Romance Sex Story : श्राप [Completed]
अपडेट ६
अब मुझे लग रहा है कि ये कहानी प्रियम्बदा से आगे जायेगी। भले ही श्राप मुक्त कराने में कोई और नायिका हो, पर प्रियम्बदा ही सूत्रधार होगी। और शायदइसे नर्तकी का भी कोई रोल हो, या मेन लीड हो.
खैर अभी कहानी ज्यादा ही बाल्य अवस्था में है, जैसी लंबी कहानियां आप लिखते हैं उस हिसाब से।
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Update #7
मकिनली एंड कंपनीएक पुरानी, स्थापित, और नामचीन कंसल्टिंग कंपनी थी। हाँलाकि ईआईटी ऐसी छोटी कंपनी भी नहीं थी, लेकिन दोबारा भी, अनेकों स्थापित, बड़ी अमेरिकन कंपनियों के सामने, ईआईटी की कोई हैसियत नहीं थी। ये बात मकिनली एंड कंपनी भी समझ चुकी थी। लिहाज़ा, ईआईटी जैसी कंपनी का प्रोजेक्ट लेना, उनको अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं लगा।इसलिये बड़े कंसल्टेंट्स कोइसे तरह की कंपनी का प्रोजेक्ट लेने में थोड़ा हिचक हो रही थी। इसलिए, उन्होंने दो नौसिखिये कंसल्टेंट्स की टीम को ईआईटी जा कर बात करने को कहा। वो नौसिखिये कंसल्टेंट्स भी अपनी कंपनी के ही रवैये को दिखा रहे थे - उनके प्रेजेंटेशन और हाव जज्बातों सभी में दिख रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो ईआईटी का प्रोजेक्ट ले कर, उन पर कोई एहसान कर रहे हों।
यह देख कर ईआईटी के बाकी लोगों को तो नहीं, लेकिन जय को बेहद गुस्सा आया! जय ने भले ही अभी तक सिर्फ ग्रेजुएट डिग्री ही हासिल करी थी, लेकिन कम उम्र से ही बिज़नेस देखने, और बिज़नेस और इकोनॉमिक्स में पढ़ाई करने के कारण, उसको ज्ञान बढ़िया था - कम से कम इन नौसिखिये कंसल्टेंट्स से कहीं बेहतर, जो सिर्फ बोलना बेहतर जानते थे। थोड़ी ही देर में जय का सब्र जाता रहा - और उसने उन दोनों को लताड़ते हुए वहाँ से दफ़ा हो जाने को कहा। जाहिर सी बात है, दोनों ही कम्पनियाँएक दूसरे की ब्लैक लिस्ट में शामिल हो गई थीं।
जय को जल्दी ही अपनी गलती का एहसास हो गया और कंपनी को पुनः ऊँचाई पर पहुंचाने का अपना ये प्लान डूबता हुआ दिखाई देने लगा। आदित्य ने उससे कहीं ज्यादा दुनिया देखी थी,इसलिये उसमें ज्यादा धैर्य था। उसको जय का बताया हुआ तरीका बढ़िया लगा! उसको उम्मीद थी कि अवश्य ही मकिनली एंड कंपनी ने उनको उदास किया हो, लेकिन दूसरा कंसल्टेंट्स वैसा नहीं करेंगे! ईआईटी कंपनी में जो भी लोग थे, वो ज्यादातर सेल्स के लोग थे। उनके काम करने का तरीका निश्चित हो गया था; कुछ नया करने का, नया सीखने का जूनून नहीं था उनमें। ज्यादातर या तो देसी या दोबारा देसी मूल के थे।एक तरह से कम्फर्ट ज़ोन में थे सभी!इसलिये वो चाहता था कि जय का सुझाया हुआ तरीका संपन्न हो। कोई नई दिशा मिले उनको!
दूसरी कंपनी का हाल मकिनली एंड कंपनी जैसा नहीं था! ये लोग कहीं ज्यादा प्रोफेशनल लगे; जो बातें उन्होंने बताईं, उससे जय और आदित्य को कुछ नए नए विचार सोचने को मिले। अच्छी बात ये थी किइसे कंपनी ने टेक्सटाइल उद्योग में, और कई मध्यम आकार की कंपनियों के संग काम किया था। लिहाज़ा, उनको ज्ञान ज्यादा था। लेकिनएक दिक्कत थी - इनका बिल मकिनली एंड कंपनी के मुकाबले कहीं ज्यादा होने वाला था। लिहाज़ा, उनको अफ़ोर्ड कर पाना, फिलहाल तो संभव नहीं था।
ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप, उन दोनों कंपनियों से भिन्न लगा! जिस दिन से ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप के लोगों से जय की बात चीत शुरुआत हुई थी, उसी दिन से लग रहा था कि वो लोग बड़े सधे हुए प्रोफेशनल लोग हैं। जय को ऐसा नहीं लगा कि उनको उसकी कंपनी से धन्धा कमाने का कोई लालच हो! ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप के लोग चाहते थे, कि उनके कंसल्टेंट्स ईआईटी को जो भी उपाय बताएँ, वो उनके काम का हो!इसलिये ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप ने उनसे पुनः कांटेक्ट साधने में थोड़ा टाइमलिया। फॉर्मल मीटिंग करने से पहले, उनकी टीम काएक कंसलटेंट जय से मिलने आया, और देर तक बैठ कर, बड़े ही बुनियादी प्रश्न पूछता रहा। जयइसे तरह के दृष्टिकोण से ज्यादा प्रभावित हुआ। उसको भी लगने लगा कि ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप के संग काम करने की सम्भावनाएँ बलवती हो रही हैं। लेकिन, वो ज्यादा जल्दी किसी नतीजे पर नहीं पहुँचना चाहता था। सबसे पहली बात, उनके कंसल्टेंट्स दक्ष होने चाहिए, और दूसरी बात, उनका दाम, इनकी पहुँच के भीतर होना चाहिए। दोनों ही बातें आवश्यक थीं!
“क्या लगता है, जय?” आदित्य ने रात में खाने की टेबल पर जय से पूछा, “ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप वाले हमारे काम के होंगे?”
**अमेरिकन परिवार है, लिहाज़ा, ये बातें अंग्रेजी में होती हैं, लेकिन चूँकि लेखक अंग्रेजी और हिंदी दोनों ही में नहीं लिखना चाहता,इसलिये सिर्फ हिंदी ही में लिखेगा! कभी कभी कुछ बातें अंग्रेज़ी में भी लिखी जाएँगी, लेकिन सिर्फ ज़ोर देने के लिए!**
इस परिवार का ये तरीका नहीं था कि खाने की टेबल पर बिज़नेस की चर्चा करें। लेकिन पिछले कुछ टाइमसे जय जिस तरह से तनाव की स्थिति में था, आदित्य से देखा नहीं गया।
“आदि,” क्लेयर ने अपने पति को चेताया, “नो बिज़नेस टॉक्स व्हाइल व्ही आर डाइनिंग!”
“भाभी, आई ऍम सो सॉरी! भैया की गलती नहीं है. मैं ही इतनी टेंशन में हूँ, कि वो भी क्या करें!”
“टेंशन किस बात की है जय?” क्लेयर ने कहा, “ऐसा तो नहीं है न, कि यदि कंसलटेंट न मिले, तो हमारी कंपनी काम करना बंद कर देगी!”
“नहीं भाभी. वैसा तो नहीं है!”
“फिर?”
“जान, तुम बात को समझा करो,” आदित्य ने उसको समझाते हुए कहा, “जय अभी नया नया है. छोटा है! वैसे भी कंपनी में ये घुटे हुए लोग उसको ज्यादा वैल्यू नहीं देते हैं. ऐसे में यदि उसका प्लान फेल हो जाता है, तो वो लोग इसकी इज़्ज़त कभी नहीं करेंगे! . इट्स अ मैटर ऑफ़ प्राइड एंड रेस्पेक्ट, मोर दैन एनीथिंग एल्स!”
“ओह, ऑफिस पॉलिटिक्स?” क्लेयर ने समझते हुए कहा, “लेकिन, तुम लोग मालिक हो न!”
“हाँ, मालिक हैं! लेकिन बिना किसी क्वालिटी के मालिकाना हक़ दिखाना, मतलब बाकी लोगों के सामने स्वयं को मूर्ख साबित करना! . यदि इन लोगों को ठीक से काम करना है, तो हमारी रेस्पेक्ट करनी ज़रूरी है!”
“हम्म,”
“अपने एम्प्लॉईज़ को काम करने का, जय को फॉलो करने का आर्डर मैं दे तो सकता हूँ. लेकिन, उनके मन में उसके लिए इज़्ज़त नहीं ला सकता!इसलिये होना ये चाहिए कि जयएक नेचुरल लीडर के जैसे ही कम्पनी में बढ़े!”
“हम्म्म, ठीक है! लेकिन अभी खाना खा लो. ये सभी पश्चात में डिसकस कर लेना!”
“यस मा’म!” आदित्य ने कहा।
“यस भाभी!”
सभी नेएक सभ्य परिवार की भाँति हँसी ख़ुशी भोजन किया, और दोबारा क्लेयर ने जय और आदित्य को बिज़नेस की बातें करने के लिए तन्हा छोड़ दिया। अपने पति की ही तरह क्लेयर भी चाहती थी कि जय तरक्की कर सके - जय को उसने अपने छोटे भाई समान ही अपनी देख-रेख में बड़ा किया था। उसको भी उसकी सफ़लता की आशा थी, उससे अनेकों अपेक्षाएँ थीं। लेकिन, वो भी समझ रही थी कि जय की अगुवाई मेंइसे काम की सफ़लता क्यों आवश्यक है।
“क्या लगता है?” बालकनी में आ कर जय के बगल बैठते हुए आदित्य बोला।
“पता नहीं भैया. अभी तक जैसा एक्सपीरियंस हुआ है, मुझको तो नहीं लगता कि ज्यादा उम्मीद करनी चाहिए. बट, यू नेवर नो! होने को सभी कुछ हो सकता है!”
“हम्म,” आदित्य अचानक ही बड़े भाई वाले अंदाज़ में बोला, “देखो बेटा. ज्यादा चिंता न करो! हम सभी तुम्हारे संग हैं। . कंसलटेंट न मिले, न सही, लेकिन तुम तो हो ही न? मुझे पूरा यकीन है कि तुम कोई न कोई रास्ता निकाल लोगे!”
“थैंक यू भैया!”
“हाँ. मन में डाउट मत रखो! . गिव योरसेल्फ़ सम स्पेस! . सभी बढ़िया हो जाएगा!”
“आई नो भैया. हमाराएक ऑनेस्ट बिज़नेस है. मुझे लगता है कि बसएक नई सोच से ज्यादा कुछ ठीक हो सकता है! . इधर चाहे कुछ भी हो रहा हो, लेकिन कितने सारे आर्टिसन की वेल-विशेज़ हमारे संग हैं. हम फ़ेल नहीं हो सकते!”
“सी! दैट्स व्हाट आई वांट टू सी इन यू! . अपने मन से कभी उम्मीद को कम मत होने देना! . बस, आगे बढ़ते जाना! . तुम्हारी भाभी तुम्हारे सामने कुछ नहीं कहतीं, लेकिन वो भी चाहती हैं कि तुम सक्सेस हासिल करो!”
“आई नो भैया. आई नो!”
आदित्य मुस्कुराया, “गुड! तो चलो, अब सो जाओ! कल वो लोग आएँगे. उनसे क्या क्या पूछना है, सोच के रखो! ओके? . और हाँ, याद रहे, ये प्रोजेक्ट तुम्हारा ही है!”
“हाँ भैया!”
“गुड! . गुड नाईट!”
“गुड नाईट भैया!”
*
सवेरे जय उठा, तो उसके मन मेंएक अलग ही तरह की तरंग,एक अलग ही तरह की ऊर्जा थी. जो कल शाम को नहीं थी। नींद से उठते ही उसके मन मेंएक ख़याल आया कि आज की मीटिंग बेकार नहीं जाने वाली। कल बड़े भाई की बातों से भी उसको बड़ा सम्बल मिला! जब मन आशा से पूर्ण रहता है, तो बदन में ऊर्जा आ ही जाती है। जय का आज का दिन बड़े उत्साह से बीत रहा था। दोपहर पश्चात उसको खबर मिली कि ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप के तीन कंसल्टेंट्स मिलने आए हैं। जैसा पिछली दो मीटिंग्स में हुआ, उनको मीटिंग हॉल में बैठाया गया और जय और आदित्य समेत, ईआईटी के सभी अधिकारी उनसे मिलने चले।
“वेलकम,” आदित्य ने हाल में प्रवेश करते हुए सभी मेहमानों का स्वागत किया, “टू आवर हम्बल एंटरप्राइज! . आई ऍम आदित्य!”
उसके पीछे आते हुए जय ने भी अपना परिचय दिया, “. आई ऍम जय!”
“हेलो आदित्य. हेलो जय! आई ऍम जेसन.” टीम के लीडर ने अपना परिचय दिया, “आई विल बी योर लीड कंसल्टेंट! एंड, व्ही आर सो हैप्पी टू बी वर्किंग विद यू!”
टीम के लोग आपस में मिल रहे थे, और जय की नज़रें, कंसल्टिंग टीम की एकमात्र लड़की पर टिकी हुई थीं।
‘ओह गॉड! कितनी सुन्दर. कितनी हसीन.”
ऐसा नहीं है कि जय ने आज से पहले कोई सुन्दर लड़की ही न देखी हो - खूब देखी, भारत में भी और अमेरिका में भी! लेकिन किसी लड़की को देख कर उसको अभी के जैसी भावनाओं का एहसास कभी नहीं हुआ! बिज़नेस सूट में, प्रोफ़ेशनल हाव-भाव ली हुई ये लड़की पक्के तौर पर भारतीय मूल की थी! सुन्दर थी! उसमें कोई भ्रम नहीं! लेकिनएक अद्भुत आकर्षण था कि जय कोशिश कर के भी उस पर से अपनी दृष्टि हटा ही नहीं पा रहा था। जेसन अपनी टीम में सभी का परिचय दे रहा था. लेकिन जय को जैसे कुछ सुनाई ही न दे रहा था।
“. एंड,” अंततः वो लड़की का परिचय देने लगा, “लास्ट बट नॉट द लीस्ट, प्लीज़ मीट मीना, आवर डोमेन एक्सपर्ट!”
“हेलो मीना,” आदित्य ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा, “नाइस टू मीट यू!”
“हेलो आदित्य,” वो मुस्कुराई, दोबारा जय से हाथ मिलाती हुई बोली, “हेलो जय.”
जय के बदन में जैसे विद्युत की तरंग दौड़ गई हो. मन ही मन जय ने महसूस किया कि सिर्फ उसके ही मन में ऐसी उथल पुथल नहीं मची हुई थी. शायद मीना के मन में भी.
दोनों की नज़रें दो तीन क्षणों के लिए मिली रहीं; दोनों के हाथ भी!
फिर मीना ने करीब दबी हुई आवाज़ में कहा, “आई ऍम मीनाक्षी!”
'एकदम सही नाम है. मीनाक्षी. सुन्दर आँखों वाली. ओह!'
“यू आर मोस्ट वेलकम. मीनाक्षी.”
जय मंत्रमुग्ध सा बोला।
उसके दिल की धड़कनें ऐसी बढ़ गईं कि जैसे वो अभी अभी सौ मीटर की दौड़ लगा कर आ रहा हो! होंठ सूख गए!
'ऐसा तो कभी नहीं हुआ!' उसने सोचा!
*
Behtareen update he avsji bhay, Aaditya or uski wafe ne joo hausla Jay ko diya uskah confidence badh gyaa he.Meenakshi k rup mai sayad hame Jay kee nyika bi mil gai he. Keep posting bhay
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Update #8
राजकुमार हर्षवर्धन की नज़रें, नृत्य और संगीत के दल को पारितोषिक बाँटते हुए भी, उस लड़की के उपरि से हट नहीं पा रही थी।
“राजकुमार की जय हो. भगवान आपको लम्बी आयु दें,”एक पुरुष ने पारितोषिक ग्रहण करते हुए हर्ष को बधाईयाँ दीं, और अपने हैसियत के अनुसार आशीर्वाद दिया।
कभी कभी उम्र में बड़ा होना काफ़ी नहीं होता! आपका सामाजिक ओहदा भी बड़ा मायने रखता है। आप चाहे जो भी हों, सामाजिक ओहदे कभी कभी लोगों का क़द इतना ऊँचा या नीचा कर देते हैं कि अगले के हाथ दूसरे के सर तक नहीं पहुँच पाते!
“धन्यवाद. आप?”
“राजकुमार जी, मेरा नाम गौरीशंकर है.” दोबारा जैसे राजकुमार की नज़रों का पीछा करते हुए वो बोले, “. और ये है मेरी बेटी, सुहासिनी!”
“सुहासिनी?” हर्ष ने वो नाम बड़ी कोमलता से. करीब बुदबुदाते हुए दोहराया।
“जी,” गौरीशंकर ने बड़े गर्व से बताया, “महारानी साहिबा ने ही इसका नामकरण किया था. तीन महीने की थी ये, जब इसको देख कर उन्होंने कहा था, कि बड़ा तेज हैइसे बच्ची के मुख पर!इसलिये इसका नाम सुहासिनी रखा जाए.”
“सुहासिनी.”
लड़की का नाम लेते हुए हर्ष के दिल की धड़कनें इतनी बढ़ गईं कि यदि वातावरण में शांति होती, तो वहाँ उपस्थित प्रत्येक आदमी उनको सुन सकता!
सुहासिनी भी शर्माती हुई सी सुदर्शन व्यक्तित्व के मालिक,इसे युवा राजकुमार को अपलक देखे जा रही थी। अपनी भोली तरुणाई परइसे तरह की मोहक दृष्टि अभी तक उसने महसूस नहीं करी थी। कुछ अलग था राजकुमार की दृष्टि में. ज्यादा अलग!एक सम्मोहन.
“अरे लड़की,” गौरीशंकर ने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा, “कम से कम राजकुमार का शुक्रिया तो कर. क्या बौड़मों के जैसे उनको ताक रही है? . उनके जन्मदिन पर ही उनको नज़र लगा देगी क्या?”
सुहासिनी ने महसूस किया कि राजकुमार उसको कुछ दे रहे हैं, और उसकी अंजुली में राजकुमार के हाथ हैं।
“अ.?” सुहासिनी नेएक नज़र अपने बाबा, और दूसरी हर्ष पर डाली, और अचकचाते हुए बोली, “ब. क्षमा करें राजकुमार. आपका ज्यादा बहुत धन्यवाद!”
उसका नृत्यएक स्तर पर था, लेकिन उसकी आवाज़ कुछ अलग ही मीठी थी! मिश्री घुल गई हो जैसे वातावरण में! उपरि के उसके कोमल हाथों की छुवन! आह! पहली नज़र का प्रेम यदि ऐसा नहीं होता, तो दोबारा कैसा होता है? हर्ष का मन हो आया कि वो सुहासिनी के गालों को छू ले. उसको होंठों को चूम ले. उसके कानों की लौ को चूस ले! सुहासिनीं कोई लड़की नहीं, बल्किएक रसदार, मीठा फल थी, जिसका कर हिस्सा मीठा था! बदन में उसके ऐसी तपन उठने लगी कि जैसे उसको ज्वर हो गया हो।
“महाराज!” गौरीशंकर ने अचानक ही अपने दोनों हाथ जोड़ लिए।
हर्ष ने महसूस किया कि उसके पिता महाराज घनश्याम सिंह, उसके बगल ही आ कर खड़े हो गए हैं।
सुहासिनी ने भी अपने पिता की ही देखा-देखी अपने दोनों हाथ जोड़ लिए।
“गौरीशंकर,” महाराज बोले, “कैसे हैं आप?”
“आपकी कृपा है महाराज. आपकी छत्रछाया में हम सुखी हैं!”
“अरे, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? . आप तो राज्य ही नहीं, बल्कि प्रदेश और देश के भी आला कलाकारों में से हैं!”
“सब आपकी कृपा है महाराज!” उन्होंने अपने हाथ दोबारा से जोड़ लिए।
“नहीं गौरीशंकर जी,” महाराज उनका हाथ पकड़ लिए, “माँ सरस्वती की कृपा है आप पर, और आपके पूरे वंश पर!”
वो मुस्कुराये, और हर्ष की तरफ़ मुखातिब हो कर बोले, “जानते हैं राजकुमार? सिर्फ गौरीशंकर जी ही नहीं, बल्कि इनके पूर्वज भी कलाकार थे। . आपके पिता ही नहीं, बल्कि पितामह भी अपनी कला से हमारे दरबार की शान बढ़ा चुके हैं! . साज (वाद्य-यंत्र) अवश्य बदल गए, कला अवश्य बदल गईं, लेकिन हुनर नहीं बदला! आपके हुनर का परचम हमेशा बुलंद रहा है. क्या आनंद आया आज! वाह!”
“धन्यवाद महाराज! ज्यादा बहुत धन्यवाद!” हाथों को जोड़े हुए गौरीशंकर ने भूमि पर करीब बिछते हुए कहा, "आपको आनंद आया. हमारा प्रयास सफ़ल रहा!"
“ये आपकी पुत्री हैं?” महाराज सुहासिनी की ओर देखते हुए बोले।
“जी महाराज,” वो बोले, और दोबारा अपनी बुद्धू सी लड़की को समझाते हुए, “महाराज के चरण स्पर्श करो बेटी,”
सुहासिनी उनके चरण छूने को झुकी, लेकिन,
“अरे नहीं नहीं,” महाराज दो कदम पीछे होते हुए बोले, “. बेटियाँ पिता के पाँव नहीं छूतीं. वो तो स्वयं लक्ष्मी मम्मी का स्वरुप होती हैं! . पाप लगेगा हमको."
महाराज की बात सुन कर सुहासिनी के होंठों पर स्निग्ध मुस्कान आ गई।
“नाम क्या है बेटी तुम्हारा?” बड़े वात्सल्य से महाराज ने पूछा।
“सुहासिनी, महाराज!”
“अहो. जैसा नाम, वैसा ही गुण!” महाराज ने आनंदित होते हुए कहा, “नृत्य तो बड़ा सुंदर करती हो, लेकिन क्या तुम पढ़ती भी हो बेटी?”
“जी महाराज.”
“क्यों न पढ़ेगी महाराज,” गौरीशंकर ने बीच ही में कूदते हुए कहा, “महारानी साहिबा, महाराज आप स्वयं ने, और युवरानी जी ने शिक्षा प्राप्ति की जो अलख जगाई है राज्य भर में, कोई उससे अछूता कैसे रह सकता है!”
“बड़ा आनंद हुआ सुन कर!” महाराज बोले, “बेटी, ज्ञान से बलवान कोई पैसे नहीं!इसे बात को गाँठ बाँध लो। . अपनी शिक्षा पूरी अवश्य करना!”
“जी महाराज!”
फिर हर्ष की तरफ़ मुड़ते हुए, “चलें राजकुमार. या अभी आपको सुहासिनी से और बातें करनी हैं?”
“जी.?” हर्ष ने झेंपते हुए कहा।
*
वो कहते हैं न, कम उम्र का प्रेम, ख़ंजर से भी घातक होता है।
स्कूल के बाद, छुट्टी के समय, जब सुहासिनी ने रास्ते में राजकुमार हर्षवर्धन को देखा, तो उसके दिल की धड़कनें तेज हो गईं। मारे शर्म के वो उससे अपनी नज़रें न मिला सकी। ऐसाएक दिन हुआ. अगले दिन हुआ. उसके भी अगले दिन हुआ. और अब प्रत्येक दिन होने लगा। सच कहें, तो उसको स्वयं कोइसे तरह चाहा जाना, बड़ा भला लगा। और चाहने वाला भी कौन? स्वयं राजकुमार! लेकिन राजकुमार से बातें करने, या उसकी तरफ आखें उठा कर देख पाने के लिए शर्म का आवरण हटा पाने के लिए जो हिम्मत चाहिए, वो हिम्मत उसमें नहीं थी। बस,एक दृष्टि ‘अपने’ राजकुमार पर पड़ती उसकी, और दोबारा घर जाने टाइमतक उसकी नज़रें नीची ही रहतीं। दोबारा वो उस तरफ़ देख न पाती!
वो भी ऐसी मूरख निकली कि इतवार को भी सुबह सुबह अपना बस्ता ले कर घर से निकल ली! निरी मूरख!
“अरे बावली,” उसके बाबा ने उसको लताड़ा भी, “आज भी कहाँ चल दी? . छुट्टी नहीं है क्या तेरे सकूल में?”
“ओह बाबा. मैं भूल ही गई!”
“पढ़ाई लिखाई के संग साथ घर का काम भी सीख ले कभी!” गौरीशंकर ने सर पीटते हुए कहा, “कब तक अपने बाबा से ही घर का, रसोई का काम करवाती रहेगी? . अपनी चाची से कोई गुण सीख. कला सीख.”
“माफ़ कर देना बाबा. भूल गई थी!”
“भूल गई थी. याद क्या रहता है?”
गौरीशंकर अपनी बेटी को ज्यादा चाहते थे। सुहासिनी की दूसरा सहेलियों के मुकाबले, वो सच में किसी राजकुमारी जैसी पाली जा रही थी.एक कारण तो ये था कि गौरीशंकर जीएक कलाकार थे, जिनको राजाओं, और सरकारों का संरक्षण प्राप्त था। दूसरे ये भी कि उनको भी माता सरस्वती के प्रति अपार श्रद्धा थी। उनका भी मानना था कि पढ़ना लिखना आवश्यक है, चाहे वो लड़का हो या लड़की! युवरानी प्रियम्बदाइसे बात का सबसे बड़ा उदाहरण थीं। कैसा ओजस व्यक्तित्व था उनका!
लेकिन पढ़ाई लिखाई के संग साथ गृहणी वाले गुण भी तो चाहिए न?
“ससुराल जाना, तो नाक कटा देना मेरी!”
ससुराल की बात सुन कर वो मन ही मन मुस्कुराई.
‘मेरी ससुराल. राजमहल.!”
क्यों न सुहासिनी ऐसे सपने देखने लगे? अपने बाबा की राजकुमारी वो थी ही. और अबएक सचमुच के राजकुमार की ‘प्रेयसी’ भी थी वो!
“बाबा. आज आपको चक्की की सब्ज़ी बना कर खिलाती हूँ! . आप उंगलियाँ चाटते न रह जाएँ, तो कहना फिर!”
“बातें ही बनाया कर बस! . जानती है, समाज का कितना दबाव है तेरे बाबा पर? . तेरी संग की ज्यादातर लड़कियों का ब्याह हो गया है। और तू. तेरी ये पढ़ाई नहीं, जी का जंजाल हो गई है! . और उपरि से तेरी अम्मा. अब बिन मम्मी की बच्ची को अकेले पालूँ भी तो कैसे?”
“अरे बाबा. आप चिंता न किया करो!” सुहासिनी अपने बाबा के गले में बाहें डाल कर, करीब झूलती हुई बोली, “देखना कोई राजकुमार आएगा मुझे ब्याहने!”
गौरीशंकर ने सर हिलाया - निराशा में नहीं, बस, अपनी दिवास्वप्न देखती हुई लड़की की बातों पर! भोली लड़की, भोली बातें!
अब इसको कौन समझाए कि सपने देखने का अधिकार समाज में बस कुछ ही लोगों को होता है!
*
इंट्रेस्टिंग तो नर्तकी वाला पार्ट है, जय और मीनाक्षी का तो नॉर्मल है ये।
आसानी से पूरा हो जाए, तो दोबारा कहानी कैसे बनेगी? पढ़ते रहिए!इसे बार ज्यादा मज़ा आएगा!
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