The Rajsharma Sex Story of अनमोल अहसास (Romance Special)
डॉली ने सिर को हल्का तिरछा करते हुए उसका चेहरा देखने की कोशिश की, तभी उसने पीछे की तरफ मुड़कर देखा तो उसके चेहरे की झलक देखते ही डॉली झट से पीठ फेरते हुएएक तरफ को बढ़ गयी।
राज दोबारा भी उसे पहचान गया और मन ही मन बोला, " तो तुम वास्तव में यहीं हो!"
फिर भी वो समझ नही पाया कि यदि डॉली इधर है भी तो उसे देखकर इतना सुकून क्यों मिला?
राज में कुछ देर तक इंतजार किया दोबारा बोला, " पांडे जी! क्या आपको वाकई यकीन है कि जो लड़की इधर टाइम से नही आई , वो मेरी दादी की केयरटेकर बनकर उनका ध्यान अच्छे से रख पाएगी?"
" निस्संदेह! वो करेगी! वो ज्यादा ही जिम्मेदार लड़की है, जरूर कुछ परेशानी आ गयी होगी, इसी वजह से वो नही आ पाई।" पांडे जी ने भरोसा दिलाने की कोशिश की।
" ठीक है फिर, इधर तो मिलना नही हो सका लेकिन आप पर भरोसा करके मैं उसेएक मौका देने को तैयार हूँ! उसे मेरे घर भेज दीजिएगा क्योंकि मैं अब फ्लाइट से पुनः निकल रहा हूं।"
" लेकिन सर वो आज ही.!"
" आज नही कह रहा.! परसों सुबह तक वो घर पहुंच जानी चाहिए।"
" ठीक है सर।"
राज तेजी सेएक तरफ को बढ़ गया तो छिपी हुई डॉली ने राहत की साँस ली लेकिन तभी पीछे सेएक अभिमानी आवाज टकरायी, " ढंग से छिपी नही हो! नजर आ रही हो।"
डॉली ने आँखे और होंठ भींचते हुए स्वयं को संयत किया फिरबाहर् निकली., लेकिन वो बोलते हुए आगे बढ़ चुका था और उसका रुकने का कोई इरादा भी नही लग रहा था।
राज ने मुस्कुराते हुए आंखों पर चश्मा चढ़ा लिया था तो वहीं डॉली ज्यादा ही चिढ़ी हुई थी। वहबाहर् निकलकर अपना मिजाज शांत करके कुछ देर पश्चात पांडे जी की तरफ गयी तो वो उसे डपटते हुए बोले, " ज्यादा गैर जिम्मेदाराना हरकत की आज तुमने! शुक्र है की इसके बावजूद भी नौकरी मिल गयी लेकिन परसोंइसे पते पर वक़्त पर पहुँच जाना।"
" ठीक है! थैंक यू पांडे जी।" वो चहकते हुए बोली और खुश होकर बालकनी में आयी, उधर राज को भी कोई मिल गया था तो उससे बात करने में राज को जरा देर हो गयी थी और वह उसी वक़्त गाड़ी मे बैठकर गाड़ी के शीशे को उपरि कर रहा था, तभी उसकी नजर उपरि डॉली पर चली गयी।
राज को देखते ही डॉली ने नाक - भौं सिकोड़ते हुए , मुँह
बिजका दिया औरएक तरफ को हटते हुए थूक दिया तो राज का मुँह खुला का खुला रह गया, " हैं.!! ये हुआ क्या? मतलब सिरिअसली, ये लड़की तो हद किये हुए है, मैं कोई इसे तो नही देख रहा था, यूँ ही नजर उपरि चली गयी थी, इसके दिमाग मे कोई परेशानी तो नही है! मुझसे आज तकइसे तरीके की बाते और हरकते किसी ने नही की! ये है कौन ऐसा करने वाली?मतलब थूकना.!! मेरी छोटी अँगुली के बराबर भी नही और अकड़ देखोइसे तुनकमिजाज लड़की की.! इसे तो अब मैं बताऊँगा की राज शर्मा है क्या चीज?"
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राज ने गाड़ी स्टार्ट होते ही किसी को फोन लगाते हुए कहा, " विवेक ! कल शाम को घर पहुँचो, मुझेएक स्कैच बनवाना है।"
" जरूर, मैं आ जाऊंगा। कुछ खास है क्या.?"उधर से पूछा गया।
"हम्म! ज्यादा ज्यादा खास है!" राज ने व्यंग्य से कहा और गुस्से में उसकी आँखे छोटी हो गयी।
अगले दिन---
डॉली कमरे पर पहुंची और आते ही जस्सी के बगल में बेड पर पसरते हुए बोली, " पानी दे दे बहन!"
जैस्मीन उसे तकिया उठाकर मारते हुए बोली, " तुझे तो घूसे दूँगी! कमबख्त जब वक़्त पर उतर गई थी, बिल्डिंग पर भी पहुंच गई थी तो दोबारा उससे मिली क्यों नही, ये नौकरी भी छूट जाती तो.?"
"छूटी तो नही न!" डॉली ने बेपरवाही से कहा।
जैस्मीन उसे पानी देते हुए बोली, " पकड़! और बता सारी बात।"
" बात क्या बताऊँ.? मिल गया था प्लेन मेंएक बंदा!"
" सच्ची! कैसा था.? लम्बा , हैंडसम!"
" तेरा मुँह न तोड़ दूँ अब मैं! क्या फर्क पड़ता है हैंडसम था या नही! अकड़ तो इतनी की पूछ मत! सीधे मुँह तो बात नही कर रहा था। जाने क्या समझ रहा था स्वयं को? इतना ही कहीं का नवाब है तो स्वयं का हेलीकॉप्टर खरीद कर घूमे न!
मतलब गलती से मुझसे गलती क्या हो गयी? कायदे से बदला लिया उसने! मुझे गाड़ी से उतरने नही दिया। लेकिन
यकीन जान सच कह रही हूं, यदि उसने मुझसे बद्तमीजी की कोशिश की होती न तो काटकर रख देती हां!"
"किस चीज से.? चाकू तो तू इधर छोड़ गयी थी।"
" हाँ तो क्या हुआ? नाखून है, दाँत है! ये सभी भी काम के ही हैं! औऱ दोबारा सेफ्टी पिन तो बैग में भरी हुई थी, पूरे जिस्म में चुभाकर रख देती।"
"हाहाहा.!!" जैस्मीन अब हँसने लगी तो वो बोली, ". और तो और वो बिल्डिंग में भी मिल गया, जाने क्या हो गया था कल, मैं उसेदेख्ना नही चाह रही थी और वो बार बार नजर के सामने आ ही जाता था।"
जैस्मीन अब मुस्कुराते हुए बोली, " जिस तरह से तू उसके बारे में बात कर रही है न, मुझे तो ज्यादा आनंद आ रहा है! ऐसा लग रहा है तेरे दिमाग पर अपना कब्जा करके गया है वो।"
"आहाहा.!! मैं न कर लूं उसके दिमाग पर कब्जा! वो क्या करेगा.?" डॉली चिढ़कर बोली।
" बता न , कैसा था? हैंडसम था न।"
" होगा ! मैं नही जानती! मेरे लिएइसे दुनिया का कोई पुरुष मायने नही रखता, ये तुम जानती हो।"
" हर पुरुष क्यों? हो सकता है न .!'
"कुछ नही हो सकता है, कुछ नही.!! जो होना था, हो चुका। मैं पाँच वर्ष पहले हुए उस धोखा को नही भूल सकती , किसी भी पुरुष पर भरोसा नही कर सकती! कभीं नही.!!" डॉली ने कहा और उठकर खिड़की पर आ गयी।
तभी ' ममा!' कहते हुए उसका बेटा "विनाश " आया और उसके गले से लग गया, डॉली ने प्रेम से उसे गोद मे उठा लिया और उसके चेहरे को स्नेह से चूम लिया।
उधर राज विवेक को उसके चेहरे की बारीकी समझाते हुए उसका स्कैच बनवा रहा था, जब स्कैच बनकर तैयार हुआ तो लगा मानो जीती जागती डॉली उसकी आँखों के सामने थी।
राज ने विवेक को चैक दिया और उसके जाने के पश्चात स्कैच के गाल पर अँगुली फिराते हुए बोला, "कल मैं तुम्हे ढूंढ निकालूँगा, छोड़ तो तुम्हे नही सकता , मिस तुनकमिजाज , मुझे देखकर थूकने का खामियाजा तो भुगतना होगा।"
वह हटा औऱ शर्ट के बटन खोलने लगा तो शीशे में स्वयं के चेहरे पर नजर पड़ी और वो शीशे के करीब चला आया, स्वयं को देखते हुए बोला, " लड़कियाँएक झलक की दीवानी हैं, राज शर्मा का नाम ही बहुत है उनको पागल कर देने के लिए , दोबारा तुम क्या चीज हो? मुझे मेरे ही आकर्षण पर संदेह करने पर मजबूर कर दिया,इसे कदर मुझे अनदेखा करने की मजाल कैसे हुई? परेशानी मेरे आकर्षण में नही है , परेशानी तुम्हारे दिमाग मे है! नदेख्ना तो चलता है, अनदेखा करना स्वभाविक है लेकिन ये मुँह बनाना और वो प्रतिक्रिया मुझसे भुलाए नही भूलेगा, उस रोज जो किया सो किया, अब मेरी बारी है।"
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अगले दिन डॉली उठकर काम पर चली गयी तो वही दूसरी तरफ राज ने भी अपने आदमियों को डॉली की तस्वीर सेंड करते हुए उसे ढूंढने का आदेश दे दिया।
डॉली जैस्मीन के संग ही रहती थी तो करीब आधा दिन बीतने पर राज के आदमियों को डॉली का पता लगा और उन्होंने राज को फोन मिलाया।
"हैलो!"
" सर , वो जिस पते पर गयी है , वो है.×××××××"
" नॉनसेंस! इम्पॉसिबल.! दोबारा चेक करो।" राज पता
सुनते ही भड़क कर बोला।
उधर से दोबारा वही आवाज आई, " सर, पक्की ख़बर है, वो इसी पते पर गयी है।"
राज ने फोन काटते हुए कहा, "इसकी इतनी हिम्मत की टकराने से जी नही भरा तो घर मे ही घुस आयी, इसे तो आज अच्छे से सुनाऊंगा, पक्की लालची है ये! घर मे.! वो भी मेरे घर मे.! शातिर लडक़ी को मेरा पता कहाँ से मिला.!"
राज गाड़ी में बैठकर घर के लिए निकल गया और गाड़ी पार्क करके उतरा, उसने दरवाजे से अंदर कदम रखा तो डॉली खाली बर्तन किचन में रखकरबाहर् निकलने वाली थी, किचन में दो नौकर भी मौजूद थे।
डॉली ने जब राज को देखा तो वो झट से दीवार के पीछे हो गयी और सिर झटकते हुए बड़बड़ाई, " इतना असर हो गया उस शख्स से उस दिन की बार बार टकराहट का, की अब हर स्थान लगता है की वही मौजूद है।"
राज उस वक़्त फोन में कोई मेल देख रहा थाइसलिये वह डॉली को नही देख पाया था, उसने सिर उपरि किया और
फोन रखते हुए अपने कमरे में चला गया।
डॉली ने दोबारा से सिर निकाल कर झाँका तो वह गायब था, " कोई भी नही है, मुझे इधर सावधानी से काम करना होगा, श्रीमती शर्मा भी ज्यादा नेकदिल है!"
डॉली ने अब सूप को गैस से उतारा और लेकर सुभद्रा देवी के कमरे की तरफ चली तो उसे दोबारा सेएक तरफ से आता हुआ राज नजर आया, फॉर्मल कपड़े डाले हुए वह अपने लंबे डग भरते हुए चला आ रहा था।
डॉली नेएक नौकर को आवाज देते हुए कहा, " सुनो! सिर्फ मेरा वहम है या तुम्हे भी वहाँ कोई नजर आ रहा है क्या?"
" हाँ!" उसने जवाब दिया।
" वो पुरुष तुम्हे भी नजर आ रहा है, नेवी ब्लू शर्ट और व्हाइट ट्राउजर में है.?" हैरानी से डॉली ने पूछा।
" हाँ! साहब है ये हमारे! समझ सकता हूँ आपकी मनो:स्थिती, हमारे साहब है ही ऐसे ,उन्को देखकर लड़कियों का यही हाल होता है।" कहते हुए वो हट गया तो डॉली का
मुंह खुला का खुला रह गया और राज के उपरि देखते देखते वह फटाफट फ्रिज से चिपक गयी।
राज ने आवाज देते हुए कहा, " संतोष , कॉफ़ी ले आइये मेरी!"
" जी साहब!"
राज ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ते हुए बोला, " संतोष, घर में कोई बाहरी आया था क्या?"
" नही साहब! बाहरी तो कोई नही, आपने किसी केयरटेकर को रखा है न, सिर्फ वही आयी थी।" संतोष ने जबाब दिया।
"हम्म! ठीक है।"
राज पत्रिका लेकरएक तरफ को गया तो डॉली ने अपने सिर पर जाने कितने थप्पड़ जमा लिए और मन ही मन बोली, " येइसे नागफनी का घर है, भगवान ये तो धोखा है मेरे साथ! दोबारा उसी दिन की तरह चाल चल दी न! मुझे इधर भेजकर आपके दिल को सुकून मिल गया, सच मे दुनिया गोल होने के संग साथ ज्यादा छोटी भी है, तभी तो फिरएक दिन पश्चात ही आमने सामने आ खड़े हुए हैं!"
वह सूप रखते हुए किचन की खिड़की की तरफ देखने लगी और मन ही मन बोली, " मैं इधर नही रुकने वाली, इधर काम ही नही करना मुझे! रोज रोजइसे नागफनी के कांटो को मैं सहन नही कर पाऊंगी, और इसकी दादी के सामने इसकी बेइज्जती करना बढ़िया नही लगेगा।
वह संतोष के कॉफी बनाकर निकलते ही खिड़की सेबाहर् कूद गई और खिड़की बन्द करते हुए जैसे ही मुड़कर भागना चाहा, सामने राज से टकराते टकराते बची।
"धत्त तेरे की.! इसकी टांगो में भी चैन नही रहता क्या? अभी घर के अंदर था न, तो फिरबाहर् भटकने की कौन सी आफत मची थी? चैन से भागने भी नही देते लोग!"
राज उसकी तरफ देख रहा था तो डॉली ने भी नजर उठायी और बोली, " सामने आने का कारण जान सकती हूं?"
राज ने जेब मे हाथ रखते हुए कहा, " प्रश्न मेरे पास भी हैं, खिड़की से कूदने का कारण क्या है? जबकी मेरे घर मे कायदे से दरवाजे लगे हुए हैं!"
" मेरी मर्जी!"
" एक्सक्यूज मी!" राज ने हैरानी से कहा।
" इतने हैरान क्यों हो आप? मुझे आपकी ये शक्ल देखने का जरा भी मन नही था ,इसलिए मैंनेबाहर् निकलने के लिए ये रास्ता चुना।"
राज ने अपने दाँत जमा लिए और उसे कुछ समय विराम के पश्चात बोला, " इधर आपको काम के लिए रखा गया है! यदि ऐसी हरकतें.!"
"एक मिनट!" वह राज की बात काटकर बोली , " मैं ये काम छोड़ रही हूं। इधर आने से पहले मुझे मालूम नही था की ये घर आपका है, लेकिन अब जब जान गई हूँ तो आपके संग काम करने का मेरा कोई इरादा नही है।"
राज का दिमाग भन्ना उठा, उसे इंकार की आदत नही थी! आजतक किसी ने उसे इंकार नही किया था, उसके किसी भी ऑफर को लोग लपकने को आतुर रहते थे लेकिन जब से ये लड़की नजर आयी थी तबसे उसका दिमागी सुकून दूर हो गया था।
राज ने गुस्से से थूक निगला और बोला, " साबित क्या करना चाह रही हो?"
डॉली ने व्यंग्य से होंठ टेढ़े करते हुए कहा, " आपसे मेरा क्या वास्ता , जो मैं आपको कुछ साबित करना चाहूँगी, गलतफहमियां कम पाला कीजिये।"
उपरि से सुभद्रा देवी बन्द खिड़की के शीशे से टिकी दोनो को देख रही थी,एक संग बेहद शानदार नजर आ रहे थे दोनो! डॉली के चेहरे पर दोपहर की धूप पड़ रही थी जिससे उसके गाल लाल हो चुके थे, उसका उज्ज्वल चेहरा बेहद खूबसूरत लग रहा था।
बात करते हुए ही उसने लापरवाही से अपने बालों को समेटते हुए जूडा बना लिया तो दादी मुस्कुरा उठी और मन ही मन बोली, " शायद मेरे पोते की तलाश पूरी हो गयी!"
राज ने उसे जूड़ा बनाते हुए देखा तो उसकी नजर डॉली की सुराहीदार लम्बी गर्दन पर चली गयी , गर्दन पर धूप की वजह से पसीने की बूंदे आ गयी थी , उसकी छोटी नाक पर भी पसीने की कुछ बूंदे थी।
वह उसके लहजे को देखकर वह तिलमिला उठा था लेकिन दोबारा भी वह उसे जाने नही देना चाहता था! उसकी राहों में
कठिनाई खड़ी करना चाहता था!
उसे रोकने के लिहाज से वह समझदारी से बोला, " मुझे आपसे ऐसी ही आशा थी, बढ़िया हुआ की आपकोबाहर् निकालने का कष्ट मुझे नही करना पड़ा!"
डॉली ने अपनी चिढ़ी हुई निगाह उठायी तो राज थोड़ा झुककर उसकी आँखों मे झांकते हुए बोला, " वैसे किस बात का डर है कि दरवाजे की स्थान खिड़की से ही भाग रही थी? खैर ! जानकर ज्यादा बढ़िया लगा कि आप मुझसे डरती है।"
" मैं किसी से नही डरती!"
" मैदान छोड़कर भागने की तैयारी थी, रंगे हाथ पकड़ी भी गई लेकिन अब भी झूठ! च्च.! च्च.!! दया आ रही है आपकी नकली हिम्मत पर!"
डॉली ने कुछ कहने को मुंह खोला तभी राज दोबारा बोल उठा, " इधर आयी हो तो कुछ काम तो किया ही होगा! पेमेंट लेती जाओ , मैं किसी का एहसान नही रखता!"
राज ने पैसे की गड्डी निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दी और बोला, " काम के संग साथ टिप भी है।"
डॉली ने अब आंखे तरेर कर उसकी तरफ देखा और अकस्मात ही उसके हाथ से पैसे लेकरएक नोट अलग निकाला और बाकी उसके मुँह पर फेंक दिए।
राज ने जेब से हाथ निकालकर उसकी कलाई पकड़ते हुए बेहद गुस्से से गरजते हुए कहा, " ऐसी हरकत की हिम्मत कैसे हुई?"
डॉली भी उसकी आँखों मे देखते हुएएक स्टेप आगे लेकर उसका गिरेबान पकड़ते हुए गरजकर बोली, " आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे टिप देने की? आजतक किसी की इतनी औकात नही होने दी मैंने की वो मुझे टिप दे सके! तो दोबारा आप कौन है? मैं मेहनत के पैसे छोड़ती नही और भीख के पैसे लेती नही! समझे.! आइंदा याद रहे.!"
राज ने गुस्से से खा जाने वाली नजरो से देखते हुए कहा, " गिरेबान छोड़ो.!!"
" पहले आप कलाई छोड़ो.!!" डॉली ने भी दाँत पीसते हुए कहा।
" क्या कहा? दोबारा से कहना!" राज ने कहा।
" मैंने कहा पहले मेरी कलाई छोड़िये, तब मैं आपका गिरेबान छोडूँगी।" डॉली ने आंखों में आंख डालकर अपनी बात दोहरा दी।
" जानती हो मैं कौन हूँ, और क्या कर सकता हूँ?"
" यदि मैं नही जानती तो आप भी नही जानते, की आपके हर किये का मुँह तोड़ जवाब दूँगी मैं! ये भ्रम दिमाग से निकाल दीजिएगा की किसी कमजोर - डरपोक लड़की से पाला पड़ा है।"
" समझती क्या हो स्वयं को? कौन हो तुम?"
" मैं, मैं हूँ! स्वयं ही स्वयं की मिसाल।"
"इसे तरह की हरकतों से ये सोच रही हो कि मैं आपसे
प्रभावित हो जाऊँगा तो ये भ्रम निकाल देना दिमाग से, क्योंकि इतना आसान शिकार नही हूँ मैं।"
डॉली अब जरा सा हँस दी और बोली, " शिकार इंसानों का नही किया जाता, और आपने स्वयं को शिकार बताकर स्वयं को जानवर की उपाधि दे दी!"
डॉली के बोलते ही राज ने जबड़े कसे और संग ही मुट्ठी भी भींचने को हुआ तब तक डॉली उसके हाव जज्बातों देखते हुए बोल उठी, " सोचना भी मत! जबड़े कसे है तो ठीक है.! लेकिन मुठ्ठी कसी तो उसके बीच मेरी कलाई है.!और मुझे चोट पहुँची तो कसम से ये जो आपके सीने पर बाल नजर आ रहे है न,एक एक बाल उखाड़ फेंकूँगी!"
राज उसके जबाब से चकित रह गया , जाने कैसा दबा हुआ एहसास हुआ, अपनी छाती पर गर्मी का अहसास हुआ और मन ही मन हँसी भी आई की ऐसी बात कहने में ये लड़की जरा भी नही हिचकिचाई, लेकिन प्रत्यक्ष में वह ठंडेपन से बोला, "हिम्मत है.!!"
" आजमा के देख लो!" डॉली ने भी उसकी निग़ाहों में देखते हुए दृढ़ता से कहा।
राज ने उसकी बात सुनकर हँसी रोकने के लिहाज से दूसरी दिशा में देखते हुए होठों को गोल करके हवाबाहर् छोड़ दी और संग ही डॉली की कलाई भी.! तो डॉली ने भी उसके गिरेबान को छोड़कर उसकी शर्ट के खुले तीसरे बटन की तरफएक नजर देखते हुए कहा, " मेरे संग उलझने से पहले या तो बटन बन्द कर लिया कीजिये! या दोबारा उलझने के लिए करीब मत आया कीजिये! हादसे से बचे रहेंगे!"
" घर मेरा है, बदन मेरा है, शर्ट मेरी है! मुझे स्वयं को कितना दिखाना है और कितना ढकना है, ये मेरी मर्जी है!"
डॉली उसकी बात को अनसुना करके चल दी तो राज झुंझला उठा, " आखिरइसे लड़की की परेशानी क्या है? मुझे इतनी आसानी से नजरअंदाज करके चली कैसे जाती है? कैसे रोकूँ.?"
राज ने बल पड़े माथे पर अंगुलियाँ फिराते हुए दिमाग पर जोर डाला तभी डॉली रुककर बोली, " मिस्टर शर्मा ! अपनी दादी के सामने मुझे भगोड़ा पेश मत कीजियेगा! मैं सच्चाई में यकीन रखती हूं और आप कारण बताने को स्वतंत्र है!"
" मैं नही जानता कारण, और न ही आपका पर्सनल असिस्टेंट हूँ! जिसे मेसेज देना है आप स्वयं दे दीजिए।" ये कहकर वह लंबे डग भरते हुए अंदर चल दिया तो डॉली ने उसेएक नजर घूरकर देखा दोबारा पांव पटकते हुए अंदर की तरफ बढ़ गयी।
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