The Rajsharma Sex Story of अनमोल अहसास (Romance Special)
उधर राज को पूरी रात नींद नही आई , वह परेशान था की " सुबह नई केयरटेकर आएगी या नही! मुझे उससे कोई दुश्मनी नही है लेकिन आँखे उसे ढूंढती रहती है, ख्याल में भी वो आने लगी है बसइसलिये मुझे उससे दूर जाना है!एक लड़कीइसे तरह मुझ पर, मेरे वजूद पर हावी नही हो सकती।
दादी उसके पास आई औऱ बोली, " वक़्त हो तो बात करना चाहती हूँ!"
"आइये न!"
"नही! अब पूछना जरुरी लगने लगा है! क्या पता कब तुम्हारा ईगो हर्ट हो जाये?"
" दादी प्लीज! आप मेरी दादी हैं और वोएक बाहरी लड़की!! आपकी औऱ उसकी कोई तुलना ही नही।"
" दोबारा आज इतने उद्विग्न क्यों हो?"
"आपके मन का वहम है, क्योंकि मेरा मुझ पर पूरा नियंत्रण है। किसी को देख कर जो मतवाला हो उठे, ऐसा मन नही राज शर्मा का।"
"सब कुछ तुम्हारे हिसाब से ही चलेगा ये मुग़ालता पाल लेना सही नही, क्योंकि कुछ चीजें उपरि वाले के हिसाब से चलती हैं! और मन का क्या है राज , उसे सब्र में रख लेते हो अच्छी बात है.!! लेकिनएक रोज मन बगावत कर उठेगा तो हद से गुजरना पड़ेगा। उसके बिना रहना चाह रहे हो, जिसके बिना रह नही पा रहे।"
"हद से तो गुजरने को तैयार ही हूँ, लेकिन उसे करीब लाने के लिए नही बल्कि उसे स्वयं से दूर करने के लिए! मुझे वो जरा भी पसन्द नही!!"
" जो मर्जी आये, करो! लाये भी तुम ही थी उसे, हटाने का भी अधिकार है! मैं कुछ नही कहूँगी।"
सुभद्रा देवी चली गयी तो राज ने मन ही मन सोचा, " दादी को तो बहुतपस्न्द है न वो! दोबारा भी दादी ने उसे रोकने की कोशिश नही की, क्यों?? इतनी आसानी से इनके मानने की उम्मीद तो बिल्कुल भी नही थी मुझे, खैर ; बढ़िया है।"
उधर दादी अपने बेड पर लेटते हुए बोली, " ज्यादा अजीब हो तुम राज ! लड़कों को जो लड़कीपस्न्द आती है उसे हर तरह से पाने की कोशिश करते हैं, उसे हर वक़्त नजरों के सामने रखने की तरकीबें सोचते हैं.!! औरएक तुम हो , जो लड़की तुम्हारे जहन पर हावी हो रही है उसे स्वयं से दूर करने की तरकीबें सोच रहे हो! खैर, बढ़िया है!! ये दूरियां ही तुम्हे अहसास कराएंगी की चाहे वो सामने रहे या न रहे , तुम उसके प्रति अपनी भावनाओं से दूर नही भाग सकते, दूर होने पर भी वो तुम्हारे अंदर ही रहेगी!
मैंने इसीलिए उस लड़की को हटाने से तुम्हे नही रोका क्योंकि मैं जानती हूँ कि उसकी करीबी से ज्यादा असर तुम पर उसकी दूरी का होगा!! बस इंतज़ार रहेगा अब तो तुम्हारेइसे अहसास को स्वीकार करने का।"
सुबह श्रेया को लेकर विशाल राज के दरवाजे पर खड़ा था, जैसे ही डोरबेल की आवाज आई, सज्जन ने आकर दरवाजा खोल दिया। राज भी हॉल में निकल आया, विशाल के संग लड़की को देखकर उसके मन को तसल्ली मिल गयी।
" सर! ये श्रेया! आपकी दादी की केयर टेकर बनने के तैयार हैं।"
" ठीक है! संतोष सारे दिन का टाइम टेबल समझा देना इन्हें, औऱ हाँ! मिस श्रेया , किसी भी काम मे कोई कोताही नही होनी चाहिए वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा। दादी के मामले में मैं जरा भी रियायत नही बरतता।"
"मेरी पूरी कोशिश रहेगी की आपको शिकायत का मौका न दूँ!"
"गुड!" राज ने कहा और जाने को मुड़ा लेकिन नजर बार बार दरवाजे की तरफ उठ रही थी, "आयी क्यों नही आज ये लड़की अभी तक? मुझे उसके चेहरे के जज्बातों देखने थे, जब उसे इधर से हटाया जाता!"
राज मन मसोस कर रह गया, जब बहुत देर पश्चात भी वह नही आई और न ही उसका फोन आया तो राज मन ही मन बोला, "इस लड़की ने मेरे हर मंसूबे पर पानी फेरने की कसम खायी हुई है! नही पहुँचना था तो फोन तो करना चाहिए था न! नौकरी करती है यहाँ, कोई अपना घर थोड़ी है की जब जी चाहा मुँह उठाकर चले आये और जब जी चाहा गायब हो गए.!!"
विशाल वहाँ से चला गया और हॉस्पिटल में डॉली से मिलने गया तो पता चला की वो घर चली गयी है, उसे हॉस्पिटल की गंधपस्न्द नही थी औऱ वो स्वयं को ज्यादा बीमार महसूस कर रही थी।
विशाल ऑफिस चला गया औऱ अपने काम मे लग गया, बीच बीच मे उसे श्रेया के ख्याल आते रहे तो उसने मन ही
मन सोचा, " पता नही उसका कामपस्न्द आया या नही सर को?"
उधर डॉली ने किसी को भी फोन नही किया था, उसे हमदर्दी हासिल करना बढ़िया नही लगता था, जैस्मीन के कहने पर भी वो नही मानी और कहने लगी "पैर टूटना था तो टूट गया, कौन सी बड़ी बात है!! ठीक हो ही जाएगा नएक महीने बाद, दूसरी नौकरी तलाश लूँगी!कौन बताने जाए उस नागफनी को? मैं वैसे भी छोड़ने का मन बहुत वक्त से बना रही थी, ज्यादा जलील करता है वो और स्वयं भी जलील होता है। मिसेज शर्मा ज्यादा प्यारी हैं लेकिन उनकी आंखों में पलता ख्वाब मैं पढ़ सकती हूँ, वो उस नागफनी और मुझे लेकर सपने बुन रही है , ये नही जानती की ये धूमकेतू जिस दिन अपनी सच्चाई बताएगी न, उस दिन उनके सारे ख्याल तहस नहस हो जाएंगे!एक बच्चे की मम्मी से वो अपने इकलौते मोस्ट हैंडसम बैचलर पोते की शादी क्यों कराएंगी? सभी कुछ बुरे तरीके से बर्बाद हो इससे बढ़िया है की टाइमरहते थोड़ी बर्बादी पर ही इसे रोक दिया जाए।"
विनाश स्कूल से घर आया तो जैस्मीन उसके लिए पानी लाने चली गयी, विनाश एकटक डॉली को देखे जा रहा था तो डॉली ने उसे अपने पास आने का इशारा किया! विनाश जल्दी उसके गले मे बाँहे डालकर उसके करीब लेट गया तो
वह बोली, " ऐसे क्या देख रहे थे?"
"मुझे ज्यादा बुरा लग रहा है, आपको कितना दर्द हो रहा होगा!"
" सच बताओ! जो आपके दिमाग मे चल रहा था , वो ये तो नही था!"
"मैं आपके बिना नही रह सकता, आप मुझे छोड़कर तो नही जाओगी? पहले ही मेरे पास बाकी बच्चों की तरह पापा नही है! मैं आपसे कहता नही लेकिन मैं आपसे ज्यादा प्रेम करता हूँ, मुझे आप चाहिए ही चाहिए! आप सबसे अच्छी हो, जब मैं जल्दी जल्दी बड़ा हो जाऊँगा न तो आपके लिएएक बढ़िया सा मित्र लाऊंगा, जो मेरे पापा भी बनेंगे।"
डॉली ने उसे पकड़कर उसके माथे को चूम लिया और बोली, " लव यू बेबी! इतना नही सोचते हैं, जब बड़े होने लगोगे तो आपको सारी बातें स्वयं ही समझ आने लगेगी! मुझे नही चाहिए कोई साथी, मेरे लिए आप हो न!"
"मैं तो हूँ ही! मैं आपको छोड़कर कभी रह ही नही सकता!" विनाश ने अपनी भोली सी आवाज में कहा तो डॉली ने मुस्कुराते हुए अपनी आंखें बंद कर ली।
विनाश ने उससे चिपके हुए मन ही मन कहा, " आप झूठ बोल रही हो मम्मा! टीवी में तो दिखाते है न की सभी अपने अपने मित्र के संग घूमने जाती है समुद्र के पास! आपको भी तो मन करता होगा, मैं तो पता नही कब बड़ा होऊंगा, तब तक आपको यूँ ही कैसे छोड़ दूँ? जस्सी मासी से बात करूंगा कि वो मेरी सुंदर सी मम्मा के लिए सुंदर सा मित्र ढूंढने में मेरी मदद करे, दोबारा मैं भी सबसे कहूँगा की मेरे पापा है ये।"
दूसरी ओर बलजीत कमरे में बैठा सोच में गुम था, " गायब कहाँ हो जाती है ये? पिछली बार तो शहर छोड़कर चली गयी थी , अब इतने वर्ष पश्चात नजर आयी तो मुझे देखकर उसके भागने की जल्दबाजी ने इतना तो साबित कर ही दिया कि वो अब तक मुझे भूली नही है!
उस रोज एक्सीडेंट की वजह से मैं तो भाग गया लेकिन घर पर तो वो दोबारा भी लौटकर आयी ही नही.!! मर गयी क्या.??
लेकिन मरी होती तो उसके घर मातम तो होता न!! वहाँ तो सभी सही ही नजर आ रहा था। चली कहाँ गयी.?"
"जीत.!! कहाँ खोए रहते हो आजकल.? कब से आवाजें दे रही हूँ?" बलजीत की पत्नी शिवी ने कमरे में आते हुए कहा।
"कहीं नही!! ऑफिस के काम की वजह से स्ट्रेस था, कुछ काम हो तो बोलो!" बलजीत ने कहा।
" हम्म! जाओ अंकुश और अंकिता को कहीं घुमा ले आओ? चिड़चिड़े हो गए है घर मे बैठे बैठे!" शिवी बोली।
"ठीक है!उन्को तैयार करो, आता हूँ!"
शिवी चली गयी तो बलजीत निक्कर उतारकर जींस चढ़ाते हुए बोला, " उसी पार्क में ले जाता हूँ, क्या पता उस तरफ दोबारा से नजर आ जाये वो?"
बलजीत अपने जुड़वा बच्चों अंकुश और अंकिता को लेकर पार्क की तरफ निकल गया।
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उधर राज ऑफिस में बैठा था और कलीग्स पर बेवजह ही गुस्सा कर रहा था!! फाइल में जरा सी गलती के लिए पूरे स्टाफ की क्लास लग चुकी थी, सभी आपस मे खुसर फुसर कर रहे थे, " हो क्या गया है सर को? आजकल तो पहले से भी ज्यादा गुस्सा कर रहे हैं! कुछ समझ नही आता कि कब किसे निकालबाहर् करेंगे, और कब किसकी डाँट पड़ेगी?"
राज अपने केबिन में लौट आया था और मीटिंग्स के जरूरी
दस्तावेज देखते हुए उन्हेंएक तरफ को सरका कर यकायक खड़ा हो गया और बोला, "इसे लड़की की इतनी हिम्मत की मेरे इधर से काम छोड़कर चली गयी,,, और इन्फॉर्म तक करना जरूरी नही समझा.!! हिम्मत कैसे हुई उसकी.? कैसे.?
मैं उसे नौकरी से निकालना चाहता था, उसका वो लटका हुआ अपमानित चेहरादेख्ना चाहता था, लेकिन वो.!! वो.! हट साला.!!"
राज ने गुस्से में सभी कुछ नीचे फेंक दिया और टेबल पर हाथ मारते हुए बोला, " वो मुझे नीचा दिखाकर चली गयी!! मुझे.! राज शर्मा को.!! जिसके संग सभी काम करने की दुआएं मांगते हैं, उसकी दी हुई नौकरी को वो लड़की छोड़कर चली कैसे गयी.? कैसे.?इसे तरह उसका चले जाना मेरा अपमान है! मेरा अपमान.!! मेरे दिये पैसों से उसे मतलब नहीं, मेरी हैसियत को वो अपने आगे दो कौड़ी का समझती है! मेरा चार्म उस पर कोई असर नही करता.! कैसी लड़की है जो हर बात से अप्रभावित है.? इतना तटस्थ कोई हो कैसे सकता है.? ठीक नही किया ये तुमने.? ठीक नही किया.!!
मेरी ही चाल को मुझ पर पलट दिया, मैंने सिर्फ सोचा और तुमने कर दिया.!! मैं तुम्हे निकाल कर खुश होना चाहता था, जीतना चाहता था लेकिन तुम स्वयं ही क्विट कर गयी और क्विट करने के बावजूद जीत गयी., मुझे ये
नाकाबिले बर्दाश्त है! मेरी जीत को मेरी हार में तब्दील करके चली गयी।
दिन हो या रात हो.,हर वक़्त तुम्हारे ख्याल ही जहन में घूमते रहते हैं! मुबारक हो मिस डॉली ! मेरा ध्यान मोहित करने में तुमने कामयाबी हासिल कर ही ली.! ज्यादा अच्छे दांव पेंच आते हैं अमीरों को जाल में फँसाने के, लेकिन इधर ये दाव काम नही आएगा क्योंकि हमारा मिलना दोबारा नही होगा! तुम्हारी ये कहानी मुख्तसर ही रह जायेगी, तुम कितना भी आगे बढ़ना चाहो, मैं इसे आगे नही बढ़ने दूँगा!! ध्यान मोहित करना और बात है,,,,लेकिन तुम्हे जिंदगी में स्थान नही दूँगा!"
मेरे जहन मे अस्तित्व बनाने के लिए बधाई,,, लेकिन मेरे जिंदगी मे रहने का अधिकार अभी भी तुमने हासिल नही किया है!! तुम चाहती तो होगी की मैं बावला सा होकर तुम्हे ढूंढता फिरूँ, लेकिन अफसोस की मैं तुम्हे नही ढूंढूंगा! राज शर्मा के आगे पीछे हज़ारों लड़कियाँ घूमती है , वो तुम्हारे पीछे आएगा,,, ऐसा ख्वाब देख भी कैसे सकती हो.? ज्यादा देखी हैं ऐसी सोच वाली लड़कियाँ, लेकिन मैं कभी किसी के पीछे नही गया! न तो तुम बारिश हो.और न मैं वो पौधा, जिसे तुम्हारी जरूरत है, तुम्हारे आने से मैं हरा भरा हो जाऊँगा और न होने से मुरझा जाऊँगा! ऐसा सोचना भी बेवकूफी है.! तुम्हारे आने या चले जाने से मुझे कोई फर्क नही पड़ता! दिमागी गेम खेल रही हो मेरे संग तो खेलो, जीत
हासिल हो जाये तो कहना, मुझे भी ये जंग मंजूर है!!"
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दिन बीत रहे थे, डॉली को नौकरी छोड़े हुए दूसरा महीना ख़त्म होने को आया था,,,,
एक तरफ डॉली को बलजीत ढूंढ कर थक चुका था तो दूसरी तरफ राज के जहन में डॉली अब भी रह गयी थी। वह बात बेबात श्रेया को डाँटता रहता था!
जरा जरा सी गलती पर वो उसे ज्यादा कुछ कहता औऱ श्रेया चुपचाप सिर झुकाए सुनकर सॉरी बोल हट जाती। उसकीइसे हरकत पर राज औऱ बौखला उठता क्योंकि तब उसे डॉली याद आ जाती की ' वो होती तो ऐसे नही जाती, वो होती तो बहस करती.!! वो होती तो बेखौफ मेरी निग़ाहों में देखती न की यूँ निगाहें झुकाती.! वो होती तो हर बात के पश्चात धड़कन बढ़ती की अगले समय वो बातों से वार करेगी या दोबारा हाथ- पैर- सिर से.!! हर बात को बेदर्दी से काटती औरएक आग धधका देती मन मे.!! उसकी गूढ़ निग़ाहों में मैं उलझकर रह जाता की वो कोई फरेब रच रही है,,,,,, या है ही ऐसी सीधी - साफदिल.??"
आज भी वो श्रेया को डाँटकर जैसे ही अपने कमरे में आया,
सुभद्रा देवी उसके कमरे में चली आयी और बोली,
"क्यों जरा जरा सी बात पर चिढ़ जाते हो?"
"नही मालूम!"
"तो करो आत्म मंथन!"
"कर चुका!'
"फिर भी नही जान पाए!"
"नही!!"
"मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि जान चुके हो इसीलिए और ज्यादा चिढ रहे हो.??"
" जान जाता तो वजह दूर कर देता!"
"वजह ही तो तुम दूर नही करना चाहते! ह्रदय की धड़कनों का जो अधार है , तुम तो उस आधार को ही अपनी अकड़ की वजह से दूर कर बैठे हो!"
"धड़कनों का आधार साँसे होती हैं और साँसे चल रही है।"
" राज शर्मा !! मैंने भी दुनिया देखी है ,, और ये वक़्त भी.,जिससे आप गुजर रहे हैं! आपकी आंखें औऱ चेहरा देखकर बता सकती हूँ आपका दाव उल्टा पड़ गया, यही आप सहन नही कर पा रहे.इसलिए बात बात पर बिगड़ उठते हैं.!!
आप उसे इधर टॉर्चर करने की नीयत से लाये थे, चले थे उसके दिल मे अपने लिए तलब उठाने, लेकिन इधर तो आप ही उसके मोहताज बन गए., और ये बात आप स्वीकार करने से भाग रहे हैं!"
राज अब चिढ़ उठा और बोला, "राज शर्मा किसी का मोहताज नही.!! यदि ऐसा होता तो वोइसे वक़्त मेरे घर मे होती! मैं हर दूसरी लड़की की हसरत में शामिल हूँ.!"
".लेकिन उसकी हसरत में नहीं!! और यही बात आपको कचोट रही है, क्योंकि उसकी हसरत में शामिल होने की आपकी हसरत, हसरत ही रह गयी!!" सुभद्रा देवी उसकी बात काटकर बोली।
"ऐसा कुछ नही.!!" राज ने बात पूरी भी नही की थी तब तक दादी दोबारा बोल उठी, " उसके दिल मे नही उतर पाए
आप.!! उसकी आँखों मे नही बस पाए आप.! हर लड़की को अपनी हैसियत की मिसाल देकर उसकी हद बताते रहे आप, लेकिन उस लड़की ने अपनी हैसियत ऊँची कर ली, आपकी हद में आने से नकार दिया उसने।"
राज अब तल्खी से बोला, " दादी प्लीज!!एक अंजान लड़की के लिए आप मुझसे बहस मत कीजिये! उसकी वजह से मेरे वजूद पर प्रश्न उठाना बन्द कीजिये! मैं जैसा था, वैसा हूँ और वैसा ही रहूँगा,,,,,! न तो मैं जलता सहरा हूँ, और न वो बारिश! जो मैं उसके लिए तरसूंगा.!!"
सुभद्रा देवी अब भी मुस्कुराते हुए बोली, " इतनी बौखलाहट तभी होती है जब मन मे किसी के लिए जज्बातों जाग उठते है.! मन ही मन किसी से कोई रिश्ता जुड़ चुका होता है और उसे हम बयां नही कर पाते.!! जब मन किसी फैसला पर न पहुंचकर मंझधार में फंसा होता है , भावनाओं के ज्वार की वजह से होती है इतनी बौखलाहट.!! वही ज्वारइसे वक़्त आपके अंदर उठा हुआ है औरइसलिये आप हर बात पर चिढ़ उठते हैं! इतना अहंकार किस काम का यदि वो आपकी अंदर ही अंदर खोखला कर दे तो.!!"
" इनफ दादी!! मैं उसके बारे मेंएक शब्द भी नही सुनना चाहता! यदि हमारे बीच बातचीत के लिए सिर्फ यहीएक
टॉपिक बचा है तो बढ़िया है की हम बात ही न करें! दोनो की इज्ज़त बची रहेगी!" राज ये कहकर तेजी से कमरे सेबाहर् निकल गया।
सुभद्रा देवी उसके जाते ही धीमे से बोली, " मेरा शक बिल्कुल सही है, राज उसकी तरफ झुकाव महसूस करने लगा है और यही वजह है की वो इतना चिड़चिड़ा हो गया है। वो समझ नही पा रहा कि क्या करे , क्या न करे.? अहसासों से दूर भागने के लिए उसे भी नीचा दिखाना चाहता था, लेकिन वो बच्ची अनजाने में ही इसे और ज्यादा नाराज कर गयी।
मैं तो बस इसे स्वयं के एहसास समझने के लिए वक़्त देना चाहती थी लेकिन ये अपनी अकड़ के आगे सभी कुछ समझते हुए भी मानने को तैयार नही है! लगता है, मुझे ही अब कुछ करना पड़ेगा!"
पूरे दिन राज घर नही आया ,,,,
शाम को श्रेया विशाल से फोन पर बात करते हुए बोली, " ज्यादा डांटते हैं आपके बॉस मुझे! गलतियां तो हो ही जाती हैं न लेकिन आपके बॉस को सभी परफेक्ट चाहिए,, उनके डांटने की वजह से अब तो ऐसा हो गया है कि वो नजर आ जाते हैं
तो स्वयं ब स्वयं गलतियां भी होनी लगती है! हाथ ही काम नही करते, कभी कुछ हो जाता है तो कभी कुछ।"
विशाल दूसरी ओर से समझाते हुए बोला, "जहां दो महीने संभाल लिया, वहाँ प्लीज कुछ दिन संभाल लीजिये, तब तक मैं ढूंढता हूँ कोई दूसरी केयरटेकर!"
" रहने दीजिए!! जब तक बॉस स्वयं नही कहते काम छोड़ने को, तब तक मैं करूँगी,,,, आखिर इसी काम की वजह से तो मैं आपसे मिल पाई।" श्रेया ने कहा।
"मतलब मेरा मिलना आपके लिए इतना खास है की आप बॉस की डाँट भी सुनने को तैयार है!"
श्रेया सामने से चुप हो गयी तो विशाल दोबारा बोला, " चुप क्यों हो गयी? बोलिये न!!"
"आपके लिए कुछ भी.!!" श्रेया धीरे-धीरे से बोली और कॉल कट कर दिया।
" हैलो.! हैलो.!!" विशाल बोलता रह गया लेकिन श्रेया तो कॉल कट कर चुकी थी! विशाल और श्रेया अक्सर फोन पर बाते कर लिया करते थे, लेकिन औपचारिक ही!! आज
पहली बार था जब श्रेया नेइसे तरह कहा था की विशाल की धड़कने बढ़ गयी थी,,"आपके लिए कुछ भी.!!"
ये चार लफ्ज़ उसे "आई लव यू!" से भी ज्यादा कीमती लग रहे थे।
विशाल के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और वो मन ही मन बोला, " बस यही तो मैं भी मानता हूँ की डॉली जी की वजह से हम मिले,, इसलिए वो भी अब मेरे लिए ज्यादा मायने रखती हैं!उन्को बताऊंगा की हमारी बात आगे बढ़ गयी है तो वह ज्यादा खुश होंगी।"
इधर राज लौट आया था और किचन के दरवाजे तक पानी लेने के लिए आया था कि तभी श्रेया की बात सुनकर चुपचाप अपने कमरे में लौट आया और दरवाजा बन्द करके दोनो हाथ सिर के पीछे दबाए सोफे पर बैठ गया, आंखे बंद कर ली!
"आपके लिये कुछ भी.!!" श्रेया के ये शब्द उसके कानों में गूंजे तो उसने भौंहे सिकोड़ ली और दोबारा आंखे खोलते हुए बोला, " कितनी आसानी से उसने विशाल से ऐसे शब्दों को कह दिया, औरएक वो है, जो कहना तो दूर अपनी निगाहों से भी ये एहसास तक नही कराती की मुझ में कुछ खास है भी!!"
राज उठकर वर्कआउट करने चल दिया और लौटकर आया तो पसीना पोंछते हुए शीशे के सामने खड़ा हो गया,,,,, पीछे उसे डॉली होंठ टेढ़े किये मुँह चिढ़ाते हुए नजर आयी तो वह फौरन गुस्से में पीछे पलटा लेकिन वहाँ कोई नही था।
राज ने तौलिया फेंक दिया औऱ खिड़की पर हाथ जमाते हुए बोला, " दादी जो कह रही हैं वो सही नही हो सकता, है न.?? मैं उसके प्रति कुछ महसूस नही करता! जब कुछ है नही, तो मैं क्यों मानूँ?"
वह नहाने चल दिया औऱ जब लौटकर आया तो उसे कुछ शांति मिली! वह बैठकर कल की मीटिंग की फाइल देखने लगा।
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अगले दिन----
राज की मीटिंग आज दूबे जी के संग थी,,,,
वह मीटिंग के लिए पहुँचा तो मिस्टर राव और मिस्टर राठी अभी तक नही पहुँचे थे! दूबे जी उसे केबिन में बिठाकर कुछ अर्जेंट काम से चले गए थे!
उनके जाते ही राज भी केबिन सेबाहर् निकल आया और
इधर उधर घूमकर ऑफिस देखने लगा! तभी उसके कानों में जानी पहचानी सी आवाज पड़ी,, " मैं बता रही हूँ, आगे की चेयर पर बैठो तो छाता लेकर बैठो, ताकि दुबे जी के थूक के फव्वारों से बच सको!! वरना आराम से भीगो उनके फव्वारों में!"
राज चुपचाप उस ओर देखने लगा,,, जैसे ही वो हल्की सी तिरछी हुई , राज को कोई संदेह नही रह गया! वो डॉली थी!
राज उसे देखते ही गुस्से में जाने के लिए पलटा और मन ही मन बोला, " मुझे बिना इन्फॉर्म किये नौकरी छोड़ दी और इधर काम कर रही है,, लगता है कुछ ज्यादा ही खुशी मिल गयी है! कैसे हँस रही है?"
तभी राज पर मिस कपूर की नजर पड़ गयी और वो आगे बढ़ते हुए बोली,, " मिस्टर शर्मा !! हैलो!"
उसने अपना हाथ बढ़ाया तो भी राज ने अपना हाथ जेब से नही निकाला,, सारी लड़कियों का ध्यान उसी ओर चला गया और वे खुसर फुसर करने लगी,,,
एक बोली, " देख, राज शर्मा इधर हैं!"
दूसरी,,,," ओ माई गॉड! यकीन नही हो रहा!"
तीसरी,,,,"उफ्फ! कितना हैंडसम हैं न!!"
चौथी,,,,"हैंडसम तो ज्यादा लोग होते हैं! ये तो हॉट है!!"
डॉली ने अब पलटकर उस ओरदेख्ना चाहा तो राज ने जान बूझकर उसे दिखाने के लिए मिस कपूर का बढ़ा हुआ हाथ थामते हुए कहा, " हैलो! मिस कपूर.!" और दोबारा बाकी कलीग्स की तरफ देखकर उसनेएक खूबसूरत स्माइल की तो सारी लड़कियाँ उसकी तरफ चल दी!
डॉली की नजर उस पर पड़ी और उसे लड़कियों से घिरा देखकर वो मन ही मन बोली, " ये लड़कियाँ नही सुधरेंगी! इन्होंने हीइसे नागफनी के जज्बातों बढ़ा रखे हैं! घेर कर खड़ी हो जाती हैं , चाहे वो जज्बातों दे या न दे!"
राज आज सबसे मुस्कुराते हुए बात कर रहा था, डॉली वहाँ से चली गयी तो राज भी अपने केबिन में जाने के लिए बढ़ गया।
मीटिंग में राज , दूबे जी के सामने वाली चेयर पर दूसरे छोर पर बैठा, दूबे जी ने कितना भी इंसिस्ट किया आगे अपने पास वाली चेयर पर बैठने को लेकिन राज नही बैठा!
मीटिंग शुरुआत हुई तो सबका ध्यान बातों पर था और आगे की
चेयर पर बैठने वाले दूबे जी के फव्वारों से परेशान थे! राज राहत की सांस लेते हुए सोचने लगा , " बढ़िया हुआ!! उसकी बात कानो में पड़ गयी थी वरना उन लोगो की स्थान मैं वहाँ बैठा ये सभी झेल रहा होता.!!"
"आगे की चेयर पर छाता लेकर बैठना !" इमेजिन करते हुए राज के होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गयी, जिसे राज ने फौरन दबा लिया।
तभी दरवाजा खुला तो डॉली औरएक दूसरा लड़की संग मे अंदर आयी, उनके हाथ मे नाश्ता था!
राज ने उसे अनदेखा कर दिया औऱ फाइल में देखने लगा, डॉली सबके आगे सर्व करने लगी!
डॉली ने जैसे ही राज के आगे सर्व किया राज ने जल्दी हथेली से उसेएक तरफ को सरका दिया औऱ बोला, " हटा लीजिये!"
दूबे जी उसे देखते हुए बोले, " ऐनी प्रॉब्लम शर्मा साहब!"
राज और डॉली नेएक संग उनकी तरफ देखा तो दूबे जी बोले, " चख कर तो देखिए,, डॉली ने स्वयं बनाया है! इनके हाथ के टेस्ट को मान जाएंगे आप!"
राज ने दोबारा भी इंकार कर दिया और बोला, " शुक्रिया दूबे जी, लेकिन यदि ऐसा है तो मुझे अपना टेस्ट नही बदलना।"
डॉली ने नाश्ता उठा लिया और जाने को हुई तो राज ने
नजर हटा ली लेकिन तभी वो नाश्ता राज के उपरि गिर गया तो राज उठ खड़ा हुआ!
बाकी सभी भी चौंक गए!
राज फौरन बोला, " कैसे लोगो को काम पर रखते हैं आप? जिन्हें चलने भी नही आता!! कपड़े खराब कर दिए मेरे!"
"डॉली खड़ी खड़ी देख क्या रही हो? ध्यान से हटाना चाहिए था न!! अब जाओ, इन्हें वॉशरूम दिखा दो, सॉरी बोलो!!" दूबे जी नाराजगी से बोले।
"सॉरी!! आइये सर.! मैं स्वच्छ करने में हेल्प कर देती हूँ।" डॉली ने मन मारकर कहा और गेट सेबाहर् निकल गयी तो राज भी संग मेबाहर् आया और बोला, " ये हरकत जान बूझकर की थी न आपने!!"
डॉली ने अब उसकी तरफ देखते हुए कहा, " खाना आपके लिए था, आपने न सही, आपके कपड़ो ने ही टेस्ट कर लिया! आपको बढ़िया नही लगा?"
" अभी तो सिर्फ सॉरी बुलवाया है! नौकरी से भी निकलवा
सकता हूँ!"
" ऑप्शन तो हर स्थान होते हैं न शर्मा साहब! आपके इधर से काम छोड़ा तो इधर नौकरी कर ली! इधर से छोडूंगी तो कहीं और कर लूँगी! पूरी दुनिया पर तो आपका राज है नहीं!!"
राज अब रुक गया और उसकी तरफ मुड़ते हुए बोला, "शुक्र कीजिये की अभी तक आपको स्वयं से दूर करने की कोशिश की है, क्योंकि जिस दिन आप मे दिलचस्पी जगी न, उस दिन आपको मेरी क्षमता का अंदाजा स्वयं हो जाएगा!"
"आपकी क्षमता का तो पता नही लेकिन हाँ! आज कीइसे सॉरी के बदले आपसे सॉरी न बुलवाया तो मैं डॉली नही!!"
" हाहाहा! सपने ज्यादा हसीन है आपके! पर अफसोस पूरे नही होंगे!" राज अकड़कर बोला।
"वॉशरूम आ गया , आप अंदर जा सकते हैं!" डॉली ने कहा और जैसे ही दूसरी तरफ जाने को हुई , राज ने उसकी कलाई पकड़ ली।
"लगता है पहले की बातें भूल गए हैं आप!" डॉली ने
अपनी कलाई की तरफ देखते हुए कहा तो राज ने हाथ छोड़ दिया औऱ बोला, " सूट की कीमत पता है आपको! आपकी आधे वर्ष की सैलरी लग जायेगी मेरा भुगतान करने में.!! गन्दा करके चल दी, स्वच्छ कौन करेगा?"
"अरे कैसी बात कर रहे हैं सर आप, ऑफ कोर्स मैं करूँगी न!" कहते हुए डॉली ने उसका सूट उतारने में मदद की औऱ दोबारा शर्ट को तौलिए से रगड़ते हुए धीमे से कहा, "इस दौरान कोई दुर्घटना घटी तो जिम्मेदार आप होंगे! क्योंकि आपके मुताबिक मुझे तो कोई शऊर ही नही किसी काम को करने का!"
राज को उसकी बात याद आ गयी की ' छाती के बाल उखाड़ दूँगी' और उसके संग ही उसने अपने सीने पर मौजूद डॉली की कलाई पकड़कर उसे दूर करते हुए , उसके हाथ से तौलिया छीनते हुए कहा, " आप जा सकती हैं! कोई काम आपसे ढंग से करने की उम्मीद नही की जा सकती, मैं स्वयं कर लूँगा!"
"बस यही सुनना था मुझे, की आप स्वयं कर लोगे!" डॉली ने कहा तो राज ने उसकी तरफ घूरकर देखा तभी डॉली ने भी उसकी आँखों मे देखते हुए कहा, " लेकिन ये नही सुनना था की सामने वाली को ये बोलते रहो की 'तुम्हे ये नही
आता!' 'वो नही आता!' 'तुमको कुछ नही आता!!'
क्योंकि मुझे तो सभी आता है., लेकिन बाकी जो औरतें चुपचाप सह लेती हैं न,उन्को भी ये सुनाने का हक नही है आप मर्दों को की तुम्हे कुछ नही आता.!! क्योंकिउन्को जो सहना आता है न, वही सहनशक्ति आपके परिवार के बने रहने की नींव है! सहना छूटा तो परिवार टूटा!!
आप अकड़ में रहोगे और मुझसे बेबस होने की ख्वाहिश करोगे तो नही चलने वाला.!! ज्यादा दृढ़ता से निर्भय होकर जीना सीखा है मैंने ,और किसी को भी मैं स्वयं को डराने या दबाने की इजाजत नही दूँगी!"
राज ने नजर हटाकर अपने शर्ट को स्वच्छ करते हुए कहा, " डराने की तो कोशिश ही नही की मैंने आज तक! लेकिन इतना समझ चुका हूँ की तुम डरोगी किस चीज से!"
डॉली ने उसकी तरफ असमंजस से देखा तो शीशे में ही राज उसकी ओर देखते हुए मुस्कुराकर बोला, "इसे तरह सवालिया निग़ाहों से मेरी तरफ देखने से आपको मैं जवाब नही दे दूँगा, आप जा सकती हैं।"
" नही!! जरा मैं भी तो सुनूं, मैं किस चीज से डर जाऊँगी!"
" इतनी बेताबी क्या है जानने की? यकीन रखिये और वक़्त
आने दीजिये, आपको मैं स्वयं बताऊँगा।"
डॉली चिढ़ा हुआ सा मुँह बनाकर जाते हुए बोली, " हुँह!! एवै ही , पता तो कुछ है नही , बस यूं ही कुछ भी बोलकर उलझाने की कोशिश कर रहा है।"
राज अब कुछ देर बादबाहर् निकलते हुए उसके हाथ मे सूट पकड़ाते हुए बोला, " ये सूट ड्राई क्लीन को दे देना और जब आ जाये तो मेरे घर पहुंचा देना।"
डॉली ने उसको टोकते हुए कहा, " सूट पकड़ाकर चल दिये, पैसे कौन देगा?"
राज अब पलटा और बोला, " ओवर स्मार्टनैस के चक्कर मे गलती आपने की है और पे भी अब आप स्वयं ही करेंगी!"
"तुम न.!!" डॉली ने कुछ कहना चाहा दोबारा रुक गयी तो राज बोला, " आप कुछ कहना चाह रही थी?"
" हाँ!! मैं आपके इधर कुछ दिन काम करके गयी थी, जिसकी पेमेंट मैंने अभी तक नही ली, तो उन पैसों से अपनी ड्राई क्लीन स्वयं करा लेना।" डॉली ने कहा और राज के हाथों में सूट पकड़ाना चाहा तो राज ने अपना हाथ पीछे
खींच लिया और बोला, " आप मेरे इधर से बिना इन्फॉर्म किये काम छोड़कर चली गयी तो सैलरी भी कट हो गयी,एक रूल आपने फॉलो नही किया तोएक रूल मैंने भी तोड़ दिया! अब ये आपकी हेडेक है की आप ड्राई क्लीन कैसे कराती हैं.? और एहसान मानिए की तारीख फिक्स नही की कब लौटाना है. वरना आपको मुसीबत में फँसाने के तरीके ज्यादा हैं मेरे पास लेकिन आप इतनी इम्पोर्टेन्ट नही की अपनी सारी क्षमता का उपयोग आप पर करूँ!"
डॉली चिढ़ते हुए नाराजगी से बोली, "आपएक नम्बर के बेहूदे पुरुष हैं! जरा सी भी सभ्यता तो आप दिखा ही नही सकते! हैं न.??"
राज ने शान से जेब मे हाथ रखते हुए कहा, "क्योंकि आप यही डिजर्व करती हैं, और रही बात सभ्यता की. तो जैसा मैं नही हूँ वैसा बनने का असफल प्रयास भी नही करता! मैं असभ्य हूँ तो हूँ!!"
राज चल दिया तो डॉली पीछे से पांव पटक कर रह गयी।
राज मीटिंग हॉल में लौट गया और डॉली अपने केबिन में! वह गुस्से में बड़बड़ाते हुए बोली, " इसे सबक सिखाने के चक्कर मे बेकार का खर्चा बढ़ गया! ये आया ही क्यों यहाँ, भगवान करे जिस काम के लिए आया है वो काम न बने और इधर से चलता बने!"
राज अपनी जीत पर ज्यादा खुश था और मीटिंग करते हुए दूबे जी के संग डील साइन कर ली। मीटिंग के पश्चात डिनर का भी प्रोग्राम था, बहुत लेट हो गया इन सभी मे औरबाहर् मौसम खराब था! तेज बारिश शुरुआत हो चुकी थी, डॉली भी घर फोन कर चुकी थी और अब जल्दी मेंबाहर् निकलने को हुई तो देखा की बारिश हो रही है! लेकिन जाना तो था ही, वो बारिश में ही स्टैंड की तरफ चल पड़ी।
राज बाहर् निकला और पार्किंग से गाड़ी निकालते वक़्त बारिश देखकर उसे बेवजह ही डॉली याद आ गयी, " चली गयी होगी क्या? लेकिन खाना तो उसका ही बनाया हुआ था! अभी ही निकली होगी! ऐसे मौसम में दूर दूर तक ऑटो भी नजर नही आ रहे!"
डॉली स्टैंड पर खड़ी थी , करीब पूरी ही भींग चुकी थी! लेट होने की वजह से आस पास लड़कियाँ नजर नही आ रही थी , चंद आवारा किस्म के लड़के कुछ दूरी पर खड़े थे और डॉली के भींगे गदराए जिस्म को रुक रुककर निहार लेते!
राज की आती हुई गाड़ी पर डॉली की नजर पड़ी तो वह अंधेरे की तरफ हो गयी ताकि राज उसे न देख सके! राज की गाड़ी वहाँ से गुजरी तो साइड व्यू मिरर में उसे आगे आकर खड़ी होती हुई डॉली नजर आ गयी और उसने गाड़ी की गति धीमी करते हुए पीछेदेख्ना शुरुआत कर दिया! उसके पास खड़े लड़के जब नजर आए तो राज ने अंधेरे में गाड़ी रोक दी और उस मे बैठा उस तरफ देखता रहा, वो लड़के अब कुछ कमेंट करने लगे थे शायद क्योंकि डॉली ने पलटकर गुस्से भरी नजरों सेउन्को घूरते हुए कुछ कहा।
राज की मुठ्ठियाँ स्टेयरिंग पर कस गयी और चेहरे पर नाराजगी के जज्बातों आ गए! वो लड़के उसकी तरफ बढ़ने लगे
तो राज ने दाँत कसते हुए कठोर चेहरा किया और गाड़ी सेबाहर् निकलना चाहा लेकिन तभी देखा की डॉली ने हाथ का पर्स औऱ थैलाएक तरफ को रख दिया और आगे बढ़ते लड़के कोएक घूसा जड़ दिया , संग वाले लड़के आगे बढ़े तो उनमें सेएक को पीछे की तरफ गधे की तरह लात जमाते हुए आगे वाले कि गर्दन पर तिरछी हथेलियों से वार कर दिया गिरते ही कोहनी से उसके जबड़े पर ताबड़तोड़ वार कर दिए!
बारिश में ही खड़ी होकर बाकी दोनो की तरफ बाजू चढ़ाते हुए बढ़ी तो उन्होंने चाकू निकाल लिया और चलाने को हुए तो डॉली ने झुककर वार से बचते हुए हाथ पकड़ लिया औऱ सिर से ही सीने पर वार किया तो चाकू छिटक कर नीचे गिर गया, डॉली ने पलक झपकते ही झपट्टा मारते हुए चाकू उठा लिया औऱ लहराते हुए बोली, " बचना है तो भाग जाओ वरना काटकर रख दूँगी!"
वे सभी भाग गए तभी डॉली के हाथ से पीछे से किसी ने चाकू छीन लिया तो डॉली ने कोहनी मारने के लिए जैसे ही हाथ पीछे किया, राज ने हाथ पकड़कर स्वयं की तरफ खींच लिया और बोला, " इनफ!"
डॉली ने हाथ छुड़ाकर उसे स्वयं से दूर कर दिया और अपना बैग लेने दूसरी तरफ बढ़ गयी तो राज ने रुमाल से चाकू पोंछते हुए उसे दूर फेंक दिया और उसकी तरफ देखने लगा।
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