** काली चिड़िया का रहस्य **
दोपहर केएक बजे का टाइमथा । मैं मोतिया बगीची के सामने बने शिव मन्दिर की दीवाल से पीठ टिकाये सिगरेट के कश लगा रहा था ।
इस टाइममेरे दिमाग में जेनी को लेकर भारी उठापटक चल रही थी । जेनी आस्ट्रेलिया की रहने वाली थी औरएक गाड़ी दुर्घटना में मारी गयी थी । हम दोनों में तीन वर्ष तक अच्छी मित्रता रही थी । आज सुबह ही जेनी कीएक दूसरा फ़्रेंड एकेट्रीना ने मुझे फ़ोन पर ये दुखद समाचार सुनाया था ।
मरना जीना जिंदगी का अभिन्न अंग है । इससे कोई बच नहीं सकता । जिसने जन्म लिया है । उसे मरना भी होगा । पर इधर बात कुछ अलग थी । जेनी स्वाभाविक मौत नहीं मरी थी । उसकी अकाल मृत्यु हुयी थी । परालौकिक विग्यान के मेरे शोध एहसास के अनुसार ऐसी मृत जीवात्माओं के सूक्ष्म बदन को यमदूत लेने नहीं आते । और न ही टाइमसे पहले यम दरबार में उसकी पेशी होती है ।औरइसे तरह वो नरक या दूसरा पशुवत योनियों में भी नहीं जा सकता । जब तक कि उसकी आयु का टाइमपूरा नहीं हो जाता ।
ऐसी हालत में दो ही रास्ते बचते हैं । या तो जेनी अपने सूक्ष्म बदन के संग भटकेगी । और अपने जुङे संस्कार के अनुसार किसी ऐसी गर्भवती स्त्री की तलाश में होगी । जिसे गर्भधारण किये पाँचवा महीना चल रहा हो । तो वो ईश्वरीय नियम के अनुसार उस गर्भ में प्रवेश कर जायेगी । लेकिन इसके लिये भी उसका मनोबल मजबूत होना चाहिये ।
दूसरे वो उन प्रेतों के चंगुल में भी फ़ँस सकती है । जो ऐसी ही मृतात्माओं की तलाश में रहते हैं । जिनकी अकाल मृत्यु हुयी हो तब वे उसे डरा धमकाकर लोभ लालच से उसमें प्रेत जज्बातों प्रविष्ट कर देते हैं । और फ़िर वह जीवात्मा दस से लेकर बीस हजार सालों तक प्रेत जिंदगी जीने पर मजबूर हो सकती है ।
मेरे दिमाग में जो उठापटक चल रही थी । उसकी वजह ये थी कि जेनी की मृत्यु को बीस दिन हो चुके थे । और मैं लाख कोशिशों के पश्चात भी उससे कनेक्टिविटी नहीं जोङ पा रहा था ।बाबाजीइसे टाइमअपनेएक अनुष्ठान में लगे हुये थे । और वैसे भी उनका कहना था कि सच्चे साधक को कभी भी प्रकृति के कामों में दखल नहीं देना चाहिये । इससे ईश्वरीय नियम की अवहेलना होती है ।
लिहाजा मैंइसे तरह की हरेक बात को लेकर बाबाजी के पास जाने लगा । तो वो रुष्ट भी हो सकते थे । लेकिन क्योंकि जेनी की बात अलग थी । वह मेरी दोस्त थी । इसलिए मैं बार बार उससे कनेक्टिविटी जोङने की कोशिश कर रहा था । औरइसे कोशिश में नाकामयाव था । इसका सीधा सा मगर मेरे लिये हैरतअंगेज मतलब था कि जेनी प्रथ्वी के अलावा किसी दूसरे लोक में थी ।
और येइसे बात का संकेत भी था कि वो किन्ही मक्कार किस्म के प्रेतों के चंगुल में भी हो सकती है ।अपने इसी तरह के विचारों में मैं खोया हुआ था कि मेरे सेलफ़ोन की घन्टी बजी ।
दूसरी तरफ़ से कोई रेनू नामक स्त्री बोल रही थी । जो अर्जेंट ही मुझसे मिलना चाहती थी । मेरे बारे
में उसे किसी उसके ही परिचित ने बताया था । मैं मन्दिर के सामने बनी संगमरमर की सोफ़ानुमा कुर्सियों पर पेङ की छाया में बैठ गया । और सिगरेट सुलगाकर हल्के हल्के कश लेने लगा ।
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कोई दस मिनट पश्चात ही मेरे सामने ई बाइक परएक शानदार जानदार युवती आयी । उसने काले गोल शीशों का
खूबसूरत चश्मा पहन रखा था । और उसके गोद में बेल्ट के सहारे टिका हुआ करीब तीन वर्ष का बच्चा था । उसने एहतियात के तौर पर अपना सेलफ़ोन हाथ में लेकरएक नम्बर डायल किया । तुरन्त मेरे फ़ोन की घन्टी बज उठी । उसके चेहरे पर सुकून के जज्बातों आये ।
वह मुझे देखकर औपचारिकता से मुस्करायी । और हाथ बङाती हुयी बोली - हेलो मि. प्रसून ! आय एम रेनू । क्या मैं इधर बैठ सकती हूँ ?
- फ़रमाईये रेनू जी ! उसे बैठने का इशारा करते हुये मैंने कहा ।
रेनू की उस डौल सी बच्ची का नाम डौली था । रेनू उस बच्चे को लेकर ही परेशान थी । दरअसल पिछले छह महीने से डौलीएक अजीव बर्ताव करती थी । वह आम बच्चों की तरह खेलने कूदने के बजाय यन्त्रवत उस काली चिङिया को देखती रहती थी । जो हर टाइमउसके इर्द गिर्द ही रहती थी ।
रेनूएक तरह से उस काली चिङिया से बेहद आतंकित थी । उसने कई बार उस चिङिया को भगाने और मारने की भी कोशिश की थी । पर सफ़ल नहीं हो पायी थी । फ़िर किसी के कहने पर उसनेएक दो ओझा तान्त्रिक से भी सम्पर्क करकेइसे समस्या से निजात पाने की कोशिश की थी ।
लेकिन पश्चात में स्वयँ रेनू को लगा कि ओझाओं के पास जाने से उसकी समस्या और भी खराब हो गयी थी । बच्ची पहले की उम्मीद ज्यादा कमजोर और सुस्त रहने लगी थी । रेनू ने आसपास देखते हुये इशारे से बताया कि यही वो दुष्ट चिङिया है । जिसने मेरा जीना हराम कर रखा है । मेरी बच्ची कहीं भी क्यों न जाय । ये साये की तरह संग ही रहती है । उसकी बङी बङी काली आँखो से आँसू बह निकले ।
मैंने रेनू से ध्यान हटाकर चिङिया को देखा । चिङिया निकट के हीएक पेङ की डाल पर बैठी थी । और आमतौर पर जंगलों में पायी जाने वाली काली चिङिया की नस्ल की थी ।
डौली यन्त्रचालित सी चिङिया की तरफ़ घूम गयी थी और उसे ही देख रही थी ।
मैंनेएक कंकङ उछालकर चिङिया की तरफ़ फ़ेंका । पर चिङिया अपने स्थान से हिली तक नहीं ।
निश्चय ही येएक गम्भीर मामला था । और मेरे गणित के अनुसार तोएक बच्चे की जिंदगी ही दाव पर लगी थी । वो चिङिया दरअसल चिङिया थी ही नहीं । किसी चिङिया के मृत पिण्ड को उपयोग करने वाली कोई प्रेतात्मा थी । और जिसका किसी तरह से रेनू या डौली से कोई भावनात्मक या बदला लेने का उद्देश्य लगता था ।
अगर मैं उस पहले से ही मरी हुयी चिङिया को मार भी देता । तो क्या फ़र्क पङना था । प्रेतात्मा फ़िर किसी मृतक पिंड का इस्तेमाल कर लेती । और समस्या ज्यों की त्यों ही रहती ।
मैंने उस प्रेतात्मा से कनेक्टिविटी की कोशिश की । पर सफ़लता नहीं मिली । दुबारा ज्यादा प्रयास करने पर चिङिया थोङी सी विचलित लगी । फ़िर उसने आसमान की तरफ़ चोंच उठाकरइसे तरह खोली । बन्द की । मानों पानी की बूँद पी रही हो । मेरा ये पहले से बङा प्रयास भी विफ़ल हो गया ।
- नगर कालका । मेरे मुँह से स्वत ही निकल गया ।
- क्या ? रेनू अचकचा कर बोली ।
- कुछ नहीं । प्लीज कुछ अपने बारे में । कुछ अपने पति के बारे में बताईये । और साफ़ साफ़ बताईये । छुपाने की चेष्टा ना करें ।
- मेरे बारे में मैं क्या बताऊँ । मेरे पति सुरेश बंगलौर मेंएक साफ़्टवेयर कम्पनी में काम करते हैं । और मैं यहीं पास के शहर भीमनगर की रहने वाली हूँ । और इधर अपने पति के पुश्तैनी घर में रहती हूँ । मैं और मेरी बच्ची के अलावा उस घर में कोई नहीं रहता.और हाँ.। वह कुछ सकुचाते हुये बोली - मेरी लव मैरिज हुयी है ।
- लव मैरिज को कितना टाइमहुआ है ?
- यही कोई आठ महीने । उसके मुँह से निकल गया । फ़िर उसे अपनी गलती का अहसास हुआ । और वो नजरें झुकाकर जमीन की तरफ़ देखने लगी ।
- मैंने आपसे पहले ही कहा था कि प्लीज साफ़ साफ़ बताना । यदि मेरे द्वारा मदद प्राप्त करना चाहती हो ।
- वो दरअसल.। और फ़िर वह बिना रुके सभी बताती चली गयी ।
अब आधा रहस्य मैं समझ चुका था । मेरी निगाह स्वत ही चिङिया की तरफ़ चली गयी । वह मिट्टी के खिलौने की भाँति पेङ पर स्थिर बैठी थी ।
रेनूएक तरह से सुरेश की दूसरी पत्नी थी । सुरेश की पहली पत्नी का नाम पूर्णिमा नैय्यर था ।
आज से कोई दस महीने पहले जब पूर्णिमा गर्भवती थी । और प्रसव का टाइमबेहद नजदीक था । सुरेश और पूर्णिमा में रेनू को लेकर झगङा हुआ था । सुरेश पिछले पाँच सालों से रेनू को बतौर प्रेमिका की हैसियत से रखता था । और उनके सवा दो वर्ष की डौली नाम कीएक बच्ची भी थी ।इसे झगङे में सुरेश ने पूर्णिमा को धक्का मार दिया । जिससे पूर्णिमा जमीन पर गिर पङी । और उसे अत्यधिक रक्तस्राव होने लगा । ये देखकर सुरेश घबरा गया । और आनन फ़ानन पूर्णिमा को अस्पताल में भर्ती कराया गया । जहाँएक मृत पुत्र को जन्म देकर पूर्णिमा स्वयँ भी चल बसी । लेकिन मरने से पूर्व उसे यही बताया गया कि उसकोएक बेटा हुआ है । और उसकी तसल्ली हेतु दूसरे शिशु को उसे दिखाया भी गया ।
- आप अभी । मैंने रेनू से कहा - सुरेश को फ़ोन करके पूछिये कि पूर्णिमा की शव यात्रा के टाइमउसकी अर्थी के पीछे पीछे सरसों के दाने शमशान तक फ़ैलाये गये थे । या नहीं । मेरा ख्याल है । ऐसा नहीं किया गया । और मि. सुरेश ने बेहद लापरवाही का परिचय देते हुये पूर्णिमा की आत्मिक शान्ति हेतु भी कोई प्रयास नहीं किया ।
रेनू फ़ोन डायल करने लगी । और दस मिनट पश्चात सिर उठाकर उसने मेरी तरफ़ देखा । उसके चेहरे पर निराशा के जज्बातों थे । वह झुँझलाई हुयी सी और घबराई हुयी सी थी ।
रेनू ने जबाब मेरी उम्मीद के अनुसार ही दिया था । सुरेशइसे तरह की बातों को दकियानूसी और अंधविश्वासी मानता था । और दरअसल क्योंकि ज्यादातर वहबाहर् ही रहता था । इसलिए उसके इधर ज्यादा परिचित भी नहीं थे । दूसरे किसी ने भीइसे तरफ़ उसका ध्यान नहीं दिलाया था । साफ़ साफ़ बात थी कि शवयात्रा के समयइसे तरह की जानकारी वाला कोई पुरुष या स्त्री वहाँ मौजूद नहीं थी ।
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औरइसे छोटी सी गलती ने पूर्णिमा नैय्यर को ज्यादा लम्बे टाइमतक " खतरनाक पिशाचनी " के समकक्ष " नगर कालका " प्रेतनी बना दिया था । अब मौका चूक जाने के पश्चात क्या हो सकता था ।
नगर कालका प्रेतनी दरअसल वह जीवात्मा होती है । जिसकी गर्भिणी अवस्था में मृत्यु हुयी हो । ये प्रेतात्मा क्योंकि शिशु के अत्यधिक मोह में प्राण त्यागती है । इसलिए यदि इसकी आत्मिक शान्ति हेतु समुचित प्रयास न किये जाँय । तो ये खतरनाक नगर कालका बन जाती है । और अपने घर के आसपास ही खन्डहर या पुराने वृक्षों पर निवास करती है ।
इसकी सबसे बङी पहचान ये होती है कि आसपास के वासी अनोखी घटनाओं का शिकार होने लगते है । जैसे किसी के द्वारा मामूली बात पर फ़ाँसी लगाकर । जहर खाकर या स्वयं को जलाकर सुसाइड कर लेना । अचानक अकारण लोगों में ऐसा झगङा होना कि गोली चलने की नौबत आ जाये । बच्चे अनोखी बीमारियों का शिकार होने लगते हैं । उनका बर्ताव भी अजीव हो जाता है । ये विवाहित या नव विवाहित युवतियों पर सबसे ज्यादा अटैक करती है । और उसकी वजह से वे युवतियाँ निर्लज्ज वैश्या के समान बर्ताव करने लगती हैं ।
वे अपने स्तनों या योनि का ( कभी कभी खुले आम भी देखने में आया है ) भोंङा प्रदर्शन करती है । और उनका पति या कोई अनजाना अग्यानवश मोहित होकर उनसे सम्भोग करे । तो वे उस वक्तएक बलात्कारी स्त्री का सा बर्ताव करती हैं । ऐसा एहसास होता है । मानों कोई शक्तिशाली हस्तिनी स्त्री पुरुष से बलात्कार कर रही हो ।
अक्सर इसकी शिकार औरतें खुले आम अपना ब्लाउज आदि फ़ाङ देती हैं और दूसरा अधोवस्त्रों के भी चिथङे चिथङे कर डालती है । अत्यधिक गम्भीर हालत होने पर उनको रस्सियों से बाँधकर रखना पङता है । और लोगइसे समस्या की असली वजह नहीं जान पाते ।
इसकी वजह ये है किइसे तरह के पारलौकिक ग्यान के जानने वाले अक्सर निर्जन स्थानों पर रहना पसन्द करते हैं । और आम लोगउन्को कम ही जानते हैं । तब ऐसी अवस्था में मरीज को अस्पताल लाया जाता है । जहाँ नींद के इंजेक्शनों और ग्लुकोज की वोतलों द्वारा समस्या को हल करने की कोशिश की जाती है । और वास्तव में अभी तक के चिकित्सा विग्यान के पास इससे ज्यादा हल है भी नहीं । और ये कामयाब भी हो जाता है । क्योंकि मरीज को चार छह महीने तक नशीली दवाओं से करीब बेहोशी की हालत में निष्क्रिय रखा जाता है । और नगर कालका ऐसी हालत में उससे काम नहीं ले सकती । अतः वह उस बदन को छोङकर दूसरा को आवेशित करना शुरुआत कर देती है । और उसके छोङते ही प्रभावित युवती स्वस्थ होने लगती है । उसके परिवार के लोग समझते हैं कि ये डाक्टरी इलाज से ठीक हो गयी । डाक्टरइसे तरह की परेशानियों को दमित यौन इच्छाओं से हुआ रोग हिस्टीरिया बताते हैं ।
इसके अतिरिक्त पक्षी भी बिना कारण मर जाते हैं । और नगर कालका के क्षेत्र में कुत्ते बेहद दुखित होकर रोते हैं । यानी मामला काफ़ी गम्भीर था ।
- मेरी फ़ीस । मैंने अपलक अपनी और देखती हुयी रेनू से कहा -एक लाख रुपये होगी । और किसी बच्चे की जिन्दगी के सामनेएक लाख रुपये का कोई महत्व नहीं.यू नो.?
उसके चेहरे परएक आह सी नजर आयी । उसने कसमसा कर पहलू बदला । और विचलित होकर बोली - लेकिनइसे टाइममेरे पास तीस हजार से ज्यादा नहीं हैं । सुरेशइसे बात पर विश्वास नहीं करेगा । और मेरे पास पैसे प्राप्त करने का और कोई जरिया भी तो नहीं है ।
मैंने जानबूझकर उसके शर्ट सेबाहर् झाँकते अधखुले गोरे स्तनों को निहारा । और कहा - तुम दूसरे तरीके से भी पेमेंट कर सकती हो । यदि तुम चाहो तो .?
मेरी बात समझकर वह पाँच मिनट के लिये विचलित हो गयी । उसनेएक निगाह काली चिङिया को देखा । फ़िर अपनी फ़ूल सी प्यारी बच्ची डौली को देखा । और इसके पश्चात उपरि से नीचे तक मुझे देखा । और फ़िर उसके चेहरे पर बेबसी के पश्चात कठोर फैसला के जज्बातों आये । और वह फ़ैसला करती हुयी बोली - ओ के मैं तैयार हूँ ।
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