The Romance Sex Story of फ़िर से
अपडेट 56
अजय को अपना बदन भार-शून्य सा लग रहा था - जैसे भौतिकी के नियम उस पर लागू ही न हो रहे हों। वो ‘वहाँ’ था भी और नहीं भी। वो उस स्थान का हिस्सा था भी और नहीं भी। ‘वहाँ’ - ये कौन सी स्थान थी, उसका कोई ठीक ठीक अंदाज़ा लगा पाना कठिन था। कहीं तो था वो! कोई ऐसा स्थान जहाँ भौतिकी के सिद्धाँत लागू नहीं थे! ‘वो’एक ऐसा स्थान था, जहाँ उसको अबूझ रोशनियों के कोमल तंतु दिखाई दे रहे थे। दोबारा उसने देखा कि उसका स्वयं का बदन भी रौशनी कीएक किरण समान ही लग रहा था। उन अनगिनत कोमल किरणों के बीच उसको ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वो अनंत में घुल मिल गया हो।
इस स्थिति में अजीब अजीब से दृश्य देख रहा था वो - शब्द भी दृश्य बन गए थे और भावनाएँ भी। उन दृश्यों में उसको अशोक जी, किरण जी, माया दीदी, रूचि, रूचि के मम्मी पापा, कमल, प्रशांत भैया, पैट्रिशिया भाभी, किशोर जी, सरिता जी, रागिनी, उसकी माँ, मनोहर भैया, जेलखाना और न जाने क्या क्या - शायद सभी कुछ दिख रहा था। इन सबके बीच में वो कुछ नया देख रहा था - अजीब अजीब से शब्द! अजीब अजीब से बैज्ञानिक दृश्य - ठीक वैसे जैसे स्कूल कॉलेज में रसायन विज्ञान के मॉडल दिखते हैं। उसको इतना तो समझ आ रहा था कि कोई गंभीर और चिंताजनक बात चल रही है. लेकिन दोबारा भी मन से वो शांत था। कमाल की बात थी।
कुछ ऐसी ही अनुभूति उसको ‘उस दिन’ हुई थी, जब वो पुनः अपने भूतकाल में आ गया था।इसे बात के संज्ञान से उसको थोड़ी सी उलझन महसूस हुई - कई सारे कार्य जो उसने करने को सोच रखे थे, वो अभी भी शेष थे। कमल और माया दीदी की शादी अभी तक नहीं हुई थी और न ही प्रशांत भैया और पैट्रिशिया भाभी की! और तो और, उसका भी तो रूचि के संग रिश्ता तय हो गया था - ऐसे में वो सभी बीच में ही छोड़ कर जाना थोड़ा निराशा वाली बात लग रही थी। लेकिन यदि भगवान ने उसको इतने ही टाइमके लिए पुनः भेजा था, तो ये संभव है कि उसने वो सभी कर दिया हो, जो उससे बन पड़ा! तो यदि वो अब पुनः भविष्य की ओर जा रहा था, तो वो भी ठीक था। शायद भविष्य में उसको परिवर्तन महसूस हो! शायद वो और रूचि संग हों! शायद माया दीदी और प्रशांत भैया का जिंदगी बेहतर हो सका हो. शायद पापा जीवित हो और स्वस्थ हों!
*
जब अजय की आँखें खुलीं, तो उसने स्वयं कोएक बड़े से सफ़ेद रंग के कमरे मेंएक अपेक्षाकृत ठन्डे और कठोर पलंग पर पाया।
जाहिर सी बात थी कि ये उसका कमरा नहीं था। आँखें उसकी अभी भी पूरी तरह से फ़ोकस नहीं थीं - लेकिन वो देख रहा था कि कम से कम दो लोग सफ़ेद लम्बे कपड़े पहने उसके बगल खड़े थे। उसके हाथ में थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था, और उसके सर पर सख़्त से कुछ वस्तुएँ चिपकी हुई थीं, जिससे उसको खुजली महसूस हो रही थी। उसे ये समझने में कुछ क्षण लगे कि वो हॉस्पिटल में था - उसके हाथ मेंएक आई वी ड्रिप लगी हुई थी, और उसके सर और सीने पर सेंसर और प्रोब्स चिपके हुए थे।
एक कोई चालीस बयालीस वर्ष का पुरुष उसको आँखें खोलते हुए देख कर मुस्कुराते हुए बोला, “हैलो अजय बेटे, कैसा लग रहा है तुमको?”
‘कौन सा अस्पताल था यह?’ उसने दिमाग पर ज़ोर डाला।
उसके प्रश्न का उत्तर डॉक्टर के सफ़ेद रंग के ऐप्रन पर कढ़े हुए अस्पताल के लोगो से मिल गया - ‘वानप्रस्थ अस्पताल’!
‘वानप्रस्थ अस्पताल!’ उसके दिमाग में ये परिचित सा नाम गूँजा, ‘ये तो वही अस्पताल है.’
हाँ - ये वही अस्पताल था जहाँ अशोक जी की मृत्यु हुई थी। लेकिन दोबारा भीइसे विचार से अजय को न जाने क्यों घबराहट नहीं हुई। उसको स्वयं हीइसे बात से आश्चर्य हुआ।
‘लेकिन उसको इधर क्यों लाया गया है?’ उसने सोचा, ‘उसको कुछ हो गया क्या?’
फिर उसकी नज़र डॉक्टर के नेम बैज पर पड़ी,
‘अजिंक्य देशपाण्डे,’
अजय नेएक समय के लिएइसे नाम के बारे में सोचा - उसका सरएक बार दोबारा से घूमने लगा, लेकिन बस दो पलों के लिए ही।
“डॉक्टर देशपाण्डे?” उसके मुँह से अस्पष्ट से शब्द निकले।
“यस,” डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए और थोड़ा कौतूहल से अजय को देखा, “हैव व्ही मेट, यंग मैन?”
‘यंग मैन?’ उसनेएक समय सोचा, ‘चालीस वर्ष का पुरुष किसी तीस वर्ष के पुरुष को बेटा या यंग मैन तो नहीं कहेगा. तो क्या वो अभी भी अपने पहले वाले रूप में है?’
“आई डोंट नो,” वो बुदबुदाया।
उसको बदन में कमज़ोरी महसूस हो रही थी, लेकिन अब वो पूरी तरह से चौकन्ना था।
“हाऊ आर यू फ़ीलिंग?” डॉक्टर ने पूछा।
“आई थिंक आई ऍम फीलिंग गुड,” उसने कहा, “व्हाट हैपेंड?”
“तुम्हें क्या क्या याद है?” डॉक्टर ने पूछा।
“मैं. मैं अपनी फिएंसी के घर में था,” अजय ने याद करते हुए कहा, “आई वास मीटिंग हर रिलेटिव्स.” उसने मुख्य ‘ट्रिगर’ को छुपाते हुए बताया, “कि अचानक से सभी कुछ हेज़ी हेज़ी हो गया. आई थिंक, आई फ़ेंटेड,” उसने निराशा के संग कहा।
डॉक्टर देशपाण्डे ने थोड़ा इंतज़ार किया, लेकिन जब अजय ने कुछ और नहीं कहा, तो उन्होंने बताया,
“नॉट जस्ट फ़ेंटेड,” वो बोले, “तुम थर्टी टू हॉर्स से बेहोश हो.”
“व्हाट!” अजय चौंका - उसको तो लग रहा था कि बस कुछ ही टाइमहुआ रहेगा, “थर्टी टू हॉर्स! . मतलब. मतलब दिवाली गई?”
“तुमको उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए!” डॉक्टर ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा, “एक्चुअली, तुमको चिंता ही नहीं करनी चाहिए,”
“सो आई ऍम फाइन?”
“फीसिओलॉजिकली हंड्रेड परसेंट!” वो बोले, “आई विल बी ऑनेस्ट विद यू. तुम बेहोश क्यों हो गए, हम तो ये ठीक से नहीं जानते. तुम्हारा हार्ट परफेक्ट है! ब्रीदिंग सॉउन्ड है. और तुम्हारी ब्रेन एक्टिविटी. वेल, आई मस्ट से, दैटइसे नॉट नार्मल. नॉट अबनॉर्मल! मोर लाइक हाइपरएक्टिव. आई कैन से कि तुमको ब्रेन में भी किसी तरह का डैमेज नहीं है।”
अजय ने समझते हुए सर हिलाया।
“एक्स-रे और एमआरआई में कोई चोट नहीं दिखाई दी. हाँ, ऐसा ज़रूर लग रहा था कि जैसे तुम सो रहे हो, लेकिन तुम्हारा दिमाग किसी साइंटिस्ट के जैसे सोच रहा हो!” वो मुस्कुराए।
उनकी बता सुन कर अजय के होंठों पर भी मुस्कान आ गई।
“सो, मेरी तरफ़ से तुमको क्लीन बिल ऑफ़ हेल्थ है!” वो बोले, “हाँ. लेकिन यदि तुमको ठीक लगे, तो मैं तुमसे थोड़ा डिटेल में बातें करना चाहूँगा. अभी नहीं, पश्चात में!”
“श्योर सर,” अजय बोला, “एक बात पूछूँ आपसे?”
“हाँ हाँ, ज़रूर,”
“आपने इधर कब ज्वाइन किया? और आपकी स्पेशलटी क्या है?”
“मैंने.एक महीना हुआ है! एंड आई ऍम अ न्यूरोसर्जन,” उन्होंने हँसते हुए बताया, “. बट आई ऍम नाऊ रिसर्चिंग इन न्यूरोऑन्कोलॉजी,”
“ओके,” अजय धीमे से बोला, “ऑन्कोलॉजी.”
“एस आई सेड, रिसर्चिंग. तुमको कोई प्रॉब्लम नहीं है!”
“तो क्या मैं घर जा सकता हूँ?”
“ओह श्योर! चाहो तो आज ही. बट स्ट्रेस न लेना, सुतली पटाखे न चलाना. हो सकता है तेज़ आवाज़ के कारण कान और सर पर ज़ोर पड़े। सो इटइसे बेस्ट टू अवॉयड इट फॉर समटाइम.”
“ग्रेट!”
“बट, सबसे पहले तुम्हें अपनी फिएंसी (कहते हुए वो मुस्कुराए) और अपने परिवार से मिलना चाहिए. वे ज्यादा चिंतित हैं।”
“यहाँ हैं वो?”
“कल से यहीं हैं सभी,” डॉक्टर ने स्टूल से उठते हुए कहा, “मैंउन्को अंदर आने को कहता हूँ,”
मिनट भर के भीतर ही रूचि भागती हुई कमरे में दाखिल हुई। उसके पीछे माया, किरण जी और रूचि की मम्मी दौड़ती हुई अंदर आईं। उनकेएक मिनट पश्चात कमल, और तीनों बुज़ुर्ग - अशोक जी, रूचि के पिता, और किशोर जी प्रविष्ट हुए।
रूचि भागती हुई आई और पलंग पर लेटे हुए अजय से लिपट कर रोने लगी। अजय उसको यथासंभव आश्वस्त करते हुए मुस्कुराया, और रूचि को अपनी बाहों में भर कर उसे कसकर आलिंगन में पकड़ लिया।
“ओह अज्जू.” रूचि के आवाज़ से लग रहा था कि वो अंदर आने से पहले भी रो रही थी, “व्ही वर सो वरीड!”
अजय रूचि को देख नहीं पा रहा था, लेकिन माया और अपनी माताओं के चेहरे के भावों को देख कर वो महसूस कर सकता था कि सभी ज्यादा चिंतित थीं, और कुछ टाइमपहले रो रही थीं। तीनों की आँखें नम थीं।
सभी उसके कारण इतना उदास हुए, सभी का त्यौहार ख़राब हुए, ये सोच कर उसको शर्मिंदगी महसूस हुई।
“मैं एकदम ठीक हूँ, माय लव,” उसने ज्यादा धीरे-धीरे से रूचि के सर को सहलाते हुए उसके कान में बोला, दोबारा सभी की तरफ़ मुखातिब हो कर थोड़ी स्पष्ट आवाज़ में बोला, “मैं ठीक हूँ.”
“क्या यार,” कमल थोड़ा याराने वाले अंदाज़ में बोला - लेकिन उसकी बात में भी चिंता साफ़ सुनाई दे रही थी, “क्या करता रहता है! डरा दिया हमको!”
“चुप रह! कुछ भी कहता रहता है,” किशोर जी ने अपने बेटे को प्रेम से झिड़का, दोबारा अजय की तरफ़ मुखातिब हो कर बोले, “कैसे हो बेटे?”
“परफ़ेक्ट अंकल जी,” अजय मुस्कुराया, “डॉक्टर सर ने भी यही कहा है!”
“आई ऍम सो हैप्पी कि तुम ठीक हो बेटे,” रूचि के पिता बोले, “बहुत चिंता हुई थी हमको!”
“अरे भाई साहब. कुछ नहीं हुआ है! आप नाहक ही परेशान हो गए थे. शायद थकावट, या इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी के कारण चक्कर आ गया होगा,” अशोक जी ने माहौल को थोड़ा हल्का करने की कोशिश करी, जिससे रूचि के पिता को बुरा न लगे कि उनके ही घर पर उनके होने वाले दामाद की तबियतइसे क़दर बिगड़ गई, “इसको घर ले चलेंगे. दोबारा मनाएँगे हम सभी संग में मिल कर दिवाली!”
“हाँ भाई साहब,” रूचि की मम्मी बोलीं, “त्यौहार की ख़ुशी मनाने का कारण तो आज है,”
“तुम्हें कैसा लग रहा है बाबू?” माया ने अजय का हाथ अपने हाथों में पकड़ते हुए पूछा।
उसके लिए माया का स्नेह स्पष्ट था।
“मैं ठीक हूँ दीदी,” उसने कहा, “आप लोग यूँ ही परेशान हो गए!”
“मैं कहाँ परेशान हुई,” माया ने आँसू पोंछते हुए कहा, “हाल तो रो रो कर भाभी का बुरा हो रक्खा है,”
अजय ने रूचि की तरफ़ देखा - वो अपने आँसू पोंछ रही थी।
“कल सेएक निवाला भी नहीं खाया है इसने,” माया ने शिकायत करी।
“बोल तो ऐसे रही हो, जैसे तुम कल से छप्पन भोग लगा रही हो,” रूचि ने रुँधे गले से माया की बात का प्रतिकार किया।
अजय जान गया कि कल से शायद ही किसी ने खाना खाया हो। अपने लिए सभी के मन में ऐसी चिंता और इतना स्नेह देख कर उसका दिल भर आया।
“आप लोग.”
अजय ने कहना शुरुआत ही किया कि माया ने उसकी बात को बीच में काट दिया, “डॉक्टर समझ नहीं पा रहे थे कि क्या गड़बड़ है. तुम बस सो रहे थे. देर तक,”
“अरे बिटिया,” किरण जी ने माया को कुछ कहने से रोका, “अब बस कर. और राम कहानी सुनाने की ज़रुरत नहीं है!”
“हाँ माँ! बाबू को ले कर चलते हैं.”
“हाँ हाँ,” ये कह कर सभी बड़े लोग कमरे सेबाहर् चले गए।
थोड़ा एकांत पा कर रूचि अजय का सीना सहलाती हुई बोली, “अज्जू, अभी कैसा लग रहा है?”
अजय कुछ बोल पाता, उससे पहले ही उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। वह सोफे पर गिर पड़ा, बेहोश।
रूचि ने घबराकर उसका चेहरा छींटों से भिगोया। मासी और रागिनी भी उठकर पास आ गईं। रूचि की मम्मी ने जल्दी से पानी का गिलास लाया, और कुछ ही मिनटों में अजय को होश आया। उसकी आँखें अभी भी रागिनी पर टिकी थीं, जैसे वह किसी भूत को देख रहा हो।
रूचि ने उसके माथे को सहलाते हुए पूछा, “अज्जू, क्या हुआ? तुम अचानक ऐसे. क्यों.? कैसे.?”
अजय ने दो समय सोचा कि क्या कहे रूचि से वो. दोबारा बोला,
“रूचि. मुझे तुमको कुछ बताना है,”
“ओके?”
“रूचि. टाइमचाहिए मुझे. इतनी जल्दी नहीं कह पाऊँगा सब,”
“ओके,”
“अरे चलो उठो.” किरण जीएक नर्स के संग भीतर आईं, “रूचि बेटे, चलो. गाड़ियाँ रेडी हैं,”
“जी माँ,” दोबारा अजय को देख कर, “घर पे?”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
*
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अपडेट 57
अजय को सहारा दे कर घर में लाया गया - ऐसा नहीं है कि उसको किसी सहारे की आवश्यकता थी, लेकिन सभी ‘बड़े’ लोगों ने ज़िद पकड़ ली थी और वो कोई बहस नहीं चाहता था। कुछ देर तक सभी उसके आस पास बैठ कर उसको बहलाने की कोशिश करते रहे। थोड़ी आतिशबाज़ी हुई, लजीज खाना पकाया और खाया गया -एक तरह से आज ही दिवाली मनाई गई। और अंत में सबकी विदाई का अवसर आया।
रूचि नेएक बार अजय को आँखों में देखा और दोबारा अपने पिता जी से बोली, “पापा, मैं अज्जू के संग ही रुकूँगी आज.”
“हाँ बेटे, ये ठीक रहेगा. यहीं रहो, और यदि कोई बात हो, तो हमको जल्दी खबर करो।”
“जी पापा,”
“अरे भाईसाहब, चिंता की कोई बात नहीं है!” आशोक जी बोले।
उनको भी ज्यादा बुरा लग रहा था कि अजय को लेकर इतने सारे लोग परेशान हो गए। लेकिन उनको ये देख कर बढ़िया भी लगा कि रूचि किसी साए की तरह अजय के संग बनी रही पूरे समय।
रूचि ने ही उनको फ़ोन कर के बताया था कि अजय को ‘वानप्रस्थ अस्पताल’ में इमरजेंसी में भर्ती किया गया है, क्योंकि वो अचानक से ही बेहोश हो गया है। जब तक वो और किरण जी अस्पताल पहुँचे नहीं थे, तब तक रूचि ने अपना धीरज खोया नहीं था, लेकिन जब वो दोनों आ गए, तब उससे रहा नहीं गया. और तब से अजय के रिलीव होने तक रो रो कर उसका बुरा हाल हो गया था। माया ने कुछ देर उसको सम्हाला, लेकिन वो भी कुछ टाइमपश्चात ज्यादा डर गई। वो तो अच्छी बात थी कि घर की बड़ी स्त्रियाँ वहाँ थीं और उन्होंने दोनों को सम्हाल लिया। ख़ैर - अशोक जी के लिए इतना तो स्पष्ट था कि रूचि को अजय से ज्यादा ही प्रेम है। वो संतुष्ट हो गए कि उन्होंने अजय के लिएएक बेहद बढ़िया सी लड़की ढूंढ ली थी!
“बहुत अच्छी बात है न भाई साहब कि चिंता की कोई बात नहीं है!” रूचि के पापा बोले, “आप भी कोई चिंता न करें! रूचि है न - आप सभी लोगों की देखभाल कर लेगी।
सबको विदा करने के पश्चात सभी ने रूचि और अजय को अजय के कमरे में तन्हा छोड़ दिया। आज रात में थोड़ी थोड़ी ठंडक सी हो रखी थी।बाहर् से अभी भी रह रह कर पटाखों की आवाज़ें आ रही थीं, लेकिन मुख्य त्यौहार की रात की तरह नहीं। रूचि ने कमरे की खिड़की बंद कर दी, जिससे ठंडी हवा और पटाखों की छिटपुट आवाज़ न आए और धीमी गति से चलती हुई अजय के पास आ कर बैठ गई।
अजय ने उसको देखा और मुस्कुराने की कोशिश करने लगा। रूचि ने भी मुस्कुरा कर ही उत्तर दिया, लेकिन उसके चेहरे पर अजय को लेकर चिंता और मानसिक पीड़ा वाले जज्बातों स्पष्ट थे।
“रूचि. माय लव,” अजय ने शुरुआत किया, “थैंक यू,”
“अज्जू.”
“नहीं रूचि.एक मिनट. मुझे बोल लेने दो!” वो बोला, “मैंनेएक बात सीखी है कि जो मन में हो, वो बता देना चाहिए. नहीं तो देर हो जाती है और दोबारा पछतावा होता है ज़िन्दगी भर.”
रूचि चुप रही।
“आई लव यू! एंड आई थैंक यू. फॉर बीईंग इन माय लाइफ.”
इस बार जब रूचि मुस्कुराई, तो उसके चेहरे पर पीड़ा वाले जज्बातों नहीं थे। लेकिन वो अभी भी चिंतित तो थी।
“पानी?” उसने अजय से पूछा।
अजय के ‘हाँ’ में सर हिलाने पर उसने अजय को पानी का गिलास थमाया और दोबारा कहा, “अज्जू. अब बोलो. क्या हुआ था तुमको?”
अजय ने दो चार घूँट पानी पिया और बोला, “मेरी जान, आई डोंट नो कि तुम मेरी बात का कितना विश्वास करोगी. लेकिन मैं तो कहने जा रहा हूँ, वो पूरे ओपन माइंड से सुनना. और समझने की कोशिश करना.”
“ओके,” रूचि की उत्सुकता बढ़ गई।
अजय नेएक गहरी साँस ली। वो जो कहने जा रहा था, वो सोच कर उसका मन भारी हो गया था। वो जानता था कि यदि उसने रूचि को सच नहीं बताया, तो ये बोझ उसे शांति से जीने नहीं देगा. लेकिन, सच बताने का मतलब ये भी था कि शायद रूचि के संग उसका रिश्ता ख़तरे में भी पड़ जाए! दोबारा भी, उसने फैसला किया कि वो रूचि से कुछ नहीं छुपाएगा।
“यार रूचि,” उसने कहना शुरुआत किया, “मैं रागिनी से पहले भी मिल चुका हूँ.”
“क्या? सच में? कब?”
“भविष्य में,”
“भविष्य में?”
“रूचि,” उसने काँपती आवाज़ कहा, “मुझे नहीं पता तुम मुझ पर यकीन करोगी या नहीं. लेकिन जो कुछ भी मैं तुमको बताने जा रहा हूँ, वो पूरी तरह से सच है। मेरे संग कुछ ऐसा हुआ है, जो आज तक शायद किसी के संग भी नहीं हुआ!”
रूचि ने भौंहें सिकोड़ीं, “क्या मतलब? पूरी बार बताओ अज्जू. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है!”
अजय ने अपनी आँखें बंद कीं और उस दिन से और उस दिन के पहले हुई अपने जिंदगी की सारी घटनाएँ रूचि को सिलसिलेवार ढंग से सुनाने लगा। उन वृद्ध ‘विश्वकर्मा प्रजापति जी’ से मुलाक़ात - जो उसके हिसाब से स्वयं परमपिता थे, दोबारा उस रात का सपना - वो स्याह सी स्मृतियों वाली चादर, वो टूटती मरोड़तीं स्मृतियाँ, और फ़िर सुबह उठ कर अचानक से ही अपने जिंदगी के तेरह वर्ष पुनः चले आना! उसने रूचि को सभी कुछ बताया - कि वो ये सभी होने से पहलेएक तीस वर्ष का ‘आदमी’ था. वोएक अंडरअचीवर था, जिसकी पहले से ही झण्ड ज़िन्दगी को रागिनी नाम की ख़ूबसूरत, लेकिन ज़हरीली नागिन ने बर्बाद कर दिया था। कैसे उसने और मम्मी ने झूठे केस में जेल की सजा काटी. कैसे दोनों का सभी कुछ छिन गया. कैसे अशोक जी इन्ही डॉक्टर देशपाण्डे की लापरवाही के कारण भगवान को प्यारे हो गए. कैसे माया दीदी और प्रशांत भैया की शादी-शुदा ज़िंदगियाँ खराब हो गईं। कैसे कमल ने माया दीदी से अपने प्रेम के कारण आज (तब) तक शादी ही नहीं करी। लेकिन जब उसको अपना जिंदगी पुनः जीने का अवसर मिला, तो वोइसे नए समय-काल में वो अपने सभी प्रियजनों का जिंदगी और अपनी गलतियों को सुधारना चाहता था. अपने माँ-बाप को खुशियाँ देना चाहता था. माया दीदी के संग अपने सम्बन्ध सही करना चाहता था और चाहता था कि उनको अपने जिंदगी में खुशियाँ मिलें, जिनकी वो हक़दार थीं। और यदि संभव हुआ, तो वो अपने जिंदगी को भीएक नई दिशा देना चाहता था। रूचि सभी सुन रही थी, और अवाक् सी बैठी हुई थी।
‘ऐसा भी कहीं होता है क्या?’ वो सोच रही थी। लेकिन अजय पर अविश्वास करने का कोई कारण ही नहीं मिल रहा था उसको।
“रूचि,” अजय कह रहा था, “. तुम मेरी उस ज़िंदगी का हिस्सा नहीं थीं. लेकिनइसे ज़िंदगी में. तुम सभी कुछ हो! तुम मेरे लिए सभी कुछ हो. आई लव यू! और ये सभी बताते हुए मैंने तुमसे कुछ नहीं छुपाया।”
“रागिनी?” रूचि के मुँह से निकला।
“रागिनी. मेरी पत्नी थी. उसने हमारे संग जो कुछ किया, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। कल जब मैंने उसको यूँ अचानक से अपने सामने देखा, तो मुझे लगा कि मेरा अतीत दोबारा से मेरे सामने आ खड़ा हुआ है. मुझसे उसका चेहरा भी देखा न जा सका.”
“तुम रागिनी से नाराज़ हो?”
अजय ने ‘न’ में सर हिलाया, “नहीं रूचि, सच में! मैं उससे नाराज़ नहीं, स्वयं से उदास हूँ! . मैं इतना अंडरअचीवर था, कि सुन्दर चमड़ी को पाने के लालच में आ गया, बिना ये सोचे समझे, कि भला ऐसी लड़की मेरे संग क्यों आएगी? अपने लालच में मैंने मम्मी पापा और ताऊ जी ताई जी का बनाया सभी कुछ गँवा दिया! नहीं. मैं उससे नाराज़ नहीं हूँ!”
रूचि चुपचाप सुन रही थी। उसकी आँखें स्थिर थीं, लेकिन चेहरे परएक अजीब-सा जज्बातों था. जैसे वो समझ न पा रही हो किइसे बात को कैसे समझे!
जब अजय रुका, तो उसने धीरे-धीरे से पूछा, “तो तुम कह रहे हो कि तुम. भविष्य से आए हो? और रागिनी तुम्हारी पत्नी थी? लेकिन अब तुमएक टीनएजर हो, और वो सभी कुछ.एक सपना था?”
“सपना नहीं, रूचि,” अजय ने समझाया, “वो मेरी हक़ीक़त थी। मैं नहीं जानता कैसे, लेकिन मैं उस हकीकत सेइसे नई हक़ीक़त में आ गया हूँ। और ऐसा नहीं है कि मैं भविष्य से आने के कारण सभी जानता हूँ. ज्यादा सी बातें मुझे पता नहीं हैं! अरे, मुझे तो ये भी नहीं पता कि मुझे क्या क्या नहीं पता!”
रूचि ने समझते हुए सर हिलाया।
“मैं बस इतना चाहता हूँ किइसे बार मैं सभी कुछ ठीक कर दूँ. जब सबसे पहला काम - मतलब कमल और माया दीदी का रिश्ता जुड़ा. तब मुझे लगा कि मैं सही रस्ते पर हूँ. दोबारा प्रशांत भैया और भाभी का रिश्ता ठीक बैठा। . दोबारा मुझे लगा कि मुझे लूज़र नहीं रहना चाहिए. पढ़ लिख कर कोई ढंग का मक़ाम हासिल करना चाहिए। .इसे कारण से तुम मिलीं मुझे. तुम्हारा संग मिला. तुम्हारा प्रेम मिला.”
रूचि ने कुछ समय चुप रहकर सोचा. फ़िर बोली, “अज्जू. ये सब. ये सभी ज्यादा अजीब है। आई ट्रस्ट यू. लेकिन ये सभी तुम्हारा वहम भी तो हो सकता है न?”
“नहीं रूचि.”
“सोचो न. लोगों को डेजा वू होता है. उनको लगता है कि जो कुछ हो रहा है, वो उनके संग पहले भी हो चुका है,”
“लेकिन मेरा एक्सपीरियंस डेजा वू वाला नहीं है. सभी कुछ अलग है पहले सेइसे बार!”
“तुम मुझे कुछ ऐसा बता सकते हो, जो कोई भी नहीं बता सकता?”
“जैसे?”
रूचि ने कुछ देर सोचा, दोबारा बोली, “अगर तुम और रागिनी हस्बैंड वाइफ थे, तो तुम दोनोंएक दूसरे को इंटीमेटली जानते होंगे.”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “. उसके दाहिने ब्रेस्ट की अंदरूनी गहराई में लाल रंग का तिल है.”
रूचि अजय की बात सुन कर अचकचा सी गई। दो समय उसको समझ ही नहीं आया कि वो क्या कहे।
“रूचि. आई नो कि ये सभी प्रोसेस करने के लिए ज्यादा ज्यादा है. मुझे स्वयं ज्यादा टाइमलगा। आई कांट एक्सपेक्ट यू टू अंडरस्टैंड एवरीथिंग. लेकिन,”
कहते कहते अजय का दिल बैठ रहा था। उसको समझ में आ रहा था कि रूचि के मन में शायदएक उलझन पैदा हो गई थी।
उसने कहा, “. लेकिन मैं तुमसे सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि मैं तुमसे ज्यादा प्रेम करता हूँ. और मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता,”
रूचि ने हल्की मुस्कान दी, “किसी और को बताया है ये सब?”
“पापा को,”
“क्या क्या? . क्या उनको ये भी बता दिया कि वो.”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने ज़िद कर के पूरा औषधीय करवाया है। उसमें उनकी ऐलर्जीज़ पता चलीं. वो भी जिनके कारण उनको कॉम्प्लिकेशन हो गया था,”
“माँ को?”
“नहीं बताया. लेकिन मैंने उनके नामएक चिट्ठी रख छोड़ी है,” अजय ने इशारे से दिखाया, “. वो वहाँ दराज़ में है। यदि कल को मुझे कुछ हो जाए, तो उसमें सभी कुछ लिख छोड़ा है,”
रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “दे डिज़र्व टू नो,”
“तुम भी. रूचि, मैंने कभी भी अपने फ़्यूचर से आने का मिसयूज़ नहीं किया। . मैंने बस यही कोशिश करी कि मेरे आस पास सभी की ज़िन्दगी सही रहे. बेहतर रहे।”
रूचि मुस्कुराई, “अज्जू. तुम कुछ ग़लत नहीं सकते! मैं किसी ग़लत पुरुष को अपना दिल नहीं दे सकती.”
अचानक से ही अजय को राहत महसूस हो आई, “तो. तो. डज़ इट मीन. दैट आई ऍम सेफ़?”
“अज्जू,” रूचि ने कोमलता से अजय के गाल को छुआ, “मैंने तुमको चाहा है. तुम्हारे जैसे लगने वाले तीस वर्ष के अंकल को नहीं!”
“ओह गॉड! . थैंक यू सो मच मेरे प्रभु!” अजय ने विश्वकर्मा प्रजापति जी को शुक्रिया दिया, “एंड थैंक यू रूचि!”
अचानक से ही रूचि की आँखों में चमक सी आ गई, “सोचो न अज्जू. तुमने भगवान को छुआ है! शायद ही किसी को ये सौभाग्य मिलता है! मैं तो तुम्हारी पत्नी बन कर धन्य हो जाऊँगी!”
“अरे यार,”
“अरे यार नहीं. सच में! जिसके सर पर स्वयं भगवान ने हाथ रख दिया हो, उसकी संगत में कुछ गलत नहीं हो सकता,”
“जान. आई डोंट थिंक दैट्स हाऊ इट वर्क्स,”
“जो भी हो. तुम्हारा इंटेशन नेक है। तुमएक अच्छे लड़के हो. एंड आई ऍम हैप्पी, कि मैंने तुमसे प्रेम किया है!”
“छोड़ोगी तो नहीं न मुझको?”
“कभी नहीं,”
अजय मुस्कुराया।
“बट आई वुड लाइक टू सी दैट रेड तिल ऑन हर ब्रेस्ट.”
“राइट ब्रेस्ट.” अजय ने स्पष्ट किया, “अंडरनीथ द फ्लेश. नॉट ऑन द ब्रेस्ट!”
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अपडेट 58
रात में दवाई के प्रभाव से अजय को जल्दी ही नींद आ गई थी, लेकिन रूचि ज्यादा देर तक नहीं सो पाई। पिछले दो दिनों की चिंता और उद्विग्नता ने उसकी नींद उड़ा दी थी। जान पहचाना सर का दर्द भी पुनः महसूस हो रहा था। अजय की चिंता में वो अपना सारा दर्द भूल गई थी, लेकिन अब उसको चैन से सोता हुआ देख कर, उसको स्वयं की तकलीफ़ महसूस होने लगी। उसके आँसू दोबारा से निकल आए - दर्द के कारण नहीं. वो तो नाममात्र ही था! अजय के कारण - जब अजय अचेत हो गया था तब उसको ये सोच कर डर हो आया कि कहीं शादी से पहले ही वो विधवा न हो जाए! और अब. जब से उसको अजय के रहस्य के बारे में पता चला था, तब से वो और भी उद्विग्न हो गई थी। कहीं ऐसा न हो किएक दिन ऐसे ही, अचानक से, भगवान अजय को उससे छीन कर पुनः भविष्य में भेज दें।
यह विचार ज्यादा दुखदायक था! कुछ महीनों पहले वो प्रेम, प्रेम संबंधों, विवाह इत्यादि के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। लेकिन अब वो इन सभी से अलग जिंदगी के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। अभी तक उसने अपनी जिंदगी में जो सभी कुछ किया था. उन सभी बातों का उद्देश्य. अजय और उसके परिवार के संग पूरा होने की प्रबल सम्भावना थी। और अचानक से ही उस सम्भावना को चूर होते देख कर उसका दिल टूट गया था। उसको लगा कि कहीं उसके गले से रोने की आवाज़ न निकल आए -इसलिये वो चुपके से उठ कर कमरे सेबाहर् निकल आई। उसने इधर उधर देखा -इसे तल पर सभी कमरों की लाइट्स ऑफ थीं,इसलिये वो नीचे उतर आई। देखा कि मम्मी के कमरे की लाइट्स ऑन थीं। उसके चेहरे पर राहत वाले जज्बातों आ गए। उसके दरवाज़े पर बसएक बार खटखटाया ही था कि किरण जी की आवाज़ आई,
“अंदर आ जा बिटिया,”
रूचि को यकीन ही नहीं हुआ कि मम्मी को पता चल गया कि दरवाज़े पर वो है।
जब वो अंदर आई, तो उसने किरण जी को अपनी तरफ मुस्कुराता हुआ पाया।
“आजा बेटू,”
रूचि उनके बगल आ कर उनसे चिपट कर लेट गई।
“नींद नहीं आ रही बेटू,”
यह कोई प्रश्न नहीं था - रूचि ने ‘न’ में सर हिलाया।
“बहुत डर गई थी मैं माँ,” कुछ देर पश्चात वो बस इतना ही कह पाई।
“समझ सकती हूँ मैं बच्चे,” किरण जी ने हल्की सी आह भरते हुए कहा, “समझ सकती हूँ,”
वो स्वयं भी तो अपने बेटे की हालत पर ज्यादा डर गई थीं।
कुछ देर तक रूचि यूँ ही किरण जी से लिपटी हुई लेटी रही।
जब रूचि कुछ न बोली, तो किरण जी ने बिना कुछ कहे अपनी ब्लाउज के बटन खोल कर ब्लाउज और संग ही अपनी ब्रा के हुक खोल कर ब्रा भी उतार दिया। दोबारा रूचि को अपने आलिंगन में समायोजित कर के अपनेएक हाथ में अपना चूची पकड़ कर, उसका चूचक रूचि के मुँह में दे दिया। रूचि भी बिना कुछ कहे उनका दूध पीने लगी। कुछ मिनटों में जब वो चूची खाली हो गया, तो किरण जी ने रूचि के मुँह में दूसरा चूची पकड़ा दिया। रूचि ने उसको भी कुछ मिनटों में खाली कर दिया।
“बेटू मेरी,”
“हम्म?”
“ठीक लग रहा है अभी?”
माँ का स्तनपान कर के रूचि को सच में आराम महसूस हो रहा था। उनके ममता भरे अंक में सिमट कर उसके दुःख कम हो गए थे। भावनात्मक सुख जो मिल रहा था, सो अलग।
रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“माँ?”
“हाँ बेटू?”
“प्लीज़ कीप लविंग मी लाइक दिस?”
“ऑलवेज बेटे. ऑलवेज!”
“थैंक यू माँ!”
“ऐसे मत कहो बच्चे,” किरण जी ने प्रेम से उसको दुलारते हुए कहा, “मेरे लिए तुझमें और माया या अज्जू में कोई अंतर नहीं है,”
दोनों दोबारा से चुप हो गए। किरण जी बड़े प्रेम से उसको सहलाती दुलारती रहीं।
“बेटू?”
“जी माँ,” रूचि की आवाज़ में अब थकावट सुनाई देने लगी थी।
वो अब जा कर शिथिल महसूस कर रही थी।
“निन्नी आ रही है?”
रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिला कर हामी भरी।
“आ जा,” किरण जी ने स्वयं को और रूचि को पलंग पर आरामदायक स्थिति में ला कर कहा, “मेरे पास सो जा,”
रूचि किरण जी से चिपक कर लेट गई।
किरण जी ने पुनः अपनाएक चूची उसको पीने को दे दिया। रूचि को अपने मुँह में दोबारा से कुछ बूँदें दूध की महसूस हुईं। कुछ देर में उसको सुखदायक नींद आ गई।
**
रूचि जब घर पहुँची तो उसने देखा कि कम से कमइसे टाइमघर में मुर्दनी जैसा माहौल नहीं था - जैसा दो दिन पहले हो गया था। उसके आने पर सभी ने उसका और अजय का कुशलक्षेम पूछा। सबसे बातें करने के पश्चात रूचि अपने कमरे में आ गई। कमरे में रागिनी पलंग पर लेटी हुईएक मैगज़ीन पढ़ रही थी। मैगज़ीन के कवर परएक अर्धनग्न लड़की मादक अदा में दिखाई दे रही थी। रूचि ने देखा - मैगज़ीन का नाम था ‘डेबोनेयर’! मैगज़ीन में वो जो भी पढ़ रही थी, उसको पढ़ कर उसका चेहराएक अजीब सी ख़ुशी या उत्तेजना में चमक रहा था. ऐसा कि जैसे वो अपने मन में कोई शरारत सोच रही हो।
रूचि ने उसकी ओरएक नज़र डाली और मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या देख रही हो, दीदी? क्या पढ़ने में इतनी मगन हो?”
“अरे बहना,” रागिनी ने मैगज़ीन को बंद कर के बगल रखते हुए बोली, “कब आई? सभी ठीक है न? जीजू ठीक हैं न?”
“हाँ सभी ठीक है, दीदी! वो भी ठीक हैं!”
“‘वो’?” रागिनी ने ठिठोली करते हुए रूचि को छेड़ा, “आय हाय मेरी बहना. बड़े रेस्पेक्ट से नाम लेती हो अपने ‘उन’ का!”
रूचि समझ तो रही थी कि रागिनी माहौल को हल्का करने की कोशिश कर रही है।
“क्या हुआ था जीजू को?”
“कुछ नहीं दीदी. शायद लेट स्लीपिंग, डिहाइड्रेशन, और थकावट के कारण उसको चक्कर आ गया था. नथिंग सीरियस!”
“पक्का न? कोई सीरियस बात तो नहीं है न?”
“हाँ. कोई सीरियस बात नहीं,”
“अच्छा है,” रागिनी ने बड़े ही नाटकीय तरीके से साँस छोड़ते हुए कहा, “. नहीं तो मुझे लगा कि कहीं मेरा हुस्न देख कर तो उनको चक्कर नहीं आ गया,”
रागिनी अपनी ही कही हुई बात पर हँसने लगी।
उसकी बात सुन कर रूचि को गुस्सा तो आया, लेकिन उसने भी उसके संग हँसने का नाटक किया।
उसको अजय की बातें याद आ गईं।
“हा हा हा हा. अरे दीदी! वो सभी छोड़ो. क्या पढ़ रही हो?” रूचि ने उलट पलट कर मैगज़ीन देखी, “कुछ मज़ेदार है क्या?”
रागिनी ने अपनी आँखें शरारत से नचाते हुए कहा, “अरे कुछ नहीं बहना, एयरपोर्ट से दो मज़ेदार मैगजीन्स उठाई थीं, वही पढ़ रही थी! तू भी देख न. बड़ी मज़ेदार है!”
रूचि ने कुछ पन्ने पलटे,
“अरे दीदी! इसमें तो नंगी नंगी लड़कियों की तस्वीरें हैं!”
“हाँ तो?” रागिनी ने ऐसे कहा जैसे ये कोई बड़ी बात नहीं हो, “डेबोनेयरएक गर्ली मैगज़ीन है न. लड़कियों की!”
रूचि ने वो पत्रिका पुनः रख दी।
रागिनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “वैसे, तू तो अब सेट हो गई ना, रूचि? अजय जैसे मस्त लड़के से शादी जो करने वाली है!”
उसकी आवाज़ मेंएक हल्की-सी ईर्ष्या थी, जो रूचि के कानों में साफ़ सुनाई दी। रागिनी ने अपने बालों को उंगलियों से सहलाते हुए आगे कहा, “सच बताऊँ, तेरी लॉटरी लग गई है बहना! इतना अमीर परिवार, बढ़िया और हैंडसम लड़का! क्या बात है, यार!”
रूचि ने हल्के से हँसते हुए कहा, “हाँ दीदी, अजय ज्यादा बढ़िया है। उसके घर में भी सभी लोग ज्यादा अच्छे हैं! मैं लकी तो हूँ!” दोबारा बात बदलते हुए, “लेकिन मेरी बात छोड़ो, तुम बताओ. तुम्हारी लाइफ में क्या चल रहा है? कोई बॉयफ्रेंड-वॉयफ्रेंड?”
रूचि ने अंधेरे में तीर मारा, लेकिन निशाना सटीक लगा! रागिनी की आँखों मेंएक चमक उभरी।
“अरे, कुछ नहीं! बस ऐसे ही थोड़ा बहुत.”
रागिनी अपने ‘सक्सेस’ की कहानियाँ सुनाना चाहती थी - बस, उसको सुनने वाले लोग चाहिए थे उसको।
“थोड़ा या बहुत?” रूचि ने कुरेदा।
“दो. तीन.”
“बस?”
रागिनी नेएक ठहाका लगाया, “अरे रूचि, तू कितनी भोली है! दुबई है यार. रुपए के चार के जज्बातों से तो प्रिंस हैं उधर! दोएक को टहला लिया. लेकिन तू तो जानती है न आजकल के लड़के. फ़कर्स. बस टाइमपास करने के लिए अच्छे हैं, घर बसाने के लिए नहीं!”
“क्यों? ऐसा क्या हुआ? कोई लायक नहीं था?”
“नहीं रे! वैसी बात नहीं है. उनको अपने में ही करनी रहती है शादी। थोक के जज्बातों प्रिन्स और प्रिंसेस होती हैं, तो जो भी एलिजिबल होते हैं, उनको मिल भी जाती हैं फ़ूफ़ी और खाला की लड़कियाँ! . और मुझे किसी की दूसरी स्त्री बन के रहनापस्न्द नहीं!”
“हम्म,”
रागिनी नेएक रहस्यमयी मुस्कान के संग कहा, “वैसे बहना, तू तो अभी तक वर्जिन ही होगी न? जीजू तो शरीफ़ लगते हैं! उनके संग कुछ हुआ या नहीं?”
रूचि का चेहराएक समय के लिए लाल हो गया, “अरे दीदी! क्या कह रही हो! अभी तो हमारी सगाई भी नहीं हुई है ठीक से!”
“लाडो रानी, सेक्स के लिए सगाई की क्या ज़रुरत है?”
“हम्म्म,” रूचि ने हाथ बाँधते हुए कहा, “तो तुम ही बताओ. तुम्हारे उन बॉयफ्रेंड्स के संग क्या-क्या हुआ? कुछ तो किया ही होगा न?”
रागिनी को अपने मसालेदार किस्से सुनाने के लिएएक श्रोता मिल गई थी।
उसनेएक शरारती हँसी हँसते हुए कहा, “अरे, मसालेदार तो ज्यादा कुछ हुआ, बहना! मेरा पहला बॉयफ्रेंड, ख़ालिद, वो तो ऐसा था कि बस हर टाइम मुझसे इंटिमेट होने का बहाना ढूंढता रहता था। बड़ा रुपया था उसपे! शेख़ राशिद टावर मेंएक कमरा मेरे लिए रखता था. वहाँ. बस, समझ ले यार. रातें ज्यादा लंबी होती थीं अपनी!”
उसने बड़ी कमीनियत के संग अपनी भौंहें उचकाईं और हँसते हुए कहा, “तू अभी समझ नहीं पाएगी बहना. लेकिन सेक्स के टाइम वो जो इंटिमेट मोमेंट्स होते हैं न, वो ज़िन्दगी का मज़ा दोगुना कर देते हैं।”
रूचि ने हल्के से अपनी भौंहें सिकोड़ीं।
उसे रागिनी की ये बेपरवाह बातें अजीब लग रही थीं, लेकिन वो नहीं चाहती थी कि रागिनी को लगे कि वो उसकी बातों से असहज हो रही है। पुराने वाले अजय पर उसको तरस भी आ रहा था कि किस तरह की लड़की से उसका पाला पड़ गया था!
सम्मुख में उसने हँसते हुए कहा, “अच्छा! तुम तो ज्यादा एक्सपीरियंस्ड हो गई हो दीदी! और दूसरा बॉयफ्रेंड? उसका क्या?”
रागिनी ने अपने कंधे उचकाए, “दूसरा वाला तो प्रॉपर प्रिन्स था! वो तो और भी मज़ेदार था। उसका नाम था सईद. पूरा बता दूँगी तो दंगा हो जाएगा,” वो फूहड़ता से हंसती हुई बोली, “बहुत ख़याल रखता था मेरा! सुपर-रिच था. मम्मी तो पता नहीं है, लेकिन लखपति हूँ मैं!”
कह कर उसने गहरी साँस भरी।
“फ़िर?” रूचि ने कुरेदा।
“कुछ नहीं रे! फट्टू हैएक नंबर का स्साला. प्राइवेसी के चक्कर में बस लॉन्ग ड्राइव पर ले जाता था। दुबई केबाहर् सुनसान रेगिस्तान में ही.” उसने दोबारा सेएक गहरी साँस ली और रूचि की ओर देखते हुए कहा, “तुझे तो अभी ये सभी एक्सपीरियंस करना बाकी है, बहना! लेकिन जब तू जीजू के संग अकेली होगी न, तो समझ जाएगी कि मैं क्या कह रही हूँ।”
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