The Incest Indian Sex Story of मां का आशिक
दूसरी:" हान सच कहा बहन तूने, किसी तरह से तूइसे लड़के का नंबर निकाल, दोबारा तू बाकी सभी मुझ पर छोड़ दें।
पहली:" ठीक हैं, मैं अपने बेटे की पढ़ाई के बहाने से बात करके इसके दादा से नंबर ले लूंगी।
शहनाज का दिल पूरी तरह से तड़प उठा। उसने फैसला किया कि वो अपने बेटे को इन सबसे बचा कर रखेगी। तभी उसके कानों में रेशमा की आवाज पड़ी जो तो वो उसकी तरफ जाने लगीं। शहनाज़ ने पूछा:
" हान कहो क्या हुआ?
रेशमा:" खाना तो सबने खा लिया हैं और सभी लोगएक दूसरे से मिल भी चुके हैं। मुझे लगता हैं कि पार्टी अब खतम कर देनी चाहिए।
शहनाज नेएक दम रेशमा की बात का समर्थन किया क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसके बेटे को दोबारा से और किसी की नजर लग जाए। धीरे-धीरे धीरे पार्टी ख़त्म हो गई औरएक एक करके सभी मेहमान जाने लगे। ।
वो दोनो औरतें जो कि सगी देवरानी और जेठानी थीएक ज्यादा बड़े सरकारी अधिकारी के घर से अाई थी जो किसी मजबूरी के कारण नहीं अा पाया था। वो शादाब के दादा के पास अाई औरएक बोली:"
" बाबा हमे भी अपने बेटे को डाक्टर बनाना हैं, यदि आप हमे शादाब का नंबर दे तो हम जरूरत पड़ने पर उससे बात कर लगी।
दादा:" हान हान बेटी क्यों नहीं, इंसान ही इंसान के काम आता हैं लो मैं दे देता हूं।
दादा जी नेउन्को नंबर दे दिया तो वो दोनो खुशी से चहकती हुई चली गई। शहनाज़ ये सभी देख रही थी और उसका मूड पूरी तरह से खराब हो गया था। खैर सभी मेहमान चले गए और घर में रुकी पश्चात शादाब की बुआ रेशमा। शहनाज का दिल कर रहा था कि ये कमीनी भी चली जाए लेकिन मेहमान के संग जबरदस्ती करना ही अच्छी बात नहीं होती और रेशमाइसे घर की बेटी हैंइसलिये वो चुप रहीं।
धीरे धीरे-धीरे शाम का अंधेरा बढ़ने लगा और दादा दादी खाना खाकर लेट गए थे। रेशमा बहुत दिनों के पश्चात घर अाई थीइसलिये अपनी सहेली चंपा से मिलने का सोचने लगी।
रेशमा:" भाभी यदि आप कहें तो मैं अपनी सहेली चंपा से मिलकर अा जाऊ ?
शहनाज खुश हो गई कि कुछ देर के लिए ही सही लेकिन मुसीबत दूर हो रही है।
शहनाज़:" आप चली जाओ, को बात नहीं आराम से मिलकर पहुँचना आप।
अब रेशमा ने अपना असली जाल फेंका और बोली:" वो भाभी अंधेरा होने लगा है बाहर, यदि आपकी इजाज़त हो तो मैं शादाब को अपने संग ले जाऊं?
शहनाज़ की झांटे सुलग उठी और मन किया कि इसे थप्पड़ मार दे लेकिन स्वयं को संभालते हुए बोली:"
"एक काम करना आप सुबह चली जाना, अभी अंधेरा भी बढ़ रहा हैबाहर् !!
रेशमा भी कुछ जरूरत से ज्यादा चालाक थीइसलिये बोली:".
" कल सुबह 6 बजे उसकी ट्रेन हैंइसलिये अभी जाऊंगी तो मिल जाएगी । भाभी प्लीज भेज दो ना आप इसे मेरे साथ।
शादाब:" अम्मी जब बुआ इतनी गुज़ारिश कर रही है तो भेज दो आप मुझे। मैं भी गांव देख आऊंगा।
शहनाज़ के पास अब कोई बहाना नहीं बचा थाइसलिये दुखी मन के संग उसे जाने की इजाज़त दे दी।
शहनाज़:" ठीक हैं लेकिन जल्दी वापिस लौट आना, कहूं मैं इंतजार करती रहूं।
रेशमा का चेहरा खिल उठा और इससे पहले कि वोबाहर् की तरफ निकलते शादाब के चाची अा गई जो कि रेशमा को अपने घर ले जाने की जिद करने लगी।
रेशमा मना करती रही लेकिन उसकीएक नहीं चली तो वो बोली अंततः बोली:".
" बेटा मैं थोड़ी देर पश्चात आती हूं जब तक तुम आराम करो, उसके पश्चात चलते हैं।
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शहनाज ने ये सभी सुनकर राहत की सांस ली और उपर की तरफ चल पड़ी। शादाब भी अपनी अम्मी के पीछे पीछे ही चल दिया।
सीढ़ियों पर चढ़ती शहनाज़ सोच रही थी कि उसे कुछ करना होगा ताकि इन चुड़ैल औरतो से अपने बेटे को बचा सके। वो अपने कमरे में पहुंच में पहुंच गई और अपने बेटे को आने को बोला तो शादाब उसके पीछे पीछे ही अंदर चला आया। शहनाज़ को समझ नहीं आ रहा था कि वो कहां से शुरुआत करे क्योंकिएक तो वो ज्यादा ज्यादा शर्मीली थी और उससे भी बड़ी मुश्किल ये थी वो अपने सगे बेटे से ये सभी बाते कैसे करे। शादाब अपनी अम्मी के चेहरे पर परेशानी साफ़ देख रहा थाइसलिये उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और बोला:" क्या हुआ अम्मी सभी ठीक तो हैं, आप कुछ परेशान सी लग रही हो?
शहनाज़ अपने बेटे की बात सुनकरएक समय के लिए तो सकपका सी गई लेकिन दोबारा अपने आपको संभालते हुए कहा :" नहीं बेटा मैं तो बिल्कुल ठीक हूं। बस सोच रही थी आज तुझे सबने कुछ ना कुछ गिफ्ट दिया बस मैं ही कुछ नहीं दे पाई।
शादाब:" अरे अम्मी मा बेटे में कोई गिफ्ट नहीं होता, आप तो मेरी प्यारी अम्मी हैं, आपका प्रेम ही तो मेरे लिए गिफ्ट हैं।
शहनाज़ उसकी तरफ देखते हुए:" वो बात तो ठीक हैं बेटा लेकिन दोबारा भी मुझे कोई तो गिफ्ट देना चाहिए अपने प्यारे बेटे को ताकि मुझे तसल्ली हो। लेकिन मैं तो बेटा घर सेबाहर् भी नहीं निकलतीइसलिये कुछ ला भी नहीं पाई तेरे लिए!!
शादाब:" अम्मी आप परेशान ना हो, मुझे बस आपका प्रेम चाहिए और कुछ नहीं।
शहनाज़ ने अपनी जेब के अंदर हाथ डालकरएक गुलाब का लाल सुर्ख फूल निकाल लिया तो शादाब की आंखे खुशी के संग हैरानी से फैलती चली गई।
शहनाज़ थोड़ा सा आगे बढ़ी और अपने बेटे के ठीक सामने पहुंच गई। उसका पूरा जिस्म बुरी तरह से कांप रहा था और चेहरा लाल हो गया था। उसनेएक बार चेहरा उपर उठाया और अपने बेटे की आंखो में देखते हुए बोली:"
" बेटा अपनी अम्मी की तरफ से ये छोटा सा गिफ्ट कुबूल करो।
शादाब ने खुशी के संग अपनी मा के हाथो से वो फूल ले लिया और उसकी आंखो में देखते हुए कहा:"
" अम्मी ये तो मेरे लिए आज का सबसे बड़ा गिफ्ट हैं, आप सच में ज्यादा अच्छी हो अम्मी।
शादाब ने खुश होकर अपनी अम्मी को गले लगा लिया और अपनी बांहे उसकी कमर पर लपेट दी। शहनाज़ ने भी अपने बेटे के मजबूत कंधे पर अपना सिर झुका दिया और उससे चिपक गई।
शहनाज:" बेटा ये फूल बड़े नाजुक होते हैं, ज्यादा प्रेम से संभाल कर रखना इसे क्योंकि पहली बार मैंने किसी को गिफ्ट दिया हैं मेरे लाल।
शादाब:" अम्मीइसे फूल से ज्यादा नाजुक तो मुझे आप लगती है, देखो अभी भी कैसे शर्मा रही हैं आप !!
अपने बेटे की बात सुनकर शहनाज़ सच में शर्म से लाल हो गई और उसकी आंखो में लाल डोरे तैरने लगे। उसनेएक हाथ से अपने बेटे के हाथ को कस कर पकड़ लिया तो शादाब ने फूल को अपनी मा के चेहरे पर घुमाना शुरुआत कर दिया तो शहनाज़ को उसकी सांसे रुकती हुई सी महसूस होने लगी। उसके गालों को छूते नाजुक फूल की पंखुड़ियां जैसे ही उसके होंठो से टकराई तो शहनाज़ के मुंह सेएक आह निकल पड़ी जिसे उसने बड़ी मुश्किल से दबाया। शादाब ने जैसे ही फूल को उसके होंठो पर उपर नीचे फिराया तो शहनाज़ के गालएक दम गुलाबी होकर अपनी छटा बिखेरने लगे। उसकी आंखे बंद हो गई और उसने अपने बेटे को कस कर पकड़ लिया।शादाब ने फूल को अपनी जेब में रखते हुए अपनी मा को अपनी मजबूत बांहों में जोर से कस लिया। शहनाज़ का दिल किसी बुलेट ट्रेन की रफ्तार से धड़कने लगा और उसकी चूचियां उसके बेटे के सीने में अपना दबाव बनाने लगी। शादाब ने अपनी अम्मी का खुबसुरत चेहरा पकड़ कर उपर उठाया तो शहनाज़ की आंखे बंद हो गई। शादाब अपनी अम्मी के बालो में अपना हाथ फेरते हुए अपने चेहरे को उसके चेहरे के पास ले जाने लगा तो शहनाज़ किसी सूखे हुए वर्क्ष की तरफ कांपने लगी। उसके होंठ कांप रहे थे और पूरे जिस्म मेंएक अजीब सी मस्ती छाई हुई थी।
शादाब ने अपने चेहरे को थोड़ा सा और आगे की बढ़ाया तो उसकी गर्म गर्म सांसे अपनी मा के चेहरे पर पड़ने लगी जिससे शहनाज की हालत और खराब होने लगी। जैसे ही शादाब के होंठ अपनी मा शहनाज के होंठ के पास पहुंचे तो शहनाज़ ने अपने हाथो की पकड़ अपने बेटे पर बढ़ा दी तो शादाब के होंठ शहनाज़ के होंठो को हल्का सा छूते हुए उसके गालों पर जा लगे।
उफ्फ शहनाज़ तोइसे अनोखे एहसास से पूरी तरह से मस्त हो गई उसके जिस्म ने उसका संग छोड़ दिया तो उसने अपने आपको पूरी तरह से अपने बेटे की बांहों में ढीला छोड़ दिया। शादाब ने अपनी मा केएक कश्मीरी सेब की तरह लाल सुर्ख हो चुके गाल को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा। जैसे ही शादाब के होंठ शहनाज़ के होंठो को हल्का सा छूते हुए उसके गाल से टकराए तो शहनाज़ ने पूरी तरह से मस्ती में आकर अपनी पकड़ अपने बेटे पर और बढ़ा दी। शादाब कभी उसके गाल को होंठो से चूम रहा था तो कभी जीभ से हल्का हल्का सहला रहा था। शहनाज़ की हालत खराब होने लगी , उसकी आंखेइसे अदभुत सुख के कारण पूरी तरह से अभी तक बंद पड़ी हुई थी और पूरा चेहरा लाल हो चुका था और उसके चेहरे पर फैले हुए उसके वाले बाल उसे और खूबसूरत बना रहे थे। उसका पूरा जिस्म किसी आग की भट्टी की तरह तप रहा था, उसकी चूत से रस टपकना शुरुआत हो गया था और पेंटी गीली हो रही थी। उसके मुंह से निकलती गर्म गर्म सांसे शादाब को पूरी तरह से मदहोश कर रही थी जिस कारण वो अपनेएक हाथ से अब अपनी मा की कमर को हल्का हल्का सहला रहा था।शहनाज़ पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी और उसकी चूत में आग लगी हुई थीइसलिये वो अपनी चूत को स्वयं ही अपने टांगो से हल्का हल्का मसल रही थी। शादाब ने जैसे ही उसके गाल पर हल्के से दांत गड़ाए तो शहनाज़ काम वासना से पागल होकर उससे पूरी ताकत से लिपट गई जिससे उसकी चूत शादाब के खड़े हुए लंड से कपड़ों के उपर से ही टकरा गई। अपने बेटे के लंड का अपनी चूत पर ये पहला एहसास उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसकी चूत ने अपना बांध तोड़ते हुए अपना रस छोड़ना शुरुआत कर दिया। शहनाज़ ने अपनी सभी लाज शर्म छोड़कर अपनी चूत को पूरी ताकत से अपने बेटे के लंड पर दबा दिया और जोश में आकर अपने बेटे के चेहरे को थाम लिया और उसके गाल को जोर जोर से चूमने लगी।
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तभी उसे उपर किसी के आने की आहट हुई तो दोनो की हालत खराब हो गई। शादाब के गाल पर उसकी लिपस्टिक से लाल लाल निशान पड़ गए थेइसलिये उसने जल्दबाजी में अपने बेटे का गाल जीभ निकाल कर चाट लिया और उसके गाल को स्वच्छ कर दिया। शादाब अपनी अम्मी केइसे कामुक अवतार को देखकर हैरान हो गया। शहनाज़ की जीभ केइसे मस्त एहसास से शादाब को ज्यादा सुखद एहसास हुआ और उसके मुंह सेएक मस्ती भरी आह निकल पड़ी। रेशमा वापिस आ गई थी शादाब को अपने संग ले जाने के लिए ।
रेशमा:" भाभी कहां हो आप ?
शहनाज़:" अरे रेशमा मैं अपने ही कमरे में हूं, तुम अंदर ही आ जाओ!!
रेशमा अंदर घुस गई और बोली :"
" मैं आ गई हूं जल्दी से आप शादाब को मेरे संग भेज दो ताकि मैं चंपा के घर से जल्दी ही पुनः आ सकू।
शहनाज़:" जाओ बेटा अपनी बुआ के साथ, लेकिन ध्यान रखना कि जल्दी आ जाना।
शहनाज का दिल तो नहीं कर रहा था अपने बेटे को उसके संग भेजने के लिए लेकिन अब कोई रास्ता नहीं बचा था। रेशमा शादाब को लेकर अपने संग निकल गई तो शहनाज़ का दिल उदास हो गया और घर का बाकी काम देखने लगी।
शादाब गाड़ी निकालने लगा तो रेशमा बोली:"
" अरे बेटा बाइक से चलते हैं, बढ़िया मौसम हैं, थोड़ी गांव की खुली हवा भी लग जाएगी।
शादाब ने रेशमा की बात मानते हुए बाइक निकाल ली। शादाब ने बाइक स्टार्ट करी और अपनी बुआ को बैठने का इशारा किया तो रेशमा ने ठीक शादाब के सामने आते हुए जान बूझकर
अपना दुपट्टा नीचे गिरा दिया जिससे उसकी गोरी चूचियों का उभार नजर आने लगा, शादाब की नजरे किसी चुंबक की तरह उसकी चूचियों पर चिपक गई। रेशमा मुस्कुराई और नीचे की तरफ अपना दुपट्टा उठाने के लिए झुकी तो उसकी चूचियां आधे से ज्यादाबाहर् की तरफ छलक पड़ी, रेशमा ने तिरछी निगाहों सेएक बार शादाब की तरफ देखा और दोबारा अपने हाथ से अपनी चूचियों को अंदर की तरफ ठूसने लगी और बोली:"
" हाय ये दुपट्टा भी बार बार गिर जाता हैं, कैसे संभालू इसको!!
शादाबइसे नजारे को देखकर गर्म हो गया और उसके लंड में तनाव आने लगा। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी नजरे रेशमा की चूचियों पर से हटाई और आगे की तरफ देखने लगा। रेशमा अब सीधी खड़ी हो गई थी और उसे शादाब की पेंट का उभार साफ़ नजर आ रहा था जिसे देखकर वो लंड की लंबाई का अंदाजा लगा रही थी और उसकी चूत से रस की कुछ बूंदे निकल गई।
रेशमा ने आगे कदम रखा और लड़खड़ाने का बहाना करते हुए शादाब के ठीक लंड के उपर हाथ रख कर उसे पकड़ लिया और उसकी लम्बाई मोटाई को अच्छे से महसूस करते हुए हल्का सा सहला दिया । रेशमा शादाब के पीछे बाइक पर उससे चिपक कर बैठ गई और अपनी चूचियों का दबाव उसकी कमर पर डाल रही थी जिससे शादाब को ज्यादा बढ़िया लगा रहा था। जैसे ही बाइक को हलका सा झटका लगा तो रेशमा जान बूझकर उसके और करीब सिमट अाई। शादाबएक जवान लड़का था और उस दौर से गुजर रहा था जिसमें स्त्री के जिस्म और सेक्स के बारे में जानने की बड़ी इच्छा होती हैं। शादाब की तरफ से कोई भी विरोध ना पाकर वो अब अच्छे से अपनी चूची उसकी कमर पर रगड़ रही थी।
रेशमा:" शादाब बेटा तुम ज्यादा खूबसूरत और प्यारे हो, एकदम जवान हो गए हो तुम!!
शादाब कुछ नहीं बोला लेकिन मुस्कुरा उठा और रेशमा को उसके जिस्म के इशारों से सभी कुछ समझ अा गया। रेशमा उससे थोड़ा खुलना चाहती थी ताकि आगे उसे पटाने में आसानी हो ।
रेशमा:"बेटा वहां शहर में तो तुम खूब मस्ती करते होंगे दोस्तो के संग !?
शदाब:" हान बुआ, थोड़ा कम ही किया मैंने, बस पढ़ाई पर ध्यान ज्यादा दिया!!
रेशमा अबएक हाथ से उसके कंधे को हल्का सा सहलाते हुए बोली:" बेटा सुना है कि दिल्ली में तो लडको की मित्र लड़कियां भी होती हैं !!
शादाब:" हान बुआ होती तो मैं, मैंने देखा मेरे कुछ भी लड़कियों के संग घूमते थे ।
रेशमा को लगा कि लड़का लाइन पर अा रहा हैं और जल्दी ही उसका काम बन जाएगा। उसने हाथ को थोड़ा नीचे की तरफ लाते हुए उसकी चौड़ी छाती पर टिका दिया और बोली:"
" तेरी कोई मित्र नहीं थी क्या शादाब वहां पर लड़की!?
शादाब को अपनी बुआ का हाथ अपनी छातियों पर बढ़िया लगा और वो थोड़ा सा पीछे की तरफ हुआ जिससे उत्साहित होकर रेशमा ने अपने हाथ की पकड़ थोड़ा और बढ़ा दी!!
शादाब:" नहीं बुआ, मेरी कोई कोई लड़की मित्र नहीं थी,
रेशमा ने अब उसकी शर्ट काएक उपर वाला बटन खोल दिया और हाथ को हल्का सा अंदर डालकर सहलाते हुए बोली:"
"जरूरी तूने ही किसी को लाइन नहीं दी होगी नहीं तो तेरे उपर तो लड़कियां अपनी जान भी लुटा देती बच्चे!!
इतना कहकर रेशमा के हाथ की उंगलियां उसकी छाती के बालों से खेलने लगी। शादाब पूरी तरह से मस्त हो गया क्योंकि पहली बार किसी स्त्री ने उसकी छाती को सहलाया थाइसलिये उसके मुंह सेएक मस्ती भरी आह निकल पड़ी। रेशमा समझ गई कि लड़का पट गया है और अब जल्दी ही उसेएक कुंवारे लड़के की सील तोडने का मौका मिलेगा। रेशमा ने अब शादाब पर भावनात्मक रूप से हमला किया और बोली:'
" शादाब तुझे पता है तेरे फूफा मेरा बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते, मुझेएक मित्र की बड़ी कमी महसूस होती हैं, क्या तू मेरा मित्र बन सकता है?
शादाब की सांसे तेज होने लगी और उसके मुंह से उत्तेजना के मारे कोई आवाज नहीं निकल रही थी, रेशमा ने अपनी उंगलियों में शादाब केएक निप्पल को भर लिया और हल्का सा दबाते हुए बोली:" बता ना बेटा अपनी बुआ का मित्र बनेगा ना ?
शादाब अपने निप्पल पर हुएइसे प्रहार से मस्ती से भर उठा और बोला:" हान बुआ बनूंगा मैं आपका मित्र !!
तभी चंपा का घर अा गया और दोनो उसके घर के अंदर घुस गए। रेशमा को देखते ही चंपा खुशी के मारे उससे लिपट गई तो रेशमा ने भी अपनी बांहे में उसे कस लिया।
मेल मिलाप कर पश्चात चंपा ने दोनो को हल्का सा नाश्ता कराया क्योंकि खाना सभी खा चुके थे। चंपा ने शादाब की तरफ देखते हुए कहा:"
" रेशमा ये लड़का किसका हैं? तेरा बेटा तो इतना बड़ा नहीं होगा अभी !!
रेशमा:" अरे चंपा ये मेरे भाई का लड़का हैं, अभी सीपीएमटी पास किया हैं इसने।
चंपा;" ओह मतलब लड़का सुंदर होने के संग साथ होशियार भी हैं। सच में ऐसे लडके आज कल कहां मिलते है!! बेटा आया करो कभी कभी ये भी तुम्हारा अपन ही घर हैं।
ये बोलकर चंपा की आंखो मेंएक चमक उभर आई थी जिसे रेशमा ने साफतौर पर नोटिस किया।
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