The Romance Sex Story of फ़िर से
खैर माफी चाहता हूं
avsji भाई जी, आप कहानी आगे बढ़ाए, और mods से रिक्वेस्ट है कि मेरे कमेंट्स को जो भीइसे कहानी से संबंधित नहीं है डिलीट कर दिए जाय
Avsji, bohot dino baad yaha Aya or dekha kee aapki nai story chl rahi h. bohot badhiya. Ekdum interesting kahani h. Aapko too mai is forum pr kafi arse say padhta ho.
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अपडेट 3
“अरे. अज्जू बेटे, इतनी जल्दी पुनः आ गए?” अजय की ताई मम्मी - किरण जी - ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।
समय के हिसाब से उसको देर रात तक पुनः पहुँचना चाहिए था।
“. मीटिंग जल्दी ख़तम हो गई क्या बेटे?”
किरण जी - अजय के पिता अशोक जी के बड़े भाई अनामि जी की पत्नी थीं। पूरे परिवार में अब सिर्फ वो ही शेष रही थीं, और वो अजय के संग थीं, पास थीं. लिहाज़ा, वो हर तरह से अजय की माता जी थीं।इसलिये वो भी उनको ‘माँ’ ही कहता था।
“नहीं माँ,” अजय ने जूते उतारते हुए कहा, “हुआ ये कि रास्ते मेंएक एक्सीडेंट हो गया. उसके कारण मैं मुंबई पहुँच ही नहीं पाया!”
“क्या?” मम्मी जल्दी ही चिंतातुर होते हुए बोलीं, “तुझे चोट वोट तो नहीं लगी? . दिखा. क्या हुआ?”
माँ लोगों की छठी इन्द्रिय ऐसी ही होती है - बच्चों के मुँह से रत्ती भर भी समस्या सुन लें, तो उनको लगता है कि अनर्थ ही हो गया होगा।
“नहीं माँ,” कह कर अजय ने मम्मी को पूरी कहानी सुनाई।
“सॉरी बेटे. कि वो बच नहीं सके!” मम्मी ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, “लेकिन, तूने पूरी कोशिश करी. वो ज़्यादा मैटर करता है। . वैसे भी वो बूढ़े पुरुष थे.”
“हाँ माँ,” अजय बोला, “. लेकिन सच में माँ, मुझकोएक टाइममें वाक़ई लग रहा था कि वो बच जाएँगे.”
“समय होता है बेटा जाने का. सभी का टाइमहोता है।” मम्मी ने गहरी साँस भरते हुए कहा, दोबारा बात बदलते हुए बोलीं, “वैसे चलो, ज्यादा बढ़िया हुआ कि तू जल्दी आ गया. मैं भी सोच रही थी कि तेरे पुनः आने तक कैसे टाइमबीतेगा! . अब तू आ गया है, तो तेरीपस्न्द की कच्छी दाबेली बनाती हूँ और अदरक वाली चाय!”
अजय ख़ुशी से मुस्कुराया, “हाँ माँ! मज़ा आ जाएगा!”
कुछ टाइमपश्चात मम्मी बेटा दोनों कच्छी दाबेली और अदरक वाली चाय का आनंद ले रहे थे। अब तो यही आलम थे - ऐसी छोटी छोटी बातों से ही खुशियाँ मिल रही थीं। जेल के अंदर तो. ख़ैर!
चाय नाश्ता ख़तम हुआ ही था कि अजय को पुलिस का फ़ोन आया।
कुछ सामान्य प्रश्नोत्तर के पश्चात पुलिस इंस्पेक्टर ने अजय को उसकी सूझ-बूझ और उस बूढ़े पुरुष की मदद करने के लिए शुक्रिया दिया और ये भी बताया कि उसकोइसे बार डिपार्टमेंट की तरफ़ से “सर्टिफिकेट ऑफ़ अप्प्रेसिएशन” भी दिया जाएगा।एक टाइमथा जब पुलिस नेएक झूठे आपराधिक केस में उलझा कर उसकी और उसके परिवार की इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। औरएक आज का टाइमहै कि वो उसकी अनुशंसा करना चाहते हैं! टाइमसमय का फेर! उसने सोचा औरइसे हास्यास्पद स्थिति पर हँसे बिना न रह सका। मम्मी को भी बताया, तो वो भी उसकी हँसी में शामिल हो गईं - कैसा कठिन टाइमथा वो! इतना कि वो भी उसको याद नहीं करना चाहती थीं।
बाकी का टाइमसामान्य ही रहा।
लेकिन अजय को रह रह कर आज की बातें याद आ रही थीं - ख़ास कर उस बूढ़े प्रजापति की! कैसा दुर्भाग्य था उनका कि बच्चों के होते हुए भी उनको यूँ अकेले रहना पड़ा, और यूँ अकेले ही -एक अजनबी के सामने - अपने प्राण त्यागने पड़े! क्या ही बढ़िया होता यदि बच्चे नहीं, कम से कम उनका कोई हितैषी ही उनके संग होता। दोबारा उसने सोचा कि वो उनका हितैषी ही तो था। उस कठिन टाइममें वो उनके संग था. उनकी प्राण-रक्षा करने का प्रयास कर रहा था। ऐसे लोग ही तो हितैषी होते हैं!
उसको अपने बड़े (चचेरे) भाई प्रशांत भैया की याद हो आई। वो भी तो मम्मी से अलग हो गए! इतने वर्ष हो गए - क्या जी रही हैं या मर रही हैं, कुछ जानकारी ही नहीं है उनको। ऐसा तब होता है जब कोई गोल्ड-डिगर लड़की आती है, और आपको आपके परिवार से अलग कर देती है। वही उनके संग भी हुआ था। बिल्कुल रागिनी के ही जैसी हैं कणिका भाभी! सुन्दर - लेकिन ज़हर बुझी! उनको भैया के घर में सभी से समस्या थी। न जाने क्यों! मम्मी को उनका विवाह सम्बन्धपस्न्द नहीं आया था, क्योंकि उनको कणिका भाभी के परिवार का चरित्र पता था। पुराने सम्बन्धी थे वो - उनके मौसेरे भाई की बेटी थी कणिका भाभी। प्रशांत भैया के अमेरिका जाने केएक वर्ष पश्चात येन-केन-प्रकारेण वो उसी युनिवर्सिटी में पढ़ने गईं, जहाँ भैया थे।
शायद इसी मिशन के संग कि वो उनको फँसा लें। भैया भीएक नम्बरी मेहरे पुरुष थे। फँस गए!
विचारों की श्रंखला में दोबारा उसको अपने दिवंगत पिता की याद हो आई।
क्या राजा पुरुष थे, और किस हालत में गए! उसकी आँखें भर आईं।
“माँ.” रात में सोने के टाइमउसने मम्मी से कहा, “आपके पास लेट जाऊँ?”
“क्या हो गया बेटे?” मम्मी ने लाड़ से उसके बालों को बिगाड़ते हुए कहा, “सब ठीक है?”
“नहीं माँ.” उसने झिझकते हुए कहा, “आज जो सभी हुआ. वो सब. और अब पापा की याद आ रही है. और दोबारा भैया ने जो सभी किया. मन ठीक नहीं है माँ,”
“बस बेटे. ऐसा सभी नहीं सोचते!” मम्मी ने उसको समझाते हुए कहा, “ये सभी किस्मत की बातें हैं! भगवान पर भरोसा रखो. सभी ठीक हो जाएगा!”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
माँ ने मुस्कुराते हुए आगे कहा, “और तुम्हारे पहले क्वेश्चन का आंसर है, हाँ. आ जा! तुमको मुझसे पूछने की ज़रुरत नहीं!”
माँ को पता था कि अजय आज ज्यादा ही डिस्टर्ब्ड था - ऐसा पहले कुछ बार हो चुका था।
अजयएक बढ़िया लड़का था. अपने ख़ुद के बेटे द्वारा उपेक्षित किए जाने के पश्चात अजय ने उनको सम्हाला था, और बिल्कुल अच्छे बेटे की ही तरह बर्ताव किया था। उसके पास बेहद सीमित साधन शेष थे, लेकिन उसने मम्मी की हर आवश्यकता का पूरा ध्यान रखा था। अजय वो बेटा था, जो अपना न हो कर भी अपने से कहीं ज्यादा अपना था! ऐसे बेटे की मम्मी बनना किसी भी स्त्री का सौभाग्य हो सकता है।
“धीरे से आ जा री अँखियन में निंदिया आ जा री आ जा.
चुपके से नयनन की बगियन में निंदिया आ जा री आ जा”
माँ कीइसे लोरी पर अजय पहले तो मुस्कुराने, दोबारा हँसने लगा, “. क्या माँ. मैं कोई छोटा बच्चा हूँ कि मुझे लोरी सुना रही हो?”
“नहीं हो?”
“उह हह,” अजय ने ‘न’ में सर हिलाते हुए, मुस्कुराते हुए कहा।
जब मम्मी से उसने उनके पास लेटने को कहा, तभी वो समझ गईं कि आज ज्यादा भारी भावनात्मक समस्या में है अजय! समस्या ऐसी, जो उसके मन को खाये ले रही है। वो समझ रही थीं कि क्या चल रहा है उसके मन में. ऐसे में मम्मी वही करने लगती हैं, जिसको करने से अजय को ज्यादा सुकून और शांति मिलती है।
“नहीं हो?” मम्मी ने ब्लाउज़ के बटन खोल कर अपनाएक चूची उसके होंठों से छुवाते हुए कहा, “. आज भी मेरा दुद्धू पीते हो, लेकिन छोटे बच्चे नहीं हो!”
अजय ने मुस्कुरा कर मम्मी के चूचक को चूम लिया और अपने मुँह में ले कर पीने लगा। पीने क्या लगा - अब कोई दूध थोड़े ही बनता था, जो वो पीने लगता। लेकिन यहएक अवसर होता था मम्मी के निकट होने का, उनकी ममता के निकट होने का। उसके कारण उसको ज्यादा शांति मिलती थी।
किरण जी जानती थीं कि अजय का मन जब क्लांत होता है, तब स्तनपान से उसको ज्यादा शांति मिलती है। जब वो ज्यादा छोटा था, तब वो और अजय की माँ, प्रियंका जी, दोनों मिल कर अपने बेटों अजय और प्रशांत को बारी बारी से स्तनपान करातीं।इसे परिवार में दोनों बच्चों में कोई अंतर नहीं था. और न ही कभी कोई अंतर किया गया। प्रशांत के स्तनपान छोड़ने के पश्चात से आयुष को दोनों माँओं से स्तनपान करने का एक्सक्लूसिव अधिकार मिल गया था। ख़ैर, दस वर्ष की उम्र तक स्तनपान करने के पश्चात वो बंद हो ही गया।
लेकिन उसकी मम्मी की असमय मृत्यु के पश्चात से किरण जी ने पुनः उसको स्तनपान कराना शुरुआत कर दिया था। उस टाइमपुनः मम्मी बनने के कारण उनको दूध आता था। ये कुछ वर्षों तक चला। उसके पश्चात जब अजय वयस्क हुआ, तो दोबारा ये काम बंद हो गया। लेकिन जेल से छूटने के पश्चात अजय मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहा था। लिहाज़ा, अब जब भी स्तनपान होता, तो वो ज्यादातर मनोवैज्ञानिक कारणों के कारण ही होता। पिछले कुछ वर्षों में उन दोनों के ही जिंदगी में तबाही आ गई थी - अजय के पिता की मृत्यु हो गई, दोबारा उनका कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया, अजय की पढ़ाई लिखाई भी कहीं की न रही, प्रशांत भैया ने भी उन दोनों से सारे रिश्ते नाते तोड़ लिए, दोबारा अजय की शादी ख़राब हो गई, मम्मी - बेटे दोनों दहेज़ के झूठे केस में जेल में रहे. अंतहीन यातनाएँ!
पिछलेएक वर्ष से, जेल से छूट कर आने के पश्चात अब शांति आई है। भारी क़ीमत चुकाई उन दोनों ने, लेकिन शांति आई तो! किरण जी ने ये अवश्य देखा कि कैसी भी गन्दी परिस्थिति क्यों न हो, उनके स्तनों का एहसास पा कर अजय मानसिक और भावनात्मक रूप से शांत हो जाता था - अगली कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए!इसलिये वो कभी भी अजय की स्तनपान करने की प्रार्थना को मना नहीं करती थीं।
“माँ?” कुछ देर पश्चात अजय ने कहा,
“हाँ बेटे?”
“कभी कभी सोचता हूँ कि काश आपको दूध आता.” वो दबी हुई हँसी हँसते हुए बोला।
“हा हा. ज्यादा बढ़िया होता तब तो! तुझे रोज़ पिलाती अपना दूध!”
“सच में माँ?”
“और क्या!” दोबारा जैसे कुछ याद करती हुई बोलीं, “बेटे, तुझे दिल्ली वाले अमर भैया याद हैं?”
“हाँ माँ, क्यों? क्या हुआ? ऐसे आपको उनकी याद कैसे आ गई?”
“तू अमर से बात कर न. नौकरी के लिए? . उसका बिजनेस तो बढ़िया चल रहा है न?”
“हाँ माँ!” अजय को जैसे ये बात इतने सालों में सूझी ही न हो, “आख़िरी बार बात हुई थी तो सभी बढ़िया ही था! हाल ही में तो उनकी और उनकी कंपनी की ख़बर भी छपी थी अखबार में. उनसे बात करता हूँ! . थैंक यू, माँ! मुझे सच में कभी उनकी याद ही नहीं आईइसे बारे में!”
माँ बस ममता से मुस्कुराईं।
“. लेकिन आपको उनकी याद कैसे आई?”
“अरे, कोई सप्ताह भर पहले काजल से बात हुई थी.”
“अच्छा? आपके पास उनका नंबर है?”
“हाँ. तुझे मैंने कभी बताया नहीं, लेकिनएक बार आई थी वो मिलने जेल में!”
“हे भगवान!” अजय ने सर पीट लिया।
शायद ही कोई ऐसा जानने वाला बचा हो, जिसको इनके संताप के बारे में न पता चला हो! अजय कोइसे तरह से 'प्रसिद्ध' होना बढ़िया नहीं लगता। लेकिन अच्छे लोगों की. हितैषियों की पहचान कठिनाई के टाइममें ही होती है।
“नहीं बेटे! ज्यादा अच्छे लोग हैं वो। . ज्यादा कम लोग ही हैं जिनको दोस्ती यारी याद रही! देखो न, कौन याद करता है हमको?”
“हम्म्म. अच्छा, वो सभी छोड़ो माँ! क्या बोल रही थीं काजल आंटी?”
“मुंबई में ही रहती है अब। . वो भी और सुमन भी! तुझे मालूम है?”
“नहीं!”
“हाँ, मुंबई में रहती है वो। सुमन भी! . काजल ने बताया कि बहू को बेटी हुई है!”
“वाओ! सुमन आंटी को? वाओ! अमेज़िंग! कब? . ये. तीसरा बच्चा है न उनका?”
“अमर को क्यों भूल जाते हो? चौथा बच्चा है.” उन्होंने कहा, “कोई नौ दस महीने की हो गई है अब उसकी बेटी भी!”
“सुमन ऑन्टी ज्यादा लकी हैं!”
“सुमन और काजल दोनों ही ज्यादा लकी हैं. दोनों की फ़िर से शादी भी हुई और बच्चे भी!” मम्मी जैसे चिंतन करती हुई बोलीं, “बहुत प्यारी फैमिली है. इतने दुःख आए उन पर, लेकिन हर दुःख के पश्चात वो सभी और भी मज़बूत हो गए.”
“जैसा आपने कहा माँ, सभी किस्मत की बातें हैं!”
“हाँ बेटे.”
“हमको काजल या सुमन आंटी जैसी बहुएँ क्यों नहीं मिलीं, माँ?”
“किस्मत की बातें हैं बेटे. सभी किस्मत की बातें हैं!”इसे बार ज्यादा कोशिश करने पर भी किरण जी की आँखों से आँसू टपक ही पड़े!
अजय नहीं चाहता था कि मम्मी ज्यादा दार्शनिक हो जाएँ,इसलिये उसने चुहल करते हुए कहा,
“माँ. अमर भैया भी तो आंटी जी का दूधू पीते थे न?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी भी! . अब तो और टाइमतक पिएगा!”
[प्रिय पाठकों : अमर, काजल, और सुमन के बारे में जानने के लिए मेरी कहानी “मोहब्बत का सफ़र” अवश्य पढ़ें!]
“माँ, आप भी शादी कर लीजिए. दोबारा मैं भी आपका दूध पियूँगा!”
“हा हा! शादी कर तो लूँ, लेकिन अब कहाँ होंगे मुझे बच्चे!”
“क्यों?”
“अरे! सत्तावन की हो रही हूँ! यदि चाहूँ भी, तो भी ये सभी नहीं होने वाला!”
“हम्म्म, मतलब चाह तो है आपको,” अजय ने दोबारा से चुहल करी।
माँ ने प्रेम से उसके कान को उमेठा, “क्या रे, अपनी मम्मी से चुहल करता है?”
“सॉरी माँ, आऊऊ.” अजय ने अपने कान को सहलाते हुए कहा, “लेकिन माँ, यदि आपको अपनी कोई अधूरी इच्छा पूरी करनी हो, तो वो क्या होगी?”
“तुझे अपनी कोख से जनम देना चाहूँगी मेरे लाल. तेरी असली वाली मम्मी बनना चाहूँगी. ताई मम्मी नहीं!” मम्मी ने बड़ी ममता से कहा, “मेरीएक और भी इच्छा है - और वो ये है कि तेरी किसी ज्यादा ही अच्छी लड़की से शादी हो!”
“हा हा! पेट भरा नहीं आपका मम्मी दो दो बहुओं से? . मेरा तोएक ही पत्नी से भर गया माँ. अच्छे से!”
“बेटे, मैं अच्छी सी लड़की की बात कर रही हूँ. ऐसी जो तुझे चाहे. जो तेरी ताक़त बन कर रहे!”
“हा हा! क्या मम्मी - सपने देखने की आदत नहीं गई तुम्हारी!” अजय ने फ़ीकी सी हँसी हँसते हुए कहा।
“लव यू टू बेटे,” मम्मी ने उसके मज़ाक को नज़रअंदाज़ कर के, उसके माथे को चूमते हुए कहा, “सो जाओ अब?”
**
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अपडेट 4
कब नींद आ गई उसे, उसको नहीं पता।
लेकिन सोते टाइमबड़े अजीब से सपने आए उसको.
उसको ऐसा लगा कि जैसे उसके जिंदगी के सभी अनुभव. जिंदगी का हरएक पलएक रबड़ जैसीएक अथाह चादर पर बिखेर दिए गए हों, और वो चादर हर दिशा में खिंच रही हो। चादर अपने आप में बेहद काले रंग की थी. शायद आदर्श कृष्णिका रही हो! “आदर्श कृष्णिका” भौतिकी में ऐसी काली सतह या पदार्थ होता है, जो किसी भी तरह की प्रकाश को पूरी तरह से सोख़ ले, और उसमें से कुछ भी प्रतिबिंबित या उत्सर्जित न होने दे!
चादर अवश्य ही आदर्श कृष्णिका रही हो, लेकिन हर तरफ़ अजीब सी रोशनियाँ प्रकाशमान थीं। ऐसी रोशनियाँ जो आज तक उसने महसूस तक नहीं करी थीं! उस चादर पर उसने ख़ुद को खड़ा हुआ महसूस किया। लेकिन उसको अपना बदन भी नहीं महसूस हो रहा था। उसको ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका स्वयं का बदन भी उसी रबड़ जैसी चादर का ही हिस्सा हो।
चादर निरंतर खिंचती चली जा रही थी, और उसके खिंचते खिंचते अजय के जिंदगी ही हर घटना जगमग ज्योतिर्मय होने लगी और वो उस जगमग सी वीथी पर अबूझ से पग भरते हुए आगे बढ़ रहा था।
उसने ये भी महसूस किया कि अचानक से उसके जिंदगी की कई घटनाओं में आग लग गई हो और वो बड़ी तेजी से धूं धूं कर के जलने लगीं। वो भाग कर उनको जलने से बचाना चाह रहा था, लेकिन वो चादर थी कि उसका फैलना और खिंचना रुक ही नहीं रहा था!
अजय बस निःस्सहाय सा अपने ही अवचेतन में स्वयं को ख़त्म होते महसूस कर रहा था। लेकिन वो कुछ नहीं कर पा रहा था। जैसे उसको लकवा मार गया हो। और उसको जब ऐसा लगने लगा कि उसकी सारी स्मृतियाँ जल कर भस्म हो जाएँगी, और ये उसके जिंदगी की चादर फट कर चीथड़े में परिवर्तित हो जाएगी, अचानक से सभी रुक गया।
एक तेज श्वेत रौशनी का झमका हुआ, और अचानक से ही सभी कुछ उल्टा होने लगा। जो चादरएक क्षण पहले तक फ़ैल और खिंच रही थी, अब वो बड़ी तेजी से हर दिशा से सिकुड़ने लगी। संकुचन का दबाव अधिक पीड़ादायक था। अजय वहाँ से निकल लेना चाहता था, लेकिन उसके पांव जैसे उस चादर पर जम गए हों! कुछ ही पलों में अजय का सारा जीवन, किसी बॉल-बिअरिंग के छोटे से छर्रे जितना सिकुड़ गया। आश्चर्यजनक था कि वो स्वयं अपने जिंदगी के ‘छर्रे’ को देख भी पा रहा था और उसका हिस्सा भी था!
और दोबारा अचानक से सभी कुछ शून्य हो गया!
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(सपने को दर्शाना आवश्यक था शायद! ये पहली और आखिरी बार है कि कहानी के बीच में किसी चित्र का प्रयोग होगा। ये चित्र AI की मदद से बनाया गया है.)
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Dear dosto, As you yourself have seen, the website iss still fucked. So, I will not post the next updates of the kahani, till the server/stability of this site iss sorted. In the meantime, I will keep writing the kahani, for later, quick updates. Stay tuned. Love