Romance Sex Story : श्राप [Completed]
आपने सस्पेंस के मामले मे रिकॉर्ड तक बना दिया । फोरम के सारे कीर्तिमान तोड़ डाले ।इसे फोरम की तो दूर किसी भी फ्लैटफार्म के रीडर्स के बूते का नही किइसे कहानी का सस्पेंस पकड़ ले ।
मै स्वयं सस्पेंस थ्रिलर स्टोरी का ज्यादा बड़ा प्रशंसकइसलिये हूं कि मुझे पहले पन्ने से ही सस्पेंस के जड़ और तह तक पहुंचने मे बहुत आनंद आता है ।
यह उन चंद स्टोरी मेएक स्टोरी थी जिसका सस्पेंस नही समझ सका ।
मीनाक्षी उर्फ मीना ही वास्तव मे सुहासिनी है । इसका अनुमान लगाना किसी के वश का नही हो सकता । वह भी तब जब उसकी शादी उसी के जैविक संतान से हुई हो। और वह भी तब जबइसे स्टोरी के राइटर इन्सेस्ट के घोर विरोधी हो ।
बहुत ही जबरदस्त लिखा आपने अमर भाई । हमारे दिमाग के परखच्चे उड़ा दिए आपने ।
शायद सुहासिनी जब दो - तीन माह के गर्भावस्था मे रही होगी तब हर्ष की मृत्यु हुई थी । और शायदइसे घटना के एकाध माह पश्चात उन्हे डाॅक्टर के अधीन कर दिया गया होगा । उनके मिमोरी को मेनूप्लेटेड किया गया होगा ।
ऐसे मे वह न ही ढंग से गर्भ मे समय रहे अपने बच्चे की किलकारी महसूस कर पाई होगी और न ही वो अपने बच्चे को जनन होते हुए देख पाई होगी ।
अपने जिस बच्चे को उन्होने कभी देखा तक नही , उसके अस्तित्व को कभी महसूस किया तक नही , कभी दिलो-दिमाग मे ख्याल आया तक नही और वही बच्चा बाइस - तेइस वर्ष पश्चात अचानक से मम्मी के समक्ष हाजिर हो जाए तो मुझे नही लगता कि उन मम्मी - बेटे के दरम्यान वह स्वभाविक लाड़- प्रेम , अपनापन , आत्मीयता और सहजता परिलक्षित हो सकता है जोएक मम्मी - पुत्र के रिश्ते मे अमूमन दिखाई देता है ।
सुहासिनी और जय के संयोग और तकदीर से बनेइसे रिश्ते का दूसरा पहलू है सुहासिनी का उस उम्र मे प्रेगनेंट होना जब वह नाबालिग थी । अतः उम्र का फासला भी इन दोनो के बीच मे कुछ ज्यादा का नही है ।
और तीसरा और प्रमुख कारण , शायद श्राप का निराकरणइसे रिश्ते के बुनियाद पर ही निर्भर था ।
लेकिन प्रश्न ये है कि यदि जय को वास्तविकता का ज्ञान होगा तब क्या होगा ?
बहुत ही खूबसूरत अपडेट avsji भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग अपडेट।
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Update #48
स्नानादि कर के जब तक मीना और जय अपने कमरे सेबाहर् निकले, तब तक दस बज गए थे। कर्मचारियों से पूछने पर उनको पता चला कि राजमाता (माँ)इसे टाइमबैठक में हैं। कुछ लोग उनसे और सभी लोगों से मिलने आए हुए थे, और वो फिलहाल उन्ही लोगों के संग बैठक ख़त्म कर के, फिलहाल अकेली ही बैठक में बैठी हुई थीं। राजकुमारी चित्रांगदा (जय और मीना की बेटी) भी अपनी दादी मम्मी के संग ही थी, और मेहमानों से मिल रही थी।
प्रियम्बदा को सूचना हो गई थी कि राजकुमार और राजकुमारी जी अब तक जाग चुके हैं। उन्होंने किसी को भीउन्को जगाने नहीं भेजा था। उनको अच्छी तरह से पता था कि लम्बी यात्रा की थकावट, और समय-मंडल के परिवर्तन के कारण नींद आने में ही समस्या थी।इसलिये नींद आ जाने के पश्चात उसको तोड़ने का मन नहीं हुआ उनका। वैसे भी, जब दिल्ली में सुबह के दस बज रहे होते हैं, तो शिकागो में रात के साढ़े ग्यारह बजते हैं। लेकिन सभी बातों से सबसे अच्छी बात जो उनको पता चली थी, वो ये थी कि कल रात दोनों के बीच में रति-क्रीड़ा खेली गई थी.इसे बात के संज्ञान से वो ज्यादा संतुष्ट थीं।
कल के रहस्योद्घाटन के पश्चात से ही उनके मन मेंएक डर तो अवश्य ही बना हुआ था कि, न जाने मीना क्या कर डाले! जय के संग वो न जाने कैसा बर्ताव करे! मीना में उनको इतनी सर्वगुण-संपन्न बहू मिल गई थी, जिसको वो यूँ ही अकारण ही नहीं चले जाने देना चाहती थीं। लेकिन ये तो अवश्य था कि यदि मीना ने कुछ अनावश्यक कह दिया, या कर दिया, तो ये विवाह संकट में पड़ जाता। अजीब सी स्थिति थी! उनको ग्लानि भी हो रही थी कि बेचारी को उन्होंने थप्पड़ भी लगा दिया - वो शायद कुछ न कहतीं, लेकिन मीना के जीने मरने वाली बात पर न जाने उनको क्यों इतना गुस्सा आ गया.! जिंदगी कोई सस्ती वस्तु होती है क्या, जिसको यूँ किसी भी बात पर ख़त्म कर दिया जाए! ख़ैर. उस टाइमतो उनको समझ में आ रहा था कि मीना शायद संयत हो गई थी, लेकिन दोबारा भी उनको रात भर शंका होती रही।
लेकिन सुबह जबएक परिचारिका ने उनकी गोदी में चित्रा को देते हुए, उनको जय और मीना के शयनकक्ष का हाल सुनाया, तो उनकी सारी चिंता दूर हो गई। वो संतुष्ट हो गई थीं कि दोनों के सम्बन्ध के रहस्योद्घाटन के पश्चात भी मीना के मन में जय का रूप पति वाला ही है। और यदि वो उनके रहस्योद्घाटन के पश्चात भी उसके संग सम्भोग का आनंद ले रही है, तो मतलब साफ़ है, कम से कम मीना की तरफ़ से दोनों के पति-पत्नी वाला सम्बन्ध टूटने वाला नहीं है!
‘अच्छी बात है!’ उन्होंने उस जानकारी के पश्चात सोचा, और संतोष भरी साँस ली।
साल भर पहले की बात याद आ गई उनको।
जब उन्होंने मीना की तस्वीर देखी थी, वो उसको उसी टाइमपहचान गई थीं। अपनी चहेती ‘सुहास’ को न पहचानने का कोई प्रश्न ही नहीं था! जिस लड़की को उन्होंने मम्मी की तरह लाड़ किया, अपनी बहू की तरह स्नेह दिया, जिसके पालन पोषण और शिक्षा इत्यादि में अपनी तरफ़ से कोई कसर न रख छोड़ी, उसको न पहचानने का कोई प्रश्न ही नहीं था। लेकिन, जहाँ मीना की तस्वीर को इतने वर्षों के पश्चात यूँ अचानक से अपने हाथों में देख कर उनको न सिर्फ आनंद महसूस हुआ, बल्कि बेचैनी भी महसूस हुई। कारण? क्योंकि वो जानती थीं कि जय, मीना का ही बेटा है।इसलिये शुरुआत से ही उनको जय और उसके सम्बन्ध को ले कर बेचैनी हो रही थी। बेचैनी उनको आदित्य और क्लेयर के विवाह को ले कर भी हुई थी! उस बेचैनी के कारण थे क्लेयर का विदेशी होना, भारतीय परम्पराओं से अछूती रहना, और आदित्य से कुछ बड़ी उम्र की होना। इन सभी कारणों से उनके मन में उस सम्बन्ध को ले कर कई पूर्वाग्रह थे। दोबारा भी उनका सम्बन्ध स्वीकार्य था। लेकिनइसे बार तो बात ज्यादा ही अलग थी!
उसी बेचैनी के कारण वो अमेरिका जाने से स्वयं को बचा रही थीं। कहीं मीना उनको पहचान न जाए! उनके मन में शंका थी कि उनकी उपस्थिति के कारण, या तो जय और मीना का मेल संभव ही नहीं हो पाता. या दोबारा कोई न कोई रोड़ा अवश्य अटकता! वो उस स्थिति से बचना चाहती थीं। किसी दैवीय संयोग के कारण, अनायास ही जय और मीना संग आ गए थे, और प्रेम में पड़ गए थे! यदि भाग्य को उनके लिए यही मंज़ूर था, तो वो उन दोनों के विवाह में किसी भी तरह का रोड़ा नहीं अटकाना चाहती थीं। अब उनका ये फैसला नैतिक था, या सदाचारपूर्ण था -इसे बात का फैसला तो उनके भगवान ही लेते!
उन्होंने ये सोच कर अपने मन को बहला लिया था कि राजपरिवार की होने के नाते, उनके परिवार के सदस्यों को विवाह सम्बन्ध बनाने में थोड़ी स्वतंत्रता अवश्य मिली हुई थी. जैसे कि राज-परिवार के राजकुमारों के लिए अपनी चचेरी ममेरी बहनों के संग विवाह करना संभव था, और कुछ वर्षों पहले तक कई बार ऐसे विवाह हुए भी थे।एक राजा, जिनको वो जानती थी, ने तो अपनी सौतेली बहन से ही शादी कर ली थी। वो भी मान्य हो गया था। राज-परिवारों के लिए कुछ छूट तो अवश्य होती है। लेकिन इधर अलग था! जय और मीना के बीच में जो सम्बन्ध था, उसके कारण ये ज्यादा ही कठिन था।
यह तो सत्य है कि यदि किसी को जय और मीना की सच्चाई पता चल जाता, तोएक बखेड़ा खड़ा हो सकता था। वैसे तो उस सच्चाई के बारे शायद ही किसी को पता चले। मीना और उसके परिवार को जानने वाले लोग फिलहाल नगण्य थे - खास कर गौरीशंकर जी की मृत्यु के पश्चात अब शायद ही कोई उनको याद करता हो। वो महाराजपुर से ज्यादा टाइमपहले ही जा चुके थे, और अब उनके परिवार का भी कोई इधर नहीं शेष था। यदि कोई उनको या सुहासिनी को याद भी कर रहा होता, तो भी ज्यादा समस्या नहीं थी। मीना में भी तब से अब तक अनेकों परिवर्तन आ चले थे.एक अल्हड़ लड़की से वो अबएक सुन्दर स्त्री बन चुकी थी। उसके हाव भाव, पहनावा, बोलने सुनने का तरीक़ा, सभी कुछ बदल चुका था। यदि उसकी कोई परम दोस्त होती, तो उसके लिए भी सुहासिनी को पहचान पाना ज्यादा ही कठिन था। दोबारा भी, कहीं कोई, भूले भटके.इसे सच्चाई को खोद निकालता, तो कठिनाई हो सकती थी।
जय और मीना की सच्चाई के बारे में सबसे बड़ी बात ये थी कि सुहासिनी की गर्भावस्था की बात छुपा लेने में प्रियम्बदा पूरी तरह से सफ़ल रही थी। प्रारंभ के कुछ सप्ताहों के बाद, उसकी गर्भावस्था और प्रसूति दोनों ही दिल्ली में ही हुई थी, और उसके पश्चात से उसका रहना, सहना, पढ़ाई, लिखाई इत्यादि भी दिल्ली में ही, या दोबारा विदेशों में ही हुआ था - अतः, उस रहस्य के बारे में शायद ही कोई जानता हो।इसलिये सामाजिक तौर पर कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। वैसे भी, कानूनन दोनों पति-पत्नी तो थे ही, औरइसे बात को कोई झुठला नहीं सकता था। बस. अब विधिवत दोनों का विवाह होना था।
इस बात पर प्रियम्बदा ने सोचा कि ये कैसा अनूठा आकर्षण हुआ है दोनों के बीच में! ज्यादा ही स्पष्ट सी बात थी कि दोनों कोएक दूसरे के अतीत के बारे में कुछ भी नहीं पता था। ऐसे में, दोनों का प्रेम, न सिर्फ प्रकृति प्रदत्त आश्चर्य था, बल्कि प्रकृति प्रदत्त आशीर्वाद भी! जब नियति ही यही चाहती थी कि दोनों संग रहें, तो उससे अनावश्यक क्यों बैर लेना! वैसे भी, प्रेम-जन्य संबंध पुख़्ता होते हैं।इसे बात का उदाहरण आदित्य और क्लेयर थे - जो अपने विवाह के पश्चात सुखी और ख़ुशहाल जिंदगी व्यतीत कर रहे थे। प्रेम अच्छी बात थी, लेकिन मम्मी बेटे का विवाह? सबसे बड़ी रूकावट उनकी संतानों को ले कर ही थी। प्रियम्बदा को पता था कि उन दोनों की संतानों में अनुवांशिकी दोष हो सकते हैं। लेकिन उसको ये भी पता था किइसे तरह के दोष अमूमन दो तीन वंशों के पश्चात प्रबलता से उभर कर आते हैं। ऐसे में ये बात भी कोई ज्यादा ठोस रूकावट नहीं थी। जब कोई ठोस वजह नहीं थी, तो दोबारा दोनों के रिश्ते में क्यों बाधा उत्पन्न करना?
बुरा ना मानो होली है। ऐसा तो बिल्कुल नहीं बोलेंगे। लिखेंगे तो बिल्कुले नहीं। आपके अपने. लल्लन टाॅप भंगेड़ी भाई कि तरफ से होरी कि सुभ कामना
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Update #49
जयएक कोमल दिल वाला लड़का था। यदि वो दोनों को विवाह करने से मना कर देतीं, तो जय मीना से विवाह करने से रुक अवश्य जाता, लेकिन उसका दिल टूट जाता। ऐसे में न जाने वो क्या कर बैठता, या उसके मन मस्तिष्क और बदन पर न जाने कैसा प्रभाव पड़ता। वो कुछ भी बर्दाश्त कर सकती थी, लेकिन अपने बच्चों की ख़ुशी से कोई समझौता नहीं कर सकती थी।
लिहाज़ा, यदि दोनों में प्रेम हुआ है, तो उस प्रेम की परिणति होनी आवश्यक थी।
‘और क्या सुन्दर सा फल मिला था दोनों के विवाह का!’ चित्रांगदा को गोदी में ले कर खिलाते हुए प्रियम्बदा ने सोचा, ‘. न सिर्फ उनके कुल पर से सती का श्राप ख़त्म हो गया, बल्कि ये बालिका भी कितनी सुन्दर है. परफ़ेक्ट!’
क्या क्या डर थे उनके मन में - कि कहीं जय और मीना की संतान में कोई कमी न हो! लेकिन नन्ही चित्रा को देख कर वो सभी डर ख़त्म हो गए। अति-सुन्दर और स्वस्थ बच्ची! उसकी मुस्कान इतनी सुन्दर कि सभी का मन मोह ले! यदि अभी से उसमेंइसे तरह का आकर्षण था, तो दोबारा जब वो युवा होगी, तब क्या हाल होगा! हाँ - परफेक्ट शब्द ही सही बैठता है उस पर! चित्रा का परफेक्शन देख कर अब वो चाहती थीं कि दोनों यथासंभव जितनी हो सकें, उतनी संतानें कर लें! ये घर अब आनंद से और वंश के दीपकों से भर जाना आवश्यक है! लेकिन वो सभी हो, उसके पहले वो चाहती थीं कि दोनों का विवाह विधिवत हो जाय। वोजान्ना चाहती थीं कि दोनों का सम्बन्ध ज्योतिषी के अनुकूल था भी, या नहीं!
उन्होंने मीना की जन्म-पत्री केदार धाम और बद्री धाम के रावलों को विचारने के लिए भेजा, औरजान्ना चाहा कि मीना का जय के संग मेल बैठता भी है या नहीं! दोनों धामों के रावलों ने एकमत विचार दिया - जय और मीना का सम्बन्ध बड़ा ही शुभ था। ऐसा क्यों था, उनको ये बात अवश्य ही समझ में नहीं आईं, लेकिन विवाह के शुभ होने को ले कर दोनों ही एकमत थे। प्रियम्बदा नेएक और बात पूछी उनसे, कि क्या मीनाक्षी राजपरिवार पर लगा हुआ श्राप ख़त्म कर सकेगी?इसे प्रश्न पर दोनों ही मौन रहे। दोनों ही रावलों ने कहा कि होने वाली दंपत्ति की कुण्डलियों में संतान सुख तो साफ़ दिख रहा है, लेकिन ये प्रश्न कि संतानों का लिंग कन्या का होगा, ये कह पाना कठिन है। ख़ैर,इसे बात का उत्तर प्रियम्बदा को पहले से ही मिला हुआ था,इसलिये उसनेइसे बात पर कोई तूल नहीं दिया। दोनों की कुण्डलियों के हिसाब से दोनों के विवाह कीएक तिथि भी निकाल दी गई थी, जो बसएक सप्ताह में ही आने वाली थी।
जब मीना गर्भवती थी, तो मम्मी को श्राप का भी डर सता रहा था। वंश पर लगे श्राप ने आदित्य और क्लेयर का पीछा भी नहीं छोड़ा था।एक समय मम्मी को लगा था कि चूँकि क्लेयर विदेशी मूल की है,इसलिये शायद अब श्राप का असर ख़त्म हो जाए! लेकिन अजय और अमर के रूप में दोनों राजकुमार ही आए! लिहाज़ा, मम्मी के मन में अवश्य ही था कि जय और मीना के पीछे भी ये श्राप पड़ जाएगा!
किन्तु घोर आश्चर्य हुआ जब उन्होंने कन्या के जन्म की खबर सुनी! उसको अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। तीन बार पूछा था उन्होंने! पक्का करने के लिए कि क्या वाकई लड़की पैदा हुई है! इतनी ख़ुशी मिली थी उस दिन! राजमहल उस दिन दुल्हन की तरह सजाया गया था और पूरेएक महीने तक पूरे महाराजपुर में जश्न मनाया गया था। दान, भोज, पूजा-पाठ - इन सभी कार्यों में हाथ नहीं रोकाएक समय को भी! इतनी ख़ुशी हुई थी मम्मी को! खर्च की परवाह नहीं करी! आखिर, जिस भगवान ने ये श्राप ख़त्म कर दिया, वो भगवान रिक्त कोष भी भर देंगे!
लेकिन उस दिन से उनकोइसे श्राप के अचानक ही ख़त्म हो जाने से बड़ा कौतूहल भी हो रहा था। मीना और जय की कुण्डलियों का मिलान करने के संग साथ, उन्होंने दोनों धामों के रावलों से पुनः मंत्रणा करी। शायद कोई स्पष्टीकरण हो!
*
“अरे, आ गई बहू!” प्रियम्बदा ने मीना को देखते ही कहा।
कल किए गए अपने बर्ताव से वो भी ज्यादा उदास थी, लेकिन क्या करती? जय के सामने वो उससे माफ़ी भी तो नहीं मांग सकती थी न! नहीं तो उसके अपने ही अलग प्रश्न उठने लगते! अब ये सभी वो उसको कैसे बताती?
“गुड मॉर्निंग माँ,” मीना ने चहकते हुए कहा और आ कर मम्मी के पांव छुए।
“मेरी बच्ची.” प्रियम्बदा ने बड़े लाड़ से कहा, “आयुष्मती भव. सुखी भव. यशस्वी भव.” प्रियम्बदा ने आशीर्वाद दिए और मीना के माथे को स्नेह से चूम लिया।
“गुड मॉर्निंग, माँ.” जय ने भी मम्मी के पांव छुए।
“आयुष्मान भव मेरे लाल.” मम्मी ने जय के भी माथे को चूमते हुए आशीर्वाद दिया और आगे कहा, “इसके अलावा और क्या आशीर्वाद दूँ? इतनी प्यारी सी बहू है मेरी. उसकी संगत में तो तुम्हारा सभी कुछ बढ़िया ही बढ़िया होता रहेगा!”
माँ कीइसे बात पर मीना के गाल सेब जैसे लाल हो गए।
“ठीक से सोए बच्चों?” मम्मी ने पूछा तो दोनों से, लेकिन पूछते टाइमदेखा सिर्फ मीना को।
“हाँ माँ.” जय बोल पड़ा, “कल इन्होने तो मुझको डरा ही दिया था. लेकिन दोबारा नार्मल बिहैव करने लगीं! . अच्छी नींद आई, और देर तक भी!”
माँ अभी भी मीना को ही देख रही थीं।
वोएक समय को संकोच से चुप रही, लेकिन दोबारा बोली, “. जी माँ! इधर तो ज्यादा सुकून है. ज्यादा सुख है. ज्यादा ही अच्छी नींद आई.”
मीना समझ ही रही थी कि कल रात यदि कोई उनके कमरे में आया था, तो ज्यादा ज्यादा संभव है कि कमरे के अंदर का हाल मम्मी को पता चल गया हो।इसलिये उनसे छुपाने से कोई लाभ नहीं है।
“. इसीलिए देर तक सो गए.” उसने आगे जोड़ा।
“गुड! नींद अच्छी होनी ज्यादा ज़रूरी है!” मम्मी को वैसे भी सभी पता ही था, “तुम लोगों का टाइम ज़ोन भी तो अलग है इधर से.”
वो कह ही रही थीं, कि चित्रा उनकी गोदी में ठुनकने लगी! उन्होंने बड़े लाड़ से चित्रा को अपनी गोदी में खिलाते हुए कहा, “. पता है, मैं और हमारी ये नन्ही सी राजकुमारी सवेरे से खेल रहे हैं! . और सबसे अच्छी बात ये है कि येएक बार भी नहीं रोई!”
“क्यों रोयेगी, माँ?” मीना बोली, “. अपनी दादी मम्मी को पहचानती है न!”
“हाँ. वो तो है!” कहते हुए मम्मी ने कई कई बार चित्रा को चूमा।
अपनी मम्मी को ऐसे करते हुए देख कर जयएक बनावटी शिकायती लहज़े में बोला, “माँ. ये क्या बात हुई! . अपनी पोती को देख कर आप अपने बेटे को ही भूल गईं!”
“भूली नहीं हूँ. अपने राजा बेटा को! . बस, फिलहाल तो अपनी बिटिया के संग क्वालिटी टाइम बिता रही हूँ. आ जा. तू भी आ जा.” कह कर उन्होंने जय की तरफ़ अपनी बाँह बढ़ाई, कि जैसे वो उसको भी अपनी गोदी में ले लेंगी।
जय भी बिना किसी हील हुज्जत के अपनी मम्मी की कुर्सी के बगल, ज़मीन पर ऐसे बैठ गया कि उसका सर उनकी गोदी में ही रह जाए। उसको ऐसा करते देख कर मीना मुस्कुराई।
‘सच ही कहा था मम्मी ने. जय की मम्मी वो ही तो हैं.’
“जानती है बहू? . ये तेरा हस्बैंड. चाहे कहीं भी हो. चाहे कोई इसको कितना भी दुलार कर ले. इसको मेरे सीने से ही लग कर सुकून आता था.”
“माँ.” कह कर जय प्रियम्बदा से लिपट गया।
मीना मुस्कुराती हुई बोली, “. मुझे भी अपने सीने से लगा लीजिए माँ! . यही तो मिस करती रही हूँ पूरी उम्र भर. अपनी मम्मी का प्रेम और दुलार.”
“आ जा. तू भी आ जा मेरी लाडो!”
मीना भी मम्मी की गोदी में सर रख ली।
“ये तो गोदी है न बच्चे.” मम्मी ने अपनी छाती की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “मेरा सीना इधर है.”
उनकी बात पर मीना उनके सीने पर सर रख कर दुबक जाती है।
कुछ देर चारों उसी तरह से यूँ ही आलिंगन में बंधे रहे। दोबारा मम्मी ही कहती हैं,
“बहू, अभी नाश्ता लगवा देती हूँ. फ़िर हम सबबाहर् चलते हैं! . तुमको इस्टेट भी तो दिखाना है. उसके पश्चात शॉपिंग करनी है.”
“शॉपिंग माँ?”
“हाँ! अरे,एक हफ़्ते में तुम दोनों की शादी है न. अभी नहीं करेंगे तो फ़िर कब?”
“. लेकिन. माँ.” मीना ने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा, “. यदि कहीं कोई.”
“चिंता न करो बच्चे. सभी ठीक रहेगा.”
चित्राएक बार दोबारा से ठुनकने लगी।
“बहू, शायद इसको भूख लगी है.” मम्मी ने चित्रा को मीना की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, “नहीं तो ये ऐसे न परेशान होती। . दूध पिला दो इसको. मैं नाश्ता लगवाती हूँ. खूब भूख लगी होगी न!”
“हाँ माँ,”इसे बार जय बोला, “भूख तो लगी है खूब. कल मैडम के चक्कर में मैंने भी नहीं खाया था!”
“अले मेला नन्हा राजकुमार,” मम्मी ने उसको लाड़ से तोतली भाषा में दुलराया, “बस अभ्भी लगवा देती हूँ खाना.”
कह कर वो अपनी कुर्सी से उठने लगीं।
“माँ, भैया भाभी?”
“वो तो कब का खा करबाहर् चले गए. आदित्य से मिलने के लिए कई लोग इच्छुक थे न!”
“अच्छा अच्छा.” जय ने कहा।
“तू मन मसोस के न रह! तुझसे और बहू से भी कई लोग मिलना चाहते थे. लेकिन मैंने ही मना कर दिया है. विवाह से पहले किसी से नहीं मिलना है!”
“जो आज्ञा माते!”
माँ के जाने के पश्चात मीना ने जय से कहा,
“तुम भी न!”
“क्यों? अब क्या किया मैंने?”
“माँ को भेज दिया हमारे लिए खाना लाने को! . अच्छे खासे जवान मर्द हो. स्वयं जाते!”
“अरे, तुमको क्या लगता है? मम्मी मेरे कहने से रुक जातीं? . हरगिज़ नहीं!” जय ने हँसते हुए कहा, “. अभी तुमको पता नहीं है मेरी जान! . मम्मी हमको देखते ही उत्साह से भर जाती हैं!”
“आई नो! . लेकिन हमारा भी तो कुछ बनता है न, उनके लिए कुछ करने का!”
“यस! . तुम मम्मी से पूछ लेना कि क्या करना है!” दोबारा चित्रा की तरफ़ इशारा करते हुए, “. लेकिन अभी हमारी गोलू मोलू को अपना मीठा मीठा दुद्धू तो पिला दो!”
“जी हुकुम.” मीना ने कहा और हँसते हुए चित्रा को अपनी गोदी में स्तनपान कराने के लिए व्यवस्थित करने लगी।
*
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