The Rajsharma Sex Story of चाहत (Romance Special)
चाहत का घर
शाम का समय
चाहत और आर्यन ने खाना ख़त्म किया । चाहत बर्तन उठा कर किचन में साफ़ करने लगी । थोड़े देर पश्चात वो सीधे रीमा जी के पास पहुंचीं वहा रीमा जी कपडे घड़ी कर अलमारी में रख रही थी।
चाहत - मम्मी . वो
रीमा जी अलमारी का दरवाज़ा बंद करते हुए - हा बोलो.
चाहत - वो मम्मी आज अध्यन आया था. मुझे छोड़ने . दोबारा बारिश हुई और मैंने उसे घर बुलाया था।
चाहत ने ये कहा तो रीमा जी उसकी तरफ देखने लगी ।
चाहत डरते हुए - बारिश के कारण ही.
वो बोल ही रही थी।
रीमा जी चाहत के पास आकर - कोई बात नहीं .,वो आखिर मित्र है तुम्हारा . तुम उसे घर ला सकती हो.
चाहत ने रीमा जी की तरफ देखा। चाहतबाहर् जाने को हुई तब रीमा जी ने कहा।
रीमा जी - चाहत
चाहत रुक गई दोबारा रीमा जी उसके पास अाई और उसका चेहरा अपने हाथों में पकड़ कर कहा।
रीमा जी - मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. तुम कुछ गलत नहीं करोगी . उस दिन जो बाते भी हुई वो गुस्से में हुई थी. मैंने गलत किया था बेटा . पर अब मुझे समझ आता है. सभी समझती हूं मै . और भरोसा भी करती हूं तुम पर।
चाहत ने जब ये सुना वो ज्यादा खुश हुई और अपनी मम्मी को गले लगा करबाहर् आ गईं ।
चाहत अपने रूम अाई। कपडे चेंज कर बेड पर लेट गई।एक बार दोबारा अध्यन का चेहरा उसके दिल में मीठा अहसास जगा गया।
चाहत उठी और मिरर के सामने आ गईं । हर बार जब भी चाहत मिरर देखती थी उसमे अपना काला रंग देखती थी ।
पर आज वो अपनी मुस्कुराहट देख रही थीं जिसे देख अध्यन ने उसकी तारीफ की थी। वो अपनी आंखो को देख रही थी । जिस पर अलग ही चमक थी।
एकाएक चाहत को काजल की बात याद आ गईं । जब काजल ने पूछा था यदि अध्यन उससे पूछेगा तो वो क्या कहेगी।
आज चाहत ने सोच लिया था। उसे क्या कहना है।.
अगली सुबह चाहत हमेशा की तरह खुश थी। उसमेएक अलग सा कॉन्फिडेंस था। वो हसी खुशी सारे काम कर रही थीं । उसने आज व्हाइट कलर की ड्रेस पहनी थी। जो उसके घुटनो तक आ रही थीं । और वो फ्रॉक टाइप थी और स्लीवलेस भी। आज उसने अपने बालो की चोटी नहीं की थी बस खुला छोड़ दिया था।
चाहतबाहर् आते हुए - मम्मी मै मंदिर जा रही हूं।
रीमा जी चाहत को देखत हुए - आज कुछ है क्या.
चाहत नेउन्को देखते हुए - नहीं तो .पर आप ये क्यू पूछ रही है.
रीमा जी - क्युकी मेरा बच्चा आज ज्यादा सुंदर लग रहा है. तो मुझे लगा कि आज कुछ स्पेशल ही होगा.
चाहत उनके गले लगते हुए - नहीं मम्मा ऐसा कुछ नहीं है. बस मन है.
रीमा जी चाहत के गाल पर हाथ रख कर - ठीक है .जाओ पर जल्दी आ जाना।
चाहत - हा मै जल्दी से आती हूं.
ये बोल वो घर सेबाहर् निकली और पैदल ही मंदिर की तरफ चले गई।
राधा कृष्ण मंदिर
चाहत मंदिर गई वहा उसने पहली सीढ़ी के पांव छुए और घंटी बजाई. दोबारा आगे आकर उसने अपने हाथ जोड़ लिए ।
चाहत हाथ जोड़े हुए - भगवान जी. कैसे है आप .आप तो अच्छे ही होंगे .,मै भी अच्छी हूं. आपको तो मेरे बारे में सभी पता है.,और मेरे संग जो हो रहा है वो भी आपसे छुपा नहीं है. भगवान जी।. कल अध्यन के संग को चीज़े हुए . वो चीज़े दिमाग से निकल ही नहीं रही .मै ये नहीं कह रही की वो मुझेपस्न्द है .पर वो बढ़िया लड़का है . और अब तो मेरा मित्र भी बन गया है.उसके लिए मेरे दिल
मेंएक क्या है मै ये तो नहीं जानती,. पर वो मुझे दूसरों से अलग लगता है.तो मेरी यही ख्वाहिश है.की आप मेरी दोस्ती बनाए रखना. मेरे फैमिली वाले और मुझसे रिलेटेड सभी लोग खुश रहे . ये बोल उसने आंखे खोली तो पंडित जी उसे देख रहे थे ।
वो उनके पास गई। दोबारा उनके पांव छू कर बोली - प्रणाम पंडित जी. कैसे है आप।
पंडित जी - मै तो बढ़िया हूं. तुम बताओ कैसी हो.
चाहत खिलखिलाते हुए - मै भी अच्छी हूं ये बोल उसने हाथ आगे बढ़ा दिया ।
पंडित जी ने उसे प्रसाद दिया। चाहत ने प्रसाद लिया और वो जाने के लिए मुड़ी ही थी। तभी पंडित जी ने उसे पीछे से आवाज दी।
पंडित जी - चाहत बेटा.
चाहत उनकी तरफ देखते हुए - क्या हुआ.
पंडित जी - ये लगा लो . ये कह कर पंडित जी ने अपने हाथ पर रखे टिके के तरफ इशारा क्या।
चाहत उनके पास अाई और टीका लगा करबाहर् चली अाई।
चाहत घर के लिए निकालने वाली थी तभी किसी ने उसके कंधो पर हाथ रखा तो वो पलट गई।
उसने देखा कोई स्त्री है जो उसे देख रही हैं। उस स्त्री ने लाल साड़ी और लाल सिंदूर लगाया है।
चाहत नेउन्को देखा दोबारा एकदम से उनके पांव छू कर कहा - आप यहां कैसे मैम।
वो स्त्री - बस दर्शन करने अाई थी।
चाहत - मैम मॉर्निंग शिफ्ट में सभी कैसे है ।।।
स्त्री - ठीक है तुम बताओ .
चाहत - सभी ठीक है.
थोड़ी देर रुकने के पश्चात चाहत - मैम मुझे घर जाना था. तो आप??
वो स्त्री - हा मै भी जाने ही वाली थी. मेरे हसबैंड मुझे लेने आ रहे होंगे ।
चाहत -ओह तो . उनके आते तक मै रुक जाती हूं.
वो स्त्री - जरूर.
तभी उनकी नजर चाहत के हाथो पर गई।
वो स्त्री चाहत को देखते हुए - बुरा ना मानो तोएक बात कहूं.?
चाहत मैम को देख - हा कहिए ना।।
वो स्त्री - तुम्हारा रंग ना ज्यादा ही ज्यादा दबा हुआ है. तुम बेसन लगाया करो.
चाहत जिसके चेहरे में खुशी थी वो अचानक गायब हो गई।
उन्होने बात जारी रखते हुए कहा - मैंने ये बहुतों को करते हुए देखा है.। सच में ये काम करता है.। बस हल्दी बेसन और थोड़ा सा नींबू बस रोज सुबह नहाते टाइम लगा लो और सूखने पर धो देना।. और दोबारा निखारदेख्ना . चेहरा दमकने लगेगा तुम्हारा.
ये बोल उन्होंने सामने देखा उनकी गाड़ी आ गई थी। उन्होंने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और अंदर बैठ गई। अपनी गाड़ी का शीशा उन्होंने उपरि किया।
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चाहत जो सामने खड़ी थी। उसे अपना चेहरा उस शीशे में दिखा। चाहत को दोबारा अपना सावला रंग दिखा। वो गाड़ी धूल उड़ाती हुई वहा से चली गई। और छोड़ गई कई सवाल।
चाहत वहा से घर की तरफ आ रही थीं। चाहत के मन में उनकी बाते घूम रही थीं. क्या वोएक वेल एजुकेटेड स्त्री नहीं थी.। या दोबारा वोएक टीचर होते हुए भी कबियत की स्थान रंग देखती थी. ऐसा नहीं था कि चाहत ने ये सभी नहीं किया था। पर ये हर बार काम आए ये जरूरी तो नहीं.
उसने कई लोगो से ये तक सुना था. की लोग गोरी लड़की ढूंढते है शादी के लिए. और यदि वो ऐसे ही रही तो शायद उसे कोईपस्न्द नहीं करेगा . कोई उसे अपने घर की बहू नहीं बनाएगा।. क्या येएक रूढ़िवादी सोच नहीं थी।
जिस टीचर ने कभीउन्को एकलव्य और अम्बेडकर जैसे लोगो के बारे में बताते हुए ये कहा था कि हमे कभी भेदभाव या रूढ़िवाद को बढ़ावा नहीं देना चाहिए । आज उनकी स्वयं सोच वैसी है। क्या यही है हमारे देश के शिक्षित लोग जो आधुनिक युग में होकर भी बाहरी दिखावे को महत्व देते हैं ऐसा नहीं है कि चाहत को उनकी बातों का बुरा लगा था पर वह उनकी सोच चाहत के प्रति ऐसी हैं ये देख कर उसे बुरा लग रहा था क्योंकि वह मैम चाहत को ज्यादा अच्छे से जानती थी वह उसके स्कूल में पढ़ने वाली टीचर थी वह चाहत की काबिलियत से वाकिफ थी दोबारा भीउन्को भी उसका रंग ही दिखा ये बात उसे ज्यादा बुरी लग रही थी।
वो ये सारी बाते याद करते हुए घर पहुंची। वो बिना किसी से कुछ कहे अपने रूम में चले गई। चाहत बाथरूम में गई। वाशबेसिन के पास आकर उसने अपना चेहरा धोया।एक बार दोबारा उस सावले रंग ने उसका मज़ाक उड़ाया था। उसकी खुशी छीन ली थीं । वो वाशबेसिन को पकड़ कर ज्यादा रोई
जब तक उसे हल्का नहीं लग गया तब तक। थोड़ी देर रो लेने के पश्चात वोबाहर् अाई अपना ड्रेस निकाल कर स्कूल ड्रेस पहन लिया।
चाहत रूम सेबाहर् आई वो हाथ में कंघी पकड़ कर अपनी मम्मी के पास बैठ गई। रीमा जी ने उसके बाल पहले सुलझाए और उसकी चोटी बनाने लगी. रीमा जी ने चोटी बनाई और कहा - लो हो गया।
चाहत उनकी तरफ देख कर फिका मुस्कुरा दी।
रीमा जी चाहत को देखते हुए - कुछ हुआ है क्या?
किसी ने कुछ कहा क्या।
चाहत ने ना में सिर हिला दिया।
चाहत जाने लगी तो रीमा जी ने पीछे से उसका हाथ पकड़ा । दोबारा पूछा - कुछ तो हुआ है. कहो ।
चाहत की आंखो मेंएक बार दोबारा नमी आ गई दोबारा भी उसने स्वयं को संयत कर वो मुड़ी और कहा - मम्मी ठीक हूं मै.आप टैंशन ना लो।
चाहत अपने रूम में गई। वहा से अपना बेग ले अाई और शू
रैक से शूज निकाल कर पहनने लगी। रीमा जी अाई और उन्होंने चाहत के बेग में टिफिन डाला। उसे शूज पहनते देख कर वो बोली - चाहत तुमने नाश्ता तो किया ही नहीं.
चाहत अपने शूज के क्लिप को लगते हुए नज़रे झुकाए बैठी थी। ताकि उसके आंसू मम्मी ना देख ले।
चाहत - हा मम्मी मन नहीं है ।
रीमा जी उसके पास अाई और उसका माथा छू कर बोली - ठीक हो ना तुम.
चाहत उनका हाथ हटाते हुए - हा मा ठीक हूं मै.
रीमा जी ने चाहत को देखा दोबारा कहा - रुको तुम . वो अंदर गई । जबबाहर् अाई तो उनके हाथ मेंएक प्लेट थी जिस में पराठा और आचार था। रीमा जी ने चाहत को अपने सामने सोफे पर बिठाया।
पराठे काएक टुकड़ा लिया और उसमे आचार लगा कर उसे चाहत की तरफ बढ़ा दिया। चाहत ने पहले पराठे को देखा दोबारा रीमा जी को ।
रीमा जी ने इशारे से उसे खाने को कहा तो चाहत भी बिना कुछ कहे खाने लगी।
जब पराठे ख़तम हुए तो वो चाहत के तरफ देख कर बोली - जब भी खाने का मन ना हो तो मेरे पास पहुँचना मै तुम्हे अपने हाथ से खिला दूंगी। पर भूखे मत रहना.
चाहत ने हा में सिर हिला दिया।
ऐसा नहीं था कि रीमा जी को अहसास नहीं हुआ था पर कल रात हुए किस्से के पश्चात उनको ये बात पता थी। यदि कुछ भी हुआ तो चाहतउन्को स्वयं बताएगी। वो चाहत के बोलने का वेट कर रही थी।
चाहत ने कुछ नहीं कहा उसने अपना बेग लिया औरबाहर् आ गई। साइकिल निकाल वो अपनी ही दुनिया में खोए स्कूल के रास्ते की तरफ बढ़ रही थी। तभी उसकी साइकिलएक पत्थर से लग कर गिर पड़ी और संग में चाहत भी गिरी। उसके घुटने के पास छिल गया था। वो हाथ झाड़ते हुए उठी । साइकिल ठीक थी ये देख चाहत साइकिल उठा कर स्कूल की तरफ चल पड़ी ।
वो साइकिल स्टैण्ड के पास पहुंची। अपनी साइकिल रख ही रही थी। तभी किसी ने उसे पुकारा । पलट कर देखा तो
अध्यन था जो उसके पास आ रहा था। चाहत ने अध्यन को देखा और वो भी उसी तरफ जाने लगी। अध्यन उसके पास आया ही था तभी उसकी नजर चाहत के कपड़ों पर गई जिस पर मिट्टी लगी थी। वो उसके पास आकर ।
अध्यन उसके दाग़ की तरफ इशारा कर के - ये क्या हुआ.?
चाहत उस दाग़ को देखते हुए - ये. अरे.कुछ नही.वो साइकिल से गिर गई थीं।
अध्यन एकदम से उसके करीब आया और उसे कंधो से पकड़ कर चारो तरफ से घुमा कर देखता है।
अध्यन - तुम ठीक हो ना . ज्यादा तो नहीं लगा ना .तुम क्लास मत जाओ .मै तुम्हे पहले डॉक्टर के पास ले चलता हूं. दोबारा घर छोड़ दूंगा. ये बोल उसने चाहत का हाथ पकड़ लिया। और आगे बढ़ने लगा।
चाहत ने उसे रोकते हुए - अध्यन मै ठीक हूं . बस घुटने में चोट लगी है .
अध्यन उसकी बात सुन जल्दी से नीचे बैठ गया उसने उसकी स्कर्ट की तरफ हाथ बढ़ाया ही था। तभी उसे याद आया वो ऐसे नहीं कर सकता।
चाहत भी थोड़े देर के लिए डर गई थीं। अध्यन उठा उसने चाहत के बेग को अपनेएक कंधे में पकड़ा और दूसरे कंधे में उसका स्वयं का बेग था। उसने सीधे हाथ से चाहत केएक हाथ को पकड़ा और औषधीय रूम की तरफ ले गया। चाहत बस अपने हाथ को देख रही थी। उसके सावले रंग के हाथो को अध्यन ने अपने गोरे हाथो से मजबूती से पकड़ रखा था। अध्यन उसे औषधीय रूम ले आया। चाहत अपने हाथ कोदेख्ना छोड़ अब अध्यन को देख रही थी जो उसे थामे आगे बढ़ रहा था।
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