The Rajsharma Sex Story of अनमोल अहसास (Romance Special)
डॉली दादी के संग बैठी बाते बना रही थी,
"आपको पता है मेरी पहली फ्लाइट में मुझे इतना दुष्ट पुरुष मिला था की क्या बताऊँ!!"
राज भी तभी वहाँ चला आया, इतवार का दिन था औऱ अभी काम करने का मन नही था।
" आओ आओ बेटा बैठो.!" उन्होंने राज से कहा दोबारा
डॉली की तरफ देखते हुए बोली, " अरे तुम क्यों रुक गयी, बताओ.! मैं सुनना चाहती हूँ की कैसे कैसे लोग हैइसे नई जेनेरेशन में?"
"और कैसे? महा घमंडी और अहंकारी लोग भरे पड़े हैं!" डॉली ने कहा
"हम्म ! आपकी तरह .! जैसी खुद, वैसी सोच!" राज ने मन ही मन कहा।
" ऐसा क्या हुआ?" सुभद्रा देवी ने कहा।
" होना क्या है? मतलब जरा सी गलतफहमी हो गई मुझे तो उस पुरुष ने बदला लेने के लिए मुझे गाड़ी मे लॉक कर दिया , उतरने नही दिया।"
" क्या? कितने घटिया इंसान हैइसे दुनिया में! कोई ऐसा कैसे कर सकता है?" सुभद्रा देवी घृणा से बोली तो राज दाँत जमाते हुए डॉली की तरफ देखने लगा।
" होते है मिसेज शर्मा ! और बकायदा कहते भी है की वह बदला लेने के लिए ऐसा कर रहे है।"
" ऐसे कैसे.?" सुभद्रा देवी ने कहना चाहा तभी राज ने बात काटते हुए कहा, " तो परेशानी क्या है दादी? सामने से कह रहा है न, पीठ पीछे चाल तो नही चल रहा।"
" मतलब आपकी नजर में वो सही है।" डॉली ने झट से कहा।
" हाँ सही है!" कहते हुए राज ने भी उसकी तरफ निगाह उठायी।
" राज .!! तुम ऐसे कब से हो गए?" दादी ने उसकी ओर देखते हुए अचरज से कहा।
"जब से ये इधर आयी है तबसे!"
"मतलब?"
" मतलब, आप इसकी बातों से इतनी प्रभावित कैसे हो जाती हैं, कोई भी आदमी दूसरे का किया हुआ बताता है लेकिन अपना नही! क्या सम्भव नही की इन्होंने ही उसे ऐसा करने को उकसाया हो!'
" मेरा दिमाग नही खराब की मैं स्वयं कहूँगी किसी से की मुझे
गाड़ी में लॉक करो!"
"ओ, प्लीज हां! सारी दुनिया आपके कहे मुताबिक ही तो नही चलेगी।"
"अब बस ! मौका मिला नही की बहस शुरू!" सुभद्रा देवी ने डपटते हुए कहा।
" कौन था, कैसा था?" उन्होंने डॉली की तरफ मुड़ते हुए कहा।
राज अब व्यंग्य से मुस्कुराते हुए डॉली की तरफ देखने लगे, आंखों में चेलेंज का जज्बातों था की अब बताओ जरा!"
डॉली ने भी उस जज्बातों को पहचान लिया और लम्बी मुस्कुराहट चेहरे पर लाते हुए बोली, " ये सामने बैठे है न!"
राज की मुस्कुराहट अब गायब हो गयी और वो सीधा होकर बैठते हुए उसे हैरानी से देखने लगा तो दादी हैरानी से बोली, " राज तुम!!'
डॉली ने राज की तरफ देखते हुए भौंहे उछाली जैसे पूछ रही हो, " आनंद आया?"
राज तो बस जबड़े भींचे उसकी तरफ देख रहा था कि तभी सुभद्रा देवी बोली, " उसको धमकाने के अंदाज में क्यों घूर रहा है, मेरी तरफ़ देख!"
"मैं.!" राज कुछ कहने को हुआ तभी डॉली बात काटते हुए बोल उठी, " आप क्यों सकपका रहे हैं मिस्टर शर्मा ? और मिसेज राठौर , आप भी न, मैं तो ये कहने जा रही थी की ये सामने बैठे हैं न , इनकी तरह ही कुछ कुछ लुक था उसका!"
"अच्छा! दोबारा कोई बात नहीं.! वरना मुझे ज्यादा दुख हुआ था ये सोचकर की वो राज था।" सुभद्रा देवी ने राहत की सांस लेते हुए कहा, डॉली नेउन्को पानी दिया तो वह पीकर लेटते हुए बोली, "ये तो नही था वो, लेकिन ये भी कम नही है! शादी के लिए लड़कियाँ दिखा दिखाकर थक गई हूँ, सुनता ही नही!! कोई पसन्द ही नही आती!"
राज वहां से उठकर चला गया तो डॉली ने मन मे कहा, "नवाबों से नखरे तो हैं ही! समझते भी स्वयं को नवाब ही है,पस्न्द कैसे आएगी कोई?"
सुभद्रा देवी ने उसे न बोलते देखकर कहा, " तुमसे भी तो
सीधे मुँह बात नही करता वरना तुम्हे कहती कि उसे मनाने की कोशिश करो, शादी करने को समझाओ, अब कब शादी करेगा? बूढ़ा हो जाएगा तब!!"
" कितने वर्ष के होंगे ये?" डॉली ने कहा तो दादी बोली, " बत्तीस का हो गया।"
डॉली ने अब कुछ नही कहा, कुछ देर और बाते करकेबाहर् निकल आयी, तभी राज सामने आ खड़ा हुआ तो डॉली ने उससे कटकर जाना चाहा लेकिन राज ने जल्दी कहा, " हमारे बीच की बात हम तक ही रहे तो बेहतर है! मेरी दादी के सामने कुछ भी कहने की कोशिश मत करना! ये तो बिल्कुल मत सोचना की डर रहा हूं .!! मेरी हर प्रतिक्रिया आपके किये धरे का परिणाम होती है तो यदि मेरी प्रतिक्रिया झेलने की शक्ति नही है तो कोई ऐसा काम भी मत किया कीजिये , जिस पर मैं प्रतिक्रिया दूँ, मैं अपनी दादी के लिए बेहद फिक्रमंद हूँ।"
" तो रहिए फिक्रमंद , मैं कौन सा उनको बीमार करने को प्रतिबद्ध हूँ? मैं भी उनका ख्याल ही रखती हूं।
"इसे तरह से!"
" ऐसा कुछ नही था कि आपकी दादी की तबियत खराब हो जाती!"
" मैं तुमसे ज्यादा अच्छे से अपनी दादी को जानता हूँ।"
"ओह! तो यदि इतना ही जानते हैं तो क्यों नही करते शादी? वो तो ज्यादा इसी चिंता में घुली जा रही हैं की.!"
"एक मिनट.!" राज ने उसकी बात काटते हुए कहा, "इसे बारे में आगे से आप मुझसे कोई बात नही करेंगी , ये मेरी जिंदगी है और उसमें घुसपैठ करने की इजाजत किसी को नही! आपको दादी के लिए इधर लाया गया है और आप उन तक ही सीमित रहेंगी।"
"फिक्र न करें , मैं उन तक ही सीमित हूँ, आपसे तो मेरा कोई रिश्ता कभी बनने भी नही वाला।" डॉली ने चिढ़कर कहा।
"अच्छा है.!! लेकिन दोबारा भीजान्ना चाहूँगा की ऐसी कौन सी काबिलियत आप मे है, जो मुझमें नही! इतना गुमान किस बात का है आपको?"
" गुमान तो आपको भी ज्यादा है न?"
"अब तक तो था लेकिन तुम्हारे आने के पश्चात से गुमान नही बल्कि शक होने लगा है स्वयं पर।" राज ने मन ही मन कहा।
राज को जवाब न देते देखकर वह आगे बोली, ". और रही बात काबिलियत की तो बस इतना कहना है कि यदि तुम हुकूमत करने के आदी हो तो मैं बगावत करने की आदी हूँ।"
राज ने व्यंग्य से कहा "निस्संदेह! बातें बनाने की काबिलियत है आप मे.! लेकिन मुझ में इतनी काबिलियत है हर दूसरी लड़की मेरे प्रेम में पड़ जाती है, मेरी मुहब्बत के सैलाब में बहने को अधीर हैं लाखो लड़कियाँ।'
"जो तुम्हारी मोहब्बत के सैलाब में बहना चाहती है ,वो जाने कौन होगी। मुझे तो तुम्हारी तरफदेख्ना तक पसन्द नही.! अधीरता और वो भी तुम्हारे लिए.हुँह.!!!"
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" वो तो कदम न बहक जाएइसलिये बचती फिरती हो।" कहते हुए राज ने अपनी नजरो और बातों से उसे टटोला।
डॉली बिना किसी जज्बातों के बोली, " च्च! च्च! मैं तवज्जो नही दे रही तो ज्यादा परेशानी हो रही है न?"
" स्वयं को इतनी अहमियत दे कैसे लेती हो? हैसियत ही क्या है मेरे सामने , ये बात जहन में बिठा लो कि तुम्हारी तवज्जो मेरे लिए कोई मायने नही रखती।" राज ने नाराजगी से कहा।
अब डॉली हंसते हुए बोली, "खुद पर इतना भी आत्म मुग्ध होना बढ़िया नही जनाब! और ये जो सैलाब वगैरह की बातें कर रहे हैं न! आपको मैं सच्चाई से अवगत कराती हूँ, जिसे आप जानते हुए भी झुठला रहे हैं।
सच्चाई ये है कि वो हर लड़की जो आपके आस पास मंडरा रही है , आपके स्टेटस की वजह से है, न की आपकी मुहब्बत की वजह से!!
वो लोग और होंगे जो तुम्हारे स्टेटस की वजह से तुम्हारे फेवर में बोले लेकिन मेरे लिए मेरा तेवर मायने रखता है, किसी का फेवर नही!!"
राज ने नाखुशी से उसकी तरफ नजर उठायी तो वो आगे बोली, " और गुमान करने के लिए हैसियत ही बहुत नही होती, सच्ची मुहब्बत करकेदेख्ना कभी! तब समझ आएगा की हैसियत वाले आकर्षण और सच्ची वाली मुहब्बत में क्या अंतर है!!"
राज गम्भीरता से बोला, "मुझे मोहब्बत का नाम भीपस्न्द नही! करना तो दूर की बात है, क्योंकि मोहब्बत सामने वाले के सामने झुकने को मजबूर कर देती है, और मुझे झुकनापस्न्द नही!!
मैं मजबूरी से ज्यादा मजबूती पर यकीन रखता हूँ; कमजोर बनने का कोई इरादा नही। वैसे जब मोहब्बत के इतने कसीदे पढ़ रही हैं तो आप ही क्यों नही कर लेती मुहब्बत?"
" नँगे पाँव अंगारों पर चलना मंजूर है मुझे , लेकिन मोहब्बत करना मंजूर नही!" डॉली ने फौरन तल्खी से कहा तो उसे देखते हुए राज के मन मे जिज्ञासा उठी कीइसे तरह क्यों कहा इसने?
डॉली तब तक बोल उठी, " मोहब्बत की चर्चा करना ही बेकार है , पर आपकी हैसियत वाली बात पर कुछ कहना है।
आप अमीर लोग हम जैसे मामूली कमाने - खाने वालों को अपने पांव की धूल समझते क्यों हो? हमारे आत्मसम्मान को जब चाहे जिसके सामने कुचल दो जैसे ये कोई मामूली बात है , लेकिन जब बात आपके आत्मसम्मान की हो तो फुफकारना शुरुआत हो जाते हो, आपके पास भावनाएं और आत्मसम्मान है तो हमारे पास भी है! हमे भगवान ने आपके पैरों के नीचे रहने के लिए नही बनाया है।"
" तो उपरि उठो, रोका किसने है!" राज ने भी फौरन कहा।
" उपरि उठने कहाँ देते हो आप लोग? जिस दिन उपरि उठना चाहेंगे, तरह तरह की चालों से हमारी राह में रोड़े अटकाने लगोगे।"
" ओह! तो आप चाहती हैं कि तश्तरी में परोस कर आपको कामयाबी दे दे कोई! ख्याली पुलाव ज्यादा बढ़िया है।"
" मैं ऐसा कुछ नही चाहती।"
" तो आप चाहती क्या है?"
" मैं बस चैन से जीना और खाना चाहती हूँ, बेवजह किसी से उलझना नही चाहती!"
"ये तो मैं मान ही नही सकता! हर वक़्त मुझसे उलझने के बावजूद कह रही हो की उलझना नही चाहती!"
" मैं नही उलझती , आप उकसाते हैं!"
" मेरे उकसाने से क्या क्या करने का इरादा है?"
"मतलब ?"
" छोड़ो!'
" क्यों?"
" क्योंकि मैंने कहा , और हाँ! चैन से जीना खाना ही तुम्हारे लिए जिंदगी है, कोई इच्छा नही, कोई महत्वकांक्षा नही!! तो मुझे ये कहने में कोई संकोच नही की आप मे और जानवर में कोई फर्क नही!"
" मिस्टर शर्मा !! तमीज से बात कीजिये, और जानवर औऱ इंसान की बात आप तो कीजिये मत! संवेदना शून्य पुरुष के मुंह से ये बात अच्छी नही लगती!"
राज अब हल्का सा मुस्कुरा उठा और बोला, " उफ्फ! ये तड़प!! मैंने आपकी परवाह नही की, ये बात आपको इतनी खल क्यों रही है? इतना अंतरंग सम्बन्ध तो नही मेरा और आपका.!!"
डॉली ने सिर को दाएं बाएं हिलाते हुए कहा, "उफ्फ! ये आपके सपने.! तड़प औऱ मुझे!! वो भी आपकी संवेदना की!! कैसे कैसे ख्वाब देख रहे हैं आप? हँसी आती है
आपकीइसे सोच पर!"
"इतनी ही हँसी आती है तो सुबह से ये नामकरण किस खुशी में किये जा रही है? कभी बर्फ की सिल्ली, कभी संवेदनाशून्य आदमी!! क्यों.??"
" जो नजर आएगा वो तो कहूँगी ही! अपनी दादी के अलावा आप किसी के लिए कुछ महसूस नही करते!"
" तो क्यों करूँ? परिवार के लिए ही संवेदनशील हुआ जाता है और वो मैं हूँ! अब और कोई भी आर्ग्युमेंट नही करनी मुझे।"
" तो मत कीजिए, कौन सा मैं आयी थी आपके पास आर्ग्युमेंट करने, आपने स्वयं मेरा रास्ता रोका औऱ तब से आर्ग्युमेंट किये जा रहे हैं। मैं आपसे बात करने को मरी नही जा रही!"
" तो क्या मैं मरा जा रहा हूँ?"
" मैंने तो नही कहा ऐसा!"
" मतलब तो वही था!"
" खड़े होकर निकालते रहिए मतलब , मुझे और भी काम है।" कहते हुए डॉली चल दी तो राज का धीरज छूट गया और उसने उसकी कलाई पकड़कर सामने खींचते हुए कहा, "इसे तरह से दो टूक लहजे में मुझसे बात मत किया करो! आज तक किसी लड़की ने मुझसेइसे लहजे में बात नही की!"
डॉली ने अपने सिर से उसकी छाती में मारते हुए कहा," और मुझसेइसे तरह जबरदस्ती करने की कोशिश आप मत किया करें, कलाई न हो गयी , क्रिकेट बॉल हो गयी कि जब चाहा लपक लिया।"
राज का हाथ स्वयं के सीने पर चल गया और डॉली की कलाई छूट गयी तो वह बेहद गुस्से से उसे घूरने लगा।
डॉली भी उसकी जलती निग़ाहों में देखते हुए बोली, " मैं परेशान होने में नही बल्कि परेशान करने में यकीन रखती हूँ,एक बार सह लो तो लोग दस्तूर ही बना लेते है जुल्म करने का.!! लेकिन नागफनी जैसे लोगो को फनफना कर भागने पर मजबूर करना मुझे बखूबी आता है; और हाँ! कड़वी चीजे अक्सर फायदेमंद होती हैं, बाकी लड़कियों की तरह चाशनी में घुली बातों की उम्मीद मुझसे मत कीजियेगा, क्योंकि मैं मैं हूँ! किसी और से मेरी तुलना मुझे पसन्द
नही!!"
दोनो अपनी अपनी दिशाओं में चल दिए तो दादी थककर पलंग पर बैठते हुए बोली, " हाय मेरे रब्बा.!! प्रेम के फूल खिले तो खिले कैसे.? दोनो ही तूफान बनकर सारे अहसास उड़ा देते है।"
राज इधर वहां चक्कर काटते हुए सोचे जा रहा था, " स्वयं को समझती क्या है ये लड़की? इतनी अकड़ क्यों है इसमें? मुझे नजरअंदाज करती है, मुझे ये अहसास कराती है कि मैं आम हूँ और वो खास!
मेरे लुक से, मेरे चार्म से , मेरी हैसियत से अप्रभावित कैसे रह लेती है, कैसे? ऐसा एटिट्यूड मैने पहले कभी किसी लड़की में नही देखा.!! तुम्हे मैं अपने पीछे पागल करके छोडूंगा मिस डॉली !एक दिन तुम मेरी न हो गयी तो कहना!! जैसे आज मैं तुम्हारे बारे में सोचकर बावला हुआ जा रहा हूँ , 'क्यों' का जवाब ढूंढ रहा हूँ , वैसेएक रोज तुम मेरे बारे मे सोचोगी, चाहे कहीं भी रहो , किसी के भी संग रहो , सोच में सिर्फ मैं रहूँगा! सिर्फ मैं.!! तुम्हारे दिल मे अपने लिए तलब न जगा दी तो कहना!!"
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शाम को राज बाहर् जाने के लिए गाड़ी में बैठा तो सुभद्रा देवी ने आवाज देते हुए कहा, " बेटा , उसी तरफ जा रहे हो तो डॉली को छोड़ देना रास्ते मे!"
" नही! नही.!!! आप जाइये! मैं ऑटो से चली जाऊंगी।" डॉली ने फटाफट कहा।
" क्यों बेटा, जाओ न साथ! इतनी औपचारिकता मत निभाया करो।" दादी बोली।
डॉली दोबारा भी इंकार में सिर हिलाते हुए बोली, " औपचारिक रिश्ता ही है मिसेज शर्मा ! बड़े लोगो से मेरा कोई मेल नही!!'
" दादी मेंरे पास इतना वक़्त नही की किसी का इंतज़ार करूँ, यदि इन्हें जाना है कह दीजिये की नखरे दिखाना छोड़कर चुपचाप बैठ जाये।"
"जाओ न!"
"नही! अब तो मुझे जाना ही नही! देख लिया न इनका लहजा, ये ऐसे बोल रहे है कि स्वच्छ साफ एहसान वाला लहजा समझ में आ रहा है।"
राज ने अब तीखी नजरो से उसकी तरफ देखा तो दादी बोली, " क्यों हो तुम दोनो ऐसे?"
"मैं बैठूंगी तो ऑटो को जितना किराया देती हूं उतना इन्हें भी दूँगी!" डॉली ने कहा तो राज ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा, " भाड़ में जाओ! अब तो यदि मुझे कभी बिठाना भी पड़ गया तो बीच रास्ते मे उतार दूँगा।"
वह नाराजगी से गाड़ी स्टार्ट करके चला गया तो डॉली भी कुछ देर पश्चात ऑटो से चली गयी।
सुभद्रा देवी ने अब अंदर जाते हुए धीरे-धीरे से कहा, "इश्क से तुम दोनों अपना दामन चाहे कितना ही बचा लो, उसे जब तुम्हे रंगना होगा तब रंग ही देगा अपने रंग में।"
डॉली घर पहुंची तो विनाश और जैस्मीन पहले ही तैयार थे, तीनो संग मे मार्किट निकल गए, आइसक्रीम खाते हुए तीनो ज्यादा खुश थे, मस्ती करते वह इधर उधर घूम रहे थे तो मार्केट में ही मौजूद राज की नजर उन पर पड़ी।
विनाश को खिलखिलाकर हंसते हुए देखा तो उसकी क्यूट सी स्माइल देखकर सहज ही उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ
गयी। राज उसे देखते हुए मन ही मन सोचने लगा, " इसी बच्चे के संग ये उस रोज मैन्स सैलून में थी, है कौन ये बच्चा? ये तो सिंदूर भी नही लगाती, किसी तरह से शादीशुदा नही लगती, संग वाली लड़की भी कुँवारी ही लग रही है! शायद किसी फैमिली मेम्बर का होगा।"
डॉली विनाश के संग दूसरी तरफ चली गयी तो राज भी अपने मित्र के संग बात करने लगा।
वीकेंड प्रोग्राम से खुश विनाश थककर रात में जल्दी सो गया तो डॉली के आंखे बंद करते ही जस्सी ने टोका, " सुन न!!"
"बोल!"
"मुझे ऐसा क्यों लगा कि मार्किट में तुझे वो नागफ़नी नजर आया था!"
" ये मैं कैसे बताऊँ, तुझे लगा तो तू जान!"
" झूठी, सच सच बोल! वो दिखा था न?"
"हम्म!"
" हम्म! तो मुझे दिखाती न, तू तो कुछ बताती भी नही है!"
"ऐसा कौन सा सेलिब्रिटी है वो, जो बताती!"
"आज भी कुछ हुआ क्या?"
" हम्म! वो घर पर हो और कुछ न हो तो रिकार्ड न टूट जाये।"
"अब क्या हो गया है?"
" उसकी मौजूदगी के कारण हाथ जल गया मेरा!"
" हैं.!! इतना हॉट है वो??" जस्सी ने मुस्कुराते हुए कहा तो डॉली ने तकिया फेंक कर उसे मारते हुए कहा, " बर्तन हॉट था , न की वो!"
"दिखा , कहाँ जला?" जैस्मीन ने डॉली के बेड पर बैठते हुए कहा।
"ठीक है यार अब, जरा सी लालिमा रह गयी ! वो तो उसके गलती से बर्फ का बाउल भूल जाने के कारण बर्फ से सिकाई
कर ली वरना फफोले ही पड़ जाते हथेलियों पर।"
"गलती से.!!" जैस्मीन ने असमंजस से कहा।
" हम्म! पानी ले रहा था फ्रिज से और संग ही मुझसे बहस भी कर रहा था, इसी चक्कर मे शायद बर्फबाहर् रख कर भूल गया। वरना इतना निर्दयी है की टोंटी बन्द कर दी थी जलनखट्टू ने!"
"तुझे उसमें बुराई ढूंढने की आदत हो गयी है डॉली,इसलिये तुझे उसकी अच्छाई नजर नही आती! वो भूला नही था, बल्कि घमंड के कारण सीधे सीधे न देकर तेरे लिए ही रखा होगा।"
" रहने दे! उसके बारे में अच्छी अच्छी बातें करके तू अच्छाई का भी अपमान कर रही है। मैं स्वयं से नही बोल रही हूं कुछ भी, उसने ही कहा की वो गलती से भूल गया था बर्फ का बाउल, अजीब है!
और तो और.!! जानती है जब गर्म होने के कारण बर्तन मेरे हाथ से छूट कर गिरने वाला था तो बर्तन उसने ही संभालकर स्लैब पर रखा , लेकिन उसे मेरे जलने की फिक्र नही थी, कहता है की यदि बर्तन गिर जाता तो उतना खाना बर्बाद हो जाता न!! पता नही कैसा संवेदनहीन पुरुष है,
इंसानियत तो उसे छूकर भी नही गुजरी।"
" और तुझे!!"
" क्या मतलब?"
"जब उसने बर्तन संभाला तो उसके स्वयं के हाथ भी जले होंगे! लेकिन तेरी बातों से ये स्वच्छ जाहिर है कि उसने माथे पर शिकन तक नही आने दी होगी, तभी तो तेरा ध्यान उसकी तरफ नही गया!!
और बर्तन संभालकर उसने तेरे संग बड़ी दुर्घटना होने से रोक दिया, गर्म खाना और बर्तन नीचे गिरता तो तू और भी ज्यादा जलती, समझी! उसने सभी संभाल लिया और क्रेडिट भी नही लिया, उल्टे ऐसी हरकतें कर दी कि तू उसे गलत समझकर गालियाँ सुना रही है।"
" अच्छा! तो अब समझ आया , वो बर्फ का बाउल रखकर भूला नह था बल्कि उसने अपने हाथ की सिकाई करने के लिए बर्फ निकाला होगा।"
" तुझसे तो बात ही करना बेकार है, तू वही समझेगी जो जानना चाहती है! गुड नाईट, मैं अब सोऊंगी।"
"मैं वहीं समझ रही हूँ , जो वो है! गुड नाईट!"
दोनो ने करवट फेर ली तो जैस्मीन मन ही मन बोली, " मेरा शक सही था, वो पुरुष खराब नही है! खराब बनने का नाटक कर रहा है! वो नही चाहता कि डॉली उसे बढ़िया समझे, लेकिन क्यों? या दोबारा और कोई बात है जो मैं भी नही पकड़ पा रही!"
डॉली चुपचाप विनाश के बालों को सहलाते हुए सो गई।
कुछ रोज बादएक दिन डॉली को "चाइल्ड डे केयर सेंटर" से फोन आया कि विनाश की तबियत खराब है तो डॉली बेचैन हो गयी, वो सुभद्रा देवी से बहाना बनाकर घर चली गयी।
पूरा दिन वो बीमार विनाश की तीमारदारी में लगी रही, शाम को उसका बुखार हल्का हुआ तो वह डॉली की गोद मे सो गया।इसे बीच कई बार सुभद्रा देवी ने फोन किया, राज ने भी दादी के कहने परएक - दो बार फोन किया लेकिन डॉली ने फोन को स्विच ऑफ कर दिया था।
राज बुरी तरह चिढ़ा बैठा था, " काम के बीच से गयी है तो फोन स्विच ऑफ कर कैसे सकती है? ज्यादा लापरवाह इंसान है ये लड़की!"
सुभद्रा देवी जल्दी बोली, " राज ,इसे तरह नही कहते हैं! उसकी फ्रेंड की तबियत ठीक नही थी, फैमिली के नाम पर सिर्फ वही है डॉली के पास! अपने भाई भाभी से अलग रहती है वो!! वो नही चाहती होगी कि कोई डिस्टर्ब करे तो ऑफ कर दिया होगा फोन!"
"इतना वक़्त किसके पास है कि उसे डिस्टर्ब करने के लिए फोन करता फिरेगा, और कोई काम नही है क्या?" कहते हुए राज वहाँ से अपने कमरे में चला गया।
सुभद्रा देवी उसके जाने के पश्चात स्वयं से ही बोली, "केयरटेकर आने से पहले भी तो मैं रह ही रही थी न, दोबारा हॉफ डे करके डॉली के चले जाने से ये इतना नाराज क्यों हो रहा है? पहली बार तो वो गयी है, जेनुइन परेशानी है, वरना इससे पहले तो उसने कभी कोई बहाना तक नही बनाया।"
डॉली एक दिन पश्चात आयी तो सज्जन पोंछा लगा कर तभी हटा था, फर्श गीला ही था लेकिन डॉली का ध्यान विनाश पर होने की वजह से वह फिसल गई! राज चाहता तो उसे बचा सकता था लेकिन वह मुट्ठी कसकर, दांत भींचते हुए दूसरी तरफ घूम गया।
डॉली गिरने से तो बाल बाल बच गयी लेकिन हाथ से बैग छूटकर गिर पड़ा था, वह बैठकर सामान उठाने लगी तो राज एक तरफ को चला गया औऱ फाइल को सोफे पर पटकते हुए बोला, " अब तक समझ नही पा रहा था लेकिन अब समझ आया , ये आँखो को खटकती हीइसलिये है क्योंकि मन इसमें अटकता है, फिसलती वो है और मन मेरा नही संभल पाता है।
क्या हो रहा है ये सब? इसे काम से हटाना होगा, कोई दूसरी केयर टेकर ले आऊंगा दादी के लिए लेकिन ये जो भी हो रहा है उसे रोकना ही होगा! नही चाहिए ये सभी अहसास.!इसे वक्त तो बहाना भी है हटाने का! यही सही मौका है!!"
राज ने फोन मिलाया और बोला, " हैलो! विशाल मुझे कोई और केयर टेकर चाहिए दादी के लिए, जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी ढूंढ कर इन्फॉर्म करो मुझे।"
डॉली अपने काम मे लग गयी और दादी को नाश्ता कराने के पश्चात जब उनके पास आकर बैठी तो सुभद्रा देवी ने पूछा, " सभी ठीक है न?"
" हाँ! पहले से बेहतर है।" डॉली ने सहजता से कहा।
" पर तुम बेहतर नही हो! चेहरा दो दिन में ही इतना उतर गया! भरी भरी सी खिली खिली लड़की दो दिन में ही मुरझा गयी।"
" ऐसा नही है मिसेज शर्मा ! नींद पूरी न होने की वजह से चेहरा ऐसा नजर आ रहा है वरना मैं बिल्कुल वैसी की वैसी हूँ।"
" लो तुम जूस पी लो आज मेरा मन भी नही है!"
" मिसेज शर्मा ! ये सभी मत किया कीजिये, उस नागफनी ने.! मेरा मतलब था की.!!"
" मतलब - वतलब रहने दो! मुझे पता है की तुम राज को ही नागफनी बुलाती हो।"
"आपको.! आपको कब पता चला!" डॉली ने आंखे गोल करते हुए कहा।
"पहली बार जब तुमने कहा था तभी समझ गयी थी, भई हम भी तुम्हारे दौर से गुजरने के पश्चात ही बूढ़े हुए है, ऐसे ऐसे नामकरण हमने भी ज्यादा किये थे!"
" वाओ.!! आप न ज्यादा कूल हैं! आपको बुरा नही लगा आपके पोते को मैंने ऐसा नाम दिया तो.!"
" नही! वो हमेशा नाग की तरह फन काढ़े तैयार बैठा रहता है तुझसे लड़ने भिड़ने को! अब ऐसे में नाम तो नागफनी ही सूट करेगा न उसे!!"
"वाह! वाह मिसेज शर्मा ! नागफनी की क्या परिभाषा दी
है। लव यू!!" कहते हुए वह उनके गले लगने को हुई लेकिन दोबारा रुकते हुए बोली, " सॉरी! ज्यादा ही एक्साइटेड हो गयी थी।"
सुभद्रा देवी उसे पकड़कर गले लगाते हुए बोली, "आओ इधर! औपचारिक होना है तो उस नागफनी से होना, मुझसे नही!!"
डॉली नेउन्को कसकर गले लगा लिया और दोबारा हटते हुए बोली, " ज्यादा बढ़िया महसूस हुआ आपके गले लगकर! अब जाती हूँ काम करने।"
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