The Rajsharma Sex Story of अनमोल अहसास (Romance Special)
वह बैग लेकर जैसे ही खड़ी हुई राज बोल पड़ा, " कुछ दूरी पर गाड़ी खड़ी है मेरी, चलो!"
" तो जाइये न, गाड़ी आपकी खड़ी है, मैं क्यों चलूँ? मैं दयनीय हालत में नही हूँ, मुझे मदद नही चाहिए!" डॉली ने कहा औऱ सड़क पर दूसरी ओर देखने लगी!"
राज को जाने क्यों गुस्सा आने लगा था, बारिश में पूरी तरह भींगीइसे लड़की की अकड़ देखने काइसे वक़्त उसका जरा भी मन नही था! यदि कुछ वो चाहता था तो बस इतना की उसे घर पहुंचा दे।
"आखिरी बार कह रहा हूँ चलकर गाड़ी में बैठो!"
" नही बैठूंगी! जाते क्यों नही अब? सूट तो खराब हो ही गया है न मेरी वजह से, अब अपनी ब्रांडेड शर्ट - पैंट भी भींग कर खराब कर रहे हो!"
"चुप! ज्यादा हो गयी बकबक, बकबक!!" राज गुस्से से बरसते हुए बोला, " एटिट्यूड दिखाने का भीएक वक्त होता है! कौन हो तुम.? तीन लड़को को क्या मार लिया, स्वयं को लक्ष्मीबाई समझ रही हो! या दोबारा जेम्स बॉन्ड हो!! कौन हो,
हाँ!!"
डॉली पलक झपकते हुए भौंहे सिकोड़े उसकी आंखों में देखने लगी तो वह डॉली को हिलते न देखकर उसकी कलाई पकड़ते हुए अपनी गाड़ी की दिशा में चल पड़ा, वो इतने लंबे लंबे डग भर रहा था की डॉली को उसके पीछे भागना पड़ रहा था, संग साथ हाथ छुड़ाने की भी कोशिश कर रही थी लेकिन आज राज की पकड़ छूटने वाली नही लग रही थी। राज ने गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए डॉली को अंदर कर दिया और उसके सीट पर से हिलने से पहले ही उसके सामने झुक गया , तो डॉली ने अपना चेहरा पीछे कर लिया , राज उसे देखते हुए बोला, " कोई भी ऐसी वैसी कोशिश मत करना, हर बार तुम्हारा हाथ छोड़ देता हूँ इसका मतलब ये नही की कमजोर हूँ मैं.!! बल्किइसलिये छोड़ देता हूँ क्योंकि तुम्हारे संघर्ष का मान रखता हूँ, बेचारी बनकर न जीने का मान रखता हूँ! स्वाभिमान का मान रखता हूँ! परइसे वक़्तएक भी गलत हरकत बर्दाश्त नही करूँगा! समझ आयी तो ठीक! नही आई तो भी समझ लो की इतनी रात गए तुम्हे इधर अकेले छोड़ने का मेरा कोई इरादा नही है।"
राज ने दरवाजा तेज आवाज के संग बंद कर दिया और दोबारा स्वयं भी दूसरी तरफ से बैठते हुए गाड़ी स्टार्ट कर दी। डॉली कुछ देर उसे घूरती रही तो उसने एकाएक ब्रेक लगाते
हुए डॉली की तरफ देखते हुए कहा, " मुझे न घूरने का क्या लेंगी आप?"
" एंजॉय करना चाहिए न आपको, आखिर मैं देख रही हूँ, यही तो आपको पसन्द हैं न, लड़कियों की अटेंशन.!"
" नही!!" राज ने सामने देखते हुए कठोरता से कहा।
" चाहते क्या हैं आप?"
" तुम्हारे दिल के आशियाने में ठहरना चाहता हूँ।"
" हअं.!!" वह हैरानी से बोली।
राज ने भी उसकी तरफ देखते हुए कहा, " क्या है? क्यों चौंक रही हो? फालतू प्रश्न करोगी तो ऐसे फालतू जवाब ही मिलेंगे! अब मुँह बन्द कर के बैठो!"
राज ने गाड़ी स्टार्ट कर दी तो डॉली ने सॉन्ग ऑन कर दिया,
" कब तक चुप बैठे अब तो कुछ है बोलना,
कुछ तुम कहो कुछ हम बोले ओ ढोलना।
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राज मन ही मन बोला, " जैसी है वैसा ही गाना भी चल गया! चुप तो बैठना ही नही है!"
राज ने अब हाथ बढ़ाकर जैसे ही सांग चेंज किया, " काटे नही कटते ये दिन ये रात, कहनी थी तुमसे जो दिल की बात." चलते ही राज ने फटाफट सॉन्ग ऑफ कर दिया और समय भर को पलक झपकते हुए सामने देखते हुए मन ही मन बोला, " बारिश होते ही एफएम वालो को पता नही क्या हो जाता है?"
डॉली ने दोबारा सॉन्ग ऑन करते हुए चैनल बदल दिया , अब जो सॉन्ग चला वो था-- " जो हाल दिल का इधर हो रहा है, वो हाल दिल का उधर हो रहा है." ये सॉन्ग चलते ही डॉली ने भी अब सॉन्ग चेंज कर दिया और निचले होंठ को दांत से दबाए खिड़की सेबाहर् देखने लगी, राज नेएक बार उसकी तरफ देखकर दोबारा सामने नजर कर ली! क्योंकि अब जो गाना चल रहा था वो था,--
" बरसात के दिन आये, मुलाकात के दिन आये
हम सोच में थे जिनके , उस रात के दिन आये।
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न तुम होश में हो न हम होश में हैं
बहक जाए न तुम संभालो हमें।
गुजारिश यही है तमन्नाओ की
तुम बाजुओं में उठा लो हमें।
राज ने अब सॉन्ग बन्द करने को हाथ बढ़ाया तभी डॉली ने भी हाथ बढ़ा दिया, दोनो के दिल मे सनसनी भर गई जब अनजाने ही दोनो की हथेलियांएक दूसरे को छू गयी। दोनो ने ही बिना देखे हाथ बढ़ाया था और अब उन्होंने अपने - अपने हाथ खींच लिए ,एक दूसरे की तरफ देखा तक नहीराज ने गाड़ी की स्पीड बढ़ाते हुए टर्न लिया तो डॉली फौरन बोली, " ये रास्ता तो आपके घर की तरफ जाता है!"
" हाँ! क्योंकि मैं अपने घर ही जा रहा हूँ!" राज ने सहजता से कहा।
" गाड़ी रोकिए, उतार दीजिये मुझे!" डॉली ने उसकी तरफ देखते हुए कहा तो भी उसने गाड़ी न तो रोकी , न ही स्पीड कम की और बोला, " आपके घर का पता मुझे नही मालूम और न ही ये चाहता हूँ की कल को आप मुझ पर इल्जाम लगाएं की ड्रॉप करने के बहाने आपका ठिकाना जानने की चाल थी मेरी! इसलिएएक ही ऑप्शन बचता है, मैं अपने घर जा रहा हूँ, और आप भी वहीं जा रही हैं!"
" नही! मेरा घर जाना जरूरी है!"
" क्यों जरूरी है, फोन से इन्फॉर्म कर सकती हैं, कर दीजिए।"
" आप धौंस जमा रहे हैं!!"
" अभी तक तो नही!"
डॉली ने फोन निकाला और नम्बर डायल करने लगी, " हैलो!"
" नमस्कार ,मिसेज शर्मा , आप घर पर ही हैं न!"
राज ने अब स्पीड धीमी करते हुए उसकी तरफ हैरानी से देखा और मन ही मन बोला, " ये लड़की!! मुझ पर इसे जरा सा भी भरोसा नही, घर ले जा रहा हूँ तो कन्फर्म कर रही है की घर पर दादी है या नही!! मैं ऐसा पुरुष लगता हूँ इसे, इतना डीसेंट लगता हूँ और ये मुझे लोफर लफ़ंगा समझ रही है!"
डॉली सुभद्रा देवी से फोन पर बात करती रही और राज नाराजगी में गाड़ी चलाता रहा, मन ही मन बोला, " स्वयं
शोना और जाने क्या क्या करती रहती है दोबारा भी मैं इसकी रेस्पेक्ट कर रहा हूँ औऱ ये मेरी इमेज की धज्जियां मेरी ही गाड़ी में मेरे संग ही बैठकर उड़ा रही है।"
गाड़ी घर मे आकर लगी तो डॉली और राज बाहर् आये, डॉली ने फोन पर सुभद्रा देवी को ये नही बताया था कि वो घर आ रही है।बाहर् निकल कर राज आगे चलते हुए बोला, " गेस्ट रूम में चली जाना!"
वह तेज कदमो से आगे बढ़ गया तो डॉली भी पीछे पीछे घर मे आयी और गेस्ट रूम की तरफ बढ़ गयी।
अंदर जाकर गर्म पानी से नहाई और दोबारा वहीं मौजूदएक बड़ी सी शर्ट को बाजू फोल्ड करते हुए पहन लिया, पास में ही नया निक्कर और पजामा हैंगर पर लटके हुए थे, पजामा बहुत बड़ा था तो डॉली ने निक्कर ही पहन लिया औरबाहर् आकर बाल तौलिए से रगड़ कर सुखाने लगी।
राज ने दरवाजे पर नॉक किया तो डॉली उसे देखते हुए बोली, " खुला ही तो है , आ जाते, नॉक क्या करना?"
" बेसिक मैनर है, और आप जैसी लड़की के संग तो और भी ज्यादा जरूरी है इन मैनर्स को फॉलो करना!"
डॉली के हाथ रुक गए और वो तौलिया सोफे पर रखते हुए बोली, " आप जैसी लड़की से मतलब?"
"हह!! मतलब!! जो लड़की मदद करने वाले को लोफर करार दे देती हो , वो और भी ज्यादा कुछ कर सकती है, मैं किस एंगल से आपको लोफर नजर आता हूँ?"
"शक्ल पर किसके लिखा होता है, शरीफ दिखने से शरीफ नहीं हो जाते,एक से एके शरीफ शक्ल वाले धोखेबाज भरे पड़े हैं दुनिया में! और दूसरी बात ये की मैंने ऐसा कुछ नही कहा आपको!"
" सभी कहना ही जरूरी नही होता, न कहते हुए भी लोग ज्यादा कुछ जता देते हैं और दूसरा ये की सूरत भोली होने से कोई भोला नही होता, अब स्वयं को ही देख लो!"
" खराब लोगो के संग तहजीब की मूर्ति बनकर मैं नही रह सकती! जहां गाली लाजिमी हो वहाँ फूल लेकर नही घूम सकती।"
" आज हेल्प कर दी क्योंकि सिचुएशन की डिमांड थी वरना चलती गाड़ी से उतार देता स्वयं की इमेज पर प्रश्न उठाने
वाले को!! मैं भी बर्फ सा दिखता ही हूँ, लेकिन हूँ जलती मशाल!"
" तो मलाल होगा न मुझसे मिलने का क्योंकिइसे जलती मशाल की लपटों को कुछ कम तो मैंने कर ही दिया है।"
" भ्रम है, जल्द ही टूट जाएगा!"
डॉली अब अपनी नींद से अलसाती पलकों को झपकते हुए बोली, " किसी और दिन लड़ते हैं न, अभी ये बताइये की कुछ काम था?"
" हम्म! कपड़ो के लिए ही पूछने आया था, पहन लिए है तो ठीक है!"
" पहन लिए है तो ठीक है से मतलब.! कह तो ऐसे रहे हो जैसे ऑर्डर देकर फौरन मेरे लिए ड्रेस तैयार कराने वाले थे!!" दोबारा धीरे-धीरे से होठो ही होठो में बोली, " अपना सूट तक तो धुलवा नही सकते, मेरे कपड़ो की चिंता हो रही है, हुँह।"
राज ने उसको पकड़कर अपनी तरफ खींचते हुए कहा, " तुम मेरी कोई नही हो! यदि होती तो इतने वक़्त में ड्रेस तैयार करवा चुका होता! समझती क्या हो तुम मुझे? किसी
के बारे में ठीक से जाने बिना उसके बारे में कयास लगाना ठीक नही!"
डॉली उससे छूटने को कसमसाने लगी क्योंकि राज के अचानक खींचने की वजह से उसके हाथ राज के सीने पर थे। फिर भी राज की नजरों में कोई कुटिलता नजर नही आ रही थी, उसकी आंखें स्वभाविक रूप से आकर्षक थी।
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डॉली ने नजर हटा ली तो राज की नजर अनायास उसके होठो की तरफ चली गयी, नरम टेसू के फूल जैसी रंगत वाले होंठ थे उसके, अनछुए से! राज ने फौरन ही नजर हटा ली और मन ही मन बोला, " ढीठ लड़की! अब तक कितनी ही लड़कियों से मिला हूँ , लेकिन जो बात इसमें हैं वो किसी मे नही!"
करीब होने और अभी नहाने की वजह से दोनो की सुगंधएक दूसरे को महसूस हुई, और वो नजर मिलाने से कतराने लगे, डॉली के कोमल मुलायम कमर पर राज के हाथ अब भी मौजूद थे, राज उसे छोड़कर जाने को मुड़ते हुए बोला, "दरवाजा बंद कर लो।"
डॉली ने फौरन दरवाजा बंद कर लिया और पलंग पर लेटी तो राज का चेहरा आँखो के आगे आ गया, " कितना बलवान है ये और निस्संदेह ज्यादा हैंडसम भी है लेकिन घमंडी बदमाश है, भौंहे चढ़ाए लड़ने को तैयार रहता है! पर क्या लग रहा था उस वक़्त बारिश में , भींगी सफेद शर्ट में कसी
हुई मांसपेशियां और तना हुआ सीना, लड़कियाँ तो पागल होंगी ही, इतने फिट एंड फाइन और संपन्न बिजनेसमैन बन्दे को देखकर, जज्बातों बढ़ना तो लाजिमी है इसका!"
डॉली ने नींद से बेझिल पलकों को बन्द करते हुए कहा, " छोड़ न, किसकी तारीफ सोच रही है? पता नही क्या समझता है स्वयं को? हर बात से अकड़ टपकती है! हर बात में आदेशात्मक जज्बातों ही होता है , विनम्रता तो होती ही नही इसके लहजे में!! अब सो जा, मत सोच कुछ भी, सुबह ऑफिस से पहले घर जाना है, विनाश इंतज़ार में होगा!"
उधर राज को आज पहली बार सिगरेट की तलब महसूस हुई , जिंदगी मे कभी धूम्रपान नही किया था उसने पर शायद आज अपनी कुछ ख्वाहिशों को धुएँ में उड़ाना चाहता था वो।
वो खिड़की पर आ गया , बारिश के पश्चात की ठंडी हवाएं औऱ संग मे छिट पुट फुहारे उसके चेहरे और दो खुले बटनों से झांकते सीने के हिस्से पर पड़ने लगी। उसने अपनी आँखें बंद कर ली तो डॉली नजर आयी, ढीली ढाली लम्बी शर्ट और निक्कर में, अपने खुले चमकीले भींगे बालों के संग वो ज्यादा हसीन लग रही थी! राज की नजरें तो बस उस पर थम कर रह जाती लेकिन वो स्वयं को संभालने में माहिर था, कॉलर से झांकती गोरी बेदाग त्वचा और खूबसूरत गर्दन कितनी
आकर्षक है ये लड़की? साधारण से कपड़ो में भी वो बेहद शानदार दिख रही थी, ज्यादा मनोहर, उसकी करीबी कितनी मनभावन थी?"
राज ने तुरन्त अपने ख्यालो को झटका और आंखे खोलते हुए बोला, " किसी के बारे में सोचने के लिएएक उचित कारण होना आवश्यक है, और मेरे पास ऐसा कोई कारण नही है!इसे लड़की में मेरी कोई दिलचस्पी नही और न ही संभावना है क्योंकि ये किसी और के संग है, ये कभी मेरीपस्न्द बन ही नही सकती! ज्यादा बदकिस्मत है ये, क्योंकि जिसके संग है ,उसे ये फिक्र तक नही की ये है कहाँ.!!"
राज के मन मे उस रोज की डॉली की फोन कॉल को याद करते हुए गुस्से कीएक लहर दौड़ गयी, " हुँह! बेबी!! माई फुट.!" कहते हुए अपने गुस्से को जब्त करने की कोशिश में उसने अपने निचले होंठ दाँत से भींच लिए, आँख बंद करके गहरी साँस भरी और दोबारा हल्की मुस्कान चेहरे पर लाने की कोशिश करते हुए लैपटॉप खोलकर बैठ गया।
राज को दोबारा ये बात याद आ गयी की वो इधर से बिना इन्फॉर्म किये चली गयी थी और मिली तब भी कोई सफाई तक नही दी काम छोड़ने के बारे में!
राज ने जग उठाया, पानी पीया और बड़बड़ाया , " घटिया किस्मत उसकी नही, शायद मेरी है तभीएक असभ्य अजनबी लड़की के बारे में सोच रहा हूँ! उसे स्वयं के घर मे उठा लाया हूँ और वो मेरे ही घर मे ठाट से सो रही है।"
राज ने स्वयं को मन ही मन कोसा, " ये आज दोबारा क्यों मिली मुझे? अब तक मुझेइसे बात का गुस्सा है कि मैंने उसे नही निकाला बल्कि ये स्वयं नौकरी छोड़ कर चली गयी, मुझे नीचा दिखाकर चली गयी दोबारा भी मैं क्यों उस वक़्त सभी भूलकर इसकी मदद को चला गया, वो तो स्वयं ही बहुत है न स्वयं के लिए! निपट तो चुकी थी ये उनसे, दोबारा छोड़ देना चाहिए था न इसे वहीं! गुस्सा ही आता है इसकी बातों को याद करके लेकिन उस समय इसकी संग न चलने की जिद पर गुस्सा क्यों आया? क्यों हो रहा है ये सभी जो नही होना चाहिए, मुझे ये सभी जरा भी नही भा रहा।"
राज आकर पलंग पर लेट गया औरएक नॉवेल पढ़ने लगा, कुछ ही देर में उसे नींद आ गयी!
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