The Rajsharma Sex Story of अनमोल अहसास (Romance Special)
डॉली जैसे ही सीढ़ियों की तरफ बढ़ी, राज पीछे से बोला, " सुनो संतोष!! सिर्फ बेबाक बोलने से कामयाबी हासिल हो जाती तो हर बड़बोला कामयाब हो जाता! काम के पहले ही दिन खिड़की से कूदकर कायरों की तरह भागने वाले यदि ये सोचते हैं किइसे तरीके की हरकतों से भविष्य में वो बढ़िया मुकाम हासिल कर लेंगे तो बता दूँ की ऐसे लोगो से कामयाबी कोसो दूर रहती है।"
डॉली के कदम ठिठक गए और वो कदम पीछे लेकर राज के सामने खड़ी हुई तो संतोष हट गया।
राज ने पत्रिका खोलनी चाही तो डॉली ने पत्रिका पकड़ते हुए उसके चेहरे पर नजर जमाते हुए कहा, " जानकर बढ़िया लगा की आप मुझसे डायरेक्ट बात कहने से डरते हैं! इतना डर.!!"
राज की नजरें उपरि उठी और उसने पत्रिका सोफे पर पटकते हुए कहा, " ज्यादा ज्यादा बोल रही हो आप! ज्यादा
ज्यादा.!! मेरा नियंत्रण खोने पर मजबूर मत करो मुझे।"
" उफ्फ! माहौल में ज्यादा गर्मी हो गयी, है न.??" डॉली ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, " मैं आपके संतोष को कह देती हूं की आपको ठंडा पिला दे क्योंकि अब मैं इधर से कहीं नही जा रही हूँ और आपको हर दिन अपनी नियंत्रण शक्ति को बढ़ाना होगा, वो क्या है न कि ताने मारना आपको पसन्द होगा लेकिन मैं सामने से छलनी करूँगी आपको! गुड लक.!"
" गुड लककी जरूरत आपको है!" राज ने भी गुस्से से अकड़ते हुए कहा।
दादी ने जब उसे उपरि आते देखा तो वह झट से लेट गयी और बदन को ढीला छोड़ दिया, डॉली ने कमरे में जाते हुएउन्को आवाज दी लेकिन वो नही बोली तो डॉली चिंतित हो उठी।
"मिसेज शर्मा .! मिसेज शर्मा .!!" डॉली ने उनके चेहरे को थपथपाते हुए कहा।
वो नही हिली और कोई प्रतिक्रिया नही दी तो डॉली ने दरवाजे सेबाहर् निकल कर आवाज दी, " मिस्टर एरोगेंट,
उपरि आइये!"
राज इसे नाम से तिलमिला गया और चुपचाप सोफे पर बैठा रहा तो वह दनदनाती हुई नीचे आयी और पत्रिका छीनते हुए बोली, "इसे पत्रिका में ऐसा कुछ नही जो आपकी दादी से ज्यादा महत्वपूर्ण हो, आपकी दादी बेहोश हैं!"
राज ने खड़े होकर दो - दो सीढियां कूदकर जाते हुए कहा, "दादी ठीक थी, जरूर आपने ही कुछ किया होगा!"
डॉली भी उसके पीछे पीछे उपरि चली आयी औऱ कमरे में आकर दादी के पास खड़ी हो गयी। राज बेचैनी सेउन्को उठाने की कोशिश कर रहा था तो डॉली को उसका ये संवेदनशील पक्ष नजर आया, एसी के बावजूद भी चेहरे पर छलकी पसीने की बूंदे और तनाव से भरा उसका चेहरा देखकर डॉली को बढ़िया लगा।
" खड़ी होकर क्या कर रही हो? डॉक्टर को फोन करो!" राज ने झल्लाते हुए कहा तो डॉली शांति से बोली, " आपकी तरह पैनिक होने से दादी ठीक नही हो जाएंगी, संतोष ने कर दिया है फोन!"
राज को बेचैन देखकर डॉली ने खिड़कियाँ खोल दी तो
वह गुस्से से खड़ा होता हुआ बोला, " कहां से आई हो की इतना भी नही मालूम की जब एसी चालू हो तो खिड़कियाँ बन्द करके रखते हैं!"
"जहाँ से भी आई हूँ, आपकी तरह दिखावे में यकीन नही रखती! इतना तो पक्का है किउन्को घुटन की वजह से ही चक्कर आया होगा! फ्रेश हवा मिलते ही वो होश में आ जाएंगी।" डॉली ने चुपचाप खिड़कियों को खोलकर पर्दे हटाते हुए कहा।
"अपने ये सस्ते नुस्खे इधर मत आजमाओ!" राज ने चिढ़कर कहा लेकिन डॉली ने एसी बन्द कर दिया और पंखा ऑन करते हुए पानी का गिलास ले लायी दोबारा राज की तरफ बढ़ाते हुए बोली, " लीजिये।"
राज ने गिलास को हाथ मारकर फर्श पर गिरा दिया तो डॉली ने जबड़े कस लिए और उसे आग्नेय नेत्रों से देखकर धीरे-धीरे से दांत जमाते हुए कहा, "अब तो आप मांगो भी तो पानी न दूँ कभी!"
तभी दादी ने आंखे खोल दी तो डॉली मुस्कुराते हुए बोली, " आप ठीक तो है न मिसेज शर्मा ?"
" हाँ! ठीक हूँ, अचानक ही घुटन महसूस होने लगी थी दोबारा पता ही नही चला की कब बेसुध हो गयी?" सुभद्रा देवी ने बैठने की कोशिश करते हुए कहा तो राज नेउन्को थामते हुए कहा, " आपने आवाज क्यों नही दी , घुटन हो रही थी तो ! अभी यदि ये नही आती तो.!!" राज ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया और शांत हो गया तो सुभद्रा देवी मुस्कुराते हुए बोली, " तेरी शादी देखे बिना मुझे कुछ नही होने वाला!"
" मेरा तो वैसे भी शादी करने का कोई इरादा नही लेकिन यदि आपके जीने की यही शर्त है तो मैं कभी शादी न करूँ!" राज ने दृढ़ता से कहा।
तभी डॉक्टर ने दरवाजे पर कदम रखा तो डॉली वहाँ से हट गयी और नीचे जाकर सूप गर्म करने लगी।
राज परेशान सा खड़ा दोनो को देख रहा था तभी दादी ने डॉक्टर को इशारा किया , डॉक्टर पीछे मुड़ते हुए बोला, " मिस्टर शर्मा आपबाहर् जाइये, प्लीज!"
" ठीक है!" राज ने कहा औरबाहर् निकल गया तो सुभद्रा देवी डॉक्टर से बोली, " अरे हटाइये न ये सब! कुछ नही हुआ मुझे! मुझे तो बसएक ही रोग है और वो है राज की शादी देखने का! सभी ड्रामा था!"
डॉक्टर सिंह बोले, " और मैंउन्को क्या जबाब दूँगा की आपको उनकी शादी का रोग है?"
सुभद्रा देवी मुस्कुरा उठी और बोली, " कह देना की बीपी लो हो गया था। बेवकूफ लड़का इतना भी नही समझता कीइसे उम्र में केयरटेकर नही लायी जाती, दुल्हन लायी जाती है।"
डॉक्टर सिंह मुस्कुरा उठे और खड़े होते हुए बोले, " ठीक है! चलता हूँ फिर।"
सुभद्रा देवी ने स्वीकृति दे दी तो वहबाहर् निकल गए और राज से बात करने लगे।
डॉली उपरि आयी और बोली, " मिसेज शर्मा ! ये गरमा गर्म सूप हाजिर है, पी लीजिये और दोबारा देखिए आपमे कितनी ऊर्जा आ जायेगी।"
सुभद्रा देवी ने सूप पीते हुए कहा, " ज्यादा प्यारी हो तुम, लड्डू की तरह।"
"आपको लग रही हूँ प्यारी, लोगो को तो जीरो फिगर की आदत हैउन्को मैं मोटी लगती हूँ!"
"धत्त.! तुम तो सीप से निकली मोती हो! हमेशा ऐसे ही खुश रहो, जीती रहो।"
" नही! नही.!! हमेशा नही जीना मुझे, जब तक हाथ पांव स्वयं से चला सकूँ, तब तक ही, दूसरो पर बोझ बनकर जीना भी कोई जीना है।"
" ठीक कह रही हो!" सुभद्रा देवी उदासी से बोली तो डॉली को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो माफी मांगने को हुई, तभी राज की आवाज गूंज उठी, "इसे तरह की बात कहने की हिम्मत भी कैसे हुई? आप ये जताना चाहती है की दादी आप पर सहारे के लिए निर्भर हैं! या दोबारा ये की अब उनका जीना बेकार है!"
" राज .!' सुभद्रा देवी ने उसे आँख दिखाते हुए कहा, तब तक डॉली भी बोल उठी, " मैंने जिंदगी के बारे में अपनी राय रखी थी, उसे दूसरी दिशा में मोड़करइसे तरह फालतू चीखने की जरूरत नही है!"
" आप मुझसेइसे तरह बात नही कर सकती!" राज ने नाराजगी से कहा तो डॉली भी जल्दी बोली, " स्वयं को सम्मान चाहिए तो सामने वाले को भी सम्मान देना सीखिए. और यदि नही दे सकते तो मुझसे बात ही मत कीजिये!"
सुभद्रा देवी ने अब राज को मुंह खोलते देखा तो बीच मे पड़ते हुए बोली, " अरे!! शांत हो जाओ! पहली मुलाकत औऱ इतनी लड़ाई।"
"किसने कहा की पहली.!"एक संग कहते कहते दोनो ही रुक गए तो सुभद्रा देवीउन्को देखने लगी और बोली," पहले भी मिल चुके हो तुम दोनो?"
राज उनके पास बैठते हुए बोला, "हम ये कहना चाह रहे थे की कुछ लोगो से पहली बार मिलकर भी ऐसा लगता है जैसे कितनी बार मिल चुके हों, कुछ वैसा ही! है न.?" कहते हुए राज ने डॉली की तरफ देखा तो डॉली ने मुस्कुरा कर सिर हिला दिया और मन ही मन बोली, " ये नागफनी तो बात बदलने की कला में ज्यादा माहिर है, सतर्क रहना होगा, कौन जाने की किस बात का क्या मतलब निकाले।"
उधर सुभद्रा देवी तो राज के मुँह से 'हम' सुनकर एकटक उसका मुंह ही देखे जा रही थी, पहली बार उसने किसी के संग स्वयं को जोड़कर हम शब्द का इस्तेमाल किया था।
" क्या हुआ? ऐसे एकटक क्यों देख रही हैं? राज ने पूछा
तो दादी ने नजर हटाते हुए कहा, "कुछ नही! ज्यादा प्यारी लड़की है,, दुल्हन न सही, केयरटेकर ही सही!"
राज ने उसेएक नजर देखा और मन ही मन कहा, "प्यारी और ये! भूकंप ही न आ जाये ये सुनकर!"
डॉली अपने घर चली आयी तो जस्सी गरमा गर्म नूडल देते हुए बोली, " खा ले! कैसा रहा आज का दिन? कैसे लोग है वो? और जिसकी तू केयरटेकर है वो कैसी है, खडूस या स्वीट!!"
डॉली ने नूडल निगलते हुए कहा, "साँस तो ले ले। इतने सवाल?"
जैस्मीन ने मुस्कुराते हुए कहा, " अभी तोएक प्रश्न बाकी ही है , इजाजत हो तो वो भी पूछ लूँ!"
डॉली ने उसकी तरफ निगाह उठायी तो वह बोली, " मिला था क्या वो भी? फ्लाइट वाला लड़का?"
डॉली ने गहरी साँस भरी और बोली, " हाँ! भगवान ने कसम खायी हुई है कि मेरी जिंदगी सीधी तो चलने नही देंगे।"
"ओये होय सच्ची! कहाँ मिला , बता न!" जैस्मीन ने मुस्कुराते हुए पूछा।
डॉली नूडल खाते हुए बोली, " स्वयं ही समझ जा!"
"एक मिनट! मतलब तू जहां गयी थी वो.!'
" हम्म! वो उसका ही घर है। इमेजिन कर सकती है की कितना अजीब लगा होगा मुझे उसके सामने!"
" हाय , क्या मुलाकात हुई होगी।"
" ज्यादा ही वाहियात! उसे देखकर मैं खिड़की से भागने ही जा रही थी और वो सामने था, ज्यादा गुरुर है उसमें, पर मैं भी किसी को जज्बातों देने वालो में से तो हूँ नही! धो दिया अच्छे से उसे, अब ज्यादा बनने की कोशिश नही करेगा। अमीर होगा अपने लिए, मुझे टिप देने चला था, मुझे! शुक्र करे की उसकी पैसे की गड्डी को बस उड़ाया, फाड़ा नही!"
जैस्मीन ने उसके सिर पर हल्के से चपत जमाते हुए कहा, "शुक्र तू कर की तेरेइसे बर्ताव के पश्चात भी तू सही सलामत इधर है , कितनी बार कहा है की शांत रहना सीख! किसी से मत उलझा कर , वो अमीर पुरुष है कुछ भी कर सकता है।"
" कुछ कर के तो देखे , जान न ले लूँ उसकी! वैसे कुछ नही करेगा क्योंकि आज की मुलाकात में ही इतना तो समझ गया होगा की उसके इशारों पर नाचने वाली लड़कियों की तरह नही हूँ मै।"
"क्या किया है तूने वहाँ?"
" कुछ ज्यादा नही! उसने कलाई पकड़ ली थी तो मुझे भी मजबूरी में उसकी गिरेबान पर हाथ डालना पड़ा!"
जैस्मीन अपने सीने पर हाथ रखते हुए बोली, " हे भगवान तेरा दिमाग खराब हो गया है! तू काम पर मत जा कल से, कोई और नौकरी ढूंढ दूँगी तेरे लिए।"
"ओए , शांति से बैठी रह! सामने नही आई थी तब तक भाग भी जाती लेकिन अब तो मैं कहीं नही हटने वाली! वैसे भी उस नागफनी से क्या लेना देना है? उसकी दादी की केयरटेकर हूँ न, और वो ज्यादा प्यारी है।"
" नागफनी! सिरिअसली.!!" जस्सी हँसने लगी और बोली, " वो भी तो घर मे आएगा जाएगा न!"
" तो आये जाए न, उसे रोका किसने है , सिर्फ मुझे न छेड़े वरना आज तो सिर्फ धमकी दी है बाल उखाड़ने की, अगली दफा उखाड़ कर बालतोड़ न करा दिया तो कहना।"
" बाल! मतलब?" जस्सी ने हैरानी से कहा।
" शर्ट के दो नही, तीन बटन खोलकर हीरो बन रहा था, मतलब ऐसे प्रदर्शन की क्या जरूरत है? ढंग से बटन बन्द करके भी तो रह सकता था न!"
"तू सीने के बाल .! पागल हो गयी है! क्या सोच रहा होगा वो? ऐसे कौन सी लड़की बात करती है?"
"सोचता तब जब मैं उसके सीने की तारीफ में कसीदे पढ़ती, या उससे चिपटती! मैंने ऐसा कुछ नही किया कि वो मेरे बारे में सोचे, ज्यादा अड़ियल है वो। गारंटी लेती हूं , कुछ नही सोचेगा वो!"
" कैसे?"
" क्योंकि हजारों तारो सितारों के बीच टिमटिमाता एकमात्र चांद जो है वो , ऐसे मेंएक धूमकेतु जैसी लड़की को क्यों
सोचेगा? शांत रह, सभी ठीक है।"
" अशांति लाने वाले काम करती है और कहती है की शांत रह! ये तो सोचा कर की विनाश है तेरे आगे.!"
" विनाश है मेरे आगे इसलिए तो ऐसे काम करती हूँ ताकि कोई भी मुझे पसन्द न करे , मैं चाहती हूँ की जिंदगी में आने वाला हर लड़का नापसंद करे मुझे।"
" सभी कुछ चाहने के मुताबिक होता तो दोबारा बात ही क्या रहती?" जैस्मीन ने कहा, दोबारा मन ही मन बोली, " तू नही जानती की तेरे इसी रवैये के चलते वो तेरी तरफ और ज्यादा खिंचेगा। जहाँ तक मुझे लगता है वो तेरी तरफ मोहित हो भी चुका है! उस रोज उसे बदला ही लेना था तो वो चलती गाड़ी से नीचे फेंक देता या दोबारा कुछ बद्तमीजी करता लेकिन उसने गाड़ी से उतरने तक नही दिया क्योंकि शायद वो कुछ समय का संग चाहता था।"
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डॉली बर्तन धोने चली गयी थी दोबारा उबासियां लेते हुए ही बातें करने लगी, बात करते करते ही झपकियाँ ले रही थी और अब कुछ ही पलों में वो नींद की आगोश में थी, जैस्मीन ने उसकी तरफ देखा और दोबारा मुस्कुराते हर अपनी स्थान पर लेटकर मन ही मन बोली, "लड़का अड़ियल है , गुस्सैल है
लेकिन जाने क्यों मुझे वो पुरुष बुरा नही लग रहा।"
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अगले दिन डॉली काम पर गयी तो किचन में सुभद्रा देवी के लिए खाना तैयार करने लगी, राज नीचे उतरा और नाश्ते की चेयर पर आ बैठा तो संतोष खाना परोसने लगा तभी डॉली भी किचन सेबाहर् आते हुए बोली, " गुड मॉर्निंग मिसेज शर्मा ! ये रहा आपका नाश्ता!"
राज नेएक नजर नाश्ते की तरफ देखा दोबारा अपना नाश्ता करने लगा। रात भर राज के जहन में डॉली की कही बातें घूम रही थी, और वो आज पूरी तरह बिजनेस सूट पहने बैठा था।
दादी ने जब देखा की दोनो नेएक दूसरे की तरफ देखा तक नही तो वह अचानक ही खाँसने लगी, डॉली ने फटाफट उनकी पीठ सहलाने के लिए हाथ उनकी पीठ पर रखा तो वहीं राज ने भी चेयर से उठकरएक हाथ उनकी पीठ पर हाथ रखा और दूसरे से पानी का गिलास उनके सामने कर दिया, " पानी लीजिये!"
अनजाने में ही डॉली के हाथ के उपरि राज का हाथ था
तो राज ने फौरन अपना हाथ हटा लिया और डॉली ने भी अपने हाथ को अपनी तरफ खींच लिया। इसी दौरान दोनो की नजरएक दूसरे के चेहरे से गुजरी तो फौरन अपनी अपनी नजर हटाते हुए वे अलग अलग दिशाओ में देखने लगे।
सुभद्रा देवी मन ही मन मुस्काई और बोली, " पहली बार मुझे लग रहा है कि मेरी मेहनत संपन्न हो जाएगी, राज इसे लड़की को आज नही तो कल पसन्द करने ही लगेगा।"
राज ने खाना शुरुआत ही किया तब तक डॉली मन ही मन बोली, "केयरटेकर मैं हूँ न, इसे हाथ रखने की क्या जरूरत थी? हुँह ! दोबारा कहेगा की मुझ पर डोरे डाल रही है, मौके तलाश रही है! नवाबजादा।"
राज को तभी खाँसी उठ गई तो दादी ने डॉली से कहा, " पानी दो बेटा!"
डॉली ने मुस्कुराते हुए कहा, "उन्को पानी नही चाहिए , वो तो थूक गटक कर काम चला लेंगे।"
राज को ये सुनते ही डॉली का थूकना दोबारा याद आ गया और वो उसकी तरफ घूरने लगा तो डॉली खड़ी होते हुए बोली, " मैं अपना फोन आपके कमरे में ही भूल आयी हूँ,
शायद रिंग हो रहा है!"
उसके जाते ही राज भी उठ खड़ा हुआ और फाइल लेने के बहाने उपरि चला गया! डॉली जैसे ही दादी के कमरे सेबाहर् निकलने को हुई राज ने उसकी बाँह को पकड़ते हुए स्वयं के सामने खींच लिया।
"कल की बात को सिर्फ धमकी समझ लिया क्या? बाँह छोड़िये।" डॉली ने गुस्से से कहा।
राज ने बाँह छोड़े बिना ही कहा, " थूक से काम चला लेंगे से मतलब क्या है तुम्हारा? काम करती हो तो तमीज से बात करना सीखो, वरना बद्तमीजी करने में मुझे भी ज्यादा आनंद आता है। हम्म।" कहते हुए राज ने अपने दूसरे हाथ को उसकी गर्दन के बेहद करीब दीवार पर रख दिया।
डॉली नेएक नजर उसके हाथ की तरफ देखा दोबारा बोली, "बेशक! आपसे ऐसी ही उम्मीद थी मुझे, लेकिन आपको बता दूं की मुझसे जरूरत से ज्यादा नजदीकी अच्छी नही आपके लिए।'
" और मुझसे ज्यादा उलझना आपके लिए भी ज्यादा सी बाधाएं खड़ी कर सकता है।" राज ने सख्ती से कहने के
संग ही उसकी नरम बाँह छोड़ दी और जाने को मुड़ा तो गिरते गिरते बचा क्योंकि डॉली ने अड़ंगा लगा दिया था और दोबारा गिरने से पहले ही उसकी बाँह को थाम भी लिया था।
राज ने उसकी तरफएक कदम बढ़ाते हुए गुस्से से कहा, " ये हरकत करके.!'
" साबित क्या करना चाहती हूँ.? यही न!" डॉली ने उसकी बात काटते हुए कहा
राज भयंकर नाराजी का जज्बातों आंखों में लिए उसे देख रहा था तभी डॉली बोल उठी, "सिर्फ इतना की आप मुझे धमकाना बन्द कर दीजिए क्योंकि जितना परेशान आप मुझे करेंगे , मैं उससे दोगुना करूँगी।"
राज ने उसकी निग़ाहों में देखते हुए कहा, " अपनी ये बात याद रखना, हो सकता है की किसी दिन सामने से मौका दूँ आपको दुगना करने का और आप न कर पाओ!"
डॉली असमंजस में उसे देखती रह गयी और वह पलटकर चला गया।
दादी मुस्कुरा उठी और बोली, " ज्यादा देर लगी फाइल लेने
में!"
राज हल्का सा रुका और बोला, " मिल नही रही थी दादी, और जो आप सोच रही हैं वैसा नही है, मुझे सेटल करने के ख्वाबदेख्ना छोड़कर अपनी सेहत का ध्यान रखिये! वो लड़की फोन पर बात कर रही है किसी से!"
" लेकिन उसके बारे में तो मैंने पूछा ही नही!!" सुभद्रा देवी शरारत से बोली तो राज चलते हुए बोला, " वो ज्यादा ही बेअदब लड़की है, ऐसा कोई प्रश्न ही नही उठता।"
"इसे नागफनी की तो.! मुझे बेअदब कहा, स्वयं की हरकतें इसे नजर नही आती क्या?" सीढ़ियों से उतरती डॉली मन ही मन बोली।
दादी मन ही मन बोली, " अदब वाली लड़कियां भी तुम्हे कब भायी हैं?"
डॉली ने नीचे आकर दादी के बर्तन हटा दिए औरउन्को ड्राइंग रूम में लिवा ले गयी।
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कुछ रोज इसी तरह बीत गए, दादी और डॉली के बीच घनिष्ठता बढ़ गयी थी ।
एक शाम सुभद्रा देवी ने उसे करीब बैठाते हुए पूछा----
" अपने बारे में कुछ बताओ बच्ची!"
" मेरे बारे में कुछ ज्यादा नही है जानने को, मैं अपनी सहेली जैस्मीन के संग रहती हूँ, परिवार मे भाई और भाभी है।"
" शादी को लेकर क्या सोचती हो?"
" शादी के बारे में ख्याल ज्यादा बुरे है, तन्हा रहना बढ़िया है।"
" ऐसा नही होता, यदि तुम्हारे मम्मी पापा यही सोचते हो क्या तुम दुनिया में आती?"
"मिसेज राठौर , यही तो मैं सुनना चाहती थी! शादी सिर्फइसलिये होती है किएक नया सदस्य दुनिया मे आ सके। उससे ज्यादा कुछ नही!"
"इतनी नकारात्मक सोच!" सुभद्रा देवी ने हैरानी से कहा।
" सोच का क्या है मिसेज शर्मा , सोच को भी तो दुनिया ही प्रभावित करती है।"
" क्या तुम्हारे भाई भाभी के बीच कुछ!"
"अरे नही दादी! भगवान न करे,इसलिये तो उनसे अलग रहती हूं ताकि मेरी वजह से कभी कोई मनमुटाव न हो दोनो के बीच! मुझे शादी नही करनी तो उनकी शादीशुदा जिंदगी को क्यों प्रभावित करूँ?"
"दादी ही कहो, बढ़िया लग रहा है! मिसेज शर्मा बड़ा अजनबी सा जज्बातों देता है।"
डॉली खिड़की के पास आ खड़ी हुई थी ,चेहरे पर तनाव था।
सुभद्रा देवी ने उसे देखते हुए कहा, " किसी से प्रेम किया था क्या?"
डॉली ने अब उनकी तरफ देखा तो वह बोली, " घबराओ मत! बाल सफेद हो चुके हैं तो चेहरा देखकर कुछ अंदाजा तो लग ही जाता है। और मैं वो डरावनी दादी नही हूँ, मैं खुले
विचार रखती हूं, मुझसे तुम बात कर सकती हो।"
" माफी चाहूँगी दादी! लेकिन मैं आजइसे बारे में कोई और बात नही करना चाहती, जब मुझे आपके संग सहज महसूस होगा तब जरूर बताऊँगी आपको सभी कुछ।"
"जैसा तुम्हे ठीक लगे!" सुभद्रा देवी ने कहा।
डॉली ने पानी पीते हुए कहा, " आप बताइए न की आपकी शादी के दिनों में क्या होता था?"
सुभद्रा देवी का चेहराइसे उम्र में भी जगमगा उठा और वो बोली, " हम तो छिप छिपकरएक दूसरे को देखते थे।"
" शादी से पहले.?" डॉली ने हैरानी से कहा तो सुभद्रा देवी ने प्रेम से झड़कते हुए कहा, " धत्त!! शादी के बाद!"
" क्यों? छिपना क्यों?"
"मेरी सासु मम्मी को मैं सरकार जी कहती थी, ज्यादा कड़क थी! उनके सामने क्या मजाल की हम दोनो संग खड़े भी हो जाये तोइसलिये मौका मिलता तो नजर बचाकर छिप छिपकर आंखों से ही छू लेते थेएक दूसरे को!"
" वाओ.!!' डॉली के मुंह से खुशी से निकल गया!
" क्या वाओ.? वो हमारे जमाने की बात थी!'
" अब के जमाने मे भी ऐसा खूबसूरत प्रेम होता तो मोहब्बत की खूबसूरती बनी रहती, कौन बताए की सिर्फ जिस्मो को छूना प्रेम नही , बल्कि आंखों से रूह छू लेना प्रेम है।"
सुभद्रा देवी मुस्कुराते हुए उसे देखने लगी और बोली, " प्रेम को गहराई से समझती हो, दोबारा डरती क्यों हो?"
" क्योंकि ये आपका जमाना नही है न,इसे जमाने मे ऐसे प्रेम को ढूंढना नामुमकिन है।"
" हर जमाने मे हर तरह के लोग होते हैं! अब मुझे ही देख लो , मैंने अपने बेटे बहु पर कोई कड़ाई नही की थी ,उन्को आजादी दी थी लेकिन अभी भी कुछ सरकार जी मिल जाएंगी, जो संग देखकर नाक भौं सिकोड़ लेती हैं।"
" तो ये बताइये की आप सरकार जी से बचकर नागफनी के पापा को कैसे ले आयी दुनिया मे?"
" नागफनी.!!" सुभद्रा देवी हैरानी से बोली तो डॉली बात संभालते हुए बोली, " अरे हमारे मोहल्ले में ज्यादा साँप निकल आते है तो नागफनी लगाने का सोच रही थी ताकि सांप न आये , तो बस मुँह से भी नागफनी ही निकल गया। वैसे मेरा मतलब मिस्टर शर्मा से था।"
सुभद्रा देवी मुस्कुराते हुए बोली, " ये सभी साख तो अब है न बेटा! पहले संयुक्त परिवार होते थे और कमाने वाला कोई एक! ऐसे में सरकार जी को लगता था की बच्चे अभी हो गए तो खर्चे और बढ़ जाएंगे, इसी चक्कर मे वो अपना तख्त मेरे दरवाजे के सामने ही लगा कर सोती थी।
अब दूर कब तक रहे कोई तो बसएक रोज मेरे पतिदेव ने हिम्मत की और तख्त के नीचे से ही सपाटा मारकर आ गए कमरे में।"
डॉली पेट पकड़कर हँसने लगी और बोली, " फिर!"
" दोबारा क्या? रोज का हो गया यही मिलना मिलना, वो इसी तरह आते और इसी तरह भोर होते होते चले जाते।"
" आपकी सरकार जी को पता नही चला!!'
" हाँ ! पहले की तरह बुझे चेहरे की स्थान अब हमारे खिले
खिले चेहरे देखकरउन्को शक होने लगा तो उन्होंने पूछताछ की, हम दोनों स्वच्छ मुकर गए तो वो बोली, " बढ़िया ठीक है , अभी छिपा रहे हो न! जब बालक होने को होगा ,उस दिन खबर लूँगी।"
डॉली अब हँस हँस कर लोट पोट हो गयी, और बोली, " फिर!"
"फिर वही हुआ, अभिनव होने को हुआ तो सरकार जी को पता लग गया, खूब खरी खोटी सुनाई उन्होंने! मैं तो रोने लगी थी लेकिन तुम्हारे दादाजी उस दिन मेरे संग खड़े हो गए और दोबारा अभिनवइसे दुनिया मे आया लेकिन उसके पश्चात हम दोनों की हिम्मत नही हुई की और बाते सुन सके तो बस अभिनव को ही पाल लिया।"
"बस हाँ! अब मैं जरा आराम कर लूँ! ज्यादा बोल ली न आज!" कहते हुए दादी ने करवट ले ली तो डॉली अब अपने बाल सेट करते हुए उठ खड़ी हुई तभी उसकी नजर राज पर पड़ी , जो दरवाजे के पास ही खड़ा था।
डॉली ने उससे नजर हटाकर आगे बढ़ना चाहा तो राज ने उसकी कलाई पकड़ ली, डॉली ने जैसे ही कलाई झटकी! राज ने निग़ाह चेहरे से नीचे उसकी गर्दन पर की और कुछ कदम आगे बढ़ गया तो डॉली को ख्याल आया की हड़बड़ी
में दुपट्टा तो लिया ही नही! वह जैसे ही मुड़ी राज ने दुपट्टा उठाकर सामने कर दिया तो डॉली ने झट से उसके हाथ से लेकर ओढ़ते हुए इधर उधर देखा तो राज ने उसे अपनी सागर सी गहरी आंखों से देखते हुए पूछा , " इंटेंस लुक देने वाली लड़की अचानक झेंपने का नाटक क्यों कर रही है?"
डॉली बिना कोई जवाब दिए किचन में चली गयी तो राज मुस्कुरा उठा औऱ बोला, " मुझे तो मालूम ही नही था की ये उल्कापिंड धमाके करना छोड़कर शरमा भी सकती है!"
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रात में डॉली खाना देकर निकलते हुए बोली, "दादी मैं जा रही हूँ!"
" एक्सक्यूज मी, ये मिसेज शर्मा से दादी कब बन गयी? ज्यादा रिश्ते बनाने की जरूरत नही है!" राज ने अपनी प्लेट सीधी करते हुए कहा।
"जब दो लोग बात कर रहे हो तो बीच मे बोलने वाले को क्या कहते हैं ये तो पता ही होगा! खैर चलती हूँ अब!" डॉली ने सपाट लहजे में कहा।
" बीच मे बोलना जरूरी हो तो बोला ही जायेगा!इसे तरह से
इधर मैं आपका घुलना मिलना खामोशी से देख नही सकता!" राज ने कहा।
" हाँ कैसे देखेंगे, जलन जो होती होगी !"
" क्यों होगी जलन , हो क्या तुम? हम्म.!!" राज ने तल्ख लहजे में कहा।
" मैं वो हूँ जो आपको एहमियत नही देती और हर वक़्त मुझ पर आपकी नाराजगी का कारण भी बस इतना ही है।"
राज बिना किसी जज्बातों के आराम से खाते हुए बोला, " इतनी लड़कियाँ मुझे अहमियत देती है कि किसीएक के अहमियत न देने से मुझे कोई फर्क नही पड़ता! स्वयं को मेरी जिंदगी में इतना अहम मानने का वहम मत पालो। ज्यादा ख्वाहिश पालने से परहेज करो।"
डॉली ने जाने के लिये कदम बढ़ा दिया तो राज बोला, " जाते जातेएक बात ध्यान से सुनती जाओ.!! हर बात पर टेढ़ा जवाब देना जरूरी नही होता, सब्र से काम लेने का मतलब ये नही की मैं हद से गुजरना नही जानता।"
डॉली ने रुककर उसकी तरफ मुड़कर देखा तो राज ने भी
निगाह उपरि करकेएक समय को उसकी तरफ देखा दोबारा निगाह खाने की तरफ मोड़ ली।
डॉली बाहर् निकल गयी तो राज खाने पर से उठ गया और कमरे में चला आया और खिड़की पर खड़े होते हुए सोचा, "समझ नही आया की ये आज झेंपी क्यों थी, क्या कुछ गलत किया था मैंने?"
डॉली रूम पर आयी तो विनाश खुश होते हुए बोला, " मम्मा! देखो आज मैं आपका इंतजार कर रहा था, रोज तो नींद आ जाती थी।"
"मेरा बच्चा !" कहते हुए विनाश को गोद मे लेकर वह उसकी दिन भर की बातें सुनने लगी।
जैस्मीन चुपचाप दोनो को देखती रही , डॉली ने कुछ देर पश्चात उसे सुला दिया तो जैस्मीन खाना लाते हुए बोली, " काम पर सभी ठीक है।"
" हां!" डॉली ने शांति से कहा।
"फिर चेहरे की चमक को क्या हुआ?"
"कुछ नही! थकान है यार! मैं ऑफिस की नौकरी ढूंढ लूँ क्या? पूरा दिन वहाँ रहना मुझे बढ़िया नही लगता!"
" हम्म! क्या हो गया अचानक.?"
" कुछ खास नही! मेरी आदत तो तू जानती ही है, मुझे मस्ती मजाक करने और लोगो से घुलने मिलने में वक़्त नही लगता! वहाँ सभी मुझसे घुल मिल गए है, और मुझे लगता है की वो नागफनीइसे बात से चिढ़ रहा है , उसे लग रहा है कि मैं गलत नीयत से घर वालो से ज्यादा घुल मिल रही हूँ!"
" उसे लग रहा है न, तो तुझे क्यों फर्क पड़ रहा है? तू तो जानती है न कि तेरी नीयत में कोई खोट नही!!"
" फर्क उसके गलत सोचने से नही पड़ रहा, उसकी स्थान कोई भी होता तो इतना ही फर्क पड़ता! मुझे कोईइसे नजरिए से देखे, ये मुझे बर्दाश्त नही होता।"
" चिल न यार.!! स्वयं ही तो कहती है कि कोई कुछ भी सोचे तू जैसी है वैसी ही रहेगी , दोबारा भी तू ज्यादा प्रभावित होती है लोगो के नजरिये से। तेरा नजरिया सही है न , तो भाड़ में जाये लोगो का नजरिया!"
" भाड़ में ही है वो नागफनी मेरे लिए, लेकिन मैं पूरा दिन उसके इधर बिताती हूँ, अपने बच्चे से दूर रहती हूं और बदले में मुझे शक मिले तो मुझे नही करनी ऐसी सड़ी हुई नौकरी! किसी कम्पनी में नौकरी करूँगी तो कम से कम कोई शक तो नही करेगा न!"
" शक नही करेंगे लेकिन वो नजरे जो तुझे टटोलेंगी और तुझेएक मौके के रूप में देखेंगी उसका क्या.? इधर तुझसे कभी किसी ने ये जानने की कोशिश नही की कि तुम कहाँ से आती हो, कहाँ जाती हो? क्या करती हो? तुम्हारे काम से खुश है, सैलरी भी वक़्त पर दे रहे हैं! क्यों मचल रही है दूसरी नौकरी के चक्कर मे? मक्कार लोगों से भरी हुई है दुनिया।"
डॉली ने पलके बन्द करके स्वयं को शांत किया तो जैस्मीन उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, " जरा जरा सी बात पर हर्ट होने से कुछ नही होगा, सम्भाल स्वयं को!"
" संभाल ही तो रही हूँ! मैं बेबाक, बहादुर बनकर जी रही हूँ , लेकिन मैं जानती हूँ कि ये सिर्फएक भ्रम है! मैं अब भी उतनी ही संवेदनशील हूँ , जितनी पहले थी! मैं कमजोर नही कहलाना चाहती लेकिन बहादुर बनने के चक्कर मे ज्यादा कुछ झेलना पड़ता है! सच मे कभी कभी उसकी कड़वी बात सुनकर जी करता है कि ज्यादा गालियां दूँ उसे, बहुत.!!
बिना खता के सजा भुगते जा रही हूँ, नफरत होती है आदमियों से; उनकी बातों से और इधर तक की उनके बढ़िया होने के ढोंग से भी!"
"ढोंग नही है डॉली, सभी बुरे नही होते!"
" तो दोबारा मुझे क्यों नही मिला बढ़िया आदमी?"
"इस क्यों का जवाब नही है लेकिन इतना जानती हूँ की तय वक़्त पर ही कुछ भी मिलता है! हो सकता है की वो वक़्त सही न हो!"
" यदि वो सही वक्त नही था तो आगे मैं नही होने दूँगी! नही दूँगी किसी को कभी भी मौका!"
" मौका देना मेरे तुम्हारे बस की बात नही, कदम चले या न चले! लेकिन मन ऐसे रिश्ते की तरफ चल ही पड़ता है जहाँ सुकून मिलता है। रिश्ते को समाज स्वीकार करे न करे , लेकिन मन तो स्वीकार करेगा।"
"मेरे पास मन ही नही बचा, हम क्या चाहते है ये बात समाज नही देखता लेकिन समाज क्या चाहता है ये हमें क्योंदेख्ना पड़ता है?"
"क्योंकि रवायत है! लेकिन मन इन सबसे परे है , वो सिर्फ अपना सुकून देखता है।"
" लोग सिर्फ सुकून छीन सकते हैं , दे नही सकते!"
" क्या पता मिल जाये कोई सुकून देने वाला! सुकून देकर दीवानी बना ले जो तुझे!"
" दीवानी, औऱ मैं.!! ये दिल धड़कना भूल चुका है, किसी को देखकर मेरा दिल धड़कता ही नही! कुछ महसूस नही होता! सभी बस चलते फिरते पुतले से नजर आते है, अहसास मुझे छू भी नही सकते अब। मैं कुछ अरसा पहले मर चुकी हूँ, अब तो बस जिस्म भाग दौड़ कर रहा है।'
जैस्मीन ने उससे दूर हटकर अपने पलंग पर लेटते हुये मन ही मन प्रार्थना की, " मत करो भगवान ऐसा! इसे नाउम्मीदी में बुझने से रोक लो! राज शर्मा का दिल बेकरार कर दो इसके लिए, इसे धड़कन में बसाने को मजबूर कर दो! कुछ ऐसा कर दो की वो वजह ढूँढने लगे इसके पास रहने को! इसके मन मे रुके आँसुओं को हटाकर प्रेम की थाली परोस दो इसे!
ये कसम खाये बैठी है न, इश्क़ में न पड़ने की.! लेकिन आप
चाह दो तो दोबारा क्या नामुमकिन है.??"
उधर डॉली विनाश को अपनी बाँहों के दरम्यान लेकर सो गयी।
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अगले दिन वो काम पर गयी तो सुभद्रा देवी बोली, " कल की उसकी बात का बुरा लगा है न!"
" आप इन बातों में मत पड़े मिसेज शर्मा ! उनका तो हमेशा का है और मैं बहुत हूँ उनको बुरा महसूस करवाने के लिए!"
" ये तो सही कह रही हो! उसे ज्यादा बुरा लगता है तुम्हारी बातों का। मुँह से कुछ नही कहता लेकिन उसका चेहरा बताता है की वह जहर के घूँट पीकर रह जाता है।"
" बढ़िया हैं न! आपकोएक राज की बात बताऊँ , मैं चाहती हूँ की वो मुझे बातें सुनाए! अपनी देह पर लोगो की घूरती नजरें सहने से बढ़िया है न उनकी कड़वी बाते सुन लेना! और दोबारा मैं कौन सा सहती हूँ? मैं भी तो सुना ही देती हूं!"
डॉली उन्को जूस देकर चली गयी और किचन में खाना बनाने
आयी तभी संतोष की स्थान किचन में राज को देखकर चौंक गई, " आप यहाँ!"
राज बिना कोई जवाब दिए , बिना उसकी तरफ देखे चुपचाप पोहा बनाता रहा तो डॉली भी साइड वाले बर्नर पर दादी के लिए खाना बनाने लगी!
राज के वहाँ होने के कारण उसका ध्यान भटक रहा था कि कहीं कुछ गलती न हो जाये और इसी चक्कर मे गर्म बर्तन नंगे हाथो से उठाकर अपना हाथ जला बैठी।
गर्म होने के कारण बर्तन उसके हाथ से छूटने ही वाला था तभी राज ने बर्तन पकड़कर संभालते हुए स्लैब पर रखते हुए कहा, " इतना खाना बर्बाद होता न अभी अभी!"
डॉली उसका मुंह देखती रह गयी और अपने हाथों पर फूँक मारते हुए बेसिन की तरफ बढ़ गयी और टँकी के नीचे हथेली करते हुए बोली, "अक्सर लोग जब तरक्की कर लेते हैं तो उनके अंदर की संवेदना मर जाती है, इंसानियत खो जाती है। कहा जाता है न की लक्ष्मी आती है तो घमंड संग लाती है! सही कहा है।
मेरा हाथ जल गया और आपको उसकी कोई परवाह न होकर ये फिक्र सता रही है कि खाना गिरकर बर्बाद हो गया होता! इंसान ही हो, या बर्फ की सिल्ली.!!"
राज ने पोहा टेस्ट करते हुए कहा, "आशाएं या ख्वाहिशें जब टूटती है तो मंजर खतरनाक होता है, जिंदगी दिशाहीन हो जाती है। स्वयं के जख्म स्वयं सहना पहुँचना चाहिए।"
डॉली पानी की टँकी के नीचे हथेली किये हुए थी तभी राज ने उसके ठीक पीछे से हाथ बढ़ाकर टँकी बन्द करते हुए कहा, " वैसे मुझे ये जानकर बहुत हैरानी हुई की आपको मुझसे ये उम्मीद थी की मैं आपकी जली हुई हथेलियों की फिक्र करूँगा.!!"
"कोई उम्मीद नही थी लेकिन इंसानियत नाम की कोई चीज होती है!" डॉली ने बिफरते हुए कहा।
"हुँह.!! मैं किसी को इतनी तवज्जो नही देता की इंसानियत के बहाने कोई सपने सजाने के हक ले ले।"
डॉली गुस्से से बोली, " अरे भाड़ में गए आपके सपने.! मैं थूकती भी नही ऐसे सपनो पर! मैं तो आपके बारे में जो सोचती हूँ वो तो बस.!! अरे छोड़ो.!!"
राज ने उसके सामने खड़े होते हुए आवाज में बल का पुट लाते हुए कहा, " क्यों छोड़ो.? बताओ , क्या सोचती हो मुझे देखकर?"
".की जी भर कर गालियां दूँ!" डॉली नेउसकी निग़ाहों में देखते हुए बेहद सहजता से कहा।
राज ने मन ही मन कहा, "और यदि मैं कहूँ की इतनी ही प्रबल ख्वाहिश मुझमे ये उठती है की तुम मेरे प्रेम में पड़ जाओ तो.!!"
जबाब के इंतज़ार में डॉली की नजरों को स्वयं पर टिका देखकर वह प्रत्यक्ष में बोला, " और वो गालियाँ कौन सी है.?"
" साले, कुत्ते, कमीने.!!" डॉली दाँत जमाते हुए फ्लो में बोलने लगी तो वह बात काटकर बोला, "एक्सक्यूज़ मी.! अपनी हद मत लाँघो!"
" आपने पूछा तो मैंने बता दिया, ऐसे प्रतिक्रिया क्यों दे रहे हैं आप? कौन सा आपको गालियां दे रही हूँ? सिर्फ बता ही तो रही हूँ।"
राज ने पोहा उठाकरबाहर् निकलना चाहा तभी डॉली ने पीछे से टोका, " मुझे सिर्फ इतना बताइये की टँकी बन्द करने का क्या मतलब निकालूं, आपकी टँकी का पानी भी बरबाद
हो रहा है क्या?"
राज ने फ्रिज खोलकर अपने लिए पानी की बोतल निकाली और बर्फ की कटोरी स्लैब पर उसके सामने रखते हुए बोला, " आपकी नजर में यदि मैं बर्फ की सिल्ली हूँ तो सुझाव दूँगा की आप भी ऐसी बन जाइये, इससे ज्यादा मुझे कुछ नही कहना।"
" कितना बुरा इंसान है ये, मेरा हाथ जल गया और इसके चेहरे पर इंसानियत के नाते जरा सी शिकन तक नही आई!"
दोबारा वह बर्फ की तरफ देखते हुए बोली, " ऐसी बन जाऊँ? हुँह!! ऐसाएक ही इंसान बहुत है धरती पर, मेरे को ऐसा नही बनना लेकिन इसको काम में लाना आता है।"
वह बर्फ से हथेलियों की सिकाई करने लगी तो वही राज टेबल पर पोहा रखकर चम्मच भर भरकर खाने लगाराज कुछ देर पश्चात पोहा खाकर आया और इधर उधर देखते हुए बोला, " मैं गलती से बर्फ का बाउल यही रखकर भूल गया था, फ्रिज में रख दिया क्या?"
डॉली उसेएक नजर देखकर निगाह हटाते हुए बोली, " रखा नही बल्कि उससे अपनी हथेलियों की सिकाई कर ली!"
" मौके का फायदा उठाना बखूबी आता है न आपको, अवसरवादी!" राज व्यंग्य से बोलता हुआ हटने लगा तो डॉली कटकर रह गयी, वह बड़बड़ाई, " रत्ती भर भी इंसानियत नही।"
" जो लोगएक बार इंसानियत को बद्तमीजी का नाम दे दे, दोबारा उनसे इंसानियत नही फाइटिंग ही करना भला है।" राज नेबाहर् निकलते निकलते बिना मुड़े कहा।
" निष्ठुर, निर्मोही, निर्दयी और भी पता नही क्या क्या है ये आदमी, मतलब बर्फ का बाउल ढूंढने आया था, न की हाल चाल पूछने, स्वयं को जाने क्या समझता है? यही हरकते रही तो ये कुंवारा ही रहेगा जिंदगी भर! लड़की इससे शादी करने से बढ़िया पत्थर में सिर मार लेगी।"
राज कमरे में जाकर अपनी हथेली पर बरनोल लगा रहा था, गर्म बर्तन सम्भालने में उसकी भी हथेली जल गई थी लेकिन उसने जरा भी जाहिर नही होने दिया था।
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