Romance Sex Story : श्राप [Completed]
Update # 4
सवेरे हरीश की नींद प्रियम्बदा से पहले खुली। उनके शयनकक्ष को सुबह सुबह की रौशनी पूरी तरह से नहला रही थी। हरीश ने आँखें खुलते ही अपने बगल लेटी अपनी पत्नी को देखा - जो करवट में उसी की तरफ़ मुँह कर के लेटी हुई थी।एक क्षण को उसको बड़ा अलग सा एहसास हुआ - जैसा किसी अपरिचित को अचानक से पा कर होता है, लेकिन अगले ही समय वो एहसास ग़ायब हो गया। ‘प्रिया’. हाँ, यही नाम हरीश ने सोचा हुआ था प्रियम्बदा के लिए. प्रिया! उसकी प्रिया. अब उसकी अपरिचित तो नहीं रह गई थी! कल रात में दोनों स्थाई रूप से मिल गए थे - जो बंधन उन्होंने अग्नि को साक्षी मान कर बाँधा था, अब वो पूरी तरह से स्थाई हो चला था। उसने बड़े गर्व से ये सोचा, दोबारा प्रिया पर दृष्टि डाली!
एक बेहद उत्कृष्ट गुणवत्ता वाली, लेकिन पतली सी चादर से ढँका हुआ उसका बदन ज्यादा आकर्षक लग रहा था! कल इसी बदन के संग संसर्ग कर के जो अलौकिक आनंद उसको मिला था, वो अवर्णनीय था! कितना डर लग रहा था उसको कि क्या वो अपने से इतनी बड़ी उम्र वाली लड़की सेइसे तरह से अंतरंग हो भी सकेगा? लेकिन प्रिया आश्चर्यजनक रूप सेएक अद्भुत मित्र के रूप में सामने आई थी! हरीश की तरह वो भी नौसिखिया थी, लेकिन उसने पूरे सम्भोग के दौरान न सिर्फ हरीश का हौसला ही बढ़ाया था, बल्कि सम्भोग की हर गतिविध में पूरे उत्साह के संग हिस्सा लिया था! हर नई ख़ोज, हर नए एहसास के बारे में उसने हरीश को बताया था। ऐसी पत्नी पा कर वो ज्यादा खुश था! कुछ देर उसको यूँ निहारने के पश्चात हरीश से रहा नहीं गया - उसने ज्यादा गुपचुप तरीके से चादर को हटा दिया, जिससे प्रिया सोती रहे, और वो उसके सौंदर्य का अवलोकन कर सके।
सुबह की ठण्डक का स्पर्श जैसे ही प्रियम्बदा के बदन पर हुआ, वैसे ही उसकी त्वचा पर नन्हे नन्हे रौंगटे खड़े हो गए। कक्ष में ऐसी ठंडक नहीं थी कि उसको कोई तक़लीफ़ हो। चादर हटते ही कल रात जो कुछ ठीक से नहीं दिख सका, अब वो सभी कुछ निर्बाध तरीके से दृषिगोचर हो रहा था : प्रियम्बदा का साँवला सलोना रंग, सुबह की स्वर्णिम रौशनी में ऐसा चमक रहा था, जैसे कि उसकी त्वचा को शहद से सराबोर कर दिया गया हो! कोमल से होंठ - कल इन्ही होंठों को पहली बार चूम कर उसको ऐसा स्वर्गिक आनंद मिला था, जो उसको उम्र भर याद रहेगा! और ये स्तन. अब जा कर उसको प्रिया के स्तनों का सही सही अनुमान लगा! बढ़िया भरे भरे और करीब गोल स्तन! साँवले लेकिन शफ़्फ़ाक़ चूचक और एरोला! कल रात के जैसे उन चूचकों में उत्तेजना नहीं थी - वो ऐसे लग रहे थे कि मानों अपनी मालकिन की ही भाँति वो भी सो रहे हों!
कल रात की अंतरंग, कोमल बातें उसकी याद में पुनः ताज़ा हो आईं - कैसे ठोस हो गए थे ये. और कैसी मिठास थी उनमें! यदि उनमें अभी से ऐसी मिठास है, तो जब इनके स्तनों में दूध भर जाएगा, तब कैसी मिठास हो जायेगी! मन में उसके लालच आ गया. वो मिठास जब आएगी तब आएगी. फिलहाल अभी की मिठास का मज़ा क्यों न लिया जाए! हरीश थोड़ा सा झुका और अनुगृहीत हो कर उसने प्रियम्बदा काएक चूचक अपने मुँह में ले कर चूसना शुरुआत कर दिया। चूचक इतना कोमल और संवेदनशील अंग होता है कि इसको छेड़ने से किसी भी स्त्री में बिजली सी तरंग दौड़ जाए! जाहिर सी बात है कि हरीश के होंठों का स्पर्श पा कर प्रियम्बदा की नींद टूट गई।
“हम्म?” वो उनींदी हो कर बोली।
सम्भोग क्रीड़ा के पश्चात ऐसी गहरी नींद आएगी, उसको आशा ही नहीं थी। विवाहिता होना कैसा अद्भुत सा सुख लिए होता है!
“गुड मॉर्निंग.” हरीश उसके चूचक को अपने मुँह में ही रखे हुए बोला।
“आह्ह. तो अब से हमको ऐसे जगाने का इरादा है आपका?” प्रिया ने बुदबुदाते हुए पूछा।
उसको संशय था कि सवेरे जागने के समय, जब उसकी हालत अस्त व्यस्त रहती है, तो उसको देख कर हरीश न जाने कैसी प्रतिक्रिया देंगे! कोई कुछ भी कह ले, लेकिन हम कैसे दिखते हैं, वो हमारे इम्प्रैशन का सबसे ज़रूरी और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। प्रियम्बदा भी कोई अपवाद नहीं थी - वो भी अपने पति को सुन्दर दिखना चाहती थी। उसको मालूम था कि वो कोई सुंदरी नहीं थी,इसलिये वो जैसी है, कम से कम उसको तो अच्छी तरह से प्रस्तुत करे!
लेकिन हरीश कोइसे बात की कोई परवाह ही नहीं थी। अपनी पत्नी को नग्न-रूप में पा कर जैसे उसको अब किसी दिखावे की आवश्यकता ही नहीं थी!
“नहीं. इससे भी बेहतर तरीक़े से.”
“क्या? . आऊऊऊऊ.” वो कुछ कह पाती कि उससे पहले हरीश ने उसके चूची का और भी ज्यादा हिस्सा मुँह में ले कर ज़ोर से चूसा.
यह कोई सामान्य चूषण नहीं था - कल रात जैसा भी नहीं! कल तो ज्यादा संयमित सा था सभी कुछ! संयमित, और अनिश्चित सा! लेकिन अभी. प्रिया ने हरीश के होंठों का बल अपने चूचक पर महसूस किया! कल से कहीं ज्यादा आत्मविश्वास था. कल से कहीं ज्यादा अधिकार-बोध!एक मीठी, कामुक तरंग उसके पूरे बदन में दौड़ गई! कैसा अनोखा खेल है ये! अपने पति के सामने वो ऐसी निर्लज्जता से नग्न लेटी हुई है, लेकिन दोबारा भी ‘वैसी’ शर्म की अनुभूति नहीं हो रही है! इसमें उसको गर्व हो रहा है कि उसका हरीश उसके नग्न रूप को देख सकता है, और उसका मनचाहे तरीके से आस्वादन कर सकता है!
“मीठा मीठा स्वाद आ रहा है.” थोड़ी देर पश्चात हरीश ने संतुष्ट आनंद जज्बातों से कहा!
“आप भी न.”
“हम भी न क्या?”
“आप ज्यादा शरारती हैं.”
“हमारी शरारत आपको देखनी है?”
“नहीं.” प्रिया शर्म से मुस्कुराती हुई बोली।
यह कोई विरोध नहीं था। ये हरीश भी समझ रहा था, और प्यारा भी जानती थी! हरीश ने प्रिया का हाथ लिया और अपने स्तंभित लिंग पर रख दिया।
रात्रिकाल के हल्के उजाले में प्रिया को अभी के जैसा संकोच नहीं हुआ था। लेकिन भोर के उजाले में कुछ अलग ही बात महसूस हो रही थी। सही मायनों में उनके बीच की अंतरंगता अब सामने आई थी। उस कठोर अंग को अपने हाथ पर महसूस कर के उसको ही शर्म आने लगी।
“ए जी,” उसने कहा, “ये ऐसा कठोर सा क्यों हो गया है?”
“आपको नहीं मालूम?”
“मालूम है,” प्रिया को ये स्वीकार करने में शर्म आ गई कि उसका पति उसके संग भोर सुबह भी सम्भोग करने में इच्छुक है, “लेकिन, अभी तो सुबह हो गई है न.”
“तो?”
“तो. मतलब. ये सभी करने के बजाए. अच्छे बच्चों के जैसे उठिए. नहाईए धोईये. आराधना पाठ कीजिए. माता पिता का आशीर्वाद लीजिए.”
संभव है कि हरीश प्रिया की बात को गंभीरता से ले लेता. अगर. यदि कल रात वो पूरे उत्साह के संग सम्भोग क्रीड़ा में भाग न ले रही होती!
“अवश्य. लेकिन ये सभी कोई ‘अच्छा बच्चा’ करता! . है न?”
“आप नहीं हैं अच्छे बच्चे?”
“नहीं!” हरीश ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया, “लेकिन आप हैं न.”
“हम?”
“हाँ. हमारे अच्छे अच्छे बच्चे. आप ही से तो आने वाले हैं!”
“हा हा हा.!” प्रिया को मद्धिम सी हँसी आ गई उसकी बात पर!
“फ़िर?”
“फ़िर. क्या?”
“क्या इरादा है आपका?”
“. आपकी इच्छा. हमारे लिए. आज्ञा है! और आपकी आज्ञा शिरोधार्य है.” प्रिया ने शर्म से, बड़े धीमे से कहा, “और. हम तो हैं ही. आपकी संतानों की माँ.”
“हमारी संतानें.?”
“. होने वाली संतानें. हम ही से तो आएँगी! हम ही तो हैं उनकी माँ!”
“तो?”
“तो. तो फ़िर. शुरुआत कीजिए न.”
“अवश्य. युवरानी जी.”
हरीश ने कहा, और प्रिया को पलंग पर चित कर के लिटा दिया, और उसकी जाँघें खोल कर, पुनः उसके अंदर प्रविष्ट हो गया।
“ओओहहह.” प्रिया के गले सेएक मीठी कराह निकल गई, जो हरीश के हर धक्के के संग और भी गहरी होने लगी!
आठ से दस मिनट तक चले सम्भोग के पश्चात दोनों संतुष्ट हो करएक दूसरे के मज़बूत आलिंगन में बँध कर अभी अभी संपन्न हुए सम्भोग की सुखानुभूति लेने लगे।
“क्या सोच रहे हैं आप?” प्रिया ने ही चुप्पी तोड़ी।
“प्रिया. हम आपको प्रिया कह कर बुला सकते हैं?”
“आप मुझको जिस भी नाम से पुकारेंगे, वही मेरा नाम है!”
हरीश मुस्कुराया, “प्रिया, हम आपको हमेशा ख़ुश रखेंगे! ये हमारा वचन है!”
“हमको मालूम है.” उसने मुस्कुराते हुए कहा, “हम भी आपको वचन देते है कि हम आपकी हर इच्छा को यथासंभव पूरा करेंगे. कम से कम पूरा करने का प्रयास करेंगे!”
प्रिया की बात पर हरीश थोड़ी देर चुप हो गया, और दोबारा कुछ सोचते हुए बोला,
“हमारी. या ये कह लीजिए कि हमारे परिवार की केवलएक ही इच्छा है. हमारे परिवार पर लगा श्राप उतर जाए. बस!”
“श्राप?”
“आपको किसी ने बताया नहीं?”
“नहीं.” प्रियम्बदा को पता था, लेकिन वो अपने पति के मुख से सभी सुननाजान्ना चाहती थी।
लिहाज़ा हरीश ने उसको सभी कुछ बताया। कम से कमइसे बात को छुपाया नहीं गया।
“क्या सच में हमारे परिवार में कन्याएँ नहीं होतीं!”
हरीश ने बड़ी निराशा से सर हिलाया, “उस श्राप के पश्चात से नहीं हुईं. अभी तक!”
न जाने किस प्रेरणा से प्रियम्बदा ने गहरी साँस भर के कहा, “आपसेएक बात कहें?”
हरीश ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“हमको लगता है किइसे श्राप को उतारने में हमारी बड़ी अहम् भूमिका होने वाली है!”
“क्या सच?”
“जी. इतने सुन्दर परिवार पर किसी भी तरह का श्राप नहीं लगा होना चाहिए! . हम आपको वचन देते हैं. हम सारे व्रत और अनुष्ठान करेंगे, लेकिनइसे श्राप को बोझ अवश्य उतारेंगे! . राज परिवार कोएक प्यारी सी राजकुमारी अवश्य मिलेगी!”
“ओह प्रिया. प्रिया.” हरीश ने प्रियम्बदा को चूमते हुए आनंदमय होते हुए कहा, “आज हम इतने प्रसन्न हैं कि आपको बता नहीं सकते! भगवान आपको और हमकोएक पुत्री का वरदान दें. बस यही कामना है!”
*
भाई साहेब!! मिरु एला उन्नारु? इतने दिनों पश्चात दर्शन मिले! ज्यादा बहुत शुक्रिया मित्रवर! ज्यादा बहुत धन्यवाद!
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avsji भाई ,
Sanju@ भाई ज्यादा ही शान्त चित और भद्र पुरुष है। मै इन्हे अच्छी तरह समझता हूं । इन्होने कभी भी गलत तरह का कमेंट वगैरह नही किया।
जरूर आप दोनो अपनी बात सही तरीके से नही कह पाए होंगे। ये सिर्फ गलतफहमी ही है।
वैसे प्रियम्बदा को बार-बार ' कम सुंदरी ' कहने का क्या तात्पर्य है। लड़की यदि सांवली है तो इसका ये मतलब तो नही कि वो सुन्दर हो ही नही सकती !
कोई ज्यादा ही गोरी है लेकिन उसके चेहरे पर पानी ही नही है , नाक नक्स बेढब है , बदन या तो सुखे बांस की तरह है या दोबारा सौ किलो बोरे की तरह दोबारा ये गोराई किस काम की ?
कोई लड़की पहली नजर मे ही खूबसूरत लगने लगती है लेकिन जब आप उससे बातें करते है तो आपको पता चलता है कि उसके सामने के दो दांत है ही नही । दोबारा भी क्या आप उसे खूबसूरत कहेंगे ?
चेहरे की आभा , सुन्दर नाक - नक्स , हृष्ट-पुष्ट काया , उभरता हुआ उरोज , अच्छे दांत हो तो हर स्त्री सुन्दर लगती है। गोरा और सांवला कोई मायने नही रखता। हां , भारत मे अधिक काला होना सुन्दर नही माना जाता।
वैसे सुन्दरता का आकलन मर्द अपने अपने नजरिए से करते है। श्रीदेवी और जया प्रदा दोनो समकालीन हीरोइन थी। लेकिन किसी को श्रीदेवी सुन्दर लगती थी तो किसी को जया प्रदा ।
प्रियम्बदा ने सुहागरात के पश्चात ही संकल्प ले लिया कि वोइसे खानदान को पुत्री अवश्य देगी । ये हमारे लिए भी कौतुहल का विषय रहेगा । वैसे भी जिस घर मे कोई नन्ही बच्ची न हो वो घर पुरी तरह घर नही लगता।
बहुत सुंदर अपडेट भाई। आउटस्टैंडिंग अपडेट।
Sudden change नए किरदार. देखते हैं प्रियंबदा और हरीश से क्या संबंध निकलता है इनका।
Behad shandar updates he avsji bhay, Atrangta kaa bhut hi sunder chitran kia he aapne. Naye characters kaa aagman huwa he.inkaah kya role hone wala he.yeh too aage chalkar hi ptaa chalega Keep posting bhay
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Update #5
स्थान : शिकागो. ईस्ट इंडिया टेक्सटाइल्स एल एल सी का बोर्ड रूम।
अवसर : कंपनी की एमर्जेन्सी बोर्ड मीटिंग।
इमरजेंसी बोर्ड मीटिंगइसलिये रखी गई थी कि हाल के कुछ टाइमसे कंपनी की आय में जो लगातार कमी हो रही थी, उसको रोका कैसे जाए? कंपनी के सभी अफ़सरान मौज़ूद थे और करीब सभी ने अपनी अपनी बात और आय कम होने के अपने अपने बहाने सामने रख दिए थे। दोबारा भी बात जहाँ थी, वहीं अटकी हुई थी। लिहाज़ा, मीटिंग शुरुआत होने के कोई तीन घण्टे पश्चात भी समस्या का कोई समाधान नहीं निकला था. और मीटिंग अंत होने का कोई चिन्ह नहीं दिखाई दे रहा था!
सबसे अंत में जय को बोलने का मौका मिला था, और वो पिछले पाँच मिनट से बड़ी सधी हुई और सटीक भाषा में अपनी बात कह रहा था। कम उम्र होने के बड़े नुकसान हैं - दोबारा चाहे आप किसी कंपनी के सीओओ ही क्यों न हों! जय उसी नुक़सान से त्रस्त था; और अब किसी न किसी तरीके से कंपनी में अपनी आवश्यकता और महत्ता को दर्ज कराना चाह रहा था!
“भैया, मुझको अभी भी लगता है कि अपने बिज़नेस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए हमकोएक अलग तरीक़े.एक अलग सोच की ज़रुरत है!” जय बड़े उत्साह के संग कह रहा था, “ऐसा नहीं हो सकता है. नहीं होना चाहिए कि हमारे जैसा एक्सोटिक गुड्स का बिज़नेस, जिसका इतना यूनिक बिज़नेस मॉडल हो. अमेरिकन मार्किट मेंइसे तरह से स्ट्रगल करे!”
जय, ईस्ट इंडिया टेक्सटाइल्स का चीफ ऑपरेटिंग ऑफ़िसर था।
ईस्ट इंडिया टेक्सटाइल्स लिमिटेड लायबिलिटी कॉर्पोरेशन, या ईआईटी, कोई दस वर्ष पहले, अमेरिका के शिकागो शहर में शुरुआत की गई थी। ईआईटी, भारत से उत्तम किस्म के तमाम फैब्रिक्स की न सिर्फ आयात ही करती थी, बल्कि अमेरिकन ग्राहकों को भारतीय हस्त-कौशल का ऑन-हैंड्स एक्सपीरियंस भी कराती थी। ये कंपनी देखने सुनने मेंएक कुटीर उद्योग जैसी थी, लेकिन अमेरिका के सभी मुख्य शहरों में सामान की आपूर्ति करती थी - ख़ास कर शिकागो, न्यू यॉर्क, और डेट्रॉइट! ये तीनों, न सिर्फ अमेरिका के सबसे बड़े शहरों में से थे, बल्कि ये ठण्डे शहर भी थे। ईआईटी के एक्सोटिक, रंग-बिरंगे और आराम-दायक ऊनी कपड़े बड़ी आसानी से इन तीनों शहरों में खप सकते थे। शुरुआत शुरू में ऐसा हुआ भी! किस्म किस्म के सुन्दर फैब्रिक्स की न सिर्फ देसी प्रवासियों, बल्कि अमेरिकी मूल के लोगों में बढ़िया डिमांड थी। स्थानीय फैशन हाउसेस, और ड्रेस-मेकर्स नए फ़ैशनेबल कपड़ों के लिए इसी तरह के फैब्रिक्स की तलाश में रहते थे। इसके संग ईआईटी ग्राहकों को कपड़ा बुनने और परिधान बनाने की पारम्परिक भारतीय विधि का एहसास करने का भी अवसर देती थी - तो सप्ताहांत में ग्राहकों का ताँता लगा रहता था।
इन कारणों से शुरुआत शुरू में बढ़िया मुनाफ़ा भी हुआ, लेकिन हालिया दो तीन सालों में बिज़नेस लड़खड़ाने लगा था। कंपनी मालिकान को समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों है!
जय ने शिकागो यूनिवर्सिटी से बैचलर्स ऑफ़ इकोनॉमिक्स की पढ़ाई अभी हाल ही में ख़त्म करी थी। पढ़ाई ख़त्म करते ही, जैसी की सभी को आशा थी, उसने कंपनी के सीओओ के रूप में कार्यभार सम्हाल लिया था। ईआईटी का सीईओ था जय का बड़ा भाई, आदित्य, जो जय से कोई सात आठ वर्ष बड़ा था। उसने दिल्ली विश्वविद्यालय से कॉमर्स में बीए की डिग्री हासिल करी थी। उसने भी जय की ही भाँति (कहना ये चाहिए कि जय ने आदित्य की भाँति) अपने पिता के संग कंपनी के कुछ टाइमपश्चात से काम करना शुरुआत कर दिया था। हाँलाकि ईआईटी के बिज़नेस मॉडल की परिकल्पना आदित्य की थी, लेकिन उसकी स्थापना उसके पिता ने करी थी। लेकिन, पाँच-छः वर्ष पहले अपने पिता की मृत्यु होने के बाद, आदित्य ने ही ईआईटी की कमान पूरी तरह से सम्हाल ली। उसके छोटे भाई, जय को उसकी ही देख-रेख में छोड़ दिया गया था, जिससे कि उसकी पढ़ाई लिखाई वहीं, अमेरिका में ही हो सके!
इसलिए आश्चर्य नहीं कि आदित्य और जय, दोनों यहीं अमेरिका के ही निवासी बन कर यहीं रह गए थे, और वहाँ के निवासी भी बन गए थे। हाँलाकि उनके मम्मी बाप चाहते तो यही थे कि दोनों का भारत देश से डोर न टूटे, लेकिन आदित्य ने कुछ वर्ष पहले, अमेरिकी मूल कीएक श्वेत लड़की, क्लेयर से विवाह कर लिया था। शादी के पश्चात जल्दी जल्दी उसको क्लेयर से दो बेटे भी हो गए थे। जब अपनी जड़ें दूसरे स्थानों में फैलने लगीं, तो ऐसे में उनके लिए भारत में स्थाई रूप से रह पाना असंभव हो गया था और अव्यवहारिक भी!इसे टाइमजय उसके संग ही रह रहा था, और उसकी पढ़ाई छुड़ाना सही नहीं था। लिहाज़ा, परिवार में सिर्फ आदित्य की मम्मी ही थीं, जो भारत में बचीं रही। वो भारत छोड़ कर अमेरिका में आ कर बसना नहीं चाहती थीं,इसलिये भारत में ही रहती थीं। ये अवश्य था कि वर्ष में कम से कमएक बार, वो अपने बेटों से मिलने शिकागो आती थीं, और वो दोनों भी या तो संग में, या दोबारा बारी बारी से अपनी मम्मी से मिलने भारत अवश्य आते! ये व्यवस्था कमोवेश सभी प्रवासी भारतीयों में आज भी देखी जा सकती है।
विदेशी लड़कियों के बारे में हमारे देश में अनेकों भ्रांतियाँ फैली हुई हैं - ख़ास कर उनके चरित्र, व्यवहार, और आचरण को ले कर! ये भ्रांतियाँ ख़ास कर सिनेमा की देन हैं। वहाँ के समाज की सच्चाई चाहे जो कुछ हो, लेकिन सभी आशंकाओं के विपरीत, क्लेयर अपने पति के लिए बड़ी आदर्श पत्नी साबित हुई थी! आदित्य के पिता की मृत्यु के पश्चात उसने आदित्य को जिस तरह से सम्हाला था, वो दर्शनीय था सभी के लिए। उस नाज़ुक टाइमपर उसकोएक दृढ़ सहारे की आवश्यकता थी, जिसको क्लेयर ने पूरा किया। उसके प्रेम में वो पहले ही पगी हुई थी. उसने न सिर्फ आदित्य से शादी ही करी, बल्कि जल्दी जल्दी दो पुत्रों को जन कर, उसके घर को पूरा भी कर दिया। लोग अपने ही परिवार के सदस्यों को बोझ मानने लगते हैं; लेकिन, क्लेयर ने अपने देवर जय की भी देखभाल में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी! अपने छोटे भाई के समान ही उसने जय की देखभाल करी। कुल मिला कर हँसता खेलता, उच्चवर्गीय, अमेरिकन परिवार था यह!
यह हुई जय और आदित्य के परिवार की जानकारी। अब पुनः बोर्ड मीटिंग की तरफ़ मुखातिब होते हैं।
“जय, तुम्हारी बात ठीक है. लेकिन, क्या करें हम? क्या करना चाहिए?” आदित्य ने कहा दोबारा सोचते हुए बोला, “. कभी कभी कम्पनीज़ यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर्स से अपनी बिज़नेस प्रॉब्लम डिसकस करती हैं. तुम्हारी यूनिवर्सिटी तो बिज़नेस एजुकेशन के लिए फेमस है न! . क्यों न तुम ही किसी से मिलो?”
“भैया, आपने मेरे मुँह की बात छीन ली. मैं भी ऐसा ही कुछ सोच रहा था। लेकिन प्रोफ़ेसर नहीं. वो लोग ज्यादा थेओरेटिकल सोचते हैं. हमको प्रैक्टिकल एडवाइस चाहिए! प्रैक्टिकल एंड क्विक!”
“फेयर एनफ. तो क्या है तुम जो कहना चाहते हो?”
“भैया, क्यों न हम मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स हायर करें? . ज्यादातर टाइमवो बिज़नेस प्रॉब्लम्स की रुट कॉज तक जा कर उसको सोल्व करने का तरीका बताते हैं!”
“ओह, ओके! मैंने सुना है, लेकिन मेरे बिज़नेस सर्किल में किसने उनकी सर्विसेज ली हैं, ये मुझे नहीं पता। . तुमको कोई अच्छी कंसल्टिंग फर्म मालूम है?”
“दो के बारे में पता है. दोनों में मैंने नौकरी के लिए इंटरव्यू किया था.”
“ओह?”
“जस्ट फॉर एक्सपीरियंस भैया!” जय ने हँसते हुए कहा।
“कौन कौन सी?”
“एक तो है मकिनली एंड कंपनी, और दूसरी है ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप!”
“कौन सी बेहतर है?”
“वैसे तो दोनों अच्छी हैं, और जानी मानी हैं, लेकिन हमारे लिए बढ़िया वही है, जो हमारी प्रॉब्लम सॉल्व कर दे!”
“अच्छी बात है,” आदित्य ने निश्चयात्मक तरीके से कहा - शायद वो भी इतनी लम्बी बहस और वही घिसे पिटे बहाने सुन कर थक गया था, “तो.एक काम करो! दोनों को कांटेक्ट करो, और हमसे मीटिंग करने के लिए डेलीगेट्स इनवाइट करो! मिलते हैं, और दोबारा डिसाइड करते हैं? ओके?”
कह कर आदित्य अपनी कुर्सी से उठने लगा।
“ठीक है भैया!”
दोनों के उठने पर सभी उपस्थित लोगों ने राहत की साँस ली! लंच का टाइमबीत गया था, और सभी थक गए थे! ऐसे में मीटिंग से राहत मिली तो अब आगे की सुध ले सकते थे सभी!
लेकिन जय अपनी बात को सुने जाने और माने जाने से ज्यादा उत्साहित था। ठीक है, कि फॅमिली बिज़नेस होने के कारण उसका कंपनी मेंएक बड़ा रोल होना अटल था। लेकिन उसको मालूम था कि दूसरा लोग, ख़ास कर सेल्स के अधिकारी, उसकी इज़्ज़त नहीं करते थे। ऐसे में यदि वो किसी तरह सेएक कंपनी कोइसे वित्तीय समस्या से उबारने में साधक सिद्ध हो सकता था, तो न सिर्फ सीओओ के रूप में ये उसकी पहली बड़ी सफलता होती, बल्कि सभी की नज़र में उसका सम्मान भी बढ़ेगा।
उसने बिज़नेस डिरेक्टरी उठाई और मकिनली एंड कंपनी और ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप के संग साथएक और कंसल्टिंग कंपनी का कांटेक्ट इन्फॉर्मेशन निकाला और फिरएक बिज़नेस प्रॉब्लम लेटर टाइप कर के उसको उन तीनों कंपनियों को फैक्स कर दिया। ज्यादा ज्यादा देर तक इंतज़ार नहीं करना पड़ा उसको। मकिनली एंड कंपनी, और ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप दोनों से ही अगले दो घण्टे के भीतर उसको फ़ोन आ गया - बात करने वालों ने उससे ईआईटी के बिज़नेस, प्रोडक्ट्स, और मार्किट के बारे में कुछ प्रश्न पूछे, और दोबारा करीब दो से तीन सप्ताह पश्चात दोबारा से बात करने या मिलने के लिए मीटिंग तय कर ली।
आज का दिन ख़त्म होते होते जय ज्यादा संतुष्ट था। वो चाहता था कि कंपनी तरक़्क़ी करे। ये कंपनी पिता जी की निशानी थी. उनकी लेगसी थी! वो चाहता था कि ईआईटी रहे, फूले-फले और आगे बढ़े! अगरइसे काम में उसको सफलता मिलती है, तो उसको ज्यादा संतुष्टि मिलेगी!
*
धन्यवाद शुभम भाई! लेकिन, आप बारात संग नहीं चल रहे हैं! अपडेट 4 के बाद, 5 और 6 भी आ गए हैं! आपके प्रश्न का उत्तर नए अपडेट में है।
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