The Rajsharma Sex Story of अनमोल अहसास (Romance Special)
ऊपर दादी मन ही मन सोचने लगी, "तभी मैं सोचूँ आज ये लड़का इतनी सुबह उठकर किचन में क्या कर रहा है? चेहरा भी आज दमक रहा है! सभी इससे मिलने का नतीजा है! तरसती आँखों को दीदार नसीब हो गया तो खिला खिला तो रहेगा ही।
दूबे जी के इधर लगवाया है विशाल ने , चलो कुछ दिन कर लेने देती हूं वहाँ काम तब चलूँगी अपनी चाल, वरना समझ जाएगी ये इतनी जल्दी हटवाने पर! चलकर जरा राज की खबर लूँ !"
इधर डॉली जल्दी से घर पहुंची तो विनाश को गोद मे
उठाकर प्रेम करते हुए बोली, " कैसा है मेरा बेबी? तन्हा हो गया था न!"
" हाँ! याद आ रही थी आपकी! आपको कितना काम करना पड़ता है न! मैं जल्दी जल्दी बड़ा हो जाऊँगा तो आपको कुछ नही करना पड़ेगा! बड़ा सा घर बनाऊंगा, उसमें रहेंगे हम लोग।"
" हां! पहले पढ़ लिख जाओ तब सारे ख्वाब पूरे करेंगे हम मिलकर!"
" हाँ! अब जा ही रहा था स्कूल, मुझे और मासी को लगा कि आप नही आओगी अब।"
" ऐसे कैसे नही आती मेरी जान? आपको देखे बिना दिन की शुरुआत कैसे करती?"
विनाश मुस्कुरा उठा और डॉली के गाल चूमते हुए बोला, " लव यू मम्मा!"
डॉली ने भी उसके पूरे चेहरे को चूमते हुए कहा, " लव यू बेबी! अब जाओ स्कूल , मैं भी ऑफिस निकलूंगी।"
"ओके! बाए।"
" बाय!"
विनाश को जस्सी ने गाड़ी तक ड्राप कर दिया दोबारा लौटकर बोली, " कहाँ थी जानेमन?"
" नागफनी के घर!"
जस्सी चौकड़ी मारकर उसके पास बैठ गयी और बोली, "वहां? क्यों? दोबारा से वहीं नौकरी मिल गयी!"
" नही यार!" डॉली ने उसे सारी बात बता दी तो जैस्मिन मुस्कुराते हुए बोली, " उसे तो तेरी ज्यादा फिक्र है यार!"
" फिक्र विक्र कुछ नही! बस उसे रौब दिखाने का मौका चाहिए! और ज्यादा फिक्र तो उसे स्वयं के सूट की होगी कि कहीं बारिश में भीगकर पूरा खराब ही न हो जाये ड्राई क्लीन से पहले!"
"तू नही बदलेगी अपना नजरिया! तू मानती नही लेकिन उसके लिए तू मैटर करती है!" जैस्मीन ने कहा।
" कहीं नही, उसका बस चले तो ले जाकर खाई में धक्का दे आये, वो पता नही कब किस बात पर गर्म हो जाता है, आज तो ज्यादा आक्रामक हो रहा था यार! सुबह सुबह झगड़ा करने के मकसद से ही उठा था जैसे वो!"
"यार! यदि वो झगड़ा करता है तो तुम चुप रह लिया करो कभी!"
"आज जिस तरीके की उसने बात की चुप नही रह सकती थी! मैं क्यों सहूं उसका गुस्सा यार! है कौन वो मेरा??"
" कोई नही है दोबारा भी, वो भी तेरा गुस्सा बर्दाश्त कर रहा है! उसकी स्थान कोई और इतना पॉवरफुल बिजनेसमैन होता तो अब तक तुझे गायब करवा चुका होता! वो तुझसे कोई मतलब नही रखता, तेरा घर न जान जाएइसलिये तुझे घर ड्रॉप नही करता! तू समझ रही है, वो जैसा भी है, उसूल का पक्का पुरुष है!"
" छोड़ ये सब! नही करनी उस पर पी एच डी! पैसे दे निकाल कर जो मैंने रखवाए थे!"
" क्यों?"
" उसका सूट ड्राई क्लीन नही करवाना क्या? इतनी जल्दी भूल गयी!"
" महंगे वाले रेस्टोरेंट में विनाश को खिलाने ले जाना था न!!"
" ले जाऊंगी यार! तीनों चलेंगे!"
" मैं नही जाऊँगी! मुझेइसे कुछ दिनों के लिए घर जाना है भाई की सगाई है, तू तो चल नही रही!!"
"सॉरी! पर मैं नही जा सकती काम छोड़कर, कहीं नौकरी से निकाल दिया तो गुजारा मुश्किल हो जाएगा।"
"ठीक है न यार! उदास मत हो! स्वयं ही तूने ज्यादा पैसे वाली स्थान छोड़ दी तो अब मलाल कैसा?"
" कोई मलाल नही! मैं नही भी छोड़ती तब भी नागफनी मुझे निकाल ही देता किसी न किसी रोज, मुझे देखकर उसके माता आ जाती है।"
"हाहाहा!!" जैस्मिन हंसते हुए बोली, " अब जा जल्दी नही तो दूबे जी पर माता आ जाएंगी!"
"बाय!"
डॉली जल्दी से निकल गयी और ऑटो लेकर काम पर चली गयी , ब्रेक में जाकर राज का सूट ड्राई क्लीन को दे आयी और राहत की सांस ली।
डॉली स्वयं ही सोचने लगी, " अब नही झगड़ना इससे, जैस्मिन सही ही कह रही है! बर्दाश्त तो वो भी करता है! दिमाग घूम गया और मुझे कुछ करवा दिया तो विनाश का क्या होगा?"
" दो कॉफ़ी लाइये, केबिन में!!" चलते चलते ही राज ने कहा।
डॉली सोच में होने की वजह से सुन नही पायी और शांत बैठी रही तभी दोबारा आवाज आई , " किन ख्यालों में गुम है?"
डॉली ने अब उस तरफ देखा और बोली , "आपके ही!!"
राज मुस्कुराया और बोला , " ऐसा है??"
" जी नही!" डॉली अब सोच सेबाहर् आई और खड़े होते हुए बोली, " कॉफ़ी केबिन में पहुंच जाएगी।"
"हम्म!" कहते हुए राज आगे बढ़ गया तो डॉली कॉफ़ी बनाते हुए सोच में पड़ गयी, " ये आज दोबारा इधर क्यों है? कहीं मुझे नौकरी से निकलवाने की प्लानिंग तो नही चल रही इसके दिमाग मे.??"
डॉली कॉफ़ी लेकर केबिन तक पहुँची तो उसे राज की आवाज आई, " आपको पता है मैं आज कितना व्यस्त था?"
दूबे जी हंसते हुए बोले, " अरे शर्मा साहब! यदि पांव से परेशान न होता तो स्वयं चला आता, आपको नही बुलवाता!"
" चलें कोई बात नही! काम की बात करते हैं! कहाँ समस्या आ रही है?"
डॉली नॉक करते हुए अंदर चली आयी, कॉफी रखकर वह जल्दी हीबाहर् भी निकल गयी!
राज भी चुपचाप दूबे जी के संग फाइल में लगा रहा।
शाम को डॉली आज पहले ही घर जाने को निकल गयी वह
भी अब राज से टकराहट से बचना चाहती थी।
राज ने जब दूसरी बार कॉफी मंगाई तो शेफाली आयी, राज ने अजनबी कदमों की आहट पर निगाह उठायी और दूसरी लड़की को सामने पाकर नजर हटाते हुए मन ही मन कहा, " वो चली गयी क्या? कुछ ज्यादा ही उतावली नही थी आज जाने को?? होगी भी क्यों नही,एक रात की जुदाई सही नही जा रही होगी! आज वक़्त जो बिताना होगा अपने सो कोल्ड बेबी के साथ!"
राज ने खड़े होते हुए कहा, " दूबे जी अब चलता हूँ! विशाल के हाथ फाइल भिजवा दूँगा कल! अब इच्छा नही हो रही काम करने की, थोड़ा रेस्ट करके आगे का देखूंगा!"
"जैसी आपकी मर्जी!! चलें मिलते हैं फिर!"
" हम्म!" राज ने भी हाथ मिलाया औरबाहर् निकल गया।
वह हाईवे पर रुक गया, हवा से उसका कोट उड़ रहा था, बाल भी अस्त व्यस्त हो रहे थे, हर आती जाती लड़की उसेएक नजर पलटकर जरूर देख रही थी! बेहद आकर्षक लग रहा था वो!
"करीबी लोग और इंतजार!!" सोचते हुए राज का चेहरा कस गया और वह पुनः गाड़ी में बैठते हुए बोला, " कोई भी हो मुझे उससे क्या?"
राज कुछ दूर तक गाड़ी चलाता रहा दोबारा मन मे ख्याल आये तो वह बोला, "जाने क्या है वो? जंगल है या कैदखाना!! जब से मिली है मन उलझकर रह गया है।
"हर वक़्त अनबन है, तकरार है,
दोबारा भी मन मे वही , बस वही, बरखुरदार है।।"
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राज घर आकर कपड़े चेंज करते हुए स्वयं को शीशे मेंदेख्ना लगा, और दोबारा अपने हल्के लंबे बाल सेट करते हुए बोला, " ये लुक ज्यादा जँच रहा है मुझ पर! बाल भी कमाल की चीज है, जरा सा चेंज करो तो स्टाइल और लुक बदल जाता है, वरना ड्रेस तो तकरीबन सबएक जैसी ही होती है।"
वह हॉल में आ गया और सोफे पर बैठा तो गेस्ट रूम की तरफ नजर चली गयी, और संग ही सफेद शर्ट में फोल्डेड बाजुओं के संग डॉली की याद भी!
राज ने आँख बंद कर ली और मन ही मन बोला, " उसका असर क्यों पड़ रहा है मेरी जिंदगी पर? जब मैं पूरी तरह मर्यादित हूँ, उसे मैं अपनी दहलीज पर नही आने देना चाहता
तो क्यों कल्पनाओं में अचानक चली आती है? कहाँ से मेरी मजबूती दरक गयी की वो मन के भीतर चली आयी? राहत भरी जिंदगी में ये उल्कापिंड नामक तबाही कहाँ से चली आई? इसके आने से पहले कितने खूबसूरत मंजर थे मेरी जिंदगी के, कितना सुकून था? हर कोई मेरी तरह बनने के ख्वाब देखता था, लड़कियां दीवानी हुई फिरती थी, मेरेएक नजर पाने का जुनून था उनमें! पर ये.!! ये लड़की सारे सुकून को तहस नहस करने चली आयी, अब मुझे मुझ पर प्रश्न उठाने को मजबूर कर देती है! उसकी नजर में स्वयं के लिए तारीफ ढूँढता हूँ लेकिन मिलता कभी नही! मेरा पासा मुझ पर पलट दिया है, अपनी मनमर्जी करती है वो भी तर्क के साथ, सारा सुकून लूट ले गयी है, लुटेरी कहीं की!!
राज उठा और पलंग पर जाकर सो गया।
कुछ रोज बाद-----
सन्डे का दिन था, राज घर पर ही था! उसे निशानेबाजी का ज्यादा शौक था, आज प्रैक्टिस का मूड था तो रिवॉल्वर स्वच्छ करते हुए वो गेस्ट रूम में गया और ड्रावर खोला तो उसे ड्रावर में जंजीर मिली, राज ने आहिस्ता से उसे हथेली में ले लिया, डबल ए का लॉकेट भी था संग मे! जंजीर टूट गयी थी उस रोज मार पीट में , तो डॉली शायद रखकर भूल
गयी थी।
राज ने पुनः उसे वहीं रख दिया और सोचने लगा, " 'ए' से डॉली तो दूसरे 'ए' से क्या.?? होगा कोई, हुँह!! कोई क्यों .? वही इसका बेबी होगा तभी तो गले मे लटकाए घूम रही है! बढ़िया हुआ टूट गया।"
राज पलंग पर बैठ गया और सोचा, "मर्दों से इसे इतनी नफरत है तो दोबारा जिंदगी में कोई है कैसे? समझ नही आती ये लड़की तो.!! मेरे स्वयं के वजूद पर प्रश्न उठाने को मजबूर कर दिया है इसने, इसे स्वयं से दूर करना चाह रहा था, इतना दूर की ये खो जाए, मेरी जिंदगी में नजर न आये! इसे खोना न खोना तो पश्चात कि बात है, आजकल तो ऐसा महसूस हो रहा है कि स्वयं को ही खो रहा हूँ मैं।"
सुभद्रा देवी सामने आकर बैठ गयी और बोली, "उस रोज डॉली को इधर ले आये, देखकर बढ़िया लगा!"
राज ने अपनी आंख खोलते हुए कहा, " उसके अलावा कोई बात करें दादी?"
" नही!! अब क्या दीवारों से बात करने जाऊंगी? परिवार के नाम पर तुम ही तो हो औऱ तुम भी बात नही करना चाहते! ठीक है भई, बुढापा है! चुपचाप मर जाऊँगी किसी दिन!"
" दादी.!!" राज ने झिड़कते हुए बोला, " कितनी बार कहा है ऐसी बात नही करते! आपको कुछ हुआ तो मैं दीवारों से सर मारूंगा क्या?"
"तो क्यों नही करता शादी? मैं अमरघुट्टी पीकर नही आई हूँ, तबियत ठीक नही रहती, तेरी चिंता तो और ज्यादा मेरी जान की दुश्मन बनी हुई है!"
" क्यों? मैं क्या कोई छोटा बच्चा हूँ की आपको चिंता हो रही है।"
" बच्चा होता तो बात ही क्या थी, चिंता तो इसी बात की है कि बूढ़ा हो गया.!!"
" दादी प्लीज!! अपने अच्छे खासे चार्मिंग पोते को बूढ़ा क्यों कह रही हैं आप?"
सुभद्रा देवी मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली, "ठीक है , मेरा पोता करोड़ो मेंएक है औऱ बढ़िया लगा कि सुधर रहा है।"
"मैं कभी खराब नही रहा!"
"नही! डॉली से तू इतना खार खाये रहता है मुझे उम्मीद नही थी कि उसे घर लाएगा, आखिर तुझे तेरे जज्बात जो छिपाने होते हैं!"
"उसे देखकर जज्बात आ ही नही सकते दादी, तो छिपाने का प्रश्न ही नही उठता! न तो उसे शर्माना है, न घबराना है! किस अदा पर जज्बात जागेंगे दादी.? उल्कापिंड की तरह टूट पड़ने की अदा पर.?? आपको बता दूँ की उल्कापिंड जब पृथ्वी से टकराने वाले होते है तोउन्को दूर हटाया जाता है,इसलिये डॉली नामक उल्कापिंड को मैं अपनी जिंदगी से दूर रखना चाहता हूँ! उसे दूर करने के पीछे कोई जज्बात नही हैं!"
"वो उल्कापिंड नही है! वो प्यारी बच्ची है।"
" आपके लिए नही होगी उल्कापिंड , आपसे स्वीट सी बातें कर लेती है न इसलिए! वरना उसको जो ये नाम दिया है बिल्कुल सटीक है।"
" तुम्हे परेशानी क्या है उससे?"
" उससे.क्यों होगी मुझे परेशानी, क्या वजूद है मेरी जिंदगी में उसका? वो कोई मायने नही रखती मेरे लिए।"
"इतनी ही नफरत है उससे तो अब कुछ रोज से चेहरा क्यों खिला सा है? क्यों उससे मिलने के पश्चात चेहरे परएक अलग ही रंगत बिखरी है, जो अक्सर तुम्हारे चेहरे पर तब होती है ,जब तुम खुश होते हो?"
" मेरी ख़ुशी किसी के चेहरे की मोहताज नही दादी.!! मेरा काम बढ़िया चल रहा है, टेंशन कम है तो चेहरा खिला है! न कि उस लड़की को मिलकर!!"
सुभद्रा देवी उसे देखते हुए बोली, "नकार रहे हो अपने जज्बातों को, मुहब्बत कहकर बताने की चीज नहीं, वो तो किसी के तड़प से स्वयं ही बयां हो जाती है, किसी के नजर न आने पर इतना हम तभी तड़पते है जब किसी से जुड़ चुके होते हैं!!"
"ऐसा है.??"
" हाँ! ऐसा ही है!"
" तो बस इतना की मुझे तड़पा सके इतनी काबिलियत वाली कोई लड़की अभी तक तो मुझे मिली नही.!! न तो मेरी नजर उसे तलाशती हैं औऱ न मुझे उससे कोई मतलब है.!!
और कौन से जुड़ाव, किस तड़प की बात कर रही हैं आप? मैं इतना काबिल हूँ की जिसे चाहूं अपनी जिंदगी में ला सकता हूँ, क्यों तड़पूंगा.??"
सुभद्रा देवी उठते हुए बोली, " तुम्हारी अकड़ जब तक तुम्हारे संग रहेगी तब तक तुम अकेले ही रहोगे क्योंकि कोई जिंदगी में आ भी गयी तो तुम्हारी ये ऊँची नाक उसे स्वीकार करने में छोटी जो हो जाएगी! पता नही क्यों हो तुम ऐसे.?"
" क्योंकि हर लड़की पैसे और रसूख की दीवानी है, मुझे नही चाहिए ऐसी लड़की!"
" जो पैसे की दीवानी नही उसका कौन सा सम्मान कर लेते हो तुम?"
" ऐसी लड़की में बेसिक मैनर्स तक नही! कहीं काम करने काएक तरीका होता है! वो काम करने वाली केयरटेकर थी, मालकिन नही की जब जी चाहा चली आयी और जब जी चाहा चली गयी! इन्फॉर्म करने की जरूरत तक नही समझी।"
"उसने मुझे इन्फॉर्म किया था, लेकिन तुम्हारी ईगो की वजह से तुमने मेरी बात तक नही सुनी!इसलिये मैंने भी नही
बताया!"
" हाँ! बताया होगा न कोई फालतू सा बहाना, और आप उसकी मक्खन सी बातों में आ गयी होंगी! सच तो ये है कि उस लड़की की अकड़ ज्यादा है! उसे समझ आ गया होगा की मैं उसे हटाना चाहता हूँइसलिये अपनी नाक ऊँची रखने के लिए वो स्वयं ही चली गयी।"
"खुद से सभी कुछ एज्यूम करना कब बन्द करोगे राज ? उसकी सहेली की तबियत ठीक नही थी, वो अकेली उसी सहेली के संग रहती है परिवार से अलग! उस रोज तुमने उसे बातें सुना दी और वो गुस्से में यहां से चली गयी लेकिन उसका रास्ते में ही एक्सिडेंट हो गया।"
" सभी झूठ.!!"
" जानती थी कि तुम यकीन नही करोगे लेकिन जानते हो किसकी गाड़ी से एक्सिडेंट हुआ था, विशाल की गाड़ी से!"
"अपना विशाल.??" राज ने हैरानी से कहा।
" हाँ अपना विशाल.!! अब भी कहो कि झूठ है, उस लड़की की टांग टूट गयी, वोएक महीना पलंग से उठ नही सकती
थी! लेकिन उसने मुझे सिर्फ इन्फॉर्म किया , मेरी मदद लेने को मना कर दिया, मदद तो छोड़ो वो अपनी सैलरी तक माँगने नही आई पलटकर! समझ सकते हो की कितना रुपया लगा होगा उसका!"
" अरे भाड़ में गयी सभी बातें! विशाल ऐसा कर कैसे सकता है? उसे तो अभी बताता हूँ!" राज गुस्से से खड़े होते हुए बोला और फोन निकाला तो सुभद्रा देवी ने हाथ से मोबाइल छीनते हुए कहा, " उसकी वजह भी तुम हो!"
राज अब हैरानी से उनका मुँह देखने लगा, " मैं क्यो.?"
" क्योंकि तुमने उसको धमकी दी थी की नई केयरटेकर नही लाया तो नौकरी से निकाल दोगे! वो परेशान था , टेंशन में गाड़ी चला रहा था और उसी वक़्त एक्सिडेंट हो गया। दूबे जी के इधर काम भी विशाल ने ही दिलाया है, उसने इंसानियत निभाई है, क्या बात करोगे उससे? नौकरी से निकालोगे.??"
राज चुपचाप खिड़की पर आकर खड़ा हो गया औऱ आंखे बंद करके चेहरा कस लिया, " कितना कुछ सुनाया है उसे मैंने, पर मुझे बताने में उसका क्या चला जाता? क्यों बताएगी, अकड़ जो है इतनी!!"
दादी चली गयी तो राज ने रिवॉल्वर उठा ली और निशाना लगाने लगा।
डोरबैल बजी तो सन्तोष ने दरवाजा खोला, डॉली दरवाजे पर खड़ी थी!
संतोषएक तरफ हट गया तो डॉली अंदर चली आयी, " मिस्टर शर्मा किधर हैं?"
"बेसमेंट में.!" सन्तोष ने जवाब दिया।
डॉली उधर ही चली गयी और सीढियां उतरी तो राज आहट पाकर पीछे मुड़ा, अधखुले बटनों वाली रॉयल ब्लू शर्ट में राज का कसा बदन बेहद आकर्षक लग रहा था, प्रैक्टिस करते करते करते पसीने की बूंदे जहां तहां ठहर गयी थी, किसी दिलकश मॉडल जैसा लग रहा थाइसे वक़्त वो, मानो किसी पत्रिका के शूट को तैयार हो!
राज ने अपने बालों में हाथ फेरा और बोला, " कारण जान सकता हूँ इधर आने का!"
" आपको निहारने आयी हूँ!" डॉली ने सहजता से भौंहे
चढ़ाते हुए कहा।
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" आपको निहारने आयी हूँ!" डॉली ने सहजता से भौंहे
चढ़ाते हुए कहा।
"ऐसा है.??"
" नही! लेकिन प्रश्न फालतू करेंगे तो जवाब भी फालतू ही मिलेंगे! आपका सूट लायी हूँ, देख लीजिए! पश्चात में मत कहिएगा की ये कमी है , वो कमी है!"
राज ने उसके हाथ से सूट ले लिया और निकालकर देखा तो सूट पूरी तरह परफेक्ट था! उसनेएक तरफ हैंगर पर लटकाते हुए पुनः डॉली की तरफ देखा तब तक वो पलटकर चल दी।
"रुको!!" राज ने पीछे से टोका तो डॉली मुड़ते हुए बोली, " अब क्या घट गया.?"
" आप ठीक हो??"
डॉली का मुँह हैरानी से खुल गया और उसने अपने दाहिने बाएं देखते हुए दोबारा सामने देखकर कहा, " आप मुझसे बात कर रहे हैं??"
" दादी नजर आ रही हैं इधर पर.??"
" नही!!"
" तो जाहिर है जो सामने है उसी से बात कर रहा हूँ!"
डॉली ने आँखे घुमाते हुए मन ही मन कहा, " नागफनी में गुलाब कैसे लग गए, इतना विहंगम दृश्य.!! कुछ गड़बड़ है डॉली , सतर्क रहना जरूरी है! रिवॉल्वर भी लेकर खड़ा है!"
राज उसे चुप देखकर बोला, "उम्म.!! मुझे दादी से पता चला आपके एक्सिडेंट के बारे में तो.!"
". तो दो महीने पश्चात आप हाल पूछ रहे हैं! वोएक महीने की परेशानी थी मिस्टर शर्मा , अभी सभी ओके है, मैं चलती हूँ! कन्सर्न की आदत नही मुझे।"
" मेरी कही बातों से इतना प्रभावित होती हो की एक्सीडेंट करा बैठी??"
डॉली ने बेमन से उससे नजर मिलाई और बोली, "ऑप्शनल लोगो से परमानेंट फीलिंग की उम्मीद करना बेवकूफी होती है.! और मैं बेवकूफ नही! आपकी बातों के
बारे में मैं सोचती तक नही, एक्सिडेंट की वजह आप नही थे।"
" ऑप्शनल लोग.!!" सुनकर राज की मुठ्ठियाँ कस गयी लेकिन गुस्से को रोकते हुए वह बोला,
" आओ निशाना लगाते हैं, जरा देखूँ आपका निशाना!!"
" मैं ऑलरेडी दिखा चुकी हूँ अपना निशाना!"
" एक्सक्यूज मी.!!" राज ने हैरानी से कहा।
डॉली मुस्कुराते हुए बोली, " निशाने बन्दूक से ही नहीं, बातों से भी लगते हैं और आपकी तिलमिलाहट बताती है की मेरा निशाना खराब नही।"
डॉली मुड़ी और उपरि चली गयी, राज गुस्से में निशाना लगाने लगा, "ऑप्शनल लोगो से परमानेंट फीलिंग की उम्मीद नही करती तो मेरी जिंदगी में भी तुम ऑप्शनल ही हो दोबारा परमानेंट मेरे ख्याल में क्यों रहती हो.? क्यों.?"
उधर डॉली उपरि चढ़ते हुए सोचने लगी, " ये सच मे बेहद बढ़िया दिखता है! पर उससे क्या.? रहेगा तो नागफनी
ही! बिना सोचे समझे कुछ भी बोलने वाला बद्तमीज.!"
डॉली उपरि दादी से मिलने चली गयी तो राज भीबाहर् निकल आया, पानी पीते हुए जाकर सोफे पर बैठ गया और उपरि से आती कहकहों की आवाजों को सुनकर चिढ़ता हुआ सा बिजनेस मैगजीन उठाकर पढ़ने लगा।
जब आवाजे आनी शांत हो गयी तो वह उठकरएक तरफ को चला गया, डॉली नीचे उतरी और गेट की तरफ बढ़ी तभी राज की आवाज आई, "एक मिनट!!"
" मत रुक डॉली , ये दोबारा लड़ेगा!" डॉली ने स्वयं के ही
मन मे कहा और कदम बढ़ा दिया लेकिन आगे नही बढ़ सकी क्योंकि उसका हाथ राज ने पकड़कर पीछे खींच लिया था।
वह हाथ छोड़ते हुए बोला, " कानों में कोई प्रॉब्लम हो गयी है क्या?"
" कान सही है मेरे, बस वो आपको नही सुनना चाहते।"
" इतना फालतू वक़्त है भी नही मेरे पास की आपसे गप्पे लड़ाने बैठूंगा।"
" तो क्या किसी मेडल से नवाजने को रोका है मुझे?"
राज ने उसकी हथेली पर जंजीर और लॉकेट रखते हुए कहा, " मैं भी अपने घर मे ऑप्शनल लोगो की चीज परमानेंट नही रख सकता.!! औरएक सुझाव भी. ऑप्शनल लोगो के घरों में परमानेंट लोगो से जुड़ी चीजे नही रखनी चाहिए! वरना कहीं ऐसा न हो कि आपके सो कोल्ड परमानेंट लोग आपकोएक ऑप्शन की तरह जिंदगी से निकालबाहर् करें!"
डॉली मुस्कुराई और बोली, "ऐसा दिन कभी नही आएगा , आप निश्चिंत रहें।"
राज जाने क्यों दोबारा चिढ़ गया और मन ही मन बोला, " इतना भरोसा.?? कैसे.??" वह दोबारा भी गम्भीरता से बोला, " उम्मीद करता हूँ कि हमारे रास्ते अब कभी न मिले!"
डॉली चहकते हुए बोली, " आपके मुँह में घी शक्कर.!! पहली बार आपने कोई ऐसी बात कही है जिससे मैं सहमत हूँ।"
राज ने दांत पर दाँत चढ़ा लिए और बोला, " स्वयं को क्या समझती हैं, हाँ? लोग मुझसे मिलने को अपॉइंटमेंट लेते हैं और आपइसे तरह का जवाब दे कैसे सकती हैं? ज्यादा समझदार नही समझती स्वयं को.? लेकिन बता दूं की ये नासमझी है जो आप मुझसे उलझ रही हैं!"
डॉली अब हाथ सीने पर बांधते हुए बोली, " मैं मौन ही रहती आयी थी लेकिन अब जवाब देना सीख गई हूँ.!! अपने प्रति हमेशा लापरवाह रही लेकिन अब सिर्फ अपनी परवाह करती हूँ।
समझदार बनकर रहती थी तो जमाने के हिसाब से चलना पड़ता था,इसलिये अब नासमझ बनकर अपने हिसाब से चलती हूँ।
छोड़ दिया है अब किसी और को खोने का डर, अब सिर्फ
स्वयं को खोने से डरती हूँ।
लोगो की नजर में सही बने रहने के लिए ज्यादा कुछ किया लेकिन दोबारा भी गलत ही रही.!! तो अब उनकी नजर में गलत ही बनकर रहना है,इसे तरह कम से कम स्वयं की नजर में तो सही रहती हूँ।
लोगो के लिए जीती थी तो उन्होंने हर कदम रुलायाइसलिये अब अपने लिए जीकरउन्को अपने हँसी से असहनीय चुभन देती हूं।
रिश्ते संभालने में अक्सर औरतें स्वयं को संभालना भूल जाती है, मेरे संग भी यही हुआ, लेकिन आंख तब खुली जब कोई रिश्ता ही अपना नही निकला, तब से सिर्फ स्वयं को संभालना सीख लिया, छोड़ दिया रिश्तों को।
लोगो को तवज्जों देते देते कब हम उन्हे खास बना देते हैं, ये हमे तब पता चलता है जब वो हमें आसानी से उपलब्ध आम चीज समझ लेते हैं,उन्को ये अहसास कराना ज्यादा जरूरी है की हम आसानी से उपलब्ध वस्तु नही है, हम भी उतने ही खास है जितने वो.!! मैंने स्वयं को तवज्जो देकर अपने आपको खास बनाया है और उन तमाम लोगों की हैसियत को आम कर दिया है।"
राज भी जेब मे हाथ रखते हुए बोला, " स्वयं को खास मान लेने से बाकी लोग आम नही हो जाते.!! हाँ यदि मन के वहम से खुश होना हो तो और बात है! जा सकती हैं
आप.!!" कहते हुए राज अंदर चला गया, डॉली भीबाहर् निकल गयी।
राज अंदर आकर शीशे के सामने खड़ा हो गया और बाल सेट करते हुए स्वयं को देखने लगा, " मेरे दीदार करने को उसकी आंखें नही मचलती.? उसके कान मेरी बात नही सुनना चाहते.! पैरएक कदम मेरे संग चलने को तैयार नही.!! इतना कमतर क्यों हूँ मैं उसकी नजरों में.? मेरे दिमाग मे जैसे उसे लेकर इतने सारे अनकहे प्रश्न उठते हैं , क्या कभी उसके मन मे भी उठते है.? जिंदगी की आपाधापी में कभी किसी लड़की के लिए वक़्त नही मिला , ये अचानक ही चली आयी और आते ही सभी बिगाड़कर रख दिया है, कायदे से कोई रिश्ता ही नही, ढंग से जानता तक नही उसे.! लेकिन दोबारा भी दिमाग मे उथल पुथल मचा हुआ है, सारा सुकून स्वाहा हो गया।"
राज ने अपनी जुल्फों को हाथ मारकर फैला दिया और खिड़की पर चला गया।
सुभद्रा देवी तभी कमरे में आती हुई बोली, " चेहरे पर गुस्से का जज्बातों लाकर आँखो में छलकता हुआ प्रेम छिपाना चाहते हैं आप?"
" प्यार.! मैं समझा नही.!! और गुस्सा कौन है?" राज ने पलटकर खिड़की से टिकते हुए कहा।
सुभद्रा देवी मुस्कुराते हुए बोली, " दो दिन वो न नजर आए तो आँखो में बेचैनी नजर आने लगती है, अस्त व्यस्त से नजर आते हो! कभी बाल बनाते हो , कभी बिगाड़ते हो , हर कुछ देर पर शीशा निहारते हो ! क्यों?"
" कम ऑन दादी.!! हर बात को उससे जोड़ना बन्द कीजिये, अब मैं अपने लुक पर ध्यान भी नही दे सकता क्या.?" राज ने चिढ़ते हुए कहा।
सुभद्रा देवी ने जल्दी उसे चुप कराते हुए कहा, " बात मत बनाओ, उसके नजरिये से स्वयं को देखने की कोशिश करते हो, मैं बताती हूँ न, लुक में कोई कमी नही है, एटिट्यूड में कमी हैं।
व्याकुल सी आँखे और अधीर मन लिए घर मे इधर उधर चहलकदमी करने से बढ़िया है कि उससे ढंग से साधारण सी बात ही कर लिया करो।"
" दादी बस भी कीजिये न, हर वक़्त उसकी बातें क्यों? आप जानती क्या हैं उसके बारे में.?"
" तो आप क्या जानते हैं उसके बारे में.?"
" कुछ नही जानता लेकिन इतना जानता हूँ कि उसकी जिंदगी में कोई है , उसे जबरदस्ती मुझ पर थोपने की कोशिशें मत कीजिये! फालतू ख्वाब सजाएँगी और पश्चात में मुँह लटका लेंगी।"
" किसने कहा कि उसकी जिंदगी में कोई है?"
" मैं कह रहा हूँ.! इतना बहुत नही है.!!"
" नही.!!"
" तो अपने ख्वाब अपने तक रखिये मुझे मत घसिटिये उनमें.! दोबारा भी इतना कहूंगा की उसके बारे में मत सोचें, हम दोनों के लिए बढ़िया होगा। यथार्थ के धरातल पर ही रहना चाहिए, किसी अंतहीन इंतजार से बढ़िया है उस सफर पर निकला ही न जाये!"
राज आगे बढ़ते हुए बोला, " आइये नीचे, आज आपको अपने हाथों से कुछ स्पेशल बनाकर खिलाता हूँ।"
राज नीचे चला गया तो सुभद्रा देवी सोच में पड़ गयी, "
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