Rajsharma Sex Story : प्रेम सेक्सी कहानी डॉली और राज की (Romance Special)
† अंततः डॉली को परीक्षा दिए हुए 2 महीने बीत चुके थे ,और 1 दिन गांव के मुखिया ने आकर बताया कि डॉली का आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के लिए नाम आया है खबर गांव की मुखिया को ही दी जाती थी जिससे वह डॉली के बारे में सही जानकारी दे पाए, उस वक्त राज ढाबे पर काम कर रहा था ,,जब उसने ये खबर सुनी तो सरपंच साहब को लेकर अंदर घर आ गया ,और घर आकर डॉली को नौकरी की बात बताई, ये सुनकर तो डॉली के पांव जमीन पर ही नहीं पढ़ रहे थे ,क्योंकि आज काकी और राज की मेहनत का फल डॉली को मिला था
राज ने मुखिया जी की अच्छे से आवभगत की उनका मुंह मीठा करवाया ,औरउन्को खबर देने के लिए शुक्रिया भी किया, मुखिया साहब ने कुछ जरूरी पूछताछ की फिर भी डॉली के पास सारे पेपर तैयार थे तो डॉली फॉर्म भरकर मुखिया जी को दिया मुखिया जी ने अपने साइन किये, और सील लगा दी ,कि डॉलीइसे पद के लिए बिल्कुल योग्य उम्मीदवार है ,और सच ही था डॉली अपनी नौकरी से पहले ही सभी की दिल खोलकर मदद करती थी ,लगभगएक महीने पश्चात डॉली का आंगनबाड़ी केंद्र खुल चुका था जिसमें 2 सहायकाऐ औरएक हेल्पर डॉली को मिले थे,
आंगनबाड़ी की हेड डॉली ही थी धीरे-धीरे अपनी समझदारी और होशियारी से अपनी आंगनबाड़ी का बहुत विकास कर लिया था ,
आंगनवाड़ी को ज्यादा सुंदर तरीके से सजाया ,उसके आगे छोटा सा गार्डन था, जिसमें झूले और खेलने के ज्यादा सारे सामान बच्चों के लिए लाए गए थे
,बच्चों को टाइम पर खाना देना,
उनकी पढ़ाई की व्यवस्था करना,
उन्हें खिलाना
,गर्भवती महिलाओं की देखरेख करना ,
उन्हें पोषित आहार देना ,
उनका नामांकन करना ,
बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट बनाना ,
जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य की जांच करवाना ,
डॉली सारे काम बखूबी कर रही थी, गांव की औरतें और बच्चे पहले से ज्यादा समझदार हो गए थे डॉली
समय-समय पर उनके घर भी जाती और उनको स्वच्छ सफाई के बारे में भी बताती , कुल मिलाकर बह सारे फर्ज बखूबी निभा रही थी ,जोएक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को निभाने चाहिए ,कुल मिलाकर डॉली अभी जिम्मेदार स्त्री बन चुकी थी ,,
जब तक वह घर में रहती घर के सारे फर्ज बखूबी निभाती,,, काकी के संग घर के काम में पूरा हाथ बटाना ,राज का जो थोक का सामान आता उसका सारा हिसाब किताब रखना ,घर की सारी जिम्मेदारियों को समझना, डॉली के ही कंधों पर था,और वह अपनी जिम्मेदारी को किसी बोझ की तरह नहीं ,बल्कि फर्ज की तरह खुशी-खुशी निभाती थी ,और जैसे ही घर से निकलती तो दोबारा पूरी तरह से आंगनबाड़ी के काम में स्वयं को समर्पित कर लेती ,,डॉली को मेहनत की आदत तो बचपन से ही थी, पर उसने अपनीइसे आदत को कम नहीं होने दिया बल्कि इसको और बढ़ाया ,,ढाबे के भी कई बातों में राज डॉली कि सलाह लेता था, डॉली ऑनलाइन सामान देखकर उसका भी ऑर्डर दे देती थी, इससे बहुत कम रेट में और बढ़िया सामान आ जाता ,,इसलिए राज को शहर के चक्कर कम ही लगाना पढ़ते थे यदि कहा जाए कि डॉली के बिना राज और काकी की जिंदगी अधूरी थी तो ये कहना गलत नहीं होगा,,,,,,,,
अब काकी और राज दोनों डॉली की तरफ से निश्चिंत हो गए थे, क्योंकि उन्होंने जितनी मेहनत डॉली के संग की थी वह संपन्न हो चुकी थी, शुरुआत छोटी ही सही मगर डॉली अपने पैरों पर खड़ी हो गई ,और सबसे अच्छी बात तो ये थी कि छोटी सी नौकरी को भी डॉली नेएक अलग नजर से देखा और वह नौकरी से ज्यादाइसे गांव के अनपढ़ और गरीब लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहती थी, महिलाएं बच्चे जब भी किसी को कोई दिक्कत होती तो बेझिझक डॉली के पास अपनी परेशानी लेकर पहुंच जाते, और जितना होता डॉली उनकी समस्या को हल करने की कोशिश करती, आंगनबाड़ी की जांच करने जब भी बड़े ऑफिसर आते तो डॉली के काम से हमेशा खुश होकर ही जाते थे, डॉली ने आंगनबाड़ी के सामान में कभी भी कोई बेईमानी नहीं कि पूरी ईमानदारी के संग बच्चों को उनके हिस्से का राशन पानी और सुविधाएं हमेशा दीं,और गर्भवती महिलाओं को भी वह हमेशा समझाती कि तुम्हें कितने पोषण की जरूरत है ,और क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिए, जिस तरह काकी और राज अपने काम में ईमानदार थे ,ठीक वही संस्कार
डॉली के अंदर भी आए, डॉली भले ही बस्ती में रहती थी, पर बचपन से उसमें अपनी मम्मी के संस्कार थे ,और जब बड़ी होकर काकी के यहां आई तो राज की ईमानदारी काकी की मेहनत और दोनों की लगन, डॉली ने सारे गुणों को अपने अंदर समाहित किया, जब भी कोई डॉली की तारीफ करता तो राज का सीना चौड़ा हो जाता ,यह जानकर उसकी महारानी कितनी सही तरीके से आगे बढ़ रही है, उसने डॉली से जितनी उम्मीद की थी, डॉली ने उससे कहीं ज्यादा करके दिखाया ,डॉली कहने को तो 20 वर्ष की हो चुकी थी, 21वी मैं चल रही थी ,पर उसकी समझदारी बिल्कुल परिपक्व स्त्री की तरह ही थी ,उसे अच्छे बुरे की समझ थी ,उसमें दूर दृष्टि थी इंसान के चेहरे से बह समझ जाती थी, कि ये कैसा है ,और शायद इतनी ज्यादा समझदारी डॉली को अपनी परेशानियों के चलते ही आई थी ,हमेशा ही उसने अपनी उम्र से ज्यादा काम का बोझ अपने कंधों पर उठाया था ,लेकिन जब से वह काकी के पास आई तब से उसने खुशी खुशी और अपने हौसले को आगे बढाया था, और उसने कर दिखाया था कि यदि हम चाहे तो दुनिया की कोई भी ताकत हमें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती, परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, हमें हिम्मत से काम लेनाचाहिए, ज्यादा सारे ऐसे काम थे जिनकी तरफ से काकी और राज निश्चिंत हो गए थे ,,,,अपनी डॉली को नौकरी करते 1 वर्ष हो चुका
था ,जिंदगी अपनी पूरी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी, डॉली भी 21 वर्ष की हो चुकी थी ,और चाहे वह कितनी भी समझदार हो जाए कितनी भी बड़ी हो जाए पर राज हमेशा उसका ध्यान रखता ,उसकी नजर से बच नहीं पाता था कि कोई डॉली को किस नजर से देख रहा है, वह खुश है या दुखी है जिस दिन से डॉली उसके घर में आई, उस दिन से आज तक, राज की आंखों का सुरक्षा कवच हमेशा उसके आसपास होता था, उसने डॉली को खुलकर जीने की आजादी दे दी थी, कि वह पूरी तरह से अपने पंख फैला कर उड़ सकती है, लेकिन संग ही उसका ख्याल भी रखता की बहन निडर होकर अपनी उड़ान को पूरा करे,,
और डॉली ने भी ऐसा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, गांव के सभी बच्चे और महिलाएं डॉली के पास अपनी परेशानियों को लेकर आते ,और वह जितना हो सकता कोशिश करती थी सबको सही सलाह दे सके ,डॉली की आंगनबाड़ी में जब भी कोई ऑफिसर चेक करने आता तो वह हमेशा डॉली के काम से खुश होकर ही यहां से पुनः जाता था ,वह देखता था कि किस तरह से डॉली ने आंगनबाड़ी की परिभाषा बदल कर रख दी है ,,,जहां पहले आंगनबाड़ी को लोग गरीबों का केंद्र समझते थे, वहां जाने मेंउन्को संकोच लगता था, पर डॉली ने अपनी आंगनबाड़ी का विकाश इतने अच्छे से किया था ,कि गांव के अच्छे ,बड़े ,,छोटे ऊंचे नीचे सभी लोग आगनबाडी में आकर अपने बच्चे का और गर्भवती महिलाओं का रजिस्ट्रेशन करवाते,,
क्योंकिउन्को पता था कि डॉली अपनी रिस्पांसिबिलिटी को बखूबी निभाती है ,बच्चों का या महिलाओं का हक डॉली ने कभी भी उन से वंचित नहीं होने दिया था, जिसके हिस्से में जितना भी आता वह उन तक अवश्य पहुंचाती थी, यहां तक कि उनके घर घर जाकर भी स्वच्छ सफाई स्वच्छता और पोषण का महत्वउन्को समझाती,, चार पांच वर्ष तक के बच्चों का विकास जब आंगनबाड़ी में हो जाता तो उसके बादउन्को कक्षाएक से स्कूल भेजना ठीक था ,पर डॉली ने देखा कि गांव में स्कूल ना होने की वजह से आंगनबाड़ी के पश्चात बच्चा घर में ही रहता है, तो उसे ज्यादा दुख होता था ,क्योंकि डॉली ने जिस स्कूल से शिक्षा ली थी वहां से 3,4 किलोमीटर दूर था और छोटे बच्चों के लिए ये दूरी बहुत थी जो बड़े बच्चे थे वह तो स्वयं साईकिल से या दोबारा इकट्ठे होकर स्कूल चले जाते ,लेकिन कक्षा चौथी तक के बच्चे खासकर ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता स्कूल भेजने में सक्रिय नहीं है ,वह घर पर ही रह जाते थे, या तो उनकी पढ़ाई लेट होती थी, या दोबारा छूट जाती थी ,इन सभी बातों को देखकर कब से डॉली के मन में चल रहा था कि वह कक्षाएक से चौथी तक के लिए गांव मेंएक स्कूल खुलवाए ,इसके लिए डॉली ने जिला कलेक्टर को भी ऑनलाइन एप्लीकेशन दे दी थी, और गांव के मुखिया के पास भी लिखित में समस्याओं के बारे में बता कर अर्जी लगा चुकी थी, डॉली इसी काम के लिए भागदौड़ कर रही थी ,,उसकी पहल को देखते हुए गांव के कुछ समझदार लोग भी
डॉली के संग हो गए थे, और डॉली नेइसे बारे में राज से भी बात कर ली,,, राज ने भी कह दिया था कि उसकी मदद की जरूरत होगी वह जरूर करेगा,, डॉली आंगनबाड़ी के साथ-साथ,,
राज का भी पूरा ध्यान रखती थी, खासकर आंगनवाड़ी जाने से पहले राज और काकी को अच्छे से नाश्ता और फल खिलाकर ही जाती थी ,क्योंकि उसे पता था किएक बार वह चली गई और यदि राज का नाश्ता रह गया, तो काकी भी काम में लग जाएगी और राज को तो ढावे के अलावा कुछ दिखता ही नहीं ,,,अगर कभी राज नाश्ता किए बिना ढाबे पर चला जाता ,तो वह उसकी प्लेट लगाकर उसके पीछे ढाबे पर पहुंच जाती ,और जब तक अपनी आंखों से नहीं देख लेती कि राज ने पूरी प्लेट ख़त्म कर ली है ,अब तक वहीं खड़ी रहती, राज भी डॉली कि बात को समझता था ,इसलिए काम करते करते हुए भी वह अपनी प्लेट जल्दी से ख़त्म करता ,और पुनः उसे देते हुए कहता सहजादी अब घूरना बंद कर और आंगनबाड़ी जा,अपुन का टाइम भी खोटा हो रहा है ,और डॉली राज से प्लेट लेकर चुपचाप रखकर आंगनबाड़ी चली जाती ं,,,,,,,,,,
डॉली ने कॉमर्स विषय के संग पढ़ाई की थी तो वह लेन-देन का हिसाब बहुत अच्छे से समझती थी ,और जब से उसने आंगनबाड़ी में काम करना शुरुआत किया तो अपने जिंदगी को सुरक्षित बनाना, उसको सही तरीके से चलाने का हुनर उसमें आ गया था ,क्योंकि आंगनबाड़ी
की मीटिंग में समय-समय पर ये सारी बातें बताई जाती है ,इसी को देखते हुए डॉली ने राज के ढाबे का और राज का बीमा भी करवा दिया था ,उनकी किस्तों की याद दिलवाना और टाइमपर किस्त भरना भी डॉली की जिम्मेदारी में ही आता था, डॉली जब भी ढाबे पर जाती तो वहां काम करने वाले लड़के समझ जाते कि जरूर राज भैया ने कोई ऐसा काम किया है जो वह भूल गये है ,और वह डॉली को देखकर ही राज को चिढ़ाने लगते कि राज भैया तैयार हो जाइए ,डॉली दीदी आपकी डांट लगाने आ रही हैं ,राज सच में सोचने लगता कि कौन सा काम ऐसा है जो छूट गया और जिसके लिए महारानी उसे सुनाने ढाबे पर आ रही है,,, पर वह रौब झाड़ते हुए कहता अपुन डरता है ,क्या महारानी से ,आने दे उसे अभीएक डांट लगाऊंगा तो उल्टे पांव यहां से चली जाएगी ,लेकिन जैसे ही डॉली आकर अपनी बात उसके सामने रखती, तो उसकी बात इतनी सही होती कि राज चुप रह जाता,,,,
गांव के सभी लोग जानते थे कि डॉली और राज का रिश्ता बिल्कुल पानी की तरह है निर्मल और पवित्र जिसके आर पार अच्छी तरह से देखा जा सकता है ,कहने को तो डॉली और राज के बीच ऐसा कोई भी रिश्ता नहीं था ,जिसे नाम दिया जा सके,पर कुछ बेनाम रिश्ते भी इतनी मजबूती से बंध जाते हैं कि उनकी गहराई का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, कुछ ऐसा ही रिश्ता था राज का डॉली के संग ,,,,कहने को
राज भी 31 वर्ष का हो चुका था, अपनी जिम्मेदारियों का एहसास भी उसे ज्यादा अच्छे से था, पर उसके अंदर अभी भीएक बच्चा छुपा था जो कभी-कभी जब कुछ भी लापरवाह और अल्हड़ था, और जिस को संभालना सिर्फ डॉली को आता था,,,,,
डॉली कोइसे गांव में आए हुए 5 वर्ष बीत चुके थे ,जब डॉली आई तब यहां कुछ सौ सवा सौ के आसपास धर थे ,लेकिन 5 वर्ष पश्चात गांव का बहुत विकास हो चुका था, और अब यहां करीब 200 से ढाई सौ के बीच घर बन चुके थे ,और उनमें लोग भी रहने लगे थे ,लोगों की जरूरत को देखते हुए कुछ दुकानें भी खुल गई थी ,और इसी आबादी की वजह से यहां आंगनबाड़ी का खुलना भी संभव हो पाया था ,यह गांव चुकी शहर से पास ही है ,जब शुरुआत में गांव बना तो लोग खेती की जमीन के आसपास रहने आ गए ,और तबइसे गांव का कुछ नाम भी नहीं था ,लेकिन जब लोग रहने आए उन्होंने अपना पता बताया ,उनका आधार कार्ड बना और गांव को नगर निगम की मान्यता मिली तबइसे स्थान का नाम परमपुर रखा गया था गांव के लोगों ने ही मिलकर ये नाम बताया था ,क्योंकिउन्को ऐसा लगता था कि यहां पर परमात्मा का वास है ,और परम आनंद है चारों तरफ हरे-भरे लहराते खेत ऊंची पहाड़ियां पीछे बहती हुई बड़ी सी नहरइसे स्थान की खूबसूरती को बढ़ाती थी और हाईवे पर होने के कारण दिनभर रोड चालू रहता था ,जिसकी वजह से विकास के भी अच्छे अवसर थे , सभी अपनी जिंदगी में व्यस्त
थे ,जहां राज अपने ढाबे को अच्छे से चलाता ,वही डॉली अपनी आंगनबाड़ी और घर परिवार के कामों में उल्झी रहती ,उसे 1 मिनट का भी टाइम नहीं था कि वह किन्हीं फालतू चीजों से जुड़े ,,,,
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आज शाम को जब राज घर आया तो उसने डॉली और काकी को बताया कि परसों उसके ढाबे परएक छोटी सी पार्टी रखी गई है ,मतलब शहर से यही कोई 25 ,30 लोग आ रहे हैं ,जो अपनी बर्थडे की पार्टी इधर मनाना चाहते हैं ,पार्टी दोपहर के खाने की ही है ,,और हां महारानी उन्होंने कुछ जंक फूड के ऑर्डर दिए हैं ,वह पास्ता ,मंचूरियन ,करारे चिप्स और पनीर टिक्का ,अगर तू ये सभी कर पाए तो मैं उनका ये वाला आर्डर ले लूं नहीं तो दोबारा मैं स्टार्टर के लिए मना कर देता हूँ,,,,डॉली ने रोटी बेलते हुए रसोई से ही बताया नहीं नहीं आपको मना करने की जरूरत नहीं है ,मैं सभी कुछ कर लूंगी ,परसों वैसे भी आंगनवाड़ी की छुट्टी है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है, आप उनको हां बोल दीजिए ठीक है! दोबारा मैं उनको फोन करके बता दूंगा ,और हां इसके लिए जो भी सामान लगेगा उसकी लिस्ट तू अपुन को कल सुबह दे देना ,,,
डॉली रोटियां सेकती जा रही थी और राज की बातों का जवाब भी दे रही थी उसने कहा नहीं आप बस मुझे बता दीजिए कितने लोगों का खाना बनना है ,मैं सारा सामान ऑनलाइन मंगवा लूंगी, और हां अब तो ज्यादा फास्ट डिलीवरी हो गई है,एक ही दिन में हमारे पास सारा सामान आ जाएगा मैं कल ही सारा मंगवा लेती हूं ,,
डॉली हमेशा राज को आप करके ही बुलाती और राज डॉली को महारानी ,,,,
दूसरे दिन डॉली ने ऑर्डर किया जो जंक फ़ूड के लिए चाहिए था, और अब वह कल की तैयारी करने लगी थी, क्योंकि कल वैसे भी आंगनबाड़ी की छुट्टी थी तो उसका मूड एकदम फ्रेश था ,और जल्दी जल्दी काम निपटा कर तीनों सो गए ,,,,
क्योंकि सुबह भीउन्को जल्दी उठना था
सुबह 600 बजे ही डॉली उठी और घर के काम निबटाने लगी, नहा धोकर फटाफट पराठे सेके ,,, तब तक काकी भी उठ कर आराधना करने लगी थी, डॉली ने जल्दी से दो छोटे-छोटे पराठे और दही की प्लेट लगाकर काकी को दी ,कि पहले कान्हा जी का भोग लगा दे ,उसके पश्चात हम सभी भी नाश्ता कर लेंगे ,क्योंकि हमें जल्दी ढाबे पर पहुंचना होगा, जब तक राज नहा धोकर आया और काकी ने आराधना की तब तक डॉली ने राज की मनपसंद अरबी की सब्जी ,पराठे ,और मीठा दही बना कर तैयार रखा था, जैसे कि राज आया डॉली ने राज को नाश्ते की प्लेट दी और पश्चात में अपनी और काकी की प्लेट लेकर भीबाहर् आ गई, तब तक काकी भी आराधना करके आ चुकी थी, तीनों ने जल्दी से नाश्ता ख़त्म किया, और ढाबे पर निकल गए जाते संग ही डॉली तैयारी में लग गई थी खाना तो ढाबे पर अच्छी तरह से बन जाता बस जंक फूड की तैयारी डॉली को करनी थी दोपहर के 1100 बज चुके थे ,अब तक डॉली के सारे काम ख़त्म हो गए, बस अब उन लोगों का इंतजार था ,कि जैसे ही वह आये, डॉली स्टार्टरउन्को सर्व करवा कर फ्री हो जाए ,तब तक देखा कि 5 गाड़ियांबाहर् आ चुकी है ,राज ने सभी को अंदर बुलाया और उनको देखते ही सभी फटाफट अपने काम में लग गए, वैसे वह सभी राज की जान पहचान वाले थे ,वह अक्सर यहां का खुला नजारा आसपास की हरियाली और राज के ढाबे में लगे हुए रंग-बिरंगे फूलों को देख कर कुछ टाइमके लिए सुकून लेने यहां पर चले आते थे ,और दोबारा इधर ढाबे का खाना भी ज्यादा बढ़िया होता था ,,राज ने जल्दी से अंदर आकर, कहा!!! छोटू फटाफट 15,,20 पानी की बोतल लेकरबाहर् आ और डॉली भी सबके लिए स्टार्टर की प्लेटस लगवाने लगी थी,,,,,,
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राज के ढाबे पर कुछ लोग शहर सेएक छोटी सी पार्टी करने आ रहे थे ,यही कोई 25 ,30 लोग थे जिसमें 8,10 लेडीस या लड़कियां और कुछ लड़के ,उस पार्टी के लिए जंक फूड की सारी तैयारी डॉली को करनी थी ,आज संडे था ,डॉली की छुट्टी थी ,तो वह पूरी तरह से फ्री भी थी,वह जाकर सारी चीजों की तैयारी करने लगी अब तक तैयारी हो चुकी थी ,और पार्टी के लिए भी लोग शहर से आ गए थे सबसे पहलेउन्को जंक फूड की प्लेटस दी गई, जिसमें करारे चिप्स ,मंचूरियन ,पनीर टिक्का और मोमोज थे ,डॉली ने बड़ी ही मेहनत और लगन से सारा खाना ज्यादा टेस्टी बनाया था, और अंदर से फटाफट प्लेट्स लगवाते हुयेबाहर् उन लोगों तक पहुंचा भी दी, उसके पश्चात डॉली का काम ख़त्म हो चुका था, लेकिन अभी भी बह ढावे पर काम करवा रही थी ,क्योंकि आज वैसे भी उसके पास कोई काम नहीं था ,राज भी अंदरबाहर् जाते हुए सारा काम देख रहा था ,तभी उनमें से यही कोई तीन चार लोग उठकर अंदर आए क्योंकिउन्को खाने के बारे में अंदर कुछ बताना था ,और अंदर आ कर देखने लगे कि वह किससे बात करें ,तबउन्को समझ में आया कि यहां का सारा काम
यह मैडम जी संभाल रही है, मतलब कि; तो उन्होंने डॉली के पास जाते हुए अपना आर्डर; बता दिया, कि दो दाल बिल्कुल सिंपल और बिना मिर्ची की चाहिए, और हां रोटियां भी विदाउट बटर , डॉली ने उनकी बात को नोट कर लिया और कह दिया ठीक है, जैसा आपने कहा है वैसा ही हो जाएगा ,उसमें सेएक लड़का बड़े ही गौर से डॉली को देख रहा था, जो शायद उन लोगों के संग पहली बार ही ढावे पर आया था ,वह अभी डॉली को पहचानता नहीं था ,कि ये कौन है और ढाबे पर क्या संभालती हैं ,थोड़ी ही देर पश्चात वह दोबारा किसी बात के बहाने अंदर आ पहुंचा,इसे बार उसने दोबारा डॉली से बात करने की कोशिश की, कि मैडम यदि हो सके तो दो प्लेट मीठा और सादा दही भी आप खाने में ऐड कर दीजिए, डॉली ने उनकेइसे आर्डर को भी नोट कर लिया था ,सभी अपने काम में पूरी तरह से व्यस्त थे,बाहर् स्टार्टर ख़त्म हो गया था, और अब बैठकर थोड़ी हंसी मजाक कर रहे थे ,,,,
राज भीबाहर् उनकी टेबल देख रहा था कि कितने लोग हैं, और कितनी टेवल्स लगवानी है ,तो वह सारा अरेंजमेंट राज कर रहा था ,,,और डॉली अंदर दूसरे कामों में लगी हुई थी ,पर ऐसे लग रहा था जैसे कि वह लड़का बार-बार डॉली से बात करने का बहाना ढूंढ रहा हो, वह किसी ना किसी बहाने अंदर आ रहा था, राज ने थोड़ी देर बादइसे बात को नोटिस किया और उसने डॉली से घर जाने के लिए कहा!!!
डॉली; जानती थी कि राज को बसएक ही बात की चिंता रहती है, कि वह ढाबे पर या दूसरी चीजों में कम से कम टाइमदे , सिर्फ अपनी पढ़ाई देखें ,क्योंकि राज जानता था कि ,डॉली के पास वैसे भी टाइम नहीं रहता ,इसलिए वह संडे को अच्छे से पढ़ाई कर लेती थी ,और अब चूँकि डॉली को ढाबे पर कोई काम भी नहीं था,,राज की बात को इग्नोर करते हुए वह यहां के कामों में मदद करवाती रही ,राज ने भी ध्यान नहीं दिया कि डॉली घर गई , या नहीं इसी बीच करीब 2 घंटे बीत चुके थे, उन सभी का खाना भी हो चुका था ,और सभी यहां के अरेंजमेंट से ज्यादा खुश थे ,जितना बढ़िया स्टार्टर उतनी ही अच्छी बैठने की व्यवस्था और उतना ही बढ़िया तड़के दार और स्वच्छ सुथरा यहां का खाना ,,,,
उन्होंने राज की तारीफ भी की और बिल पेय करते हुए दोबारा आने की इच्छा भी जाहिर की, अब तक सभी कुछ ख़त्म हो चुका था ,डॉली अंदर का काम समेटने में लगी हुई थी,,,,,लेकिन तभी दोबारा से वह दोनों लड़के अंदर आये और जाते-जाते डॉली से उसका मोबाइल नंबर पूछने लगे ,डॉली ने बड़ी ही सहजता से कहा देखिए यदि आपको हमारे ढावे से कोई कांटेक्ट करना है ,और आपको नंबर चाहिए तोबाहर् बोर्ड पर नंबर लिखा हुआ है ,और आप जाकर ,बाहर राज यानी की ढाबे के मालिक से भी बात कर सकते हैं, वह आपको यहां का ऑफिशियल नंबर दे देंगे जिस पर आपकी बात आराम से हो जाएगी ,पर उन लड़कों ने दोबारा अपनी इच्छा जाहिर की मैडम एक्चुली हमें आपका ही नंबर चाहिए, हमें आप की व्यवस्था ज्यादा अच्छी लगी ,और हम चाहते हैं कि यदि हमारे यहां कोई पार्टी हो, तो आप उस का अरेंजमेंट देखें, और उनकीइसे बात का भी जवाब डॉली ने ज्यादा समझदारी से दिया ,,,
कि सर मैं किसी के घर नहीं जाती हूं क्योंकि ये ढाबा मेरे घर का है, यदि कभी मुझे टाइम होता है, तो यहां थोड़ी बहूत हेल्प करवा लेती हूं ,,,अदरवाइज ढावे की सारी व्यवस्था राज जी ही देखते हैं ,,,आपको जो भी बात करनी है आप उनसे कर सकते हैं ,,मैं आपको पहले भी बता चुकी हूं ,,,
लेकिन वह डॉली की बात समझ ही नहीं रहे थे ,शायद उनमें सेएक लड़का जो डॉली को देखकर अट्रैक्ट हो गया था ,और वह डॉली से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए ही उसका नंबर मांग रहा था ,उसे डॉली ज्यादा ही समझदार सुंदर और पढ़ी-लिखी लड़की लगी, और डॉली की एक्टिव नेस को देखते हुए वह कुछ ही देर में डॉली से बहुत इंप्रेस हो गया था उसने कोई बदतमीजी तो नहीं की ,पर दोबारा भी मैं बार-बार नहीं डॉली से उसका नंबर लेने की जिद करने लगा,,
अंदर की आवाज राज के कानों में पड़ी कि वह किसी को किसी बात के लिए मना कर रही है, तो राज सीधा अंदर आया और उसने देखा कि जो दो लड़के है, उनमें सेएक लड़का डॉली से किसी तरह की जबरदस्ती कर रहा है ,और डॉली से कोई कुछ कहे ये तो राज की
बर्दाश्त सेबाहर् था, वह भी उसके होते हुए ,उसके ढाबे पर किसकी इतनी हिम्मत हो गई जो डॉली से तरह से बात कर सके,,
राज को देखकर ही डॉली समझ गई कि राज को ये सभी बढ़िया नहीं लगा और यदि बात जरा भी बड़ी,तो उसका गुस्सा बेकाबू हो जाएगा ,,इसलिए डॉली ने समझदारी से काम लेते हुये,,,नॉर्मल होकर लड़कों से कहा लीजिए आपको ढाबे का कांटेक्ट चाहिए था ,और ये आ गए ढाबे के मालिक ,आप इनसे कांटेक्ट ले सकते हैं,,
पर उस लड़के ने कहा मैडम मुझे आपका नंबर चाहिए, इनका नहीं ,
जब ये बात राज के कानों में पड़ी तो राज ने उसका कॉलर पकड़ते हुए उसको पीछे धकेला,,,,
कि आपको समझ में नहीं आ रहा जब उसनेएक बार मना कर दिया आपको नंबर की क्या जरूरत है,,
डॉली समझ चुकी थी कि राज को गुस्सा आ रहा है,, डॉली जल्दी से राज को उससे अलग करने लगी ,,
तब तक दुकान के लड़के भी आ गए उन्होंने अलग करते हुए उन लड़कों से माफी मांगी, औरउन्को यहां से जाने के लिए कहा ,पर वह लड़के भी कहां चुप रहने वाले थे,,
वह जाते-जाते कहने लगे ,,,
अगर मैं मैडम से नंबर मांग रहा हूं तो आपको क्या प्रॉब्लम हो रही है ,अरे मैं तो मैडम का नंबर ही मांग रहा हूं ,,
आपकी पत्नी का तो नहीं जो आप मुझे रोक रहे हैं ,,
आखिरी ये आपकी है ही कौन
बीबी या बहन ,अगर बहन है तो उसे अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जीने का हक है ,क्या वह किसी से फ्रेंडशिप नहीं कर सकती , आजकल तो सभी लड़के लड़कियां अपनीपस्न्द से अपनी फ्रेंडशिप करते हैं, और हां यदि ये आपकी पत्नी है तो मुझे स्वयं ही इसका नंबर नहीं चाहिए ,आपकी पत्नी आपको ही मुबारक हो ,,,,,
तब तक उस लड़के के संग वाले लोग भीबाहर् से आ गए थे ,और उन्होंने उसे पकड़कर गाड़ी में बैठाया ,और उसके पश्चात राज सेइसे बात के लिए माफी भी मांगी ,वो लोग जा चुके थे, कहने को तो यहां पर सारी बात ख़त्म हो चुकी थी लेकिन उस लड़के की कही हुई बात ने राज और डॉली के दिमाग में उथल पुथल मचा दी थी, उसकी बातों पर पहले तो राज का खून ख़ौल रहा था,
जैसे ही वह गये राज ने डॉली से दोबारा घर जाने के लिए कहा ,
और ढाबे में पुनः छोटू कोएक चाय बनाने के लिए कह करबाहर् पड़ी हुई टेबल पर बैठ गया,,तभी राज का बचपन का मित्र कन्हैया ,,, आ चुका था उसे शायद किसी ने फोन करके सारी बात बता दी थी,एक वही था जो राज का सबसे बढ़िया मित्र था,,
राज उसके संग अपनी हर अच्छी बुरी बात शेयर करता था, कन्हैया ने आके राज के कंधे पर हाथ
रखा ,और कहा क्यों रे क्या बात हो गई थी ऐसी, कि तूने उसकी कॉलर पकड़ ली ,अरे कस्टमर के संग ऐसा करेगा, तो कैसे चलेगा, और दोबारा वह नंबर ही तो मांग रहा था ,
तो मना कर देता,इसे तरह से उस पर बरसने की क्या जरूरत थी, तब सिवा ने कन्हैया पर अपनी झुंझलाहट निकालते हुए कहा ,वह डॉली से उसका नंबर मांग रहा था,,,जब डॉली मना कर रही थी , और वह उसके पीछे पड़ा ,,,
और तुझे यहएक साधारण सी बात दिख रही है ,,,
तब कन्हैया ने कहा हां आजकल ऐसे नम्बर मानना साधारण ही बात होती है, सभी मित्र होने के नातेएक दूसरे को अपना नंबर दे भी देते हैं और तुझे बीच में पड़ने की क्या जरूरत थी, डॉली का मन होता ,हो सकता है डॉली भी उससे फ्रेंडशिप करना चाह रही हो ,,या मना भी कर दिया तो वह स्वयं ही कर देती ,,देख कन्हैया तू मेरा बचपन का मित्र है ,पर इसका ये मतलब नहीं कि तू कुछ भी बोलता रहता रहे,,,
डॉली अभी बड़ी हो चुकी है,, उसे अच्छे बुरे की समझ है ,,,,,
कन्हैया अपनी बात ख़त्म करता इससे पहले ही राज बोल पड़ा ,,जब मेरे सामने कोई उसके संग ऐसी बदतमीजी करेगा ,तो मुझे तो बोलना पड़ेगा ना अरे डॉली अभी बच्ची है उसे अच्छे बुरे की समझ नहीं है,,,,
कन्हैया ने दोबारा अपनी बात रखी ,सुन पहले तू ये बात
अपने दिमाग से निकाल दे ,कि डॉली बच्ची है, वहएक समझदार और पढ़ी-लिखी लड़की हो गई है ,वह अब बड़ी हो चुकी है, और अपना बढ़िया बुरा अच्छे से समझती है ,तुझे बीच में बोलने की ज्यादा पड़ती है ,जब उस लड़के ने तो उससे पूछा कि ये कौन है तेरी बहन या वीबी , तू कोई जवाब दे पायाइसे बात का क्या जवाब था तेरे पास कभी सोचा है तूने स्वयं से
कन्हैया तू ये कैसी बातें कर रहा हैएक तू ही तो है जो मुझे समझता है, अरे तुझे तो पता है कि डॉली से मेरा क्या रिश्ता है कैसे बह इधर आकर रहने लगी ,,कन्हैया पूरे गांव को पता है कि डॉली से तेरा क्या रिश्ता है,,,
लेकिन समझने की जरूरत सिर्फ तुझे है यदि कल के दिन तुझसे कोई पूछे तो तू क्या बताएगा कि क्या रिश्ता है डॉली से तेरा ,और उसकी आगे की जिंदगी के बारे में कुछ सोचा है ,डॉली 21 वर्ष की हो गई है ,लेकिन 3,4 वर्ष पश्चात डॉली शादी करके भी चली जाएगी, यदि कल के दिन उसे कोई लड़कापस्न्द करता है या उसके सामने अपनी बात रखता है तो क्या तू उस परइसे तरह से भड़क जाएगा,,
देख कन्हैया मुझे तेरी ये फालतू की बातें कुछ समझ में नहीं आ रही, तू कहना क्या चाहता है, बस मेरे सामने कोई डॉली सेइसे तरह की बात करे,मुझे बर्दाश्त नहीं है ,,
राज मैं तुझसे सिर्फ ये कहना चाहता हूं कि, आखिर तेरा डॉली से रिश्ता क्या है तेरे दिल में डॉली के लिए कौन सी स्थान है ,अभी तक राज स्वयं भी नहीं सोच
पाया था, कि वह डॉली को किस तरह से देखता है, उसके लिए तो डॉलीएक बच्ची थी ,जो पढ़ाई लिखाई करके थोड़ी बड़ी हो गई ,और उसने आकर राज का पूरा घर संभाल लिया ,इससे ज्यादा उसने कभी कुछ सोचा ही नहीं था ,,
अब तक कन्हैया ने चाय पीली और चाय पी कर वह जाने लगा ,लेकिन जाते-जाते उसनेएक ही बात बोली,, राज अब वह वक्त आ गया है, जब तुझे डॉली के बारे में कोई फैसला लेना ही होगा ,,
और कन्हैया कीइसे बात का असर राज के दिमाग पर पड़ चुका था ,वह सोचने के लिए मजबूर हो गया था,,,,,
ढाबे पर जबसे वह बात हुई राज के मन में बहुत उथल-पुथल मची हुई थी, राज आज दोपहर में भी खाना खाने घर नहीं गया, अब तो शाम होने को आई ,और धीरे-धीरे रात हो गई ,राज रात को 1000 बजे तक ढावे पर बैठता था, दोबारा जो रात के कस्टमर होते थेउन्को दुकान के लड़के ही संभाल लेते थे,,, लेकिन आज पता नहीं क्यों राज का मन घर जाने का बिल्कुल भी नहीं कर रहा था बह घर जाकर डॉली से क्या कहेगा कैसे नजरें मिलाएगा उसे तो स्वयं ही समझ नहीं आ रहा था ,कि आखिर डॉली से उसका रिश्ता क्या है ,उसने तो इंसानियत के अलावा कुछ और सोचा ही नहीं था ,क्या ये जरूरी है कि किसी इंसान से हमारा कोई रिश्ता हो तभी हम उसके लिए फिकर मंद हों,,,
नहीं ऐसा नही है,अगर हम दिल से किसी की परवाह करते हैं ,तो जरूरी नहीं है कि उसे रिश्ते का नाम ही दिया जाए ,लेकिन दोबारा भी उस लड़के ने जो कहा उसकी बात तो सोचने लायक थी, आखिर कब तक ऐसा चलेगा, डॉली की आगे की जिंदगी के बारे में तो
उसे सोचना ही होगा!
अब डॉली पढ़ लिखकर अपने पैरो पर भी खड़ी हो गई थी,आखिरएक दिन तो आएगा ही जब वह अपना जिंदगी मित्र चुनेगी ,और ये तो होता ही चला आया है,कि हर लड़कीएक दिन अपने घर जाती ही है,,,
, जब काफ़ी टाइम हो गया ,और राज घर नहीं आया ,तो काकी उसे बुलाने ढाबे पर आ गई ,राज ने काकी से कहा , कि तू जाकर सो जा मैंने ढाबे पर ही खाना खा लिया है जैसे ही काम ख़तम होता है ,अपुन आकर सो जाएगा, तू अपुन के पीछे तेरी नींद खोटी मत कर ,पर ऐसा कैसे हो सकता था कि जब तक काकी अपने हाथों सेएक निवाला राज को ना खिला दे ,वह स्वयं कैसे खा सकती थी डॉली ने सुबह की सारी बात काकी को बता दी थी, और तब से काकी भी इसी बात का इंतजार कर रही थी, कि राज घर आए और वह उसको समझाए, कि दुनिया चाहे कुछ भी सोचे ,हम तीनों का ही कुछ रिश्ता ना होते हुए भी सबसे बड़ा जो रिश्ता है ,वह है दिल का रिश्ता ,और उस से मजबूत कोई भी रिश्ताइसे दुनिया में नहीं होता ,इसलिए लोगों की फालतू बातों पर ध्यान ना दें, और बस अपने काम में मन लगाए ,,
जब तक राज और काकी घर नहीं आए थे डॉली को भी कहा नींद आने वाली थी, वह भी इन दोनों का इंतजार कर रही थी ,की आकर खाना खाएं और दोबारा वह सोए, डॉली के अंदर भीएक अंतर्द्वंद चल रहा
था ,जिससे वह बाहर् ही नहीं निकल पा रही थी, आज वह भी सोच रही थी कि आखिर क्या रिश्ता है उसका राज से ,उसने तो अभी तक ये सोचा ही नहीं था ,और उसके दिमाग में भी यही प्रश्न चल रहा था, कि किसी रिश्ते को नाम देना जरूरी है
क्या इतना बहुत नहीं है ,कि वह तीनोंएक दूसरे के लिए जी रहे हैं ,औरएक दूसरे का संग पाकर उनकी अधूरी जिंदगी पूरी हुई है हां इतना जरूर था, कि डॉली हर वह बात करना चाहती थी जो राज के लिए सही हो
राज से जुड़ी हर बात की डॉली को चिंता रहती थी, उसके फ्यूचर के लिए और उसके लिए वह हमेशा बढ़िया सोचती थी ,
राज भी हमेशा एक बच्ची की तरह ध्यान रखता था डॉली का, उसकी हर जरूरत को पूरा करता था ,और
काकी बिल्कुलएक मम्मी की तरह डॉली की देखरेख करती थी, डॉली को स्वयं से ज्यादा भरोसा राज पर था ,उसे स्वयं से ज्यादा परवाह काकी की थी,
और डॉली के भविष्य के बारे में राज से ज्यादा चिंता किसी को नहीं थी,,
क्या इतना बहुत नहीं था कि तीनों के बीचएक अनजान रिश्ता भी मजबूत डोरी से बंध चुका था ,काकी राज को लेकर अंदर आ चुकी ,डॉली ने काकी के आते ही जल्दी से खाना लगाया ,और चटाई बिछाकर थालिया कमरे में रख ली,, किसी से बिना कुछ कहे ही, उनने खाना शुरु कर दिया था, खाना ख़त्म किया और चुपचाप अपने अपने कमरों में सोने चले गए, किसी के बीच कोई भी बात नहीं हुई थी ,लेकिन कमरे में जाकर नींद का नामोनिशान ना तो राज की आंखों में था और ना ही डॉली की,,,,
डॉली जहांइसे बात से परेशान थी कि राज पता नहीं क्या सोच रहे होंगे ,वह ठीक है या नहीं वही ,राज को सिर्फ और सिर्फ डॉली के भविष्य की चिंता थी ,कि अब तक उसके संग सभी कुछ बढ़िया हुआ है ,तो उसके फ्यूचर में आगे भी सभी कुछ बढ़िया होना चाहिए ,देररात तक सोचते हुए दोनों सो गए थे,,,,,
डॉली जब सुबह सोकर उठी ,तो रोज की तरह अपने कामों में लग गई ,आज तो उसे टाइम से आंगनबाड़ी पहुंचना ही था, लेकिन राज आज अभी तक नहीं उठा था,,,
अब तो 900 बज चुके थे ,और थोड़ी ही देर में उसे ढाबे पर जाना होगा, क्योंकि सुबह से ही काम शुरुआत हो जाता था ,अब तक डॉली नहा धोकर कान्हा जी को प्रसाद लगाते हुए सारा नाश्ता और खाना भी बना चुकी थी उसने जल्दी सेएक कप चाय बनाई ,और लेकर राज के कमरे में चली गई , राज को आवाज देते हुए कहा 900 बज चुके हैं, आप को ढावे पर नहीं जाना क्या
उठ जाइए ,चाय भी ठंडी हो रही है ,राज ने आंखें खोल कर देखा तो सच में घड़ी 900 बजा रही थी ,उसने डॉली से कहा महारानी यही चाय तू अपुन को 1 घंटे पहले नहीं दे सकती थी क्या, मुझे लेट करवा दिया ना डॉली ने कहा अभी कोई देर नहीं हुई है ,आप जल्दी से नहा कर आइए नाश्ता खाना सभी कुछ बनकर तैयार है ,मैं आपकी प्लेट लगा देती हूं,,,,
और मैं रसोई में आकर सबके लिए नाश्ता लगाने लगी, जब नाश्ते की प्लेटबाहर् लाई तो काकी ने अंदर आते हुए कहा ,डॉली आज पीछे वाले शर्मा जी के यहां शिवपुराण की कथा शुरुआत हो रही है ,तो तू कोशिश करना कि आंगनबाड़ी से आधे घंटे पहले ही आ जाए ,तेरा टाइम तो 400 बजे ख़त्म होता है उसके पश्चात भी तू 500 बजे तक घर आ पाती है, तो मेरे संग तू भी शिव पुराण सुनने चलना ,वरना हमेशा काम में ही लगी रहती है कभी कहीं आती जाती ही नहीं ,डॉली ने नाश्ता करते हुए ही कहा ,काकी पहले आकर आप नाश्ता कर लो ,,,
हां ठीक है वह तो मैं कर ही लूंगीं पहले मैंने जो पूछा उसका तो जवाब दे दे ,,,
काकी मैं अभी कोई जवाब नहीं दे सकती आंगनबाड़ी में काम ज्यादा है ,अगर टाइम से ख़त्म हो जाता है ,तो मैं आ जाऊंगी ,,
ठीक है मैं पहले ही जानती थी कि तू अपने काम के आगे किसी और बात को देखती ही नहीं ,,,सबका नाश्ता ख़त्म हो चुका था ,
राज ढाबे पर निकल गया ,और डॉली आंगनबाड़ी आने लगी, लेकिन उससे पहले उसने काकी के गले में बाहें डाल कर हंसते हुए कहा, मेरी प्यारी सी काकीइसे तरह से मुंह फुलाने की जरूरत नहीं है,
मैं आंगनबाड़ी से आ जाऊंगी ,और आपके संग शिव पुराण सुनने भी चलूंगी, खुश! डॉली की आवाज सुनकर काकी सच में हंस गई थी,,,,
डॉली आंगनवाड़ी चली गई और काकी भी घर का काम समेट कर थोड़ी ज्यादा रात के खाने की तैयारी करने लगी थी, क्योंकि पुराण का टाइम शाम को 500 बजे से 800 बजे तक का था ,और जबएक बार पुराण शुरुआत होता है तो काकी तो दोबारा उठने का नाम ही नहीं लेती ,जब तक समापन होकर आरती नहीं हो जाती, तब तक काकी को उठना बढ़िया ही नहीं लगता था,
शाम के 400 बजे तक डॉली भी घर आ चुकी थी, घर आकर चाय पी और काकी का इंतजार करने लगी,काकी साड़ी पहन रहीं थी उन्होंने डॉली से भी तैयार होने के लिए कहा तू भी कुछ ढंग का पहन ले , तू
तो हर कहीं आंगनबाड़ी की बहन जी बनके ही चलती है काकी के ज्यादा जोर जबरदस्ती करने पर डॉली ने सुंदर सा पटियाला सूट निकालकर पहन लिया, डॉली और काकी तैयार होकर राज को ढाबे पर घर की चाबी देकर पीछे वाली गली में शिव पुराण सुनने चली गई,
जब गई तो वहां पर बहुत भीड़ भाड़ हो गई थी ,एक सुंदर सा मंच बनाकर उसको सजाया गया ,
उस परबाहर् से आए हुए पंडित जी शिव पुराण का वर्णन करने जा रहे थे ,औरएक छोटा सा पंडाल लगाया गया था जिसमें सभी सुनने वाले कतार से बैठे हुए थे आगे थोड़ी सी स्थान दिखी तो काकी ने जल्दी से डॉली का हाथ खींचते हुए आगे स्थान बनाकर वहीं बैठ गए,,
अब कथा शुरुआत होने ही वाली थी ,
शिव पुराण में सती के दुखद अंत के पश्चात पुनः गौरी के पुनर्जन्म को दिखाते हुए बड़े होकर शिव को प्राप्त करने
की लालसा को दिखाया , कि कैसे बालपन से ही उनके मन में शिव के लिए अपार श्रद्धा और प्रेम समाया हुआ था, आज की इसी कथा को पंडित जी विस्तार से बताने वाले थे,,,,,
डॉली और काकी कथा सुनने के लिए पंडाल में आगे बैठ चुकी थी ,और कुछएक मंत्रों के संग ही पंडित जी कथा शुरुआत करने वाले थे कथा सबको अच्छी तरह से सुनाई दे, इसके लिए चारों तरफ माइक का भी प्रबंध किया गया था ,साथ में मधुर संगीत वादक भी थे मुख्य अतिथि ने आकर दीप प्रज्वलित किया और मंत्रों का उपचार करते हुए पंडित जी ने कथा प्रारंभ की.
ओम नमः राजय
सभी श्रोता गणों से अनुरोध है, कृपया ध्यान पूर्वक और प्रेम पूर्वक श्री शिव पार्वती की कथा का श्रवण करें ,,,
जब राजा दक्ष के यहां बिना बुलाए मम्मी सती का आगमन हुआ,, और ये देखते हुए दक्ष उनकी अवहेलना करते हैं , मम्मी सती के प्राणनाथ ,उनके प्यारा शिव का भी अनादर करते हैं, मम्मी सतीइसे बात को सहन नहीं कर पाई, और अग्नि कुंड में कूद कर स्वयं को भस्म कर लिया ,जैसे ही ये समाचार त्रिलोक पति महाशंभू शिव को मिला तो क्रोध और दुख से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और प्रभु ने तांडव करना शुरुआत कर दिया स्वर्ग के
सारे देवताओं ने मिलकर श्री हरि विष्णु को आगे किया ,और बड़ी मुश्किलों के पश्चात श्री हरि शिवजी को शांत कर पाये, जब उनका क्रोध उतरा ,तो वे धरती लोक पर आए ,और सती की निर्जीह देह को उठाकर यहां से वहां भटकते हुए पृथ्वी पर ही विचरण करने लगे,,, श्री शिव ने पूरी तरह से बैरागी रूप धारण कर लिया था ,पर उनकी ये दशा श्री हरि विष्णु से देखी ना गई जिनसे पूरे संसार का संचालन होता है ,उनकाइसे तरह से बिचरना उचित नहीं था , अतः उन्होंने मम्मी सती की देह का अंत अपना सुदर्शन चला कर दिया, और दोबारा जहां-जहां मम्मी सती के अंग गिरे वही वही शक्तिपीठ का स्थान माना गया ,और उनके अंग गिरने के अनुसार इनके नाम भी रखे गए ,,,,,,
इन सबके पश्चात भी शिव के ह्रदय में दुख और पश्चाताप कम ना हुआ था, तब मम्मी सती की अदृश्य शक्ति ने आकर उनसे प्रार्थना की,
कि वह अपने पहले के रूप में आए और और अपने नित्य कार्यों का सहज रूप से निर्वाह करे, वह पुनः नैना देवी की पुत्री के रूप में पुनर्जन्म लेंगी जिन्हें उमा और गौरी के नाम से जाना जाएगा ,जब सती ने साक्षात आकर शिव जी को ये सारी बातें कहीं तो उनके मन से क्षोभ निकल चुका था ,और वह पुनः कैलाश पर आकर अपनी तपस्या में लीन हो गए ,उसके पश्चात गौरी मैया ने नैना देवी की कोख से पुनर्जन्म लिया, और उनके आंगन में अपने शुभ चरण कमल रखे ,मां गौरी के आने से उनका पूरा राजमहल पवित्र हो चुका था ,चारों
तरफ राग उल्लास छा गया था, लेकिन जैसे ही मम्मी गौरी बड़ी होने लगी तो उनके मन में शिव जी के प्रति अपार श्रद्धा उत्पन्न होती गई ,बचपन से ही वहएक बड़ी शिव भक्त बन चुकी थी, शिव की आराधना अर्चना में ही उनका टाइमव्यतीत होता था और 1 दिन वह आया जब धीरे-धीरेउन्को ज्ञात हुआ वह सिर्फ शिव भक्ति ही नहीं है बल्कि वह तो शिव शंभू को अपने पति के रूप में पाना चाहती हैं ,शिव के प्रति उनकी श्रद्धा ही उनका प्रेम है,
शिव के प्रति आस्था ,उस प्रेम को पाने की ललक है
शिव के दर्शन की लालसा ,उनसे मिलने की तड़प है
शिव के बिना उनका जिंदगी अधूरा है
धीरे धीरे-धीरे गौरा को पूर्ण रूप से ज्ञात हो चुका था, कि राज ही उनके जिंदगी का आधार है और शिव के बिना वह अधूरी है, निराकार है अब तक कथा को सुनाते हुए डेढ़ से 2 घंटे बीत चुके थे ,आगे की कथा का वर्णन अगले दिन किया जाएगा ,,,,
इसी के संग कथा संपन्न हुई आरती हुई प्रसाद वितरण हुआ ,और डॉली काकी के संग घर आ गई ,डॉली ने शिव पुराण पहली बार सुना था, उसे ये सारी बाते पता नहीं थी ,उसके पास तो बस उसके कान्हा जी ही थे जिनको वह हमेशा अपने संग रखती थी बचपन से लेकर आज तक ,और जब वह राज के घर आई ,उसके पश्चात राजएक सुंदर सा मंदिर कान्हा जी के लिए ले आया था , तब से कान्हा जी का स्थान उस मंदिर में हो गया ,घर आकर डॉली काकी से कई प्रश्न पूछ रही थी,,,,
काकी जब पार्वती मैया शिव की आराधना करती थी, तो दोबारा उन्होंने ये कैसे सोच लिया कि वहउन्को पति के रूप में पाना चाहती हैं
तब काकी ने डॉली को समझाया बेटा जब हमें किसी से प्रेम हो जाता है, और जब वह प्रेम बड़ता हुआ हमारे दिल में उतर जाता है तो हमें उसे पाने की लालसा हो जाती है,
पर काकी गौरी मैया को ये कैसे पता चला किउन्को प्रेम हो गया है ,या फिरउन्को राज को प्रेम करना चाहिए ,वह कैसे समझी थीं
काकी ने कहा, डॉली प्रेम को हमेशा महसूस किया जाता है ,और ये बातें हमें हमारे दिल से ही पता चलती हैं ,पर काकी गौरी मैया तो कभी शिव से मिली भी नहीं ,फिरउन्को प्रेम कैसे हो गया
हां बेटा गौरी मैया राज से मिली नहीं थी ,परउन्को पिछले जन्म की सारी बातें अच्छी तरह से ज्ञात थी,कि शिव उनके पति थे , उनको याद था कि कैसे उनके पिता दक्ष ने शिव का अपमान किया था ,,दक्षउन्को हमेशा ओगड़ अघोरी कहते थे, लेकिन राज के लिए सती के दिल में अपार श्रद्धा थी , सती उनसे अटूट प्रेम करती थी, सिक्का तभी तो वह शिव का अपमान सहन ना कर पाई और उन्होंने अग्निकुंड में स्वयं को भस्म कर लिया ,,
काकी क्या तू जानती है कि हमें ये कैसे पता चलता है, कि हम किसी से प्रेम करते हैं
बेटा ये तो ज्यादा ही साधारण सी बात है जिसके लिए
हमारे मन में इज्जत हो ,मान सम्मान हो ,जो हमारी देखभाल करता हो जिसके लिए हम हमेशा बढ़िया सोचते हो जिसके संग हम हमेशा रहना चाहते हो, जो हमारी हर बात का ख्याल रखता हो ,जो दुनिया से हमें बचाना चाहता हो, जिसकी हम बुराई नहीं सुन सकते , बस ऐसे ही दो लोगों के बीच प्रेम होता है ,यह प्रेम ही होता है, जिसकी वजह से ये सारी बातें हमें उसके लिए सोचने पर मजबूर कर देती है और श्री शिव के लिए गौरी मैया के मन में ये सारी बातें थी, और हां इन सभी के साथ-साथएक बात और जिसे छोड़ कर हम कभी नहीं जाना चाहते ,जिसके संग अपनी पूरी जिंदगी रहना चाहते हैं ,उसी को प्रेम कहते हैं
काकीएक बात और पूछूं
अब तक काकी रसोई में आ गई थी ,और खाने की कुछ तैयारी जो कर कर गई उससे आगे की तैयारी करने लगी थी, लेकिन डॉली अभी भी काकी के पीछे ही लगी थी ,हां पूछ यदि तुझसे मना भी करूंगी जब तक तू पूछ न लेगी तू मानेगी क्या ,
काकी ये सारी बातें तो मुझे तेरे संग भी लगती है ,तो क्या मुझे तुझ से प्रेम हो गया है तब काकी ने हंसते हुए कहा!!!
डॉली तू भी ना ,राज सही कहता है कि हमेशा बच्चे ही रहेगी ,अरे मुझ बुड़िया से प्रेम करके कहां जाएगी तू ,,
काकी ने डॉली को समझाया ,हां बेटा ये भी प्रेमी होता है ,हम अपने मम्मी बाप, भाई बहन सभी से प्रेम करते हैं, और ये सारी बातें सबके संग महसूस होती हैं ,लेकिन
जब यही बातें किसी अजनबी के संग महसूस हो यानी कि कोई ऐसा इंसान जिससे हमारा कोई खून का रिश्ता ना हो ,और दोबारा भी हम उसकी इन सारी चीजों की चिंता करते हो उससे दूर जाने का कभी मन ना करे,हमेशा उसके संग रहने का, उसके पास रहने का मन करे ,तो इसी को प्रेम कहते हैं, और ऐसे ही प्रेम को आगे चलके हम अपने जिंदगी मित्र के रूप मेंदेख्ना चाहते हैं
चल अब तू जा जल्दी से कपड़े बदल ले राज भी आता ही होगा ,खाना खा लेंगे
और हां यदि और कुछजान्ना है तो कल भी आंगनबाड़ी से टाइम पर आ जाना और मेरे संग चलना , डॉली ने अपने दुपट्टे को निकाल कर हाथ में लिया, और झुमके उतारते हुए बोली ,हां काकी मैं जरूर चलूंगी अब तो मुझे शिव और पार्वती के बारे में हर बातजान्ना है ,कि आखिर मम्मी पार्वती को शिव जी से प्रेम कैसे हुआ ,और कैसे उन्होंने इसे महसूस किया,, डॉली जब तक कमरे में से कपड़े बदल कर आई, तब तक राज भी आ चुका था ,डॉली जल्दी से रसोई में गई और काकी की मदद करवाते हुए खाने की थाली लगाकर कमरे में ले आई ,उसने थाली राज को देते हुए कहा ,आपको पता आज मैं काकी के संग पीछे पुराण में गई थी ,और मुझे ज्यादा बढ़िया लगा ,अगर आपको टाइम हो तो कल आ जाइए, राज ने जोर से हंसते हुए कहा ,महारानी तू काकी के संग जाकरएक ही दिन में पंडित बन गई, अपुन को भी को भी जाने के लिए कह
रही है ,वह भी कथा में, तेरे को क्या लगता है कि तू कहेगी और मैं आकर वहां बैठ जाऊंगा ,इतना ही ज्यादा है किइसे घर से 2 लोग ज्ञान लेने जा रहे हैं ,,,
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डॉली का मुंह बन गया था, और वह चुपचाप खाना खाने लगी, राज चुपचाप डॉली को खाना खाते हुए देख रहा था, उसने काकी की तरफ देखते हुए कहा ,काकी महारानी का कहना है कि मैं भी कथा सुनने चलू तूएक काम कर तू आकर मुझे यहीं सुना दिया कर ,, वहां पंडित तेरे को जो भी बताएगा ना अपुन यही सुन लेगा उसको ,
काकी चुपचाप दोनों के तमाशे देख रही थी पर काकी ने तो हमेशा डॉली का ही पक्ष लिया है ,उसने समझाया की डॉली सही कह रही है ,पहले वह भी नहीं जा रही थी ,लेकिन आज वह गई और उसको ज्यादा बढ़िया लगा मैं तो कहती हूं एक-दो दिन तू भी चल ढावे से जराबाहर् निकल ,,स्कूल ना सही कम से कम कथा पुराण तो सुन ले,,
राज ने खाता ख़त्म किया और हाथ धोने के लिएबाहर् चला गया, डॉली का भी खाना ख़त्म हो चुका था,उसने अपनी और राज की थाली उठाकरबाहर् रखी ,और राज के आने से पहले ही अपने कमरे में चली गई राज पुनः आया तो देखा कि डॉली वहां नहीं है, वह समझ गया कि डॉली उसकी बात पर गुस्सा हो गई है, पीछे पीछे उसके कमरे तक चला गया ,जब देखा तो डॉली चादर ओढ़ कर लेट गई थी ,राज ने तेज आवाज में बोलते हुए कहा, महारानी मुंह फुलाने की जरूरत
नहीं है ,देखता हूं यदि कल मुझे टाइममिला तो मैं आ जाऊंगा थोड़ी देर के लिए ,और इतना कहकर कमरे सेबाहर् निकल गया ,डॉली चादर से मुंह ढक कर लेटी थी, राज की बात सुनकर उसके होठों पर हंसी आ जाती है,,,,
दूसरे दिन भी डॉली के मन में कथा सुनने की ललक ज्यादा ज्यादा थी ,और उसने निश्चय कर लिया था कि वह आज भी शिवपुराण की कथा सुनने जरूर जाएगी ,वह जल्दी ही उठी घर के सारे काम किये ,बल्कि रात तक का खाना बनाकर उसने सुबह ही रख दिया था ,जिससे कि वह टाइम से पहले और पूरे टाइम तक कथा अच्छे से सुन पाए, डॉली टाइम से तैयार हो गई ,और आंगनबाड़ी जाते जातेएक बार दोबारा उसने राज को टाइम पर तैयार होने के लिए बोल दिया था सिवा ने उसकी तरफ देखा पर कोई जवाब नहीं दिया ,डॉली ने पर्स उठाया और आंगनवाड़ी चली गई ,आंगनबाड़ी में भी डॉली ने अच्छे से सारा काम कर लिया था क्योंकि वह नहीं चाहती थी किस शिव पुराण सुनने में आंगनवाड़ी की किसी छूटे काम की वजह से उसका ठीक से मन ना लगे ,वह पुराणको पूरे एकाग्र चित्र के संग सुनना चाहती थी ,शाम को ठीक 500 बजे डॉली घर आ चुकी थी ,आकर उसने जल्दी से हाथ मुंह धोया ,तब तक काकी ने चाय बना ली काकी चाय लेकर जैसे ही कमरे में आई तो देखा कि राज भी ढावे
से आ चुका है, तीनों ने चाय ख़त्म की और पुराण में जाने के लिए तैयार हो गए, डॉली आज और भी अच्छे से तैयार हुई थी ,जल्दी-जल्दी डॉली और काकी ने घर बंद किया ,बाहर् निकल कर ताला लगाते हुये चाबी पर्स में डाली ,और पुराण सुनने चल पड़ी, लेकिन तभी राज का फोन बज उठा और राज को याद आया कि आज कुछ लोग उसके ढाबे पर शहर से आ रहे हैं और ऐसे में राज का रुकना जरूरी था क्योंकि वह हाई-फाई लोग थे, और उनको अटेंशन देना जरूरी था ,इसलिये चाहते हुए भी राज वहां नहीं जा सकता था
उसने डॉली की तरफ देखकर दोनों कान पकड़े और सॉरी बोलते हुए माफी मांगी महारानी तू तो समझती है कि अपुन के लिए काम से जरूरी कुछ नहीं है
अपुन नहीं चाहता कि कोई कस्टमर आकर अपुन के ढाबे पर लफड़ा करे,क्योंकि अपुन ने पहले ही उनसे वादा कर लिया था कि आ उनको पूरा अटेंशन देगा, तो सॉरी पर तू चिंता मत कर आज नहीं तो ना सही पर कल तेरे संग जरूर चलेगा,,,
अब चूँकि राज का काम ही ऐसा था कि किसी भी टाइमकरना पड़ जाए,इसलिये डॉली ने भी कुछ नहीं कहा, और डॉली काकी के संग ही पुरान में चली गई
दोनों पुरान में आ चुकी थी,पंडित जी आज आगे की कथा का वर्णन सुनाने वाले थे जिसमें शिव के प्रति पार्वती के प्रेम की अनुभूति को दिखाया जाना था
डॉली कथा सुनने के लिए पूरी तरह से तैयार बैठी थी , कथा की शुरुआत आरती के संग हुई ,और दोबारा पंडित
जी ने पुनः कथा का प्रारंभ किया ,कल कथा का समापन जहां पर हुआ था ,उससे आगे की कथा आज सुनाने वाले थे ,पंडित जी ने कथा सुनाना प्रारंभ किया ,,,,,,
ओम नमः राजय
जब सती का पूरा बदन छत विक्षत होकर ख़त्म हो गया, तब शिवजी घोर तपस्या में बैठ चुके थे ,और उसी बीच मम्मी पार्वती का जन्म हिमालय पुत्री के यहां नैना देवी की कोख से हो चुका था ,नारद जी ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी, की पार्वती श्री शिव की धर्मपत्नी बनेंगी, और इन दोनों का विवाह निश्चित है ,लेकिनइसे बात का भान ना तो शिव को था, ना ही पार्वती मैया को पर जैसे-जैसे मम्मी गौरा बड़ी होती गई अपने आप ही शिव के लिए उनका प्रेम बढ़ता गया श्री शिव के लिए उनकी श्रद्धा और विश्वास अनंत थी ,जहांएक तरफ शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे ,वहीं दूसरी तरफ पार्वती धीरे-धीरे उनके प्रेम में डूबती जा रही थी, जब पार्वती को पूर्ण रूप से ये ज्ञान हो गया कि वह पूरे मन से शिवजी का वरन कर चुकी है ,श्री शिव के बिना उनका जिंदगी अधूरा है श्री शिव को पाना ही उनके जिंदगी का लक्ष्य और धर्म है, क्योंकि वह मन से पूर्ण रुप से शिव की हो चुकी है ,अतः वह सारे प्रयत्न करने लगी थी, कि वह शिव को पति के रूप में पा सकें ,लेकिन वहीं दूसरी तरफ तपस्या में बैठे लीन श्री शिव को अभी तक मम्मी गौरा के प्रेम का कोई भान नहीं था ,क्योंकि वह पूरी तरह से अपनी तपस्या में लीन थे,
नर नारी ,देवता ,स्वर्ग लोक और पृथ्वीलोक के सभी बासी यही चाहते थे कि मम्मी गौरा और शिव का विवाह हो ,लेकिनइसे विवाह में जो सबसे बड़ी विडंबना थी, वह थी श्री शिव का तपस्या से जगाना जो सबसे असंभव कार्य था ,जब तक राज स्वयंइसे तपस्या से नहीं उठ जाते ,तब तक ये किसी के बस की बात नहीं थी ,अतः शिव काइसे तपस्या से जागना अधिक आवश्यक था,, पर पार्वती के संग सभी का इसमें पूरा सहयोग था कि शिव तपस्या से जागृत हो, और माता पार्वती से विवाह रचाये, क्योंकि यही सृष्टि का नियम है ,किएक स्त्री और पुरुष ऐसे दो लोग जिनमें सच्ची प्रेम हो ,जब वह अपने गृहस्थ जिंदगी को शुरुआत करते हैं ,तभीइसे समाज का विकास संभव हो पाता है ,अतः अब मम्मी पार्वती का कर्तव्य था ,,कि कैसे भी विवाह के लिएउन्को मनाये ,,, चाहे तपस्या करके या दोबारा किसी दूसरे उपाय से ,लेकिन ये परीक्षा मम्मी पार्वती की ही थी ,किउन्को अपने प्रेम की शक्ति से शिव को मोहित करना ही होगा, और तभी ये संभव हो पाएगा कि वह श्री शिव को अपने वर के रूप में प्राप्त कर सके,,,,
और जब मम्मी पार्वतीइसे बात को भलीभांति समझ चुकी, तो वह शिव को प्राप्त करने के जतन करने लगी, अब उनकी तपस्या तभी पूरी मानी जाती जब वह श्री शिव को अपने पति के रूप में वर लेती इसी के संग आज की कथा ख़त्म होती है, कल की कथा का श्रवण करने के लिए सभी बहन और भाई सही टाइमपर पंडाल में आ जाए ,,,इसके संग आरती और प्रसाद
वितरण हुआ और सभी अपने अपने घर आ गए ,,,
आज घर आकर डॉली ने काकी से कोई भी प्रश्न नहीं किया था ,उसकी समझ में आ चुका था किसी की पार्वती मैया ने शिवजी से ही सच्ची प्रेम किया ,उन्हेंइसे बात का एहसास हो गया था ,और इसीलिएउन्को प्राप्त करने के लिए वह सभी जतन करने लगी थी, कि चाहे कुछ भी हो शिव जी को पाना ही उन्होंने अपना लक्ष्य बना लिया था डॉली कोएक बात अच्छी तरह से समझ आ गई थी ,कि जब दो लोगों के बीच प्रेम होता है और वह प्रेम की सच्ची अनुभूति को समझ जाते हैं ,तो दोबारा उसे पाना गलत नहीं होता उसे शिव पार्वती की कथा बहुतपस्न्द आई थी ,अभी तक डॉली सिर्फ पढ़ाई ,घर के काम और आंगन बाड़ी में ही व्यस्त रहती थी
पर शिव पार्वती की कथा सुनकर उसने जाना कि हर इंसान के जिंदगी मेंएक प्रेम का अध्याय भी होता है ,जिसे वह कभी ना कभी जरूर महसूस करता है, चाहे वह त्रिलोकनाथ शिव और गौरी मैया ही क्यों ना हो ,राधा कृष्णा ,सीताराम ,यह सभी अनूठे प्रेम के उदाहरण है, डॉली के मन में प्रेम का अंकुर फूट चुका था ,उसे कुछ ऐसी चीजें महसूस हो रही थी ,जो वह ठीक से समझ नहीं पा रही थी, लेकिन कहीं ना कहीं वह सारी बाते उसे कुछ सोचने पर मजबूर तो कर रही थी ,डॉली शिव पार्वती की कथा सोच सोच कर ज्यादा बढ़िया महसूस कर रही थी मम्मी गौरा मैया के असीम प्रेम को देखकर सोच रही थी ,कि क्या सबके जिंदगी में
कुछ समय ऐसे जरूर आते है ,जब वह किसी से प्रेम करता है ,और क्या मेरे जिंदगी में भी ऐसा कोई समय आएगा ,जब मैं किसी से प्रेम करूंगी ,अपनी बात पर सोच कर डॉली को हंसी आ गई थी ,कि क्या उसे भी मम्मी पार्वती की तरह ही किसी को पाने के लिए जतन करने होंगे, या दोबारा उसके शिवजी स्वयं ही उसके पास आ जाएंगे, तभी काकी की आवाज से डॉली की तंद्रा टूटी ,,
जैसे ही राज घर आया तो काकी ने राज को सुनाते हुए कहा ,,,
राज तू भी ना किसी औघड़ से कम नहीं है जैसा तेरा नाम है राज, वैसा ही तेरा काम जहांएक तरफ भगवान शिव अपनी धूनी में रम जाते थे ,तू बिलकुल उसी तरह ढावे में रम जाता है ,ना तुझे दुनियादारी से कोई मतलब ,ना अपने जिंदगी से ,,
भगवान शिव तपस्या में लीन रहते है और तू भी ये कहते कहते बहुत जोर से हंस दी थी डॉली काकी की बात को ज्यादा ध्यान से सुन रही थी ,डॉली ने काकी के पास जाकर पूछा काकी आपने ऐसा क्यों कहा,
कहा कि राज भी भगवान शिव के जैसे है काकी ने हंसते हुए कहा ,,,,
और नहीं तो क्या, तू देखती नहीं है उसको जैसे शिवजी अपनी धूनी में रहते थे, वह अपने ढावे में रमा रहता है, उसके दिल में तुझे दूर दूर तक प्रेम दिखता है क्या
बस अपनी दुनिया से मतलब है उसे ,अरे मैं तो कहते-कहते थक गई हूं ,कि अपने लिए कोई लड़की
देख कर घर बसा ले ,लेकिन उसे तो इन सभी बातों से कोई मतलब ही नहीं अरे क्या पूरी जिंदगी क्वांरा ही रहेगा
उमर हो गई है घर बसा करएक दो बच्चे पैदा कर ले ,तो मैं भी सुख से मर सकूं,, जैसे शिवजी को अपने जिंदगी की कोई चिंता नहीं थी ,सच कहती हूं डॉली यदि पार्वती मैया आकर शिव की तपस्या भंग ना करती
और पति के रूप में उन्को पाने की जिद ना करती तो शिव जन्म जन्मांतर तक अपनी धूनी में ही रमे रहते ,जब मम्मी पार्वती ने आकर उनकी तपस्या की उनको पाने की ज़िद की और सभी ने उनका संग दिया, तब कहीं जाकर वह शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त कर पाई, में भगवान से यही प्रार्थना करती हूं ,कि उन्होंने मेरे राज के लिए भी कहीं कोई पार्वती मैया जन्मी हो ,जो आकर इसकी तपस्या भी भंग करें और इसे अपना पति बनाये, तभी इसकी शादी हो पाएगी नहीं तो मुझे नहीं लगता कि ये कभी किसी लड़की से कुछ कहेगा ,तब तक राज हाथ धोकर खाना खाने आ चुका था ,काकी अंदर रसोई में थालियां लगा रही थी ,और डॉली ने चटाई बिछाकर पानी रखा सलाद रखा और अंदर खाना परसने में मदद करवाने लगी काकी के कहे हुए शब्द डॉली के दिमाग में बार-बार आ रहे थे ,कि राज भी भगवान शिव की तरह ही है, डॉली काकी की बात सोच कर मुस्कुरा रही थी, सच में राज की आदतें तो बिल्कुल वैसी ही थी ,
बस राज के बारे में ही सोच रही थी ,जब थाली देख लेकर आई और राज को देने लगी तो वह उसे देखे जा रही थी
राज ने डॉली के हाथ से थाली लेते हुए कहा ओ सहजादी मुझे थाली देगी भी ,या दोबारा ऐसे ही पकड़ के खड़ी रहेगी
और थाली लेकर खाना शुरुआत कर दिया
तब तक डॉली और काकी भी अपनी
थालिया लेकर आ चुकी थी
और तीनोंएक संग खाना खाने लगे राज खाना खाते हुए बोला,,,,
काकी अपूण तेरे संग नहीं आ पाया तू बता ना क्या हुआ था वहां
काकी ने कहा तेरी तो सभी समझ से परे है लेकिन आज शिवजी और पार्वती मैया के प्रेम की कथा का वर्णन किया था पंडित जी ने ,अरे तू तो इन सभी बातों से कोसों दूर है तुझे क्या समझ आएगा ,तभी तो कहा था तू भी 4 शब्द सुन लेता,
काकी जब तेरे पास टाइम होगा ना तू अपन को सुना देना,,,
डॉली खाना खाते हुए बीच-बीच में राज को देखती जा रही थी, उसे सच में काकी की कही बात सही लग रही थी, कि किस तरह से राज में शिव जी के जैसा रूप ही है काकी ने ये बात मजाक में कही थी ,लेकिन डॉली ने ज्यादा बार सोचा और उसे राज काएक अलग ही रूप दिखा,,,,,
डॉली और काकी हर रोज कथा सुनने जाती थी ,कथा पूरे 8 दिनों तक चलने वाली थी और अभी 5 दिन निकल भी चुके थे, लेकिन रोज कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता जिससे राज वहां जाने से रह जाता ,अब तक शिव पार्वती के विवाह का वर्णन भी हो चुका था आज कथा का छठवां दिन था, ढाबे पर कोई खास काम भी नहीं था ,राज फ्री था तो उसने आज कथा में जाने का पक्का इरादा कर लिया था ,डॉली और काकी रोज की तरह तैयार होकर कथा के लिए निकल गई राज भी बस धावे पर कुछ काम समझा कर कथा में जाने के लिए तैयार ही हो रहा था
15 मिनट में राज काम से फ्री होकर ढाबे पर सारा काम समझा कर कथा सुनने के लिए निकल गया , वैसे राज के लिए ये बिल्कुल नई बात थी ,क्योंकि वो भंडारे कथा आराधना से ज्यादा दूर रहता था ,इन सभी का बर्ताव काकी ही निभाती थी, लेकिन अभी काकी और डॉली रोज कथा सुनकर आती और राज को समझाती, तो सुन सुन के उसका भी मन हो गया था कि आखिरएक बार जाकर सुनु कि पंडित ऐसा बोलता
क्या है, कि सभी लोग वहां जाकर अपना अपना टाइम खोटी करते हैं, राज मजाक के मूड में ही सही ,पर कथा सुनने पंडाल में आ चुका था ,पीछे पड़ी हुई कुर्सियों में सबसे पीछे वाली कुर्सी राज को खाली दिखी ,और वह वही जाकर चुपचाप बैठ गया, तब तक आरती संपन्न हो चुकी थी , और पंडित जी कथा का प्रारंभ करने ही वाले थे ,
आज समुद्र मंथन से संबंधित सारी बातें कथा में बताने वाले थे पंडित जी ने,,,,
ओम नमः राजय
के संग ही कथा सुनाना प्रारंभ किया
जब समुद्र मंथन प्रारंभ हुआ तो समुद्र में सेएक सेएक दुर्लभ अमूल्य और आश्चर्यजनक वस्तुएं निकलना प्रारंभ हो गई, कुछ वस्तुएं ज्यादा ही सुंदर थी, कुछ अमूल्य थी, समुद्र मंथन में मम्मी लक्ष्मी जी निकली, जिन्हें श्री विष्णु को सौंपा गया ,कभी ना मुरझाने वाली कमल फूल की माला ,जिसे इंद्र के सुपुर्द कर दिया गया, एरावत हाथी ,उच्चेश्रेवा घोड़ाइसे तरहएक सेएक अमूल्य वस्तुये समुद्र मंथन से निकलती गई, और इनमें देवता और दानवों में बंटवारा होता गया ,उसके पश्चात अमृत से भरा कलश जिसको देवताओं ने दानवों को धोखे में रखकर स्वयं ही ग्रहण कर लिया, क्योंकि ये पृथ्वी के हित में था, और जब हलाहल विष से भरा घड़ा निकला तो सारे देवताओं के बदन जलने लगे ,विष
के प्रभाव से हाहाकार मच गया, पर देवों के देव महादेव ने उस हलाहल विष को अपने कंठ में रखा ,और सभी को निश्चिंत किया,
तभी तो श्री शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है, विश्व जगत के भले के लिए उन्होंने स्वयं के कंठ में विष को रख लिया पंडित जीइसे कथा का पर्याय समझाने लगे कि श्री शिव तो महा शंभू थे तो उन्होंने विष से भरा हुआ घड़ा अपने कंठ में उड़ेल लिया लेकिन आज के मनुष्य में इतनी शक्ति नहीं है पर यदि हमारा मन बढ़िया हो ,हम दूसरों के लिए निस्वार्थ रूप से मन में अच्छे जज्बातों रखते हो ,तो उसके लिए कुछ बढ़िया सोच सकते हैं ,अगर किसी मनुष्य से सच्ची प्रेम करता है, तो स्वार्थ से परे होकर उसके भले के बारे में सोच सकता है, अपना स्वार्थ ना देखते हुए उस इंसान के संग हम क्या बढ़िया कर सकते हैं ,कलयुग में यदि हमने इतना कर लिया, या इतना सोच लिया तो हमारे लिए यही श्री महा शिव का आशीर्वाद होगा ,और यदि कोई ऐसा आदमी है जो अपने स्वार्थ से परे होकर किसी और के भले के बारे में सोच सकता है ,तो कलयुग में उसे भी भगवान शिव का ही रूप मान सकते हैं ,पर आजकल ऐसे मनुष्य होते ही कहां है जो किसी और का भला सोच पाए
आजकल तो सभी अपने ही स्वार्थ में लिप्त होते हैं ,,परम धर्म वही है ,सच्चा प्रेम वही है जब हम किसी दूसरे आदमी के बारे में और उसके भविष्य के बारे में कुछ बढ़िया करने का सोचते हैं ,और इसी के साथ
आज की कथा ख़त्म हो चुकी थी,,,,,
भीड़ भाड़ में तो पता नहीं चला पर रास्ते में काकी और डॉली को वहां से लौटते हुए राज दिख गया था ,और काकी ज्यादा खुश थी, कि आखिर राजएक दिन कथा सुनने आ ही गया ,घर आकर जब काकी ने काम करते हुए राज से पूछा ,,,राज तू कथा में टाइम से तो पहुंच गया था ना
हां काकी अपुन टाइम से पहुंच गया था लेकिन मुझे तो तू कहीं नहीं दिखा ,,,
अरे काकी बह सबसे पीछे वाली कुर्सी खाली पड़ी हुई थी ,तो मैं वहीं बैठ गया था ,पीछे से तुझे कुछ सुनाई भी दिया या दोबारा ऐसे ही बैठा रहा ,,,,,अरे काकी अपुन ने सुना था ना वह पंडित बता रहा था ,,
कि जो पहले का विलेन होता था ,और दूसरी तरफ से सभी भगवान होते थे, ऐसा कुछ बताया था ना ,अमृत तो मिल बांट के पी लिया ,लेकिन जब साला पॉइजन की बात आई तो अपने भोलेनाथ को पकड़ा दिया
अपुन पूछता है कि उनने पिया कायको
काकी ने समझाया बेटा ऐसे नहीं कहते वह तो त्रिलोकनाथ है, उन्होंने विष दुनिया के भले के लिए पिया था ,अगर वह अपने हलक में इसे न उतारते तो दुनिया का उसी क्षण नाश हो जाता,इसलिये उन्होंने स्वयं का सुख न देखते हुए दूसरों का सुख देखा ,वह चाहते तो विषपान न करते, अमृत भी पी सकते थे लेकिन वह दुनिया जहां से प्रेम करते थे उसका अच्छा
चाहते थे,इसलिये उन्होंने स्वयं ही विष पी लिया, और सभी को संकट से बचा लिया ,,,,,
हां काकी तू शायद सच्ची कह रही है ये साला आज का पुरुष है ना सिर्फ अपना ही अपना स्वार्थ देखता है, कि कैसे भी हो, कुछ भी हो ,उसके संग सभी कुछ बढ़िया हो जाना चाहिए ,, दुनिया को आग लगती है तो लग जाए ,,,पर काकीएक बात मेरी समझ में आ गई ,कि जहां हम स्वार्थ नहीं देखते ,और जिससे प्रेम करते हैं ,उसके बारे में सभी कुछ बढ़िया होता हुआदेख्ना चाहते हैं, कि बस वह सुखी रहे, और उसकी जिंदगी में सभी कुछ बढ़िया हो ,काकी भी राज की बातों पर हंसते हुए बोली, बेटा ये तूने बिल्कुल सही बात कही ,पंडित जी की कथा का सार तो यही था,कि इसे कलयुग में यदि हम किसीएक इंसान का भी भला पर कर पाए तो हमाराइसे पृथ्वी पर जन्म लेना सिद्ध हो जाता है, हां काकी वैसे अपुन को बढ़िया लगा कथा सुनकर ,,,,
डॉली ज्यादा ध्यान से राज के चेहरे की तरफ देख रही थी, क्योंकि उसने 5 सालों में पहली बार राज के मुंह से भगवान का नाम सुना था ,,ऐसा नहीं है कि वह मंदिर ना जाता हो पर बात मंदिर जाने पर ही ख़त्म हो जाती थी यदि काकी कभी कहती तो उनके संग मंदिर जाता, और हाथ जोड़कर पुनः आ जाता ,बाकी चीजों की गहराई में कभी नहीं उतरा था ,धीरे धीरे-धीरे 8 दिनों पश्चात शिव पुराण पूरा हो चुका था, राज बड़ी मुश्किल सेएक ही दिन कथा सुनने जा पाया था, और उसकी
समझ में बस इतना ही आया कि हमें स्वयं के लिए नहीं जिंदगी दूसरों के लिए जीना चाहिए और यदि हम किसी के लिए कुछ करते हैं तो निस्वार्थ जज्बातों से ही करना चाहिए जहां स्वार्थ हो ,वहां प्रेम नहीं हो सकता और जहां प्रेम हो वहां स्वार्थ नहीं, क्योंकि इससे आगे पीछे की कथा तो राज ने सुनी ही नहीं थी लेकिन डॉली ने जो कथा सुनी थी उसमें वह शिव और पार्वती के प्रेम की अनुभूति को अच्छी तरह से समझ गई थी, उसने समझ लिया था किस शिव में कौन-कौन सी खूबियां थी, और क्यों गौरी मैया नेउन्को पाने के लिए तपस्या की थी ,क्योंकि वह शिव को जान चुकी थी,एक ही कथा से डॉली ने कुछ और सीखा था, और राज की छाप उसके मन पर कुछ और ही पड़ी थी ,,,,,
डॉली जब भी राज को कुछ बढ़िया करता हुआ देखती उसे हमेशा पंडित जी की कथा की याद आ जाती ,राज का शुरुआत से ही नियम था कि उसके ढाबे केबाहर् से कोई भूखा नहीं गुजर सकता था, रोज 5,,7 लोगों को भरपेट खाना वह फ्री में ही खिलाता था यदि किसी बच्चे के स्कूल की फीस रह गई तो, चुपचाप जाकर उसे जमा कर देता, किसी गरीब के पास चप्पल नहीं है तो फटाफट खरीद कर उसके हाथ में पकड़ा देता , पर राज ने इन सभी बातों के बदले कभी कोई उम्मीद किसी से नहीं की थी
वह जुबान का चाहे जितना ही कड़वा हो पर उसका मन बिल्कुल आईने की तरह स्वच्छ था डॉली जब भी राज की ऐसी बातों को देखती तो उसके मन में राज के
लिए इज्जत और बढ़ जाती, कथा पुराण हुए दो-तीन महीने बीत चुके थे, इन दो-तीन महीनों में डॉली ने कितनी बार महसूस किया था, की राज के अलावा ऐसा कोई नहीं है जिसकी डॉली पूरे दिल से इज्जत करती हो ,उसको राज की हर बात में शिव जी का ही रूप दिखने लगा था ,लेकिन अभी भी वह समझ नहीं पा रही थी, कि आखिर ऐसी कौन सी बात है ऐसा क्या हुआ है ,जो कुछ दिनों से उसे राज की हर बात मोहित कर रही थी, राज जब ढाबे पर काम करता या ,अपनी गाड़ी स्वच्छ करता ,या बगीचे में लगी सब्जियों में पानी देता ,तो डॉली एकटक उसे ऐसा करते हुए देखती रहती, और इसी बीच यदि राज की नजर उस पर पड़ती तो शर्मा जाती , उसे अकेले में ही इन बातों पर हंसी आ जाती थी और दोबारा कभी कभी स्वयं से ही प्रश्न करती , ये सभी क्या है ,वह क्यों ऐसी हरकतें कर रही है,,,,
एक बार तो बाजार जाते हुए उसको राज की अच्छी खासी डांट भी खानी पड़ी थी डॉली राज के संग बाजार जा रही थी, और वह उसके संग ही आगे की सीट पर बैठी थी राज पूरी मस्ती में गुनगुनाते हुए गाड़ी चला रहा था ,और डॉली उसे देखे जा रही थी
जब राज की नजर डॉली पर पड़ी तो उसने आंखें चढ़ाते हुए कहा ,,,,महारानी तू अपुन को घूरती कायको रहती है ,देख अपुन ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसके लिए तू अपुन को डांट लगाए,,,,इसलिये ये बड़ी-बड़ी आंखें अपने पास ही रख,,
उसके पश्चात भी डॉली राज को देखे जा रही थी ,,,,और उसने अचानक राज से पूछा आपने शादी के बारे में कभी कुछ सोचा है क्या
राज ने अचानक गाड़ी को ब्रेक मारा और डॉली की तरफ देखते हुए बोला, तू अपन से क्या बोलीएक बार दोबारा बोल ,डॉली ने दोबारा मासूमियत से कहा मैंने बस यही पूछा क्या आपने शादी के बारे में कुछ सोचा है
इस बात पर राज जोर जोर से खिलखिला कर हंस पड़ा था,,, क्यों तू भी काकी का रोल प्ले कर रही है, क्याएक काकी कम थी जो अब तू भी मुझे मेरी शादी
के लिए टोकने लगी ,,,,सुन तू बच्ची है मेरी काकी बनने की कोशिश मत कर ,,,,,
हां शादी के बारे में तो जरूर सोचा है पर अपुन की नहीं ,तेरी!
1 दिन अपन से काकी ने भी कहा था कि अब तू शादी के लायक हो गई है, तेरे लिएएक बढ़िया सा लड़का ढूंढना पड़ेगा मेरे को,,,
क्या डॉलीइसे बात पर मुंह फुला कर बैठ जाती है ,मेरी शादी कहां बीच में आ गई मुझे नहीं करनी कोई शादी-वादी ,और दूसरी तरफ देखने लगती है ,राज ने दोबारा गाड़ी स्टार्ट की और डॉली से कहा अरे महारानी इसमें गुस्सा होने वाली कौन सी बात है काकी कहती है कि लड़कियों को तो 1 दिन शादी करके अपने घर जाना ही होता है, अरे सारी लड़कियां जाती हैं ,तो तू भी जाएगी मुंह क्यों फुला रही है ,फिर मैं आज ही थोड़ी ना तेरी शादी करने जा रहा हूं,,,,,,
गाड़ी अपनी रफ्तार पर थी ,शहर बस आने ही वाला था ,डॉली और राज कई महीनों पश्चात शहर आ रहे थे ,तोउन्को शहर में बहुत काम थे ,अब डॉली ज्यादातर ऑनलाइन सामान ही मंगा लेती , तो शहर पहुँचना जाना कम ही होता था ,कुछ ही देर में दोनों शहर आ चुके थे ,और आकर ही खरीदारी करने में लग गए ,एक के बादएक सामान खरीदते हुए गाड़ी में रखते जा रहे थे, कुछ डॉली के आंगनबाड़ी का सामान था ,जो उसे लेकर जाना था ,कुछ राज के ढाबे का ,और कुछ घर का भी सामान था ,चूँकि डॉली भी काम में व्यस्त रहती ,और राज भी तोइसे वजह से दोनों का शहर पहुँचना जाना कम ही होता था ,खरीदारी करते हुए रात हो चुकी थी लेकिन शहर सिर्फ 2 घंटे की दूरी पर था
तो कोई चिंता की बात नहीं थी, दोबारा रोड भी बहुत चालू था ,सारी खरीदारी ख़त्म करने के पश्चात दोनों गांव के लिए निकल पड़े लेकिन जैसे ही शहर को क्रॉस किया कि अचानक मौसम में बदलाव आने लगा
हल्की बूंदों के संग तेज आंधी और तूफान अचानक से शुरुआत हो गया , राज ने जल्दी से उतर कर गाड़ी में
रखी हुई बड़ी सी पॉलिथीन से सामान को तो कवर कर दिया
लेकिन राज की जीप खुली हुई थी, तो तूफान और पानी की बौछार से इन दोनों का गाड़ी में बैठना मुश्किल हो रहा था ,यही कोई 1015 मिनट गाड़ी ड्राइव करके वह दोनोंएक गांव में रुक गए, गांव में किसी के घर केबाहर् बनी हुए दालान के नीचे दोनों खड़े हो गए, कि पानी कुछ कम हो तो वहां से निकले ,लेकिन पानी कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा था ,तूफान की तेजी भी कम नहीं हुई थी ,दोनों को यहां खड़े हुए करीब आधे घंटे से ज्यादा बीत चुका था तभी अंदर का दरवाजा खुला ,औरएक बूढ़ी अम्मा बाहर् निकली, बारिश की वजह से लाइट जा चुकी थी ,और घुप अंधेरा था
पहले तो वह थोड़ा डर गई ,लेकिन जब डॉली ने समझ लिया किउन्को कुछ सही नहीं लग रहा है, तो डॉली ने आगे बढ़ते हुएउन्को आवाज लगाई ,,अम्मा आप डरिये मत बारिश की बजह से हम इधर रुके हुए है आपके घर केबाहर् स्थान दिखी ,तो बस कुछ देर के यहां रुक गए, हमारा गांव यहां से पास ही है, डॉली की कुछ बातें शायद उनके कान में पड़ चुकी थी, थोड़ी ही देर पश्चात वह हाथ में लानटेन लेकरबाहर् निकली
और लानटेन को उपरि करते हुए उन्होंने डॉली और राज को देखा, तो दोनों ज्यादा ही भले लगे ,उनकेबाहर् की दालान (बरामदा) बहुत बड़ी थी, उन्होंने राज से दालान के अंदर जीप लगाने के लिए कहा ,और दोनों
को अंदर बुला लिया ,डॉली को पहले तो अंदर जाने में कुछ संकोच लगा, पर राज उसके संग था ,डॉली और राज दोनों अम्मा के घर के अंदर चले गए ,क्योंकिइसे टाइमसच मेंउन्को किसी के सहारे की जरूरत थीबाहर् तेज बारिश ,और ठंडी हवा से डॉली कांपने लगी थी, उसके कपड़े भी कुछ कुछ भीग गए थे, डॉली जैसे ही अंदर आई तो सामने ही अम्मा के घर में चूल्हा जल रहा था जिसकी गर्माहट की डॉली को शख्त जरूरत थी,वह जाकर चूल्हे के सामने बैठ गई,और आग तापने लगी,,,
उन्होंने लानटेन की प्रकाश थोड़ी और बढ़ा दी, जिससे वहएक दूसरे को अच्छे से देख पाए ,काम करते हुए वह बोलती जा रही थी बेटा लग रहा कि तुम दोनों को ज्यादा ठंड लग रही है, मैं तुम लोगों के लिए चाय बनाती हूं डॉली ने आगे बढ़ते हुए कहा! अम्मा आप परेशान मत होइए ,बस हम थोड़ी देर आपके यहां बैठना चाहते हैं ,जैसे ही बारिश रुकेगी तो हम यहां से चले जाएंगे, पर उन्होंने डॉली की बात को ना सुनते हुए चाय चढ़ाई और उसमें शक्कर पत्ती डालने लगी, वह बोलती ही जा रही थी,,, बेटाइसे बुड़िया के घर में आता ही कौन है, भगवान तो मेहमान का रूप होते हैं, महीनों पश्चात कभी ऐसा होता है कि कोईइसे बुढ़िया के यहां आए ,और मुझे कुछ करने का मौका मिले, वह सभी चीजो को टटोलते हुए शक्कर, पत्ती ,और दूध चाय में डालती जा रही थी, और बोले जा रही थी कुछ देर में डॉली की समझ मे आ गया कि शायद वह न के बराबर ही सुन पा
रही थी राज कमरे के अंदर इधर उधर देखता हुआ जायका ले रहा था कि अम्मा के यहां और कौन-कौन है ,,,,चाय बन चुकी थी ,अम्मा ने तीन स्टील के ग्लास में चाय छानी, डॉली और राज को देकर स्वयं भी चाय पीने लगी चाय पीते पीते ही पूछा ,बेटा भूख तो तुम लोगों को जरूर लगी होगी, मैं बस अभी खाने के लिए कुछ बनाती हूं, ये बात तो सच थी की डॉली को ज्यादा तेज भूख लग रही थी ,और राज को भी ,इस बार डॉली नेउन्को मना नहीं किया ,,,,,पर इतना जरूर कह दिया,,,,कि सच बात तो ये है, कि मुझे सच में ज्यादा तेज भूख लग रही है, पर आप चिंता मत कीजिए, मैं आपके संग खाना बनवा लूँगी, इतना सुनकर अम्मा के चेहरे पर खुशी आ गई थी ,उन्होंने चूल्हे के पीछे रखी हुई डलिया में से बड़े-बड़े दो बैगन ,और कुछ टमाटर लेकर चूल्हे की जलती हुई आग में डाल दिए, और और पास ही रखे कनस्तर सेएक बर्तन में आटा निकाल कर डॉली को दे दिया ,,,बेटा तू ये आटा माँढ़ (गूँथ) दे तब तक मैं ये बैगन और टमाटर भून के इसकी चटनी बना लेती हूं ,अभी तो डॉली को यदि नमक और रोटी भी मिल जाती तो उसमें भी उसकी आत्मा तृप्त हो जाती, दोबारा अम्मा जब इतने प्रेम से उसके लिए बैंगन टमाटर की चटनी ,और रोटियां बना रही थी ,तो डॉली के मुंह में अभी से पानी आने लगा था डॉली ने जल्दी से आटा गूंथा और मिट्टी का तवा चूल्हे पर चढ़ाते हुई रोटियां सेकने लगी तब तक अम्मा के बैंगन और टमाटर भुन चुके थे ,उनको छीलकर सिलबट्टी पर रखा उसमें
दो-तीन बड़ी नमक की डाली डाली और तीन-चार हरी मिर्ची और हरा धनिया डालकर चटनी भी बनकर तैयार हो गई थी राज सामने ही बैठा ये सभी कुछ देख रहा था ,गरम गर्म रोटी कि खुशबू से राज की भूख और भी बढ़ गई थी ,जैसे ही पहली रोटी सिकी अम्मा नेएक बड़ी सी थाली में चटनी रखकर डॉली को देते हुए कहा ले बिटिया इसमें रोटी रख और अपने पुरुष को ये थाली पकड़ा दे ,जब तक वह खाएगा तब तक हमारी रोटियां सिक जाएंगी ,और दोबारा हम दोनों खा लेंगे ,इस बात पर राज डॉली की तरफ देखने लगा ,,
और राज ने कहा,, अम्मा अपुन इसका कोई पुरुष नहीं है,,, अम्मा शायद ऊंचा सुनती थी ,वह कोई भी बात सुने बिना ही लगातार बोले जा रही थी,,,
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