Incest Desi Sex Story : गांव की चांदनी रात
अध्याय - 5
अगम्यगमन की नींव
दोपहर का टाइमखाना खाने के पश्चात वहाँ से बाबू जी और मैं हम दोनों निकले, खेतों की तरफ। मेरे हाथ में मेरे आँचल थी जिसे मैं लहराते हुए चल रही थी, वहाँ बने रास्ते थोड़े पतले थे जिससे थोड़ा संभल के चलना पड़ रहा था क़रीब पांच मिनट चलते ही सब्ज़ी वाले खेत में हम पहुँचने वाले थे, वहाँ आसपास पूरा सन्नाटा था सभी बाक़ी खेत वाले या तो अपने घर गए थे खाना खाने या खा के आराम कर रहे थे,
मैं- “बाबू जी, मुझे डर लग रहा है इधर तो ज्यादा बड़े बड़े घास भी है आसपास, आने जाने में दिक्कत नहीं होती क्या आपको”
बाबू जी- “डरो मत बहू, मैं हूँ ना आओ, मेरा हाथ पकड़ लो।”
ये कहकर उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया, उनकी सख़्त उंगलियाँ मेरे हाथ में आते ही मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा ये पहली बार था जब मैने उनका हाथइसे तरह पकड़ा था और उन्होंने मेरा, थोड़ी दूर चलते ही मुझे बाबू जी ने रास्ते में रोक दिया,
मैं-“क्या हुआ बाबूजी आपने मुझे ऐसे क्यों रोक दिया”
बाबू जी- “श्श्श्श… चुप रहना बहू मुझे लगता है आसपास कोई साँप है!”
ये सुनते ही मैं डर से कांपने लगी और मौक़ा देखकर उनके छाती से जा चिपकी, मेरी दूध जैसी बड़ी बड़ी और मुलायम चूचे उनके छाती पर दब गए, उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी पीठ पर रखे और धीरे-धीरे रगड़ने लगे, मुझे थोड़ा अजीब लगा की बाबू जी ने सच में सांप देखा या उन्होंने जानबूझ के ऐसा कहा,
उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाया- “बहू, बस ऐसे ही शांत खड़ी खड़ी रहना मैं उसे देखता हूं”
मैं- “बाबू जी, मुझे सच में ज्यादा डर लग रहा है। क्या आप जल्दी से उस सांप को देख के भगा सकते ”
मेरी दबी आवाज सुनकर उन्होंने अपने हाथ मेरी गांड की तरफ़ लाने लगे, मुझे डर के संग साथएक अजीब घबराहट भी हो रही थी, उन्होंने हथेलियों से मेरी बड़ी और गोल-मटोल गांड को दबाने की कोशिश करने वाले थे, वो मेरे और करीब आ गए,
मैं-“ बाबूजी, आप ये क्या कर रहे हो? साँप गया कि नहीं?”
बाबूजी- “बहु लगता है साँप चला गया।”
मैं उनसे दूर हुई मुझे उनका इरादा कुछ ठीक नहीं लगा और बिना कुछ बोले खेत के अंदर घुस गई जहाँ सब्जी लगे हुए थे,
मैंने-“बाबू जी यहा तो बस कद्दू, ककड़ी, खीरा, लौकी, भिंडी, बैगन और टमाटर ही लगे है ये हमे तोपस्न्द है पर बच्चों को कहापस्न्द है ”
बाबूजी-“बहू मैंने तो पहले ही कहा था यहां वही सब्जी लगी है जो मेरे बहुओं और बेटों कोपस्न्द है और आजकल के बच्चे तो खाना कम नखरा ज़्यादा दिखाते है, अब तुम बताओ तुम क्या लेना चाहोगी मेरा मतलब है घर क्या लेके जाओगी”
बाबू जी बातों को मैं अच्छे से समझ रही थी उनका इशारा कहीं और था, पर मैंने भी सोच लिया अब जब बाबू जी इतने बिंदास बात कर रहे तो मैं कैसे पीछे रहती,
मैं-“मैं तो ककड़ी, खीरा और बैगन ले जाने का सोच रही हू” ये कहकर मुझे थोड़ी हसी आ गई।
बाबूजी -“अच्छा तो तुम्हें खीरा और बैगन ज़्यादापस्न्द है, ठीक है खेतों में जाओ और अपनी मनपसंद साइज की तोड़ लो मतलब जो घर ले जाने के लिए सही लगे”
उनकी नजर ये कहते हुए मेरे चूचों पर थी और मेरी नजर खेतों में लगे बैगन और खीरा में थी, मैंने बाबू जी के मजे लेने के बारे में सोचा
मैं-“पर बाबूजी यहां बैगन तो छोटे है, मुझे तो बड़े, मोटे और लंबे वाले हीपस्न्द है जितना बड़ा और लंबा होगा उतना ज़्यादा बढ़िया लगेगा”
मेरे इतना कहते ही उनका चेहरा देखने लायक हो गया उनको लगा बहु ये क्या बोल रही है और इतने आसानी से खुल के कैसे ऐसी बातें मेरे से कर सकती है,
बाबूजी-“क्या सच में बहू तुम्हें लंबे और मोटेपस्न्द है”
मैं-“हा बाबूजी ज़्यादा सब्जी बनेगी ना” ये बोलके मैं हसने लगी दोबारा कहीं जाके बाबू जी को थोड़ी राहत मिली
बाबूजी-“बहू और क्या लेनापस्न्द है तुम्हें”
मैं-“खीरा बाबू जी, आज बैगन छोटे है तो खीरा ही लेके जाऊंगी”
और मैं झुक के दो तीन बड़े और लंबे लंबे खीरा को तोड़ने लगती हू, पर बाबू जी की नजर मेरे गांड पर बनी हुई थी जो उनकी तरफ़ थी, उनको लगा मैं तोड़ने में व्यस्त हु तो उन्होंने चुपके से अपनेएक हाथ को गमछे के उपरि से ही अपने लंड पे ले जाके उसको मसलने लगे, मैं बस उनको तिरछी नजरों से देख रही थी लगातार उनका हाथ उनके लंड पर चलने लगा मेरी उभरी हुई गांड उनको लण्ङ मसलने पे उकसा रहा था,
उनका मुझे वासना की नजरों देखनाएक नए एहसास का अहसास करा रहा था और संग ही बढ़िया भी लग रहा था पर कहीं ना कहीं मुझे डर भी लग रहा था अपने पिता समान ससुर जी के संग ये सभी करना सही नहीं है पर यहां मेरे दिल पर दिमाग हावी हो रहा था और कहीं ना कहीं मुझे भी ये नया एहसास बढ़िया लगने लगा था बदन में हर तरफएक नए तरंग उत्पन्न हो रही थी, जल्दी खीरा तोड़ने के बाद
मैं-“बाबू जी लो मैंने मनपसंद साइज के खीरा ले लिए”
तुरंत अपने हाथ को लंड से हटा के हकलाते हुए बोले -“हा हा ठीक है बहू और कुछ चाहिए तो नहीं”
मैं-“जी नहीं बाबूजी आज के लिए इतना हो जाएगा अब हमे चलना चाहिए मुझे घर भी जाना है”
बाबूजी-“ठीक है बहू जैसा तुम्हें ठीक लगे”
और खेत सेबाहर् आकर मैं उनके आगे आगे चलने लगी, चलते चलते मन में उनके लंड को मसलना याद आने लगा कैसे अपनी बहू की गांड को देख के रगड़ रहे थे मेरी चूत ये सोच के गीली होने लगी और पेशाब लगने लगी, मैं जल्दी जल्दी चलने लगी और मचान पहुंचने के बाद
मैं- “बाबूजी, मैं थोड़ा ट्यूबवेल की तरफ़ जाके आती हु”
वहां पहुंच के थोड़े बगल में मैंने अपनी साड़ी उठाई और चड्डी को नीचे करके गांड खोल के मूतने बैठ गई, मुझे पूरा यकीन था बाबू जी मुझे देखने जरूर आयेंगे और हुआ भी वही जहा से मैंने बाबू जी को पांव हाथ धोते देखा था वही से बाबू जी भी मुझे देखने लगे। यहां से रमेश चंद जी ख़ुद बताने वाले है,
पहली बार किसी और की खुली गांड वो भी मेरे अपनी बड़ी बहू के देख के मुझे से रहा नहीं गया और मैंने अपने लंड को गमछा हटा के चड्डी से थोड़ीबाहर् निकाल के हिलाने लग जाता हूँ मेरी नजरो के सामने आजएक ऐसी गांड थी जिसके बारे में मैं सोच भी नहीं सकता था बड़ी बड़ी गोल गोल बिल्कुल दूध समान गोरी गांड मेरे आंखों के सामने थी ये सोचकर ही मेरा 8 इंच का लंड फूलने लगा उसमे तनाव बढ़ता ही जा रहा था हरएक पलएक कसावट सी मेरे लंड में महसूस होती जा रही थीं,
लंड पर मेरा हाथ तेजी से चल रहे थे दोबारा अचानक से मेरे पांव और आंड अकड़ने लगा मेरा लंड रॉड की तरह खड़ा हो गया मेरे लण्ड में उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी मेरी बहू की गांड में पता नही कैसा नशा था की मैं अपना हाथ अपने लण्ड से हटा ही नही रहा था जैसे मेरा हाथ लण्ड से चिपक गया था मुझमें सुरूर चढ़ने लगा ना चाहते हुए मेरे मुंह से निकल गया "आहहह बहू तुम्हारी गांड कितनी बड़ी है जी कर रहा अभी वहां आके मैं अपना लंड तुम्हारी गांड में डाल दु उफ्फफ उम्मम्मम और जोर जोर से तुम्हारी गांड का बाजा बजा दु,
बहू के पुनः आने से पहले मुझे जल्दी ही अपना पानी निकालना था मैं और तेजी से अपना लंड हिलाना शुरुआत कर दिया मुझे अपनी बहू का नंगा जिस्म दिखने लगा था मैं मन में सोचने लगा मैं बहू की गांड मार रहा हूँ
मेरा लंड अब फूलने लगा "आआह्न्श्ह उम्मम्म बहूएक बार तुम्हारी गांड मिल जाए" औरएक तेज पानी की धार मेरे लंड ने छोड़ दिया मैं हाफते हुए अपनी सासों को स्थिर करने लगा था और सामने देखा तो बहू वहाँ नहीं थी मैं डर गया और जल्दी से अपने लंड को अंदर रखके कपड़े ठीक करकेबाहर् आ आया तो बहूबाहर् ही खड़ी थीं जिसने मुझे देखते ही पूछा, “बाबू जी आप अंदर क्या कर रहे थे मैं आपकोबाहर् देख रही थी”
मैं-“कुछ भी तो नहीं बहू मैं तो तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था यही”
बड़ी बहू चंचल-“ठीक है बाबू जी अब मुझे चलना चाहिए काफ़ी टाइम हों गये मुझे आए, जल्दी आइएगा घर पे आपका इंतज़ार करूँगी।”
बड़ी बहू बर्तन के संग सब्जी लेके घर के लिए रवाना हों गई और जाते हुए मेरे मन में कुछ प्रश्न छोड़ गई, दोबारा मैं मचान के उपरि जाके आराम करने लगा,
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दोपहर का समयबाहर् थोड़ी ठंडी के संग गर्मी गाँव के किराने की दुकान में जहाँ आधा शटर लगा हुआ थाएक पत्नी अपने पति को कामोत्तेजना से लिप्त शारीरिक सुख देने जा रही थी परउन्को क्या पता थाएक तूफ़ान थोड़े देर में इधर आने वाला है जिससे इनकी ज़िंदगी बदलने वाली है वो आ चुका था,
लेखा अब अपने पति के लंड को पूरे जोश के संग मुँह में लेके उसे पूरा आनंद दे रही थी, लेखा की आँखे बता रही थी कितनी हवस उसके जिस्म में आ चुकी थी लाल आँखो से अपने पति को देखते हुए उसे पूरा मजे देना चाह रही थी,
उसके पति का मुंह से बस आह्ह्ह उहहहह्ह निकल रहा था उसने लेखा के बालों को अपने हाथों से पकड़ रखा था और उसके द्वारा अपने लंड चूसने का पूरा आनंद ले रहा रहा था, लेखा ने लंड को मुँह से निकाला और जल्दी से खड़ी होकर अपने हाथों से साड़ी और साया को उठाके उसने अपने चड्डी को टांगों से उतार फेका जो दरवाजे के पास जा गिरा, दोबारा सीधे अपने पति की तरफ़ पीठ करके उसके लंड पर बैठने लगी और उसके मुँह सेएक आह्ह्ह निकल जाती है वो धीरे-धीरे धीरे लंड पर सरकने लगती है,
लेखा की चूत अब अपने पति की लंड को अंदर निगलने लगती है धीरे-धीरे से दोनों की आवाजे सिसकियों में बदलने लगी थी लेखा थोड़े थोड़े देर में उपरि नीचे होके चूत को लंड के लायक़ बना रही थी जब लेखा को चूत में आराम लगने लगा तो अपनी गति में वृद्धि करने लगी,इसे गति को वह इतनी बड़ा चुकी थी कि उसकी और उसके पति की सिसकारियाँ अब ज़ोर ज़ोर से आने लगी थी वो लगातार लंड पे उछल रही थी, पीताम्बर ने अपनेएक हाथ से उसके चूचे को दबाया और दूसरे हाथ सेएक जोरदार तमाचा लेखा की गांड पे मार दिया लेखा पूरी तरह से तिलमिला गई पर उसने उछलना बंद नहीं किया,
हवस और चूदाई में खोए दोनों पति पत्नी को ये पता नहीं था कोई शख़्सउन्को दरवाजे से निहार रहा है उनके काम क्रीड़ा का वो पूरा मज़े ले रहा है उसकेएक हाथ में लेखा की चड्डी थी जो चूत की स्थान पे पूरी गीली थी चूत रस से, और उसका दूसरा हाथ उसके पैंट केबाहर् निकले हुए लंड पे था, वोएक बार आँखे बंद चड्डी को अपने नाक से सूंघता दोबारा अपने लंड को हिलाता और दूसरी बार सामने होते चूदाई को देख के दोबारा लंड को और तेज़ी से मसलते हुए हिलाता जा रहा था, क्योंकि नजारा और आती आवाजे ही कुछ ऐसी थी,
लेखा तो बस चूदाई के मजे ले रही संग ही अपने हाथों से ख़ुद के चूचे भी दबा रही थी, अचानक रुक कर वो अपने पति के तरफ़ देखते हुए दोबारा से उसके लंड पर बैठ जाती है उसका पति अपने दोनों हाथों से उसके जांघो को पकड़ कर अब लेखा को उछालने लगता है, लेखा मजे में अपने पति के होठों को खोल कर उसे चूसने लगती है,
“उम्मम्म ओह्होह्हों और तेजी से उछालिये ना जी ज्यादा आनंद आ रहा है” लेखा से होठों को अलग करते हुए कहा
“आहाहाहाहाहाहा कर ही तो रहा हूँ मेरी जान इतनी बड़ी गांड है पकड़ के हिलाने का आनंद ही कुछ और है” पीताम्बर गांड को पकड़ के हिलाते हुए कहा
सामने दरवाज़े के पास खड़ा शख्स भी लंड को हिलाने में कोई कमी नहीं कर रहा था पर कही न कहीएक डर उसके जहन में भी था,
अचानकएक तेज हवा चली और पर्दे के पीछे खड़ा शख़्स को सामने ले आया, संग ही तेज हवा ने लेखा के बालों को उसके सामने ले आया और जब हाथों से बाल ठीक करने ही लगी थी, उसकी नजर अचानक दरवाज़े के पास खड़े शख्स से मिली और उस शख्स की नजर लेखा से मिली, दोनों को कुछ देर तक तो समझ नहीं आया क्या करके दोबारा वो शख़्स तेजी से दरवाज़े के पीछे छुप गया,
लेखा को जैसेइसे अचानक हुए घटना ने बड़ी ही दुविधा में डाल दिया और उसकी चूत नेएक झनझनाट के संग ज्यादा ही जबरदस्त तरीके से झड़ने लगी जैसे आज से पहले कभी ना हुआ हो, संग में पीताम्बर भी झड़ गया जो उसके चूत की कसावट को और ज़्यादा देर नहीं सह पाया, लेखा जल्दी से अलग होकर अपने कपड़े ठीक करने लगी और अपने पति को भी बोली जल्दी कपड़े ठीक करने,
अब तक वो शख़्स लेखा की चड्डी को बगल में छोड़ ख़ुद को बिना रोके झड़ चुका था और जल्दी से अपने कपड़ो को ठीक कर शटर केबाहर् धीरे-धीरे से जाके खड़ा हो गया और कुछ सोच कर बिना अंदर देखे जैसे ही जाने लगा,
लेखा ने उसेबाहर् ही रोकना चाहा पर वो शख्स चलता रहा लेखा उसे आवाज लगाती हुई उसके पीछे चलने लगी और अंत में आख़िरकार उस शख़्स को रुकना ही पड़ा,
क्यों कि लेखा ने जिसे रोका था वो कोई और नहीं उसका ख़ुद का अपना बड़ा बेटा अनिमेष ही था जिसने कुछ देर पहले अपनी मम्मी को उसके पिताजी जी से चूदाई करते हुए देखा था,
कुछएक घंटे पहले जब अनिमेष कॉलेज में था उसने कमल को फ़ोन लगा के,
अनिमेष-“भाई आज तू, चल बोलके आया क्यों नहीं साला आज तो मुझे भी कॉलेज में बोर लग रहा है”
कमल-“हा भाई निकल ही रहा था पर दोबारा मन नहीं किया तो घर पे ही रुक गया, तू कब तक आयेगा जल्दी पहुँचना तुझे कुछ दिखाना है” कमल ने वही किताब दिखाने की बात कर रहा है जिसे उसकी चचेरी बहन रिंकी ने आज सुबह जब वो नहाने गया था उठा ली, जिसके बारे में अब तक कमल को कोई भनक नहीं थी,
अनिमेष-“निकलता हूँ भाई मैं भी आज ज़्यादा कोई क्लास भी नहीं लगा है”
कमल-“ठीक है जल्दी घर आ जा दोबारा मिलते है और सुन आते टाइमचाचा जी के दुकान से कुछ पीने का भी ले पहुँचना यार”
अनिमेष-“ठीक है ले आऊंगा बाय”
बस दोबारा क्या अनिमेष बस स्टॉप में उतर के जैसे ही अपने पिताजी के दुकान के पास कोल्डड्रिंक लेने पहुँचा तो देखता है शटर आधा बंद है दोबारा भी बिना आवाज लगाये अंदर चला जाता है और अंदर जाते ही उसे वही नजारा दिखता है, उसकी मम्मी उसके पापा के लंड पे बैठ रही है धीरे-धीरे से, इसके आगे का आपको तो पता ही है,
लेखा-“अनी रुक तुझे मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही है क्या”? उसका बड़ा बेटा अब भी शांत था कुछ भी समझ नहीं आ रहा था वो क्या जवाब दे उसे डर लग रहा था कहीं उसकी मम्मी उसके बारे में सबको बता दी तो उसके पिता जी उसका क्या हाल करेंगे, वो पेड़ के छाव के नीचे खड़ा डर से काँपने लगा था,
“मैं कुछ पूछ रही अनी तु जवाब क्यों नहीं दे रहा” लेखा ने दोबारा से उसको हिलाते हुए उससे प्रश्न पूछा। अनिमेष को कुछ समझ नहीं आ रहा था सबकुछ उसके सामने अँधेरा अँधेरा लग रहा था, दोबारा अनिमेष ने कहा-“माँ मुझसे ज्यादा बड़ी गलती हो गई क्षमा करना, और रोने लगता है”।
लेखा जो अब तक उसे ग़ुस्से से आवाज़ लगाती आई थी अपने बेटे के रोने से थोड़ी नम पड़ जाती है और उससे कहती है-“बेटा जो भी तुमने देखा वो ग़लत था, तुम्हे हमे ऐसी स्थिति मेंदेख्ना नहीं चाहिए और यदि देख भी लिया तो वहाँ से चले जाते”
अनिमेष ने रोते हुए कहा-“ माफ करना मम्मी मेरा कोई ग़लत इरादा नहीं था ये सभी मैंने जानबूझ के नहीं किया है”
लेखा अपने बेटे को गले से लगा के शांत कराते हुए कहती है-“मैं समझ सकती हूँ अनी तूने ऐसा जानबूझ के नहीं किया पर बेटा जब तुमने देख लिया गलती से तो वहाँ से निकल जाते लेकिन तुमने तो” और लेखा के मन में उसके बेटे का लंड जो की 7.5 इंच लंबा था सामने आ जाता है जब उसकी नज़रे मिली थी उस टाइमउसके बेटे का हाथ उसके लंड पे था,
अनिमेष को कुछ कहना सूझ नहीं रहा वो बस अपनी मम्मी के गले लगे रोए जा रहा था और रोते हुए कहता है-“प्लीज मम्मी मुझे क्षमा कर दो दोबारा कभी ऐसी गलती मुझ से नहीं होगा”
लेखा परिस्थिति को समझती है क्युकी उसके बेटे कादेख्ना तो ग़लत था पर जानबूझ के वहाँ आकेदेख्ना उसके बेटे का कोई इरादा नहीं था, उसको अपने से अलग करते हुए कहती है-“इस बार मैं तुम्हें छोड़ रही हूँ अनी दोबारा कभी ऐसा तुमने कुछ किया तो मैं तुम्हारे पापा को बताने से पीछे नहीं हटूँगी”।
अनिमेष रोना बंद करते हुए सुकून की सांस लेता है और अपनी मम्मी से कहता है-“पक्का मम्मी अगली बार ऐसा कुछ नहीं होगा”
फिर दोनों मम्मी बेटे घर की तरफ़एक संग चलने लगते है दोबारा अचानक अनिमेष अपनी मम्मी से बोलता है-“पर मम्मी इसमें गलती आप लोगों की भी है आप लोगों को चू… मेरा मतलब आप लोग जो कर रहे थे वो शटर बंद करके करना चाहिए था”,
लेखा अचानक हुए ऐसे प्रश्न से हड़बड़ा जाती है और अपने बेटे को धीरे-धीरे से मारते हुए कहती है -“अनी तुझे मार खाना है क्या तुझे कुछ शरम भी है अपनी मम्मी से कौन ऐसे बात करता है नालायक” और उसके पीठ पे मारने लगती है,
अनिमेष-“माफ करना मम्मी मुझे लगा तो मैंने कह दिया और ग़लत क्या कहा सही तो कहा मैंने”
लेखा शांत होके चलते हुए कहती है-“हा थी गलती तो क्या तू अपनी मम्मी को बताएगा उसकी गलती नालायक रुक आने दे अब पक्का बताऊँगी तेरे पापा को तेरी हरकत”
अनिमेष की दोबारा से फट के चार हो जाता है-“प्लीज मम्मी अब कुछ नहीं कहूँगा, आप पापा को कुछ मत बताना”
लेखा अपनी हसी को अंदर ही दबा के उससे कहती है-“आज तूने कुछ ज़्यादा ही मस्ती कर लिया चल अब शाम के 4 बज गए घर जाके चाय पीना है मुझे, दोबारा दोनों मम्मी बेटे घर की तरफ़ चल पड़ते है,
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घर में शाम के 5 बज चुके थे तीनो बहने कॉलेज से आ चुकी थी चारों देवरानी और जेठानी भी घर पे थी पर उनके पतियों को आने में अभी टाइमथा, जो जैसे आते गएएक एक करके लेखा ने सबको चाय पिलाती रही उसको चाय बाटते हुए उसका बड़ा बेटा आज अजीब नज़रों से देख रहा था जैसे उसकी मम्मी को उससे कुछ चाहिए हो। उसका गदराया गोरा बदन, मोटी कसी गांड और बड़े बड़े चूचे जिनको आज को मन भरके देख चुका था, उसका बड़ा बेटा अनीमेष आज अपनी मम्मी की तरफ़ मोहित हो रहा था ना चाहते हुए वो अपनी नज़र बार बार अपनी मम्मी पे ही ले जा रहा था और वहाँ लेखा अपने बेटे को ममता की नज़र से देख मुस्कुरा देती थी, सबको चाय पिला के थक के वो फ्रेश होने और मूतने अपने कमरे में ना जाके सीधे घर के पीछे बने खुले हुए बाथरूम में चली जाती है,
और ये वही टाइमथा जब कमल जो शाम को घूमके पुनः आने के पश्चात सीधे उपरि ना जाके पीछे की तरफ़ मुतने चला गया जहाँ उसकी मुलाक़ात सबसे बड़ी चाची लेखा से हुई,
रात होते ही सभीएक दूसरे को रात के खाने के लिए बोलने लगे, सभी नेएक एक करके रात खाना खाया,
खाने के खाने के टाइमऔर उस रात सभी कमरों में क्या घटा ये जानने के लिए हमे अगले भाग की ओर जाना होगा, आज के लिए इतना ही मिलते है अगले भाग में धन्यवाद
माफ़ करना दोस्तों अपडेट आने में लेट हुआ क्युकी मुझे नहीं पता था इधर सेव ड्राफ्ट करने पर बस १ दिन ही रहता है मेरा 40% अपडेट चला गया था और मुझे दोबारा से लिखना पड़ा।
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bhay ji ab update nahii ayenge kya ap kee kahani me yrr itni superb aur kamuk kahani ko chod kr kyu ja rahe hu Ese hi Arthur morgan bhay bi apni dono kahani chod ke chale gye yrr kam say kam ap too esa na kro
Yakeen maniye aapko kisi stri ko chudte dekh krr jara bi nahee lagega woh randi wali harkat krr rahi jb tak use kisi ne chheda na hu
ap sai kah rahe pr kahin ayese jagah bi hote h jaha hero k alawa do loug kuch krr rahe hu too hero ko kese ptaa unke bich kya huwa iss liye jinke bich joo hoga vahi batayenge us waqt simple
Maaf krna late say suru kia pr aapko agle update say nirasha nai hongi. jab jab update likhte jaunga vaise vaise ap logo ko milta rahega
अगला अध्याय शारीरिक परिचय पोस्ट कर दिया है कृपया पढ़के अपना मत साझा करे
अभी आपने सिर्फ पात्रों का परिचय दिया है और 50 लाइक्स चाहते हो ? यानी दोबारा से अगले वर्ष अपडेट देंगे आप !