अनैतिक
अब काम बढ़ता जा रहा था और अब हमेंएक कॉन्फ्रेंस रूम चाहिए था जहाँ हम किसी से मिल सकें या दोबारा यदि कोई टीम मीटिंग करनी हो. उसी बिल्डिंग में सबसे उपरि का फ्लोर खाली था. तो मैंने नितु से उसके बारे में बात की. वो शुरू-शुरू में डरी हुई थी क्योंकि रेंट डबल था पर चूँकि वहाँ कोई और ऑफिस नहीं था जबतक कोई नहीं आता तो हम पूरा फ्लोर इस्तेमाल कर सकते थे! नितु को आईडियापस्न्द आया और हमने मालिक से बात की, अब उसे दो कमरों के लिए तो कोई भी किरायदार मिल जाता पर पूरा फ्लोर लेने वाले कम लोग थे. सारा ऑफिस सेट हो गया था. आज मुझे मेरा अपना केबिन मिला था.मेरा अपना! ये मेरे लिए ज्यादा बड़ी उपलब्धि थी और इसके लिए मैंने ज्यादा मेहनत भी की थी. अपनी बॉस चेयर को मैं बसएक टक निहारे जा रहा था. मेरे अंदर ज्यादा ख़ुशी थी जो आँसू बन कर टपक पडी. नितु जो मेरे पीछे खडी थी उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मुझे ढाँढस बँधाने लगी. "काश मेरे मम्मी और पिताजी इधर होते तो आज उनका कितना गर्व हो रहा होता!" मैंने कहा पर वो सभी तो वहाँ अश्विनी की खुशियों में लीन थे, मुझसे उनका कोई सरोकार नहीं रह गया था. "सागर आज ख़ुशी का दिन है, ऐसे आँसू बहा करइसे दिन को खराब ना करो! आई नो तुम अपने माँ-पिताजी को मिस कर रहे हो पर वो अपनी ख़ुशी में व्यस्त हैं." नितु ने कहा और तभी बाकी के सारे अंदर आये और मुझे ऐसा देख कर मुझे चियर करने के लिए बोले; "सर आज तो पार्टी होनी चाहिए!"
"अबे यार काम भी कर लिया करो, हर बार पार्टी चाहिए तुम्हें!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा, पर उनकी ख़ुशी के लिएबाहर् से खाना मंगा लिया.
इधर युएस से हमेंएक और कॉन्ट्रैक्ट मिल गया और वो भी पूरे वर्ष का. काम डबल हो गया था और अब हमेंएक और इम्प्लोयी की दरकार हुई और संग मेंएक प्यून भी जो चाय वगैरह बनाये.अब तक तो हम चायबाहर् से पिया करते थे. प्यून के लिए हमने अल्का को ही रख लिया औरएक और इम्प्लोयी को नितु ने हायर किया. नितु के शुरुआत के दिनों में वो यहाँएक हॉस्टल में रहतीं थीं और ये लड़की उनकी रूममेट थी.एक लड़की के आने से लड़के भी जोश में आ गए थे और तीनों उसे काम में मदद करने के बहाने से घेरे रहते. "गाईज सारेएक संग समझाओगे तो कैसे समझेगी वो?" मैंने तीनों की टांग खींचते हुए कहा. ये सुन कर सारे हँस पड़े थे, नितु बड़ा ख़ास ध्यान रखती थी की ये तीनों कहीं इसी के चक्कर में पड़ कर काम-धाम न छोड़ दें और वो जब भी किसी को उस लड़की के संग देखती तो घूर के देखने लगती और लड़के डर के पुनः अपने डेस्क पर बैठ जाते. तीनों लड़के मन के साफ़ थे बस छिछोरपना भरा पड़ा था. नितु ने उसे अपने संग रखना शुरुआत कर दिया और ये तीनों मेरे पास आये; "सर देखो न मॅडम ने उसे अपना संग रख लिया है, सारा टाइम वो उनके संग ही बैठती है, ऐसे में हम उससे फ्रेंडशिप कैसे करें?"
"क्या फायदा यार, आखिर में उसने तुम्हें फ्रेंड झोन कर देना है!" मैंने कहा.
"सर ट्राय ट्राय बट डोन्ट क्राय!" आकाश बोला.
"अच्छा बेटा, करो ट्राय फिर! मैंने कुछ कहा तो मेरी क्लास लग जाएगी!" मैंने ये कहते हुए स्वयं को दूर कर लिया.
फिरएक दिन की बात है मैं और नितु अपने-अपने केबिन में बैठे थे की उस लड़की का बॉयफ्रेंड उसे मिलने ऑफिस आया. वो उससे बात कर रही थी और इधर तीनों के दिलएक संग टूट गए! मैं ये देख कर दहाड़े मार कर हँसने लगा, सभी लोग मुझे ही देख रहे थे और मैं बस हँसता जा रहा था. नितु अपने केबिन से मेरे पास आई और पूछने लगी तो मैंने हँसते हुएउन्को सारी बात बताई. तो वो भी हँस पड़ीं और तीनों लड़के शर्मा ने लगे औरएक दूसरे की शक्ल देख कर हँस रहे थे!
"कहा था मैंने इन्हें की फ्रेंड झोन हो जाओगे पर नहीं इन्हें ट्राय करना था!" मैंने हँसी काबू करते हुए कहा.
"क्या सरएक तो इधर कट गया और आप हमारी ही ले रहे हो!" आकाश बोला.
"बेटा भगवान् ने दी है नाएक गर्लफ्रेंड उसी के संग खुश रहो, अब जा कर पंडित जी के संग बैठ कर जी. एस. टी. की रिटर्न फाइनल कर के लाओ" मैंने उसे प्रेम से आर्डर देते हुए कहा और वो भी मुस्कुराते हुए चला गया.नितु भी ज्यादा खुश थी क्योंकि उन्होंने मेरी सभी के संग अंडर स्टँडिंग देख ली थी.
ऐसे ही हसी मजाक मे दिन बीते.एक दिन हम दोनों शाम को बैठे चाय पी रहे थे;
मैं: यार थोड़ा बोर हो गया हूँ, सोच रहा हूँ कीएक ब्रेक ले लेते हैं!
नितु: सच कहा तो बताओ कहाँ चलें? कोई नई स्थान चलते हैं!
मैं: मेरा मन ट्रेकिंग करने को कर हे.
नितु: वाव!!!
मैं: खीरगंगा का ट्रेक छोटा है, वहाँ चलें?
नितु: वो कहा है?
मैं: हिमाचल प्रदेश में हे. हालाँकि ये बारिश का सीजन पर आनंद ज्यादा आयेगा.
नितु: ठीक है डन!
मैं: पर पहले बता रहा हूँ की ट्रेकिंग आसान नहीं होती, वहाँ जा कर आधे रास्ते से पुनः नहीं आ सकते. चाहे जो हो ट्रेक पूरा करना होगा!
नितु: तुम संग हो ना तो क्या दिक्कत है?!
मैं: ठीक है तो तुम टिकट्स बुक करो और मैं गियर खरीदता हु.
नितु: गियर?
मैं: और क्या? रक सॅकचाहिए, रेन कोट चाहिए, ट्रैकिंग के लिए शूज चाहिए वरना वहाँ फिसलने का खतरा हे.
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नितु ने टिकट्स बुक की और जानबूझ कर ऐसे दिन पर करि ताकि वो मेरा बर्थडे वहीं मना सके, इधर मैंने भी अपनी तैयारी पूरी की. ३० अगस्त को हम निकले और दिल्ली पहुँचे, वहाँ दो दिन का स्टे था. दिल्ली में जो पहली चीज मुझे देखनी थी वो था इंडिया गेट.वहाँ पहुँच कर गर्व से सीना चौड़ा हो गया, अब चूँकि मुझ पर कोई खाने-पीने की बंदिश नहीं थी तो मैं नितु को लेकर निकल पडा. दिल्ली आने से पहले मैंने 'पेट भर' के रिसर्च की थी जिसके फल स्वरुप इधर पर क्या-क्या मिलता है वो सभी मैंने लिस्ट में डाल लिया था.
सबसे पहले हमने पहाड़गंज में सीता राम दीवान चाँद के छोले भठूरे खाये. हमनेएक ही प्लेट ली थी क्योंकि आज हमें पेट-फटने तक खाना था. वहाँ से हम देल्ही मेट्रो ले कर चावड़ी बजार आ गए और वहाँ हमने सबसे पहले नटराज के दही भल्ले खाये, दोबारा जुंग बहादुर की कचौड़ी, दोबारा जलेबी वाला की जलेबी और लास्ट में कुरेमल की कुल्फी! पेट अब पूरा गले तक भर गया था और अब बस सोना था.
अगले दिन भी हम खूब घूमें और शाम ६ बजे चेकआउट किया, उसके पश्चात हम सीधा कश्मीरी गेट बस स्टैंड आये और वहाँ से हमें व्होल्व्हो मिली जिसने हमें अगली सुबह भुंतर उतारा| हमारी किस्मत अच्छी थी की बारिशें बंद हो चुकीं थींइसलिये हमें कोई तकलीफ नहीं हुई. भुंतर से टैक्सी ले कर हम कसोल पहुँचे और वहाँ समान रख कर फ्रेश हुए और सीधा मणिकरण गुरुद्वारे गए वहाँ, गर्म पानी में मुंह-हाथ धोये और लंगर का प्रसाद खाया.वापस आ कर हम सो गए क्योंकि अगली सुबह हमें जल्दी निकलना था.
सुबह हमनेएक रक सॅक लिया जिसमें कुछ समान था!एक बस ने हमें वहाँ उतारा जहाँ से ट्रैकिंग शुरुआत होनी थी और रास्ता देखते ही दोनों की हवा टाइट हो गई. बिलकुल कच्चा रास्ता जोएक छोटे से गाँव से होता हुआ जाता था और दोबारा पहाड़ की चढ़ाई! पर वहाँ का नजारा इतना अद्भुत था की हम रोमांच से भर उठे और ट्रैकिंग शुरुआत की. रास्ता सिर्फ दिखने में ही डरावना था पर वहाँ सहूलतें इतनी थी की कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन सिर्फ आधे रास्ते तक! रुद्रनाग पहुँच कर हमने वहाँ मंदिर में दर्शन किये और आगे बढे, उसके आगे की चढ़ाई बिलकुल खड़ी और रिस्की थी! ये देख कर नितु ने ना में गर्दन हिला दी. "मैं नहीं जाऊँगी आगे!" नितु बोली.
"यार आधा रास्ता पहुचं गए हैं और अब हार मान लोगे तो कैसे चलेगा?" ये कहते हुए मैंने उनका हाथ पकड़ा और आगे ले कर चल पडा. मैं आगे-आगे था औरउन्को बता रहा था की कहाँ-कहाँ पांव रखना हे. आगे हमें के संकरा रास्ता मिला जहाँ सिर्फएक पाँव रखने की स्थान थी और वहाँ थोड़ा कीचड भी था. मैं आगे था और रक सॅक उठाये हुए था और नितु मेरे पीछे थी. उन्होंने मिट्टी में जूते गंदे ना हो जाएँ ये सोच कर पाँव ऊँचा-नीच रखा जिससे उनका बैलेंस बिगड़ गया और वो खाईं की तरफ गिरने लगीं, मैंने जल्दी फुर्ती दिखाई और उनका हाथ पकड़ लिया वरना वो नीचे खाईं की तरफ गिर जातीं.उन्हें खींच कर उपरि लाया और वोएक दम से मेरे सीने से लग गईं और रोने लगी. इन कुछ पलों में उन्होंने जैसे मौत देख ली थी. मैंने उनके पीठ को बहुत रगड़ा ताकि वो चुप हो जाये. आधे घंटे तक हम वहीं खड़े रहे और लोग हमें देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे. मैं चुपचाप था और कोशिश कर रहा था की वो चुप हो जाएँ ताकि हम वापिस जा सकें! उन्होंने रोना बंद किया और मैंनेउन्को पीने को पानी दिया. दोबारा खाने के लिएएक चॉकलेट दी और जब वो नार्मल हो गईं तो कहा; "चलो पुनः चलते हैं!" पर वो जानती थी की मेरा मन उपरि जाने का हैइसलिये उन्होंने हिम्मत करते हुए कहा; "मैंने कहा था ना की मुझे संभालने के लिए तुम हो! तो दोबारा पुनः क्यों जाएंगे? गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में। वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले." नितु ने बड़े गर्व से कहा. मैंने उनका हाथ पकड़ करउन्को उठाया और गले लगाया, उनके माथे को चूमते हुए कहा; "आई एम प्राउड ऑफ यू!" हम आगे चल पड़े और बड़ी सावधानी से आगे बढे, टाइम थोड़ा ज्यादा लगा पर हम उपरि पहुँच ही गये.
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सबसे पहले हमनेएक टेंट बुक किया और अपना समान रख कर फोटो क्लिक करने लगे. आज दो तरीक थी और नितु को रात बारह बजे का बेसब्री से इंतजार था. हम दोनों कुर्सी लगा कर अपने ही टेंट केबाहर् बैठे थे. अब वहाँ कोई नेटवर्क नहीं था तो हम बस बातों में लगे थे और वहाँ का नजारा देख कर प्रफुल्लित थे.
शाम को खाने के लिए वहाँ मॅगी और चाय थी तो हमने बड़े चाव से वो खाई| रात के खाने में हमने दो थालियाँ ली और टेंट केबाहर् ही बैठ कर खाई| बारह बजे तक नितु ने मुझे सोने नहीं दिया और मेरे संग बैठ के बातें करती रही, अपने जिंदगी के किस्से सुनाती रही और मैं भीउन्को अपने कॉलेज लाइफ के बारे में बताने लगा. इसी बीच मैंनेउन्को वो भांग वाले काण्ड के बारे में भी बताया. जैसे ही बारह बजे नितु ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खड़ा किया और मेरे गले लग कर बोलीं; "हॅपी बर्थ डे माई डिअर! गॉड ब्लेस यू!" इतना कहते हुए उनकी आवाज भारी हो गई. मैनेउन्को कस कर गले लगा लिया ताकि वो रो ना पड़ें.कुछ देर में वो नार्मल हो गईं और हम सोने के लिए अंदर आ गये.
सुबह जल्दी ही आँख खुल गई. फ्रेश होने के पश्चात उन्होंने मुझे कहा की उपरि मंदिर चलते हे. मंदिर के बाहरएक गर्म पानी का स्त्रोत्र था जिसमें सारे लोग नहा रहे थे, हमने हाथ-मुंह धोया और भगवान के दर्शन करने लगे. दर्शन के पश्चात नितु ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वहाँएक पत्थर पर बैठने को कहा. "मुझे तुमसे कुछ बात करनी है!" नितु ने ज्यादा गंभीर होते हुए कहा.एक समय के लिए मैं भी सोच में पड़ गया कीउन्को आखिर बात क्या करनी है?
"सागर मैं तुमसे प्रेम करती हूँ.सच्चा प्यार!" नितु ने गंभीर होते हुए कहा.
"आप ये क्या कह रहे हो?" मैंने चौंक कर खड़े होते हुए कहा.
"जब हम कुमार के ऑफिस में प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे तभी मुझे तुमसे प्रेम हो गया था! पर मैं उस टाइमकुमार की पत्नी थी.इसलिये कुछ नहीं बोली! बड़ी हिम्मत लगी और दोबारा तुम्हारे सहारे के कारन मैं आजाद हुई. दोबारा घरवालों ने मुझे तन्हा छोड़ दिया ओर ऐसे में मैं तुम्हारे लिए बोझ नहीं बनना चाहती थी.इसलिये तुम से दूर बैंगलोर आ गई और सोचा की जिंदगी दुबारा शुरुआत करूँगी पर तुम्हारी यादें संग नहीं छोड़ती थी. ज्यादा कोशिश की तुम्हें भुलाने की और भूल भी गई.इसलिये मैंने अपना नंबर बदल लिया था क्योंकि मेरा मन जानता था की तुम मुझे कभी नहीं अपनाओगे. देखा जाए वो सही भी था क्योंकि उस टाइम तुम अश्विनी के थे, यदि मैं तुमसे अपने प्रेम का इजहार भी करती तो तुम मना कर देते और तब मैं टूट जाती. बड़े मुश्किल से डरते हुए मैं दुबारा लखनऊ आई, क्योंकि जानती थी की तुम्हारे सामने मैं स्वयं को संभाल नहीं पाऊँगी परएक बार और अपने मम्मी-डैडी से रिश्ते सुधारने की बात थी. लेकिन उन्होंने तो मुझसे बात तक नहीं की और घर सेबाहर् निकाल दिया. दोबारा उस रात जब मैंने तुम्हें उस बस स्टैंड पर देखा तो मैं बता नहीं सकती मुझ पर क्या बीती.दूर से देख कर ही मन कह रहा था की ये तुम नहीं हो सकते, तुम्हारी ऐसी हालत नहीं हो सकती! वो रात मैंने रोते-रोते गुजारी .फिर ये तुम्हारी बिमारी और वो सब. मैंने ज्यादा सम्भलने की कोशिश की पर ये दिल अब नहीं सम्भलता!" नितु ने रोते-रोते कहा.
"आप मेरे बारे में सभी नहीं जानते, यदि जानते तो प्रेम नहीं नफरत करते!" मैंने उनका कन्धा पकड़ करउन्को झिंझोड़ते हुए कहा.
"क्या नहीं पता मुझे?" नितु ने अपना रोना रोकते हुए पुछा?
"मेरे और अश्विनी के रिश्ते के बारे में" मैंने उनके कन्धों को छोड़ दिया.
"तुम उससे प्रेम करते थे और उसने तुमसे धोखा किया, बस!" नितु ने कहा.
"बात इतनी आसान नहीं है!. हम दोनों असल जिंदगी में चाचा-भतीजी थे!" इतना कहते हुए मैंनेउन्को सारी कहानी सुना दी, उसका मुझे धोखा देने से ले कर उसकी शादी तक सभी बात!
"तो इसमें तुम्हारी क्या गलती थी? आई वो थी तुम्हारे पास, तुम तो अपने रिश्ते की मर्यादा जानते थे ना? तभी तो उसे मना कर रहे थे, और रिश्ते क्या होते हैं? इंसानउन्को बनाता है ना? हमारा ये दोस्ती का रिश्ता भी हमने बनाया ना? यदि तुमने उससे अपने प्रेम का इजहार किया होता तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता! फर्क पड़ता है तो सिर्फइसे बात से की अभी तुम क्या चाहते हो? क्या तुम उससे अब भी प्रेम करते हो? क्या तुम्हारे दिल में उसके लिए अब भी प्रेम है?" नितु ने मुझे झिंझोड़ते हुए पूछा. में नितु की बातों में खो गया था. क्योंकि जिस सरलता से वोइसे सभी को ले रहे थीं वो मेरे गले नहीं उतर रही थी! पर उनका मुझे झिंझोड़ना जारी था और वो जवाब की उम्मीद कर रहीं थी.
"नहीं.मैं उससे सिर्फ नफरत करता हूँ! उसकी वजह से मुझे मेरे ही परिवार से अलग होना पड़ा!" मैंने कहा.
"तो दोबारा क्या प्रॉब्लम है? इतने दिनों मेंएक छत के नीचे रहते हुए तुम्हें कभी नहीं लगा की तुम्हारे दिल में मेरे लिए थोड़ा सा भी प्रेम है?" नितु ने पूछा.
"हुआ था.कई बार हुआ पर.मुझ में अब दुबारा टूटने की ताक़त नहीं हे." मैंने नितु की आँखों में देखते हुए कहा. ये मेरा प्रश्न था की क्या होगा यदि उन्होंने भी मेरे संग वही किया जो अश्विनी ने किया.
"मैं तुम्हें कभी टूटने नहीं दूँगी! मैं तुमसे ज्यादा प्रेम करती हूँ!" नितु ने पूरे आत्मविश्वास से कहा. उस समय मेरा दिमाग सुन्न हो चूका था. बसएक दिल था जो प्रेम चाहता था और उसे नितु का प्रेम सच्ची लग रहा था. पर स्वयं को दोबारा से टूटते हुए देखने का डर भी था जो मुझे रोक रहा था.
"मैं तुम्हारा डर समझ सकती हूँ, पर हाथ की सभी उँगलियाँएक सी नहीं होतीं. अगरएक लड़की ने तुम्हें धोखा दिया तो जरुरी तो नहीं की मैं भी तुम्हें धोका दूँ? उसके लिए तुमबाहर् जाने का रास्ता थे, पर मेरे लिए तुम मेरी पूरी जिंदगी हो!" मेरा दिल नितु की बातें सुन कर उसकी ओर बहने लगा था. पर जुबान खामोश थी!
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