Rajsharma Sex Story : अनैतिक (Romance Special)
इधर मैं, नितु और मम्मी-डैडी निकले, बस की स्थान हमने डैडी जी की गाडी ही ली. ड्राइविंग सीट पर मैं था और मेरे संग डैडी जी थे, पीछे मम्मी जी और नितु बैठे थे. पूरे रास्ते हम सभी बस बातें करते रहे, इधर हरएक घंटे में मेरे घर से फ़ोन आ रहा था. वो तो फ़ोन नितु के पास था जो पिताजी को हमारी एकज्याकट लोकेशन बता रही थी. मैंने गाडी सीधा अपने घर केबाहर् रोकी और इधर मेरे सारे घर वाले स्वागत करने के लिएबाहर् खड़े हो गये. मैंने सभी का परिचय करवाया और वहीँ खड़े-खड़े सभी नेएक दूसरे को गले लगाना और आशीर्वाद देना शुरुआत कर दिया. आस-पड़ोस वाले जो इतनी तैयारी देख कर हैरान थे वो ये मिलन का सीन देख के समझ गए थे की इधर मेरे रिश्ते की बात चल रही हे. दोबारा सभी अंदर आये और आंगन में बैठ गए और बातों का सिलसिला शुरुआत हुआ. डॅडी जी और ताऊ जी नेएक दूसरे से कोई बात नहीं छुपाई और दोनों परिवारएक दूसरे की गलतियों और खामियों को समझ चुका था. जहाँएक तरफ डैडी जी ने अपनी गलती मानी की उन्होंने नितु के संग ज्यादती करते हुए उसे घर से निकाल दिया वहीँ मेरे ताऊजी ने मेरा अमरीका जाने पर मुझे घर से निकालने की बात कबूली.
डैडी जी ने मेरी बड़ाई करनी शुरुआत की; "भाईसाहब आपका लड़का सच में हीरा है, पहली नजर में ही हमारे दिल में घर कर गया.जिस तरह से इसने नितु को हम से दोबारा से मिलाया वो काबिले तारीफ है!" ये सुन कर मेरे ताऊ जी भी नितु की बधाई करने से नहीं चूके; "भाईसाहब इसका सारा श्रेय सिर्फ नीता बेटी को ही जाता हे. जिस तरह उसने सागर को संभाला वो भी तब जब हम उसके पास नहीं थे.मेरे पास तो उसे शुक्रिया देने के लिए शब्द नहीं हैं! बल्कि मैं तो उसका कसूरवार हूँ!" ताऊ जी ने नितु के आगे हाथ जोड़े तो नितु ने फ़ौरन उठ कर उनके हाथ पकड़ लिए; "ताऊ जी कोई कसूरवार नहीं हैं आप! क्या बड़ों को बच्चों को डांटने या मारने का हक़ नहीं होता?" नितु को ताऊ जी की हिमायत करते देख ताई जी संग सभी की आँखें नम हो गईं, अब मुझे सभी का मूड ठीक करना था सो मैं उठ कर उपरि गया तो देखा अश्विनी छत पर अकेली बैठी है और अपना सर वॉल से टकरा रही हे. नीचे मिलन होने के पश्चात वो उपरि आ गई थी. पर मैं इधर उसे नहीं बल्कि अपनी बेटी को लेने आया था. मैंने साक्षी को गोद में उठाया जो अकेली कमरे में लेटी छत की ओर देख कर अपने हाथ-पाँव हिला रहे थी. मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझसे शिकायत कर रही हो की पापा आप मुझे भुल गये. मैंने जल्दी उसे अपनी गोद में उठाया ओर उससे बोला; "मेरा बच्चा! मैं आपको नहीं भूला, चलो आपको सभी से मिलवाता हु." मैं फटाफट साक्षी को ले कर नीचे उतरा और उसे मम्मी-डैडी से मिलवाया; "ये है हमारे घर की सबसे छोटी ओर प्यारी सदस्य, साक्षी!" उसे देखते ही मम्मी-डैडी ने उसे बड़ा प्रेम दिया और दोबारा पूरे घर का माहौल पुनः से खुशनुमा हो गया.
शादी की तारीख तो पहले से ही तय थी. "२३ फरवरी". घर में सभी के पास बहुत टाइमथा तैयारी के लिए. जैसे ही डैडी जी ने दहेज़ की बात रखी तो ताऊ जी नेइसे बात को सिरे से नकार दिया; "भाईसाहब ऐसी गुणवान बहु के इलावा हमें और कुछ नहीं चाहिए!" ये सुन कर तो मैं भी हैरान था. क्योंकि गाँव-देहात में आज भी ये प्रथा चलती है और गाँव क्या शहर में भी यही प्रथा चल रही हे. पश्चात में जब मैं ताऊजी से इसका कारन पुछा तो वो बोले; "बेटा मैंने तेरा और नीता का प्रेम देखा है और इसके चलते मैं या हमारे परिवार से कोई भी ऐसी कोई हरकत नहीं करेगा जिससेइसे शादी में कोई बाधा आये. दोबारा हमें दहेज़ की क्या जरुरत है? तेरे और बहु के लिए सारी तैयारी मैं कर रहा हूँ, तू बस देखता जा!" ताऊ जी ने इतने गर्व से कहा की मैं उनके गले लग गया.खेर खाने का टाइमहुआ और दोबारा इतने मजेदार पकवान परोसे गए की क्या कहूँ! खाने के पश्चात ताऊ जी डैडी जी के संग सभी को हमारी जमीन दिखाने निकले और रास्ते में जो कोई भी मिला उससे डैडी जी का तार्रुफ़ अपने समधी के रूप में करवाया. सभी कुछ देख कर हम सभी उपरि छत पर बैठे, शाम की चाय भी सभी ने उपरि पि.इस दौरान अश्विनी अपने कमरे में छुपी रही और इन खुशियों से जलती रही! इधर पिताजी नेएक अलाव उपरि जलवाया और सभी उसके इर्द-गिर्द बैठ गये. हँसी-मजाक हुआ और दोबारा डैडी जी ने मँगनी करने की बात की.
हमारे गांव में ऐसी कोई रस्म नहीं थी. इसकी स्थान हम 'बरेछा' की रस्म करते हे.इसे रस्म में दुल्हन के घर वाले दूल्हे का तिलक कर उसे कुछ गिफ्ट देते हैं और इसी के संग शादी की बात पक्की मानी जाती हे. मुझे लगा की ताऊ जी मना कर देंगे पर पिताजी और ताऊ जी दोनों हीइसे बात के लिए तैयार हो गए और गोपाल भैया से पंडित जी को बुलाने को कहा. पंडित जी अपनी पोथी-पटरी ले कर आये और गुना-भाग कर १० दिन पश्चात का मुहुरत निकाल दिया.
मुहूरत निकला तो सभी को दोबारा से मुँह मीठा करने का मौका मिल गया.ताऊ जी ने रसोइये को गर्म-गर्म जलेबियाँ लाने को कहा. फटाफट गर्म-गर्म जलेबियाँ आईं. ठंडी की शाम में, अलाव के सामने बैठ के सभी ने जलेबियाँ खाईं! ७ बजते-बजते ठण्ड प्रचंड हो गईइसलिये सभी नीचे आ गए और नीचे बरामदे में बैठ गये. रसोइयों ने खाना बनाना शुरुआत कर दिया था जिसके खुशबु सभी को मंत्र-मुग्ध किये हुए थी. मैं इधर सभी मर्दों के संग बैठा था और नितु वहाँ सभी औरतों के साथ.साक्षी मेरी गोद में थी और अपनी पयाली-प्याली आँखों से मुझे देख रही थी. अब नितु जब से आई थी तब से उसने साक्षी को गोद में नहीं लिया था और उसकी ममता अब रह-रह कर टीस मारने लगी थी. आखिर वो भाभी को ले कर कमरे सेबाहर् निकली और उस कमरे की तरफ देखने लगी जहाँ मैं सभी के संग बैठा था. भाभी चुटकी लेने से बाज़ नहीं आईं और बोलीं; "बेकरारी का आलम तो देखो?" ये सुन कर दोनों खी-खी करके हँसने लगी. इधर कल सुबह जाने की बात हो रही थी तो मैंने कहा की मैं सभी को घर छोड़ दूँगा पर डैडी जी बोले; "बेटा तुम्हें तकलीफ करने की कोई जरुरत नहीं है!" पर गोपाल भैया जानते थे की मेरा असली मकसद क्या है और वो बोल पड़े; "चाचा जी! सागरइसलिये जाना चाहता है ताकि नीता के संग रह सके!" गोपाल भैया ने बात कुछइसे ढंग से कही की सभी समझ गए और हँस पडे. "अब तो तुमने बिलकुल नहीं जाना! अब तुम दोनों शादी के पश्चात ही मिलोगे!" डैडी जी बोले. "सही कहा समधी जी आप ने! भाई थोड़ा रस्मों-रिवाजों की भी कदर करो!" ताऊ जी बोले.
इधर नितु और भाभी ने सारी बात सुन ली थी और ये ना मिलने वाली बात सुन नितु का दिल बैठा जा रहा था. उसने बड़ी आस लिए हुए भाभी की तरफ देखा और भाभी सभी समझ गई. "सागर.जरा इधर आना!" भाभी ने मुझे आवाज दी और मैं साक्षी को ले करबाहर् आया. मेरी शक्ल पर बारह बजे देख वो समझ गईं की आग दोनों तरफ लगी हे. भाभी कुछ कहती उसके पहले ही मेरी नजर उपरि गई और देखा तो अश्विनी नीचे झाँक रही हे. "भाभी कुछ करो ना? देखो कल मुझे 'इन्हें' छोड़ने भी नहीं जाने दे रहे!" मैंने मुँह बनाते हुए कहा. भाभीएक मिनट कुछ सोचने लगी और दोबारा ऊँची आवाज में बोलीं; "अरे सागर तुमने नीता को अपना कमरा तो दिखाया ही नहीं?" उनकी बात सुन कर हम दोनों समझ गए और दोनों सीढ़ियों की तरफ जाने लगे. "अरे साक्षी को तो देते जाओ, इसका वहाँ क्या काम?" भाभी ने दोबारा से दोनों की चुटकी लेते हुए कहा. मैंनेएक बार देख लिया की कोई देख तो नहीं रहा और ये भी की अश्विनी देख ले, दोबारा मैंने झट से नितु का हाथ पकड़ा और हम दोनों उपरि आ गये. अश्विनी जल्दी से अपने कमरे में छिप गई और दरवाजा बंद कर लिया. हम दोनों मेरे कमरे में घुसे, नितु आगे थी और मैं पीछे.मैंने दरवाजा हल्का से चिपका दिया और जैसे ही पलटा नितु ने मुझे कस कर गले लगा लिया. "आई लव यू बेबी!" मैंने कहा और कुछ इतनी आवाज से कहा की अश्विनी सुन ले.नितुएक दम से मेरा मकसद समझ गई और बोली; "सससस. अब तो इंतजार नहीं होता!" ये सुन कर मेरी हँसी छूट गई पर मैंने कोई आवाज नहीं निकाली और अपने मुँह पर हाथ रख कर हँसने लगा. तभी नितु कोएक शरारत सूझी और वो बोली; "कितने दिन हुए मुझे आपको वो गुड मॉर्निंग वाली किसी दिए हुए!" नितु ने मेरी कमीज के उपरि के दो बटन खोले, मेरी गर्दन को बाईं तरफ झुकाया और अपने होंठ मेरी गर्दन पर रख दिये. मेरे हाथ उसकी कमर पर सख्त हो गए और मैंने उसे कस कर अपने से चिपका लिया. इधर नितु ने अपनी जीभ से मेरी गर्दन पर चुभलाना शुरुआत कर दिया. दोबारा नितु ने जितना हिस्सा उसके मुँह से घिरा हुआ था उसे अपने मुँह में सक कर लिया और दांतों से धीरे-धीरे से काटा. मेरा लिंगएक दम से फूल कर कुप्पा हो गया, नितु को उसके उभार से अच्छे से एहसास भी हुआ और डर के मारे उसने वो किसी तोड़ दी! उसकी आँखें झुक गईं और नितु मुझसे दूर चली गई. मैं समझ गया की उसे अपनेइसे डर के कारन शर्म आ रही हे. मैं धीरे-धीरे से उसके पास बढ़ा और उसे अपनी तरफ घुमाया, उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामा और उसकी आँखों में देखते हुए धीमे से बोला ताकि अश्विनी न सुन ले; "बेबी .इट्स ओके! डोन्ट ब्लेम योवरसेल्फ!" ये सुन कर नितु को तसल्ली हुई वरना वो रो पड़ती.मैंने उसके माथे को चूमा और नितु ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और दोबारा से अपने होंठ मेरी गर्दन पर रख दिये.
इधर भाभी एकदम से धड़धड़ाती हुई अंदर आईं और हम दोनों को ऐसे गले लगे देख दोबारा से चुटकी लेने लगीं; "मुझे तो लगा इधर मुझे कुछ अलग देखने को मिलेगा पर तुम दोनों तो गले लगने से आगे ही नहीं बढे? तुम्हें और कितना टाइम चाहिए होता है?"
"क्या भाभी? अभी तो इंजन गर्म हुआ था और आपने उस पर ठंडा पानी डाल दिया!" मैंने चिढ़ने का नाटक करते हुए कहा.
"हाय! क्षमा कर दो देवर जी पर नीचे आपके ससुर जी बुला रहे हैं!" भाभी की बात सुन कर मैंने अपनी कमीज के सारे बटन बंद किये और ये देख कर भाभी की हँसी छूट गई; "तुम दोनों जिस धीमी रफ़्तार से काम कर रहे हो उससे तो तुम्हेंएक रात भी कम पड़ेगी!" भाभी ने दोबारा से दोनों का मज़ाक उड़ाया. मैंने जा कर भाभी को गले लगाया औरउन्को थैंक यू कहा तो भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा; "देख रही है? जब से मेरी शादी हुई है आज पहलीबार है की सागर ने मुझे ऐसे गले लगाया है! क्यों नई बहु को जला रहे हो?" ये सुन कर नितु ने भी पीछे से आ कर भाभी को गले लगा लिया. अब हम दोनों ही भाभी के गले लगे हुए थे की तभी ताई जी हमें ढूढ़ती हुई आ गईं; "अरे वाह! देवर-देवरानी और भाभी तीनोंएक संग गले लगे हुए हो?" हम दोनों ताई जी को देख कर अलग हुए और भाभी ने अपनी बात दोबारा से दोहराई तो ताई जी ने उनके सर पर प्रेम सेएक चपत लगाई और बोलीं; "जब उस दिन घर आया था तब गले नहीं लगाया था?" तब भाभी को याद आया की जब मैं पहलीबार घर आया था तब मैंने सभी को गले लगाया था.
खेर रात के खाने का टाइमहुआ और सभी नेएक संग टेबल-कुर्सी पर बैठ कर खाना खाया, दोबारा जैसे ही गाजर का हलवा आया तो सारे खुश हो गये. डैडी जी ने ताऊ जी के इंतजाम की बड़ी तारीफ की, दोबारा खान-पान के पश्चात सभी सोने चल दिये. ताऊ जी वाले कमरे में डैडी जी, पिताजी और ताऊ जी लेटे, गोपाल भैया वाले कमरे में भाभी और नितु सोने वाले थे और मेरे कमरे में मैं और गोपाल भैया सोने वाले थे. बाकी बची माँ, मम्मी जी और ताई जी तो वो मम्मी वाले कमरे में लेट गये. रसोइये जा चुका था. और बरामदे में बस मैं, गोपाल भैया, नितु और भाभी आग के अलाव के पास बैठे थे. साक्षी मेरी गोद में थी और मेरी ऊँगली पकड़ कर खेल रही थी. "आपको क्या जरुरत थी सागर के छोड़ने जाने पर कुछ कहने की?" भाभी ने गोपाल भैया की क्लास लेते हुए कहा. "अरे मैं तो." भैया कुछ कह पाते इससे पहले मैं बोल पड़ा; "सही में भैयाएक दिन हमें संग मिल जाता!"
"हाँ भैया .अब देखो ना १० दिन तक." जोश-जोश में नितु ज्यादा बोल गई और दोबारा एकदम से चुप हो गई. ये देख कर हम तीनों ठहाका मार के हँसने लगे! "चिंता मत कर बहु! मैंने बात बिगाड़ी है तो मैं ही सुधारूँगा भी! दोएक दिन रुक जा दोबारा हम तीनों (यानी मैं, भैया और भाभी) शहर आयेंगे. हम दोनों काम में लग जाएंगे और तुम दोनों अपना घूम लेना!" भैया की बात सुन मैंनेउन्को झप्पी दे दी! कुछ देर हँस-खेल कर हम सभी अपने-अपने कमरों में सोने चल दिये.
अगली सुबह हुई और सभी नहा-धो कर तैयार हुए और नाश्ता-पानी हुआ. दोबारा आया विदा लेने का टाइमतो ताऊ जी और पिताजी सबसे पहले अपने होने वाले समधी जी से गले मिले और ठीक ऐसा ही मम्मी और ताई जी ने अपनी होने वाली समधन जी के संग किया. ताऊ जी ने गोपाल भैया को कुछ इशारा किया और वो अपने कमरे से मिठाईयाँ और कपडे काएक गिफ्ट पैक ले कर निकले; "समधी जी ये हमारी तरफ से प्यारभरी भेंट! अब हम अपनी समझ से जो खरीद पाए वो हमने आप सभी के लिए बड़े प्रेम से लिया." ताऊ जी बोले और उधर डैडी जी बोले; "अरे समधी जी इसकी तकलीफ क्यों की आपने? हम तो इधर रिश्ता पक्का करने आये तो और आपने तो." डैडी जी का मतलब था की वो तो जल्दी-जल्दी में खाली हाथ आ गए थे और ऐसे मेंउन्को शर्म आ रही थी. पर डैडी जी की बात पूरी होने से पहले ही ताऊ जी ने उन्हेंएक बार और गले लगा लिया और बोले; "समधी जी कोई बात नहीं!" ताऊ जी ने डैडी जी को इतने कस कर गले लगाया की वो कुछ आगे नहीं कह पाए और मैंने स्वयं ये समान गाडी में रखवाया.मैंने मम्मी-डैडी जी के पाँव छुए और उधर नितु सभी से मिलने और पाँव छूने लगी. "अगली बार तुझे मैं बहु कह कर गले लगाऊँगी!" मम्मी बोली और दोबारा सभी ने ख़ुशी-ख़ुशी नितु और मम्मी डैडी को विदा किया. उनके जाने के पश्चात सभी घर में आये और ताऊ जी ने गोपाल भैया से मंगनी की रस्म की सारी तैयारियाँ शुरुआत करने को कहा. जिन लोगों ने कल मम्मी-डैडी को आते हुए देखा था वो अब सभी आ कर पूछ रहे थे और ताऊ जी और पिताजी बड़े गर्व से मेरी शादी की बात बता रहे थे. दोपहर के खाने के पश्चात मैंने बात छेड़ते हुए कहा;
मैं: मैं सोच रहा था की शादी में और मँगनी के लिए सारे पुरुष सूट पहने!
माँ: और हम लोग?
मैं: आप सभी साड़ियाँ. पर साड़ियाँ मेरीपस्न्द की होंगी!
ताई जी: ठीक है बेटा जैसा तू ठीक समझे.
ताऊ जी: पर बेटा हम ने कभी सूट नहीं पहना? सारी उम्र हमने धोती और कुर्ते में काटी है तो अब कहाँ हमें पतलून पहना रहा है?
मैं: ताऊ जी थोड़ा तो मॉडर्न बन ही सकते हैं? आप तीनों सूट में ज्यादा अच्छे लगोगे! दोबारा ये भी तो सोचिये की हमारे गाँव में आप अकेले होंगे जिसने सूट पहना है!
मेरी बात सुन कर ताऊ जी मान गए, और अगले दिन सुबह-सुबह जाने का प्लान सेट हो गया.कुछ देर पश्चात नितु का फ़ोन आया की वो घर पहुँच गए हैं और मम्मी-डैडी मेरे घर वालों से ज्यादा खुश हे. मैं उस वक़्त साक्षी को गोद में ले कर बैठा था और उसकी किलकारी सुन नितु का मन उससे बात करने को हुआ पर वो नन्ही सी बच्ची क्या बोलती? मैंने वीडियो कॉल ऑन की और नितु ने साक्षी को अपनी ऊँगली चूसते हुए देखा और वो एकदम से पिघल गई. दोबारा मैंने नितु को बताया की पिताजी , ताऊ जी और गोपाल भैया सूट पहनने के लिए मान गए हैं तो उसने कहा की मैं उसे कलर बता दूँ ताकि वो उस हिसाब से अपने डैडी का सूट सेलेक्ट करे. इसी तरह बात करते हुए और साक्षी की किलकारियां देखते हुए हमारी बात होती रही. अगले दिन सुबह हम सभी दर्जी के निकल लिए और मैंने वहाँ जा कर हम चारों क सूट का कपडा और डिज़ाइन सेलेक्ट करवाया, दर्जी ने संग ही संग सबका मांप भी लिया. शादी के लिए कपडे सेलेक्ट करना फिलहाल के लिए टाल दिया गया था. दोबारा हम सारे मर्दएक साडी की दूकान में घुसे और वहाँ मैंने एक-एक कर साड़ियों का ढेर लगा दिया. घंटा भर लगा कर मैंने माँ, भाभी और ताई जी के लिए साड़ियाँ ली" उसके पश्चात ताऊ जी हम सभी को सुनार की दूकान में ले गए और वहाँ मुझसे ही नितु के लिए अंगूठीपस्न्द करने को कहा गया, दुकानदार को हैरानी तो तब हुई जब मैंने उसे नितु की ऊँगली का एकज्याकट साइज बताया! खरीदारी कर के हम घर लौट रहे थे और ताऊ जी ने मुझे कोई रुपया खर्च करने नहीं दिया था.
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बजार में मोटरसाइकिल काएक नया शोरूम खुला था और मैं बातों-बातों में गोपाल भैया से जान चूका था कीउन्को बाइक चलानी आती हे. वो तो उनके नशे के चलते ताऊ जी बाइक लेने नहीं देते थे. मैंने सोचा की घर मेंएक बाइक तो होनी ही चाहिए,इसलिये मैंने गोपाल भैया का हाथ पकड़ा औरएक बाइक के शोरूम में घुस गया."बताओ भैया कौनसी पसद आई आपको?" मैंने खुश होते हुए पूछा.
"बेटा इसकी क्या जरुरत है?" ताऊ जी बोले.
"ताऊ जी आज तक मैं सभी के लिए कुछ न कुछ लाया हूँ, भैया के लिए बस शर्ट-पैंट ही ला पाया, आज तोएक तौहफा देने दो! मैंने कहा तो ताऊ जी मुस्कुरा दिए और मेरे पिताजी की पीठ पर हाथ रखते हुएउन्को अपने गर्व का एहसास दिलाया.
इधर गोपाल भैया भी भावुक हो गए और मेरे गले लग गये. दोबारा मैं उनका हाथ पकड़ कर अंदर ले आया और उनसे पुछा तो उन्होंने डिलक्स सेलेक्ट की पर मेरा मन हिरो पॅशन प्रो पर था. मैनेउन्को जब उसकी तरफ इशारा किया तो वो एकदम से खुश हो गए और लाल रंग में वही सेलेक्ट की गई. जब मैं पैसे देने लगा तो ताऊ जी ने बड़ी कोशिश की पर मैं जिद्द पर अड़ गया और मैंनेउन्को पैसे नहीं देने दिये. किस्मत से डिलीवरी भी उसी वक़्त मिल गई. मैं और गोपाल भैया फरफराते हुए पहले निकले.ताऊ जी और पिताजी पश्चात में आये, जैसे ही बाइक घर केबाहर् रुकी भैया ने पी-पी हॉर्न की रेल लगा दी.
सबसे पहले भाभी निकली और बाइक देख कर एकदम से अंदर भागीं और आरती की थाली ले आईं, ताई जी और मम्मी भी आ करबाहर् खड़े हो गए और भैया ने बड़े गर्व से कहा की ये मैंनेउन्को तौह्फे में दी हे. अश्विनी उपरि छत से नीचे झांकते हुए देख रही थी पर उसे ये देख कर जरा भी ख़ुशी नहीं हुई थी. आराधना हुई और मैंने भाभी और भैया को जबरदस्ती ड्राइव पर भेज दिया और मैं, मम्मी ताई जी सभी अंदर आ गये. ताई जी ने हलवा बनाना शुरुआत किया और मैंने साक्षी को गोद में ले कर खेलना शुरुआत किया. कुछ देर पश्चात ताऊ जी और पिताजी लौट आये और उनके आने केएक घंटे पश्चात भैया और भाभी भी लौट आये.
शाम को मैं और नितु वीडियो कॉल पर बात कर रहे थे की तभी भाभी आ गईं और उन्होंने भी नितु से बात करना शुरुआत कर दिया और आज के तौह्फे के बारे में बताया. तभी भाभी ने इशारे से भैया को उपरि बुला लिया और उनसे बोली; "देखो मैं कुछ नहीं जानती कल के कल ही दोनों को मिलवाओ!" नितु उस वक़्त वीडियो कॉल पर ही थी और शर्मा रही थी की तभी भैया मुझसे बोले; "तू कपडे पहन मैं अभी ले चलता हूँ तुझे!" ये सुन मैं तो एकदम से खड़ा हुआ पर भाभी बोली; "अभी टाइम ही कहाँ बचा है? कल सुबह चलते हैं, मैं भी इसी बहाने लखनऊ घूम लुंगी."
तो बात तय हुई की कल का दिन हम चारों लखनऊ घूमेंगे, रही ताऊ जी से बात करनी तो वो भी भैया ने स्वयं कर ली.अगले दिन हम लखनऊ के लिए निकले और पूरे रास्ते भाभी मेरी टाँग खींचती रहीं,
"आज तो अपनी होने वाली दुल्हनिया से मिलने जा रहे हो!"
नितु हमें लेने बस स्टैंड पहुँच गई थी और वहाँ से हम अलग हो गये. भैया-भाभी घूमने चले गए और मैं और नितु कहीं और निकल लिए. घुमते-घुमते बात चली लोगों को इंवाईट करने की तो मैं और नितु नाम गिनने लगे की किस किस को बुलाना हे.
मैं: यार मेरे कॉलेज से तो कोई नहीं आ सकता, रिजन ओबविअस है सभी अश्विनी को जानते हैं!
नितु: मेरा तो कॉलेज ही कॉरेस्पोंडेंस था! कुछ स्कूल के मित्र हैं पर उनसे मेरी कोई ख़ास-बात चीत नहीं हे.एक मित्र है शालू जिस के घर मैं रुकी थी वो मेरी ज्यादा अच्छी मित्र है तो वो जरूर आयेगी.
मैं: मोहित-प्रफुल .उन्को .मैं आगे कुछ नहीं बोल पाया.
नितु:उन्को बुला तो लें पर वो भी अश्विनी के बारे में जानते हे.
मैं:उन्को सच बता दूँ?
नितु: आप को विश्वास है उन पर?
मैं: ज्यादा विश्वास है! आपके आने से पहले वही थे जो मुझे थोड़ा-बहुत संभाल पा रहे थे. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा की वो लाऊड रियाक्ट करेंगे और दोस्ती टूट जायेगी!
नितु: जितना मैंउन्को जानती हूँ वो शायद ऐसा कुछ न कहें!
मैंने फ़ोन निकाला और मोहित-प्रफुल को कॉन्फ्रेंस कॉल पर लिया; "यार कुछ ज्यादा जरुरी बात करनी है, अभी मिलना है! प्लीज!!!" आगे मुझे कुछ बोलना नहीं पड़ा और उन्होंने फ़ौरन स्थान और टाइम फिक्स किया.
मैं: मेरी कॉलेज की एकलौती मित्र है जिसे मैं बुलाना चाहता हु.
नितु: सुमन? पर उसे भी तो पता है?
मैं: वो अकेली ऐसी मित्र है जो सभी जानते हुए भी मेरे खिलाफ नहीं थी.
मैंने सुमन को कॉल मिलाया और उसे सभी बताया, अश्विनी के बारे में सुन कर उसे ज्यादा गुस्सा आया और वो उसे गाली देने लगी; "हरामजादी कुतिया! इसकी वजह से .हम दोनों." वो आगे कुछ नहीं कह पाई.पर मैं उसका मतलब समझ गया था. यदि आशु नहीं होती तो आज मैं और सुमन संग होते!
"सॉरी.तो कब पहुँचना है मुझे?" सुमन बोली. "आप मेरी तरफ से आजाओ! मेरे नाते-रिश्तेदार कम हैं!" नितु बोली और उसकी बात सुन सुमन को एहसास हुआ की कॉल स्पीकर पर था और नितु ने उसकी सारी बात सुन ली थीइसलिये वो एकदम से खामोश हो गई!
"हेल्लो? सुमन?" नितु बोली और तब जा कर सुमन ने हेल्लो कहा.
"यार इट्स ओके . आई नो एवरीथिंग ." ये सुन कर भी सुमन कुछ नहीं बोली तो मजबूरन मुझे ही बोलना पड़ा; "अच्छा बाबा आप २० फरवरी को मेरे घर पहुँच जाना और अपना एड्रेस टेक्स्ट कर दो मैं कार्ड भेज देता हूँ!" तब जा कर उसके मुँह से 'सॉरी' निकला और मैंने बाय बोल कर कॉल काट दिया.
मुझे भी थोड़ा आकर्ड फील हुआ पर नितु एकदम नार्मल थी. कुछ देर पश्चात मोहित और प्रफुल भी मिलने आ गए और मैंउन्को एकदम से सारी बात नहीं बता सकता थाइसलिये मैंने बात घुमाते हुए कहा;
मैं: यार यदि तुम लोगों को मेरे बारे में कोई ऐसी बात पता चले जिससे मेरा करैक्टर खराब हो तो क्या तुम मुझसे दोस्ती रखोगे? या दोबारा तुम्हारी नजरों में दोस्ती की अहमियत कम हो जाएगी? और दोबारा तुम सभी की तरह मुझे जज करोगे?
मोहित: तू पागल हो गया है क्या?
प्रफुल: हम दोनों हमेशा तेरे संग हैं, तुझे इतने सालों से जानते हैं तू कभी कोई गलत काम कर ही नहीं सकता!
मोहित: यदि किया भी तो उससे हमारी दोस्ती में फर्क नहीं आएगा? तूने जब ये दारु पीना शुरुआत किया था तब हम तेरे संग ही थे ना? तुझे समझाते थे, रोकते थे पर तूने बात नहीं मानी!
प्रफुल: बढ़िया अब बता भी क्या बात है?
उनकी बात सुन कर ये साफ़ हो गया था की वो मेरा संग नहीं छोड़ेंगे.मैंनेउन्को सारी बात बता दी, मुझे पता था की वो मुझे कुछ ज्ञान की बात कहेंगे!
मोहित: यार अब तो तू नितु से प्रेम करता है ना?
मैं: हाँ
प्रफुल: तो प्रॉब्लम क्या है? तुम दोनों की शादी कब है?
मैं: २३ फरवरी
मोहित: ठीक है .तो अब ये सड़ी हुई सी शक्ल क्यों बना रखी है तूने?
प्रफुल: अबे साले! जो हुआ वो तेरा पास्ट था. तेरा इस्तेमाल किया उसने. अब वो सभी भूल कर नई जिंदगी शुरुआत कर!
मैं: पर यार तुम लोगों को .
मोहित: (मेरी बात काटते हुए) सुन मेरी बात! यदि ये सारा रायता उस लड़की ने ना फैलाया होता और तू तब हमें ये सारी बात बताता तब भी हम तेरा संग देते, तुझे ताना नहीं मारते! तूने प्रेम किया उससे. वो भी सच्ची वाला!
अब ये बात सुन कर सभी साफ़ हो चूका था की मेरे मित्र मेरे संग हैं औरउन्को जरा भी मतलब नहीं की मेरा और अश्विनी का रिश्ता क्या था! मेरे दिल पर से आज ज्यादा बड़ा पत्थर उतर गया था! उनसे ख़ुशी-ख़ुशी विदा ले कर हम दोनों पुनः बस स्टैंड आये, जहाँ भैया-भाभी पहले से खड़े थे! भाभी ने हम दोनों के मजे लिए और दोबारा हम सभी अपने-अपने घर लौट आये.अगले दिन की बात है, दूध पीने के पश्चात साक्षी सो रही थी और मुझे ऑफिस काएक जरुरी काम करना था. तो मैं अपना लैपटॉप ले कर छत पर आ गया था और वहाँ बैठा अपना काम कर रहा था की वहाँ पीछे से अश्विनी आ गई. मेरा ध्यान स्क्रीन पर था और वो मेरे पीछे खड़ी थी. वो पीछे से ही बोली; "ये सभी जान बूझ कर रहे हो ना?"
‘नितु से जब प्रेम हुआ तब तो मुझे तेरे संग हुए हादसे के बारे में पता तक नहीं था. ये तो मेरी किस्मत थी जो मुझे वापसइसे घर तक खींच लाई! तो ये जानबूझ कर कैसे हुआ?' मन ये सफाई देना चाहता था पर दोबारा एहसास हुआ की ना तो अश्विनी मेरी ये सफाई सुनने के लायक है और ना ही मेरे कुछ कहने से वो बात समझेगीइसलिये मैंने उसे वही जवाब दिया जो वो सुन्ना चाहती थी; "अभी तो शुरुआत है!" इतना कह मैं अपना लैपटॉप ले कर नीचे आने लगा तो वो पीछे से बोली; "मैं तुम्हारी नितु से कितना नफरत करती हूँ . ये जानते हुए .तुमने ये चाल चली?" ये कहते हुए वो पीछे खड़ी ताली मारती रही और मैं चुप-चाप नीचे आ गया.
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निचे आ कर मैंने स्वयं को साक्षी के संग व्यस्त कर लिया. उसी शाम को अश्विनी ने अपनी चाल चली, रात को सभी खाना खा रहे थे की वो ताऊ जी के सामने कान पकड़ कर खड़ी हो गई; "दादाजी. मैं माफ़ी के लायक तो नहीं पर क्या आप सभी मुझेएक आखरी बार क्षमा कर देंगे? मैं ईर्ष्या में जलकर जो कुछ भी किया मैं उसके लिए ज्यादा शर्मिंदा हूँ और वादा करती हूँ की आज के पश्चात ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी!इसे परिवार की इज्जत मेरी इज्जत होगी और मैंइसे पर कोई आँच नहीं आने दूँगी!" इतना कहते हुए अश्विनी ने घड़ियाली आँसू बहाने शुरुआत कर दिये.
ख़ुशी का मौका था और डैडी-मम्मी जी भी कई बार अश्विनी के बारे में पूछ चुका था., हरबार झूठ बोलना ताऊ जी को भी बढ़िया नहीं लग रहा था.इसलिये उन्होंने अश्विनी को क्षमा कर दिया और उनके साथ-साथ घर के हरएक सदस्य ने उसे क्षमा कर दिया. पर अश्विनी न मेरे पास माफ़ी मांगने आई और ना ही मैं उसे क्षमा करने के मूड में था.
रंग-रोगन का काम शुरुआत हो चुका था औरइसे बार रंग मेरेपस्न्द का करवाया गया था. मेरे कमरे में तो कुछ ख़ास ही मेहणत करवाई जा रही थी और उसका रंग ताऊ जी ने ख़ास कर नितु से पूछ कर करवाया था. घर भर तैयारियों में लगा था पर मुझे कोई काम नहीं दिया गया था. कारन ये की पिछले कई दिनों से मैं ऑफिस नहीं जा पा रहा था और काम ज्यादा ज्यादा पेंडिंग था तो मेरा सारा टाइमव्हिडिओ-कॉल पर जाता.
अब तो साक्षी भी मुझसे नाराज रहने लगी थी क्योंकि मैं ज्यादातर लैपटॉप पर बैठा रहता था. वो ज्यादा कर के मम्मी के पास रहती और जब मैं उसे लेने जाता तो मेरे पास आने से मना कर देती; "सॉरी मेरा बच्चा!" में कान पकड़ कर उससे माफ़ी मांगता तो वो मुस्कुराते हुए मम्मी की गोद से मेरे पास आ जाती.
सगाई से दो दिन पहले की बात है, मैं छत पर बैठा काम कर रहा था और साक्षी नीचे सो रही थी की अश्विनी कपडे बाल्टी में भर कर आ गई. "एक बात पूछूँ? तुमने ऐसा क्या देख लिया उसमें जो तुम्हें उससे प्रेम हो गया? कहाँ वो ३३ की और कहाँ मैं २३ की! उसकी जवानी तो ढल रही है और मेरी तो अभी शुरुआत हुई है! याद है न वो दिन जो हमनेएक दूसरे के पहलु में गुजारे थे? तुम तो मुझे छोड़ते ही नहीं थे! हमेशा मेरे जिस्म से खेलते रहते थे! वो पूरी-पूरी रात जागना और पलंगतोड़ संभोग करना! सससस. कितनी बार किया तुमने उसके संग संभोग? उतना तो नहीं किया होगा जितना मेरे संग किया था? अरे वो देती ही नहीं होगी! राखी कहती थी की मॅडम को संभोग वाली बातें करनापस्न्द नहीं! जिसे बातें हीपस्न्द ना हो वो संभोग कहाँ करने देगी? अभी भी मौका है. मैं अब भी तैयार हूँ!!!!"
अश्विनी ने ये बातें कुछइसे तरह से कहीं के मेरे बदन में आग लग गई. मैंएक दम से उठ खड़ा हुआ और बोला; "तेरी सुई घूम-फिर कर संभोग पर ही अटकती है ना? नहीं किया मैंने उसके संग संभोग और यदि सारी उम्र ना करने पड़े तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा! पता है क्यों? क्योंकि वो मुझसे प्रेम करती है और मैं भी उससे प्रेम करता हूँ! तेरे लिए प्रेम की परिभाषा होती होगी संभोग हमारे लिए नहीं! हमारे लिए बस संग रहना ही प्रेम है!" इतना कह कर मैं पाँव पटककर वहाँ से चला गया.उस दिन रात को जब नितु का फ़ोन आया तो मैंने उससे ये बात छुपाई! आमतौर पर मैं नितु से कोई बात नहीं छुपाता था पर मैंने ये बात उसे नहीं बताई!
उस दिन के पश्चात से अश्विनी मुझसे कोई बात नहीं करती, हाँ उसकी घरवालों के संग अच्छी बनने लगी थी. घर के सभी कामों में वो हिस्सा ले रही थी और उसने सभी को ये विश्वास दिला दिया था की वो वाक़ई में ज्यादा खुश हे.एक बदलाव जो मैं अब उसमें देख पा रहा था वो ये था की अश्विनी ने अब मुझे प्यासी नजरों सेदेख्ना शुरुआत कर दिया था. वो भले ही मुझसे दूर रहती पर किसी न किसी तरीके से मुझे अपने जिस्म की नुमाइश करा देती, कभी जानबूझ कर मेरे पास अपना क्लीवेज दिखाते हुए झाडू लगाती तो कभी साडी को अपनी कमर पर ऐसे बांधती जिससे मुझे उसका नैवेल साफ़ दिख जाता. उसकी इन हरकतों का मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था पर बड़ा अजीब सा लग रहा था. ऐसा लगता मानो मुझे उससे घिन्ना आने लगी थी.
आखिर मेरी सगाई का दिन आ ही गया और मम्मी-डैडी और नितु सभी गाडी से आ गये. मैं उस वक़्त तैयार हो रहा थाइसलिये मैं नीचे नहीं आ पाया, घर के सभी लोगों नेउन्को रिसीव किया औरउन्को अंदर लाये.इधर नितु की नजरें पूरे घर में घूम रही थीं की मैं दिख जाऊँ, पर भाभी ने उनकी नजरें पकड़ ली थीं और वो उसके कान में खुसफुसाते हुए बोलीं; "आपके मंगेतर अभी तैयार हो रहे हैं!"ये सुन कर नितु शर्मा गई.
तभी उसकी नजर अश्विनी पर पड़ी जो चेहरे पर नकली मुस्कान चिपकाए सभी को देख रही थी. डैडी जी ने भी जब उसे देखा तो अपने पास बिठाया औरउन्को उस पर बड़ा तरस आया. "बेटी पिछली बार तुमसे ज्यादा बात नहीं हो पाई, तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी! अब कैसी है तुम्हारी तबियत?" डैडी जी ने पुछा और अश्विनी ने नकली हँसी हँसते हुए कहा; "जी अंकल अब ठीक है!" अभी आगे वो कुछ बोलते की मैं सूट पहने हुए नीचे उतरा.नितु ने मुझे पहले देखा और उसकी आँखें चौड़ी हो गईं! उसकी ठंडी आह भाभी ने सुन ली और वो बोलीं; "माँ आप कहो तो सागर को काला टीका लगा दूँ!" भाभी की आवाज सुन कर सभी मेरी तरफ देखने लगे.
इधर मेरी नजर नितु पर पड़ी और मैं आखरी सीढ़ी पर रुक गया और आँखें फाड़े उसे देखने लगा. घर में सभी का ध्यान अब हम दोनों पर ही था और सभी चुप हो गए थे. आज नितु को साडी में देखा मेरा मन बावरा हो गया था. आखिर भाभी चल के मेरे पास आईं और मेरा हाथ पकड़ कर मेरी तन्द्रा भंग की! मैं बैठक में आ कर ताऊ जी और पिताजी के बीच बैठ गया."क्या हुआ था बेटा?" डैडी जी ने पुछा और मेरे मुँह से अचानक निकल गया; "वो ज्यादा दिनों पश्चात देखा ना." ये बोलने के पश्चात मुझे एहसास हुआ और मैंने शर्म से मुस्कुराते हुए सर झुका लिया. यही हाल नितु का भी था और उसके भी मेरी तरह शर्म से हजाल लाल थे और ये सभी देख कर अश्विनी की आँखें गुस्से से लाल थी.
मँगनी की रस्म शुरुआत हुई और पहले नितु ने मुझे अंगूठी पहनाई जो थोड़ी लूज थी और दोबारा जब मैंने उसे अंगूठी पहनाई तो वो उसे एकदम फिट आई. सबका मुँह मीठा हुआ और खाना-पीना शुरुआत हुआ, मैंने भाभी को इशारा किया और वो समझ गई. भाभी ने नितु को कहा की वो उनके संग चल कर कमरा देख ले जिसमें पेंट हुआ हे.
उनके जाते ही दो मिनट पश्चात मैंने फ़ोन निकाला और ऐसे जताया की मैं फ़ोन पर बात कर रहा हूँ और दोबारा आंगन में आ गया और धीरे-धीरे सीढ़ी चढ़ कर उपरि पहुँच गया.भाभी और नितु मेरे कमरे में खड़े मेरा ही इंतजार कर रहे थे. मुझे देखते ही नितु बोली; 'तो आपने भाभी को सभी पहले से ही समझा दिया था कीउन्को क्या बहाना कर के मुझे वहाँ से निकालना है?" नितु बोली.
"और क्या?" मैंने कहा और भाभी ये देख कर हँस पडी. "यार आपका (भाभी का) काम हो गया, आप जाओ!" मैंने कहा.
"अच्छा जी? ठीक है चल नीता!" भाभी ने एकदम से उसका हाथ पकड़ लिया और नीचे जाने को निकलीं."सॉरी.सॉरी.सॉरी. क्षमा कर दो. !!!" मैंने अपने कान पकड़ते हुए कहा. ये देख कर भाभी और नितु दोनों हँस पडे. "वैसे भाभी आपको नहीं लगता की नितु आज ज्यादा ज्यादा सुन्दर लग रही है?" मैंने पूछा. मैं तो बस भाभी के जरिये नितु को ये बताना चाहता था की आज वो ज्यादा सूंदर लग रही हे. भाभी के सामने हम दोनों थोड़ा शर्म किया करते थे!
"वो तो तुम्हारा बिना पलके झपकाए देखने से ही पता चल गया था!" भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा.
"वैसे भाभी क़यामत तो आज आपके देवर जी ढा रहे हैं!" नितु ने मेरी तारीफ करते हुए कहा.
"मेरे देवर जी? मैं चली नीचे, वरना तुम दोनों मेरी शर्म कर के बार-बार मेरा ही नाम ले-ले कर बातें करोगे." भाभी बोलीं और हँसते हुए नीचे चली गई. उनके जाते ही मैंने नितु का हाथ पकड़ लिया; "यार सच्ची आज आप इतने हसीन लेग रहे हो की मन करता है आज ही शादी कर लूँ!" मैंने कहा और नितु शर्माते हुए मेरे सीने से आ लगी और बोली; "हैंडसम तो आज आप लग रहे हो!" हम दोनों ऐसे ही गले लग कर खड़े थे की तभी वहाँ हमें बुलाने के लिए अश्विनी आ गई. हमेंइसे तरह गले लगे देख उसके जिस्म में बुरी तरह आग लग गई.
उसने बड़े जोर से मेरे कमरे के दरवाजे पर हाथ मारा और चिल्लाई; "अभी शादी नहीं हुई है तुम दोनों की!" उसे देखते ही हम दोनों हड़बड़ा गए और अलग हुए पर उसकेइसे कदर चिल्लाने से मुझे गुस्सा आ गया; "तेरी. !!!" मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही नितु ने मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया. "बोलने दो बेचारी को! तकलीफ हुई है!!!" नितु ने मुस्कुराते हुए कहा.
नितु ने आज उसी अंदाज में कहा जिस अंदाज में उस दिन अश्विनी ने मेरा मजाक उड़ाया था जब मैं उससे साक्षी को माँग रहा था. नितु की बात सुन कर अश्विनी जलती हुई नीचे चली गई. "मत लगा करो इसके मुँह! ये जानबूझ कर आपको उकसाने आती है!" नितु बोली, मैंने सर हिला कर उसकी बात मान ली और दोबारा उसे दुबारा अपने पास खींच लिया; "आपको किस करने की गुस्ताखी करने का मन कर रहा है!" मैने नितु की आँखों में देखते हुए कहा तो जवाब में नितु ने अपनी आँखें बंद कर लीं.
मैंने अभी नितु के होठों पर अपने होंठ रखे ही थे की भाभी आ गई और अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोलीं; "शर्म करो!" उनकी आवाज सुनते ही हम दोनों अलग हो गये.
"भाभी हमेशा गलत टाइम पर आते हो!" मैंने शिकायत करते हुए कहा, इधर नितु के गाल शर्म से सुर्ख लाल हो चुका था.!
भाभी ने मेरे कान पकड़ लिए; "बेटा ज्यादा ना उड़ो मत! शादी हो जाने दो उसके पश्चात मैं आस-पास भी नहीं भटकूँगी!"
नितु भाभी के पीछे छुप गई और बोली; "तो मुझे बचाएगा कौन?" ये सुन कर तो हम तीनों हँस पड़े और भाभी ने हम दोनों को अपने गले लगा लिया.
तभी पीछे से मम्मी जी आ गईं मेरा कमरा देखने और हमें ऐसे गले लगे देख मुस्कुराते हुए बोलीं; "लो भाई! इधर तो देवर-देवरानी और भाभी का प्रेम मिलाप चल रहा है!" ये सुन कर हम अलग हुए;
"बेटा (भाभी) इसका ख्याल रखना, कभी-कभी ये मनमानी करती है!" मम्मी जी बोली.
"आप चिंता ना करो मैं नीता का ध्यान अपनी मित्र जैसा ख्याल रखुंगी." भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा.
आखिर हम नीचे आ गए, दोबारा खाना-पीना हुआ औरइसे दौरान अश्विनी कहीं भी नजर नहीं आई! टाइमसे मम्मी-डैडी और नितु चले गए, पर जाते-जाते नितु ने साक्षी को अपनी गोद में लिया और उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा; "अब जब आपसे मिलूँगी तो आपको अपने संग ही रखुंगी.!" ये सुन कर साक्षी मुस्कुराने लगी और नितु ने उसके माथे को चूमा और मुझे दे दिया.
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