Romance Sex Story : श्राप [Completed]
Update #51
“मुझे नौलखा मँगा दे रे. ओ सैयाँ दीवाने.
टिटिढिंग. ढिंईंईंईंईंग. टिटिढिंग. ढिंईंईंईंईंग.”
जय को कमरे के अंदर आते हुए देखते ही, मीना अपने दोनों हाथ अपनी कमर के दोनों तरफ़ रखे हुए, शरारत भरे ठुमके लगाती हुई, शरारत से मुस्कुराती हुई, और आँखें की कटारी चलाती हुई आज कल काएक अति-प्रसिद्ध गाना गुनगुनाने लगी।
जय अपने और मम्मी के बीच हुई बातचीत के पश्चात अभी भी गंभीर था। कोई संत महात्मा ही होगा, जिस पर ऐसी पहाड़नुमा सच्चाई सुनने के पश्चात भी कोई प्रभाव न पड़े! उसकोइसे बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि मीना पर उस सच्चाई के संज्ञान का क्या प्रभाव पड़ा! ये तो सत्य है कि कल रात मीना ने जय कोएक समय के लिए भी संदेह नहीं होने दिया था, कि उसको उन दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई के बारे में पता चल गया है। लेकिन जय फिलहाल समझ नहीं पा रहा था कि वो क्या करे? अपनी और मीना की सच्चाई जानने के पश्चात जय को समझ नहीं आ रहा था कि वो मीना का सामना कैसे करे! अपनी मम्मी के सामने बड़ी बड़ी बातें करना, और अपनी माँ-पत्नी का सामना करना - दो अलग बातें थीं।
ऐसे में दोबारा से मीना उसके उद्धार हेतु प्रस्तुत थी। शायद उसको सहज करने का मीना का स्वयं का कोई तरीका हो! मीना की चंचल शरारत को देख कर जय मुस्कुराने लगा। बड़ी कोशिश के पश्चात वो अपनी हँसी दबा पाया था।
‘कितनी प्यारी है उसकी मीना!’ उसके मन में बस यही ख़याल आया, ‘. उसको खुश रखने के लिए वो कुछ भी करती है!’
“अरे. ये क्या गा रही हैं आप.?” प्रत्यक्ष, वो मुस्कुराते हुए मीना से बोला।
लेकिन मीना ने उसका उत्तर नहीं दिया, और अपना गुनगुनाना जारी रखा,
“. माथे पे झूमर. कानों में झुमका. पाँव में पायलिया, हाथों में. होओओ. कँगना.
मुझे नौलखा मँगा दे रे, ओ, सैयाँ, दीवाने.”
मीना ने हर आभूषण के लिए नृत्य की भँगिमा बना बना कर दिखाया, दोबारा करीब खिलखिलाती हुई आगे गुनगुनाई,
“. तुझे मैं. तुझे मैं.
तुझे गले से लगा लूँगी. ओ सैयाँ दीवाने.”
उसको आगे कुछ नहीं करना पड़ा। अब तक दोनों ही खिलखिला कर हँसने लगे थे।
जय ने आगे बढ़ कर मीना को अपने आलिंगन में मज़बूती से पकड़ लिया। जय कोएक आश्चर्यजनक एहसास महसूस हुआ - इतना सुकून या तो उसको मम्मी के आलिंगन में आता है, या दोबारा मीना के आलिंगन में ही! माँ. मीना. माँ. बीवी. माँ.इसे रहस्य की स्वीकारोक्ति पर वो अंदर ही अंदर मुस्कुराया।
“क्या बात है!” जब दोनों की हँसी रुकी, तब जय बोला, “. बड़े अच्छे मूड में हैं आप!”
“बहोत!” मीना ने अभी भी शोख़ चंचलता से कहा।
“गुड! . लेकिन ये गा क्या रही थीं? . क्या गाना है!”
“अरे, ये? ये गाना सुपरहिट है आज कल. रेडियो में सुना. दो बार आया इतनी देर में!”
“ओह. अच्छा.” जय अभी भी मीना को अपने आलिंगन में लिए हुए था, “और दो बार ही में आपको याद भी हो गया?”
यह कोई प्रश्न नहीं था - जय को पता था कि मीना की स्मरणशक्ति सामान्य से ज्यादा है।
“आप भी दो बार सुनेंगे, तो आपको भी याद हो जाएगा,” मीना ने जय की दोनों बाहें थाम कर ठुमकते हुए कहा, “इट हैस अ लवली ट्यून.” और दोबारा आगे गुनगुनाने लगी,
“. मुझे अँगिया सिला दे रे. ओ सैयाँ दीवाने.
टिटिढिंग. ढिंईंईंईंईंग. टिटिढिंग. ढिंईंईंईंईंग.
तुझे मैं. तुझे मैं. तुझे सीने से लगा लूँगी. ओ सैयाँ दीवाने.”
अब तक जय को ज़ोर से हँसी आने लगी थी।एक तो मीना के गाने के संग साथ ठुमके लगाने का जो अंदाज़ था, वो बड़ा ही मज़ाकिया था, और संग ही में उसका ‘टिटिढिंग. ढिंईंईंईंईंग’ करना भी उतना ही मज़ाकिया था!
कितना आश्चर्यजनक था कि मीना उसको भनक भी नहीं लगने दे रही थी, कि उसको उन दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई के बारे में पता था। वो शायद यही धारणा ले कर चल रही थी, कि मम्मी ने शायद जय को उसके बारे में न पता हो! लेकिन, जय के मन में अभी भी संकोच था। हाँ - ये सच है कि वो मीना को अपनी पत्नी के रूप में ही चाहता था, लेकिन उन दोनों के सत्य को झुठला पाना, उसको अनदेखा कर पाना भी तो कठिन काम था!
“. अच्छा. तो आपको अँगिया सिलवानी है?”
मीना ने अपनी चँचल आँखों पर अपनी सुन्दर पलकों को झपकाते हुए, चंचल अदा से, ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“इस अँगिया में क्या प्रॉब्लम है?”
पूछते हुए जय ने मीना के होंठों को चूमा -एक अलग ही तरह का आनंद आया उस चुम्बन में! जैसे किसी कोमल, रसीले, लेकिन गर्म फल का स्पर्श हुआ हो उसके स्वयं के होंठों पर!
“नए कपड़ों के लिए पुराने कपड़ों में कोई प्रॉब्लम होनी ज़रूरी है क्या, मेरे भोले जानू?”
मीना ने इतनी आसानी से ‘मेरे भोले जानू’ कहा कि जय का दिल लरज़ गया।
‘बाप रे!’ जय ने सोचा, ‘कितनी सेक्सी है मेरी मीना! . प्यारी भी. सेक्सी भी.’
मीना कीइसे छोटी सी ही बात पर जय का मन उत्तेजना से भर गया। उसके लिंग में ऐसी भयंकर हलचल उठी, जो परिचित भी थी, और अपरिचित भी!
‘ऐसा क्यों महसूस हुआ मुझको?’ उसके मन मेंएक प्रश्न उठा, ‘मीना तो वही है, जैसी अभी शाम तक थी. क्या उसको देखने का मेरा नज़रिया बदल गया है?’
शायद!
यह सच है कि प्रियम्बदा ने जय को इतने लाड़ प्रेम से पाला था कि उसके मन मेंएक समय को भी ये ख़याल नहीं आया कि वो उसकी मम्मी नहीं हैं। मम्मी महारानी थीं, और उनके पास अपने राज्य, राजनीति, और बड़े पापा के व्यापार से सम्बंधित कितने सारे काम रहे होंगे। लेकिन इन सभी व्यस्तताओं के बावज़ूद, उन्होंने अपने हाथों से उसका लालन-पालन किया था। वो ही उसको सुबह सुबह स्कूल के लिए तैयार करतीं, उसको अपने हाथों से खाना खिलातीं. दोबारा शाम को उसके संग खेलतीं! जय का पालन सेविकाओं पर निर्भर नहीं था। जय आदित्य को चिढ़ाता भी था कि ज्यादा संभव है कि मम्मी से उसको भैया से भी ज्यादा प्रेम मिला हो! ऐसे में मम्मी उसकी मम्मी नहीं हो सकतीं, ये विचार कैसे आ सकता था उसके मन में?इसलिये आज मम्मी के मुँह से सच्चाई सुनने के पश्चात भी उसको यकीन नहीं हुआ। लेकिन, उनकी बात पर यकीन न करना भी असंभव था। वो उससे खेलने के लिए तो ऐसी बात नहीं बोलेंगी! बोल तो वो सच ही रही थीं! मतलब मीना उसकी मम्मी हैं. और. पत्नी भी. और. उसकी संतान की मम्मी भी. और आने वाली संतानों की भी होने वाली मम्मी हैं!
‘बाप रे! . कैसा गड्ड मड्ड.!!’
उसने मम्मी से वायदा तो कर दिया था, किइसे खुलासे का उसके और मीना के सम्बन्ध पर. उनके पति-पत्नी होने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन, मम्मी के सामने बड़बोला बनना, और अपनी माँ-पत्नी का सामना करना - ये दो बड़ी अलग बातें थीं। कमरे में प्रवेश करने से पहले तक उसके मन में अनेकों विचार आ जा रहे थे कि वो मीना का सामना कैसे करेगा! लेकिन,एक आदर्श पत्नी की भाँति मीना ने बड़ी कुशलता से उसकी मुश्किल आसान कर दी थी।एक प्रेमिका की शोख़ चंचलता दिखाते हुए उसने जय के जिंदगी में अपना स्थान सुनिश्चित कर दिया था। दोनों के सम्बन्ध में संशय का कोई स्थान नहीं बचा था - मीना उसकी पत्नी है, और उसकी पत्नी ही रहेगी! बस, मन में सेइसे नए विचार को दूर करना होगा।
“कोई ज़रूरी नहीं है.” जय ने मीना की ब्लाउज केएक कोने को छूते हुए कहा, “. लेकिन इसको अँगिया नहीं कहते.”
“नहीं?”
उसने ‘न’ में सर हिलाया, “ये तो ब्लाउज है. मतलब चोली.”
“ओओओह्ह्हह्ह.”
“हाँआँआँआँ.” मीना के ही अंदाज़ में बोल कर वो मुस्कुराते हुए मीना की ब्लाउज के बटन खोलने लगा।
“तो फ़िर अँगिया क्या होती है?” मीना ने बड़े नटखट भोलेपन से पूछा।
इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले जय ने इंतज़ार किया। जब मीना की ब्लाउज के सभी बटन खुल गए, तो उसके पट खोल कर वो मीना की ब्रा को छेड़ते हुए बोला, “. इसको. इसको कहते हैं अँगिया.”
“हैं? ये है अँगिया?” उसने चौंकते हुए कहा, “. दोबारा तो बड़ा नुकसान हो गया!”
“वो कैसे,” जय अभी भी रुका नहीं था - मीना का वस्त्र-हरण अभी भी जारी था।
“हमको लगा था कि आप अपनी राजकुमारी को रंग-बिरंगा सा, महँगा सा ब्लाउज देंगे. लेकिन.”
“लेकिन.?” जय ने उसकी ब्रा को उतारते हुए कहा।
अब मीना के दोनों चूची स्वतंत्र हो चले थे।
“लेकिन हमारे राजकुमार जी तो मेरे बदन पर कपड़े ही नहीं रहने देना चाहते!” मीना ने बड़े नाटकीय अंदाज़ में कहा, “. वैसे ही छोटा सा कपड़ा है. और उसको भी उतार दिया.”
“राँग.” जय ने मीना के स्तनों को सहलाते हुए कहा।
“राँग?”
जय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और फुसफुसाते हुए बोला, “कंडीशंस अप्लाई.”
जय ने बड़ी आशा और आदर से मीना के स्तनों को देखा।
अगर भाग्य ने ऐसी कहानी न लिखी होती, तो इन्ही स्तनों से उसको अपने जिंदगी का पहला पोषण मिला होता।एक संतान का अपनी मम्मी से पहला परिचय भी तो इसी अंग से होता है! मम्मी ने बचपन में उसको स्तनपान कराया था - वो अलग बात है कि उनको दूध नहीं बनता था। बनता भी तो कैसे? ये बात उसको अब समझ आ रही थी। आज तक वो इसी धारणा के संग जीता रहा कि मीना का दूध उसकी बेटी के लिए है। फोरप्ले के अंतरंग क्षणों में, कभी कभी जब जोश में वो उसका दूध पी लेता, तो उसको थोड़ा अपराध-बोध सा हो जाता, कि जैसे वो अपनी ही संतान के हिस्से का दूध गटक जा रहा हो।
“कंडीशंस?” मीना बोली, “कैसी कंडीशंस?”
लेकिन जय सुन नहीं रहा था। उसका ध्यान, उसका मन कहीं और ही था!इसे टाइमउसका मन हो रहा था कि वो इन स्तनों का दूध पी ले। अनकहे ही सही, लेकिन एक बार. बसएक बार वो अपनी मम्मी के स्तनों को महसूस करना चाहता था. पत्नी के नहीं!एक अजीबोगरीब कश्मक़श सी महसूस हो रही थी उसको -एक अपराधबोध सा! अनोखी क़िस्मत थी दोनों की कि वो दोनों यूँइसे वर्जनीय बंधन में बंध गए थे। समाजइसे सम्बन्ध को पाप का नाम देता है। लेकिन वोइसे बंधन से अलग नहीं होना चाहता था। पाप हो या पुण्य! दोनों के बीच प्रेम का बंधन था, और चित्रा उस प्रेम का परिणाम! इन दोनों सच्चाईयों को झुठलाया नहीं जा सकता है। लेकिन दोबारा भी, जय के मन मेंएक उलझन सी थी.
मीना नेएक दो बार कुछ कहा भी, लेकिन जय के कानों में उसकी आवाज़ ही नहीं आ रही थी। जय कुछ देर तक उसके स्तनों को सहलाता रहा। मीना ने भी उस छुवन में कुछ अलग सा महसूस किया - जय का ये स्पर्श, पहले जैसा. प्रेमी वाला स्पर्श नहीं लग रहा था। उस स्पर्श मेंएक तरह की अधीरता होती थी, अधिकार होता था।इसे स्पर्श से लग रहा था कि वो उससे कुछ मांग रहा हो। कल रात की बातें उसके दिमाग में अचानक से कौंध गईं। उसने देखा कि जयएक टक उसके स्तनों को देख रहा है।
“क्या हुआ मेरे जानू?” अनजाने ही बड़ा ही कोमल, बड़ा ही ममता भरा स्वर निकल गया मीना के मुँह से।
“हम्म्म? . जी?” जय बोला।
“क्या बात है? . क्या हो गया मेरे भोलू जानू को?”
“क. कुछ नहीं.” जय ने असहज हो कर कहा।
“बोलो न.”
“कुछ भी नहीं,” जय झिझकते हुए बोला।
लेकिन मीना समझ रही थी। स्त्रियों की छठी इन्द्रियइसे मामले में बड़ी अनूठी होती है।
“हमारे बीच कुछ छुपा हुआ भी रहना चाहिए क्या?”
मीना की बात पर जय थोड़ा झिझक गया - उसके मन मेंएक और तरह का अपराधबोध हो आया। सच है - अपनी पत्नी से कुछ नहीं छुपाना चाहिए. नहीं तो सम्बन्ध की पवित्रता बनी नहीं रह सकती।इसे मामले में सच सच कहना ही होगा।
“नहीं.” जय झिझकते हुए थोड़ा रुका, और दोबारा बोला, “लेकिन. लेकिन समझ नहीं पा रहा हूँ कि कैसे कहूँ!”
“मेरे राजकुमार,” मीना ने बड़े अधिकार से कहा, “. आपको जो कहना हो, वो मुझसे आप कह सकते हैं! . यदि आपकी कोई इच्छा हो, तो मुझसे कहिए. मैं उसको पूरा करने की पूरी कोशिश करूँगी.”
मीना को जय की सारी चेष्टाएँ समझ में आ रही थीं.इसलिये उसने उसको थोड़ा उकसाया।
मीना की बात से जय को थोड़ा सम्बल मिला। वो झिझकते हुए मुस्कुराया,
“व.वो. मुझे. मुझे. दूध पीना. है.”
“दूध पीना है?”
जय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तो इसमें क्या है?” मीना समझ रही थी, लेकिन वो जय को थोड़ा छेड़ना चाहती थी, “किसी से कह दूँ? . या. मैं ही ले आऊँ?”
जय ने उसको बनावटी गुस्से की नज़र से देखा. मानों कहना चाहता हो कि ‘कितनी मूरख हो तुम! क्या करने का कह रहा हूँ, और क्या सोच रही हो!’
जय को अपनी तरफ ऐसे देखते हुए मीना ने समझने का नाटक किया,
“ओओओह्ह. अच्छाआआ. आपको मेरा दूध पीना है?”
जय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“यहाँ से?” मीना ने अपने स्तनों की तरफ अपनी तर्जनी से इशारा किया।
जय ने दोबारा से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“सीधे? निप्पल से?” मीना बोली.
उसका मन हो रहा था कि वो जय को थोड़ा और छेड़े। न जाने कैसे वो जय के संग छोटी हो जाती थी। उसका मन होने लगता था, जय के संग खेलने का. मस्ती करने का! उम्र में उससे बड़ी होने के बावज़ूद! जय उसको इतना प्रेम करता था कि उसको किसी भी बात के लिए मना नहीं करता था. उसको अपने हिसाब से जीने देता था।इसलिये मीना को जय के संग न सिर्फ ज्यादा सुरक्षित महसूस होता था, बल्कि ज्यादा नैसर्गिक सा लगता था! दोनों का प्रेम इतना भोला सा था कि ऐसी छोटी-छोटी, मीठी छेड़खानी से भी दोनों ज्यादा आनंदित हो जाते थे।
जय ने बार तेजी से कई बार ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तो फिर. मेरे राजकुमार. मेरी जान. आप इतना झिझक क्यों रहे हैं?” मीना ने मुस्कुराते हुए और जय के गाल को सहलाते हुए कहा, “. मेरा सभी कुछ आपका है. और आप. आप तो मेरे सभी कुछ हैं! मेरी हर चीज़ पर पहला हक़ आपका है.”
“सच में?”
“सच मुच में.” मीना मुस्कुराई, “आप हमारे हस्बैंड हैं. विदेशों में पढ़ी लिखी और बड़ी हुई हूँ, इसका ये मतलब नहीं कि आपके लिए मेरे मन में कम रिस्पेक्ट है. मेरे मन में आपकी वही स्थान है, जो किसी भी इण्डियन, मैरीड लेडी के मन में अपने हस्बैंड के लिए होती है!”
इससे बड़ी हरी झंडी मीना उसको नहीं दे सकती थी।
जय की आँखों में अचानक ही चमक सी आ गई - वैसी ही जैसे बच्चों की आँखों में आ जाती है, जब उनको उनकेपस्न्द की कोई वस्तु मिल जाती है।
“. तो. मैं.?”
मीना ने जय के सर और बालों को सहलाते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
धन्यवाद अज्जू भाई! मीना जय से कहीं ज्यादा मैच्योर है! अगले अपडेट में कहानी का अंत है. देखते हैं, अगली कहानी कब होती है।
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Update #52
जय ने बिना कोई टाइमगंवाए, अधीरतापूर्वक मीना काएक चूचक अपने मुँह में भर लिया, और तत्परता से चूसने लगा।
कोई पाँच सात क्षणों में चूचक के सिरे से थोड़ा मीठा सा स्वाद लिया हुआ दूध निकलने लगा। जब जय, मीना को अपने बच्चे की माँ, और अपनी पत्नी के रूप में ही देखता था, तब उसको उसका दूध सिर्फ लजीज लगता था। लेकिन आज, जब उसको मीना कीएक अलग पहचान का भी मालूम था, तब उसको उसके दूध का स्वाद निराला लग रहा था - करीब अमृत समान! ये दूध आज उसकी आत्मा को तृप्त कर रहा था। आज मीना के चूची से उसको पोषण मिल रहा था! लिहाज़ा, उसके मन में अपराधबोध किंचित मात्र भी नहीं था। मनोविज्ञान के खेल बड़े अनोखे होते हैं!
मीना के मन मेंएक अनजान आशंका तो थी। यदि मम्मी ने उसको सभी बता दिया है, तो ज्यादा ज्यादा संभव है कि वो जय को भी सभी बता देंगीं। उससे कुछ भी छुपा कर रखना - मतलब उसके संग छल करना! संबंधों की नींव सच्चाई पर हो, तो ही अच्छा। जय और मीना के बीच की पहली सच्चाई उनका प्रेम था। उसी के कारण मीना ने जय को अपने पूर्व के प्रेम-संबंधों के बारे में सभी कुछ सच्चाई-पूर्वक बता दिया था। वो किसी अपराध-बोध के संग जय के संग अपना भविष्य नहीं बनाना चाहती थी। लेकिन कल रात वो जय से कुछ कह पाने में अपने आप को पूरी तरह से असमर्थ पा रही थी। शायद वो स्वयं भी अपने आप को दिलासा देना चाह रही थी कि मम्मी की बताई हुई सच्चाई, उनकी सच्चाई नहीं है। उसने जिसको अपना वर माना, जिसको अपनी आत्मा का भी स्वामी मान लिया, अब वो उसके संग अपना सम्बन्ध परिवर्तित नहीं कर सकती थी।
वो लाखों कोशिशों के पश्चात भी जय को अपने पुत्र के रूप में नहीं देख पा रही थी। उसके लिए ये संभव ही नहीं हो रहा था। लेकिनएक टाइमपर उसको जय को सभी कुछ सच सच बताना ही होगा न! लेकिन जय की अभी की चेष्टा देख कर उसको अनुमान हो गया कि मम्मी ने उसको सभी कुछ बता दिया है।एक तरह से मीना के दिल सेएक भारी बोझ उतर गया था। कम से कम अब, उन दोनों के लिएइसे बात पर चर्चा कर पाना आसान हो गया था। शायद ज्यादा कठिन होइसे विषय पर बात करना - लेकिन करना तो पड़ेगा! दोनों का भविष्य जोइसे बात पर निर्भर करता है।
मीना इतना तो समझ ही रही थी कि अनकहे ही सही, जय ‘अपनी माँ’ का दूध पीना चाहता था।इसलिये उसने जय को दिलासा दिया और स्तनपान करने को उकसाया। यदि उसके अख़्तियार में कुछ था, तो जय की कोई भी इच्छा अधूरी नहीं रह सकती - ये उसने ज्यादा पहले ही सोच लिया था। तो यदि जय उसका स्तनपान करना चाहता था, मीना उसकी ये इच्छा ज़रूर पूरी करेगी। लिहाज़ा, जय बड़ी फुर्सत से स्तनपान करता रहा। उसको न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि जैसे मीना के चूची में ज्यादा दूध था। मीना को भी अलग सा एहसास हो रहा था - हाँ, जब चित्रा स्तनपान करती, तो कम दूध निकलता. लेकिन जय के हर चूषण में ज्यादा निकलता हुआ महसूस हो रहा था। वो खुश थी कि जय स्तनपान कर के प्रसन्न और संतुष्ट था। खैर, जबएक चूची खाली हो गया तो भी जय का न तो पेट ही भरा और न ही मन। मीनाइसे बात को समझ चुकी थी। इसलिएएक चूची खाली होते ही उसने जय को अपने दूसरे चूची से सटा दिया। कुछ टाइमपश्चात दूसरा चूची भी खाली हो गया।
न चाहते हुए भी जय को मीना के स्तनों से हटना पड़ा।
“मन भरा मेरे राजकुमार का?” मीना ने बड़े लाड़ से पूछा।
जय ने शरारत से मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया।
“हा हा,” मीना खिलखिला कर हँस दी, “. कोई बात नहीं, दो घण्टे में दोबारा से ट्राई करिएगा. और मिलेगा!”
जय मुस्कुरा दिया।
“लेकिन हम तो थक गए, यूँ बैठे बैठे.” मीना ने आलस से अँगड़ाई भरते हुए कहा, “. थोड़ा लेट जाऊँ?”
अँगड़ाई भरते ही मीना के चूची बड़े ही लुभावने अंदाज़ में उपरि उठ गए।एक गज़ब का युवा दृढ़ता थी उसके स्तनों में। पिलपिले चूची नहीं थे - फर्म, लज़्ज़तदार! सेक्सी!
लेकिन न जाने क्योंइसे बात का जय पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा।
वो बोला, “आपको मुझ से इजाज़त लेने की ज़रुरत नहीं. आप तो स्वयं ही हमारी सभी कुछ हैं. मालकिन हैं.”
“ओ हो हो हो. मालकिन! . हा हा. हम आपकी मालकिन हैं?” मीना ने पलंग पर लेटते हुए कहा।
“आप तो सभी कुछ हैं मेरी.”
“सब कुछ?”
“सब कुछ!”
“पक्की बात?”
“पक्की बात.” जय मुस्कुराते हुए बोला।
“तो फिर. मेरे राजकुमार जी, टेल मी. व्हाटइसे एलिंग यू (आपको कौन सी बात परेशान कर रही है)?” मीना नेइसे बार स्पष्ट बात बोली।
जय कुछ देर चुप रहा।
“जय.?” मीना ने दोबारा से कहा।
“मीना. अभी. कुछ देर पहले. मम्मी से बात हुई.” उसने हिचकते हुए कहा।
मीना चुप ही रही. वो जानती थी कि मम्मी ने क्या बताया होगा उसको।
“उन्होंने. उन्होंने. बताया.”
कह कर जय चुप हो गया।
मीना ने कुछ क्षण इंतज़ार किया, लेकिन जब जय आगे कुछ न बोला, तो उसने कुरेदा,
“क्या?”
“यही. कि. हम दोनों. हम दोनों.” जय कह न सका. और उसने नज़रें झुका लीं।
मीना को लगा कि बात की बागडोर हाथ में लेने का टाइमआ ही गया है। चूँकि जय उम्र में उससे छोटा है,इसलिये शायद वोइसे बात को उचित परिपक्वता से सम्हाल न सके।
“जय. मेरे जय.” मीना बोली, “मेरी तरफ़ देखो.”
जय ने झिझकते हुए मीना की तरफ़ देखा।
“मेरेएक प्रश्न का सीधा सीधा जवाब देना। . ठीक है?”
जय ने उसकी तरफ़ देखा और ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तुम मुझे कैसे देखते हो. अपनी पत्नी के जैसे, या फ़िर अपनी मम्मी के.”
जय अपना उत्तर देने मेंएक समय भी नहीं रुका, “. ऑब्वियस्ली अपनी पत्नी के जैसे.”
“तो फ़िर हमइसे बारे में बात भी क्यों कर रहे हैं?” मीना बोली, “माँ ये बात हमसे छुपा नहीं सकती थीं. मम्मी को लगा कि ये उनका फ़र्ज़ है कि हमकोइसे सच्चाई से अवगत कराएँ.इसलिये उन्होंने हमसे कुछ नहीं छुपाया। हाँ, ये ज़रूर है कि उन्होंने हमको देर में सभी बताया. यदि वो पहले ये बात बता देतीं, तो शायद हमारा अंज़ाम कुछ अलग होता। लेकिन.” कह कर वो थोड़ा रुकी, “. लेकिन अब. ये हम दोनों पर है कि हमइसे बात को अपनी लाइफ में कितनी तवज्जो देते हैं।”
“लेकिन मीना.”
“जय. मैं. तुम. तुम मुझसे बने हो, ये सच है! मैंइसे बात से इंकार नहीं करूँगी. लेकिन मुझे उस बात की कोई याद ही नहीं है! . हाँ. कल के पश्चात से मुझे राजकुमार जी. मतलब, तुम्हारे पिता जी की याद पुनः आ गई है. लेकिन. न तो मुझे प्रेग्नेंसी की याद है, न ही लेबर की, और न ही अपने मम्मी बनने की!”
जय सुन रहा था. चुपचाप।
“मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी मैंने तुमको अपनी गोद में लिया हो. ऐसे में तुम्हारे लिए मेरे मन में मम्मी वाली फ़ीलिंग्स कैसे आ सकती हैं?” मीना ने समझाते हुए पूछा, “हाँ. तुमको ले कर जो यादें हैं, वो हैं तुमसे मिलने की यादें. हमारी यादें. जब तुमने मुझको पहली बार छुआ था एस माय लव. वो यादें. जब. जब तुमने और मैंने पहली बार.” कहते कहते वो थोड़ा रुकी, “. तो हमारी सच्चाई ये ही है. तुम मेरे हस्बैंड हो. मेरा प्यार. मेरी बेटी के पापा! और. हमारे होने वाले बच्चों के पापा!” मीना मुस्कुराती हुई बोली, “मेरे अलावा किसी और से बच्चे करने का सोचा भी न तो देख लेना.”
मीना हँसने लगी, और उसके संग जय भी, “. तो ये है हमारा सच! . जो मम्मी ने बताया. वो उस तरह का सच है जिसका हम पर. हमारे फ्यूचर पर कोई असर नहीं होगा.”
“सच में मीना?” जय ने पूछा - जैसे वो उससे दिलासा लेना चाहता हो, “सच में कोई असर नहीं होगा न?”
“बिल्कुल भी नहीं होगा! . आई लव यू टू मच टू गिव अप ऑन आवर फ्यूचर टुगेदर.”
“ओह थैंक यू सो मच मीना.”
“थैंक यू?”
“सॉरी.” जय मुस्कुराते हुए बोला।
“अच्छा जी! तो अब हमारे बीच थैंक यू, एक्सक्यूज़ मी, और सॉरी आने लगा है?”
“नहीं नहीं!” दोबारा मुस्कुराते हुए, “. आई लव यू मीना!”
“यू बेटर! . पत्नी को ‘बेटर हॉफ’ यूँ ही नहीं कहते हैं!”
“हा हा! . बट यू आर माय बेटर हॉफ!”
मीना उसकी बात पर पहले तो हँसी, दोबारा अचानक से जय को उसके होंठों पर चूमने लगी।
“आई लव यू! . थैंक यू फॉर बीईंग माय हस्बैंड!”
“अच्छा जी! तो अब हमारे बीच थैंक यू, एक्सक्यूज़ मी, और सॉरी आने लगा है?” जय ने मीना की ही कही गई बात दोहरा दी।
“सम टाइम्स” मीना हँसने लगी।
माहौल को भारी करने वाली बातें यूँ ही आई-गई हो गईं।
“मेरी जान?” जय कुछ देर की चुप्पी तोड़ते हुए बोला।
“जी?”
“तुमसेएक बात करनी थी.”
“अरे तो इसमें इतना फॉर्मल होने की क्या ज़रुरत है. कहिए न! . आप मेरे हस्बैंड हैं. आपकी मैं उसी तरह से इज़्ज़त करती हूँ! आपको कभी भी मुझसे फॉर्मल होने की ज़रुरत नहीं. आप हुकुम करिए, मेरे हुकुम!” मीना ने हँसते हुए कहा।
“आज मम्मी से बात करते हुए मैंने उनसेएक प्रॉमिस जैसा कर दिया.”
“ओके!” मीना ने उत्सुकतावश पूछा, “क्या प्रॉमिस किया आपने?”
“मैंने उनसे कह दिया कि मैं और मीना यहीं, महाराजपुर में सेटल हो जाने का सोच रहे हैं!”
“सच में?”
“हाँ!”
“दिसइसे सच अ ग्रेट थॉट!” वो चहकती हुई बोली, “आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू!”
“सच में! यू थिंक सो?”
“और नहीं तो क्या! . आपने ज्यादा बढ़िया किया मम्मी से ये प्रॉमिस कर के!”
“आर यू श्योर? तुम्हारा काम. कैरियर.?”
“अरे. मेरी जान. मेरा काम, मेरा कैरियर सभी इसी परिवार से ही तो है! . इतना बढ़िया बिज़नेस है हमारा. इधर से भी सम्हाल सकते हैं न ज्यादा कुछ? आदि और क्लेयर वहाँ हैं. लेकिन, इधर इण्डिया का बंदोबस्त भी देखने वाला कोई होना चाहिए न? . तो आप हम हैं न?”
मीना मुस्कुराते हुए बोली, “. लेकिन सबसे बड़ी बात, जो मेरे स्वयं के मन में थी. वो ये है कि मम्मी को देखने वाला कोई चाहिए न. उनके संग होने वाला कोई चाहिए न? हम उनके बच्चे हैं. यदि हम नहीं करेंगे, तो किसके भरोसे छोड़ देंगे उनको?”
“यू आर सच अ लवली पर्सन मीना.”
“ऑलवेज रिमेम्बर दिस.” मीना ने हँसते हुए उसको छेड़ा।
“ऑलवेज! . तो मैंने मम्मी को प्रॉमिस कर के कुछ गड़बड़ नहीं किया!”
“बिल्कुल भी नहीं. बल्कि आपने ज्यादा बढ़िया किया मम्मी से प्रॉमिस कर के! . मैं हूँ न! मैं उनकी सेवा करूँगी! . मुझे नहीं जाना उस डेड सिटी में रहने! . मुझे इधर रहना है. अपनों के साथ! अपनी मम्मी के साथ. अपने हस्बैंड के साथ. अपने बच्चों के साथ! मम्मी को ज्यादा बढ़िया लगेगा. वो अपने ग्रैंड चिल्ड्रेन के संग रहेंगीं, तो जल्दी से और अच्छी हो जायेंगीं!”
“ओह मीना! आई लव यू! आई लव यू! . थैंक यू सो मच!”
“अब आपने दोबारा से ‘थैंक यू’ कहा न, तो आपको थप्पड़ लगाऊँगी.”
“अरे! ये क्या!! . बस अभी दो सेकंड पहले तो कह रही थीं कि मैं आपकी इज़्ज़त करती हूँ. और अभी थप्पड़ लगाने की बात कर रही हैं!”
“इज़्ज़त आपकी पत्नी बन कर करती हूँ, और थप्पड़ लगाऊँगी आपकी मम्मी बन कर.” ये बात कहते कहते स्वयं मीना ही शरमा गई।
“हा हा हा.” जय ठहाके मार कर हँसने लगा, “अब ऐसा होगा हमारे साथ?”
“हाँ!” मीना ने इठलाते हुए कहा - लेकिन उसके बोलने में शरम अभी भी थी, “हम आपकी मम्मी हैं. ये बात भूलिएगा नहीं!”
“अच्छा. नहीं भूलेंगे! लेकिन, जोइसे टाइममेरे सामने है, वो कौन है?”
“आपकी बीवी.”
“हम्म्म. और. कुछ देर पहले मैंने दूध किसका पिया?” जय ने दबी आवाज़ में पूछा।
“अपनी मम्मी का.” मीना ने भी दबी आवाज़ में कहा।
उसके गाल लाल हो गए शर्म से! ये सभी ज्यादा अपरिचित सा था. वर्जना से पूर्ण! अनोखा!
“मीना. कभी कभी. बस, कभी कभी यदि मैं आपका बेटा बनना चाहूँ, तो आपको कोई प्रॉब्लम होगी?”
“कोई प्रॉब्लम नहीं होगी. तुमको जिस रूप में मेरा प्रेम चाहिए, वो तुमको मिलेगा!” मीना ने कोमलता से कहा।
“दैट्स लाइक माय गर्ल. आई लव यू,” जय मुस्कुराते हुए, और मीना की साड़ी को उसके पेटीकोट के खींच कर निकालते हुए आगे बोला, “. बढ़िया बताओ,इसे टाइममैं नंगा किसको कर रहा हूँ?”
दोनों का खेल अभी भी जारी था।
उसकी हरकत पर मीना की आवाज़ काँप गई, “अ. अपनी. बीवी. को.”
“हम्म्म. अपनी मम्मी को नहीं?”
“उम् हम्म.” उसने ‘न’ में सर हिलाया, “. आपको अपनी मम्मी के संग ये सभी करना है?”
“शायद.”
जय ने मीना का वस्त्र-हरण जारी रखा।
“हम्म.”
उसकी पेटीकोट का नाड़ा ढीला करते हुए उसने पूछा, “और.इसे पेटीकोट के हटने पर मुझे किसकी चूत मिलेगी?”
“धत्त. गंदे बच्चे!”
“अरे कहो न.” जय ने मीना का पेटीकोट उतारते हुए कहा।
“नहीं बताती. जाओ!”
“अरे! कहो न!?”
मीना ने नकली गुस्से में कहा, “छीः. दो दिनों में ही आप गड़बड़ हो गए हैं!”
“मेरी जान. इसमें क्या गड़बड़ है? तुमसे नहीं, तो और किससे ऐसी बातें करूँगा?” जय ने भी मीना के ही अंदाज़ में कहा, “. तुम न बिल्कुल स्पॉइल स्पोर्ट हो. कहो न!” और उसको उकसाया।
वो पुनः ज्यादा उत्तेजित हो गया था। मम्मी के दिए गए नए संज्ञान से संशय के बादल हट गए थे। मीना का संग उसके जिंदगी में हमेशा बना रहेगा -इसे बात के ज्ञान से उसके अंदरएक नया उत्साह भर गया था।
“मार खाओगे तुम.” मीना बोली।
लेकिन जयइसे खेल को रोकने वाला नहीं था। मीना की योनि के होंठों को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए उसने उसको दोबारा से छेड़ा, “. कहो न यार. किसकी चूत है ये?”
“आअह्ह्ह. आपकी मम्मी की, हुकुम! आपकी मम्मी की.”
मीना के ये कह देने मात्र से जय की उत्तेजना अपने शिखर पर पहुँच गई। ऐसे वर्जनीय सम्बन्ध के साकार होने की सम्भावना से उसका लिंग अभूतपूर्व रूप से कठोर हो गया।
“तो आज मम्मी बेटे का मिलन हो जाए?”
“हो जाए मेरे जय!” मीना ने शरमाते हुए, लेकिन शरारत से कहा, “. हो जाए.!”
“अहा! हम खुश हुए.” कह कर उसने तेजी से अपने बदन से कपड़े नोचने शुरुआत कर दिए।
जब दोनों पूरी तरह से नग्न हो गए, तो जय बोला, “इतने बड़े राजमहल में केवलएक नन्ही चित्रा काफ़ी नहीं है, माँ.”
“तो मैं हूँ न,” मीना भी उत्तेजना से हाँफती हुई बोली, “. मैंने तुमसे वायदा किया था न. जितने कहोगे, उतने बच्चे दूँगी तुमको!”
“ऐसे नहीं,” उसकी योनि पर अपना लिंग व्यवस्थित करते हुए जय ने आग्रह किया, “. वैसे कहो, जैसे मम्मी अपने बेटे से प्रॉमिस करती है.”
शायद सभी वर्जनाओं को तोड़ करएक हो जाना ही पति-पत्नी का कर्म होता है। मीना भी समझ गई थी कि जय आज उसके मुँह से बिना उन वर्जनाओं के टूटने की बात सुने, उसके संग आत्मसात नहीं होने वाला। उसने वायदा भी तो किया था न!
“मेरे लाल, मेरे बेटे,” मीना ने उत्तेजना से टूटी हुई आवाज़ में कहा, “मैं दूँगी तुझे. जितने बच्चे चाहेगा तू. उतने बच्चे दूँगी मैं तुझे, मेरे लाल. ये राजमहल मैं तेरे नन्हे मुन्नों से भर दूँगी.”
मीना की बात पर जय के होंठों परएक बड़ी सी मुस्कान आ गई।
“थैंक यू, माँ!” कह कर उसने बलपूर्वक धक्का लगा दिया।
अगले करीब पौन घटिका तक दोनों के बीच काम-युद्ध चलता रहा, दोबारा दोनों निढाल हो करएक दूसरे से गुत्थमगुत्थ हो कर कुछ टाइमके लिए सो गए।
*
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अवश्यंभावी था कि दोनों प्रेमी प्रेमिका में से कोईएक समस्त वर्जनाओं को तोड़कर आगे बढ़ता। शायद जय के लिए ये कुछ कठिन होता परन्तु मिनाक्षी ने आगे बढ़कर अपने पुत्र पर प्रेमी (पति) को श्रेय दिया। और प्रेम के अंतरंग क्षणों में अपने मातृभाव के Role Play को जीवित कर अपने प्रेमी को पुत्र मानकर स्तनपान का सुख दिया और विधी द्वारा छिने गये अपने खोए हुए मातृत्व के सुख को पुनः प्राप्त कर लिया।
उसका यही जज्बातों प्रेम को सार्थक कर सकता है। क्योंकि उसे जय को अपने पुत्र से ज्यादा प्रेमी के संग बिताए क्षण याद हैं। उसका जय को जन्म देना अथवा उसके बचपन के बारे में कुछ याद नहीं है। परन्तु जय के संग बिताए अंतरंग क्षण याद हैं। जिनके सहारे ही वह अपना शेष जिंदगी जितना चाहिए है।
उसकी दुविधाइसे मामले में सुमन (मुहब्बत का सफ़र) से ज्यादा ही अलग है। (सुमन का किरदार भुलाए नहीं भूलता)। सुमन ने अपने पुत्र के समान सुनील को बचपन से स्तनपान कराया और उसे अपने सामने युवा होते और दोबारा अपने प्रेमी, पति और अपने बच्चों के पिता के रुप में परिवर्तित होता देखा।एक ओर प्रेमी के रूप दूध न होने पर भी स्तनों पर प्रेमी का प्रेमयुक्त शुष्क चूषण और दांतों से दंतच्छेद और शादी के पश्चात में बच्चे को दूध पिलाते टाइमदोबारा से पति को भी पिलाने से सुख का अनुभव। उसका जिंदगी हीएक पुर्ण Role Play जैसा प्रतीत होता है।
वहीं मिनाक्षी के द्वारा अपनी पुत्री के संग उसके पिता और अपने प्रेमी/ पति को भी स्तनों से अमृत पान के सुख देने का एहसास उसके प्रेमिका रुप पर क्षणिक मातृभाव के अभिनय द्वारा सुख प्राप्त करने जैसा प्रतीत होता है।
दोनों परिस्थितियों के अनुसारएक ही नांव पर सवार होकर भी अनुभूति के कारण अलग-अलग हैं।
पात्र संरचना में आप किइसे प्रवीणता और कुशलतापूर्वक लेखन के लिए आपको बहुमान।
आपके कथनानुसार कथानक अपने अंत के निकट है। उचित हि है, ये तो पुर्व निर्धारित हि था। परन्तु मानवीय भावना है कि किसी प्यारा के अवसान पर मन उद्विग्न हो ही जाता है। उस पर लेखक का कुछ टाइमके लिए लेखन से अवकाश घोषित करना।
आपको हक़ है और नवीन रचना से पुर्व क्षणिक अवकाश पर आपका अधिकार सिद्ध है। परन्तु आपसे निवेदन है कि अवकाश का अंत नवीन रचना के संग होगा। परन्तु क्षणिकाओं (sms on verious stories) द्वारा यदा-कदा भेंट होगी। और जैसा कि आपका आदर्श वाक्य है (कुछ लिख लेता हूं.) लिखते रहिए और बांटते रहिए। नवीन अद्यतन और लेखन के लिए अग्रिम शुभकामनाएं.
जय जय.
Gazab kee updates he avsji bhay, Jay say jayada meena mature he, or usne iska kai baar iska paridchay bi diya he. Meena ne Jay kee ek or fantasy puri krr di.uski mummy k rup mai hi uske sath sex karke. Keep posting Bro
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