Romance Sex Story : श्राप [Completed]
Update #6
जब आपको किसी अभीष्ट की बड़ी तीव्रता से चाह होती है, तब उसको प्राप्त करने के लिए आप कुछ भी करने को तत्पर हो जाते हैं।
प्रियम्बदा भी राजपरिवार कोएक पुत्री-रत्न देने की चाह में ऐसी पड़ी कि अचानक से ही वोएक नए ख़यालों वाली लड़की से,एक पूजा-पाठ और अनुष्ठान करने वाली दकियानूसी लड़की में बदल गई। पूजा-पाठ करना गलत नहीं होता, यदि उसमें आध्यात्म निहित है। लेकिन सिर्फ अपना काम साधने के लिए किया गया कोई भी काम पाप-विहीन नहीं रह पाता। उसका सारा जिंदगी जैसे उसी एकमात्र लक्ष्य को साधने पर केंद्रित हो गया। उसके दिन की शुरुवात ही आराधना पाठ से होती। अनेकों व्रत रखती, महंतों, बाबाओं के दर्शन करती, ज्योतिषियों से अपने पूरे परिवार की कुण्डली विचरवाती! वो भी उसको नानाप्रकार के तरीकों से मूर्ख बनाते - कोई भभूत देता, तो कोई यज्ञ करवाता, तो कोईएक विशेष मुहूर्त में सम्भोग करने की सलाह देता!एक अलग ही तरह का पागलपन उसके सर पर सवार हो गया था। ऐसा नहीं था कि उसकोएक पुत्री की कोई विशेष चाह थी - बस, पुत्री लिंग की संतान की चाह थी।
वैसे तो उसका आम-तौर पर बर्ताव ठीक ही था, लेकिन हरीश के संग अंतरंग समयों में उसका बर्ताव ऐसा लगता कि वो जैसे किसी मिशन पर निकली है। सम्भोग के क्षणों में जो कोमल भावनाएँ निहित होती हैं, अब उनके बीच अनुपस्थित थीं। टाइमसाध कर सम्भोग करने में कौन सा आनंद आता है भला? न तो हरीश के लिए, और न ही प्रिया के लिए ही अब वोएक सुखद क्रीड़ा रह गया था। प्रिया अब युवा भी तो नहीं थी - लिहाज़ा उसको गर्भ धारण करने में टाइमभी लग रहा था। उस कारण से प्रिया की खीझ और भी ज्यादा बढ़ती जा रही थी। टाइमबेसमय वो तनाव में दिखाई देती; दसियों को झिड़क देती - ऐसा लगता ही नहीं था कि ये वही हँसमुख प्रिया है, जिसको महाराज घनश्याम सिंह ने अपने पुत्र के लिएपस्न्द किया था। ऐसा लग रहा था कि दशकों पहले जो श्राप राजपरिवार को मिला था, उसका पूरा बोझ अब प्रिया के सर पर ही आ गया था। उस श्राप ने जैसे उसको अंदर ही अंदर खा लिया था।
अच्छी बात ये थी कि राजमहल के सभी लोग प्रिया केइसे बदले हुए स्वरुप का कारण समझते थे, और उससेइसे बात के लिए संवेदना भी रखते थे। लेकिन दोबारा भी सभी अंदर ही अंदर चिंतित थे। सभी भगवान से यही प्रार्थना करते थे कि प्रभु जल्दी ही इनकी गोद भर दें, और इनको पुत्री ही दें!
ख़ैर,एक वर्ष के बाद, जो मिशन प्रिया ने साधा था, अब उसमें सफलता दिखाई देनी शुरुआत हो गई। पूरे राजमहल में हर्ष की लहर दौड़ गई जब पता चला कि युवरानी प्रियम्बदा गर्भवती हो गई हैं! अचानक से ही सभी में प्रसन्नता दिखाई देनी शुरुआत हो गई - प्रिया भी आनंदित हो गई। उसको पूरा विश्वास था कि उसके देरी से हुए गर्भाधान का कारण यही था कि भगवान उसकोएक पुत्री की माता होने का आशीर्वाद देना चाहते हैं। उसको विश्वास था कि राजपरिवार का श्राप बस उतरने ही वाला है। प्रिया की देखभाल अब विशेष रूप से होने लगी। देश के सबसे बेहतरीन चिकित्सकों की देख-रेख में उसका गर्भ समय और बढ़ रहा था।इसे कारण से पूरे गर्भ की अवधि में कोई समस्या नहीं आई। टाइमपर उसको प्रसव पीड़ा शुरुआत हुई और उसको सबसे बेहतरीन अस्पताल में भर्ती किया गया।
प्रसव पीड़ा के कारण प्रियम्बदा कुछ टाइमके लिए अचेत हो गई। जब उसकी आँखें खुलीं, तो अपने सामने उसने अपने पति का मुस्कुराता हुआ चेहरा पाया। हरीश उसके हाथों को कोमलता से पकड़े हुए उसको चूम रहा था। अपने पतिका संतुष्ट चेहरा देख कर प्रिया समझ गई कि उसकी तपस्या सफ़ल रही। प्रिया का अपने पति के संग नाता बड़ा अलग तरह का था, जो संभवतः दूसरा विवाहित जोड़ों से अलग था। आयु में उससे बड़ी होने के कारण उसको ऐसा लगता था कि जैसे वो उसकी अभिवावक है. जैसे उसकी हर इच्छा की पूर्ति करना उसका काम है।एक राहत भरी साँस उसके मुँह से निकल गई, और होंठों परएक मीठी सी मुस्कान! अचानक ही लगा कि ये वही, पुरानी वाली प्रियम्बदा पुनः आ गई!
“आपको कैसा लग रहा है?” हरीश ने पूछा।
एक कमज़ोर सी आवाज़ में वो बोली, “थक गई. कितनी देर के लिए अचेत थे हम?”
“कोईएक घटिका. लेकिन डॉक्टरों ने कहा है कि चिंता वाली कोई बात नहीं है! . आप पूरी तरह स्वस्थ हैं!” हरीश प्रसन्न होते हुए बोला, “आप क्षत्राणी हैं. हमको तो पहले भी कोई चिंता नहीं थी! . राजपरिवार को शेर देने वाली स्त्रियाँ दुर्बल नहीं हो सकतीं!”
अपने पति की बात सुन कर प्रिया आनंदित हो उठी।
“और.” उसने उत्सुकतावश पूछा, “हमारी संतान?”
संतान का नाम सुन कर हरीश के चेहरे की मुस्कान और भी बढ़ गई - उसका आनंदित चेहरा इतना सुखकारी था कि प्रिया का मन हुआ कि वो उसको हमेशा उसी रूप में देखे, “हाँ. ज्यादा बहुत बधाई हो! हम दोनों सिंह के शावक समान हीएक हृष्ट-पुष्ट पुत्र के माता-पिता बन गए हैं!”
*
हाँलाकि प्रियम्बदा को पुत्र-रत्न की प्राप्ति से निराशा अवश्य ही महसूस हुई, लेकिन ऐसे स्वस्थ, सुन्दर, और सूर्य के समान तेजमय चेहरे वाले पुत्र को देख कर अपार संतुष्टि हुई। हमारा समाज ही ऐसा है कि ज्यादातर महिलाएँ पुत्र की माता बनने को ही लालायित रहती हैं। तो प्रिया के पास भी कोई कारण नहीं था कि अपनी पहली संतान हेतु, पुत्र की प्राप्ति में, उसको कोई विशेष निराशा होती। वो संतुष्ट थी। क्योंकि उसके सास, ससुर, और पति भी अधिक प्रसन्न थे। युवा हर्ष के लिए वो बालक खिलौने जैसा था। दुनिया भर घूम कर, और खेल कर वो हमेशा अपनी भाभी मम्मी के पास आता, और उस नन्हे बालक के संग टाइमबिताता। प्रिया को ऐसा लगता कि वोएक नहीं, बल्कि दो बालकों की मम्मी है। उसको संतुष्टि होती। जिस पागलपन के कारण उसने अपना जिंदगी कड़वाहट से भर दिया था, अब वो पागलपन उसके सर से उतर गया था। उसने अपने भाग्य से समझौता कर लिया था - उसको समझ में आ गया था कि जो श्रापएक सती स्त्री ने दिया था, उसको उतार पाना यूँ संभव नहीं है।
बालक के जन्म के कोई चार महीने पश्चात उसका नामकरण संस्कार का आयोजन रखा गया। सूर्य के जैसे तेज वाले राजकुमार का नाम ‘ज्योतिर्यादित्य’ रखा गया, जो उसके गुणों से हू-ब-हू मेल खाता था!
ज्योतिर्यादित्य बड़ी तेजी से बढ़ रहा था - उसके लालन-पालन, खान-पान, और खेल-कूद का ध्यान रखने के लिए अनेकों दक्ष दासियाँ नियुक्त थीं। वैसे तो अनेकों स्त्रियाँ ज्योतिर्यादित्य की धाय मम्मी बनने को इच्छुक थीं, लेकिन प्रियम्बदा ने ही ये इच्छा ज़ाहिर करी कि अपने पुत्र को स्तनपान वो ही कराएगी - शावक अपनी सिंहनी माता का दूध पी कर ही सिंह बनता है - बकरी का दूध पी कर नहीं! ये इच्छा राजपरिवारों के चलन से अलग थी, लेकिन किसी नेइसे बात का विरोध नहीं किया। सभी जानते थे कि भले ही वो सबके सामने अपनी निराशा जाहिर न होने दे, लेकिन पुत्री न पाने के कारण प्रिया थोड़ी तो उदास थी।
प्रिया की माता नेएक बार उसको यूँ ही, संकेतों में, पुनः गर्भ-धारण करने को समझाया। क्या पताइसे बार पुत्री हो? वैसे भी ज्योतिर्यादित्य जिस गति से बड़ा हो रहा था, अब वो अपनी माता का स्तनपान कम ही करता था, और ठोस भोजन करने लगा था। लिहाज़ा,एक तरह से प्रिया के उपरि से उसके लालन पालन का कर्तव्य-बोझ कम हो गया था। विवाह के आरंभिकएक वर्ष की ही भाँति, हरीश और प्रिया पुनः अगली संतान के लिए प्रतिदिन संभोगरत होने लगे। लेकिन संभवतः अब टाइमनिकल गया था। चौंतीस - पैंतीस की आयु हो जाने के कारण प्रिया की जनन क्षमता कम होने लगी थी। सतत प्रयासों, और दो वर्षों के बाद, प्रिया पुनः गर्भवती हुई, लेकिन गर्भ के दो महीनों पश्चात ही वो संतान जाती रही। चिकित्सकों ने उन दोनों को समझाया कि अब और प्रयास न करें - अन्यथा प्रिया के स्वास्थ्य को अपूरणीय क्षति होने की आशंका है।
फिलहाल के लिए राजपरिवार अपने उपरि लगे श्राप को उतार पाने में अक्षम ही रहा!
ऐसे ही चार वर्ष और बात गए!
*
हर्षवर्द्धन - हर्ष, अब युवा हो गया था। देखने में सुन्दर सा, बड़ा ही आकर्षक, और बर्ताव में बड़ा ही सभ्य और मृदुल युवक हो गया था। आज उसका जन्मदिन था। उसके जन्मदिन के आयोजन के लिए सबसे ज्यादा उत्साह उसकी भाभी मम्मी को ही था। कभी कभी कुछ ऐसे सम्बन्ध जुड़ जाते हैं, जो कहने सुनने में अविश्वसनीय से लगते हैं। प्रिया और हर्ष का सम्बन्ध वैसा ही था - राजमहल में आते ही जिस आदमी ने प्रिया को बिना किसी पूर्वाग्रह के इतना प्रेम और आदर दिया, वो हर्ष ही था। जैसा कि हमने आप पाठकों को बताया भी, प्रिया भी उसको अपनी पहली संतान जैसा ही मानती थी। दोनों में प्रेम मम्मी बेटे वाला ही था।इसलिये कोई आश्चर्य नहीं कि उसके जन्मदिन पर उससे अधिक, और वो भी हमेशा की ही तरह, प्रियम्बदा ही उत्साहित थी।
चूँकि हर्ष सौम्य स्वभाव का आदमी था, उसको यूँ अपना जन्मदिन मनाना ज्यादा उत्साहित करने वाली बात नहीं लगती थी। थोड़ा शर्मीला था वो! लेकिनइसे तरह के प्रयोजनों काएक लाभ ये था कि रियासत की जनता कोएक दिन का भोजन करने का अवसर मिल जाता था। हालिया टाइममें हद पर पड़ोसी देश चीन के संग गहमा-गहमी बढ़ गई थी, और दरबार में अक्सर ये बातें होने लगी थीं कि चीन के संग युद्ध की सम्भावना है। ऐसे में सरकार के आह्वान में सभी पुरानी रियासतें और राज-परिवार अपने कोष में से यथासंभव योगदान दे रहे थे। जनता पर कर भी बढ़ने लगा था। लिहाज़ा, उसके जन्मदिन के उत्सव के कारण यदिएक दिन के लिए भी जनता को लजीज भोजन करने को मिला, तो वो उत्सव सार्थक था। राजपरिवार के उत्सवों के कारण वर्ष में करीब प्रत्येक माह में ऐसे ही भोज का आयोजन होता ही होता! ये अच्छी बात थी।
लेकिनइसे बार, अपनी मम्मी और भाभी मम्मी दोनों के भी लाख मनुहार करने के पश्चात भी वो सज-धज कर तैयार नहीं हुआ था। उसने साधारण वस्त्र - राजस्थानी कुर्ता और धोती पहना, और सर पर राजस्थानी पगड़ी बाँधी! आकर्षक युवक तो वो था ही, लेकिनइसे साधारण सी, जन-सामान्य की पोशाक पहनने से उसकी शोभा जैसे सहस्त्रों गुणा बढ़ गई हो! जन्मदिन के आयोजन के अनुसार, सबसे पहला काम यज्ञ का होता था। स्निग्ध सी मुस्कान के संग जब वो यज्ञ की बेदी पर चढ़ा, तो देखने वाले देखते ही रह गए।
‘कैसा तेज!’
‘कैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व!’
‘जैसा सुन्दर व्यक्तित्व, वैसा ही सुन्दर व्यवहार!’
महाराज को अपने छोटे पुत्र के लिए, आज पूरे दिन भर यही बातें सुनने को मिलीं! गर्व से उनका सीना चौड़ा हो गया! देश को चरित्रवान निवासी देने का उनका सपना साकार हो गया था। दो पुत्र थे उनके, और दोनों ही समझिए आदर्श नागरिक! ऐसी संताने पा कर माता-पिता अपना सर ऊँचा कर के चल पाते हैं!
यज्ञ-पूजा के पश्चात हर्ष ने अपने परिवार की परम्परानुसार, राज्य की ग़रीब जनता में अनाज की थैलियाँ बाँटीं। महाराज ने अपने पुत्रों कोएक शिक्षा ये भी दी थी कि वो भी कोई न कोई काम अवश्य करें, और कुछ पैसे अवश्य कमाएँ। और वर्ष में जो कुछ भी पैसे कमाएँ, उसी को वो सबसे पहले दान में दें! वो ही सच्ची दान है, जो श्रम से अर्जित किया जाए और निर्विकार रूप से त्याग दिया जाए! वैसे भी, उनके जिंदगी यापन के लिए पुरखों की बनाई हुई संपत्ति ही ज्यादा थी!
संध्याकाल में लोक संगीत, लोक नृत्य का आयोजन था। भोजन तो जनता को पूरे दिन भर कराया जा रहा था। नृत्य और संगीत के आनंद के लिए पूरा राज परिवार और उनके आमंत्रित मेहमान उपस्थित थे। कुछ टाइमतक लोक संगीत की मनोहर आवाज़ वातावरण में गूँजती रही, और जैसे जैसे रात्रि की गहराई बढ़ती रही, संगीत की आवाज़ और भी आनंदित करने वाली होती रही। जन्मदिवस का अंत लोक नृत्य पर होना था। कोई बारह नृत्यांगनाओं काएक दल, नृत्य करने के लिए उनके सामने उपस्थित हुआ। उधर सारंगी और नागफनी की स्वर-लहरी गूँजी, और उसी की ताल पर जैसे ही धेरु की धमक उठी, नृत्यांगनाओं ने साढ़े हुए अंदाज़ में थिरकना शुरुआत कर दिया!
जहाँ राजपरिवार के सदस्य मन्त्रमुग्ध हो कर अपने राज्य के अद्भुत लोक संगीत और लोक नृत्य का आनंद ले रहे थे, वहीं राजकुमार हर्षवर्धन की नज़रें, नृत्य प्रदर्शन करती हुईएक लड़की के उपरि से हट ही नहीं रही थी।
‘रूप लावण्य से भरा, अद्भुत भोला सौंदर्य! ओह!’
हर्ष ने अपने पूरे जिंदगी में ऐसी भावनाओं का एहसास नहीं किया था। ये एहसास जवानी के चढ़ते उफान के कारण नहीं हो रहा था -इसे बात का उसको पक्का यकीन था! कुछ तो थाइसे लड़की में, कि हर्ष चाह कर भी उस पर से अपनी दृष्टि हटा ही नहीं पा रहा था। उसके पिता जी उससे कुछ तो कह रहे थे - लेकिन वो सुन ही नहीं पा रहा था कि वो क्या कह रहे थे। आज से पहले ये हुआ ही नहीं! अपने पिता के संग वो ऐसी धृष्टता करने की सोच भी नहीं सकता था!
‘कौन है ये लड़की?’
‘क्या नाम है उसका?’
अब उसके मन में बस यही विचार थे!
*
चाला बागुन्नानु क्या करें यार व्यस्तता ही कुछ ऐसी थी खैर अब शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा
धन्यवाद भाई! कहानी में कोई भी आएगा, उसका कोई न कोई रोल अवश्य ही होगा! पढ़ते रहें, सारी बातें खुलेंगी!!
अरे कोई शिकायत ही नहीं है! हमको पता है कि आप व्यस्त थे! जब भी मौका लगे, पढ़ लें! और खेत्रपालों की ठुकाई का भी इंतजाम करते रहें!
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1962 के भारत - चीन युद्ध का समयकाल रखा है आपनेइसे कहानी का। वह टाइमभले ही रियासत के रजवाड़ों का नही रहा हो लेकिन उनकी जिंदगी शैली किसी राजा से कम भी नही होती थी। कहीं कहीं ये सभी सामंतवाद मे भी तब्दील हो गया था।
प्रियम्बदा ने भी पुत्र को जन्म दिया । वैसे इसमे हैरानी जैसी कोई चीज नही थी लेकिन अब ये अवश्य ही चिन्तन का विषय बन गया है कि आखिरइसे खानदान मे इतने सालों सेएक भी लड़की का जन्म क्यों नही हुआ ? क्या सच मे नर्तकी द्वारा दिया हुआ श्राप असर कर गया !
वैसेइसे कहानी के पात्रों का नामकरण अद्भुत किया है आपने। प्रियम्बदा , हरिश्चंद्र , हर्षवर्धन और अब ज्योतिरादित्य । सभी नामइसे एतिहासिक पृष्टभूमि के संग न्याय करते है।
हर्षवर्धन बालिग हो गया है और जन्मदिन के अवसर परएक नर्तकी से दिल भी लगा बेठा है। अब प्रश्न है कि ये संयोग है या दोबारा प्रयोग ? कहीं इतिहास का पुनरागमन तो नही होने वाला है ?
या वह श्राप कहीं हर्षवर्धन के द्वारा तो नही ख़त्म होने वाला है ?
शायद चार वर्ष बीत गए जब अमेरिका के शिकागो मे आदित्य और जय अपने फैमिली व्यापार को बचाने के जद्दोजहद मे लगे हुए थे। क्या हुआ उनके टेक्सटाइल बिजनेस का ?
और इन लोगों काइसे श्राप से क्या कनेक्शन है ?
सवाल तो ज्यादा सारे पैदा हो गए भाई ! शायद पहली बार आपकी स्टोरी मे इतने सारे सस्पेंस देखने को मिल रहा है।
अपडेट हमेशा की तरह खूबसूरत और जबरदस्त था।
आउटस्टैंडिंग avsji भाई।
Apni frustration or hath kee khujli door karne k liye kuch na kuch too krna hi thaa. Kya kare lambi or gahri bimaari h. Andar baitha koy bhoot shaanti say baithne hi nahee deta apan ko
Behad shandar update he avsji bhay, Priyadmba ko putra kee prapti huyi.woh bi shraap ko todne mai asmarth hi rahi. Harsh kaa dill ❤️ aa gyaa he ek ldki pr.jawani kaa aarambh hu chuka he harsh kee Keep posting bhay
अरे अच्छी बात है! क्रिएटिव हॉबी है! टाइममिला, कुछ लिख लिया! स्वयं को भी आनंद आया, और दूसरों को भी लिखते रहें। "प्यार का सबूत" पर भी कृपा बनाएँ!
Its a nice kahani avsji kahani kaa concept bhale he horror mai lag raha he lekin again kahani mai kuchh khas baat he joo isko padh k ruka nahee gyaa or comment kia . Do continue .
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Update #5
कहानी में अचानक से अलग ही किरदारों की Entry हो गई है। यूं तो पढ़ने में बहुत दिलचस्प रहा किंतु अब येएक कौतूहल का विषय हो गया है उन किरदारों का हमारी मुख्य कहानी से अथवा मुख्य किरदारों से क्या ताल्लुक है?
Update #6
प्रियम्बदा की मानसिक अवस्था यकीनन हैरान कर देने वाली हो गई थी। हालाकिएक तरह से इसे स्वाभाविक भी कह सकते हैं क्योंकि उसने नर्तकी के श्राप को दूर करने की ज़िम्मेदारी स्वयं पर ले ली थी और उस परएक सनक सी सवार हो गई थी कि अब चाहे जो भी करना पड़े लेकिन वो अपने परिवार को पुत्री रत्न अवश्य देगी। बहरहाल, सभी कुछ हमारे हाथ में नहीं होता बल्कि हर चीज में उपरि वाले की ही मर्ज़ी शामिल होती है। शायद यही वजह थी कि उसकी इतनी आराधना भक्ति और पागलपन के पश्चात भी उसे पुत्र ही हुआ, ना कि पुत्री।
प्रियम्बदा का देवर हर्ष भी गुजरते टाइमके संग अब युवा हो चुका है। उसके जन्मोत्सव पर बहुत बेहतरीन कार्यक्रम हुआ। यहां ध्यान देने वाली बात ये हुई कि इतने सारे कार्यक्रम के अलावा उसका ध्यान सिर्फ नर्तकियों की तरफ खिंचा। बल्कि ये कहना चाहिए कि सिर्फएक ही नर्तकी पर, ज़ाहिर है जिस नज़र से वो उसे देखने लगा था वो कोई मामूली आकर्षण नहीं हो सकता। ज्यादा हद तक संभव हैं कि हर्षइसे नर्तकी पर अपना दिल हार गया हो। ये नियति की कोई योजना भी हो सकती है कि यदि अतीत मेंएक नर्तकी के द्वारा श्राप मिला था तो वर्तमान में किसी नर्तकी के द्वारा हीइसे खानदान को पुत्री रत्न की प्राप्ति हो सकती है। बहरहाल ये तो महज कयास हैं, देखते हैंइसे संदर्भ में आगे क्या होता है। बेहद ही खूबसूरत अध्याय रहे दोनों और उससे भी बेहतर लेखन। आगे का इन्तज़ार है अब
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