Incest Desi Sex Story : गांव की चांदनी रात
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Yakeen maniye aapko kisi stri ko chudte dekh krr jara bi nahee lagega woh randi wali harkat krr rahi jb tak use kisi ne chheda na hu
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अध्याय - 10
अपने कमरे में पहुँच कर कमल अनिमेष से मिलता है और उसे पूछता है “तू कब आया कॉलेज से”
अपने पलंग पर लेटे हुए अनिमेष बोलता है “आपके निकलने के आधे घंटे पश्चात मैं भी जो पैसे मम्मी ने मंगाए थे वो लेके सीधे दुकान के लिए निकल आया था”
कमल “अच्छा हम भी अपना काम करके आ गए चल नीचे चाय पीने चल रहा”
अनिमेष “हम्म आप चलो मैं आ रहा हूँ”
दोनों भाई हाथ मुंह धोके नीचे पहुँच गए और लेखा ने दोनों को चाय देने लगी, रिंकी भी अब नीचे आके ख़ुद चाय लेने रसोई में चली गई,
थोड़े देर में पंकज भी ड्यूटी से आ गया और हाथ मुंह धोके वो भी चाय पीने लगा,
पंकज “आज घर में लोग कम है तो कितना शांति छाया है”
लेखा “हा भैया घर में बच्चों की आवाजों से घर सुना लगता है”
चंचल “किसी ने फ़ोन किया था क्या उनको कहा पहुँचे है वो लोग”
लेखा “मैंने अनी के पापा से बात किया था दीदी, दोपहर में तब तो वो लोग खाने के लिएएक स्थान रुके है ऐसा बोले”
पंकज “रात के खाने के पश्चात वीडियो कॉल कर लेंगे तब तक तो वो लोग भी वहाँ पहुँच के कमरे ले चुके होंगे”
चंचल “सही कह रहे है चल लेखा रात के खाने के लिए तैयारी कर जल्दी अपना काम करके उनको कॉल करेंगे”
लेखा “ठीक है दीदी और रिंकी आज हमारा हाथ बटायेगी या तुझे कॉलेज का कुछ काम बाक़ी है”
रिंकी “नहीं बड़ी मम्मी कल छुट्टी है मैं कल कॉलेज का काम कर लूँगी मैं आज आप लोगो की मदद करूँगी” दोबारा अपने कमरे में चली गई,
कमल और अनिमेष घूम आने का बोलबाहर् चले गए, पंकज भी सीडियों के रास्ते छत में पहुँच कुछ काम करने लग गया, नीचे अकेले बैठे रमेश की नजर अपने बहुओं पर थी,
उसका लंड कुछ घंटे पहले हुए दृश्य को याद कर दोबारा से अकड़ने लगा था रमेश वही सोफे में लेट गया और आगे का सोचते सोचते दोबारा उसकी आँख लग गई,
रिंकी अपने कमरे में पहुँच चुकी थी पलंग पर लेटे उसे आज कमल के संग बिताए समय याद आने लगे, उसके दिल मेंएक अजीब सी बेचैनी के संग ख़ुशी भी हो रही थी,
वो सोचने लगी मैं इतना सभी सोच रही हूँ यदि कमल भैया को मेरे हरकते कहीं बुरी लगी और घर में किसी को बता दीये तो, ये सोचकर रिंकी को डर सताए जा रहा था,
वो उस किताब को लेके पलंग में लेट गई और उसको देखते हुए उसनेएक हाथ अपने लेगिस से होते हुए चड्डी के अंदर डाल ली, नंगी तस्वीरो को देख उसकी चूत हल्की गीली होने लगी,
लेकिन वो अभी ये सभी नहीं कर सकती थी उसने अपना हाथ वहाँ से हटा लिया और ख़ुद पर काबू करते हुए रात के इंतज़ार में लेटी रही,
तभी उसके पास आराधना का कॉल आया जिसे देख उसका मन बदल गया और वो उससे बात करते करते छत पे पहुँच गई जहाँ उसने देखा उसके बड़े पापा लुंगी और बनयान में कुछ साफ़ करने में लगे है, पंकज की नज़र भी उसपे पड़ी पर वो अपने काम में लगा रहा,
वो आराधना और पिंकी से बात करते हुए अपनी नज़र को अपने बड़े पापा पर हमेशा की तरह ही रखी थी, अब उसकी आँखे उनके काम करते बदन पे जा रही थी, आज ये पहली बार था जब रिंकी की नज़र अपने बड़े पापा के हट्टे कट्टे बदन कोइसे तरह देख रही थी,
उसके बदन में कुछ अजीब लगा जिसे उसने पहले कभी एहसास ना किया हो ये अहसास अनजाना सा था वो बसएक टक बात करते देखे जा रही थी,
सामने से आराधना उसको जो भी बता रही थी वो बस सुन रही थी पर उसकी नजर तो अपने बड़े पापा के गठीले हाथो और जांघो पर थी, बात ख़त्म होने पश्चात आराधना ने फ़ोन रख दिया, रिंकी अब नीचे जा रही थी पर नज़र अब भी पंकज पर थी,
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शाम हो चला था चंचल, लेखा और रिंकी ने रात का खाना तैयार कर लिया था इंतज़ार था तो बस बाक़ी लोगो के संग आने का धीरे-धीरे धीरे सभी ने रात का खाना ख़त्म किया जैसे बाक़ी घरों में होता है पश्चात का काम निपटा के लेखा ने चंचल से वीडियो कॉल की बात छेड़ी दोबारा घर के सभी सदस्यों ने थोड़ी थोड़ी देर बात करके अपने अपने कमरे की ओर सोने के लिए प्रस्थान किया,
चंचल का मन दोपहर से ही किसी उधेड़ बुन में था हर थोड़े समय मे उसे आज दोपहर की घटना याद आ जाती थी यही हाल लेखा का भी था वो भी दोपहर में हुए अपने बेटे के संग घटित हुई घटना से बिचलित थी,
पीताम्बर के ना होने से लेखा आज पलंग में अकेली लेटी हुई थी उसकी आँखे बंद थी वो अपने फ़ोन में कुछदेख्ना चाहती तो उसे वो समय याद आ जाता की किस तरह उसने आज अपने इन्ही हाथों से अपने बेटे के कड़क लंड का पानी निकाला था,
दूसरी तरफ़ अनिमेष कमरे में कमल के होते हुए कहीं खोया हुआ था जैसे उसके दिमाग़ में कुछ चल रहा हो और अचानक से कमल को आ रहा हूँ बोलके कमरे सेबाहर् निकल जाता है,
अपने कदमों को दरवाज़े केबाहर् रोक दोबारा से कुछ सोचता है और आसपास नजरे घुमा के अपनी मम्मी लेखा के कमरे की ओर चल पड़ता है, जहाँ उसे दरवाज़ा बंद दिखता है और उसे धीरे-धीरे से खटखटाने लगता है,
लेखा जो किसी सोच में डूबी थी अचानक दरवाज़े के आवाज से उठ बैठती है और वहाँ पहुँच के पूछती है “कौन है” दूसरी तरफ़ से आवाज़ आता है “माँ मैं हूँ अनी” और लेखा दरवाजा खोल देती है संग ही अनी से प्रश्न करती है “बेटा तूइसे टाइमइधर क्या कर रहा है तुझे कुछ चाहिए क्या”
अनी “माँ मुझे बेचैनी सी हो रही थी तो आपसे मिलने आ गया क्या मैं अंदर आ जाऊ” अनी ने जवाब देते हुए कहा, लेखा ने हा कहते हुए दरवाज़ा बंद किया,
लेखा “क्या हुआ अनी सभी ठीक तो है ना बेटा”
अनी “हा मम्मी सभी ठीक है बस मुझे आपकी याद आ रही थी तो मैं आपसे मिलने चला आ गया”
लेखा “अच्छा पहले तो कभी नहीं आयाइसे तरफ़ अपनी मम्मी से मिलने दोबारा आज कैसे याद आ गई मेरी” पलंग को थोड़ा ठीक करते हुए बोली,
अनी “क्या मम्मी आप भी आज पापा नहीं और आप अकेले हो तो मुझे लगा आपसे मिलना चाहिएइसलिये मैं आ गया”
लेखा “अच्छा किया तू आ गया मैं भी बोर हो रही थी” और उसने पलंग में लेटते हुए अपने बेटे को लेटने का इशारा करने लगी,
अनी अपनी मम्मी को लेटे हुए देख रहा था वोएक नाइटी पहनी थी जिसको देख के ही लग रहा था लेखा ने शायद अंदर ब्रा और पेटीकोट नहीं पहनी थी अनिमेष भी अपनी मम्मी के बगल में लेट गया और उसकी तरफ़ करवट ले लिया,
लेखा ने उसके बालों में हाथ फेरा और उससे पूछा अनी “सब ठीक तो है ना बेटा”
अनी “हा मम्मी सभी ठीक है पर क्या आप अभी मेरीएक मदद कर सकती है”
लेखा “इसमें बोलने वाली क्या बात है तू बता क्या करना मैं सभी करूँगी तू मेरा बेटा है” लेखा ने उसकी मासूमियत को समझा और कहा,
अनी “क्या आप वो क्रीम लेके आई है दुकान से मुझे लगता है आज भी वो लगाना पड़ेगा”
लेखा “नहीं वो तो वही रह गया है और मुझे नहीं पता था तुझे जरूरत पड़ सकता है वरना मैं लेके आ जाती”
अनी “अच्छा कोई बात नहीं मैं बस लगा के थोड़ा आराम देना चाह रहा था”
थोड़ी देर दोनों मम्मी बेटे के बीच शांति छायी रही दोबारा लेखा ने अचानक ही अनी से कहा “मुझे दिखा तुझे वहाँ क्या हुआ है ज़्यादा दिक्कत तो नहीं है” और पलंग में बैठ के अपने बेटे के पजामे को अपने दोनों हाथों से नीचे खिसकाने लगी,
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रात के ११ बज चुके थे और रिंकी आज सुबह से कुछ ज़्यादा थक चुकी थीइसलिये जल्दी आराम करने पलंग में लेटते ही उसे नींद आ गई, वही हाल कमल का भी था वो अपने फ़ोन में किसी से बात करके और अनी का इंतज़ार करते करते जल्दी ही सो गया,
चंचल और उसके पति के बीच चुदाई पूरी होने के पश्चात पंकज ने चंचल से कहा “आज तुमको ज़्यादा आनंद नहीं आया क्या तुम कुछ शांत थी”
चंचल कपड़े ठीक करके बाथरूम से पुनः आ चुकी थी जिसके मन में दोपहर को लेकेएक असमंजस भरा था और वो अपने मन को शांत रखना चाह रही थी लेकिन पंकज ने उसे दोबारा कुरेद दिया,
“मैं…शांत…नहीं तो” अपने चेहरे पे क्रीम लगाते हुए बोली,
“ठीक है हो सकता है मेरा वहम हो” और उसे शुभ रात्रि बोलकेएक चुम्मा देकेएक करवट लेके सो जाता है,
चंचल जोएक बार अपने ससुर से मिलके पहुँचना चाह रही थी और अपने पति के करवट लेते ही पानी लेने रसोई के तरफ़ चल पड़ती है फिरएक बॉटल पानी अपने कमरे के लिए निकाल वही रख अपने ससुर के कमरे के तरफ़ जाने से पहले,
एक नज़र नीचे के बाक़ी कमरों में मारने चल पड़ती है जहाँ उसे कमल के कमरे का बल्ब बंद दिखता है जिससे वो समझ जाती है दोनों भाई सो चुके है पर लेखा के कमरे का बल्ब चालू होता है और वो उसके कमरे से आती प्रकाश का पीछा करते हुए आगे बड़ने लगती है,
इससे अनजान की कमरे के अंदर लेखा अपने बेटे अनि के संग अंदर क्या कर रही है, दरवाजे के पास पहुँच चंचल लेखा को आवाज लगाती है,
“लेखा मैं हूँ तू अभी तक जाग रही है क्या”
अंदर थोड़ी देर खामोशी के पश्चात बिना दरवाज़ा खोले लेखा ने कहा “हा दीदी बस सोने ही वाली थी कुछ काम है क्या”
चंचल “नहीं कुछ काम नहीं है बस प्रकाश देख के आ गई थी, ठीक है तू आराम कर मैं बस पानी लेने आई थी अब जा रही हूँ,
और चंचल के आगे बड़ते ही लेखा के कमरे का बल्ब बंद हो गया, चंचल को थोड़ा अजीब लगा पर उसके दिमाग़ में पहले से ही ससुर का ख्याल था तो वो ज़्यादा ध्यान ना देते हुए अपने ससुर के कमरे की तरफ़ चल पड़ी,
अंदर अँधेरा साफ़ दिख रहा था दरवाज़े पर खड़ी चंचल ने मन में सोचा “लगता है बाबू जी सो गए” और पुनः मुड़ के जाने को हुई पर जैसे ही उसकी नज़र खिड़की के अंदर से आते फ़ोन की प्रकाश पर पड़ी वो दोबारा रुक गई और वही खड़ी कुछ सोचकर रसोई के तरफ़ मुड़ गई,
वहाँ पहुँच उसने अगले पाँच मिनट में झट सेएक गिलास दूध गर्म किया और अपने ससुर के कमरे के पास पहुँच दरवाज़ा खटखटाया,
लगभगएक मिन पश्चात बल्ब जला और दरवाज़ा खुला, रमेश अपनी बहू से कुछ पूछ पाते उससे पहले ही चंचल अंदर जाते हुए कहने लगी “बाबू जी जैसा की मैंने कहा था आपको अब अपने सेहत पर ध्यान रखना है तो मैं ये दूध आपके लिए गर्म करके ले आई हूँ आप इसे पी लीजिएगा” और उसे पलंग के बगल में रखबाहर् की तरफ़ जाने लगी,
रमेश अभी भी दरवाज़े के पास ही खड़ा था उसने दरवाजा बंद करते हुए अपनी बहू को रोका और कहा “बहूएक मिन रुको, तुम अचानक आज दूध लेके आई और तुमको पता है ना मुझे ऐसे दूध पीनापस्न्द नहीं”
चंचल को कुछ समझ नहीं आया “मुझे कुछ नहीं पता आज से आपको पीना है वो भी रोज़एक गिलास”
रमेश “पर बहू”
चंचल “पर वर कुछ नहीं पता मुझे”
रमेश “अच्छा ठीक है मैं पी लूँगा पर तुम्हें जल्दी ना हो तो थोड़े देर मुझसे बात कर सकती हो”
चंचल तो ख़ुद रुकने का बहाना चाह रही थी जिसे ख़ुद उसके ससुर ने दे दिया “ठीक है बाबू जी जबतक आप दूध पीते है तब तक मैं रुक जाती हूँ”
चंचल जैसे ही पलंग की तरफ़ बड़ी पीछे से उसके ससुर ने गले से लगाते हुए कहा “धन्यवाद मेरी बहू मेरी बेटी मेरा इतना ध्यान रहने के लिए”
चंचल ने तुरत अलग होते हुए कहा “बाबू जी आप ठीक तो हो यहाँइसे तरह रहना ग़लत होगा किसी ने देख लिया जो मेरी शामत आ जाएगी”
रमेश ने दोबारा उसे सामने से गले लगाया और उसके कान के पास जाकर धीरे-धीरे से कहा “तुम्हें अच्छे से पता है बहू मुझे हर काम सावधानी से करनापस्न्द है”
चंचल ने अब कुछ नहीं कहा अपने ससुर के आवाज को इतने नजदीक से सुनके उसकी आंखे बंद हो गई उसके बदन मेंएक मदहोशी सी छाने लगी और उसने भी उसे गले से लगा लिया,
रमेश ने खड़े खड़े ही अपनी बहू के गर्दन को चूमना शुरुआत कर दिया था जिसका मतलब है अब उसकी बहू को भीइसे टाइमये बढ़िया लग रहा है, उसने तेजी दिखाते हुए चंचल के होठों को चूमना शुरुआत कर दिया,
दोनों ससुर बहूएक दूसरे के होठों को खा जाना चाह रहे थे रमेश ने अलग होते हुए कहा “बहू मुझे तो आज से ये दूध ज़्यादा बढ़िया लग रहा है” और उसके दोनों चूचो को नाइटी सेबाहर् निकाल चूसने लगा,
चंचल की आँखे बंद थी चेहरा छत की तरफ़ थी मुँह खुली हुई बस “आह बाबू जी और ज़ोर से दबा के चूसिये…. खा जाइये पूरा इसे” की आवाज़ आ रही थी, नीचे उसका ससुर उसके दोनों चूचो को दबा दबा कर चूस रहा था,
“बहू अब तो लगता है रोज़ बिना इसे चूसे मुझे नींद नहीं आएगी”
चूसने से चंचल को कुछ याद आया और अपनेएक हाथ से ससुर के लण्ड को पजामे के उपरि से ही सहलाने लगी ये समय रमेश के लिए उत्तेजना भरा रहा, उसकीएक आह निकल गई उसने जल्दी अपनी बहू को नीचे बैठने का इशारा किया,
अब तक दोनों की कामवासना जागृत हो चुकी थी बिना कुछ कहेएक दूसरे को समझाने लगे, चंचल नीचे बैठते ही पजामे से लण्डबाहर् निकाल ली, बिना देरी किए उसने अपने ससुर का लंड अपने गुलाबी होठों से अंदर ले जाने लगी,
अब रमेश की बारी थी आँखे बंद कर छत की तरफ़ देखने की, नीचे उसकी बहू लंड से खेलना शुरुआत कर चुकी थी, वोएक अच्छे खिलाड़ी के जैसे अपने ससुर को मज़ा दे रही थी,
चंचल नेएक हाथ को लंड पे रख उसे गले तक लेके चूसने लगी और दूसरे हाथ की दो उँगली को लगातार अपनी बुर के अंदरबाहर् कर रही थी, उसकी बुर लगातार अब पानी छोड़ने लगी, वो अब जल्दी से अपनी चूत को शांत करना चाह रही जिसके लिए उसे पहले ससुर का पानी निकालना था,
रमेश चंचल की तेजी से पागल हो रहा था वो कभी भी झड़ सकता था और सोच रहा था बहू कितनी कमाल की चूसती है इसका हुनर देख मेरा पानी कभी भी निकल सकता है,
अगले कुछ देर मेंएक आह भरते हुए ज्यादा तेज़ी से रमेश ने अपना पानी चंचल के मुँह में छोड़ने लगा और चंचल उसे बस पीते चली गई, रमेश थक के पलंग में आँखे बंद कर पांव नीचे रख लेट गया,
चंचल बिना देरी किए जल्दी ही नाइटी उपरि कर अपने बुर को सीधे ससुर के मुंह में रख दी और ये रमेश के लिएएक और झटका था पर उसने भी बिना हार माने अपने दोनों हाथों को बहू की गांड पे रख उसकी चूत को चूसने लग जाता है,
चंचल को यही तो चाहिए था किसी तरह उसका भी पानी चूत से निकले और उसकी ये चाहत अब उसका ससुर पूरा करने वाला था, उसने आह भरते हुए अपनी चूत को ससुर के मुँह में रगड़ने लगी, उसकी चूत ने आज के दिन में इतनी बार पानी छोड़ा था उसे ख़ुद पता नहीं था,
क़रीब दस मिन की चटाई और चुसाई ने आख़िरकार चंचल को झड़ने में मजबूर कर ही दिया था,एक दर्द भरी आह ने उसे झाड़ दिया और सुकून से थोड़ी देर के वही बगल में लेट गई,
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