Incest Desi Sex Story : गांव की चांदनी रात
अध्याय 2
शारीरिक परिचय
दोस्तों पिछले अपडेट में मैने कुछ पात्र से आप लोगों को अवगत कराया था परिचय देते हुएइसे अपडेट में मैने फोटो भी शेयर किया है ताकी परिवार के खास स्त्रियों काएक चलचित्र आप लोगों के दिमाग में बस सके।
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"सबसे पहले घर की सबसे प्यारी शामली देवी जी के बारे में बात करते है उनके बदन के बनावट को तो आप देख ही रहे है। जिन्होंने अपने बदन को किस तरह सजाया है और किस तरह सेउन्को अब तक बनाये रखा है। उनकी उम्र भले ही 60 वर्ष के पार हो चुकी हो लेकिन कोई कह नई सकता हैं कि वह इतनी उम्र की है। ये अपने पति को जितना प्रेम देती हैं उतनी ही ज़्यादा अपने बच्चों के संग उनके बच्चों को भी करती है। ये ज्यादातर घर पे ही रहती है पर जब कभी जरूरत हो खेतों में भी जाती है अपने बहुओं के साथ। इनकी सेक्स लाइफ तो अपने टाइमसे पहले से ही अच्छी चल रही है रमेश चंद जी जो इनके पति है पलंग पे इनको आज भी रगड़ रगड़ के पेलते है। आगे देखिएगा कैसा है इनके चूदाई करने का तरीका कितना ल जवाब है"
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"ये है घर की सबसे बड़ी बहू चंचल देवी, पंकज जी की पत्नी और कमल रमल की मम्मी उम्र पे आप लोग मत जाना भले ही 45 की हो पर बिल्कुल 40 से ज़्यादा की नहीं लगती है। बदन का हरएक अंग भगवान ने फुर्सत से बनाया है। बड़े बड़े चूची और बड़ी कमर की गान्ड से ये इसके पति से संतुष्ट तो है पर उम्र की मार हवस की भूख बढ़ा ही देती है और ज्यादा चूदाई की चाह में। पढ़ी लिखीएक घरेलू स्त्री जिसे खेतों के संग इंसान परखना भी अच्छे से आता है। ना किसी से ज़्यादा डरती है और ना किसी की ज़्यादा सुनती है। बड़ा बेटा कमल 26 वर्ष और छोटा बेटा 23 वर्ष का है। दोनों अलग अलग कॉलेज में पढ़ाई
कर रहे है।"
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"ये है घर की दूसरे नंबर की बहू लेखा देवी जिसे सभी ज्यादा ज़्यादा मानते है क्युकी इनका रहन सहन हर तरह से उत्तम है। इनके बदन की बनावट ही ऐसी है संजो के रखा गया कमर और नशीली आंखे जिसे देखकर गाँव के हर मर्द की आहे निकलती है पर लेखा देवी ने कभी किसी को ज़्यादा जज्बातों नहीं दिया पर कुछ सालो से पति के पैरों की दिक्कत की वजह से राते कुछ ख़ास नहीं बीत रही। गान्ड अब भी मरवाती है पर तरीका कुछ अलग है आगे देखेंगे। बड़ा बेटा अनिमेष 24 वर्ष जो कमल के संग उसी के संग कॉलेज जाता है और छोटा बेटा नवीन 20 वर्ष का है जो रमल के संग उसके कॉलेज में पढ़ता हैं।"
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"ये है आराधना मिश्रा उम्र 22 वर्ष पीताम्बर और लेखा की बेटी है। जो नवीन से 2 वर्ष बड़ी और उतनी ही अनिमेष से छोटी। गांव के लड़कों की हालत खराब है इसके चूचे देख देख के। ये रिंकी और पिंकी के संग गर्ल्स कॉलेज में पढ़ती है। कॉलेज में भी इसके दीवाने कम नहीं है। उपरि ख़ुद देख सकते हो क्यों लड़के इसपे मरते है। कॉलेज कभी सूट तो कभी जींस टॉप में जाती है।"
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"ये है घर की तीसरी बहू भगवती देवी इनके पतली और गोरी कमर के कई दीवाने है। कई तो बस सोच सोच के ही अपना लन्ड हिला लेते है। ये जितनीबाहर् से खूबसूरत है उतनी ही अंदर से भी खूबसूरत दिखती हैं। खासकर जब ये अपने पति पामराज के संग चूदाई करती है तब तो ऐसा लगता है वो नहीं ये छोड़ रही उनको देखते है आगे किस तरह। इनकी आँखे भूरे रंग की जिनमेएक अद्भुत सी खूबसूरती दिखाई देती हैं।एक नजर किसी को देख ले तो वही दुनिया भूल जाए। पति काम में आलसी तो है ही संग में पलंग पर भी थोड़े आलस्य करते है पर दूसरी औरतों के लिए हमेशा लन्ड खड़ा रखते है। जिसकी वजह से ये भी अपने जेठानी की तरह प्रेम को तरस रही है।"
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"ये है रिंकी मिश्रा उम्र 22 वर्ष बिल्कुल अपनी मम्मी पे गई है बदन और रंग रूप में। बाप भले चपरासी हो पर रहती पूरी ठशन में है । इसकी जवानी अपने चरम पे है और तलाश में हैएक ऐसे मित्र की जो इसके नखरे उठाये और दबा दबा के इसका रस निचोड़ दे।"
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"ये है पिंकी मिश्रा उम्र 22 वर्ष अब रिंकी की जुड़वा बहन है तो ज्यादा कुछएक जैसे तो होगा ही पर कुछ चीजों में रिंकी से अलग है। ये ज्यादा जल्दी किसी के भी बातो में फस जाती है चाहे वो जवान लड़के हो या बाप के उम्र के आदमी। हर कोई इसके शालीनता की वजह से इसके संग अलग तरह से चूदाई के बारे में सोचते है।"
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"घर की सबसे छोटी और अपने ससुर रमेश चंद की लाडली बहू नेहा मिश्रा है। जितना प्यारा नाम उतनी ही खूबसूरत इसका बदन जिसके घर केबाहर् क्या घर के अंदर भी दीवाने है ख़ुद इसके ससुर और तीनों जेठ जो बस देखकर ही अपनी कामग्नि को शांत करते है पर सभी अभी तक अपने आप को रोके हुए है। ये सभी कुछ अपनी पति को देना चाहती है। पर जब शराबी नहीं के बराबर अपनी पत्नी को चोदेगा दोबारा नेहा भी किसी न किसी की तलाश तो जरूर करेगी ही देखते है आगे क्या संगम बनता है।"
आज के लिए इतना ही लिख पाया अगले अपडेट से ट्रेन अपने पटरी में आने वाली है तो जल्द ही मिलते है दोस्तों।
धन्यवाद
औरएक बात मेरी गलतियों को मुझे सुधारने का मौका जरूर देना अब से कोई शर्त नहीं है जैसा आप लोगो को लगे लाइक और कमेंट अपने हिसाब से दे देना।
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अध्याय-3
शुरुवात
कहानी की शुरुवात होती है पंकज के बड़े बेटे कमल से जिनकी बड़ी चाची जो उसकी मा जैसा प्रेम करती है. कमल की तीनो चाची उसे अपने बेटे जैसा प्रेम करती है… कहानी का कुछ भाग कमल की जुबानी-
मेरे दादा जी रमेश चंद का घर कुछइसे तरह है आप समझ सकते है जैसा नीचे है वैसा ही उपरि भी है
मेरे दादा के घर मे नीचे 4 बेडरूम है, 1स्ट बेडरूम ख़ुद दादा और दादी का है, 2न्ड बेडरूम मेरे मम्मी और पापा का है, 3र्ड बेडरूम मुझे और मेरे छोटे भाई रमल को दिया है और 4र्थ बेडरूम मेरे बड़े चाचा पीताम्बर और चाची लेखा का है।एक किचन नीचे औरएक किचन ऊपरी मंजिला में भी है घर में सबके लिए खानाएक स्थान ही बनता है नीचे के किचन में दोबारा जिसको जैसे टाइम मिलता है आके खा लेते है। घर में नीचे स्टोर रूम भी है जहाँ कुछ पुराने सोफा और गद्दे रखे है। गर्मियों के लिए कूलर भी वही रखे रहते है।
घर के ऊपरी पहले मंजिला में भी 4 बेडरूम है, 1स्ट बेडरूम पामराज चाचा और भगवती चाची का है, उनसे लगा हुआ 2न्ड बेडरूम सबसे छोटे चाचा अनुज और चाची नेहा का है, 3र्ड बेडरूम अनिमेष और नवीन को दिया है और 4र्थ बेडरूम मे मेरे तीनो बहने पूजा, रिंकी और पिंकी को दिया है।
घर के बाहरएक बड़ा आँगन है जिसमेंएक कोने मेंएक छोटा सा मंदिर है संग ही दूसरे तरफ़ गाड़ियो को पार्क भी करते है। हमारे दादा जी का लिया हुआएक 7 सीटर गाड़ी भी है जब कहींबाहर् घूमने जाना हो और खेतों के काम के लिएएक ट्रेक्टर भी है जिनको घर के पीछे रखते हैएक शेड के अंदर। मेरे पापा और तीनो चाचा के पास अपना ख़ुद का बाइक भी है जिन्हें वो ड्यूटी और गाँव आने जाने के लिए इस्तेमाल करते है।
हम सभी भाई बहन कॉलेज ज्यादातर बस या ऑटो से पहुँचना जाना ही करते है कभी पापा लोग की बाइक मिल गई तो बात अलग है दोबारा तो मजे ही मजे।
मेरे दादाजी मुझे ज्यादा प्रेम करते है क्योंकि परिवार में मैं उनके सबसे बड़े बेटे का बड़ा बेटा और पहला लड़का हूँ। मेरी फॅमिली मे सबसे बड़ा लड़का होने का थोड़ा फायदा तो है किसी चीज के लिए कोई रोक टोक नहीं रहता है।
मेरा और अनिमेष दाखिला गाँव के पास ही केएक कॉलेज मे किया है क्युकी हम दोनों मैथ्स वाले है मेरा छोटा भाई रमल और नवीन दोनों अलग कॉलेज में पढ़ते है वो कॉमर्स वाले है और मेरी तीनो बहने गर्ल्स कॉलेज में पढ़ती है।
मेरी ज़िंदगी अच्छे से चल रही थी मैं फौज में जाने की तैयारी में लगा हुआ था जब मैंने कॉलेज के पहले वर्ष अपनी क्लास के हिसाब से बदलाव किए तब मेरे कॉलेज मे मेरे कुछ मित्र नंगी पिक्चर अपने मोबाइल में देख कर उनकी बाते करते है मुझे भी पिक्चर देख कर कुछ कुछ होता था पर मेरे पास मोबाइल ना होने की वजह से बसउन्को देख कर उनकी बाते सुनकर रह जाता था।
लेकिन जैसे ही 2nd ईयर में गया और पापा को बोलकर मोबाइल लिया दोबारा मेरे मन में भी अलग तरह के ख्याल आने लगे जिसे मैंने अनिमेष के संग साझा किया और हम दोनों भाई भी मोबाइल में पोर्नदेख्ना और अकेले रहने पर लंड हिलाना शुरुआत कर दिए और धीरे-धीरे टाइमबीतने के संग ज़्यादा उम्र के औरतों की तरफ़ आकर्षण बढ़ता चला गया।
इसी तरह मुझेबाहर् की औरतों के संग साथ घर की औरतों में दिलचस्पी बड़ने लगा मुझे मेरी छोटी चाची ज़्यादा अच्छी लगने लगी मैं अक्सर उनको निहारता रहता था और वो भी मुझे अपने बेटे जैसा समझ के हस्के देखती और दुलार देती मैं उनसे क़रीबी बड़ाने के उपाय सोचने लगा जब कभी कॉलेज ना जाना हो तो अक्सर मैं उनके नज़दीक रहके उनसे बात करता और उनसे हसी मजाक भी। कभी कभी तो उनको मोबाइल में नॉनवेज जोक्स भी शेयर कर देता और वो भी कुछ ना बोल के हस देती थी।
मेरी जिंदगी की पहली घटना जिस दिन के पश्चात से ज्यादा कुछ बदल गया। ऐसे हीएक दिन जब छोटी चाची रसोई में खाना बना रही थी मैं उनके पास जाके उनसे बात करने लगा
मैं - “क्या बना रही हो चाची”
छोटी चाची - “आज शनिवार है और तुम्हारे चाचा जल्दी आने वाले है तुम्हें तो पता ही है उनका आज शाम का क्या प्लान रहता है।”
मैं - “हा चाची वही अपने मित्र लोग के साथबाहर् जाके पीने का”
छोटी चाची - “ क्या करूँ बेटू मेरी किस्मत में ही यही लिखा हैइसे दुनिया में वो नहीं मिलता जिसे हम अक्सर पाना चाहते है। और तुम बताओ आज इधर कैसे पहुँचना हुआ पहले तो कभी नहीं आते थे”
मैं - “क्या चाची आप भी मैं पहले भी आता था पर आप ही नहीं मिली मुझसे यकीन ना हो मम्मी जब खेत से आए तो पूछ लेना”
छोटी चाची - “अच्छा ठीक है कर ली यकीन”
मैं - “ बढ़िया चाची क्या मैं आपसेएक बात पूछ सकता हूँ?”
छोटी चाची - “ हा पूछो ना बेटू क्या ये भी कोई पूछने वाली बात है।”
मैं - “ आपके और चाचा जी में से किसकी वजह से आपके बच्चे नहीं हो रहे है।”
ये प्रश्न सुनके चाची मानो कही खो सी गई जैसे किसी ने उनके दुखते रग में हाथ रख दिया हो उनके आँखों से आँसू निकलने लगे।
मुझे ये देख कर अपने उपरि ज्यादा गुस्सा आया कि मैंने क्यों ये प्रश्न पूछ लिया अगले ही समय जैसे ही मैं उनसे माफ़ी मांगने वाला था चाची ने जल्दी ही मुझे जवाब दिया
छोटी चाची - “बेटू ऐसे प्रश्न तुम्हें नहीं पुछना चाहिए दोबारा भी तुम अब इतने बड़े हो चुके हो, जो मेरे तकलीफ़ के बारे में पूछ रहे हो तो तुम्हें बताने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं पर वादा करो ये बात तुम किसी और को नहीं बताओगे”
मैं - “मेरा आपसे वादा रहा मेरी प्यारी चाची ये बात मैं पक्का किसी और को नहीं बताऊंगा”
छोटी चाची - “बच्चे ना होने कि वजह तुम्हारे चाचा अनुज मिश्रा है। वो कभी भी किसी भी स्त्री को कभी मम्मी नहीं बना सकते है। बस यही वजह है से आज तक मैं बच्चे के लिए तरस रही हूँ बेटू।”
मुझे उनकी बातों पे यकीन नहीं हो रहा था पर बात ये भी सच थी की चाची क्यों मुझसे झूठ बोलेगी जब वो ख़ुद तरस रही थी। दोबारा मैंने उनसे बात करते हुए बोला
मैं - “तो आपने कुछ सोचा है अब आगे क्या करेंगे आप और चाचा जी”
छोटी चाची - “अब ज्यादा हो गया बेटू मैं तुम्हारी मम्मी जैसी हूँ और अब ज़्यादा अंदर की बाते तुम्हें नहीं पूछना चाहिए”
मैं - “माफ़ करना चाची मुझे लगा शायद मैं कोई मदद कर सकू आपकाइसे मामले मेंइसे लिए मैं पूछ बैठा”
चाची ने मुझे प्रेम भरी नजरों से एकटक देखा जैसेउन्को मुझमें ऐसा कुछ दिखा हो जो उन्होंने आज से पहले कभी किसी कर में नहीं देखा हो।
उनकाइसे तरह से देखते रहना मुझे पहले से अलग लगा। आज से पहले उनकी आँखे इतनी नशीली नहीं देखा, जैसे किसी चीज की चाहत की उम्मीद दिखी हो।
फिर पता नहीं अचानक चाची को क्या हुआ मेरे पास आई और अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ के मेरे माथे पेएक बढ़िया सा प्यारा सा चुम्बन की 
और बोली
छोटी चाची -“बेटू तुम मेरीइसे मामले में शायद कोई मदद ना कर पाओ दोबारा भी कभी कोई जरूरत होगी तो मैं तुमको जरूर बताऊँगी। औरएक बात जो भी बाते हमारे बीच हो रही हैं और अगरइसे मामले में आगे होंगी किसी को नहीं बताना।”
मैं -“ठीक है मेरी प्यारी चाची जैसा आप कहो।”
उनके किस करते ही मेरे मन में हवस की भावना आने लगा जो पहले मैंने छोटी चाची के संग कभी एहसास नहीं किया था, उनके नर्म नर्म होठ जब मुझे अपने माथे पे महसूस हुआ तो मेरे रोंगटे खड़े होने के संग साथ मेरे लंड में भी हलचल मच गया ऐसा लगा जैसे आज बिना पोर्न देखे ही लंड से पानी निकाल दु।
मन पे किसका काबू होता हैइसे मन के उथल पुथल को बाजू में रख कर इसके पश्चात मैं उनको बाय बोलके वहाँ से अपने गाँव के दोस्तों से मिलने चला गया उनके संग गप्पे लड़ाने। मेरे गाँव में ज़्यादा मित्र नहीं है कॉलेज दूसरे गाँव में होने की वजह से सभीबाहर् के ही मित्र है कुछ पुराने मित्र जो अब तक दोस्ती निभा रहे वही अब रह गए है बाकी गाँव के मित्र अब ख़ास नहीं रहे जिनसे रोज़ मिलके मस्ती मजाक किया जा सके कुछएक को छोड़ के।
घर आते शाम के 6 बज गए मुझे जोरों की मूत लगी थी जल्दी अपने कमरे के बाथरूम में ना जाके घर के पीछे में बने खुले कमरे वाले बाथरूम में जैसे उसके नज़दीक गया मैंने किसी चीज को आज इतने नजदीक से देखा था।
वह कोई और नहीं लेखा चाची थी जो वहाँ पहले से ही अपनी साड़ी गांड से उपरि उठाए मूतने बैठी हुई थी।
उनकी गोरी गोरी बड़ी सी गांड देख के दंग रह गया न चाहते हुए भी मैं अपने हाथों को लंड तक जाने से नहीं रोक पाया और पैंट के उपरि से ही लन्ड कोएक बार जोर से रगड़ दिया।
उनके मुतने के आवाज ने मुझे हाथ हटाने ही नहीं दिया और कुछ देर तक यूं ही अपने हाथों से लन्ड को रगड़ता रहा। आज पहली बार किसी स्त्री की गांड को मैंने इतने पास से देखा था। लन्ड को रगड़ते हुए दोबारा कब मेरी आँखें बंद हुई मुझे ख़ुद पता नहीं चला, उनकी गांड के खयालों से मैं ऐसा खोया कि लंड को पैंट के उपरि से रगड़ता रहा जिससे मेरा लंड अपनी औक़ात में आ गया। फिरएक आवाज़ से मेरी आँख खुली और जल्दी मैने अपने लन्ड को पैंट में ही ठीक किया,
वो आवाज थी चाची के मूतने के पश्चात पानी डालने की थीइसे डर से कि कही वो मुझे देख न ले मैं जल्दी थोड़ा दूर जाके पीछे हों गया और उनको देखता रहा वो शायद हाथो से अपनी चूत को पानी लेके धो रही थी दोबारा उठने के संग ही संग चूत को अपनी साड़ी से पोछ भी रही थी।
थोड़े देर पश्चात मैं ऐसे अनजान बन के आया जैसे मैंने चाची को वहाँ मूतते हुए देखा ही नहीं और लेखा चाची से कहा
मैं -“चाची आप इधर कैसे” उनको थोड़ा सक हुआ मेरे मूतने के जल्दी पश्चात ही ये अचानक इधर कैसे
लेखा चाची -“कुछ नहीं बेटू वो मुझे थोड़ी जोर की लगी तो मैं अंदर ना जाके इधर आ गई पर तुम इधर कैसे”
मैं - “मुझे भी आपही की तरह जोर कि लगी तो यही आ गया” और दाँत दिखा के हस दिया हीहीही…
लेखा चाची -“अच्छा ठीक है ठीक है जल्दी जल्दी जाओ नहीं तो पता चला”
ओर मुस्कुराते हुए चुपचाप वहां से धीरे-धीरे धीरे जाने लगी उनके मन में कुछ चलने लगा था वो मन में सोचने लगी कहीं इसने मुझे मूतते हुए तो नहीं देखा, यदि देखा होगा तो पक्का उसने पीछे से मेरी गांड जरूर देखा होगा। उसका लंड पैंट में खड़ा हुआ सा लग रहा था मतलब उसने पक्का मुझे देखा है तभी उसका लंड ऐसा खड़ा था।
और दोबारा थोड़े दूर जाके कोने से जहाँ थोड़ी देर पहले मैं था अचानक रुक कर पलट कर देखने लगी
और इधर मैं बिना उनको देखे की वो गई या नहीं अपने लंड को जो अपनी पूरी औक़ात में था पैंट सेबाहर् निकाल के मूतने लगा
फिर अचानक मुझे लगा जैसे कोई मुझे देख रहा तो मैंने तिरछी नजर से देखा तो पाया लेखा चाची दीवाल के कोने से मुझे मूतते हुए मेरे लंड जो की 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा है को घूरे जा रही है
मेरा लंड तब से खड़ा था जबसे मैंने चाची की बड़ी गांड़ देखी थी उनकाइसे तरह से मेरे लंड कोदेख्ना मुझे अलग तरह का अहसास दिला रहा था मेरे लंड में तनाव बड़ने लगा मैं ना चाहते हुए अपने लंड को मूतने के पश्चात हिलाना शुरुआत कर दिया
और वहाँ कोने से चाची आँखे फाड़े बस मेरे लंड को ही देखे जा रही थी मेरे मन में ख्याल आने लगा की मैं चाची कि गोरी गांड़ को चोद रहा हूँ।
मेरे लंड में तनाव ज्यादा ज़्यादा बढ़ रहा था ये सोचकर की चाची देख रही है, उनके लिए मेरा नजरिया अब बदलने लगा था, हर बार हिलाने की गति बड़ते जा रही थी,
लेकिन मैं अपनी गति में कोई कमी नहीं कर रहा था, लंड को हिलाने में पूरा जोर लगा रहा था
वहाँ चाची भी मुझे देख के धीरे-धीरे से हाथो को अपने चूचियो के उपरि ले जाके मसलने लगी थी, मेरी कामवासना चाची के प्रति बड़ने लगी थी मैं उनके नंगे चूचे की विचार करने लगा था,
मैं तब तक हिलाता रहा जब तक मेरे लंड ने पानी नहीं छोड़ दिया और उधर चाची की तरफ़ ध्यान दिया तो वो वहाँ से मेरे झड़ने के जल्दी पश्चात वहाँ से चली गई।
आज का दिन दोपहर से लेके अब तक मेरे लिएएक नया एहसास लेके आया थाएक तरफ़ छोटी चाची के चूमने से लंड खड़ा होना और दूसरी तरफ़ अभी लेखा चाची की गोरी गांड देखने के पश्चात अपने लंड को हिला के पानी निकालना।
अब पता नहीं आगे और क्या क्या मोड़ आने वाला था मेरी जिंदगी में ये सोच कर मेरे मन मेंएक अजीब सा खुशी छा गया। संग हीएक डर भी मेरे जहाँ में आने लगा की कहीं कुछ ग़लत ना हो, खैर
अपनी सोच कोएक तरफ़ करने के पश्चात मैं भी वहाँ से जल्दी निकल के अपने रूम पे चला गया रात के इंतज़ार में जैसे कुछ हुआ हि ना हों।
कमल की ज़ुबानी आज के लिए इतना ही दोस्तो अगले अपडेट में देखेंगे की किसके संग और क्या घटना घटा। शुक्रिया
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अध्याय- 4
नए किस्सो का आरम्भ
पिछले अपडेट में आपने देखा कमल का क्या हाल हुआ जब उसकी छोटी चाची ने उसे किस किया और जब उसने लेखा चाची की गांड देख के अपने लंड को हिलाया
अब आगे
इन सभी से दूर कहीं किसी खेतों में घुसने से पहले वाले रोड में जहाँ अभी फसल काटने में कुछ दिन बचे है पुरुष स्त्री से
“कहा जा रही हो बहू ”
“कहीं नहीं बाबू जी मैं आपके पास ही आ रही थी खाना लेके”
“क्यों आज कोई बच्चे घर पे नहीं थे क्या आज सभी अपने कॉलेज निकल गए क्या”
“हा सभी बच्चे कॉलेज चले गए पर कमल था घर में मैं उसको ढूंड रही थी पर कहीं दिखा ही नहीं”
जी हा ये पुरुष और स्त्री कोई और नहीं बल्कि हमारे अपने घर के मुखिया रमेश चंद मिश्रा जी और घर की बड़ी बहू चंचल देवी है।कुछ अंश चंचल देवी की जुबानी
ससुर जी-“और बाक़ी छोटी बहुये उनमे से किसी को भेज देती तुमने क्यों आने की तकलीफ़ की नेहा को भेज देती वो तो घर पे ही होगी”
मैं -“हा मैंने भी सोचा पर आपको तो पता ही है मुझे खेत पहुँचना कितनापस्न्द है और वैसे भी नेहा खाना बना रही थी बच्चों के लिए, लेखा तो दुकान के निकल गई देवर जी का फ़ोन आया तो और भगवती सिलाई में व्यस्त थीइसलिये मुझे लगा कि मैं ही चली जाती हूँ क्यों किसी को परेशान करना।
ससुर जी -“हा बहू मुझे पता है तुम्हें खेत पहुँचना कितनापस्न्द है अब आ ही गई हो तो खाना लेके पहुँचो मचान की तरफ़ मैं आता हूँ।”
मैं - “ठीक है बाबू जी”
मैं वहाँ से सीधे खेत की तरफ़ चलने लगी जहाँ मचान बना हुआ था। मचानएक बड़े से पेड़ के बगल में बना हुआ था, जिसपे उपरि बैठने के लिए बना था दो तरफ़ से खुला हुआ और दो तरफ़ से बंद था। खाना खाने के लिए हम मचान के नीचे की स्थान तो इस्तेमाल करते है दोपहर के टाइमभी वहाँ हवा ठंडी ठंडी चलती है।
वहाँ पहुँच के मैंने बाबू जी के लिए खाना निकालने लगी थी ताकि वो आए और खाना शुरुआत कर सके पर उससे पहले मैं प्याज को काटने के लिए कुछ लाना भूल गई थी,
तो मचान के दूसरी तरफ़ पम्प चालू बंद करने के लिए बनाये कमरे में चली गई वहाँ जाके देखने लगी कुछ मिल जाए जिससे मैं ये प्याज काट सकू पर तभी मेरी नज़र ट्यूबवेल कि तरफ़ गई जहाँ मेरे ससुर जी पांव हाथ धो रहे थे उन्होंने अपने पजामे और उपरि के कपड़े को निकाल दिया था,
बस चड्डी और बनयान पहन रखे थे और अच्छे से पांव हाथ धोने में व्यस्त थे अचानक मुझे उनके चड्डी में झूलता बड़ा सा कुछ दिखा मैं समझ गई वो बाबू जी का लंड है पर कुछ और सोचती उससे पहले बाबू जी वहाँ से हटने लगे उन्होंने अपने पांव हाथ धो लिये थे दोबारा अपने गमछे से हाथों और पैरों को पोछने लगे और उसी गमछे को पहन के पुनः मचान की तरफ़ जाने लगे।
मैं भी जैसे तैसे जल्दी जल्दी वहाँ रखी हशिए से प्याज को काट के मचान के तरफ़ जाने लगी, वहाँ पहुँच के मैंने अपने ससुर जी को खाना परोसने लगी संग ही मेरी नज़र उनके गमछे के उपरि भी बनी हुई थी, मैं मन में सोचने लगी क्या बाबू जी का बाकी टाइमइतना ही बड़ा झूलता रहता है तो जब उनका खड़ा होता होगा तो कितना बड़ा होता होगा, और अपने विचारों सेबाहर् आते हुए खाना देने के पश्चात ही मैंने बाबू जी से कहा
मैं-“बाबू जी खेतों में गेहूं के अलावा उस दूर वाले खेत में क्या क्या लगाएं है मैं ज़्यादा गई नहीं हूँ वहाँ ”
ससुर जी -“बहू वहाँ तो कुछ सब्जिया लगायी है पर अभी सभी सब्जी छोटे है”
मैं -“क्या क्या लगाये है बाबू जी”
ससुर जी -“ज्यादातर तो वही लगे है जो मेरी बहुओं और बच्चों कोपस्न्द है”
मैं - “फिर तो वहाँ जाकेदेख्ना पड़ेगा बाबू जी शायद अभी मेरे काम की मतलब घर के लिए कुछ सब्ज़ी मिल जाए”
ससुर जी -“हा क्यों नहीं बस ये खाना हो जाए दोबारा चलता हूँ वहाँ तुमको लेके”
मैं -“ठीक है बाबू जी”
चंचल अपने ही ख्यालों में कुछ सोचते हुए नज़दीक के खेतों में वहाँ जाके गेहू को देख रही थी,
और इधर उसके ससुर जी खाना खाते हुएएक नजर अपनी बड़ी बहू चंचल पे डालते है, संग ही ये सोच उनके मन में आने लगता है की मेरी बड़ी ज्यादा कितनी अच्छी है खाना लेके आने के लिए कोई नही था तो ख़ुद लेके आ गई दोबारा अनायास उसकी नजर अपनी बहू के साड़ी के उपरि से मटकती हिलती डोलती बड़ी सी गांड पे चली गई, हालाँकि नेहा की गांड को उसने कई बार देखा पर आज बड़ी बहू की गांड, दोबारा जब चंचल मुड़ी तो नजर उसके चूचो पर पड़ गई,
रमेश चंद ने अपने दिमाग़ को झटका ये मैं क्या देख रहा हूँ पर ना चाहते हुए नज़र जा ही रही थी खाना खाते हुए उसके मन में तरह तरह के विचार उत्पन्न होने शुरुआत हों गये जैसे क्या मुझेइसे तरहदेख्ना चाहिए, नहीं वो मेरी बहू है, क्या हुआ बहू है तो जब नेहा का देख सकता हूँ तब अपने बाकी बहुओं का क्यों नहीं, थोड़ी देर बाद
चंचल वहाँ से अपने ससुर के पास आते हुए पूछती है,
चंचल-“ बाबू जी खाना खा लिए आपने”
रमेश चंद-“ हा बहू लो बर्तन समेट लो दोबारा उस खेतों की तरफ़ चलते है जहाँ से तुम्हें शायद कुछ काम की सब्ज़ी मिल जाए”
चंचल- थोड़ी सकपकाई और बोली “ठीक है बाबू जी”
रमेश चंद अपनी बहू को बर्तन समेटते हुए देख रहा था आज पहली बार इतने क़रीब से उसने चंचल की गांड और गदराए हुए बदन को गौर किया था, दोबारा चंचल ने कहा-“चले बाबू जी”
रमेश चंद-“हा चलो हमेइसे रास्ते से होते हुए उस खेत की तरफ़ चलना है बहू”एक खेत की तरफ़ इशारा करते हुए दोबारा से कहता है “बहू तुम आगे चलो मैं पीछे से रास्ता बताता हूँ”
चंचल ने मन में कुछ सोच कर हँसी और रास्ते से होते हुए अपने ससुर के आगे आगे चलने लगी।
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ठीक जब चंचल अपने ससुर के लिए खाना लेके निकली उससे थोड़े देर पहले घर में चंचल पूछती है लेखा से
चंचल -“लेखा बाबू जी तो आज दोपहर खाने के लिए शायद नहीं आयेंगे उन्होंने मम्मी जी को बोला था खाना किसी के हाथ भेजा देना, यदि तुम कुछ काम नहीं कर रही खाली होगी तो क्या तुम चली जाओगी”
लेखा -“दीदी मैं चली तो जाऊ मुझे बाबू जी के लिए खाना ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है पर आपके देवर जी ने मुझे अभी दुकान में बुलाया है। उनका फ़ोन आया था”
चंचल -“ठीक है कोई बात नहीं मैं ख़ुद चली जाती हूँ वैसे भी हफ़्ते भर से ज़्यादा दिन हो गए खेत गई भी नहीं हूँ।”
लेखा-“ठीक है दीदी मैं जा रही हूँ हो सकता है मैं आपसे शाम को मिलूँगी।”
चंचल-“ठीक है।”
घर से निकल के लेखा जल्दी जल्दी अपनी किराने की दुकान की तरफ चली जाती है वहाँ पहुँच के देखती है दुकान का शटर हल्का बंद है वो सोच में पड़ जाती है की मुझे बुला के उनके पति दुकान के सामने नहीं दिख रहे और शटर भी आधा बंद है तो उसे ढूँड़ने वो अंदर जाती है,
और थोड़े अंदर जाने के पश्चात वो देखती है उसका पतिएक चेयर में बैठा मोबाइल में कुछ देख रहा है वो ये देख के गुस्सा भी हो जाती है और खुश भी दोबारा कुछ सोच कर अपने पति से कहती है,
लेखा -“आपको कोई और स्थान नहीं मिली ये सभी करने के लिए”
पीताम्बर जैसे ही ये आवाज़ सुनता है वो डर की वजह से घबरा जाता है और कहता है,
पीताम्बर-“पागल है क्या, ऐसे अचानक आके कोई डराता है भला ”
दरअसल पीताम्बर वहाँ चेयर में बैठे मोबाइल में पोर्न वीडियो चालू करकेएक हाथ में लिए और दूसरे हाथ से अपने 7 इंच के लंड को हिला रहा था थोड़े ही देर हुआ था तभी लेखा ने उसे डरा दिया था।
लेखा-“डरा नहीं रही मैं आपको बता रही हूँ और वैसे भी आपको क्या जरूरत पड़ गई अपने लंड कोइसे तरह से हिलाने की” दोबारा लेखाएक हाथ से उसके लंड को हिलाने लग जाती है।
पीताम्बर-“आहह तुम्हारे छूते ही मुझे लंड में और भी कड़क महसूस होता है मुझे, मैंनेइसलिये तो तुम्हें जल्दी दुकान आने को कहा था”
लेखा-“तो सीधे बोल दिए होते ना, आज तीन दिन तो वैसे भी हो गये मेरी चूत में लंड गए” दोबारा जोर जोर से उसके लंड को हिलाने लग जाती है।
पीताम्बर-“तुम्हें तो पता है आहह आराम से मेरी जान दिक्कत मेरे लंड में नहीं मेरे पैरों में है, मैं तुम्हारे उपरि नहीं आ सकता पर तुम मेरी गोद में बैठ के आनंद तो पूरा लेती हो ना।”
लेखा-“ हा हा ठीक है और हिलाना जारी रखती है”
फिर लेखा का पति मोबाइल को बंद करके बगल में रख देता है और लेखा के चूचे को दबाते हुए उसके ब्लाउज को खोलने लगता है, इधर लेखा भी पीछे नहीं हट रही थी वो भी अपने पति के पैंट को उपरि से खोलने लगी जिससे लंड और अच्छे सेबाहर् दिख सके
पीताम्बर-“आहह मेरी जान पता नहीं क्यों जब भी मैं तुम्हारे चूचे को दबाता हूँ लगता है पूरा दबा के खा जाऊ, इतने वर्ष हो गए पर तुम्हारे चूचे हर बार पहले से और ज़्यादा बड़े लगते है”
और चूचों को मुह में लेके चूसने लगता है, वोएक हाथ में चूचे तो दूसरे में अपने मुह को लगा के दोनों को बदल बदल के चूसने लगता संग ही अब लेखा को और ज़्यादा आनंद आ रहा था अपने पति के द्वारा चूचे चूसने से,
लेखा-“आह और जोर के दबा दबा के चूसिए ना जी आह आह उम्म उम्म” कितना बढ़िया लगता है जब आप इसे अपने मुंह से चूसते है थोड़ा जोर लगा के काटिए आहहह मम्मी औरएक हाथ से उसके लंड को और तेजी से हिलाने लगती है,
पीताम्बर-“आह मेरी जान लेखा 40 की उमर में आज भी तुम असली आनंद देती हो” औरएक हाथ ले जाके उसके गांड पे मार देता है।
लेखा चिहुक उठती है अपनी चूची से पति का हाथ और मुह हटा के वो नीचे बैठते हुए उसके लंड को पकड़े हुए कहती है,
लेखा-“मज़ा तो इसने भी ज्यादा दिया है और आज भी उसी तरह दे रहा है पर रोज लेने को तरसती हूँ।”
और धीरे-धीरे धीरे लेखा का सर अपने पति के लंड की तरफ़ झुकती चली जाती है, पीताम्बर अपनी पत्नी को लंड के नज़दीक जाते देख उससे रुका नही जाता और लंड कोएक बार ठुमका मार देता है,
लेखा ये देखकर हस्ती है और अपने पति के आँखो में देखते हुए उसके लंड के सूपाड़े को अपने जीभ से छूने लगती है उसके पति की आह निकल जाती है,
पूरे कमरे में कामवेदना संचार होने लगती है सभी चीजों से बेखबरएक पत्नी अपने पति कोएक शारीरिक सुख देने जा रही थी परउन्को क्या पता थाएक तूफ़ान थोड़े देर में इधर आने वाला है जिससे इनकी ज़िंदगी बदलने वाली है कुछ दिनों में,
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दोपहर का टाइमकहीं हंगामा गुल तेज़ी से हो रहा था, हर कोईएक दूसरे से बात करने में लगे थे, कोई मोबाइल तो कोई किताबे लेके बैठा था, कुछ लड़कियां किसी के बारे में बाते कर रही थी, थोड़ी देर घर की बाते चली दोबारा किसी नेएक ऐसी बात कहदी जिसे सुन बाकी दोनों लड़कियां उसे खा जाने वाली नजरों से देखने लगी, ये सभी हो रहा था गर्ल्स कॉलेज में जहाँ कैंटीन के पास ही गार्डन में बैठे ये तीनो लड़कियाँ पूजा, रिंकी और पिंकी
पूजा-“रिंकी तुम्हें पता भी है तुम क्या बोल रही हो जो भी तुम कह रही मैं इसपे नहीं मानती”
पिंकी-“हा दीदी मुझे भी नहीं लग रहा है ऐसा भी होता होगा”
रिंकी-“रुको तुम लोगो को मैं वो किताब ही दिखा देती हूँ जिसे मैंने आज सुबह ही कमल भैया के कमरे में रखी किताबों के बीच से उठाया था।”
और रिंकी उस किताब के पन्नो को पलटते हुए उसमे छपे कुछ तस्वीरों को दिखाने लगती है, ये वही किताब है जिसे कुछ दिन पहले कमल ने अपने कॉलेज के दोस्तों से अनिमेष को दिखाने के लिए लाया था और अपने रूम में किताबों के बीच रख के छुपाना भूल गया था,
पूजा-“मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कमल भैया ऐसी किताब भी रखते होंगे देखो इसमें कितनी नंगी तस्वीरे है।”
पिंकी-“हाँ दीदी कितनी अजीब अजीब सी है देखो कैसे ये स्त्री अपनी वो दिखा रही है।”
पूजा और रिंकीएक संग हसने लगती है और आराधना पिंकी से कहती है,
पूजा-“ये वो क्या होता हैं जो हमारे पास है वो भी उसी के पास है और ये स्त्री अपनी वो नहीं अपनी चूचे और चूत दिखा रही है”
ये बोलके दोबारा से आराधना और रिंकी हसने लग जाती है, उनकी ऐसी खुली बाते सुनके पिंकी को थोड़ा अजीब भी लगता है पर कहीं ना कहीं उसके बदन मेंएक सनसनाहट सी होने लगती है, जैसे किसी ने उसके बदन को छू लिया हो,
रिंकी-“पर दीदी भैया को ऐसे किताबे पड़ने या देखने की जरूरत क्यों पड़ गई”
पूजा-“बिल्कुल पागल है पिंकी को छोड़ तुझे तो पता होना चाहिए की जब जवानी में किसी चीज की लत लग जाती है तो उसके लिए इंसान क्या नहीं करता है, बस इसी तरह कमल भैया क्या मुझे तो लगता है हमारे सारे भाईएक जैसे ही है और ग़लत आदतें सीख गए है”
रिंकी-“तो क्या भैया लोग वो सभी भी” इतना कहके चुप हों जाती है,
पिंकी-“दी आप लोग किस बारे में बात कर रहे मुझे भी थोड़ा अच्छे से बताओ”
पूजा-“हा रिंकी तू सही कह रही है मुझे भी ऐसा ही कुछ लगता है सभी पर हमे नजर रखकेदेख्ना होगा जब वो घर पे रहते है”
रिंकी-“पर दीदी ये ग़लत नहीं होगाइसे तरह उनपे नजर रखना”
पूजा-“ग़लत बात तो है पर क्या तू ये नहींजान्ना चाहती की कमल भैया ये किताब अपने पास क्यूँ लाये और उसे देख के क्या करने वाले है”
रिंकी-“हा येदेख्ना बड़ा मजे दार होगा की वोइसे किताब को देखके क्या करेंगे।”
रिंकी-“दीदी अब चलो ज्यादा देर से हम इधर बैठे है मैं तो क्लास चली बाक़ी बाते आप लोग घर पे कर लेना।”
तीनो बहने अपने अपने क्लास के तरफ़ चल पड़ती है, दोबारा शाम के जैसे 4 बजते है कॉलेज से ऑटो लेके अपने घर की तरफ़ निकल जाती है,
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धन्यवाद दोस्तों आज के लिएइसे अपडेट में इतना ही, मिलते है अगले अपडेट में और जानेंगे की क्या होगा चंचल और उसके ससुर रमेश चंद के बीच खेतों की तरफ़, ऐसा कौनसा तूफ़ान आने वाला है लेखा और पीताम्बर के सामने जिससे उनकी ज़िंदगी बदलने वाली है और तीनो बहने मिलके ऐसा क्या करने वाली है घर पहुँच के अपने भाइयों पे नजर रखने के लिए।
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bhay ji ab update nahii ayenge kya ap kee kahani me yrr itni superb aur kamuk kahani ko chod kr kyu ja rahe hu Ese hi Arthur morgan bhay bi apni dono kahani chod ke chale gye yrr kam say kam ap too esa na kro
Yakeen maniye aapko kisi stri ko chudte dekh krr jara bi nahee lagega woh randi wali harkat krr rahi jb tak use kisi ne chheda na hu
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Maaf krna late say suru kia pr aapko agle update say nirasha nai hongi. jab jab update likhte jaunga vaise vaise ap logo ko milta rahega
अगला अध्याय शारीरिक परिचय पोस्ट कर दिया है कृपया पढ़के अपना मत साझा करे
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