Romance Sex Story : श्राप [Completed]
तो शायद आपने अंत कर दिया इसका।
कुछ बातें अभी भी क्लियर नही हुई।
मीना जय से बड़ी थी, 18 साल? इसका मतलब वो आदित्य और क्लेयर से भी ज्यादा बड़ी हुई?
शायद आपने हमारे खुलासे के चक्कर में कुछ गडबड कर दी है, इसीलिए आपसे गुजारिश है कि जैसा लिखा था वैसा ही चलने देते तो कहानी ज्यादा अच्छी रहेगी।
बाकी जैसी लेखक की इक्षा
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Update #47
अपनी स्वभाव के विपरीत मीना सुबह ज्यादा देर से उठी। कई कारण थे - सबसे बड़ा कारण था कि अचानक से ही अमरीका से भारत आने के कारण बदन की समय-सारिणी में अप्राकृतिक अंतर आ जाता है। कुछ लोगों को दो तीन दिन ही लगते हैं उसको ठीक करने में, और कुछ लोगों को कई कई दिन लग जाते हैं।
मीना ने महसूस किया कि उसके पूरे बदन में बड़ी मीठी सी अलसाहट थी और मीठा मीठा सा दर्द हो रहा था! ये बड़ी ही परिचित सी अलसाहट और पीड़ा थी। ये परिणाम था कल रात उसके और जय के बीच चले रति-युद्ध का! आँखें उसकी अभी भी खुली नहीं थीं - लेकिन नींद अब जा चुकी थी। उठते ही सबसे पहली याद उनके कल रात के सम्भोग की ही आई!एक तरह सेएक स्पेशल रात थी कल की! इतने सारे अविश्वसनीय खुलासे हुए। शुरुआत में तो उसको लगा था कि उसका जिंदगी पूरी तरह से बदल जायेगा। लेकिनइसे समय, जय के बगल लेटी हुई, वो समझ रही थी कि उसके जिंदगी में कोई परिवर्तन नहीं आया था, और न ही उस बारे में सोचने की कोई आवश्यकता है!
अंततः मीना ने अपनी आँखें खोलीं।
उसने देखा कि वो और जयएक दूसरे से गुत्थमगुत्थ हो कर लेटे हुए थे। पूर्ण नग्न! उसने देखा - जय अभी भी सो रहा था। जय स्वस्थ और मज़बूत कद-काठी का युवक अवश्य था, लेकिन वो भारी नहीं था।इसे कारण से सम्भोग के दौरान उसकी चंचलता और भी बढ़ जाती थी, और असंभव तरीके और असंभाविक आसनों में वो मीना के संग प्रेम-लीला रचता था। आनंद आता, लेकिन मीठी मीठी पीड़ा भी होती मीना को उस कारण। लेकिन उसी पीड़ा में ही तो रति का सुख है!
कल रात की बात दोबारा से याद आने पर वो मुस्कुराई। दोबारा उसने अपने बगल में देखा - नन्ही चित्रा अभी वहाँ नहीं थी। शायद कोई उसको रात में वहाँ से उठा ले गया था। अपनी प्राइवेसी में ऐसी दखल देख कर उसकोएक समय को बुरा लगा, दोबारा अगले ही समय उसको महसूस हुआ कि किसी परिचारिका ने ही उठाया होगा चित्रा को - उसकी देखभाल करने के लिए! ज्यादा संभव है कि यहइसलिये किया गया था कि वो और जय ठीक से सो सकें। ये विचार आते ही वो संयत हो गई, और उसको बढ़िया भी लगा।
बहुत ही ठीक से सोई वो! सर अभी भी थोड़ा भारी था, लेकिन वो किसी चिंता का विषय नहीं लग रहा था। उसका अंगड़ाई लेने का मन हो रहा था, लेकिन जय के जागने की चिंता के कारण वो पलंग पर यूँ ही पड़ी रही! लेकिन कोई कब तक यूँ ही, अकारण पलंग पर पड़ा रह सकता है? हार कर वो उठने को हुई। उसके उठने के कारण हुई हलचल से जय भी जागने लगा। आधी नींद और आधी जागने की अवस्था में जय ने, पलंग से उठती हुई मीना का हाथ पकड़ कर पुनः पलंग पर लिटा लिया।
“कहाँ चलीं आप?” उसने उनींदी आवाज़ में, लेकिन मज़ाकिया और मीना को छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा।
“अरे उठना चाहिए. ज्यादा देर हो गई है!” मीना ने कहा।
“क्या टाइम हो रहा है?” जय अभी भी उनींदा था।
“आठ बजने वाले हैं.”
“बस?”
“हा हा. क्या बात है हुकुम?” मीना नेइसे मीठी सी बातचीत का आनंद उठाते हुए कहा, “आज दिन भर आलसी बने रहने का इरादा है क्या?”
“आलसी नहीं. कुछ और.”
“क्या?” मीना समझ रही थी कि जय क्या चाहता है।
“आपका आशिक़.” कह कर जय ने उसको अपने उपरि खींच लिया।
“आऊ. मम्मी आस पास ही होंगी, और आपको आशिक़ी सूझ रही है?” मीना जय के आलिंगन में दोबारा से समाती हुई खिलखिलाई।
“माँ का ही तो आदेश है.” जय उसके होंठों को चूमते हुए बोला।
“अच्छा जी?”
“हाँ,” जय मीना के स्तनों को दबाते सहलाते कहने लगा, “वो चाहती हैं कि हम दोनों जल्दी जल्दी तीन चार और बच्चे कर लें. ऐसा इम्पोर्टेन्ट काम बिना आशिक़ी किये तो नहीं होने वाला न?”
“हा हा हा.”
दबाने से मीना के चूचकों में से दूध की कुछ बूँदें निकल आईं। जय को अचानक से न जाने क्या सूझी, उसने मीना काएक चूचक अपने मुँह में भर लिया और उसको अधीरतापूर्वक पीने लगा। फोरप्ले और सम्भोग करने में जय थोड़ा शर्मीला ही था! बातें वो बड़ी बड़ी कर लेता था, लेकिन उन बातों के क्रियान्वयन में वो थोड़ा शरमा जाता था. उत्साह से करता था, लेकिन दोबारा भी उसको थोड़ी शर्म सी रहती। फोरप्ले के दौरान मीना का स्तनपान करना कुछ वैसा ही काम था। जय का मानना था कि मम्मी का दूध उसके बच्चों के लिए होता है, और बच्चों के बाप को उसमें सेंध-मारी नहीं करनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि उन दोनों के बीच में ये क्रिया होती ही नहीं थी! अवश्य होती थी - लेकिन ज्यादा कम!
इसलिए जब यूँ अचानक से जय उसका दूध पीने लगा, तो मीना के मन में संदेह हुआ कि कहीं जय को उनके रिश्ते के बारे में पता तो नहीं चल गया? लेकिन मीना ने महसूस किया कि जिस अंदाज़ में जय उसका चूची पी रहा था, उसमें कोई परिवर्तन नहीं था।
कुछ देर पश्चात मीना बोली, “हुकुम, आज तो आप बड़े मूड में लग रहे हैं!”
“आप जब भी हमारे पास रहती हैं, तब मूड बन ही जाता है.”
“झूठे. आअह्ह्ह.”
“अरे इसमें झूठ क्या है! . मूड तो बन ही जाता है जब मेरी जान मेरे पास रहती है. लेकिन हर टाइमबने हुए मूड पर एक्शन तो नहीं लिया जा सकता न.”
“बातें बनाने में आप एक्सपर्ट हैं.”
“और भी कामों में एक्सपर्ट हूँ मेरी जान.” उसने कहा, औरएक बार दोबारा से उसका लिंग मीना की योनि में प्रविष्ट होने लगा।
“हा हा हा. आआह्ह्ह्हह. आपको बस मौका चाहिए मुझे सताने का!” मीना ने आनंद से कराहते हुए कहा।
बरसों का शोध कहता है कि सुबह सुबह का, मतलब, सो कर उठने के जल्दी पश्चात होने वाला सम्भोग, सबसे ज्यादा सुखकारी और आनंददायक होता है। आपका बदन रात भर आराम कर चुका होता है, और उसमें नई ऊर्जा रहती है। संग ही संग जननांगों में ज्यादा रक्त भी बह रहा होता है।इसलिये खेल देर तक चलता है, और ज्यादा आनंददायक होता है।
“सताना नहीं जानेमन. आपको प्रेम करने का,” जय ने नीचे से धक्के लगाते हुए कहा, “वैसा प्रेम जिस पर आपका हक़ है.”
इसके पश्चात किसी को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी। दोनों अपने खेल में मगन हो गए।
मीना को कल रात भी, औरइसे टाइमभी, जय के संग सम्भोग करते हुए हमेशा के जैसा ही आनंद आ रहा था। कोई परिवर्तन नहीं आया था। मीना कोएक दो बार ख़याल अवश्य आया कि उसको कितनी सहजता थी जय के संग की!एक बार भी उसके मन में नहीं आता है कि जय उसका बेटा था। वो दृष्टिकोण पैदा ही नहीं हो सकता! कैसे हो सकता है? उसको प्रसव का कुछ याद नहीं, आधी गर्भावस्था का कुछ याद नहीं! ऐसे में जय के लिए पुत्र-मोह कैसे आ सकता है उसको? मम्मी बिल्कुल सही कहती हैं - जय उसके बदन से अवश्य उत्पन्न हुआ था, लेकिन उसका बेटा नहीं है। बेटा वो मम्मी का ही है! किशोरवय नासमझी में वो गर्भवती अवश्य हो गई, लेकिन मम्मी बनने का शऊर तब थोड़े ही था उसमें। उस टाइमतो उसको लड़की बने रहने का भी शऊर नहीं था। बच्चों को, उनकी नासमझी में किए गए शैतान कार्यों का ता-उम्र दण्ड नहीं दिया जाता! किसी को भी नहीं! उनको सुधरने का, और दोबारा से नए सिरे से जीने का अवसर दिया जाता है। वही अवसर मीना को भी तो मिला हुआ था!
फिर अचानक से उसके मन मेंएक और ख़याल आया, ‘जय में राजकुमार का भी तो अंश है!’
‘राजकुमार का अंश!’
हो सकता है कि भगवान ने उसे राजकुमार हर्ष का प्रेम देने के लिए ही ये सारी लीला रची हुई हो? नियति ने शायद यही सोचा हुआ हो, कि उसको राजकुमार अवश्य मिलेंगे - चाहे किसी भी रूप में! और देखो, मिल भी गए!इसे ख़याल से उसके मन में जय के लिए और भी प्रेम उमड़ आया।
‘जो भी हो,’ उसने सोचा, ‘उसके जिंदगी में जय का रूप नहीं बदलेगा! . नहीं बदल सकता! . कभी नहीं!’
सच में, जय उसके जिंदगी में उसके पति के अतिरिक्त और किसी दूसरा रूप में नहीं रह सकता था। वो उसको ज्यादा प्रेम करती थी, और जय भी उसको ज्यादा प्रेम करता था। नन्ही चित्रांगदा उनके प्रेम का प्रसाद थी। और वो चाहती थी, कि चित्रा के ही जैसे दूसरा कई वंश-पुष्प उसकी कोख से जन्म लें! उसके मन में यही सारे विचार आ रहे थे। अंत में उसने सोचा कि मम्मी द्वारा किए गए रहस्योद्घाटन को भुला देना ही उचित है। उसी में सभी की भलाई थी।
उसने संतोष से गहरी साँस ली, जो किएक आनंद वाली कराह के रूप मेंबाहर् निकली। उसका बदन वीणा की तरह बज रहा था - हर तार में अब झंकार निकलने लगी थी। उसके रोम रोम में आनंद की लहर दौड़ रही थी। उधर जय पूरे आनंद और उत्साह से मीना के नीचे से धक्के लगाता जा रहा था। वो भी समझ रहा था कि मीना को ज्यादा आनंद मिल रहा था।
कोईएक घटिका तक दोनों का खेल चला। तब जा कर जय मीना के अंदर ही स्खलित हो गया। उस टाइमतक मीना भीएक ज़ोरदार और दीर्घकालिक चरम आनंद की प्राप्ति कर चुकी थी।
संतुष्ट हो कर मीना जय के उपरि ही ढेर हो गई। दोनों ने कुछ टाइमअपनी अपनी साँसें संयत करीं।
फिर जय ने ही चुप्पी तोड़ी, “मज़ा आया मेरी राजकुमारी जी?”
“उम्म्म म्मम.” मीना के गले से संतोष भरा कूजन निकला।
“चित्रा को कोई ले गया है क्या रात में?” कुछ देर पश्चात जय ने दोबारा पूछा।
“लगता तो ऐसा ही है, हुकुम!”
“हम्म.”
कुछ देर दोनों वैसे ही पलंग पर पड़े रहे। मीना जय के ऊपर, उसको प्रेम से अपने आलिंगन में लिए हुए।
“उठें अब?” अंत में मीना ने ही कहा।
“हाँ. अब तो उठना ही पड़ेगा!” जय ने हँसते हुए कहा, “सुबह का कोटा पूरा. दोपहर, और रात में दोबारा से करेंगे!”
“हा हा हा हा.” उसकी शरारत भरी बात पर मीना खिलखिला कर हँस दी।
*
कैसे भूल जाऊँ? गिन चुन कर कोई दर्जन भर नियमित पाठक हैं मेरे! ऐसे ख़ास लोगों को कैसे भूल जाऊँ!
सौ प्रतिशत सही बात है संजू भाई जी! नहीं नहीं, श्राप के अंत का रहस्य कुछ देर पश्चात खुलेगा।
बहुत ज्यादा शुक्रिया भाई साहब! आप और रिकी भाई ज्यादा ही करीब आ गए थेइसे कहानी के रहस्य के। संग बने रहें।एक दो दिनों में अगला अपडेट आ जायेगा
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snidgha12 को आप भुला नहीं पा रहे। हा हा हा । अद्भुत है अपने पाठकों के प्रति आपका लगाव।
मैं उन महान निबंध लेखक का अंश मात्र भी नहीं। सर्वथा भिन्न। मात्र देवनागरी प्रेम ही हमेंएक करता है।
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