Rajsharma Sex Story : अनैतिक (Romance Special)
"कमाल है! अब तक तो सुना था की काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जायएक लीक काजल की लागे है तो लागे है, पर इधर तो सभी के दामन दूध के धुले हैं!" अश्विनी दोबारा बोली और ये सुनते ही मैं भुनभुना गया और जोर से चिल्लाया; "शट दीं फक अप!" मेरी गर्जन सुन ताऊ जी गुस्से में दहाड़े; "तेरा दिमाग खराब हो गया है? होश में है या नशा कर के आया है? ये लड़की ना हमारी ज़ात की, उपरि से तलाकशुदा!"
"उम्र में भी बड़ी है!" अश्विनी दोबारा चुटकी लेते हुए बोली परइसे बार ताऊ जी ने उसे गुस्से से चुप करा दिया; "मुँह बंद कर अपना!"
क्या ज़ात-पात देख रहे हैं आप ताऊ जी? हमारी कौन से ज़ात वाले ने आज तक मदद की है? जब घर के हालात खराब थे तब किसने आ कर पुछा था?" मैंने ताऊ जी से पूछा. मेरा आत्मविश्वास देख उनका गुस्सा भड़क उठा और वो अपने कमरे में तेजी से घुसे और दिवार पर टंगी दुनाली ले आये. दुनाली का मुँह नितु की तरफ था और हालाँकि अभी तक ताऊ जी ने बन्दूक नितु पर तानी नहीं थी पर मुझे नितु के लिए डर लगने लगा था. इधर नितु भी ज्यादा घबरा गई थी. मैं जल्दी नितु के आगे आ गया ताकि यदि गोली चले भी तो पहले मुझे लगे नितु को नही. घरवाले सभी डरे-सहमे खड़े थे, माँ, ताई जी और भाभी रो रही थीं और पिताजी सर झुकाये खड़े थे. वो आज तक अपने बड़े भाई के खिलाफ नहीं गए थे. "ताऊ जी किसे गोली मारेंगे आप?इसे लड़की को जिसने मेरी जान बचाई! मर गया होता मैं और आपको तो मेरी लाशदेख्ना भी नसीब नहीं होती यदि ये लड़की ना होती तो!" मैंने कहा पर ताऊ जी पर इसका तर्री भर भी असर नहीं हुआ. वो दोबारा से गुस्से से चिंघाड़ते हुए बोले; "तुझे शहर जाने देना मेरी सबसे बड़ी भूल थी. ना तू वहाँ जाता नाइसे लड़की की बातों में आता!"
"मैं किसी की बातों में नहीं आया! आपकोइसे शादी से समस्या क्या है? आपने अश्विनी की शादी के टाइमतो कुछ नहीं कहा? वो मंत्री कौन सा हमारी ज़ात का था? उसने तो सारे काम ही गंदे किये थे, कितने लोगों के खून से हाथ रेंज थे उसके! नितु के माँ-बाप तो सीधे-साढ़े पढ़े लिखे लोग हैं!" मैंने कहा.
"वो ऊँची ज़ात का था." ताऊ जी गुस्से से बोले और उनकी बात पूरी होती उससे पहले ही मैं बोल पड़ा; "तो ये कौन सी किताब में लिखा है की अपने से ऊँची ज़ात में शादी करो पर नीची ज़ात में नहीं! और आपको क्या लगता है की मंत्री ने अपने बेटे की शादी अश्विनी से क्यों की? अपने बेटे के प्रेम के आगे झुक कर और अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए वो आपके घर आया था!" मैंने एकदम सच बात कही जो ताऊ जी को ज्यादा चुभी और उन्होंने फ़ौरन बन्दूक मेरे उपरि तान दी! माँ, ताई जी और भाभी सभी ताऊ जी से गुहार करते रहे की वो ऐसा ना करें पर ताऊ जी के कान उनकी गुहार नहीं सुन सकते थे! पिताजी भीउन्को रोकने को दो कदम बढे पर ताऊ जी की आँख में अंगारे देख रुक गए और सर झुका कर खड़े हो गये. इधर मैं और नितु समझ चुका था. की आज के दिन हम दोनों ही आज मार दिए जायेंगे और शायद इसके बारे में किसी को पता भी ना चले! नितु पीछे खड़े रोने लगी थी और उसके रोने की आवाज सुन कर मेरा दिल ज्यादा दुःख रहा था. मुझे कैसे न कैसे करके नितु को इधर से निकालना था. पर मुझे ताऊ जी के सामने अडिग खड़ा देख कर नितु में हिम्मत आ गई और वो पीछे से निकल कर मेरे सामने खड़ी हो गई और बोली; ताऊ जी रुक जाइये! आपको जान लेनी है तो मेरी ले लीजिये, इनकी (सागर की) जान ले कर आप सारी उम्र स्वयं को क्षमा नहीं कर पाओगे. मैं तो वैसे भीइसे घर की नहीं हूँ तो मेरी जान ले कर आपको उतना दुःख नहीं होगा!" मैं ने नितु का हाथ पकड़ लिया और उसे पीछे करने जा रहा था की ताऊ जी बोल पड़े; "मुझे तेरी जान लेने का भी कोई शौक नहीं है! निकल जाइसे घर से भी और सागर की जिंदगी से भी!" ये सुनते ही नितु ने अपना हाथ मेरे हाथ से छुड़ा लिया और रोती हुई जाने को पलटी, पर मैंने उसका हाथएक बार दोबारा पकड़ लिया; "मर तो मैं वैसे भी जाऊँगा!" मैंने कहा तो नितुएक समय को रुकी और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "मैं इधर आपको आपके परिवार के हाथों मरवाने नहीं आई थी. मैं तो इधर सभी का आशीर्वाद लेने आई थी! पर यदि ताऊ जी नहीं चाहते की ये शादी ना हो तो, मैं बस उनसे आपको माँग सकती हूँ छीन नहीं सकती! अपने परिवार के बिना आप कितना तड़पे हो ये मैंने देखा है और दोबारा उसी तरह तड़पते हुए नहींदेख्ना चाहती!" नितु ने रोते हुए कहा. "तो तुम भी मुझे छोड़ दोगी? दोबारा उसी हाल में जिससेबाहर् निकाला था?" अब तो मेरे आँसूँ भी बह निकले थे! "मजबूर हूँ!" नितु ने बिलख कर रोते हुए कहा. मैंने तेजी से नितु को अपने पास खींचा और उसे अपने गले लगा लिया और आँखों में गुस्सा लिए ताऊ जी को देखा और जोर से चिल्लाया; "मार दो हम दोनों को! और इसी आंगन में गाड़ देना! रोज हमारी कबर पर बैठ कर अपनी इज्जत और शानोशौकत की पीपड़ी बजाते रहना." इतना कह कर मैं नितु को स्वयं से समेटे हुएबाहर् की तरफ बढ़ने लगा. ताऊजी मेरी गर्जन सुन कर काँप गए थे पर उनका अहम उनके उपरि हावी था! उन्होंने दुनाली मेरी पीठ पर तान दी, सेफ्टी लॉक खोला और ट्रिगर दबाया. धाँय!!! गोली चली और छत पर जा लगी. पिताजी ने आगे बढ़ कर ताऊ जी की बन्दूक की नली छत की तरफ कर दी थी जिससे गोली छत में जा घुसी! मैं और नितुएक दम से रुक गए, नितु को लगा की वो गोली मेरे जिस्म में घुसी है और उसके प्राण सूख गए, पर जब उसने मुझे ठीक ठाक देखा तो उसकी जान में जान आई. इधर अश्विनी को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उसे उसके हिस्से की ख़ुशी करीब मिल ही गई हो!
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हम दोनों पलटे और देखा की पिताजी जिंदगी में पहलीबार अपने बड़े भाई की आँखों में आँखें डाल कर देख रहे हैं और तेजी से सांस ले रहे हे.
"ये आप क्या करने वाले थे भाईसाहब? मेरे बेटे पर गोली चलाई आपने? मेरे बेटे पर?" इतना कहते हुए पिताजी ने झटके से उनके हाथ से बन्दूक छीन ली और दूर फेंक दी. "रुक जा सागर, तू कहीं नहीं जाएगा! आजतक मैने हर वो काम किया है जो इन्होने (ताऊ जी ने) कहा, चाहे सही या गलत अपने बड़े भाई का हुक्म समझ मैं वही करता आया. इन्होने उस दिन कहा की सागर को घर से निकाल दे तो मैंने वो भी किया पर आज इन्होने तुझ पर बन्दूक तान दी और गोली चलाई, ये मैं नहीं सहन करूँगा!" पिताजी बोले और ताऊ जी बस पिताजी को घूरते रहे. इधर मेरी मम्मी भाभी का सहारा ले कर आगे बढ़ी और ताऊ जी से बोली; "ब्याह के पश्चात मैंने आपको और दीदी को अपने माँ-बाप माना और आप दोनों ने भी मुझे बेटी की तरह प्रेम दिया. बेटे को खो देने का गम मैं जानती हूँ, भले ही पिछली बार मैं कुछ बोल नहीं पाई पर सागर की कमी मुझे हमेशा खलती थी! आप भी तो जानते हो की बेटा जब घर नहीं होता तो घर का क्या ख्याल होता है? गोपाल भैया जब अस्पताल में था तब आप ने दीदी की हालत देखि थी ना? मुझ में अब अपने बेटे को दुबारा खोने की ताक़त नहीं है, आजतक मैंने आपसे कुछ नहीं माँगा.आज पहली और आखरी बार माँगती हूँ." मम्मी ने अपना आँचल ताऊ जी के सामने फैला दिया और बोलीं; मेरी झोली में मेरे बेटे का प्रेम डाल दो, उसे इसी लड़की से शादी करने दीजिये!" मम्मी की हिम्मत देख ताई जी और भाभी भी मम्मी के संग खड़े हो गये."सागर की हालत देखि थी न उस दिन? क्या करेंगे हम जी कर हमारे बच्चे ही खुश नहीं हैं तो?" ताई जी रोती हुई बोली. "पिताजी सागर अब बच्चा नहीं हैं, सोच समझ कर फैसला लेते हैं! आप ने कितनी बड़ाई की है सागर की और आज आप गुस्से में कैसी अनहोनी करने जा रहे थे?" गोपाल भैया बोले. भाभी कुछ बोल ना पाइन क्योंकि वो ताऊ जी से ज्यादा डरती थींइसलिये उन्होंने सिर्फ ताऊ जी के आगे हाथ जोड़ दिये. घर के सारे लोग मेरी तरफ आ चुका था.
खुद को यूँ तन्हा देख ताऊ जी की आँखें झुक गई.उन्को एहसास हुआ की उनका झूठा घमंड करीब हमारे परिवार का अंत कर देता. ताऊ जी आँखों से पछतावे के आँसूँ बह निकले, उन्होंने अपनी बाहें खोल कर मुझे और नितु को अपने पास बुलाया. हम दोनों जा कर ताऊ जी के गले लग गए और ताऊ जी ने हम दोनों के सर चूमे और बोले; "मुझे क्षमा कर दो मेरे बच्चों! मैं गुस्से से अँधा हो चूका था! तुम सभी ने आज मेरी आंखें खोल दीं! तुम दोनों की शादी बड़े धूम धाम से होगी और तुम दोनों को वो हरएक ख़ुशी मिलेगी जो मिलनी चाहिए. इतना कहते हुए ताऊ जी पिताजी के पास गए और उनके सामने हाथ जोड़े.
पिताजी नेएक दम से ताऊ जी के दोनों हाथ पकड़ लिए और उनके गले लग गए और बोले; "नहीं भैया .मैं आपसे छोटा हूँ.आज जो जुर्रत की उसके लिए क्षमा कर देना!" पिताजी रोते हुए बोले; "नहीं छोटे.तूने आज मेरी आँखें खोल दी!" ताऊ जी रोते हुए बोले. दोबारा ताऊ जी ने भाभी से कहा की वो साक्षी को ले कर आएं और जैसे ही भाभी सीढ़ी की तरफ गईं अश्विनी उनके सामने खड़ी हो गई और उनका रास्ता रोक लिया. भाभी कुछ बोलती उससे पहले ही ताऊ जी तेजी से अश्विनी के पास पहुंचे औरएक जोरदार थप्पड़ उसे मारा; "आग लगाने आई थी तू यहाँ? मंथरा!!!! जा बहु ले कर आ साक्षी को!" अश्विनी डरी-सहमी सीएक कोने में खड़ी हो गई! जैसे ही भाभी ने उपरि जा कर अश्विनी के कमरे का दरवाजा खोला कीउन्को साक्षी के रोने की आवाज सुनाई दी! गोली की आवाज से साक्षी जाग गई थी और जोर-जोर से रो रही थी! मैंने जैसे ही ये आवाज सुनी मैं जल्दी उपरि दौड़ता हुआ पहुंचा. भाभी अभी साक्षी को गोद में उठाने ही वाली थीं की मैंने उसे उनसे पहले उठा लिया और उसेएक दम से अपनी छाती से चिपका लिया. "मेरा बच्चा.!!!" इतना ही कह पाया. आज कई दीन बादएक पिता को उसकी बेटी मिली थी और अंदर से आँसूँ बह निकले. जब मैं नीचे आया तो ताऊ जी अश्विनी को डाँट रहे थे; "कैसी मम्मी है तू? अपनी नन्ही सी बेटी को कमरे में बंद रखती है? जा बुला ले जिस मर्जी कोतवाल को में देखता हूँ की क्या करता है!" ताऊ जी ये कहते हुए मेरी मम्मी के सामने आये और हाथ जोड़ते हुए बोले; "मुझे क्षमा कर दे बहु! मैं तेरा कसूरवार हूँ, तुझे तेरे बच्चे से दूर करने का पाप किया है मैंने!"
"भाईसाहब जो हुआ सो हुआ, अब बसइसे घर में दोबारा से खुशियां गूंजने लगे मैं बस यही चाहती हूँ!" मम्मी बोली. तब तक मैं साक्षी को ले कर नीचे आ गया था और मेरी गोद में आते ही साक्षी का रोना बंद हो गया था और उसकी किलकारियाँ शुरुआत हो गईं थी. "देख रहे हो आप (ताऊ जी), आज दो दिन बादइसे घर में साक्षी की किलकारियाँ गूँज रही हैं? तेरे जाने के पश्चात सागर ये एकदम से गुमसुम हो गई थी!" ताई जी बोली. मैंने साक्षी के माथो को चूमा तो उसने एकदम से मेरी ऊँगली पकड़ ली और उसकी किलकारी की आवाज पूरे घर में गूंजने लगी. नितु हसरत भरी आँखों से मुझे साक्षी से प्रेम करते हुए देख रही थी. जब मेरा ध्यान नितु पर गया तो मैंने उसे साक्षी को दिया. साक्षी को गोद में लेते ही नितु को उसकी ममता का एहसास जिंदगी में पहली बार हुआ. उसकी आँखेंएक दम से भर आईं और उसने साक्षी को अपनी छाती से लगा लिया. जहाँ मैं ये देख कर अंदर ही अंदर ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था वहीँ दूसरी तरफ अश्विनी जल के राख हो चुकी थी. उसकी नफरत उसके चेहरे से दिख रही थी पर वो ताऊ जी के डर के मारे कुछ नहीं कर पा रही थी. वो गुस्से में पाँव पटकते हुए उपरि अपने कमरे में चली गई. इधर नितु साक्षी को अपनी छाती से लगाए हुए मम्मी और ताई जी के पास बैठ गई. वहीँ ताऊजी, पिताजी और गोपाल भैया ने मुझे अपने पास बिठा लिया. दोबारा जो बातें शुरुआत हुईं तो मैंने घरवालों को सभी कुछ बता दिया. अब जाहिर था की ताऊजी ने नितु के घरवालों से मिलने की ख्वाइश प्रकट करनी थी. मुझे उसी वक़्त कहा गया की परसों ही सभी को मिलने बुलाओ और चूँकि आज शाम होने को है तो कल मैं नितु को सुबह छोड़ने जाऊ.
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मैंने फ़ोन मिलाया और ताऊ जी ने बात करने के लिए मुझसे फ़ोन लिया. उन्होंने बड़े प्रेम से डैडी जी से बात की औरउन्को परसों आने का न्योता दिया. संग ही ये भी कह दिया की अभी टाइमज्यादा हो गया है तो आज 'नीता बिटिया' यहीं रुकेगी और कल सागर आपके पास छोड़ आयेगा. चाय बनने लगी तो नितु ने भाभी की मदद करनी चाही पर भाभी मजाक करने से बाज नहीं आईं और बोलीं; "अरे पहले शादी तो कर लो! उसके पश्चात ये सभी तुम्हें ही करना है!" ये सुन कर सारे लोग हँस पड़े और घर में हँसी का माहौल बन गया.कोई यदि दुखी था तो वो थी अश्विनी जो उपरि अपने कमरे में बैठी जल-भून रही थी! मम्मी और ताई जी ने नितु से ज्यादा से प्रश्न पूछे और मेरी बताई गई बातों को वेरीफाई किया गया, तथा मेरी बचकानी हरकतों के बारे में भी नितु को आगाह किया गया.कुल मिला कर कहें तो आज हमारे घर में खुशियाँ लौट आईं थी!नितु और मैं हम दोनों ही ज्यादा खुश थे और हमारी ख़ुशी दुगनी हो गई थी साक्षी को पा कर. पर हम चाह कर भी साक्षी को माँ-बाप वाला प्रेम नहीं दे सकते थे क्योंकि साक्षी की मम्मी यानी अश्विनी ये कभी नहीं होने देती!
रात का खाना बनने तक मैं साक्षी को अपनी छाती से चीपकाये रहा और घर के सभी मर्दों के बीच रह कर बातें करता रहा. चूँकि ये घर के एकलौते कुंवारे लड़के की शादी थी और वो भी परिवार की आखरी शादी तो सभी के मन में उत्साह भरा हुआ था. अश्विनी की दूसरी शादी की तरफ किसी ने तवज्जो नहीं दी थी क्योंकि अब घर वालों को अश्विनी के पागलपन से पीछा छुड़ाना था. ताऊ जी ने पूरे घर का रंग-रोगन का काम गोपाल भैया को सौंप दिया. और परसों के दिन जो नितु के मम्मी-डैडी का स्वागत होना था उसकी जिम्मेदारी उन्होंने पिताजी और अपने सर ले ली थी. "बेटाएक बात तो बता?" पिताजी थोड़ा हिचकते हुए बोले. "हाँ जी बोलिये?" मैंने साक्षी से अपना ध्यान उनकी तरफ करते हुए कहा. "बेटा.तू हमारा रहन-सहन तो जानता हे. अब बहु के घरवाले वो क्या सोचेंगे? क्याउन्को ये रंग-ढंग जमेगा? मेरा मतलब .वो ठहरे शहर में रहने वाले और हम ठहरे देहाती!" पिताजी बोले और ताऊ जी ने उनकी बात का समर्थन करते हुए हाँ में गर्दन हिलाई."ताऊ जी, पिताजी वो लोग बस आपका अपनी बेटी के लिए प्यारदेख्ना चाहते हे. बाकीउन्को हमारे रहन-सहन से कोई परेशानी नहीं होगी. वो लोग जमीन से जुड़े लोग हैं और किसी भी तरह का कोई दिखावा नहीं करते." मैंने सभी सच ही कहा था. क्योंकि जितने भी दिन मैं वहां रहा था उतने दिन मुझे मम्मी-डैडी के बर्ताव में कोई भेदभाव या घमंड नजर नहीं आया था.
उधर मम्मी ने नितु को अपने संग बिठा रखा था और उससे उसकी पसंद-नापसंद पूछी जा रही थी. जो प्रश्न मुझसे इधर पुछा गया था वही प्रश्न नितु से मम्मी ने पूछा. मेरे माँ-बाप स्वयं को नितु के मम्मी-डैडी के सामने कम आंक रहे थे. "माँ कोई अंतर् नहीं है? बस बुलाने का फर्क है, मैं मम्मी-डैडी कहती हूँ और 'ये' (अर्थात मैं) माँ-पिताजी कहते हैं!" नितु ने मम्मी के प्रश्न का जवाब देते हुए कहा. पर भाभी को नितु की टांग खींचने का मौका दोबारा से मिल गया; "ये? भला 'ये' कौन है?" भाभी ने थोड़ा जोर से कहा ताकि मैं भी सुन लु. "भाभी नाम नहीं ले सकती ना इसलिए!" नितु ने शर्माते हुए कहा. नितु का जवाब सुन सभी हँस पडे. "बहु तू ज्यादा टाँग न खींच!" ताई जी प्रेम से भाभी को डांटा. "माँएक बात बताओ, जब देवर भाभी का रिश्ता हंसी-मजाक का हो सकता है तो देवरानी और भाभी का रिश्ता ऐसा क्यों नहीं हो सकता?" भाभी ने पुछा तो नितु बोल पड़ी; "बिलकुल भाभी!" नितु का जवाब सुन मम्मी ने नितु के सर पर हाथ फेरा.घर में हँसी मजाक चल रहा था और वहाँ ये हँसी-मजाक अश्विनी के दर्द का सबब बन चूका था. जब नितु सागर के संग होती थी तब भी उसे नितु से चिढ होती थी और अब तो सागर उससे शादी कर रहा है तो उसका जल भून कर राख होना तय था! सागर को चाचा कहने में उसे मौत आती थी और नितु को चाची कहने के बारे में वो सोच भी नहीं सकती थी! वो बेसब्री से इससेबाहर् निकलने का रास्ता ढूंढने लगी. पर उसके लिए अब सारे दरवाजे बंद हो चके थे! जिस दर्द से सागर ने विदेश जाने के बहाने स्वयं को बचा लिया था अब वही दुःख अश्विनी को अपने आगोश में लेने को मचल रहा था! वो तो आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी. क्योंकि ऐसा करने से सागर और नितु साक्षी को अपना लेते और मरने के पश्चात भी अश्विनी को शान्ति नहीं मिलती! वो तो बस यही चाहती थी की सागर भी उसी की तरह आग में जले, तड़पे और मर जाए! जहाँएक तरफ नीचे सारा परिवार नई खुशियों के संग नई उमंग में सागर और नितु के लिए नई जिंदगी की दुआ कर रहा था. वहीँ उपरि बैठी अश्विनी बस सागर की बरबादी की मनोकामना कर रही थी. "मुझसे तो तूने सभी कुछ छीन लिया? कम से कम मेरे दुश्मन को तो चैन से मत रहने दे? कुछ दिन पहले ही मैंने उसे इतना तड़पाया था और जो सुकून मुझे मिला उसे तो मैं बयान भी नहीं कर सकती. आज भी वो मौत के इतने करीब था पर तूने उसे मरने नहीं दिया! क्या बिगाड़ा है मैंने तेरा?" रोती बिलखती अश्विनी भगवान् से सागर की मौत माँग रही थी. "बसएक मौका मिल जाए और मैं खुदइसे पुरुष को तेरे पास भेज दूँगी! कम्भख्त पैसे भी नहीं मेरे पास वरना इसे मरवा देती!" अश्विनी ने अपनी किस्मत को कोसते हुए कहा.इधरइसे सभी से बेखबर मैं अपनी और नितु की शादी को ले कर खुश था और अब तो मेरे पास साक्षी भी थी! मैं जानता था की अब अश्विनी में इतनी हिम्मत नहीं की वो ताऊ जी के सामने कुछ बोलने की हिम्मत करे, वरना ताऊ जी की दुनाली में अभी भीएक गोली बाकी थी औरउन्को वो अश्विनी को आशीर्वाद स्वरुप देने में जरा भी हिचक नहीं होती! रात का खाना हुआ और आज बरसों पश्चात सभी नेएक संग बैठ कर खाया.माँ, ताई जी और भाभी ने मिलकर नितु को इतना खिलाया जितना उसने आज तक नहीं खाया था. अश्विनी अपना खाना ले कर राजसी में बैठी थी और सभी कोइसे तरह नितु को प्रेम देते देख जलन से मरी जा रही थी पर बेबस थी और कुछ कह नहीं सकती. खाने के पश्चात उसने साक्षी को दूध पिलाया और साक्षी को ले कर उपरि जाने लगी तो ताई जी ने उसे रोका और नीचे ही सभी के संग सोने को कहा पर वो अपनी अखडी गर्दन ले कर उपरि जाने लगी. "साक्षी को दे यहाँ!" ताई जी ने उससे रूखे स्वर में कहा तो ताऊ जी के डर के मारे उसने बेमन से साक्षी को ताई जी को दे दिया. सभी जानते थे की अश्विनी का दिमाग सनका हुआ और वो गुस्से में कहीं साक्षी के संग कुछ गलत ना करे. ताई जी ने साक्षी को मेरी गोदी में दिया और मैं उसे ले कर ताऊ जी वाले कमरे में अंगीठी के सामने बैठ गया.वहाँ अभी भी मेरी शादी की बातें हो रही थीं और शादी के लिए मेरे कमरे में खरीदारी करने की चर्चा चल रही थी.
इधर नितु के मन में साक्षी के लिए प्रेम उमड़ पड़ा था. इन कुछ घंटों में ही उसका मन साक्षी ने मोह लिया था; "माँ. आज साक्षी को मैं अपने संग सुला लूँ?"
"बेटी कोशिश कर ले! ना तो सागर साक्षी को गोद से उतारेगा और ना ही साक्षी उसकी गोद से उतरेगी! दोनों में बिलकुल बाप-बेटी वाला प्रेम है!" मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा. पर नितु कहाँ हार मानने वाली थी. वो मम्मी के कमरे सेबाहर् आई पर उसकी हिम्मत नहीं हुई ताऊ जी कमरे में घुसने की, क्योंकि वहाँ सभी मर्द बैठे थे और ताऊ जी और पिताजी से उसकी शर्म उसे अंदर नहीं आने दे रही थी. वो कमरे केबाहर् ही चक्कर लगाने लगी. तभी भाभी नेबाहर् से मुझे आवाज दी और मैं उठ कर कमरे केबाहर् आया. नितु ने पहले भाभी को देखा और थैंक यू कहा और दोबारा मेरी तरफ देखते हुए बोली; "आज मुझे भी मेरी बेटी के संग सोने दो?" नितु की बात सुन कर मैं मंत्र-मुग्ध सा उसे देखने लगा. इतनी जल्दी नितु ने साक्षी को अपना लिया था इसकी विचार भी मैंने नहीं की थी! मैंनेएक बार साक्षी के मस्तक को चूमा और उसे नितु की तरफ बढ़ा दिया. पर साक्षी के नन्हे हाथों ने मेरी कमीज पकड़ ली थी. मैंने धीरे-धीरे से उसके कान में खुसफुसाते हुए कहा; "बेटा आज रात आपको मम्मी के पास सोना है!" मेरा इतना कहाँ था की साक्षी ने मेरी कमीज छोड़ दी और नितु ने उसे अपनी छाती से लगा लिया. नितु की आँखें बंद हो गईं, ऐसा लगा जैसे उसके जलते मम्मी के कलेजे को सुकून मिल गई हो. मेरी आँखें नितु के चेहरे पर टिकी थीं और मैं उस सुकून को महसूस कर पा रहा था. जब नितु ने आँखें खोली और मुझे स्वयं को देखते हुए पाया तो शर्म से उसके गाल लाल हो गये. उसने मुस्कुरा कर मुझे थैंक यू कहा और मम्मी के कमरे में चली गई. मैं मुस्कुराता हुआ पुनः ताऊ जी के कमरे में आ गया और उधर जैसे ही मम्मी ने नितु की गोद में साक्षी को देखा वो बोल पड़ीं; "लो भाई! आज पहलीबार सागर ने किसी को साक्षी की जिम्मेदारी दी है वरना रात को तो साक्षी उसी के पास सोती थी." ये सुन कर नितु को स्वयं पर गर्व होने लगा! रात को सोने का इंतजाम कुछ ऐसा था की मम्मी के कमरे में सारी औरतें सोने वाली थीं और ताऊ जी के कमरे में सारे मर्द.मेरा पलंग आज ताऊ जी और पिताजी के बीच था. देर रात तक हमारी बातें चलती रही.
अगली सुबह सभी जल्दी उठे, नितु भी आज सभी के संग उठी और साक्षी को ले कर मेरे पास आई जो रो रही थी. "मेरा बच्चा क्यों रो रहा है?" उस टाइममैं तन्हा ताऊ जी के कमरे में पलंग ठीक कर रहा था और मौके का फायदा उठाते हुए मैंने नितु का हाथ पकड़ लिया; "आप कहाँ जा रहे हो? साक्षी बेटा आपने मम्मी को तंग तो नहीं किया?" मैंने कहा.
"रात में तो बड़े आराम से सोई पर सुबह उठते ही रोने लगी!" नितु बोली और मेरे थोड़ा नजदीक आ गई. हम दोनों की नजरें बसएक दूसरे पर टिकी थीं; "वो क्या है ना सुबह होते ही साक्षी को पापा की गुड मॉर्निंग वाली किसी चाहिए होती है!" मैंने कहा.
"अच्छा? और साक्षी के पापा को मेरी गुड मॉर्निंग वाली किसी नहीं चाहिए होती?" नितु ने शर्माते हुए मुझे उस दिन वाली किसी याद दिलाई!
"चाहिए तो होती है.पर .!!!" मैं आगे कुछ कह पाता उससे पहले ही भाभी आ गईं जोबाहर् से हमारी बातें सुन रही थी.
"हाय राम! तुम दोनों तो बड़े बेशर्म हो? शादी से पहले ही किस्सियाँ कर रहे हो? रुको अभी बताती हूँ सबको!" भाभी बोलीं औरबाहर् जाने लगीं की नितु ने उनका हाथ पकड़ लिया; "नहीं भाभी प्लीज!!!" नितु घबरा गई थी और ये देख कर भाभी हँस पड़ी तब जा कर नितु को पता चला की वो बस उसकी टाँग खींच रही हैं! "अच्छा सच्ची-सच्ची बता तुझे किसी चाहिए?" भाभी ने मुझसे पुछा और ये सुन कर मेरे गाल लाल हो गए और गर्दन झुक गई. "समझ गई! चलो अब भाभी हूँ तो कुछ तो करना पड़ेगा! हम्म्म्म." ये कहते हुए भाभी कुछ सोचने लगी. "रहने दो भाभी! अभी इन्हें मुझे छोड़ने भी तो जाना हे." नितु ने कहा.
"हाय राम! तो तुम दोनों क्याबाहर् खुले में सबके सामने. लाज नहीं आती तुम्हें!" भाभी मुँह पर हाथ रखते हुए बोली.
"नहीं नहीं भाभी. क्या बात कर रहे हो?" मैंने नितु का बचाव किया तब जा कर नितु को एहसास हुआ की वो क्या बोल गई थी!
"भाभी मेरा मतलब था की हम अभी थोड़ी देर में निकलने वाले हैं!" नितु ने बात संभालनी चाही.
"अरे रहने दे! तू मुझे उल्लू समझती है!" भाभी ने नितु की पीठ पर प्रेम से थपकी मारते हुए कहा.
"सच भाभी आपकी कसम हमने आजतक वैसा कुछ नहीं किया. बस कुछ दिन पहले से ही ये 'किसी' शुरुआत हुई हे." मैंने कहा. भाभी जानती थी की मैं कभी झूठी कसम नहीं खाता थाइसलिये उन्होंने नितु की टाँग और नहीं खींची.तभीबाहर् से ताई जी की आवाज आई; 'अरे तुम तीनों अंदर कौन सी खिचड़ी पका रहे हो?" उनकी बात सुन कर हम सबबाहर् आये और भाभी बोलीं; "माँ मैं तो नजर रख रही थी की ये दोनों क्या बातें कर रहे हैं!" भाभी बोलीं और खिलखिला कर हँस पड़ी और इधर हम दोनों के गाल लाल हो गये.
नाश्ता कर के हम निकलने लगे तो ताऊ जी बोले; "वहाँ पहुँच कर हमें फोन करना और कल निकलने से पहले भी फोन करना." नितु ने सभी के पाँव छुए और हम दोनों मुस्कुराते हुए घर से निकले.जहाँ कल आते हुए हमारे प्राण सूख रहे थे की नजाने क्या होगा वहीँ आज हम इतने खुश थे की उसे व्यक्त करने के लिए हम नेएक दूसरे का हाथ थाम लिया. बस स्टैंड पहुंचे तो नितु ने बात शुरुआत की;
नितु: तो घर पर क्या बोलना है?
मैं: जो हुआ वो सभी बताना हे.
नितु: पर इतनी डिटेल की क्या जरुरत है? हम बस इतना कह देते हैं की सभी राज़ी हे. वैसे भी मम्मी का कल शाम को फ़ोन आया था और मैंनेउन्को बता दिया था की इधर सभी शादी के लिए राज़ी हैं और हम कल आ रहे हे.
मैं: बेबी बात को समझो! कल को ये बात यदि सामने आई तो पता नहीं डैडी जी कैसे रियेक्ट कर्नेगे! दोबारा वो चुड़ैल (अश्विनी) भी है जोइसे बात को मिर्च-मसाला लगा कर कहेगी!
नितु: ये सुन कर डैडी डर जायेंगे और दोबारा उन्होंने शादी के लिए मना कर दिया तो?
मैं: कुछ नहीं होगा.मैंउन्को समझा दूंगा.
नितु को मुझ पर तो विश्वास था पर वो अपने डैडी को भी जानती थी. इसीलिए वो मना कर रही थी.
परएक बात थी जो सभी से छिप्पी थी. वो थी मेरा और अश्विनी का रिश्ता जो यदि सबके सामने आता तो सभी कुछ तहस-नहस हो जाता. बस आई और हम दोनों बैठ गए, मेरे मन में जो बात चल रही थी उससे मेरी शक्ल पर बारह बज रहे थे.
नितु: क्या सोच रहे हो?
मैं: यही की क्या हमारे घरवालों को सभी कुछ पता होना नहीं चाहिए?
नितु: सभी कुछ.नहीं! थोड़ा बहुत.हाँ! आप जब गाँव आये हुए थे तब मम्मी ने मुझसे आपके पास्ट के बारे में पुछा था. तो मैंने बता दिया पर अश्विनी का नाम और आपसे रिश्ता नहीं! इतना ही उनके लिएजान्ना बहुत है, इससे ज्यादा कुछ भी बताना मतलब सभी कुछ ख़त्म कर देना और मुझ में आपको खोने की ताक़त नहीं हे. ना तो मैंउन्को कुछ बताऊँगी और ना ही आपको बताने दूँगी!
मैं: पर क्या ये सही है?
नितु: सही है.बिलकुल सही हे. सच मुझेजान्ना जरुरी थाउन्को नहीं, जिंदगी हमें संग बितानी हैउन्को नहीं! जो बात दबी है उसे दबी रहने दो!
नितु ने मुझे आगे कुछ कहने नहीं दिया पर वो भूल रही थी की दुनिया में और भी लोग हैं जो मेरे और अश्विनी के रिश्ते के बारे में सभी जानते हे. अब चूँकि हमारा (मेरा और नितु का) रिश्ता सभी के सामने आ रहा था तो ऐसे में अश्विनी और मेरे रिश्ते को ले कर कीचड उछलना स्वाभाविक था.
पर अभी के लिए हम दोनों अपने आँखों में शादी के सपने लिए बस के झटके खाते हुए घर पहुंचे. वहाँ मैंने डैडी जी को सारी बात बताई और सभी सुन करउन्को ख़ुशी तो हुई पर संग हीउन्को चिंता भी हुई! ख़ुशी का कारन हमारी शादी के लिए मेरे घर वालों का मान जाना था और चिंता मेरे ताऊ जी का गुस्सैल स्वभाव था! "डैडी जी आप को घबराने की कोई जरुरत नहीं है, जो होना था वो स्वाभविक था. उसके पीछे का कारन है हमारे ही गाँव और मेरे ही घर में घटीएक घटना." दोबारा मैंनेउन्को भाभी वाले काण्ड की सारी बात बता दी; "अब उनकी स्थान आप होते तो आप भी शायद नाराज होते.पर अब ताऊ जी का दिल साफ़ हे. उन्होंने नितु को हमारे घर की बहु के रूप में स्वीकार लिया हे. मेरी मम्मी तो नितु से मुझसे भी ज्यादा प्रेम करती है और सिर्फ वे ही नहीं बल्कि घर के सभी लोग नितु से ज्यादा प्रेम करते हैं!" मैंने कहा और दोबारा नितु नेउन्को मेरी मम्मी से हुई सारी बातें बताईं, तब जा कर उनके दिल को सुकून मिला. "डैडी जी मैं आप से वादा करता हूँ की नितु हमेशा खुश रहेगी और मैं उस पर कोई आंच नहीं आने दूँगा!" मेरी बात सुन कर डैडी जी की चिंता दूर हुई और उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया.
डैडी जी से बात होने के पश्चात मैंने घर फ़ोन कर के कल आने का टाइमबता दिया और ये सुनते ही मेरे घर में तैयारियाँ शुरुआत हो चुकी थी. तम्बू-कनात वालों को बुला लिया गया, घर में कालीन बिछ गया, रसोइयों को ख़ास पकवानों की फरमाइश कर दी गई. घर पर लाइटें लग गईं, छत पर और आंगन की क्यारियों में नए-नए पौधे लगा दिए गये. बैठने-उठने के लिए कुर्सियाँ-टेबल साफ़ करा दिए गए, घर के सारे कमरों की सफाई ढंग से हुई और सभी कुछ सजा-धजा के रखा गया.पेंट नहीं हो पाया क्योंकि टाइमनहीं था पर घर इतना चमक गया था की पेंट ना होने पर किसी का ध्यान ही ना जाये. वहाँ बस हमारा इंतजार हो रहा था.
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