Rajsharma Sex Story : अनैतिक (Romance Special)
दिन गुजरने लगे और शादी में अभीएक महीना रह गया था. शादी के कार्ड छप कर आये. मेरे दोस्तों को कार्ड मैंने भेज दिए और ऑफिस स्टाफ को भी कार्ड भेज दिये. अल्का को कार्ड नितु ने भेजा और संग ही उसे टिकट भी भेज दी. इधर घरवालों ने जब नाते-रिश्तेदारों को कार्ड भेजा तो सभी ने पूछना शुरुआत कर दिया. ताऊ जी ने सभी से यही कहा की लड़की सभी कीपस्न्द की है औरउन्को बाकी डिटेल नहीं दी, मैं तो वैसे भी इन सभी बातों से अनविज्ञ था! शादी से ठीक १५ दिन पहले तक मेरा घर रिश्तेदारों से खचाखच भर चूका था. मैं उन दिनों काम के चलते ज्यादा ज्यादा बिजी था तो घर में जो कोई भी बात होती वो मेरे सामने नहीं होती थी. दिन में मैं छत पर अपना लैपटॉप ले कर बैठा होता था. रात में मुझे देर तक जागने की मनाही थी. मेरे कुछ कजन कभी-कबार आ कर मेरे पास बैठ जाते और उनके संग हँसी-मजाक होता. इतने लोग तो अश्विनी की शादी में भी नहीं आये थे!
एक दिन की बात है की घर में घमासान खड़ा हो गया, बात शुरुआत की मौसा जी ने! "भाईसाहब! आपकी अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं जोएक तलाकशुदा लड़की की शादी, उम्र में सागर से ५ वर्ष बड़ी की शादी अपने लड़के से करवा रहे हो?" उनकी बात सुनते ही पिताजी और ताऊ जी भड़क उठे, पिताजी के कुछ कहने से पहले ही ताऊ जी बोल उठे; "यहाँ तुम से कुछ पुछा गया? शादी में बुलाया है, चुप-चाप आशीर्वाद दो और निकल जाओ!" मौसा जी ताऊ जी से उम्र में छोटे थे और उनका बड़ा मान करते थे, वैसे तो सभी मान करते थे या ये कहूँ की डरते थे!इसलिये जब ताऊ जी चिल्लाये तो मौसा भीगी बिल्ली बन कर चुप हो गये. बड़ी हिम्मत कर के छोटी मौसी बोलीं; "भाईसाहब लड़की तो हमारी ज़ात की भी नहीं!" उनकी बात का जवाब ताई जी ने दिया; "काहे की ज़ात? जब हम मुसीबत में थे तो कौन से ज़ात वाले सामने आये थे? सभी के सभी पुलिस के डर के मारे अपने घर में छुपे हुए थे!" ताई जी की बात सुन कर सभी के सभी चुप-चाप खड़े हो गये.
"मेरी बात गौर से सुन लो सारे! तुम में से यदि किसी ने भीइसे शादी में विघ्न डाला या कोई ऐसी हरकत की जिससे हमारी मट्टी-पलीत हुई तो उसे गोली से उड़ा दूँगा! तुम में से किसी ने यदि समधी-समधन को या बहु को कुछ भी ताना मारा या कहा ना तो अंजाम तुम्हें मैं बता चूका हूँ!एक आरसे बादइसे घर में खुशियाँ आ रही हैं!" ताऊ जी की दहाड़ सुन सभी के सभी चुप हो गये. अब मुझे कहने की तो कोई जरुरत नहीं की ये लगाई-बुझाई अश्विनी की थी.एक वही तो थी जो सभी कुछ जानती थी!इसलिये मैं इंतजार करने लगा की मुझे कब मौका मिले जब वो अकेली हो.
रात को जब मैं साक्षी को उससे लेने के बहाने उसके कमरे में पहुँचा तो मुझे वो अकेली अपना पलंग ठीक करते हुए दिखी; "मिल गई तेरे कलेजे को ठंडक? लगा ली ना आग?" ये सुनते ही अश्विनी बोली; "मैंने क्या किया?" उसने अनजान बनने का नाटक किया पर मेरे सामने उसका ये रंग नहीं चल सकता था.
"ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर! तेरे आलावा इधर और कोई है जिसे मेरी खुशियां देख कर आग लग रही हो! दुबारा तूने ऐसा कुछ किया ना तो दुर्गत कर दूँगा तेरी!" मैंने अश्विनी को हड़काया और साक्षी को ले कर अपने कमरे में आ गया.अगले दिन सुबह-सुबहएक बड़ा सा ट्रक घर के आगे खड़ा हो गया, ताऊ जी ने सारे मर्दों को आवाज दी. सभी हैरान थे सिवाए उनके और पिताजी के, जब ट्रक पर से तिरपाल हटा तो उसमें पड़ा सामान देख सभी समझ गये. उसमें सारा फर्नीचर था जो ताऊ जी ने स्पेशल आर्डर दे कर बनवाया था. जब सामान उतारने के लिए मैंने हाथ लगाना चाहा तो ताऊ जी ने मना कर दिया. मैं ख़ुशी-ख़ुशी उपरि आया कीएक और टेम्पो की आवाज सुनाई दी, मैंने छत से नीचे झाँका तो पता चला की डैडी जी ने भी कुछ सामान भेजा था.
घर में जितने भी रिश्तेदार आये थे सभी के सभी सामान उतारने में लग गए और पिताजी और ताऊ जी ये ध्यान रख रहे थे की कहीं कुछ टूट ना जाये. मेरा कमरा इतना बड़ा था पर उसमें सामान के नाम पर मेरा सिंगल बेड औरएक टेबल था बाकी उसमें ट्रंक रखे हुए थे जिनमें गर्म कपडे होते थे.
आज जा कर मेरे कमरे कोएक डबल बेड, ड्रेसिंग टेबल, छोटा सोफा, अलमारी और स्टडी टेबल का सुख मिल रहा था. मैं ने नितु को वीडियो कॉल कर के सामान उपरि चढ़ते हुए दिखाया और वो ज्यादा खुश हुई.शादी मेंएक हफ्ता रह गया था और पिताजी ने मंदिर में आराधना रखवाई थी. सारा परिवार वहीँ जमा था. में भी वहीँ था और काम में मदद कर रहा था. ताऊ जी ने मुझे कुछ सामान लाने के लिए घर भेजा. जब मैं घर पहुँचा तो वहाँ पर सिर्फ अश्विनी थी. उसके अलावा वहाँ कोई नहीं था. मैं सामान लेने अपने कमरे में पहुँचा तो अश्विनी चुपके से मेरे कमरे केबाहर् खड़ी हो गई. जैसे ही मैं सामान ले कर पलटा की अश्विनी ने अचानक से मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे खींच कर सीधा छत पर ले आई.
मैं उसके संग नहीं जाना चाहता था पर आज उसकी पकड़ ज्यादा मजबूत थी और उसमें ज्यादा ज्यादा ताक़त आ गई थी. छत पर आ कर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और वो घुटनों के बल खड़ी हो गई और अपने दोनों हाथ जोड़ लिए; "प्लीज .प्लीज मुझे क्षमा कर दो!" अश्विनी की आँखें छल-छला गईं थी.
पर मेरा मन तो जैसे पत्थर का हो चूका था. जिस पर उसके रोने का कोई असर नहीं हो रहा था उल्टा गुस्सा आ रहा था; "किस लिए क्षमा कर दूँ? मेरा दिल तोडा उसके लिए? या दोबारा मुझे मेरे ही बेटी से दूर किया उसके लिए?" मैंने गुस्से से कहा.
"सबके लिए.मैंने ज्यादा पाप किये हैं! तुम्हारे दिल के संग खेल खेला. जानते-बूझते तुम्हें ज्यादा दुःख दिया." इतना कहते हुए अश्विनी ने मेरे पांव पकड़ लिए और बिलख-बिलख कर रोने लगी.
मैंने उसके हाथों की पकड़ खोलनी चाही पर उसने मेरा दाहिना पांव अपनी छाती से जकड़ रखा था.
"मैं तुम से ज्यादा प्रेम करती हूँ और तुम्हारे बिना नहीं रह सकती!.मैं तुम्हें अपनी आँखों के सामने किसी और का होता हुआ नहीं देख सकती! प्लीज.एक मौका दो मुझे" अश्विनी ने बिलखते हुए कहा.
उसकी बात सुन करएक समय को मेरा दिल पसीज गया,इसलिये मैंने उसे समझाते हुए कहा; "देख हमारे बीच जो कुछ भी था वो सभी उसी दिन ख़त्म हो गया था जब तूने रक्षित से शादी की थी. अब मैं नितु से प्रेम करता हूँ और वो भी मुझसे ज्यादा प्रेम करती है, हमारी शादी होने वाली हे. अब ये पागलपन छोड़ दे और अपने मन से ये बात निकाल दे की मैं अब दुबारा तुझसे प्रेम कर सकता हु." मैंने दोबारा से अपने पाँव को छुड़ाने की कोशिश की.
"नहीं.पहले भी तुम ने मना किया था की तुम मुझसे प्रेम नहीं करते पर मेरे प्रेम ने तुम्हारे मन में मेरे प्रेम की लौ जला दी थी!इसे बार भी मैं ऐसा कर सकती हूँ.बसएक मौका दे दो!एक आखरी मौका.अबकी बार मैंने कुछ भी गलत किया तो मेरी जान ले लेना.मैं उफ़ तक ना करुँगी!. हम दोनों और साक्षी कहीं दूरएक सुकून भरी जिंदगी जियेंगे! मेरा नहीं तो कम से कम साक्षी का सोचो? इधर से दूर आप उसे कितना प्रेम दे सकोगे? . उसे भी तो अपने पापा का प्रेम चाहिए! कल को वो बोलने लगेगी तो आपको क्या कहेगी?"
अश्विनी की साक्षी वाली बात सुन कर मैं चुप हो गया था. पर मैं नितु के संग ये धोका नहीं कर सकता था.इसलिये मैंने ना में सर हिलाया और अश्विनी की पकड़ से अपना पाँव छुड़ा लिया. मैं नीचे आने को दो ही कदम चला हूँगा की अश्विनी जमीन से उठ खड़ी हुई और बोली; "अपनी हालत याद है न उस दिन क्या हुई थी? क्या कहा था तुमने उस दिन मुझसे?.
'तो बोल तुझे क्या चाहिए? जो चाहिए वो सभी दूँगा तुझे बस मुझे साक्षी से अलग मत कर!'. यही कहा था ना उस दिन .
ठीक है. आज माँगती हूँ.इसे शादी का ख्याल अपने मन से निकाल दो, मिटा दो नितु की सारी यादें और मैं तुम्हें साक्षी दे दूँगी! ये सिर्फ मुँह से नहीं कह रही, बल्कि कानूनी रूप से तुम्हें साक्षी की कस्टडी दे दूँगी! दोबारा बुलवा लेना उसके मुँह से पापा, मैं कुछ नहीं कहूँगी!" अश्विनी ने दोबारा से वही जहरीली हँसी हँसते हुए कहा और मुस्कुराते हुए मेरे सामने से गुजरी.
मैने उसका हाथ बड़ी जोर से पकड़ा और उसे झटके से रोका और पीछे की तरफ खींचा, मेरी आँखें आँसुओं से लाल हो गई थी; "दिखा दी ना तूने अपनी ज़ात! साक्षी के नाम पर नितु की जिंदगी का सौदा करना चाहती है? तू चाहती है मैं भी उसके संग वही करूँ जो तूने मेरे संग किया था? पर मैं तेरी तरह मौका परस्त नहीं हूँ, मैं साक्षी से ज्यादा प्रेम करता हूँ पर उसके लिए मैं नितु को नहीं छोड़ सकता! वो मेरे बिना मर जायेगी.तुझसे कई गुना ज्यादा उससे प्रेम करता हूँ!" मैंने रोते हुए कहा, अगले ही समय मेरे आँसू सूख गए औरएक बाप का प्यारबाहर् आया. मैंने अश्विनी का गाल पकड़ लिया और उसकी आँखों में देखते हुए बोला; "तू अपनी नितंब का जोर लगा दे, देखता हूँ कैसे तू साक्षी को मुझसे अलग रख पाती है!"
मेरे आँखों में गुस्सा देख अश्विनी आगे कुछ नहीं बोल पाई क्योंकि वो भी जानती थी की वो चाहे कुछ भी कर ले वो ताऊ जी के रहते साक्षी को मुझसे दूर नहीं कर सकती थी.
"तेरे पास कोई रास्ता नहीं है! तुझे इसी घर में रहना होगा. तेरी शादी तो उस हत्यकांड के पश्चात होने से रही! इधर रहते हुए तू साक्षी को मुझसे कभी अलग नहीं कर पाएगी!" मैंने अश्विनी की सारी हिम्मत तोड़ दी थी. उसने जो घरवालों का प्रेम जीतने के लिए जो कुछ दिन पहले ड्रामा किया था उसके चलते अब वो बुरी नहीं बन सकती थी वरना ताऊ जी समेत सारे घर वाले उसकी जान ले लेते! इतना कहते हुए मैं मंदिर लौट आया और आराधना में शामिल हो गया.पर मैं ये नहीं जानता था की वो कमिनी स्त्री किसी भी हद्द तक गिर सकती है!
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इधर मैं आराधना में बैठा था और उधर उसने नितु को फ़ोन कर दिया. नितु का नंबर वो पहले ही भाभी के फ़ोन से निकाल चुकी थी और आज उसने अपनी गन्दी चाल चली. "हेल्लो! नितु? मैं अश्विनी बोल रही हूँ!"
नितु अश्विनी की आवाज सुन कर एकदम से चौंक गई और इसके पहले वो कुछ कहती अश्विनी बोल पड़ी; "कैसी स्त्री हो तुम? तुम्हारी वजह से सागर अपनी बेटी को छोड़ कर तुमसे शादी कर रहा है! मैंने उससे आज पुछा की क्या वो साक्षी के संग रहना चाहता है या तुम्हारे संग शादी करना चाहता है तो उसने तुम्हें चुना! शर्म आनी चाहिए तुम्हें, तुमएक बाप को उसी की बेटी से छीन रही हो! वो तुमसे को प्रेम नहीं करता बल्कि वो तुम्हारी जान बचाने के लिए तुमसे शादी कर रहा है!" इतना बोल कर अश्विनी ने कॉल काटा और नितु कोएक व्हाट्सअप्प भेजा जिसमें उसने कुछ देर पहले मेरी कही बात का ऑडियो भेजा. उसने बड़ी ही चालाकी से मेरी "तुझसे कई गुना ज्यादा उससे प्रेम करता हूँ!" वाली बात को काट दिया और बाकी की बात ऐसे के ऐसे ही उसे भेज दी थी.
ये ऑडियो सुन कर नितुएक दम से सन्न रह गई और उसे लगा की मैं उससे कम प्रेम करता हूँ और साक्षी से ज्यादा प्रेम करता हु. मेरेइसे त्याग के बारे में सोच कर नितु टूट गई. वो कतई नहीं चाहती थी की मैं साक्षी को छोड़ूँ बल्कि वो अपने प्रेम की कुर्बानी देने को तैयार हो गई थी! नितु ने फ़ौरनएक मैसेज टाइप किया; "आई एम कॉलिंग दिस वेडिंग ऑफ!" और मुझे भेज दिया.
मैं उस वक़्त आराधना में था तो उसका मैसेज नहीं देख पाया, आराधना रात नौ बजे तक चली और आराधना के पश्चात जब मैंने नितु का मैसेज पढ़ा तो मेरे होश उड़ गए, मैंने उसे कॉल करना शुरुआत किया पर वो फ़ोन नहीं उठा रही थी. मैंने डैडी-मम्मी को कॉल किया तो पता चला की वोबाहर् किसी रिश्तेदार के आये हैं! अब मेरी हालत ख़राब हो गई क्योंकि वहाँ नितु अकेली थी और वो कुछ गलत ना कर लेइसलिये मैंने गोपाल भैया से बाइक की चाभी मांगी. मेरी शक्ल देखते ही वो समझ गए की कुछ तो बात है, "भैया मित्र का एकसिडेंट हो गयाइसलिये मैं लखनऊ जा रहा हु." इतना कह कर मैं बाइक पर बैठा और नितु के घर की तरफ निकल पडा.
४ घंटे का रास्ता मैंने ३ घंटों में पूरा किया, बाइक हवा से बातें कर रही थी और चूँकि मैंने कपडे कम पहने थे सो ठंड से मेरा हाल बुरा था. ये तो मेरे जिस्म में नितु को खो देने का डर था जो मुझे संभाले हुए था वरना इतनी ठंड में बाइक फुल स्पीड से चलाना?!
रात सवा बारह बजे मैं नितु के घर पहुँचा और ताबड़तोड़ घंटियां बजाईं, नितु ने मुझे मॅजिक आय से देख लिया था और वो दरवाजे से अपनी पीठ टिकाये रो रही थी पर दरवाजा नहीं खोल र ही थी. इधर मैंने दरवाजा पीटना शुरुआत कर दिया था. मुझे अभी तक नहीं पता था की नितु दरवाजे से पीठ लगा कर बैठी रो रही हे.
"नितु.प्लीज दरवाजा खोलो.आई नो . तुम घर पर हो.प्लीज."
आखिर नितु बोली; "नहीं.मुझे कोई बात नहीं करनी! इट्स ओव्हर!" नितु ने बड़ी मुश्किल से ये कहा था और उसकी आवाज में दर्द महसूस कर मैं टूटने लगा था.
"प्लीज.तुम्हें मेरे प्रेम का वास्ता! बसएक बार दरवाजा खोल दो! प्लीज." मैंने काँपते हुए कहा क्योंकि ठंड अब जिस्म पर हावी हो चुकी थी.
नितु उठ कर खड़ी हुई, अपने आँसूँ पोछे और दरवाजा खोला और इससे पहले वो कुछ कहती मैं ही उस पर बरस पड़ा: "तुम्हें लगता है की तुम इतनी आसानी से कहोगी की दिस वेडिंग इज ऑफ और सभी कुछ ख़त्म हो जाएगा? आखिर मैंने किया क्या है जिसकी सजा मुझे दे रही हो? तुम अश्विनी की तरह निकलोगी की ये मैं कतई नहीं मान सकता."
मैंने जब ये कहा तो नितु ने अपना फ़ोन निकाला और मुझे वो ट्रिम रिकॉर्डिंग सूना दी! वो सुनने के पश्चात मैं समझ गया की ये किसकी कारस्तान है पर अभ के लिए मुझे नितु को संभालना था.उसे सच से रूबरू कराना था.
"ये पूरी बात नहीं है!" इतना कह कर मैंने नितु को सभी सच बता दिया और नितु आँखें फाड़े सभी सुनती रही; "आपने सोच भी कैसे लिया की मैं ऐसा कर सकता हूँ? ये सभी उस हरामजादी का किया धरा है और आज मैं उसे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा." इतना कह कर मैं पुनः निकलने को पलटा तो नितु ने मेरा हाथ पकड़ लिया और तब उस एहसास हुआ की मेरा पूरा जिस्म बर्फ सा ठंडा हो चूका हे.
"आप ऐसा कुछ नहीं करोगे! वो यही तो चाहती है.गलती मेरी है, मुझे आपसे पहले पूछ लेना चाहिए था! पर मैं नहीं चाहती थी की आप साक्षी के प्रेम से वंचित रहो!" नितु रोते हुए बोली और मुझे अपने गले लगा लिया. उसके गर्म जिस्म का एहसास मुझे मेरे ठन्डे जिस्म पर होने लगा था.
"लीसन टू मी! साक्षी मेरी बेटी है औरइसे बात को कोई झुटला नहीं सकता. मैं उससे प्रेम करता रहूँगा दोबारा चाहे हम इधर रहे या बैंगलोर में! पहले तो मैं सोच रहा था की मैं साक्षी को गोद ले लूँ पर घरवाले इसके लिए कभी नहीं मानेंगे! दोबारा आज नहीं तो कल हमारा अपना बच्चा भी तो होगा ना?! ऐसे ज्यादा से प्रश्न हैं जिनका जवाब अभी ढूंढा नहीं जा सकता, फिलहाल मेरे लिए ये शादी जरुरी है, उसके पश्चात मैं साक्षी के बारे में सोचूँगा!" मैंने कहा और नितु मेरी बात समझ गई. संग ही उसके मन में अश्विनी को सबक सिखाने की आग भी जल उठी!
हम दोनों ऐसे ही गले लगे हुए खड़े रहे और दोबारा थोड़ी देर पश्चात घर से फ़ोन आ गया; "हाँ जी.सब ठीक है जी.कोई घबराने की बात नहीं! जी. मैं सुबह तक निकलता हूँ!" मैंने कहा और ये सुन नितु भी हैरान हो गई.
"घर की आराधना ख़त्म हुई तब मैंने आपका मैसेज देखा और जिस हालत में था उसी हालत में भाग आया. गोपाल भैया से ये कहा की मित्र का एक्सीडेंट हो गया है! उसी के लिए डाँट पड़ रही थी की बता कर नहीं जा सकता था!” मैंने नितु को सच बताया तो उसने कान पकड़ कर मुझे सॉरी कहा! दोबारा उसने कॉफ़ी बनाई जिसे पीने के पश्चात मेरे जिस्म में गर्मी आई.
सुबह ६ बजे तक मैं वहीँ रहा और दोबारा बाइक से निकला, जाते-जाते- नितु ने मुझे अपनी शाल दी ताकि मैं ठंड से स्वयं को बचा पाऊँ. मैं घर पहुँचा और कहानी बना कर सुना दी पर भाभी ने जब शॉल देखि तो वो सभी समझ गई की बात कुछ और हे. कुछ देर पश्चात उन्होंने मुझसे शाल के बारे में पुछा तो मैंनेउन्को ये कहा की हॉस्पिटल के पश्चात मैं नितु से मिलने गया था और उसी ने ये शॉल दी हे. भाभी बस मुस्कुरा दी और चली गईं,
अब अश्विनी मुझसे छुपती दोबारा रही थी. मेरी भी मजबूरी थी की घर में सभी मौजूद थे और उनके सामने मेरा उसे कुछ कहना लाखों प्रश्न खड़े कर देता. हम दोनों चूँकि कई दिनों से बात नहीं कर रहे थे और जब से मैं घर पहुँचा था तब से तो अश्विनी डरी-डरी सी रहती थी. अबइसे पर प्रश्न उठना तो तय था.
"क्यों भाई सागर क्या बात है? जब से हम लोग आये हैं देख रहे हैं की अश्विनी और तुम बात भी नहीं करते? कहाँ तो पहले तुम उसका इतना ख्याल रखते थे, घर-परिवार की मर्जी के खिलाफ जा कर उसे पढ़ा रहे थे! और तो और उसकी शादी में भी तुम विदेश चले गए? क्या नाराजगी है, हमें भी बताओ?" मौसा जी बोले.
"मौसा जी जिस उल्लू को पढ़ाने के लिए इतने पापड़ बेले वो कमबख्त पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर इश्क़-मोहब्बत करती फ़िरे, ऐसे एहसान फरामोश इंसान से क्या बात करना? इधर तक की मैं तो शहर में रहता था. मुझे तकइसे बात की खबर नहीं की ये इश्क़ लड़ा रही हैं! जिस इंसान को मैं हमेशा डाँट से बचाता था वही इंसान जब मुझे सबसे डाँट पड़ रही थी खामोश था. यही नहीं इसने मुझे शादी के लिए रुकने तक को नहीं बोला तो मैं क्यों रुकता? मुझे इतना बढ़िया मौका मिला अमेरिका जाने का, काम सीखने का,एक बिज़नेस से जुड़ने का अपना हमसफ़र चुनने का तो ऐसा मौका मैं कैसे छोड़ देता!"
मेरा जवाब सुन कर मौसा जी बस मुस्कुरा दिए और बोले; "ठीक है बेटा पर अब तो सभी सही हो गया ना? अब तो क्षमा कर दे इसे?!"
"नहीं मौसा जी! इतने कम पाप नहीं किये इसने की इसे माफ़ी दे दी जाए! दोबारा मेरे अकेले के ना बात करने से इसे क्या फर्क पड़ेगा? आप सभी तो हो ना इससे बात करने को?!"
"चलो भाई, जैसी तुम्हारी मर्जी! पर ये बताओ सारा टाइमये कम्प्यूटर ले कर बैठे रहते हो, शादी तुम्हारी है थोड़ा काम-वाम देखा करो!" मौसा जी शिकायत करते हुए बोले पर इसका जवाब ताऊ जी ने ही दे दिया;
"तुम्हें पता भी है ये क्या काम करता है? अमेरिका की कंपनी का काम है ये! वहाँ हमारे देश की तरह लोग छुट्टियाँ नहीं मारते, कमाई डॉलरों में होती है! १ डॉलर मतलब ८३- ८४ रुपये!इसे काम के इसे १ लाख डॉलर मिल रहे हैं!!!!"
ताऊ जी के मुँह से इतनी बड़ी रकम सुन कर सभी के कान खड़े हो गए थे और पूरे घर में मेरी तारीफें शुरुआत हो गई थीं! इधर मुझे अश्विनी की क्लास लेनी थी पर वो किसी न किसी सदस्य के संग चिपकी हुई थी. पर आखिर वो कब तक मुझसे भागती!
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