The Romance Sex Story of फ़िर से
अपडेट 5
‘किसी दिन बनूँगी मैं राजा की रानी. ज़रा दोबारा से कहना
बड़ी दिलरुबा है ये सारी कहानी. ज़रा दोबारा से कहना’
सुबह अजय की आँखइसे गाने की आवाज़ पर खुली।एक टाइमथा, जब ये गीत ज्यादा प्रसिद्ध था, और अजय को भी बहुतपस्न्द था! लेकिनइसे फिल्म को आए और गए कई वर्ष हो गए। ज्यादा टाइमपहले! ऐसे में अपना पसंदीदा गीत सुन कर उठना उसको ज्यादा बढ़िया लगा। आज ज्यादा गहरी नींद आई थी - ऐसी जैसी उसने कभी नहीं महसूस की।
और ये तब था जब उसने वो सपना देखा था!
कैसा भयानक सपना था वो!
फिर भीइसे टाइमउसको कितना शांत लग रहा था सभी कुछ! न किसी तरह की उद्विग्नता, और न ही किसी तरह की बेचैनी! आश्चर्य की बात ये थी कि पहले जब उसको डरावने सपने आते थे, तो उसका पूरा बदन पसीने से नहा उठता था। लेकिन आज नहीं! उसने अपनी तकिया को दोबारा से छुआ - हाँ, कोई पसीना नहीं। कमाल है! ऐसा भयानक सपना. ऐसे सपने देख कर कोई भी पुरुष पसीने पसीने हो जाए डर के मारे! लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि उसको कुछ हुआ ही नहीं?
दरअसल दो बातें हुईं - पहली ये कि उसको ऐसा भयानक और डरावना सपना आया और उसके बदन ने परिचित तरीके से प्रतिक्रिया नहीं दी। और दूसरा ये कि ये शायद पहली बार हुआ था कि वो मम्मी की ममता भरी गोद में सोया हो, और उसको ऐसा डरावना सपना आया हो। दोबारा उसने महसूस किया. इन दोनों बातों से इतर भीएक और बात हुई।
अजय का सपना अवश्य ही ज्यादा भयानक था, लेकिन इतनी गहरी और संतोषजनक नींद आई थी उसको, किइसे टाइमगज़ब की ऊर्जा महसूस हो रही थी उसको अपने बदन में। गज़ब की ऊर्जा! जैसे वो किसी अत्याधुनिक स्पा में जा कर कोई यूथ ट्रीटमेंट करवाया हो!
उसने अंगड़ाई भरी - आज हमेशा की तरह उसकी हड्डियाँ भी नहीं कड़कड़ाईं!
कमाल है! उसने सोचा, औरएक गहरी साँस भरी. अद्भुत रूप से उसने अपेक्षाकृत ज्यादा गहरी साँस भरी!
सब ज्यादा अद्भुत सा था आज - जैसे उसका आमूल-चूल परिवर्तन हो गया हो!एक तरह का कायाकल्प!
‘क्या हो रहा है आज!’ उसके मन में ये विचार आए बिना न रह सका।
एक बार और अँगड़ाई ली उसने! पूरा बदन तान दिया, दोबारा भी कोई कड़कड़ाहट नहीं!
‘आह!’ वो खुश हो गया।
फिर उसने महसूस किया कि उसके शिश्न में भारीपन भी था। अभूतपूर्व तो नहीं कह सकते, लेकिन आज उसको ‘मॉर्निंग वुडी’ भी हो रखी है. आख़िरी बार उसको ऐसा कब हुआ था, अब तो याद भी नहीं था उसे। रागिनी ने उसकी ऐसी झण्ड करी थी कि अब तो उसको लड़की देख कर स्तम्भन भी नहीं होता था। मॉर्निंग वुडी भी नहीं। रही सही कसर जेल की सैर ने पूरी कर दी।
उसने चादर हटा कर बड़े ही आश्चर्य से अपने शिश्न को देखा -एक मज़बूत स्तम्भन! आश्चर्य है न - कैसा भयंकर स्वप्न और दोबारा भी बदन मेंइसे तरह की ऊर्जा! अजय का उद्धर्षण बेहद कठोर था। वैसा, जैसा उसको अपने युवावस्था के शिखर पर महसूस होता था! लेकिन, उसके लिंग का आकार? अजय चौंका।
‘ये क्या हुआ?’
उसका शिश्न आकार में अपेक्षाकृत छोटा लग रहा था! वृषण भी छोटे ही लग रहे थे!
क्या शिश्न, क्या वृषण, ये तो पूरा बदन ही ज्यादा हल्का लग रहा था उसको।
‘ये क्या हुआ?’ उसने सोचा, ‘इरेक्शन तो परफेक्ट है, लेकिन साइज़ छोटा. और मेरी जांघें, मेरा पेट! ऐसे कैसे?’
एक रात भर में ही कोई कैसे तीस - पैंतीस किलो वज़न घटा सकता है?
उसका दिमाग चकरा गया। वो उठा और लपक कर उसने कमरे में लगे हुए दर्पण में स्वयं को देखा। और जो उसने देखा, वो अकल्पनीय था।
जो वो उसको दिख रहा था, वो अजय ही था, लेकिन अपनी उम्र से कहीं कम! लगभगएक दशक कम!
वो दृश्य देख कर अजय के बदन में भीषण झुरझुरी होने लगी। अब जा कर उसको डर महसूस हुआ। अब जा कर उसका बदन डर के मारे पसीने से नहा उठा।
‘ये क्या देख रहा हूँ मैं,’ उसने सोचा - आँखें मलीं और स्वयं को दो थप्पड़ भी लगाए कि नींद सेबाहर् निकले वो। लेकिन दर्पण में दिखने वाला प्रतिबिम्ब नहीं बदला। वो वैसा ही रहा। दर्पण केएक तरफ जिंदगी के तीन दशक पार कर चुका अजय था, और दूसरी तरफ़ वो अजय था, जिसने अभी भी अपने जिंदगी के दूसरे दशक के दरवाज़े पर दस्तख़त भी नहीं दी थी।
“अज्जू बेटे,” इतने में किरण जी की आवाज़ आई।
अजय को साफ़ महसूस हुआ कि मम्मी की आवाज़ नीचे से आई है।
‘नीचे से?’ वो चौंका, ‘नीचे से मम्मी की आवाज़ कैसे आ सकती है?’
वो दोनों तोएक कमरे के फ्लैट में रहते हैं - मम्मी अंदर के कमरे में और वोबाहर् हॉल में सोता है। यही बंदोबस्त है - इतनी ही व्यवस्था कर सका था वो जेल से निकलने के बाद!
“उठ जा बेटे. देर हो जाएगी कॉलेज जाने के लिए.” मम्मी की आवाज़ निकट आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कि वो सीढ़ियों से चढ़ते हुए उपरि आ रही थीं।
‘सीढ़ियाँ?’
अब जा कर वो थोड़ा चैतन्य हुआ! उसने चौंक कर इधर उधर देखा।
‘ये तो. ये तो.’
वो कमरा अभूतपूर्व रूप से परिचित था!
यह कमरा तो उसके पुराने घर में था। प्राचीन घर. मतलब, दिल्ली का! प्राचीन घर, जो उसके माता पिता और ताऊ जी ताई जी ने मिल कर बनवाया था! वो घर, जो उनकी निशानी थी - जिसको वो गँवा बैठा था।
वो दिल्ली पहुँच गया?
कब? कैसे? क्या हो रहा है ये सब?
वो बड़ी ही अजीब सी उधेड़बुन में पड़ गया था - क्या हो रहा है ये, उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
“अज्जू बेटे. उठा नहीं अभी तक?” मम्मी की आवाज़ पास आती जा रही थी, “ये लड़का भी न!”
अजय अभी भी अचकचाया हुआ था, दर्पण के सामने खड़ा हुआ अभी भी सोच रहा था कि वो शायद कोई सपना देख रहा हो! इतने में दरवाज़ा खुला और मम्मी अंदर आ गईं।
“हे भगवान,” वो उसको देख कर बोलीं, “इतना समझाती हूँ और ये लड़का है कि समझता ही नहीं!”
“माँ. क्या.”
“अरे मेरे नंगू बाबा! क्या कर रहा है शीशे के सामने? टाइम का कोई अंदाज़ा है तुझे?” मम्मी दनादन बोले जा रही थीं, “देख कितनी देर हो गई है, बेटे!”
“माँ?”
“क्या मम्मी माँ कर रहा है? ब्रश किया?”
उसने ‘न’ में सर हिलाया।
“तो क्या कर रहा है ऐसे नंगा नंगा शीशे के सामने खड़ा हो कर?”
“अभी अभी उठा हूँ माँ!”
“तो चल! आ जा जल्दी से नीचे। देर नहीं हो रही है कॉलेज के लिए?”
‘कॉलेज?’
“माँ कॉलेज? क्यों?” वो चकराया हुआ बोला।
“नहीं जाना है कॉलेज?”
“मैं क्यों जाऊँगा कॉलेज माँ?” अजय अभी भी सोच रहा था कि वो कोई सपना देख रहा है।
ये सभी हो भी कैसे सकता है?
“क्यों?” मम्मी ने समझाते हुए कहा, “सेशन अभी अभी शुरुआत हुआ है बेटे! ऐसे नागा करना ठीक नहीं है। चल, जल्दी से आ जा!”
‘क्या कह रही हैं माँ!’
“सेशन? काहे का सेशन माँ?” वो अभी भी चकराया हुआ था, “क्या कह रही हैं आप. समझ ही नहीं आ रहा है?”
“कॉलेज नहीं जाना है?” मम्मी ने थोड़ा सख़्त लहज़े में कहा।
उनको पढ़ाई लिखाई में कटौती करना ज्यादा नापसंद था।
“कॉलेज? क्यों मज़ाक करती हो माँ,” अजय ने कहा।
माँ ने उसका कान पकड़ कर कमरे सेबाहर् निकालते हुए कहा, “बस! अब और मज़ाक नहीं! चल तैयार हो जल्दी से! कमल आता ही होगा. औरएक ये लाट साहब हैं कि मस्ती सूझ रही है इनको!”
‘कमल!’
माँ कह रही थीं, “सुन, माया ने नाश्ता तैयार कर दिया है। आधे घण्टे से पहले पहले नीचे आजा. हम वेट कर रहे हैं।”
‘माया?’
कमल उसका बचपन का मित्र था। बचपन - मतलब आठवीं क्लास से।
माया - माया ‘दीदी’ - उसके माता पिता की दत्तक पुत्री थीं।
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अपडेट 6
माया ‘दीदी’ अजय से कोई पाँच वर्ष बड़ी थीं।
वो उसकी सगी दीदी नहीं थीं।
माया दीदी की माँएक नटिन थीं, और उनके पिता का कोई ठिकाना या कोई ज्ञान नहीं था किसी को। अजय के माता पिता अक्सर सड़क पर माया और उनकी मम्मी को नटों वाला खेल तमाशे दिखाते हुए देखते थे। अनेकों खेल तमाशे - जैसे कलाबाज़ियाँ दिखाना, आग के वृत्त में से कूद फाँद करना, मुँह से ही किसी बेढब चीज़ को सम्हालना,एक छोटे से पहिए पर बैलेंस बनाना इत्यादि!एक बार अचानक ही वो दोनों सड़क पर दिखने बंद हो गए, तो उनको लगा कि शायद नटों का डेरा उठ गया वहाँ से। लेकिन कुछ दिनों पश्चात उनको दोबारा से माया दिखी। पूछने पर माया से ही उनको पता चला कि कोई सप्ताह भर पहले रस्सी पर चलने वाला तमाशा दिखाते हुए माया की मम्मी कोई चौदह फुट की ऊंचाई नीचे गिर गईं। और कोई चोट होती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन बदकिस्मती ऐसी कि वो सर के बल गिरीं, और उस दुर्घटना में उनकी गर्दन टूट गई।
एक अकेली, निःसहाय, लेकिन जवान लड़की कीइसे समाज में क्या दुर्दशा हो सकती है, ये सभी जानते हैं! कोई बड़ी बात नहीं थी कि कल वो वेश्यावृत्ति के काले संसार में फंस जाती! और न जाने क्या आकर्षण हुआ अजय के माता पिता को माया से कि वो उसको अकेली न छोड़ सके।इसलिये अजय के माता पिता, माया को अपने घर लिवा लाए। वोएक टाइमथा और आज का टाइमहै - मायाइसे परिवार का अभिन्न अंग बन गई थी। अवश्य ही वो कानूनी तौर पर उनकी पुत्री न बन सकीं, लेकिन जल्दी ही वो हर मायनों में उनकी पुत्री अवश्य बन गईं।
अजय के माता पिता चाहते थे कि अजय की ही भाँति वो भी पढ़ लिख सके, लेकिनएक उम्र हो जाने पर कुछ लोगों को पढ़ने लिखने का मन नहीं करता। ज्यादा सी बाधाएँ आ जाती हैं। माया के संग भी यही हुआ। उसको स्कूली ड्रेस पहन कर स्कूल जाना अखरता। वैसे भीएक सयानी लड़की यदि नौवीं दसवीं की क्लास में बैठे, तो उसको तो उसको, उसके सहपाठियों को भी अजीब लगता। सभी उसको ‘दीदी’ कहते - आदर से नहीं, चिढ़ाने के लिए! तोइसे तरह कुछ दिन स्कूल में पढ़ने की असफल कोशिश करने के बाद,एक दिन उन्होंने ‘अपने’ माता पिता से कह दिया कि वो स्कूल नहीं जाना चाहतीं। हाँ, पढ़ना अवश्य चाहती हैं।इसलिये घर पर ही रह कर जो पढ़ाई लिखाई हो सके, वो करने को तत्पर हैं. और बस उतना ही करना चाहती हैं।
लेकिन उनकी इच्छा गृहकार्य में निपुण होने की थी, जिससे वो अपने आश्रयदाताओं की देखभाल कर सकें। ये भी ठीक था। ज्यादा टाइमनहीं लगा कि माया दीदी को घर के करीब हर काम करने में निपुणता हासिल हो गई। भिन्न भिन्न तरह के भोजन पकाना, घर को ठीक तरीके से सहेज कर रखना, घर की साज-सज्जा, औरबाहर् पौधों की देखभाल करना इत्यादि उनको बखूबी आ गया था। और इन पाँच सालों में पहले तो अजय की मम्मी प्रियंका, और दोबारा पश्चात में सिर्फ उसकी ताई मम्मी किरण ने होम-स्कूलिंग कर के माया को प्राईवेट से हाई स्कूल और इण्टर दोनों पास करवा दिया।
माया के लिए पूर्व में ये मुक़ाम हासिल कर पाना भी करीब असंभव था। पढ़ना लिखनाएक काम होता है, लेकिनएक स्वस्थ सुरक्षित जिंदगी जी पाना अलग! उसको पहले यकीन ही नहीं हुआ कि कोई संभ्रांत परिवार उसको यूँ अपना सकता है। उसको पहले पहले लगता था कि यदि और कुछ नहीं तो वोइसे घर की नौकरानी बनेगी। वो भी उसके लिए कोई खराब स्थिति नहीं थी। जिस तरह से उसका रहन सहन था, और जिस जिस तरह के लोगों से उसका पाला पड़ता था, उसके हिसाब से किसी बड़े घर की नौकरानी बननाएक अच्छी बात थी। कभी कभी उसको शक़ भी होता कि कहीं घर के दोनों मर्द (अजय के ताऊ जी, अनामि, और उसके पिता जी, अशोक) उसके संग कुछ करना तो नहीं चाहते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उल्टा, दोनों ही उसको बड़े प्रेम से, बड़े आदर से, और अपनी बेटी समान ही रखते।
शीघ्र ही परिवार के शुद्ध प्रेम ने माया की शंकाओं पर विजय प्राप्त कर ली।
लेकिन सभी से इतर, अजय को माया से अलग ही तरह की चिढ़ थी।
बहुत से कारण थेइसे बात के।एक तो ये कि अचानक से घर का एकलौता पुत्र होने का आनंद माया के आने के कारण कम हो गया था। लोग उस पर कम और माया पर ज्यादा ध्यान देते - हाँलाकि ये बात पूरी तरह से गलत थी, लेकिनएक बारह वर्ष का लड़का और क्या सोचे? दूसरा कारण ये था कि उसको अब अपना कमरा माया के संग शेयर करना पड़ता। घर में पाँच कमरे थे -बाहर् के नौकर या चौकीदार का कमरा छोड़ कर।एक एक कमरा तो मम्मी-पापा और ताऊ जी और ताई जी का था।एक कमरा प्रशांत भैया का औरएक कमरा अजय का।एक कमरा गेस्ट्स के लिए था। उपरि नीचे दो हॉल थे, औरएक डाइनिंग हाल था। प्रशांत भैया - अजय के चचेरे बड़े भाई और अनामि और किरण जी के एकलौते बेटे - ने अभी अभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरुआत करी थी, और उनका जिंदगी थोड़ा अलग हो गया था। लेकिन दोबारा भी वो अपना कमरा छोड़ने वाले नहीं थे। उनको ज्यादा गुस्सा आता यदि कोई उनके कमरे में प्रविष्ट भी होता तो! गेस्ट रूम में माया को रखा नहीं जा सकता था। लिहाज़ा, ले दे करएक अजय का ही कमरा शेष था।इसलिये अपना कमरा शेयर करने की मजबूरी से उसको माया से और भी चिढ़न महसूस होती।
माया की ऐसी कोई इच्छा नहीं थी कि वो अजय के ‘क्षेत्र’ में अतिक्रमण करे। वो अपने सर परएक छत्र-छाया पा कर ही धन्य हो गई थी। वो अजय के कमरे में, उससे दूर ज़मीन पर सोती - हाँलाकि प्रियंका जी और किरण जी ने उसको अजय के संग ही सोने को कहा था। दोबारा भी अजय की चिढ़न कम नहीं हुई। कुछ दिन तो ऐसे ही चला, लेकिनएक दिन माया सेएक गुनाह-ए-अज़ीम हो गया। शायद उसने अजय की किसी पसंदीदा वस्तु को छू लिया। मारे गुस्से के अजय ने माया केएक चूची पर इतनी ज़ोर से दबाया (चिकोटी काटी) कि दर्द के मारे उस बेचारी की आँखों से आँसू निकल गए। बदन पर लगी चोट बर्दाश्त हो भी जाती है, लेकिन जो चोट मन पर लगती है, उसका निदान आसान नहीं। बेचारी कोमल दिल वाली माया अगले कई दिनों तक अपने आपको कोसती रही और सोचती रही कि वो ऐसा क्या करे कि ‘बाबू’ (अजय के लिए माया का प्रेम वाला नाम) उससेइसे तरह से नाराज़ न हो।
अवश्य ही वो अजय के दिल में स्थान न बना पाई हो, लेकिन बाकी परिवार के संग वो जल्दी ही घुल-मिल गई। और तो और, अजय आशाओं के विपरीत प्रशांत भैया भी माया को बुरा नहीं कहते थे। उल्टा, वो उसकोपस्न्द भी करते थे। माया में भी अब अंतर आ गया था।एक प्रेम-भरे परिवार की छत्र-छाया में आ कर वो निखर गई, और संभ्रांत और सौम्य भी दिखने लगी। उसका बदन भी सुन्दर तरीक़े से भर गया। कोई उसका प्राचीन जानने वाला उसको देख कर पहचान नहीं सकता था।
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अपडेट 7
अच्छे कामों का बढ़िया नतीजा निकलता है!
माया ने जिस तरह से घर के कामों को अपने सर ले लिया, उससे अजय की दोनों माँओं को अपने अपने पतियों के संग अंतरंग होने के ज्यादा अवसर मिलने लगे।बाहर् के लोगों को आश्चर्य हुआ होगा, लेकिन घर में किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ जब अजय की मम्मी और ताई मम्मी दोनों ही कुछ महीनों के अंतराल परएक बार दोबारा से प्रेग्नेंट हुईं। अजय की मम्मी प्रियंका जी का तो ठीक था, लेकिन उसकी ताई माँ, किरण जी का पुनः प्रेग्नेंट होना उनके पुत्र प्रशांत को बढ़िया नहीं लगा। शायदइसलिये क्योंकि अब वो स्वयं उस उम्र में था कि शादी कर के अपने बच्चे पैदा कर सके। उसके लिए ये ऐसी ख़ुशी की खबर थी, जिस पर वो स्वयं ख़ुशी नहीं मना सका। वैसे भी वो उस टाइमइंजीनियरिंग के आखिरी वर्ष में था और आगे की पढ़ाई के लिए अमरीका जाने की तैयारी में था। अपने टाइमपर ख़ुशियाँ आनी भी शुरुआत हुईं - किरण जी ने अपने नियत टाइमपरएक सुन्दर और स्वस्थ बालक को जन्म दिया। प्रियंका जी को पुनः मम्मी बनने में अभी भी कोई चार महीने शेष थे।
लेकिन दोबारा वो हुआ जिसकी किसी ने विचार भी नहीं करी थी!
एक सड़क दुर्घटना में अनामि जी, उनके नवजात शिशु, और गर्भवती प्रियंका जी की असमय मृत्यु हो गई। गाड़ी के ड्राइवर अनामि जी ही थे। प्रियंका जी उनके बगल ही पैसेंजर सीट पर बैठी थीं। दोनों गाड़ी की टकराहट के भीषण धक्के से तत्क्षण मृत हो गए। किरण जी संयोग से पीछे की सीट पर अपने नवजात के संग बैठी थीं। वो तो बच गईं, लेकिन धक्के में उस शिशु को भी गहरी चोटें आईं। जिससे वो भी भगवान को प्यारा हो गया।
एक खुशहाल परिवारएक झटके में कैसे वीरान हो जाता है, कोई इनसे पूछे!
किरण जी सर्वाइवल गिल्ट के कारण अवसाद में चली गईं। उनके मन में होता कि वो भी अपनी चहेती और छोटी बहन जैसी देवरानी, पति, और नवजात शिशु के संग स्वर्गवासी क्यों नहीं गईं! ऐसे में माया दीदी ने ही उनको दिशा दिखाई।
अपनी मम्मी की मृत्यु के पश्चात न सिर्फ किरण जी ही, बल्कि अजय भी गुमसुम सा रहने लगा था। भयानक टाइमथा वो! अजय के पिता, अशोक जी अपनी पत्नी और अपने बड़े भाई की मृत्यु से शोकाकुल थे; और किरण जी का हाल तो बयान करने लायक ही नहीं था। ऐसे में अजय ही उन दोनों के उपेक्षा से आहत हो गया था। माया दीदी यथासंभव उसकी देखभाल करतीं, लेकिन अजय के मन में वो अभी भीएक बाहरी सदस्य थीं।इसलिये न तो उसको उनसे उतना स्नेह था और न ही उनके लिए उतना सम्मान। लेकिन माया को समझ आ रहा था सभी कुछ! वो स्वयं सयानी थी।एक दिन हिम्मत कर के वो किरण जी के कमरे में गई,
“माँ जी?”
“हम्म?” पुकारे जाने पर किरण जी चौंकी।
“माँ जी.एक बात कहनी थी आपसे.”
“बोल न बेटे. इतना हिचकिचा क्यों रही है तू?”
“छोटा मुँह बड़ी बात वाली बात कहनी है मम्मी जी,” माया ने कहा, “इसलिए डरती हूँ कि कहीं आप नाराज़ न हो जाएँ!”
“बोल बच्चे! तू अपनी है न! बोल।” मम्मी ने उसको दिलासा दिया।
“माँ जी, बाबू की भी हालत ठीक नहीं है,” माया ने कहा - वो अजय को प्रेम से बाबू कह कर बुलाती थी, “आप लोगों की ही तरह वो भी उदास है।”
किरण जी चौंक गईं! बात तो सही थी। अपने अपने ग़म में सभी ऐसे डूबे हुए थे कि उनको अजय का ग़म दिख ही नहीं रहा था।
“वो कुछ दिनों से ठीक से खाना नहीं खा रहा है। मैंने ज्यादा कोशिश करी, लेकिनएक दो निवालों से ज्यादा कुछ खाया ही नहीं उसने।”
“सच में?” किरण जी अवाक् रह गईं।
“सच की दीदी होती उसकी तो जबरदस्ती कर के खिला देती,” कहते हुए माया की आँखों में पानी भर गया।
“हे बच्चे, ऐसा अब आगे से कभी मत कहना! छुटकी (प्रियंका जी) ने तुझे बेटी कहा है। उस नाते तू भी मेरी बेटी है!”
“आपने मुझको इतना मान दिया, वो आपका बड़प्पन है मम्मी जी। लेकिन बाबू आपका बेटा है!” वो हिचकिचाती हुई बोली, “एक बात कहूँ मम्मी जी?”
“बोल न बच्चे?”
“आप. आप उसको मम्मी वाला प्रेम दे दीजिए न.” माया झिझकते हुए कह रही थी, “आप उसको अपने आँचल में छुपा कर अपनी ममता से उसकी भूख मिटा दीजिए.”
क्या कह दिया था माया ने!
बात तो ठीक थी। अपने नवजात शिशु की असमय मृत्यु के पश्चात किरण जी की ममता जिस बात की मोहताज थी, उसका उपाय ही तो बता रही थी माया! और अजय अभी भी ‘उतना’ बड़ा नहीं हुआ है कि अपनी मम्मी के स्तनों से दूध न पी सके.
अचानक से ही किरण जी के मन से अवसाद के बदल छँट गए।
“थैंक यू बेटे,” कह कर किरण जी उठीं, और बोलीं, “तू भी आ मेरे साथ।”
जब दोनों अजय के कमरे में पहुँचीं, तो उसको खिड़की के सामने गुमसुम सा, शून्य को ताकते हुए पाया। किरण जी का दिल टूट गया उस दृश्य को देख कर! सच में - जिस टाइमअजय को उनकी सबसे ज्यादा आवश्यकता थी, उसी टाइमउन्होंने उसका संग छोड़ दिया था। भला होइसे बच्ची माया का, जिसने उनको सही राह दिखा दी!
“बाबू?” माया ने अजय को पुकारा।
अजय अपनी तन्द्रा सेबाहर् निकल आया, “दीदी?”
“अज्जू बेटे,” किरण जी उसके बगल बैठती हुई बोलीं, “मुझे माफ़ कर दे बेटे. ज्यादा बड़ी गलती हो गई मुझसे.”
“माँ.?”
“मेरा बच्चा. तू अब से कभी मत सोचना कि तेरी मम्मी नहीं हैं. मैं हूँ न. तेरी माँ!”
कह कर किरण जी ने अपने स्तनों को अपनी ब्लाउज़ से स्वतंत्र कर लिया, और कहा, “आ मेरे बच्चे. मेरे पास आ.!”
किरण जी की ममता को जो निकास चाहिए था, वो उनको अजय में मिल गया और अजय जिस ममता का भूखा था, वो उसको अपनी ताई जी, किरण जी में मिल गई।
स्तनपान करते हुए जब उसकोएक मिनट हो गया तब किरण जी ने अजय से कहा,
“मेरे बेटू. मैं तुझसेएक बात कहूँ?”
अजय ने मम्मी के चूची को मुँह में लिए ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“जब माया दीदी तुझे खाना खिलने की कोशिश कर रही थीं, तो तूने खाया क्यों नहीं?”
उनकीइसे बात पर अजय निरुत्तर हो गया।
“कहीं ऐसा तो नहीं कि तू उसको अपनी दीदी नहीं मानता?”
उसके मन की बात अपनी ताई जी के मुँह से सुन कर अजय शर्मसार हो गया - बात तो सही थी। ढाई वर्ष हो गए थे माया दीदी को घर आये, लेकिन इतने टाइममें भी वो उनको अपना नहीं सका। माया उसी के संग सोती, लेकिन वो उससे अलग अलग, खिंचा खिंचा रहता। और तो और, बदमाशी में कभी कभी वो उसको लात मार मार कर पलंग से नीचे गिरा देता - लेकिन बहाना ऐसा करता कि जैसे वो स्वयं सो रहा हो। उधर माया पूरी कोशिश करती कि “बाबू” की नींद में खलल न पड़े और वो आराम से सो सके। उसके खाने, पीने, पहनने, ओढ़ने का पूरा ध्यान रखती। स्कूल जाते टाइमकी पूरी व्यवस्था रहती - उसके कपड़े प्रेस रहते, जूते पॉलिश रहते - सभी कुछ व्यवस्थित!
वो कुछ कह न सका। लेकिन अपराधबोध उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था।
किरण जी ने समझ लिया कि बेटे को अपनी गलती का एहसास हो गया है।
वो बोलीं, “अज्जू. मेरे बच्चे, जैसे तू मेरा बेटा है न, वैसे ही माया मेरी बेटी है. जैसे तू मेरा दूध पी रहा है न, वैसे ही माया भी.” कह कर वो माया की तरफ़ मुखातिब हो कर बोलीं, “. आ जा बिटिया मेरी. आ जा.”
अब आश्चर्यचकित होने की बारी माया की थी। उसने ये उम्मीद तो अपने सबसे सुन्दर सपनों में भी कभी नहीं करी थी! किरण जी के ममतामई आग्रह को वो मना नहीं कर सकती थी। वो भी मम्मी के चूची से जा लगी।
आगे आने वाले सालों में ये नए रिश्तेइसे परिवार की दिशा बदलने वाले थे - ये किसी को नहीं पता था।
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