_____मां का आशिक__________
Hay,
maira title kaisa h.
क्या मैं ये कहानी लिखू।।.?????
क्योंकि ये कहानी मैंने कहीं ओर पढ़ी थी मुझे बहुत अच्छी लगी, मैं इस कहानी को अपने अनुभव और विचार से एक नये अन्दाज़ में आपके बीच साझा कर रहा हूं।
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• How's character.
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शहनाज़ (शादाब की अम्मी )

रेशमा (शादाब की बुआ)

शादाब (कहानी का हीरो)

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माँ का आशिक
आज सुबह से शहनाज़ ज्यादा खुश थी, क्योंकि इकलौता बेटा शादाब दस वर्ष के पश्चात घर वापिस लौट रहा था।
इन सालों के दौरान दोनो के बीच ज्यादा कम बात हुई क्योंकि बेटा हॉस्टल में रहता था।
दरअसल शहनाज़ के पति की मौत गांव में डॉक्टर ना होने की वजह से हो गई थी,इसलिये वे बुरी तरह से टूट गई थी और उसने उसी दिन फैसला किया था कि वो अपने बेटे को हर हाल मेंएक डॉक्टर बनाएगी, ताकि दोबारा गांव में किसी की मौत डॉक्टर ना होने की कमी के चलते ना हो सके।
उसने अपने बेटे से कसम ली थी कि जब तक वो एमबीबीएस का एग्जाम पास नहीं करेगा वो उसकी शक्ल तक नहीं देखेगी। कल ही सीपीएमटी का रिजल्ट आया था जिसमें उसके बेटे ने टॉप किया था और बस अब कुछ वर्ष में अंदर ही उसका डाक्टर बन जाना तय था।
शहनाज जानती थी कि उसने अपने मासूम से बेटे पर ज्यादा ज़ुल्म किए हैं लेकिन वो गांव की भलाई के चलते मजबुर थी और ये उसके बाप की भी इच्छा थी कि उसका बेटाएक डॉक्टर बने।
शहनाज की शादी रहमान से मात्रा 17 वर्ष की उम्र में हो गई है और अगले ही वर्ष उसनेएक प्यारे से बेटे को जन्म दिया था। लेकिन उनकी ये खुशी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई औरएक एक्सिडेंट में उसके पति की मौत हो गई थी, गांव से शहर तक ले जाते उसने दम तोड़ दिया था। काश उस वक्त गांव में अस्पताल होता तो आज उसका मियां ज़िन्दा होता।
शहनाज़ के शौहरएक शाही राजघरानों से थे। राज पाट तो चले गए लेकिन उनकी शानो शौकत अभी तक जिंदा थी। घर में पीछे छुट गई थे उसके सास ससुर जी की अब पूरी तरह से कमजोर होकर बेड का सहारा ले चुके थे।
बस उनकी सेवा में लगी रहती थी, घर वालो और रिश्तेदारों ने दूसरी शादी का ज्यादा दबाव दिया लेकिन उसने अपने बेटे के लिए सभी कुछ कुर्बान कर दिया और शादी ना करने का फैसला किया था। बेचारी नाज बचपन से लेकर अब तक दुख ही झेलती आई थी, छोटी सी उम्र में ही मा का इंतकाल हो गया था, बाप ने दूसरी शादी कर ली और सौतेली मा ने नाज को ज्यादा परेशान किया जिस कारण वो सिर्फ 12 तक ही पढ़ सकी थी।
एक दिन रहमान के बाप की नजर उस पर पड़ी तोउन्को लगा किउन्को अपने बेटे के लिए जिस परी की तलाश थी वोउन्को मिल गई हैं बस दोबारा उसकी शादी हो गई।
पूरे घर को सजाया गया था औरएक ज्यादा ही बड़ी पार्टी का आयोजन किया गया था क्योंकि आज शादाब ने एमबीबीएस का एग्जाम पास कर लिया थाइसलिये पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई थी।
शहनाज़ सुबह जल्दी उठी और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई। उसने अपना बुर्काबाहर् ही उतार दिया था और अब सिर्फ सूट सलवार पहने हुए थी।

शाहनवाजएक गोरे बदन की भरी हुई स्त्री थी, दूध में चुटकी भर सिंदूर मिला दो तो ऐसा गजब का रंग था,एक दम चांद सा खुबसुरत चेहरा, गहरे काले घने बाल मानो ऐसे लहराते थे कि सावन की घटाए भी पनाह मांगती थी।
उसके भरे हुए सुंदर गाल मानो कोई खूबसूरत सेब, गालों की लाली देखते ही बनती थी, उसकी बड़ी बड़ी प्यारी खूबसूरत बोलती हुई आंखे, छोटी सी प्यारी सी नाक जो उसकी सुन्दरता में चार चांद लगा देती थी।
उसके होंठ बिल्कुल शबनम की बूंद की तरह से नाजुक, हल्का सा लाल रंग लिए हुए मानो कुदरत ने स्वयं ही उसके होंठो को सजाकर भेजा हो,एक दम पतले पतले होंठ मानो किसी गुलाब की आपस में जुड़ी हुई लाल सुर्ख फूल की दो पंखुड़ियां।
बस उसका ये कातिल चेहरा ही आज तक सभी ने देखा था क्योंकि वो अपने आपको पुरी तरह से ढक कर रखती थी, वोएक मर्यादा में रहने वाली स्त्री थी और उसने अपनी मर्यादा को कभी लांघने की कोशिश नहीं करी थी क्योंकि उसके संस्कार हमेशा आड़े आ जाते थे।
वो इतनी शर्मीली थी कि आज तक किसी के आगे पूरी तरह से नंगी नहीं हुई थी यहां तक की सुहागरात को भी उसने अपने पति को पूरे कपड़े निकालने से स्वच्छ इंकार कर दिया था क्योंकि उससे ये सभी नहीं हो सकता था।
नहाते हुए भी हमेशा अपनी आंखे बंद करके ही नहाती थी क्योंकि उसमे इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वो अपने आपको स्वयं ही नंगा देख सके। आंखो की हया और खुदा का डर उसके उपर हमेशा हावी रहा।
उसने अपने कपड़े धीरे-धीरे सेएक एक करके बंद आंखो के संग निकाले और जल्दी ही नहा धोकर तैयार हो गई।
ब्रा पेंटी पहन लेने के पश्चात उसनेएक काले रंग का सूट सलवार पहना और दोबारा बुर्का पहनकर एयरपोर्ट जाने के लिए तैयार हो गई।

ड्राइवर ने गाड़ी निकाली और जल्दी ही वो एयरपोर्ट पर खड़ी हुई थी। वोबाहर् निकलते लोगो पर नजर गड़ाए हुए थी उसकी बेचैनीइसे कदर बढ़ गई थी कि उसे आने वाले हर लड़के में अपना बेटा नजर आ रहा था। अपने लख्तें जिगर को वो कैसे पहचानेगी ये सोच सोच कर वो परेशान थी।
एयरपोर्ट पर जाने वालेएक मात्र रास्ते पर उसका ड्राइवर उसके बेटे के नाम की तख्ती लिए खड़ा हुआ था।
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शहनाज़ खुले कपडे पहने के पश्चात भी उसके जिस्म का हर उभार स्वच्छ नजर आता था, कपड़ों के उपरि से ही उसकी भरी हुई भारी भरकम गांड़,एक दम उभरी हुई, बिल्कुलबाहर् की तरफ निकली हुई ऐसे लगती थी मानो जबरदस्ती अंदर कैद की गई हो।
उसकी गांड़ की मस्त गोलाई देख कर लोगो के लंड सलामी देने लगते थे और आज भी कुछ ऐसा ही हुआ।

उससे थोड़ी दूर खड़े हुए दो मनचले बहक गए और उनमें सेएक बोला:'
" ओए उधर देख, क्या माल है यार, उफ्फ ऐसी तगड़ी उभरी हुई गांड़ आज तक किसी की नहीं देखी, लंड खड़ा हो गया।
दूसरा:" हां भाई, क़यामत हैं क़यामत, काश इसकी नंगी गांड़ देख पाता,मसल मसल कर लाल कर देता मैं, साली ने लंड को तड़पा दिया।
शहनाज़ उनके बाते सुनकर हैरान हो गई, इतनी थोड़ी सी उम्र में ये लड़के बिगड़ गए हैं, क्या जमाना आ गया है, लेकिन लड़कों की बाते सुनकर वो अंदर ही अंदर मुस्कुरा उठी अपनी तारीफ सुनकर और उसके जिस्म में हलचल सी हुई।
पहला लड़का:" उसकी गांड़ काएक उभार तेरे दोनो हाथो में भी नहीं आएगा, तुझसे नहीं हो पाएगा, इसके लिए तो कोई सांड जैसा तगड़ा लड़का चाहिए।
तभी शादाब दूर से आता हुआ दिखाई दिया

तो लड़को की नजर उस पर पड़ गई, छह फीट लंबा चौड़ा खूबसूरत जवान,एक दम अपनी मम्मी की तरफ गोरा, चौड़ी छाती, आंखो पर काला चश्मा,।
उसे देखते ही पहले वाला मनचला बोल उठा:" वो देख यार, क्या खूबसूरत लड़का हैं, बिल्कुल सांड के जैसा मोटा तगड़ा, मेरे हिसाब सेइसे स्त्री के लिए ये सही है, हाथ देख उसके कितने बड़े और मजबूत लग रहे हैं। इसकी गांड़ तो वो ही ठीक से मसल सकता हैं।
मनचले की बात सुनकर शहनाज़ की नजर अपने आप उस शादाब की तरफ उठ गई। सच में खूबसूरत था वो, दूर से आता हुआ बिल्कुल कामदेव के जैसा लग रहा था,एक बार तो उसे देखकर सच में शहनाज़ का दिल धड़क उठा और नजरे गड़ाए उसे ध्यान से देखती रही।
जैसे जैसे वो पास आता जा रहा था शहनाज़ की आंखे मस्ती से चोड़ी होती जा रही थी और पूरे जिस्म में कंपकपी सी दौड़ रही थी।
जैसे ही वो उसके सामने आया तो दोनो की आंखे टकराई और दोनोएक संग मुस्कुरा दिए तो शादाब आगे बढ़ा और बोला:"
" अम्मी मैं शादाब, आपका बेटा,
शहनाज़ तो जैसे ख्वाबों सेबाहर् आई और उसे पहचान लिया औरएक दम से अपनी बांहे फैला दी तो बेटा अपनी मा की बांहों में समा गया।

दोनोएक दुसरे की धड़कन सुनते रहे और बेटा पूरी तरह से अपनी मम्मी को कसकर अपनी बांहों में भर लिया था और मम्मी भी प्रेम से अपने बेटे की कमर थपथपा रही थी।
थोड़ी देर पश्चात शहनाज़ ने उसे पुकारा:" बेटा बस छोड़ अब मुझे, घर चले, तेरे दादा दादी तेरा इंतजार कर रहे होंगे।
शादाब जैसे भावनाओ के आवेश सेबाहर् आया और अपनी मा की तरफ देखते हुए कहा:"
" हां अम्मी चलो,बाहर् आकर दोनो गाड़ी में बैठ गए और गाड़ी घर की तरफ चल पड़ी।
शहनाज़ को अपना बेटा ज्यादा प्यारा लगा और वो बार बार उसे ही देखे जा रही थी। उसे रह रह कर उन मनचलों की बाते याद आ रही थी कि इसकी गांड़ को थामने के लिए तोइसे लड़के जैसे मोटे और तगड़े हाथ चाहिए।
ये बात मन में आते ही ना चाहते हुए भी शहनाज़ की नजर अपने बेटे के हाथो पर पड़ी, सच में उसके बेटे के हाथ ज्यादा तगड़े और मोटे ताजे थे। शहनाज़ का पूरा वजूद कांप उठा और उसकी सांसे अपने आप तेज गति से चलने लगी और माथे पर हल्का सा पसीना उभर आया।
"उफ्फ मैं ये क्या सोचने लगी, शहनाज़ कोएक तेज झटका सा लगा और वो अपनी विचार सेबाहर् आई और आगे की तरफ देखते हुए चुप चाप बैठ गई, ना चाहते हुए भी बीच बीच में रह रह कर उसकी नजर अपने बेटे के हाथो पर पड़ रही थी,
खैर कुछ देर के पश्चात वो घर पहुंच गए।
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