी ने गहरी साँस भरी, “किसी नॉवेल का टाइटल लगता है!”
उनकी बात पर दोनों ही हँस पड़े। अचानक से ही माहौल हल्का हो गया।
“. दोनों धामों के रावलों नेएक ही बात कही थी, कि प्रकृति में हर बात का हल है। लिहाज़ा,इसे श्राप का अंत भी प्रकृति ने ही किया।”
“तो आपको पता चल गया कि हमारे परिवार से श्राप कैसे हटा?”
“शायद! पक्का पक्का तो कुछ नहीं कह सकते, लेकिनएक थ्योरी है मेरी.”
“बताइये न माँ!”
“बेटे, तुम यकीन नहीं करोगे कि मीना उसी सती के वंश की है.”
“क्या?”
“हाँ!”
“ये आपको कैसे पता चला?”
“सालों से हमने ज्यादा कोशिश करी कि कहीं से उन सती के बारे में, उनके वंशजों के बारे में कुछ भी पता चल जाए! . मेरी कामना थी कि हम उनसे अपने पूर्वज के किए की माफ़ी मांगे और उनसे क्षमा की प्रार्थना करें। . लेकिन इतनी कोशिशों के पश्चात भी कुछ पता नहीं चला!”
माँ बोलीं, और कुछ देर चुप रह के आगे बोलीं, “. लेकिन जब चित्रा पैदा हुई, तब मुझे यकीन हो गया कि हो न हो, मीना का सम्बन्ध उन सती से अवश्य है! . दोनों धामों के रावलों ने भी मेरी बात की पुष्टि करी।”
“माँ?”
“हाँ बेटा. चित्रा के होने के पश्चात मैंने गौरीशंकर जी के परिवार के बारे में गहराई से तफ़्तीश करी. हमको लगा था कि उनका कोई परिवार नहीं है, लेकिन कुछ चिन्ह थे जिनको हमने देखा ही नहीं। . जैसे कि पश्चात में पता चला कि उनकाएक बड़ा भाई भी था। उन दोनों की आपस में बनती नहीं थी। और उस अनबन की वजह भी वही घटना थी। . गौरीशंकर जी को भीइसे तथ्य का पता था, लेकिन उन्होंने हमारे परिवार को क्षमा कर दिया था। लेकिन उनके बड़े भाई ने हमको कभी क्षमा नहीं किया। वो गौरीशंकर जी से भी नाराज़ इसी बात पर थे कि वो हमारे परिवार के इतने निकट थे. हमारे संरक्षण में थे!”
“तो क्या इसीलिए.? मेरा मतलब चूँकि मीना उनके परिवार से है,इसलिये श्राप का अंत हुआ?”
“हाँ और न! . सिर्फ यही कारण बहुत नहीं था। . जैसा कि मैंने तुमको बताया, तुमको भी तो मीना. मेरा मतलब सुहास ने जना! . लेकिन तुम तो राजकुमार हो. पुत्र हो! . मतलब, श्राप का अंत अभी भी नहीं हुआ।”
“फिर?”
“अंत तब हुआ जब तुम दोनों संग में आ गए! . थोड़ा सोचो कुमार. तुम्हारे अंदर आधा अंश राजपरिवार का है, और आधा अंश सती के वंश का है. आधा आधा!इसलिये श्राप तुम्हारे होने तक भी प्रभावी था। . लेकिन चित्रा के अंदर राजपरिवार का केवलएक चौथाई अंश है, और सती का तीन चौथाई!”
जय ने दिमाग में हिसाब किताब लगाया - गणित के हिसाब से सही लग रहा था। लेकिन ऐसा भी कहीं होता है क्या?
“. सोचो!” मम्मी ने कहा, “सती का श्राप अपने ही परिवार पर तो लगने वाला नहीं. है न?”
“. तो इसका मतलब. अपने अजय और अमर. उनको बेटियाँ हो सकती हैं?”
“क्यों नहीं! श्राप तो ख़त्म हो गया है न? . याद है न, श्राप ये था कि हमारे कुल में कभी कोई लड़की पैदा ही न हो! . लेकिन चित्रा तो हुई ही है न! मतलब, अब श्राप का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है।”
“वाह!” जय कुछ देर के पश्चात बोला।
“बेटे?”
“माँ. आप अमेज़िंग हैं!”
“आई नो!” मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा, और दोबारा अचानक ही गंभीर हो कर कहा, “पता है बेटे? मैंने तुम्हारे बड़े पिताजी को वचन दिया था कि हमइसे श्राप को उतारने में बड़ी अहम् भूमिका निभाने वाले हैं। अनजाने ही सही, हमनेएक बड़ी भूमिका अवश्य निभाई!”
“एंड आई थैंक यू फॉर दैट माँ!”
“ना! बच्चे अपनी मम्मी को थैंक यू नहीं बोलते!” मम्मी मुस्कुराईं, “. अब बोलो. क्या सोचा है?”
“किस बारे में माँ?”
“तुम्हारे और मीना के बारे में!”
“सोचना क्या है माँ? सात दिनों में हमारा विवाह होने वाला है! . हम दोनों ही आपका आशीर्वाद पा कर धन्य होना चाहते हैं!”
“ओह मेरे बच्चे!” भावातिरेक में भर के मम्मी ने जय को अपने सीने में भींच लिया।
“लव यू माँ! लव यू सो मच!”
*
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पौराणिक कथाओं मे हमने पढ़ा था कि ऋषि एवं महात्मा द्वारा दिए गए श्राप के निवारण का रास्ता भी स्वयं ऋषि - महात्मा ही निर्धारित करते थे ।
लेकिन यहांएक सच्चरित्र स्त्री के संग दुष्कर्म किया गया था । उनके फैमिली के संग अन्याय किया हुआ था । इसके फलस्वरूप उस पीड़िता स्त्री के दिल से बददुआ निकली , श्राप के रूप मे उनके मुख से स्वर निकले और उस दुष्कर्मी परिवार पर उस श्राप का कहर टूट पड़ा ।
सैंकड़ो सालों तक वह परिवार पुत्री जनन न कर सका ।
इस श्राप का समाधान यदि कोई कर सकता था तो वह पीड़ित स्त्री थी लेकिन वह ये कर न सकी क्योंकि उनकी मृत्यु हो चुकी थी ।
इस श्राप के निराकरण का दूसरा रास्ता था , पीड़ित स्त्री के परिवार के समक्ष अपने पाप का प्रायश्चित करना और उनके जिंदगी मे पुनः खुशियाँ लौटाना । लेकिन ये भी सम्भव नही हुआ क्योंकि उस परिवार का कोई अता - पता नही था ।
यह कुदरत द्वारा दी गई नेमत थी कि गौरीशंकर जी अपनी पुत्री सुहासिनी के संग राजघराने परिवार के सम्पर्क मे आए , राजकुंवर हर्ष के संग सुहासिनी का प्रेम संबंध स्थापित हुआ और सुहासिनी नेएक पुत्र को जन्म दिया ।
जैसा कि प्रियम्बदा जी ने कहा कि जय आधे राजघराने का और आधे सती के खानदान का अंश बन चुका था लेकिन जब तक सती के खानदान का अंश राजपरिवार से ज्यादा नही होता तब तक उसपर राजपरिवार का ही छाया रहता ।
मैने पहले कहा था , सुहासिनी और जय का वैवाहिक बंधन मे बंधना उस श्राप के निवारण का रास्ता था और वही नियति थी ।
प्रियम्बदा जी ने जय को सच्चाई से रूबरू करवा कर जहां अपने दिल का बोझ हल्का किया वहीं इन दोनो के प्रणय मे बाधा न पड़कर श्राप के निराकरण का रास्ता प्रशस्त भी किया ।
संतोष की बात ये है कि सबकुछ जानने के पश्चात सुहासिनी के संग साथ जय को भी किसी तरह का अफसोस या पछतावा नही हुआ ।
अब सबकुछ वाह वाह हो गया है । पुरा परिवार सच्चाई से अवगत है । मिंया - बीबी राजी है । श्राप का " द एंड " हो गया है ।
कुल मिलाकर जगमग जगमग हो गया है ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट avsji भाई।
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