पति की नज़रें जब अपनी ही बहन के जिस्म का जायज़ा लेने लगें तो पत्नी का फर्ज भी बनता है कि भाई कीइसे वासना की पूर्ति की जाए. मगर उसके लिए क्या-क्या करना पड़ जाता है, भाई-बहन कीइसे कामुक दास्तान में पढ़ें.
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अपडेट 1
हैलो. मेरा नाम काजल है। मेरी शादी को कोई 8-9 महीने हुए हैं।
मेरे पति का नाम सूरज है.
वो मेरे ऑफिस में मेरे संग ही काम करते थे. लेकिन शादी के पश्चात मैंने नौकरी छोड़ दी और घर पर ही रहने लगी हूँ।
सूरज कोई ज्यादा ज्यादा अमीर पुरुष नहीं हैं। उसकी फैमिली शहर के पास हीएक गाँव में रहती है. उधर थोड़ी सी ज़मीन है. जिस पर उसके घर वाले अपना गुज़र-बसर करते हैं। गाँव में उसके बाप. माँ. बहन औरएक छोटा भाई रहते हैं। उसका छोटा भाई अपनी बाप के संग जमीनों पर ही होता है। गाँव के स्कूल में ही बहन पढ़ रही थी. वो ज्यादा ही प्यारी लड़की है. रश्मि.
यानि वो मेरी ननद हुई।
मैं अपने पति सूरज के संग शहर में ही रहती हूँ। हमनेएक छोटा सा घर किराए पर लिया हुआ है. इसमेंएक बेडरूम मय अटैच बाथरूम. छोटा सा टीवी लाउंज औरएक रसोई है।
घर के अगले हिस्से मेंएक छोटी सी बैठक है. जिसकाएक दरवाज़ा घर सेबाहर् खुलता है. और दूसरा टीवी लाउंज है. घर के पिछले हिस्से मेंएक छोटा सा बरामदा है। बस. तक़रीबन 3 कमरे का घर है. उपरि की छत बिल्कुल खाली है।
मेन गेट के अन्दर थोड़ी सी स्थान गैराज के तौर पर जहाँ पर सूरज अपनी बाइक खड़ी करता है।
मैं और सूरज अपनी शादी से ज्यादा खुश हैं और बड़ी ही अच्छी लाइफ गुज़र रही थी। भले ही. सूरज का बैक ग्राउंड गाँव का था. लेकिन दोबारा भी शुरुआत से शहर में रहने की वजह से वो काफ़ी हद तक शहरी ही हो गया था। रहन-सहन. ड्रेसिंग वगैरह सभी शहरियों की तरह ही थी. और वो काफ़ी ओपन माइंडेड भी था।
घर पर हमेशा वो मुझसे फरमाइश करता के मैं मॉडर्न किस्म के कपड़े ही पहनूं.इसलिये घर पर मैं अक्सर टाइट लैंगिंग्स और टॉप्स. स्लीव लैस शर्ट्स और हर किस्म की वेस्टर्न ड्रेसस पहन लेती थी।
मैं अक्सर जब भीबाहर् जाती. तब भी मेरी ड्रेसिंग काफ़ी मॉडर्न ही होती थी।
मैं अक्सर जीन्स और टी-शर्ट पहनती थी या सलवार कमीज़ पहनती तो. वो भी फैशन के मुताबिक़ ही एकदम चुस्त और मॉडर्न ही होती थी।
घर सेबाहर् भी वो मुझे अक्सर लेगिंग पहना कर ले जाता था. घर आ जाता तो मुझसे सिर्फ़ ब्रेजियर और लेगिंग में ही रहने की फरमाइश करता था.
सूरज मेरे हुस्न और मेरे जिस्म का दीवाना था। हमेशा मेरी गोरे रंग और खूबसूरत जिस्म की तारीफ करता था।
जब भी मौका मिलता. वो मेरी चूचियों को मसल देता था.
और मेरे खुले गले में हाथ डाल कर मेरी चूचियों को सहलाता रहता था।
अपने पति को खुश करने और उसे लुभाने के लिए मैं भी हमेशा डीप और लो नेक की कमीजें सिलवाती थी. जिसमें से मेरी चूचियों भी नजर आती थीं और मम्मों का क्लीवेज तो हर वक़्त ही ओपन होता था।
दिन में जब भी मौका मिलता. हम लोग सेक्स करते थे.
बल्कि सच बात तो ये है कि मैं शादी से पहले ही अपना कुँवारापन सूरज पर लुटा चुकी थी।
जी हाँ. सूरज ही मेरी पहली और आखिरी प्रेम था और ये सूरज की प्रेम ही थी. जो के मुझे शादी से पहले ही उसके पलंग तक उसकी बाँहों में ले आई थी।
शादी के 8-9 महीने पश्चात भी जब हमारी सेक्स लाइफ और हवस से भरी हुई ज़िंदगी पूरे सिरे पर थी. तो एकदम इसमेंएक ब्रेक सी लग गई औरएक टकराव सा आ गया।
इसकी वजह ये थी कि मेरी ननद रश्मि… ने स्कूल का आखिरी इम्तिहान पास कर लिया था और उसने कॉलेज में एडमिशन लेने का इच्छा ज़ाहिर किया. तो मेरे ससुर जी ने पहले तो इन्कार कर दिया. लेकिन जब उसके चहेते बड़े भाई सूरज ने भी अपने बाप से बात की. तो मेरे ससुर जी ने हामी भर ली कि यदि सूरज उसकी जिम्मेदारी उठा सकता है. तो ठीक है।
अब दिक्कत ये थी कि गाँव में कोई कॉलेज नहीं था और उसे शहर में पहुँचना था। जब रश्मि ने कॉलेज में एडमिशन लिया. तो वो गाँव से शहर में आ गई। अब ज़ाहिर है कि उसे हमारे संग ही रहना था तो रश्मि शहर में हमारे संग उस छोटे से घर में ही शिफ्ट हो गई।
रश्मि की आने से और हमारे संग रहने से मुझे और तो कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन सिर्फ़एक असुविधा था कि हमारी सेक्स लाइफ थोड़ी बंदिशों वाली हो जाने थी।
अब हमें जो भी करना हो. तो अपने कमरे में ही करना था। वैसे रश्मि ज्यादा ही अच्छे नेचर की लड़की थी. अभी क़रीब 19 वर्ष की ही थी. ज्यादा ही सुंदर और खूबसूरत लड़की थी। बिल्कुल दूध की तरह गोरा रंग. और मक्खन की तरह से नरम-नरम जिस्म था उसका.
उसके सीने की उठान. यानि चूचियों उभर चुकी थीं. लेकिन अभी ज्यादा बड़ी नहीं थीं। जाहिर सी बात है कि मुझसे तो छोटी ही थी. ज्यादा ही सादा और मासूम सी लड़की थी।
मुझसे ज्यादा ही प्रेम करती थी और ज्यादा ही इज्जत देती थी।
जब से घर में आई. तो रसोई में भी मेरा हाथ बंटाती थी. और मेरे संग घर का काफ़ी काम करती थी। मैं भी रश्मि की शक्ल मेंएक अच्छी सी सहेली को पाकर खुश थी।
उसके सोने का इंतज़ाम उस छोटी सी बैठक में हीएक सिंगल पलंग लगवा कर. कर दिया गया था। वो वहीं पर ही पढ़ती थी और वहीं पर ही सोती थी। बाथरूम उसे हमारा वाला ही इस्तेमाल करना पड़ता था. जिसकाएक दरवाज़ा छोटे से टीवी लाउंज में खुलता था और दूसरा हमारे बेडरूम में खुलता था।
बस रात को सोते वक़्त हम लोग अपने बेडरूम वाला बाथरूम का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लेते थे. ताकि रश्मिबाहर् से ही उसे इस्तेमाल कर सके।
रश्मि वैसे तो ज्यादा ही खूबसूरत लड़की थी. लेकिन सारी ज़िंदगी गाँव में रहने की वजह से बिल्कुल ही ‘डल’ लगती थी। उसकी ड्रेसिंग भी ज्यादा ज्यादा ट्रेडीशनल किस्म की होती थी। सादा सी सलवार-कमीज़ पहनती थी. कभी भी मॉडर्न किस्म के कपड़े नहीं पहनती थी।
मुझे घर में लेगिंग पहनेदेख्ना शुरुआत किया. तो वो ज्यादा ही हैरान हुई. तो मैंने हंस कर कहा- अरे यार क्यों हैरान होती हो. ये सभी आज के वक़्त की ज़रूरत और फैशन है. इसके बिना ज़िंदगी का क्या मज़ा है. वैसे भी तो घर पर सिर्फ़ तुम्हारे भैया ही होते हैं ना. और जब भीबाहर् जाती हूँ. तो उनके संग ही जाती हूँ. तो दोबारा मुझे किस चीज़ की फिकर है।
रश्मि - लेकिन भाभीबाहर् तो ज्यादा से लोग होते हैं. वो आपको अजीब नजरों से नहीं देखते क्या?
मैं - अरे यार देखते हैं. तो देखते रहें. मेरा क्या जाता है. वैसे इन लोगों की कमीनी नज़रों का भी अपना ही मज़ा होता है।
मैंनेएक आँख मार कर रश्मि से कहा. तो वो झेंप गई।
मैं उसे हमेशा ही मॉडर्न और न्यू फैशन के कपड़े पहनने को कहती. लेकिन वो इन्कार कर देती।
‘मुझे शरम आती है. ऐसी कपड़े पहनते हुए. और दोबारा मुझे इन कपड़ों में देख कर भैया बुरा मान जाएंगे.’
शहर में आने के पश्चात सूरज ने उसे खूब शहर की सैर करवाई। हम लोग सूरज की बाइक पर बैठ कर घूमने जाते. मैं सूरज के पीछे बैठ जाती और मेरे पीछे रश्मि बैठती थी।
हम लोग खूब शहर की सैर करते. और रश्मि भी खूब एंजाय करती थी।
बाइक पर बैठे-बैठे मैं अपनी चूचियों को सूरज की बैक पर दबा देती
और उसके कान में ख़ुसर-फुसर करती जाती- क्यूँ दोबारा फील हो रही हैं ना मेरी चूचियां तुमको?
मेरी कमर पर सूरज भी जानबूझ कर अपनी कमर से थोड़ा-थोड़ा हरकत देता और मेरी चूचियों को रगड़ देता। कभी मैं उसकी जाँघों पर हाथ रख कर मौका मिलते ही उसकी पैन्ट के उपरि से ही उसके लण्ड को सहला देती थी.
जिससे सूरज को ज्यादा मज़ा आता था।
हमारी इन शरारतों से बाइक पर पीछे बैठे हुई रश्मि बिल्कुल बेख़बर रहती थी।
सूरज अपनी बहन से ज्यादा ही प्रेम करता था. आख़िर वो उसकी सबसे छोटी बहन थी ना. कम से कम भी उससे 8 वर्ष छोटी थी. और वो मुझसे 5 वर्ष छोटी थी।
रोज़ाना सूरज स्वयं ऑफिस जाते हुए रश्मि को कॉलेज छोड़ कर जाता और वापसी पर संग ही लेता आता था। मुझे भी कभी भीइसे सबसे कोई दिक्कत नहीं हुई थी। जैसा कि ननद-भाभी में घरों में झगड़ा होता है. मेरे और रश्मि कि बीच में ऐसा कभी भी नहीं हुआ था. बल्कि मुझे तो वो अपनी ही छोटी बहन लगती थी।
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अपडेट 2
आपने अभी तक पढ़ा.
शहर में आने के पश्चात सूरज ने उसे खूब शहर की सैर करवाई । हम लोग सूरज की बाइक पर बैठ कर घूमने जाते. मैं सूरज के पीछे बैठ जाती और मेरे पीछे रश्मि बैठती थी।
हम लोग खूब शहर की सैर करते. और रश्मि भी खूब एंजाय करती थी।
बाइक पर बैठे-बैठे मैं अपनी चूचियों को सूरज की बैक पर दबा देती और उसके कान में ख़ुसर-फुसर करती जाती- क्यूँ दोबारा फील हो रही हैं ना मेरी चूचियां तुमको?
मेरी कमर पर सूरज भी जानबूझ कर अपनी कमर से थोड़ा-थोड़ा हरकत देता और मेरी चूचियों को रगड़ देता। कभी मैं उसकी जाँघों पर हाथ रख कर मौका मिलते ही उसकी पैन्ट के उपरि से ही उसके लण्ड को सहला देती थी. जिससे सूरज को ज्यादा मज़ा आता था।
हमारी इन शरारतों से बाइक पर पीछे बैठे हुई रश्मि बिल्कुल बेख़बर रहती थी।
सूरज अपनी बहन से ज्यादा ही प्रेम करता था. आख़िर वो उसकी सबसे छोटी बहन थी ना. कम से कम भी उससे 8 वर्ष छोटी थी. और वो मुझसे 5 वर्ष छोटी थी।
रोज़ाना सूरज स्वयं ऑफिस जाते हुए रश्मि को कॉलेज छोड़ कर जाता और वापसी पर संग ही लेता आता था। मुझे भी कभी भीइसे सबसे कोई दिक्कत नहीं हुई थी। जैसा कि ननद-भाभी में घरों में झगड़ा होता है. मेरे और रश्मि कि बीच में ऐसा कभी भी नहीं हुआ था. बल्कि मुझे तो वो अपनी ही छोटी बहन लगती थी।
अब आगे .
फिरएक दिन वो घटना हुआ जोइसे कहानी के आगे बढ़ने की वजह बना, उससे पहले ना कुछ ऐसा-वैसा हुआ हमारे घर में, और ना ही किसी के दिमाग में था. लेकिन उस वाकिये के पश्चात मेरा दिमागएक अजीब ही रास्ते पर चल पड़ा और मैंने वो सभी करवा दिया जो कि कभी नहीं होना चाहिए था।
वो इतवार का दिन था और हम सभी लोग घर पर ही थे । दोपहर के वक़्त हम सभी लोग टीवी लाउंज में ही बैठे हुए टीवी देख रहे थे कि सूरज ने चाय की फरमाइश की. इससे पहले कि मैं उठती. रश्मि फ़ौरन ही उठी और बोली- भाभी आप बैठो. मैं बना कर लाती हूँ।
मैंने उसे ‘थैंक्स’ बोला और दोबारा टीवी देखने लगी, सूरज भी मेरा पास ही बैठा हुआ था।
अचानक ही रसोई से रश्मि कीएक चीख की आवाज़ सुनाई दी और संग ही उसके गिरने की आवाज़ आई । मैं और सूरज दोनों ही फ़ौरन ही उठ कर रसोई की तरफ चिल्लाते हुए भागे ।
‘क्या हुआ है रश्मि?’
जैसे ही हम लोग अन्दर गए तो देखा कि रश्मि नीचे रसोई कि फर्श पर गिरी हुई है और अपने पांव को पकड़ कर दबा रही है और वो दर्द के मारे कराह रही थी।
हम फ़ौरन ही उसके पास बैठ गए और मैं बोली- क्या हुआ रश्मि. कैसे गिर गई?
रश्मि - बस भाभी. पता ही नहीं चला कि कैसे मेरा पांव मेरी शलवार में फँस गया और मैं नीचे गिर पड़ी।
सूरज - अरे ये तो शुक्र है कि अभी इसने चाय नहीं उठाई हुई थी. नहीं तो गर्म-गर्म चाय उपरि गिर कर और भी नुक़सान कर सकती थी।
मैंने आहिस्ता-आहिस्ता रश्मि को पकड़ कर उठाना चाहा. उसका दूसरा बाज़ू सूरज ने पकड़ा और हमने रश्मि को खड़ा किया. तो वो अपना बायाँ पांव नीचे ज़मीन पर नहीं रख पा रही थी। बड़ी ही मुश्किल से वो अपनाएक पांव उपरि उठा कर मेरी और अपने भैया की सहारे पर लंगड़ाती हुई टीवी लाउंज में पहुँची।
इतने से रास्ते में भी वो कराहती रही- भाभी नहीं चला जा रहा है. ज्यादा दर्द हो रहा है।
टीवी लाउंज में लाकर हम दोनों ने उसे सोफे पर ही लिटा दिया और मैं उसके पास बैठ गई।
सूरज - लगता है कि इसके पांव में मोच आ गई है।
मैंने रश्मि को सीधा करके सोफे पर लिटाया और उसके पांव की तरफ आकर उसके पांव को सहलाती हुए बोली- हाँ. लगता तो ऐसा ही है.
मैंने सूरज से कहा- आप रश्मि के बेडरूम में जाकर मूव तो उठा लायें. ताकि मैं इसके पांव की थोड़ी सी मालिश कर सकूँ।
मेरी बात सुन कर सूरज फ़ौरन ही कमरे में चला गया और मैं आहिस्ता-आहिस्ता उसके पांव को सहलाती रही। अभी भी रश्मि दर्द के मारे कराह रही थी।
चंद लम्हों के पश्चात ही सूरज वापिस आया और उसने मूव मुझे दी। मैंने थोड़ी सी ट्यूब से मलहम निकाली और उसे रश्मि के पांव के उपरि मलने लगी।
फिर मैंने सूरज से कहा- जरा रसोई में जा कर रबर की बोतल में पानी गर्म करके ले आओ. ताकि थोड़ी सी सिकाई भी की जा सके।
सूरज भी अपनी बहन के पांव में मोच आने की वजह से ज्यादा ही परेशान था।इसलिये फ़ौरन ही रसोई में चला गया।
रश्मि के पांव के उपरि मूव लगाने के पश्चात मैंने उसकी सलवार को थोड़ा उपरि घुटनों की तरफ से उठाया. ताकि उसकी टांग के निचले हिस्से पर भी मूव लगा दूँ।
रश्मि ने उस वक़्तएक ज्यादा ही लूज और खुली गले वाली सलवार पहनी हुई थी और शायद यही वजह थी कि वो रसोई में इसके पाएंचे से उलझ कर गिर गई थी।
जैसे ही मैंने रश्मि की सलवार को उसकी घुटनों तक उपरि उठाया तो रश्मि की गोरी-गोरी टाँगें मेरी आंखों के सामने नंगी हो गईं।
उफफ्फ़. रश्मि की टाँगें कितनी गोरी और मुलायम थीं. जैसे ही मैंने उसकी नंगी टाँग को छुआ. तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैंने मक्खन में हाथ डाल दिया हो. मैं उसकी टांग की मालिश का भूल कर आहिस्ता-आहिस्ता उसकी टाँग को सहलाने लगी।
धीरे-धीरे अपना हाथ उसकी नंगी टाँग पर फेरने लगी। कभी पहले ऐसा नहीं हुआ था. लेकिन आज मुझेएक अलग ही मज़ा आ रहा था। मुझे उसकी मखमली टाँग को सहलाने का मौका जो मिल गया था।
फिर मैंने अपने ख्यालों को झटका और उसकी टाँग पर मूव लगाने लगी।
थोड़ी ही देर में सूरज गर्म पानी की रबर की बोतल ले आया और मेज पर रख दी।
अब वो दूसरी सोफे पर बैठ कर दोबारा से टीवी देखने लगा. रश्मि की टाँग पर मूव लगाते हुए अचानक ही मेरी नज़र सूरज की तरफ गई. तो हैरानी से जैसे मेरी आँखें फट सी गईं।
मैंने देखा कि सूरज की नजरें टीवी की बजाय अपनी सग़ी बहन की नंगी टाँगों को देख रही हैं।
मुझेइसे बात पर ज्यादा ही हैरत हुई कि सूरज कैसे अपनी छोटी बहन की नंगी टाँग को ऐसे देख सकता है।
उसकी आँखों में जो हवस थी.
वो मैं अच्छी तरह से पहचान सकती थी. आख़िर मैं उसकी पत्नी थी।
यह देख करएक लम्हे के लिए तो मेरे हाथ रश्मि की टाँग पर रुक से गए. लेकिन मुझमें हिम्मत ना हुई कि मैं अपने पति से नजरें मिलाऊँ या उसको रोकूँ या टोकूँ. मैंने अपनी नजरें वापिस रश्मि की टाँग पर जमा दीं और आहिस्ता-आहिस्ता मूव मलने लगी।
रश्मि को किसी बात का होश नहीं था. वो तो बस अपनी आँखें बंद किए हुए पड़ी हुई थी। रश्मि की नंगी गोरी टाँग को सहलाते सहलाते मेरे दिमाग मेंएक शैतानी ख्याल आया. कि क्यों ना मैं इसकी टाँग को थोड़ा और एक्सपोज़ करूँ और देखूँ कि तब भी सूरज अपनी बहन की गोरी टाँगों को नंगा देखता रहता है या नहीं.
यही सोच कर मैंने आहिस्ता से रश्मि की सलवार उसके घुटनों के उपरि सरका दी. और अब उसकी खुली पायेंचे वाली सलवार उसके घुटनों से उपरि आ गई थी. जिसकी वजह से रश्मि का घुटना और उसकी जाँघ का थोड़ा सा निचला हिस्सा भी नंगा हो गया था।
मैंने उसके घुटनों पर भी आहिस्ता-आहिस्ता मूव लगानी शुरुआत कर दी और मसाज करती हुई. मैंने तिरछी नज़र से अपने पति की तरफ देखा. तो पता चला कि अब भी वो चोर नज़रों से अपनी बहन की नंगी टाँग की ओर देख रहे थे।
मैं दिल ही दिल में मुस्करा दी।
कितनी अजीब बात थी किएक भाई भी अपनी सग़ी छोटी बहन की नंगी टाँग को ऐसी प्यासी नज़रों से देख रहा था. जैसे कि वो उसकी बहन ना हो. बल्कि कोई गैर लड़की हो!
मुझेइसे गंदे खेल में अजीब सा मज़ा आ रहा था और मैं इसलिएइसे मसाज को एक्सटेंड करती जा रही थी. ताकि सूरज ज्यादा से ज्यादा अपनी बहन के जिस्म से अपनी आँखों को सेंक सके।
अब मेरे दिमाग मेंएक और शैतानी ख्याल आया।
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